Tuesday 28 June 2016
KHATTI-MITHI: माहे रमज़ान और सूफियों की बातें !!!!!
KHATTI-MITHI: माहे रमज़ान और सूफियों की बातें !!!!!: मेरी एक दोस्त ने मुझसे कहा -तपस्या माहे रमज़ान खत्म होने को है ,और तुमने इसपर कुछ नहीं लिखा।बात तो सही कही उसने।तो चलिए इस बार रमज़ान से जुड़ी...
माहे रमज़ान और सूफियों की बातें !!!!!
मेरी एक दोस्त ने मुझसे कहा -तपस्या माहे रमज़ान खत्म होने को है ,और तुमने इसपर कुछ नहीं लिखा।बात तो सही कही उसने।तो चलिए इस बार रमज़ान से जुड़ी कुछ यादें ,कुछ सूफ़ी संतों की बातें लिखती हूँ।जहाँ मेरा बचपन बीता उस जगह पर मुसलमानो की संख्या भी अच्छी खासी है।हिन्दू ,मुस्लिम सब मिल कर रहते थे।अब भी मिल कर रहते है ,पर वो आत्मीय लगाव थोड़ा कम हो रहा है।कुछ तो बदलते परिवेश का असर है।कुछ "बजरंग दल" की महिमा है।खैर इस पाक़ महीने में नफ़रत कि क्यों बात की जाय ,जबकि बताने को और भी प्यारी यादें है।हाँ तो जब मैं छोटी थी ,घर के बाज़ार वाले सारे काम मुझे ही करने पड़ते थे।भाई उस वक़्त छोटा था।पिता जी भी नहीं थे।शाम को मैं सब्जी ,राशन पीठ पर लाद कर लाती,रखती और खेलने भाग जाती।रमज़ान के दिनों में बाज़ार की रौनक कुछ और ही होती।कैसे दुर्गा पूजा की शुरुआत से ही मूर्ति और पंडाल में रूचि बढ़ जाती है।वैसे ही रमज़ान के महीने की शुरुआत से ही हमलोग ईद का इंतज़ार करने लगते।रोजाना की तरह बाजार से जब सब्जी लेकर घर लौट रही होती -देखती दुकानों के आगे सफाई होती रहती।कोई झाड़ू लगा रहा है ,तो कोई पानी छिड़क रहा होता।कही चटाई बिछ रहे है ,तो कही तिरपाल (बोरे से सीला चटाई जैसा ही ) लोग झुण्ड में बैठ कर भूजा ,पकौड़े ,समोसे ,सरबत आदि खा-पी रहे होते।घर आती तो कालोनी के अंसारी चाचा ने भी रोज़ा खोल लिया होता।घर पर मेरे और मेरे भाई के लिए कभी समोसा तो कभी भुजा वो भेज देते।इस तरह रमज़ान ईद तक पहुँच जाता।कई जगहों से खाने की दावत आती।जिसको लोग सेवई पीने की दावत भी कहते।मुझे सेवई के साथ एक खाश किश्म का जो हलवा बनता ,वो बड़ा पसंद था।अब तो दसन साल गुजर गए वो हलवा खाये।जाने कब नसीब हो ? इसके साथ घर पर भी कुछ लोग सेवई ,चीनी और ड्राई फ्रूट्स दे जाते।हम भाई बहन सेवई छोड़ ड्राई फ्रूट्स पे डट जाते।ड्राई फ्रूट्स उस वक़्त हमारे लिए लक्ज़री आईटम होता था।जैसे दुर्गा पूजा ,दिवाली के बीतने का दुःख होता वैसे ही रमज़ान और ईद के जाने का होता।बाजार भी फीका लगने लगता।मन उदास हो जाता।तो ऐसे में क्यों ना सूफी संतो की तरफ चले।मन को भी शांति मिलेगी।वैसे तो बचपन की यादो की वजह से मुस्लिम धर्म कभी अजनबी नहीं रहा मेरे लिए।ज्यादा रुझान भाई की सोहबत में बढ़ा।उसके साथ "निज़ामुद्दीन दरगाह या मेहरौली की दरगाह" पर जाना।उसके द्वारा लाई कुरआन को पढ़ने की कोशिश करना।पर जैसे मुझे गीता पढ़ना बोरिंग लगता वैसे ही कुरआन लगा।हो सकता है ,उस वक़्त मेरी समझ इनसबके लायक ना थी।हाँ मेरा सूफ़ी संतो में रूचि जरूर बढ़ी।इसका कारण संगीत प्रेम या इनमे छुपी प्रेम की भावनायें हो सकती है।सूफ़ी संत या चिस्ती लोग(अफ़गानिस्तान के एक शहर से ) जो भी हुए ,उनका एक ही मज़हब है -प्रेम ,त्याग ,मानवता और दया।हो सकता हो मेरा सूफ़ियों के प्रति रुझान का एक और कारण मेरा नारी मन भी हो।"निजामुद्दीन औलिया" के दरग़ाह पर जाने पर मुझे 'आमिर ख़ुसरो साहब 'के बारे में भी मालूम हुआ।पहले तो ये बता दूँ "दरग़ाह और मज़ार "एक ही है।दरग़ाह पर्शियन शब्द है ,वहीं मज़ार अरेबिक शब्द है।ऐसे तो कई सूफ़ी संतो का मज़ार है ,पर सबसे ज्यादा लोगो की तादात "ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिस्ती "के दरग़ाह पर होती है।ये राजस्थान के "अजमेर" शहर में है।मोईनुद्दीन चिस्ती को "गरीब नवाज़" भी कहते है।दूसरी बारी आती है "निज़ामुद्दीन औलिया "की।इनका मज़ार "दिल्ली "में है।फिर बात आती है 'मुंबई "स्थित "हाज़ी अली "दरगाह की।इन सब दरगाहों पर हिन्दू ,मुस्लिम सब जाते है।सबकी दुआयें मालिक क़ुबूल करते है। वही कुछ मुस्लिम रूढ़िवादी विचारधारा के लोग मज़ार या दरग़ाह पर नहीं जाते।उनका मानना है कि ,उन्हें सिर्फ अल्लाह को पूजना है।खैर सबकी अपनी विचारधारा हो सकती है।जहाँ तक मेरा विचार है ,मुझे तो यहाँ जाके अच्छा ही लगा।काफी कुछ सिखने को मिला।सूफ़ियों में कई नामीगिरामी कवि हुए। जिन्होंने अपनी कविताओं ,गीतों के जरिये प्रेम बाँटने की कोशिश की। इस तरह वो ख़ुदा को भी पा लिए और खुद को भी।निज़ामुद्दीन औलिया के शिष्य आमिर ख़ुसरो इन सबमे उच्चा नाम है ,एक कवि ,एक कव्वाल के तौर पर।आमिर ख़ुसरो के कुछ दोहे -*ख़ुसरो दरिया प्रेम का ,उल्टी वा की धार। जो उतरा सो डूब गया ,जो डूबा सो पार।।
