रविवार का दिन।सुबह से मौसम भी धुप -छाँव जैसा और मन भी कुछ धुप -छाँव जैसा।दिन खाते -पीते ,सोते -जागते गुजर गया।शाम हुई शतेश बोले तपस्या मै चाय बनाता हूँ।मैंने कहा ठीक है बनाओ।मैं यूटूब से मेरे प्लेलिस्ट से गाने ढूँढ़ने लगी।मौसम थोड़ा बारिश सा हो रहा था।सोचा गज़ल लगाती हूँ।फेवरट गज़ल लिस्ट बजने लगी।मै तबतक नमकीन लेने किचन में गई।गाना बजता है -अब तक दिल -ए -खुशफ़हमी को है तुझसे उम्मीदें।नमकीन लेकर मै टीवी के पास गई ,और गाने को शुरू से प्ले किया।"मेंहदी हसन जी" की आवाज में अहमद फराज़ का लिखा हुआ।आह ! कितनी ही बार सुना होगा इसे।जिस दिन भी इसे बजाया होगा ,कम से कम दो -तीन बार तो रीपीट जरूर की होगी।चाय का इंतज़ार करती मैं ,नमकीन खाने लगी।गाना खत्म होता है ,तबतक चाय भी आ जाती है।मैं वापस से गाना प्ले करती हूँ।शतेश कहते है वापस से वही।मैंने कहा शतेश बाबू कुछ गानों से मेरे कान का ,दिमाग़ का ,मन का ऑर्गैज़म होता है।दोनों हँस पड़े।शतेश बोले ,अच्छा है कैसेट नहीं है।वरना कब की घिस गई होती।चाय पीते हुए शतेश मोबाइल से खेलने लगे ,और मैं गज़ल की लाईनो में खो गई।बार -बार किसी की याद आ रही थी।ओह !
रंजिश ही सही ,दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
पहले से मरासिम (सम्बन्ध )ना सही ,फिर भी कभी तो ,रस्मे -रहे- दुनियाँ ही निभाने के लिए आ।
किस -किस को बतायेंगे जुदाई का सबब हम ,तू मुझसे ख़फा है तो ,ज़माने के लिए आ।
इक उम्र से हूँ लज़्ज़ते गिरिया (रोने के स्वाद ) से भी महरूम (दूर ),अय राहत-ऐ - जाँ मुझको रुलाने के लिए आ।
अब तक दिल -ए -खुशफ़हमी को है तुझसे उम्मीदें ,ये आखिरी शम्मे बुझाने के लिए आ।
कुछ तो मेरे पिन्दारे (आत्म -सम्मान ,गौरव )मोहब्ब्त का भरम रख,तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ।
इक उम्र से हूँ लज़्ज़ते गिरिया (रोने के स्वाद ) से भी महरूम (दूर ),अय राहत-ऐ - जाँ मुझको रुलाने के लिए आ।
अब तक दिल -ए -खुशफ़हमी को है तुझसे उम्मीदें ,ये आखिरी शम्मे बुझाने के लिए आ।
कुछ तो मेरे पिन्दारे (आत्म -सम्मान ,गौरव )मोहब्ब्त का भरम रख,तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ।
माना के मोहब्ब्त का छुपाना है मोहब्ब्त ,चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ।
जैसे तुम्हे आते है ना आने के बहाने ,ऐसे ही किसी रोज ना जाने के लिए आ।रंजिश ही सही ,दिल ही दुखाने के लिए आ।रंजिश ही सही।
जैसे तुम्हे आते है ना आने के बहाने ,ऐसे ही किसी रोज ना जाने के लिए आ।रंजिश ही सही ,दिल ही दुखाने के लिए आ।रंजिश ही सही।
