Wednesday, 6 April 2016

मिलन -मिलाप 2

कल विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन के बाहर और आज दिल्ली डोमेस्टिक एयरपोर्ट से कहानी आगे बढ़ती है।गो एयर ,सीट नंबर 8 -सी और उससे बँधी मैं अंतरास्ट्रीय विमानों को कोस रही थी।कारण कुछ ख़ास नहीं एयरहोस्टेस थी।सोच रही थी, यार ये छोटी यात्राओं के लिए इतनी सुन्दर -सुन्दर एयरहोस्टेस और लम्बी दुरी के लिए वाइन और बियर।माने, सही मामलो में कैलेंडर वाली एयरहोस्टेस डोमेस्टिक एयरलाइन में ही दिखती है।इंटरनेशनल फ्लाइट में तो बस खाना -पीना ,मूवी देखना और अक्षांश -देशांतर सुनना।ऐसा नहीं है ,कि इंटरनेशनल फ्लाइट में एयरहोस्टेस नहीं होती।होती है, पर देखने लायक कम।अब देखिये इसे नारी अपमान या मेरी तुच्छ सोच से मत जोड़ दीजिए।वो क्या है जो सुन्दर है ,उसकी तारीफ तो करनी चाहिए।चाहे वो महिला हो या पुरुष।खैर छोडियो इन बातो को।सुंदरता देखते हुए और सोते हुए मै पटना एयरपोर्ट पहुँची।सामान लेने के बाद फोन देखा ,नेटवर्क ही नहीं।गेट से बाहर निकली तो सामने फिर से एक स्मार्ट लड़का ,पर बीमार सा दिखा।जिसको देख के मैं थोड़ी परेशान हो गई।पास आया गले मिला और मेरा सामान ले लिया।मैंने पूछा क्या हालत बना रखी है ?छोड़ दो घर बनवाने का काम।वो मुस्कुराया और बोला - बहिन तोरे नू बेचैनी रहे की घर कब बनी ?उसकी मुस्कुराहट मेरे चेहरे पे हँसी तो नहीं ला सकी अलबत्ता आँखे नम कर गई।ये लड़का मेरा भाई उज्जवल।पटना से हमलोग मेरे ससुराल मढ़ौरा पहुँचे।मेरे देवर की शादी बीत जाने के बाद मै बसंतपुर गई।घर तो मेरा बेतिया है ,पर बसंतपुर सही मामलो में मायका है।माँ की नौकरी की वजह से बचपन वही बीता।दोपहर का समय था।मेरे सपने में कोई कविता पढ़ी जा रही थी -स्वस्ती श्री लिखी ले बसंतपुर से पतिया ,माई के परनाम पावे लिखी आपन बतिया।मै समझ गई ये कोई और नहीं कविवर मुकुल जी ही है।स्कूल में कुछ बच्चों का फिक्स जोन था।जैसे मुकुल की ये कविता ,मेरा भाषण ,जावेद का मेरे देश की धरती गीत गाना और रीम -ऋतू  दोनों बहनो का -सुन्दर सुभूमि भईया भारत के देसवा से मोरा प्राण बसे हिम खोह रे बटोहिया (देशभक्ति पुरबिया) गीत।सपने में ही मैंने मुकुल से पूछा -भाई मेरे बचपन से ही मै सोचती थी कि ये "स्वस्ती श्री" है कौन ? जो तुम्हे ही पाती लिखते है।तभी फ़ोन की घण्टी टुनटुनाती है।मै जाग जाती हूँ।मैंने फ़ोन उठाया उधर से आवाज़ आई।सो रही हो क्या ? हमलोग पहुँचने वाले है।मैंने कहा आ जाओ ना ,कोई बात नहीं।बेड पर लेटी मैं स्कूल के दिन को याद करने लगी।एक साथ कई चेहरे बंद आँखों के पीछे हल्ला करने लगे।वो 7 -A का क्लासरूम।आगे की बेंच पर कोने में बैठी मै।तीन- चार बेंच लड़कियों की बाकी सारे लड़को के लिए।किसी का कोई फिक्स सीट नहीं था।बस जहाँ बैठना शुरू किया ,वही बैठने लगे।मेरा कोने में सीट चुनने के कई कारण थे।एक तो मै क्लास में छोटी लड़कियों में शामिल थी ,तो फर्स्ट बेंच पे बैठना था।दूसरा एकदम सामने से ब्लैकबोर्ड चमकता था।तीसरा कोने वाली सीट एकदम गेट के सामने तो कोई भी टीचर आये तो पहले से सावधान हो लो।सबसे महत्वपूर्ण कारण तो मेरा क्लास में छुप -छूप के गट्टा (गुड़ की मिठाई ) खाना था।एक दिन ऐसे ही क्लास में गट्टा खा रही थी।सामने के बेंच से चश्मे के पीछे से दो आँखे मुझे देख रही थी।डर लगा कि कही कम्प्लेन ना कर दे सर से।पर चश्मेवाले ने शायद गट्टे की लालच में कम्प्लेन ना की।वहीँ डर के मारे मैंने आधा गट्टा एक लड़की को दे दिया और आधा खुद जल्दी -जल्दी सफाचट कर दिया।सोच के ही चेहरे पर मुस्कान आगई।फिर ख्याल आया अरे! कविवर मुकुल जी आजकल वक्ता हो गए है ,और मै वक्ता कवी /लेखक बनती जा रही हूँ।कितना कुछ बदल गया है।पता नहीं ये जो मिलने आ रहे है ,ये कैसे होंगे ? तभी फिर फ़ोन की घंटी बजी।