*ख़ुसरो पाती प्रेम की ,बिरले बाँचे कोय।वेद ,कुरान ,पोथी पढ़े प्रेम बिना का होय।।
*ख़ुसरो सरीर सराय है ,क्योंसोवे सुख चैन। कूच नागरा साँस का ,बाजत है दिन रैन।।
ख़ुसरो ने बहुत सी कविताएँ लिखी मसलन छाप तिलक सब छीना रे ,मोसे नैना मिला के ,आज रँग है ये माँ रंग है री ,काहे को ब्याहे विदेश ,अरे लखिया बाबुल मोरे कुछ प्रमुख रचनाएँ है।
ऐसे ही एक सूफ़ी संत "मौलाना रूमी" जिनको सिर्फ रूमी भी कहते है।उन्होंने कहा है -*इश्क़ हरा देता है सबको ,मैं हारा हूँ।खारे इश्क़ से, शक़्कर सा मीठा हुआ हूँ।
*"बेवक़ूफ़ मंदिर में जाकर तो झुकते है ,मगर दिल वालो पर वो सितम करते है।
वो बस इमारत है असली हक़ीक़त नहीं है ,सरवरो (गुरु )के दिल के सिवा मस्जिद नहीं है।
वो मस्जिद जो औलिया(संत )के अंदर में है ,सभी का सजदागाह है ,खुदा उसी में है।"
वही संत 'वारिश साह" ने भी प्रेम और मानवता को ही अल्लाह का मार्ग बताया। उनकी प्रमुख कृति हीर -रांझणा है।
चाहे निज़ामुद्दीन हो ,ख़ुसरो हो ,रूमी हो ,वारिश शाह हो सबने प्रेम और त्याग से अल्लाह ,ईश्वर को पाया।हम इनकी कविताओं में "प्रेमी "भगवान या अल्लाह को समझे।वैसे किसी इंसान के प्रेम के सम्बन्ध में भी हम ये कहे तो बुरा ना होगा।आखिर ये भी तो प्रेम का एक दूसरा रूप है।क्यों ना इस बार ईद पर हमारी "ईदी' प्रेम देना और प्रेम लेना हो।हर जगह अमन चैन हो।लोगो के अंदर दया और मानवता हो।चलिए इस प्यारी सी ईदी के साथ आप सबको "माहे रमज़ान मुबारक़ हो"।आने वाला "ईद मुबारक़ हो"।
*ख़ुसरो पाती प्रेम की ,बिरले बाँचे कोय।वेद ,कुरान ,पोथी पढ़े प्रेम बिना का होय।।
*ख़ुसरो सरीर सराय है ,क्योंसोवे सुख चैन। कूच नागरा साँस का ,बाजत है दिन रैन।।
ख़ुसरो ने बहुत सी कविताएँ लिखी मसलन छाप तिलक सब छीना रे ,मोसे नैना मिला के ,आज रँग है ये माँ रंग है री ,काहे को ब्याहे विदेश ,अरे लखिया बाबुल मोरे कुछ प्रमुख रचनाएँ है।
ऐसे ही एक सूफ़ी संत "मौलाना रूमी" जिनको सिर्फ रूमी भी कहते है।उन्होंने कहा है -*इश्क़ हरा देता है सबको ,मैं हारा हूँ।खारे इश्क़ से, शक़्कर सा मीठा हुआ हूँ।
*"बेवक़ूफ़ मंदिर में जाकर तो झुकते है ,मगर दिल वालो पर वो सितम करते है।
वो बस इमारत है असली हक़ीक़त नहीं है ,सरवरो (गुरु )के दिल के सिवा मस्जिद नहीं है।
वो मस्जिद जो औलिया(संत )के अंदर में है ,सभी का सजदागाह है ,खुदा उसी में है।"
वही संत 'वारिश साह" ने भी प्रेम और मानवता को ही अल्लाह का मार्ग बताया। उनकी प्रमुख कृति हीर -रांझणा है।
चाहे निज़ामुद्दीन हो ,ख़ुसरो हो ,रूमी हो ,वारिश शाह हो सबने प्रेम और त्याग से अल्लाह ,ईश्वर को पाया।हम इनकी कविताओं में "प्रेमी "भगवान या अल्लाह को समझे।वैसे किसी इंसान के प्रेम के सम्बन्ध में भी हम ये कहे तो बुरा ना होगा।आखिर ये भी तो प्रेम का एक दूसरा रूप है।क्यों ना इस बार ईद पर हमारी "ईदी' प्रेम देना और प्रेम लेना हो।हर जगह अमन चैन हो।लोगो के अंदर दया और मानवता हो।चलिए इस प्यारी सी ईदी के साथ आप सबको "माहे रमज़ान मुबारक़ हो"।आने वाला "ईद मुबारक़ हो"।
Wednesday 22 June 2016
KHATTI-MITHI: ग्रैंड कैनियन ,डिज्नी ,यूनिवर्सल स्टूडियो ,हॉलीवुड...
KHATTI-MITHI: ग्रैंड कैनियन ,डिज्नी ,यूनिवर्सल स्टूडियो ,हॉलीवुड...: वेगास से हमलोग ग्रैंड कैनियन को चलते है।ग्रैंड कैनियन ,वेगास से लगभग 4 से 4 :30 घंटे की दुरी पर है।अगर आपको तेज ड्राइव का शौख़ है तो ,ये सड़क...
ग्रैंड कैनियन ,डिज्नी ,यूनिवर्सल स्टूडियो ,हॉलीवुड साइन और पेसिफिक कॉस्ट !!!