कानो में आवाज़ आ रही थी -लवली मुझे प्यार हो गया है।गज़ल की हर लाईन मुझे उनकी याद दिला रही थी।यूँ तो मैंने इसे कई बार सुना है ,पर आज मन बहुत से उलझनों में जकड़ा था।आज ही मेरी उससे बात हुई।उसकी सिसकियाँ कानो के साथ दिल -दिमाग पर अबतक छाई हुई है।उसपे ये गज़ल।शायद उसके लिए ही बना हो।सोच रही थी कौन गलत है ? कहाँ गलत है और क्यों गलत है ? प्यार करना हमेशा से गुनाह क्यों रहा है ?कभी नहीं सुना की फलाने ने प्यार किया और सब उनके प्यार से खुश है।कही लड़की नहीं राज़ी तो कही लड़का।कही परिवार नहीं राज़ी तो कही समाज।देखो तो तुमने भी अपने दिल का बोझ किसके साथ साझा किया ?मैं लिख तो सकती हूँ तुम्हारी कहानी ,पर क्या समझ सकती हूँ ? जब तुम मुझसे बात कर रही थी ,मै तुम्हारी बातों को मजाक़ समझ रही थी।मैंने मज़ाक में ही कहा रुको, इसपे भी कुछ लिखती हूँ।और तुमने कितने आत्मविश्वास के साथ कहा जरूर लिखो।अगर मुझे लिखना होता लवली , तो मैं बीसियों पन्ने रँग डालती।तुम्हारी इस बात से मैं थोड़ी देर के लिए चुप हो गई।समझ में आया सच में तुम सीरियस हो।तुमने मुझसे कहा मैंने अपने दिल का हाल इस कदर किसी से बयां नहीं किया।कई बार सोचा अपने पति को सबकुछ बता दूँ।पर उससे क्या होगा ? डर लगता है ,कही वो गुस्से में कुछ कर ना बैठे।वैसे भी ये सिर्फ मेरी ख़ुशी की बात नहीं।दो परिवार की इज़्जत की भी बात है।मेरे बच्चों के भविष्य की भी बात है।मै सिर्फ उसकी बातें सुनी जा रही थी।बीच -बीच में उसकी सिसकियाँ महसूस कर रही थी।मुझे खुद पे गुस्सा आ रहा है कि ,मै भी कितनी डरपोक या समाजवादी सोच वाली हूँ।तुमको कह दिया जिस गाँव जाना नहीं ,उसका पता पूछ के क्या फायदा ? तुमने एक आह भरी और कहा -मै जानती हूँ ,तभी तो अपना नंबर बदल दिया।उससे बात करना बंद कर दिया।पर क्या करू मुझे उसकी याद बहुत आती है।शादी के 5 सालो में प्यार क्या होता है ? इसके और कितने रँग है ,ये अब मैंने जाना।सबके सामने मै खुश रहने का नाटक करती हूँ।किसको बताऊँ ?क्या बताऊँ ? मैंने कहा छोड़ ना।इस बार अपने पति से बात कर।बोल तुझे भी अपने साथ ले जाए।तुमने कहा अब कहाँ बच्चों की पढाई शुरू हो गई है।उसपे अम्मी -अब्बू की देखभाल भी तो करनी होती है।मुझे लवली अब अकेले ही रहना अच्छा लगता है।मेरा पति आता भी है तो ,मुझे कोई खुशी नहीं होती।मैंने पूछा कही तेरे पति का किसी से कोई अफेयर तो नहीं ? बोली नहीं यार अभी तो ऐसा कुछ नहीं है।पर शादी के पहले था।मेरा पति मुझे किसी चीज़ की तकलीफ नहीं देता।वो अपनी दुनियाँ में खुश रहता है ,मैं अपनी।बस कमी है तो साथ की ,प्यार की।तुझे मालूम है ,इस दुबई ने मुझे चंद पैसो ,गहनों के सिवा कुछ नहीं दिया।शादी के 5 सालो में पति के प्रेम के रूप में मुझे दो बच्चे मिले और कुछ नहीं।कितना खाली -अधूरा लगता है ,जब अपने दोस्तों को उनके परिवार ,पति के साथ खुश देखती हूँ।इन सबके बीच एक अंजान रॉन्ग नंबर से कॉल आता है।धीरे -धीरे उस अंजान शख्स से मेरी बात होने लगती है।मैंने तुम्हे बताया भी था ,याद है तुम्हे ? मैंने कहा हाँ।पर तूने तो कहा था ,तूने मना किया था ,कि रॉन्ग नंबर है ,कॉल या मैसेज ना करे।हाँ यार कहा तो था।पर मालूम नहीं बात कैसे -कैसे बढ़ गई।शायद मेरा अकेलापन हो या उसका प्यार।वो इतना प्यारा है कहते -कहते एक बार फिर तुम्हारा गला रुंध गया।जानती हो मुझसे 3 साल छोटा है।कहता है ,कैसे है आपका पति ?आपको छोड़कर साल -साल भर दूर रहता है।