Friday, 1 April 2016

फेसबुक ,क्रिकेट और एयरलिफ्ट का कॉकटेल !!!

आज फेसबुक को देख के मन में कुछ बेचैनी सी हुई।वैसे ये बेचैनी सुबह से ही थी।कारण था इंडियन क्रिकेट टीम की हार।कल तक जो फेसबुक मौका -मौका के न्यू वर्जन और ब्लीड ब्लू से अटा पड़ा था।आज उसका रंग सफ़ेद पड़ गया था।ये तो अच्छा हुआ कोहली ने पहले ही टवीट करके सबको माँ ,बहन की याद दिला दी थी।वरना आज बेचारी अनुष्का का क्या होता ? अच्छा है ,कई बार एक ही चीज़ ,एक ही पोस्ट दिमाग में भनभनाहट पैदा कर देती है।कैसे ? अरे यार मालूम है मैच देख रहे हो।बॉल दर बॉल स्टेटस लिखना जरुरी है क्या ? वो क्या है ना भारत में क्रिकेट के लिए सब कही ना कही जुगाड़ बिठा ही लेते है।तो तुम फेसबुक ,वाट्सअप नहीं भी रंगोगे तो भी सबको मालूम हो जायेगा।ध्यान मैच पे दो हाँ नहीं तो।साला एक तो ई स्मार्ट फ़ोन कोई कुछ पोस्ट किया नहीं ,टू -टू ,टे -टा शुरू।मैंने तो अब अपने फ़ोन को ही साइलेंट मोड पर कर दिया।वही फेसबुक वाले "ज़ुकेरबर्ग " जिनको वेडिओ गेम में ज्यादा इंट्रेस्ट है ,सोच रहे होंगे -ओह गॉड कहाँ गई आधी से अधिक इंडियन जनता ? अभी तो होली पे फेसबुक को रंगीन किया था।फिर ऑस्ट्रेलिया से जीत के बाद रंगा था।इस बार इतना सनाटा क्यों है भाई ? कही फेसबुक के दिन तो नहीं लद गए ?अरे ज़ुकेरबर्ग भाई डरो नही इतनी जल्दी लुटिया नहीं डूबेगी तुम्हारी।हम भारतीय तुम्हे अपने तरीके से "अप्रैल फूल " बना रहे है।तुम्हारा फूल बनना और हमारा गम एक साथ निपट जायेगा।दुखी तो मैं भी थी दोपहर तक।बाद में एयरलिफ्ट देख के और दुखी हो गई।काहे ? ये तो और आगे पढ़ने पर ही मालूम होगा।फिलहाल मैं आप सब को बता दूँ ,मैं कोई क्रिकेट गुरु नहीं।मुझे क्रिकेट की मोटा -मोटी ही जानकारी थी।अभी वो मोटा थोड़ा ज्यादा मोटी हो गई है ,शतेश की वजह से।वरना पहले तो हार -जीत ,चौका ,छक्का ,कैच ,आउट ,एक रन ,दो रन ,मेडेन,वाइड ही मालूम होता था।इसका मेरा लड़की होने से कोई सम्बन्ध नहीं।अगर ना यक़ीन हो तो कुछ लड़को से भी क्रिकेट के कुछ खास टर्म पूछ के देखो।हाँ लड़की होने को आप द्रविड़ ,धोनी ,या विराट से जोड़ सकते है।मैंने "राहुल द्रविड़" की वजह से क्रिकेट देखना थोड़ा शुरू किया।फिर धोनी से प्यार हुआ दिल टुटा भी।तबतक क्रिकेट में भी काफी चेंज आ गया।बीच में क्रिकेट छोड़ टेनिस पे अटक गई।यहाँ भी कारन एक ही था "रेफेल नडाल" कॉलेज टाइम में स्पोर्टस्टार खरीदने लगी।ये पत्रिका साप्ताहिक आता है।तो पहले दूकान पर जाके किताब देखती थी।उसमे अगर धोनी या नडाल की तस्वीर हुई तभी खरीदती थी।भाई पैसो का भी देखना होता था।इससे आपको मेरा गेम प्रेम दिख ही गया होगा :)हाँ उस वक़्त एक और चीज़ कॉमन हुई थी।धोनी के भी बाल बड़े ,नडाल के भी बाल बड़े ,और तेरे नाम मूवी में सलमान के भी बाल बड़े थे।छुट्टियों में मैं घर गई तो माँ को दिखाया कि माँ देखो मुझे ऐसे लड़के पसंद है।