वेगास से हमलोग ग्रैंड कैनियन को चलते है।ग्रैंड कैनियन ,वेगास से लगभग 4 से 4 :30 घंटे की दुरी पर है।अगर आपको तेज ड्राइव का शौख़ है तो ,ये सड़क आपके लिए ही बनी है।इस रास्ते पर कई जगह स्पीड़ लिमिट 85 माइल्स पर आवर है।आप 90 /95 की स्पीड तक गाड़ी आराम से चला सकते है।वैसे चलाने को तो आप 100 की स्पीड भी चला सकते है ,बशर्ते पुलिस ना पकड़े आपको।इस स्पीड पर पकड़े गए तो ज्यादातर चांस जेल जाने का ही है।हाँ आप लॉन्ग वीकेंड को जा रहे हो ,तो स्पेशली सावधान रहे।पुलिस कही भी छुपे हो सकते है।थोड़ा अजीब है ना ? इंडिया में चोर छुपे होते है ,यहाँ पुलिस छिपी होती है।कोई भी गलती करो, जाने कहाँ से प्रकट हो जाते है।कई बार आप भाग्यशाली हुए तो ,बच भी जाते है।जैसे की हमलोग।हमने भी 100 /110 तक थोड़ी देर गाड़ी चलाई थी।वैसे ये गलत है ,पर हमें जल्दी से ग्रैंड कैनियन पहुँचना था।वरना शाम होने पर कैनियन दिखता ही नहीं।ये भी डर था कि, पार्क ना बंद हो जाये।बाद में मालूम हुआ पार्क 24 आवर्स ओपन है।रास्ते में हमने "हुवर डैम" देखा।इस डैम का आर्किटेक , कंक्रीट आर्च -ग्रेविटी पर बना है।ये डैम कोलोराडो रीवर पर बना है।यहाँ से हमलोग नॉन स्टॉप भागते हुए ग्रैंड कैनियन पहुँचे।ग्रैंड कैनियन एक नेशनल पार्क है।यह पार्क "एरिज़ोना" स्टेट में है।इसकी एंट्री फी "25 डॉलर" पर व्हीकल है।इसको कभी "सेवन नेचुरल वंडर्स ऑफ़ द वर्ल्ड "भी माना गया है।इसकी खूबसूरती देखने के लिए ,एक तो आपको "साउथ रिम " जाना होगा ,या दूसरा "नार्थ रिम" हमलोग साउथ रिम गए थे।शाम होने को थी।ठंढ भी यहाँ वेगास की तुलना में काफी थी।हमलोग दस्ताने ,मफलर से लैस होकर घूमने निकले।यहाँ विज़िटर सेंटर के पास गाड़ी पार्क की हमने।कुछ इनफार्मेशन लिया और निकल पड़े।पार्क की तरफ से सटल चलता है ,जो आपको पार्क के इम्पोर्टेन्ट पॉइंट को घूमाता है।हमलोगो ने सटल लिया और निकल पड़े।जब हमलोग कैनियन तक पहुँचे ,सूर्य अभी भी चमक रहे थे।ये चमक सूर्य की चमकती रोशनी का सांझ की तरफ ले जाने वाला था।उस नारँगी ,पीली रौशनी में कैनियन और भी खूबसूरत और आध्यात्मिक हो गया।नजरे हट ही नहीं रही थी ,वहाँ से।पहली बार मैंने इतना सुन्दर प्रकृति का नजारा पहाड़ों में देखा था।कैनियन भी हल्के भूरे ,लाल ,तो थोड़े रामराज मिट्टी के रंग के।रामराज मिट्टी का रंग वही जो अमूमन इंडिया के हर सरकारी विभाग या क्वॉटर का होता है।ठंढ बहुत हो रही थी ,फिर भी हमलोग का वापस आने का मन नहीं हो रहा था।अँधेरा होने की कगार पर था।अंततः हमलोग को वापस आना ही पड़ा।एक तस्वीर ग्रैंड कैनियन की -
अगर आप अमेरिका में है ,आपको प्रकृति से प्रेम है ,तो आपको एक बार यहाँ जरूर जाना चाहिए।हमलोग वापस सटल से इंफॉर्मेशन सेंटर तक आये।कॉफी ,चिप्स और बर्गर टाइप कुछ लिया।खाने -पीने के बाद हमलोग वापस गाड़ी तक आये ,और होटेल के लिए निकल पड़े।पार्क तो अच्छा था ,पर रोड साइन ठीक से मेंटेन नहीं थे।जीपीएस भी पार्क में ही घुमा रहा था।हमलोग बाहर नहीं निकल पा रहे थे।ऐसे ही भटकते हमलोग एक डेड एन्ड वाले रास्ते पर पहुँच गए।अँधेरा हो रहा था ,रास्ता भी नहीं मिल रहा था।हमलोग थोड़े परेशान हो गए थे।बैक लेकर गाडी थोड़ी आगे गए तो ,कुछ कॉटेज दिखे।यहाँ विजिटर रात को रुक सकते है ,अगर उन्होंने पहले से कॉटेज की बुकिंग की है तो।कुछ लोग वॉक कर रहे थे।शतेश ने बाहर वॉक करते व्यक्ति से बाहर निकलने का रास्ता पूछा।रास्ता पूछने पर मालूम हुआ जीपीएस सही ले जा रहा है ,पर बीच में कंस्टक्शन और पेड़ गिरने से रास्ता बंद है।उसके पहले का रास्ता लेना है।हमलोग बताए हुए रास्ते को फॉलो कर रहे थे।थोड़ी दूर जाने पर हमे एग्जिट गेट दिखा।तब जाके सबने राहत की साँस ली।अगले दिन हमलोग को "लॉस एंजेलिस" जाना था।रास्ते में ही कुछ तो हमने खाया और हॉटेल पहुँच के सो गए।अगले दिन हमारी लॉस एंजलिस की यात्रा शुरू हुई।हमलोग लगभग 1 बजे तक "डीज़नी'"पहुँच गए थे।यहाँ भी गाड़ी पार्किंग के बाद इनकी सटल डिज्नी लैंड तक ले गई।पार्क की टिकेट पर पर्सन '90 /95 डॉलर 'था।ये प्राइस कम ज्यादा होते रहता है।डिपेंड करता है ,आप कितने दिन घूमने आते हो।