मै होता तो आपको साथ ऑफिस ले जाता।सामने बिठा कर काम करता।मुझे हँसी आ जाती है।ये तुम भी जानती हो ,मै भी और वो लड़का भी कि ऐसा हमेशा के लिए मुमकिन नहीं।पर वही है ,प्रेम की कल्पना कुछ भी हो सकती है।तुम धीरे -धीरे अपने राज खोल रही थी।कभी खुश हो कर तो कभी रो कर।मैं बस तुम्हारी बातो से बेचैन हो रही थी।बेचैनी तो और बढ़ी जब तुमने कहा कि ,तुम उससे मिली भी।तुमने बताया ससुराल में तो तुम उससे मिल नहीं पाती।वो रहने वाला भी दूसरे शहर का था।तुम दोनों मिलना चाह रहे थे ,पर कैसे मिलते ?कुछ महीनो बाद तुम्हारा बनारस जाना हुआ।मायके पहुँच कर भी तुम दोनों की बात होती रही।तुमने उसे बताया कि तुम बनारस आई हो।उसने पूछा क्या तुम वहाँ मिल सकती हो? तुमने कहा मालूम नहीं।घर पर मै बुला नहीं सकती।बाहर किसी काम से या किसी के साथ ही निकलना होता है।हाँ -मैं कल कुछ कपड़ो की शॉपिंग को जाऊँगी।पर साथ भाईजान -भाभी भी होंगी।उसने कहा चलो दूर से ही सही मिल तो लूँगा।पटना से मेरी खातिर वो बनारस आता है।और किस्मत देखो लवली मै ठीक से उससे मिल भी नहीं पाई।भाभी ,भतीजे की वजह से नहीं आ पाई।भाईजान के साथ मै गोदौलिया मार्किट पहुँची।कपूर्स साड़ीज के यहाँ से साड़ी लेने लगी।उसका मैसेज आया मै गोदौलिया मार्किट में पहुँच चूका हूँ।मेरी दिल की धड़कने तेज थी।मैंने दूकान का नाम बताया।वो वहाँ पहुँचा।हमने बस हाय -हेलो किया।तबतक भाईजान दुकानदार को पैसा पे कर चुके थे।पूछा कौन है ये ?मैंने बताया कॉलेज में साथ थे ,और दूकान से निकल पड़ी भाईजान के साथ।तुम्हारी बातों से अफ़सोस साफ झलक रह था।तुमने कहा यार मै उसके साथ कुछ देर किसी कॉफी शॉप में बैठना चाहती थी।बातें करना चाहती थी।पहली मुलक़ात भी सिर्फ हाय -हेलो तक रह गई।जबकि कितनी बाते करने को थी।मैंने कहा अरे पागल तो भईया को बोल देती।दोस्त है थोड़ी देर बात करके चलते है।तुमने कहा सबकी किस्मत में उज्जवल जैसा भाई नहीं होता लवली।मुझे ही खुद पे काबू करना होगा।मै सामने बैठ कर उसे समझाना चाहती थी।मेरी एक ख़ुशी बहुत कुछ तबाह कर सकती है।और तो और देख उसका मज़हब भी अलग है।मुझे प्यार भी होना था ,तो इस वक़्त ऐसी हालात में।मैंने कहा छोड़ ना, जब तूने सोच लिया है कि ,आगे नहीं बढ़ना तो क्यों याद करना ,क्यों रोना ? तुमने फिर कहा याद ! हाँ याद से याद आया मैंने सिर्फ सुना था ,पर इस बार महसूस किया।याद में कैसे कोई दूसरे को उसी वक़्त याद करता है।मेरे पति को मैंने कितनी दफ़ा याद किया होगा।पर कभी कोई कॉल नहीं जबाब नहीं।अपने टाइम और सुबिधा के अनुसार फ़ोन किया करते है।लेकिन एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरा जब मैंने इसे याद किया हो ,और उस वक़्त उसका कॉल ना आया हो।मैंने सिर्फ हम्म से जबाब दिया।क्या कहती मै ? तुम अपने दिल को समझाने की कोशिश कर रही हो।भगवान् तुम्हे भावनात्मक रूप से मजबूत बनाए।पर क्यों हमेशा प्यार को मर्यादा में बाँध दिया जाता है ? ये सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं है मेरी दोस्त।