आवाज़ आई -आरे यार हमलोग तुम्हारे कॉलोनी के गेट के बाहर खड़े है।कौन सा घर है तुम्हारा ? मैंने कहा रुको मै आती हूँ।फटाफट बालों को ठीक कर मैं बाहर पहुँची।देखा तो वही आँखे चश्मेवाली, साथ में एक और दोस्त हशमुद्दीन।चश्मेवाले ने बढ़ कर हाथ मिलाया।हशमुद्दीन से भी मिली और घर के अंदर ले कर आई।हशमुद्दीन तो बहुत बदल चूका था।चश्मेवाले का नाम नेशात नईम था।नईम का पहला सवाल यार हमें बुला कर खुद सो गई ? मैंने बताया देवर की शादी के बाद तबीयत बहुत ख़राब हो गई थी।खाँसी की दवा ली तो नींद आ गई।तपाक से बोलता है ,तुम तो ड्रिंक करती हो फिर खाँसी की दवा से नींद कैसे ?मैंने हँसते हुए कहा बाबू मै कोई पियकड नहीं हूँ।वो कभी एक -आध घूँट पार्टी के नाम पर पी ली।पहली बार में तो मुझे लगा कि ये दोनों मुझसे मिल कर खुश नहीं हुए।हो सकता हो थोड़ा असहज महसूस कर रहे हो ,घर पे मिल के।खैर बात मेरे दुबले होने की दुहाई से शुरू हुई।थोड़े देर बाद दोनों थोड़े सहज हुए।बातो का सिलसिला चल पड़ा।कई दबी कहानियाँ सामने आई।फिर वही ये लड़की कहाँ है वो लड़का कहाँ है ? तभी मुझे मुकुल वाली लड़की याद आई।मैंने उनलोगो से भी पूछा।उन्हें भी कुछ याद नहीं।बात वही आखिर बाहुबली को कट्टप्पा ने क्यों मारा (बाहुबली वाला आइडिया एक दोस्त के कमेंट से आया )? आखिर कौन थी वो ?कहाँ गई वो लड़की ? वो दोनों स्कूल टाईम की कोई बातें पूछते मुझे याद नहीं रहता तो नेशात कमेंट करता -हाँ तुम क्यों याद रखो ?तुम तो अपनी ही दुनिया में मस्त हो।फिर हशमुद्दीन बचाव करता।बोलता भाई समझते नहीं हो ,सबकी जिम्मेदारी बढ़ गई है।नेशात बोलता हाँ ,पर इतनी भी क्या मशरूफ़ियत ?मुझे ऐसा लगा नेशात आज भी बचपन की यादो को हमसबसे ज्यादा सँजो के रखा है।उसी का सुझाव था कि, हमसब एक बार मिले।हसमुद्दीन के यहाँ शादी थी।बीच -बीच में उसके कॉल आ रहे थे ।उसने अपनी पत्नी और बच्चों की तस्वीर दिखाई।नेशात कि बीबी की भी तारीफ की।दोनों ने एक दूसरे की पोल खोली।हसमुद्दीन ने बताया ,कैसे एक लड़की नेशात के लिए छत से कूदने जा रही थी।मै तो हँसते -हसँते पागल हो रही थी।मैं भी उस लड़की को जानती थी।थोड़ी पागल तो थी ,पर इतनी पागल की एक पागल के लिए छत से कूदने की हिम्मत रखे।मैंने तो नेशात की खूब खिचाई की।हशमुद्दीन ने अपनी भी पसंद की लड़की की कहानी बताई।बातो -बातो में हशमुद्दीन कहता है ,तपस्या तुम्हारी मासूमियत खो गई है।वो पहले वाली बात नहीं।मेरी फिर से हँसी छूट गई।पूछा कैसे ?बोल बस ऐसे ही।वो मेरे ब्लॉग को पढ़ते रहता है।कई बार मै थोड़ा ऊंच -नीच लिख देती हूँ ,या फिर हो सकता है मेरे चेहरे पर उम्र की लकीरे दिखने लगी हो।जो भी हो हशमुद्दीन ,भाई क्या करे ये दुनिया भोलेपन को बेवकूफ समझती है।इससे पीछा छुड़ाने के क्रम में हम थोड़ा मासूमियत खो देते है।चेहरे पर दिखे ना दिखे ,दिल में मासूमियत रहना चाहिए।इस मुलाकत में फिर से मैंने एक कांड किया।हुआ यूँ कि मैंने इनके लिए खाना नहीं बनवाया था।मुझे सच में उम्मीद नहीं थी कि इतनी बाते होंगी।साथ में तबीयत भी ठीक नहीं थी।माँ मेरी मुझे कुछ करने नहीं देती।इसका ताना नेशात बाबू ने खूब दिया कि खाना भी नहीं खिलाया ,कामचोर लड़की ने।मैंने माँ से भी मिलवाया दोनों को।शाम को करीब 6 ;30 के आस -पास दोनों ने विदा लिया।माँ नेशात को रोक रही थी।वो अमनौर से मिलने आया था।माँ बोली बाबू रात को घर कहाँ जाओगे ?रुक जाओ ,पर उसे हशमुद्दीन के यहाँ रुकना था।शायद दोनों मिल कर अपने पुराने दिन याद करेंगे और गायेंगे -"जुस्तज़ू जिसकी थी उसको तो ना पाया हमने,इस बहाने से मगर देख ली दूनियाँ हमने।तुझको रुसवा ना किया ख़ुद भी पशेमाँ ना हुए ,इश्क़ की रश्म को इस तरह निभाया हमने :P एक तस्वीर दोस्तों के नाम ,उम्मीद है फिर मिलेंगे :)

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