हमलोग का एक दिन का था।अगर आपको 2 /3 दिन लगातार आना है ,तो टिकट थोड़ी सस्ती होगी।यहाँ आने से पहले ही रास्ते में हमलोग एक पंजाबी रेस्ट्रो में जम कर खा के आये थे।एक बात और मैंने देखी -यहाँ पर बहुत से रोड साइन इंग्लिश के साथ पंजाबी में लिखे हुए थे।मैं आश्चर्चकित।फिर शतेश ने बताया की हमलोग कैलिफोनिया में है।यहाँ पंजाबियों की तादात भी ज्यादा है।शायद यही वजह होगा ,दोनों भाषाओं में लिखने का।जैसा मेरा अनुभव रहा डिज्नी का उसके अनुसार बता रही हूँ -अगर आपके साथ बच्चे है, तो जरूर जाइये यहाँ।पर मुझे तो बहुत कोफ़्त हो रही थी।एक -एक राइड के लिए 1 से डेढ़ घंटा इंतज़ार करो।राइड भी सिर्फ 5 या 10 मिनट की।यहाँ गर्मी भी थी।लाइन में खड़े रहना भी मुश्किल लग रहा था।जिधर देखो बच्चे ही बच्चे।काफी भीड़ थी।भीड़ से बचने के लिए आप लॉन्ग वीकेंड पर तो कभी ना जाए।एक और चीज़ मैंने यहाँ देखी -लोग छोटे बच्चों के कमर में एक कुत्ते जैसा पट्टा बाँध रखे थे।उस पट्टे की लम्बाई ज्यादा थी।बच्चे आराम से इधर -उधर घूम रहे थे ,पट्टे का दूसरा छोर माँ या पिता के हाथ में होता।जरा भी इधर -उधर हुए लगाम खींच ली।बच्चे माता /पिता के पास आ जाते।वहीं ज्यादातर बच्चों के हाथ पर या गले में विजिटिंग कार्ड की तरह मोबईल नंबर लिखे हुए थे।ये मुझे अच्छा लगा।अगर बच्चा खो भी जाए भीड़ में तो ,सिक्योरिटी आराम से इनके पेरेंट्स को कॉल कर सकती है।ओवरआल मुझे डिज्नी ठीक -ठाक ही लगी।
मुझे ज्यादा मज़ा "यूनिवर्सल स्टूडियो" में आया। एक तो भीड़ कम ,दूसरा राइड भी अच्छे वाले।यहाँ हमलोग को खाने की तकलीफ जरूर हुई।इतना बड़ा पार्क पर वेजिटेरियन के खाने के ऑप्शन में सिर्फ पिज़्ज़ा था(3 साल पहले )।हमने पिज़्ज़ा आर्डर तो कर दिया ,पर कसम से लाइफ में इतना बेकार पिज़्ज़ा पहली बार खाया था।जैसे -तैसे कोक से पिज़्ज़ा निगल रहे थे।वही दूसरे टेबल पर एक इंडियन फैमिली पूरी ,छोले और चावल खाये जा रहे थे।वो लोग अपने साथ खाना लेकर आये थे।सच में मन ललचा गया था ,पर पिज़्ज़ा से ही संतोष करना पड़ा।मेरे साथ कोई बच्चा होता तो ,मैं पक्का उसके नाम पर एक पूरी तो माँग ही लेती :) खैर ,अगर आप वेजिटेरियन है ,तो ये ऑप्शन आपके लिए बेस्ट है।यूनिवर्सल के बाद अगले दिन हमलोग हॉलीवुड साइन देखने पहुँचे।भगवान कसम हम क्यों आये थे यहाँ ? वही हवाबाज़ी के चक़्कर में कि बहुत अच्छा है।जरूर जाना।कभी -कभी मुझे लगता है ,लोग अपनी फ्रस्टेशन निकालने को कह देते है ,जरूर जाना।साला हम क्या पागल थे जो गए ? तुम भी जाओ। एक तो वन वे पहाड़ी रास्ता ,दूसरा वहाँ हॉलीवुड साइन के सिवा कुछ भी नहीं था।साइन भी आपको काफी दूर से ही देखना पड़ता है।जब यहाँ तक आये तो इसकी भी एक तस्वीर का दीदार कर ले -
फिर भी हमेशा की तरह यहां भी कुछ चाइनीज़ और कुछ इंडियन मौजूद थे।मुझे हँसी आ रही थी कि ,अकेले हम ही नहीं बेवकूफ।इसके बाद हम 'पेसिफिक कोस्ट ड्राइव' को गए।ये सुन्दर रास्ता था।एक तरफ पहाड़ तो दूसरी तरफ समुन्दर , बीच में रास्ता।हमलोग सीनिक ब्यूटी का मज़ा लेते हुए जा रहे थे।एक बहुत ही सुन्दर व्यू दिखा।हमने गाड़ी को साइड करके कुछ फ़ोटोग्राफ़ लेने की सोची।ज्योही गाड़ी को किनारे रोका गया ,किनारे पड़े किसी तेज पत्थर की वजह से गाड़ी पंक्चर हो गई।अब क्या हो ? यहाँ के गाड़ी इंस्योरेंस वाले को कॉल किया गया।वो बोला हमारे पास आते -आते उसे एक से डेढ़ घंटा लग जायेंगा।लॉन्ग वीकेंड की छुट्टी की वजह से स्टाफ़ कम है।शतेश ने हेमत और मिस्टर देगवेकर को कहा -उसका इंतज़ार करेंगे तो हमे काफी देर हो जायेगी।फ्लाइट भी लेनी है वापसी की।मुझे टायर चेंज करने आता है ,तुमलोग हेल्प कर दो।तीनो लड़को ने मिलकर टायर चेंज किया।इधर मुझे फोटोग्राफी का टाइम मिल गया।बीच साइड होने से गर्मी भी काफी लग रही थी।शतेश तो पसीने से तर -बत्तर।उस वक्त वो मुझे सच में एक कार मेकैनिक ही लग रहे थे।मुझे दया भी आ रही थी और हँसी भी।यात्रा समाप्त हुआ।वापस हमलोग वेगास एयरपोर्ट पहुँचे ,हूस्टन की फ्लाइट के लिए।