लड़को की भी कमोबस यही हालत होती होगी ,जब उनके सामने भी प्यार , मर्यादा और जिम्मेदारी को चुनना होगा।तुम्हे ये भी डर था कि ,कही इस वजह से मै तुम्हे गलत ना समझ बैठूँ।पर डरना क्यों ? कभी भी ख़ुद को दूसरों की सोच से मत तौलो।तुम्हारा जीवन है ,तुम्हारा शरीर है ,तुम्हारी आत्मा है।खुद पर विश्वास रखो।हाँ ये बात अलग है ,जब अगनि परीक्षा की बारी आती है तो, सीता ही जलती सेज पर बैठती है।तुमने सीता की कहानी तो सुनी होगी ? हाँ वही राम की पत्नी सीता ,जो अपने पवित्रता को साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा देती है।मुझे मालूम नहीं दोस्त इस रचना या कहानी के पीछे क्या सच्चाई थी।कोई कहता है ,असली सीता को लाना था ,तो कोई कहता है समाज में राम को सन्देश देना था।पर कहानी का आधार क्या था ? सीता की अग्नि परीक्षा।तुम्हारे मज़हब का मुझे इतना कुछ ज्ञान नही।मालूम नहीं वहाँ कोई सीता थी या नहीं।लेकिन परीक्षा तो समाज के हर वर्ग में देनी होगी।तुमने कहा इस जन्म में ना सही अगले जन्म में मिलेंगे।अरे पागल ये कोई सिनेमा नहीं ,जहाँ प्यार अमर होता है।बादलों के पार मर के मिल रहे है।तुम्हे पता है ,बदलो के पार आँखे चौंधिया देने वाली धुप होती है।क्या देख पाओगे तुम एक दूसरे को ? उसपे इतनी गर्मी की तुम्हारी आत्मा जल के वापस धरती पर पैदा लेने को तड़प उठेगी :)और सोचो अगर तुम फूल बन गई और वो बकरी तो हा- हा -हा।मै ये नहीं कह रही कि ,तुम अपने प्रेमी के साथ भाग जाओ।जो भागते है ,वो उम्र भर भागते रहते है।बस इस मृग मरीचिका के भ्र्म से बाहर निकलो।उस लड़के के बारे में भी सोचो ज़रा।तुम उसकी हो नहीं सकती ,तो फिर ये मोह क्यों ?हो सकता है ,मै तुम्हारी भावनावों को समझ नहीं सकी।या फिर समझ के भी समझना नहीं चाहती।सुनो खलील जिब्रान ने क्या लिखा है प्यार के बारे में - प्यार के बिना जीवन फूल या फल के बिना एक वृक्ष की तरह है।प्यार को कोई और इक्षा नहीं बस खुद को पूरा करने की सिवा।मै तुमसे ये कहना हूँ -देखो वृक्ष की पहचान सिर्फ फल या फूल नहीं हो सकते।उसकी जड़ें उसे मजबूत रखती है ,उसकी पत्तियाँ छाया देती है।छाया भी राहगीर के लिए फल जैसा ही मायने रखता है।तो इस वक़्त या तो मजबूत जड़ बनो ,छाया दो खुश रहना सीख लो।या फिर दूसरी लाइन की तरह हिम्मत करो ,खुद को पूरा करो।लेकिन इस दुबिधा से बाहर निकलो। सिर्फ तुम्हारे लिए अहमद फराज़ की एक और गज़ल-
ये जानकार भी कि दोनों के रास्ते थे अलग
अजीब हाल था जब हो रहे थे अलग
हमीं नहीं थे ,हमारी तरह के और भी लोग
अज़ाब में थे जो दुनिया से सोचते थे अलग
अकेलेपन की अज़ीयत का अब गिला कैसा
तुम ख़ुद ही तो औरों से हो गए थे अलग।
ये जानकार भी कि दोनों के रास्ते थे अलग
अजीब हाल था जब हो रहे थे अलग
हमीं नहीं थे ,हमारी तरह के और भी लोग
अज़ाब में थे जो दुनिया से सोचते थे अलग
अकेलेपन की अज़ीयत का अब गिला कैसा
तुम ख़ुद ही तो औरों से हो गए थे अलग।
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