भगवान् ! सच मानिये मुझे सच में थोड़े लोफर टाइप लड़के ही पसंद थे।मेरी माँ की शक्ल देखने लायक थी।बोली एक भी ढंग का लड़का नहीं है।ऐसे लग रहे है जैसे ,सड़क छाप या रिक्शावाले।मानो जैसा मेरा ब्याह ही इनसे होने वाला हो हा- हा -हा।खैर क्रिकेट की एक टर्म "डक पे आउट होना " मुझे कसम से अनुष्का की वजह से ही मालूम हुआ।वरना मुझे तो यही मालूम था, ज़ीरो पे आउट हुआ।भाई ये एलबीडबल्यू मुझे आज भी कभी -कभी परेशानी में डाल देता है ,कि कैसे आउट ? ऐसे ही एक दिन मैच के दौरान शतेश बोले "बाई " गया।मुझे लगा आउट हुआ ,पर बॉल तो ना कैच हुई ना ,विकेट को लगी ,ना रन आउट तो बाय -बाय कैसे हुआ ? रहा नहीं गया शतेश से पूछा।वो हँस पड़े बोले डिअर इट्स बाई नॉट बाय।एक तो ना ये थोड़ा क्रिकेट जाननेवाले खुद को तीसमार खां समझते है।एक -आध कुछ पूछ क्या लो इनकी हँसी निकल पड़ती है।अगर मैं पूछु "लियो-टॉलस्टॉय " ने कौन -कौन सी किताबें लिखी है ,या मालिनी रजुरक जी कौन है ? जबाब होगा यार ये मेरी हॉबी नहीं।बस कभी -कभार पढ़ ,सुन लेता हूँ।तो यार मेरे मैं भी क्रिकेट शौख के लिए ही देखती हूँ।ना तो मुझे खेलना है ना ही एक्सपर्ट राय देनी है।कुछ क्रिकेट के टर्म तो से सच में गड़बड़ा देंगे ,जैसे - इकोनॉमी रेट ,टिपोट ,लेग ब्रेक।डकवर्थ लेविस लॉ , नेलसन स्कोर के नाम से लगता था ,यार फिर से पढाई करनी होगी क्या ? खैर मेरे इस थोड़े से ज्ञान और क्रिकेटर के समावेश से ही सही हार का थोड़ा तो दुःख हुआ।इसपे मैंने कांड किया एयरलिफ्ट देख के।हुआ यूँ मैच हम हार गए थे।मैंने सोचा कोई अच्छी सी मूवी देखी जाय।वैसे भी इण्डिया ट्रिप की वजह से मूवीयो का बैकलॉक चल रहा है।तो एयरलिफ्ट से शुरुआत की।भाई एक तो इंडिया हार गया।उसपे हिन्दुस्तानियो की ये दशा मूवी में।आपने मूवी देखी होगी तो देखा होगा।जैसे -तैसे कुवैत से निकलने का प्लान बनाया।पापियों ने टीपू सुलतान जहाज को ही रोक दिया।बताओ जाए तो कैसे ? फिर छुप -छुपा कर कुवैत से जॉर्डन पहुँचे।वहाँ कोई नहीं साथ देने को।तभी भारतीय झंडा अपने तीन रँग में शान से लहराता दिखा।मत पूछो यार मेरे नाक के नथुने फड़फड़ा रहे थे।गले में दर्द हो रहा था।आँख से आँसू गिरने को तैयार थे।माने जब भोकास पार के रोआई आवे और रोआई रोकला पर जे होला उहे होत रहे।आखिर आँसू गिर पड़े।फिर लगा कुछ भी हो पर सच में "झंडा है अपना प्यारा"।चाहे बोले या ना बोले "भारत माता की जय" ,देश रहे परदेश रहे।दिल में हिन्दुस्तान तो हमेशा रहता है,दबा हुआ ही सही।चाहे हारे तो जीते तो।फिर इसी बात पर हिन्दुस्तान की जय ,भारतीय क्रिकेट टीम की जय ,मेरे चौथे ,पाँचवे प्यार धोनी की जय ,विराट की जय साथ में सिमंस की भी जय।का है कि हम हिन्दुस्तानी दिल से किसी का बुरा नहीं चाहते।वो अलग बात है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश दिल पर ले लेता है।

No comments:

Post a Comment