अगर आप अमेरिका में है ,आपको प्रकृति से प्रेम है ,तो आपको एक बार यहाँ जरूर जाना चाहिए।हमलोग वापस सटल से इंफॉर्मेशन सेंटर तक आये।कॉफी ,चिप्स और बर्गर टाइप कुछ लिया।खाने -पीने के बाद हमलोग वापस गाड़ी तक आये ,और होटेल के लिए निकल पड़े।पार्क तो अच्छा था ,पर रोड साइन ठीक से मेंटेन नहीं थे।जीपीएस भी पार्क में ही घुमा रहा था।हमलोग बाहर नहीं निकल पा रहे थे।ऐसे ही भटकते हमलोग एक डेड एन्ड वाले रास्ते पर पहुँच गए।अँधेरा हो रहा था ,रास्ता भी नहीं मिल रहा था।हमलोग थोड़े परेशान हो गए थे।बैक लेकर गाडी थोड़ी आगे गए तो ,कुछ कॉटेज दिखे।यहाँ विजिटर रात को रुक सकते है ,अगर उन्होंने पहले से कॉटेज की बुकिंग की है तो।कुछ लोग वॉक कर रहे थे।शतेश ने बाहर वॉक करते व्यक्ति से बाहर निकलने का रास्ता पूछा।रास्ता पूछने पर मालूम हुआ जीपीएस सही ले जा रहा है ,पर बीच में कंस्टक्शन और पेड़ गिरने से रास्ता बंद है।उसके पहले का रास्ता लेना है।हमलोग बताए हुए रास्ते को फॉलो कर रहे थे।थोड़ी दूर जाने पर हमे एग्जिट गेट दिखा।तब जाके सबने राहत की साँस ली।अगले दिन हमलोग को "लॉस एंजेलिस" जाना था।रास्ते में ही कुछ तो हमने खाया और हॉटेल पहुँच के सो गए।अगले दिन हमारी लॉस एंजलिस की यात्रा शुरू हुई।हमलोग लगभग 1 बजे तक "डीज़नी'"पहुँच गए थे।यहाँ भी गाड़ी पार्किंग के बाद इनकी सटल डिज्नी लैंड तक ले गई।पार्क की टिकेट पर पर्सन '90 /95 डॉलर 'था।ये प्राइस कम ज्यादा होते रहता है।डिपेंड करता है ,आप कितने दिन घूमने आते हो।हमलोग का एक दिन का था।अगर आपको 2 /3 दिन लगातार आना है ,तो टिकट थोड़ी सस्ती होगी।यहाँ आने से पहले ही रास्ते में हमलोग एक पंजाबी रेस्ट्रो में जम कर खा के आये थे।एक बात और मैंने देखी -यहाँ पर बहुत से रोड साइन इंग्लिश के साथ पंजाबी में लिखे हुए थे।मैं आश्चर्चकित।फिर शतेश ने बताया की हमलोग कैलिफोनिया में है।यहाँ पंजाबियों की तादात भी ज्यादा है।शायद यही वजह होगा ,दोनों भाषाओं में लिखने का।जैसा मेरा अनुभव रहा डिज्नी का उसके अनुसार बता रही हूँ -अगर आपके साथ बच्चे है, तो जरूर जाइये यहाँ।पर मुझे तो बहुत कोफ़्त हो रही थी।एक -एक राइड के लिए 1 से डेढ़ घंटा इंतज़ार करो।राइड भी सिर्फ 5 या 10 मिनट की।यहाँ गर्मी भी थी।लाइन में खड़े रहना भी मुश्किल लग रहा था।जिधर देखो बच्चे ही बच्चे।काफी भीड़ थी।भीड़ से बचने के लिए आप लॉन्ग वीकेंड पर तो कभी ना जाए।एक और चीज़ मैंने यहाँ देखी -लोग छोटे बच्चों के कमर में एक कुत्ते जैसा पट्टा बाँध रखे थे।उस पट्टे की लम्बाई ज्यादा थी।बच्चे आराम से इधर -उधर घूम रहे थे ,पट्टे का दूसरा छोर माँ या पिता के हाथ में होता।जरा भी इधर -उधर हुए लगाम खींच ली।बच्चे माता /पिता के पास आ जाते।वहीं ज्यादातर बच्चों के हाथ पर या गले में विजिटिंग कार्ड की तरह मोबईल नंबर लिखे हुए थे।ये मुझे अच्छा लगा।अगर बच्चा खो भी जाए भीड़ में तो ,सिक्योरिटी आराम से इनके पेरेंट्स को कॉल कर सकती है।ओवरआल मुझे डिज्नी ठीक -ठाक ही लगी।
मुझे ज्यादा मज़ा "यूनिवर्सल स्टूडियो" में आया। एक तो भीड़ कम ,दूसरा राइड भी अच्छे वाले।यहाँ हमलोग को खाने की तकलीफ जरूर हुई।इतना बड़ा पार्क पर वेजिटेरियन के खाने के ऑप्शन में सिर्फ पिज़्ज़ा था(3 साल पहले )।हमने पिज़्ज़ा आर्डर तो कर दिया ,पर कसम से लाइफ में इतना बेकार पिज़्ज़ा पहली बार खाया था।जैसे -तैसे कोक से पिज़्ज़ा निगल रहे थे।वही दूसरे टेबल पर एक इंडियन फैमिली पूरी ,छोले और चावल खाये जा रहे थे।वो लोग अपने साथ खाना लेकर आये थे।सच में मन ललचा गया था ,पर पिज़्ज़ा से ही संतोष करना पड़ा।मेरे साथ कोई बच्चा होता तो ,मैं पक्का उसके नाम पर एक पूरी तो माँग ही लेती :) खैर ,अगर आप वेजिटेरियन है ,तो ये ऑप्शन आपके लिए बेस्ट है।यूनिवर्सल के बाद अगले दिन हमलोग हॉलीवुड साइन देखने पहुँचे।भगवान कसम हम क्यों आये थे यहाँ ? वही हवाबाज़ी के चक़्कर में कि बहुत अच्छा है।जरूर जाना।कभी -कभी मुझे लगता है ,लोग अपनी फ्रस्टेशन निकालने को कह देते है ,जरूर जाना।साला हम क्या पागल थे जो गए ? तुम भी जाओ। एक तो वन वे पहाड़ी रास्ता ,दूसरा वहाँ हॉलीवुड साइन के सिवा कुछ भी नहीं था।साइन भी आपको काफी दूर से ही देखना पड़ता है।जब यहाँ तक आये तो इसकी भी एक तस्वीर का दीदार कर ले -
फिर भी हमेशा की तरह यहां भी कुछ चाइनीज़ और कुछ इंडियन मौजूद थे।मुझे हँसी आ रही थी कि ,अकेले हम ही नहीं बेवकूफ।इसके बाद हम 'पेसिफिक कोस्ट ड्राइव' को गए।ये सुन्दर रास्ता था।एक तरफ पहाड़ तो दूसरी तरफ समुन्दर , बीच में रास्ता।हमलोग सीनिक ब्यूटी का मज़ा लेते हुए जा रहे थे।एक बहुत ही सुन्दर व्यू दिखा।हमने गाड़ी को साइड करके कुछ फ़ोटोग्राफ़ लेने की सोची।ज्योही गाड़ी को किनारे रोका गया ,किनारे पड़े किसी तेज पत्थर की वजह से गाड़ी पंक्चर हो गई।अब क्या हो ? यहाँ के गाड़ी इंस्योरेंस वाले को कॉल किया गया।वो बोला हमारे पास आते -आते उसे एक से डेढ़ घंटा लग जायेंगा।लॉन्ग वीकेंड की छुट्टी की वजह से स्टाफ़ कम है।शतेश ने हेमत और मिस्टर देगवेकर को कहा -उसका इंतज़ार करेंगे तो हमे काफी देर हो जायेगी।फ्लाइट भी लेनी है वापसी की।मुझे टायर चेंज करने आता है ,तुमलोग हेल्प कर दो।तीनो लड़को ने मिलकर टायर चेंज किया।इधर मुझे फोटोग्राफी का टाइम मिल गया।बीच साइड होने से गर्मी भी काफी लग रही थी।शतेश तो पसीने से तर -बत्तर।उस वक्त वो मुझे सच में एक कार मेकैनिक ही लग रहे थे।मुझे दया भी आ रही थी और हँसी भी।यात्रा समाप्त हुआ।वापस हमलोग वेगास एयरपोर्ट पहुँचे ,हूस्टन की फ्लाइट के लिए।
Thursday 16 June 2016
KHATTI-MITHI: वेगास और मैं !!
KHATTI-MITHI: वेगास और मैं !!: घुमकडी का शौक़ तो हमेशा से रहा है मुझे।इंडिया में भाई और मैं साथ खूब घूमते थे।मेरे कंधे पर हाथ रखकर वो ऐसे चलता जैसे मैं कोई उसकी यार -दोस...
वेगास और मैं !!
Monday 6 June 2016
KHATTI-MITHI: भोजपुरी में मुकेश के प्यार !!!
KHATTI-MITHI: भोजपुरी में मुकेश के प्यार !!!: रश्मि को देख कर मुकेश कहते है -रश्मि सच में तुम सूरज की पहली किरण सी हो।तुम्हारे आने से मेरे जीवन में और प्रकाश भर गया है।तुम्हारी प्यारी स...
भोजपुरी में मुकेश के प्यार !!!
रश्मि को देख कर मुकेश कहते है -रश्मि सच में तुम सूरज की पहली किरण सी हो।तुम्हारे आने से मेरे जीवन में और प्रकाश भर गया है।तुम्हारी प्यारी स्माइल देख कर मैं सब कुछ भूल जाता हूँ।तुम्हारे घुँघराले बाल ,उफ्फ! क्या जादू करते है।मानों कलेजे पर साँप लोट रहे हो।ईतना सुनते ही रश्मि भड़क उठी।बोली -मुकेश जब तुम्हे तारीफ करनी नहीं आती तो, मत करो ना।बड़े आये कलेजे पर साँप वाले।मुकेश हँसते हुए बोले अरे मै तो मज़ाक कर रहा था।तुम गुस्सा क्यों होती हो ? अच्छा सुनो रश्मि, मैं सोच रहा था -क्यों ना इसबार मैं तुम्हे भोजपुरी में कुछ सुनाऊ।कैसा रहेगा ? रश्मि बोली -मुकेश बाबू मालूम है, शादी को 6 साल हो गए।आज सालगिरह भी है ,पर इसका मतलब ये नहीं कि, तुम मुझे सुबह से पकाना शुरू कर दो।मेहमान आने वाले है। मुझे बहुत से काम है।मुकेश रश्मि का हाथ पकड़ कर कहते है -अरे सब हो जायेगा।थोड़ा मेरे पास तो बैठो।रश्मि मुश्कुराते हुए पूछी -ये अचानक भोजपुरी वाला आईडिया कहाँ से आया ? मुकेश बोले नहीं मैं सोच रहा था ,हिंदी ,इंग्लिश वाला प्यार बहुत हुआ।फॉर अ चेंज इस बार भोजपुरी में ट्राई करता हूँ।रश्मि बोली ओह गॉड मुकेश, हिंदी ,इंग्लिश ,भोजपुरी ,मराठी प्यार क्या होता है ? ये बोलो इस भाषा में अपनी भावनायें व्यक्त करूँगा।मुकेश :- ठीक है ना रश्मि, वही बात है।तुम समझ गई ना ? और सुनो तुम भी भोजपुरी में जबाब देना।इस तरह आंशी भी सीख जायेगी।रश्मि चौंक कर पूछती है क्या ? प्यार या भोजपुरी ? मुकेश सिर पकड़ लिए-बोले जान मेरी आंशी भोजपुरी सीखेगी।प्यार के लिए अभी वक़्त है।फिर साँस छोड़ते हुए बोले -अब मालूम हुआ जान कोई क्यों अपनी प्रेमिका या पत्नी को कहता है।रश्मि पूछी क्यों भला ,बताओ ? मुकेश थोड़ा झल्ला कर बोले माफ़ करो मुझे।जान लेलो मेरी।कब से मैं एनिवर्सरी को यादगार बनाने का प्लान बना रहा हूँ ,और तुम हो की।रश्मि मुकेश को नाराज होता देख ,उसके गले पर प्यार से झूलने लगती है।कहती है -अच्छा -अच्छा चलो चलो डन।बोलो क्या कहना था तुम्हे ,भोजपुरी में।भाई जब मुनि विश्वामित्र नहीं टीक पाए नारी के आगे, ये तो मुकेश थे:) मुकेश भी नारी के प्रेम के आगे पिघल गए ,कहते है-
ऐ हो रश्मि ,उ जो तोहर बहिनबेटिया है ना ,का नाम है ?
रश्मि :-किसके बारे में पूछ रहे है ?मेरी 75 गो बहिन बेटी है।
मुकेश :-अरे जिसको सरवा ओह साला ----बीच में टोकते हुए रश्मि गुस्से से कहती है -माइंड योर लैंग्वेज मुकेश।
मुकेश हँसते हुए कहते है- अरे मेरी सुग्गा रानी ,हम गाली थोड़े दे रहे है।तुम्हारे भाई की बात कर रहे थे।यार तुमने बीच में ही टोक दिया।अरे उहे जेकरा के तोहर भाई ना मना कईले रहे लिखे के।उहे लयकिया।जे आय -बाय ,जे बुझाला लिखत रहले।
रश्मि :-ओ उ।बाक महराज ऐसे काहे नहीं पूछे पहले।ऊ तपस्या ना।
मुकेश :-हाँ -हाँ उहे।हम सोचे ओकरा कुछ लिखे के मिल जाई एहि बहाने।देखी ये बार कौन पानी में आग लगाई।
रश्मि :-हम !अच्छा त इस सब इसलिए कर रहे है।
मुकेश :-ना हो करेजा।भोले बाबा के कसम रश्मि -तहरे से त हमार दुनियाँ बा।ये सब तोहरा प्यार ला बा।और तुम्हो की सारा अकील मेरे प्यार के क्यों -काहे में लगा देती हो।कभी तुमको बुझाया है ,तुम मेरी परान हो ,करेजा का टुकड़ा हो।तुम गुसाती हो तो मन दू कइसन हो जाता है।हम पढ़ने-लिखने वाले लईका है माने का ? हमको प्यार करना नहीं आता है ? रिसर्च करते है बाबू रिसर्च।केमेस्ट्रियो खूब पढ़े है।सब जानते है।बुझी की नहीं?
रश्मि :-हँसते हुए कहती है-अरे हमार अँखिया के पुतरिया ,हमार सोना।हम त मजाक में पूछे थे।
मुकेश :-रश्मि ऐगो बात बताये ?जब हमनी के बियाह तय हुआ था ना ,हम खूब टाइटैनिक वाला गितवा सुनते थे।वही माय हार्ट विल गो ऑन वाला।सुनाये का ?
रश्मि :-आ बाक! उ रहने दे मत सुनाइए।मेहरारू वाला गीत लगता है।हम गाते तो कउनो बातो होता।दोसर सुनाए।
मुकेश :-गाना शुरू करते है -तू का नचबू जे हम कहेम ,तू का भगबू आ पीछे मुड़ के ना देखबू।का तू रोअबू ,हमरा के रोअत देख के -----रश्मि बीच में रोकते हुए।रुको-रुको ,मुकेश क्या हो गया है ? क्या गा रहे हो ?
मुकेश रश्मि को परेशान देख ,हँसते हुए आगे की लाइन गाते है -आई कैन बी यॉर हीरो ,बेबी ,आई कैन किस अवे द पेन।आई विल स्टैंड बाई यू फॉरेवर।यू कैन टेक माय ब्रेथ अवे।----:"एनरिके" के हीरो का भोजपुरी वर्जन रश्मि हा -हा -हा।
रश्मि :-हमार दिल धड़कता।बार -बार धड़कता,बार -बार धड़कता।घबड़ाते हुए मुकेश -क्या हुआ रश्मि ?एवरीथिंग इज आल राईट ?डॉक्टर के पास चले ?रश्मि मुश्कुराते हुए -नो माय डिअर मुकेश -माय हर्ट इज़ बीटिंग ,कीप्स ऑन रिपीटिंग ,आई एम वेटिंग फॉर यू -मूवी "जूली "का भोजपुरी वर्ज़न।मैंने सोचा जब एनिवर्सरी दोनों की तो ,कोई एक क्यों टॉर्चेर करे।सादी के सालगिरह हमनी दोनों को बहुत मुबारक होखो हमारो करेजा ,अंशिया के पापा मुकेश बबुआ।तोहरो के हो उहे का कहाला अंगरेजी में एक जइसन ,हमार रानी ,हमार माई -बाबूजी के पतोह ,हमरा साथे हमेशा रहिए।
माय मोस्ट लविंग कपल रश्मि मासी एंड मुकेश मौसा जी हैप्पी एनिवर्सरी।इस बार भी गिफ्ट के तौर पर ब्लू इंक दे रही हूँ।आपलोग हमेशा खुश रहे।मुझे प्यार देते रहे।
ऐ हो रश्मि ,उ जो तोहर बहिनबेटिया है ना ,का नाम है ?
रश्मि :-किसके बारे में पूछ रहे है ?मेरी 75 गो बहिन बेटी है।
मुकेश :-अरे जिसको सरवा ओह साला ----बीच में टोकते हुए रश्मि गुस्से से कहती है -माइंड योर लैंग्वेज मुकेश।
मुकेश हँसते हुए कहते है- अरे मेरी सुग्गा रानी ,हम गाली थोड़े दे रहे है।तुम्हारे भाई की बात कर रहे थे।यार तुमने बीच में ही टोक दिया।अरे उहे जेकरा के तोहर भाई ना मना कईले रहे लिखे के।उहे लयकिया।जे आय -बाय ,जे बुझाला लिखत रहले।
रश्मि :-ओ उ।बाक महराज ऐसे काहे नहीं पूछे पहले।ऊ तपस्या ना।
मुकेश :-हाँ -हाँ उहे।हम सोचे ओकरा कुछ लिखे के मिल जाई एहि बहाने।देखी ये बार कौन पानी में आग लगाई।
रश्मि :-हम !अच्छा त इस सब इसलिए कर रहे है।
मुकेश :-ना हो करेजा।भोले बाबा के कसम रश्मि -तहरे से त हमार दुनियाँ बा।ये सब तोहरा प्यार ला बा।और तुम्हो की सारा अकील मेरे प्यार के क्यों -काहे में लगा देती हो।कभी तुमको बुझाया है ,तुम मेरी परान हो ,करेजा का टुकड़ा हो।तुम गुसाती हो तो मन दू कइसन हो जाता है।हम पढ़ने-लिखने वाले लईका है माने का ? हमको प्यार करना नहीं आता है ? रिसर्च करते है बाबू रिसर्च।केमेस्ट्रियो खूब पढ़े है।सब जानते है।बुझी की नहीं?
रश्मि :-हँसते हुए कहती है-अरे हमार अँखिया के पुतरिया ,हमार सोना।हम त मजाक में पूछे थे।
मुकेश :-रश्मि ऐगो बात बताये ?जब हमनी के बियाह तय हुआ था ना ,हम खूब टाइटैनिक वाला गितवा सुनते थे।वही माय हार्ट विल गो ऑन वाला।सुनाये का ?
रश्मि :-आ बाक! उ रहने दे मत सुनाइए।मेहरारू वाला गीत लगता है।हम गाते तो कउनो बातो होता।दोसर सुनाए।
मुकेश :-गाना शुरू करते है -तू का नचबू जे हम कहेम ,तू का भगबू आ पीछे मुड़ के ना देखबू।का तू रोअबू ,हमरा के रोअत देख के -----रश्मि बीच में रोकते हुए।रुको-रुको ,मुकेश क्या हो गया है ? क्या गा रहे हो ?
मुकेश रश्मि को परेशान देख ,हँसते हुए आगे की लाइन गाते है -आई कैन बी यॉर हीरो ,बेबी ,आई कैन किस अवे द पेन।आई विल स्टैंड बाई यू फॉरेवर।यू कैन टेक माय ब्रेथ अवे।----:"एनरिके" के हीरो का भोजपुरी वर्जन रश्मि हा -हा -हा।
रश्मि :-हमार दिल धड़कता।बार -बार धड़कता,बार -बार धड़कता।घबड़ाते हुए मुकेश -क्या हुआ रश्मि ?एवरीथिंग इज आल राईट ?डॉक्टर के पास चले ?रश्मि मुश्कुराते हुए -नो माय डिअर मुकेश -माय हर्ट इज़ बीटिंग ,कीप्स ऑन रिपीटिंग ,आई एम वेटिंग फॉर यू -मूवी "जूली "का भोजपुरी वर्ज़न।मैंने सोचा जब एनिवर्सरी दोनों की तो ,कोई एक क्यों टॉर्चेर करे।सादी के सालगिरह हमनी दोनों को बहुत मुबारक होखो हमारो करेजा ,अंशिया के पापा मुकेश बबुआ।तोहरो के हो उहे का कहाला अंगरेजी में एक जइसन ,हमार रानी ,हमार माई -बाबूजी के पतोह ,हमरा साथे हमेशा रहिए।
माय मोस्ट लविंग कपल रश्मि मासी एंड मुकेश मौसा जी हैप्पी एनिवर्सरी।इस बार भी गिफ्ट के तौर पर ब्लू इंक दे रही हूँ।आपलोग हमेशा खुश रहे।मुझे प्यार देते रहे।
Wednesday 1 June 2016
KHATTI-MITHI: रंगीन तस्वीरें और मेरे गाँव की सैर की अगली कड़ी !!!...
KHATTI-MITHI: रंगीन तस्वीरें और मेरे गाँव की सैर की अगली कड़ी !!!...: रंगीन तस्वीरों के साथ मेरे गाँव का सफर आगे बढ़ता है।जैसा कि मैंने आपलोग को पहले ही बताया है ,मेरे गाँव में एक पहाड़ी नदी बहती है।उससे जुड़े कई...
रंगीन तस्वीरें और मेरे गाँव की सैर की अगली कड़ी !!!
रंगीन तस्वीरों के साथ मेरे गाँव का सफर आगे बढ़ता है।जैसा कि मैंने आपलोग को पहले ही बताया है ,मेरे गाँव में एक पहाड़ी नदी बहती है।उससे जुड़े कई किस्से है।मैंने कभी उस नदी का विकराल रूप तो नहीं देखा ,पर उसकी त्रासदी के किस्से बहुत सुने है।बाबा जी बताते थे ,इस नदी ने हमारे दो घर काट दिए थे।रात को बाढ़ आती और सब कुछ बहा ले जाती थी।मैंने बाबा जी पूछा था कि,ऐसी हालत में उनलोगो ने गाँव क्यों नहीं छोड़ा? बाबा जी हँस के बोले -प्रियंका गाँव -घर तो यहीं है,इसे छोड़ कर कहाँ जाते।इनके के लिए तो मैं अपनी नौकरी तक छोड़ आया हूँ।बाबा जी मेरे पटना सेक्रिटेरियट में काम करते थे।अच्छा रुतबा था उनका वहाँ ,पर उस वक़्त खेती की महत्ता ज्यादा थी।खेत भी ज्यादा थे।बाबा जी के दूर होने का फायदा पाटिदार लोग उठाने लगे।जमीन हड़पने की कोशिश करने लगे।उधर विनोबा भावे ने भी देश में "भू -दान आंदोलन" चलाया था।जिसमे जमींदारों की जमीन हरिजनों को दिया जाने लगा।बाबा जी के बाबू जी जमींदारी प्रथा के खत्म होने के बाद गाँव के मुखिया बन गए थे।उन्होंने कई बार बाबा जी को नौकरी करने से मना किया था।शायद बड़े पुत्र के दूर रहने का कारण वो नौकरी को समझने लगे थे।या फिर उम्र के इस पड़ाव में वो अपने बच्चों को आस -पास रखना चाहते हो।बाबा हँसते हुए बताते थे -उनके बाबू जी ने उन्हें कहा था ,कामेश्वर दूसर के नौकरी से अच्छा ,आपन घर -दुआर देखअ।का बा उ दू पैसा के नौकरी में।खैर मैं विषय से भटक रही हूँ।इसतरह मेरे गाँव का घर काफी पहले से पक्का का था।मतलब छतदार मकान,खपड़े का नहीं।हमारा घर बड़का घर के नाम से गाँव -गाँव में प्रचलित था।अब तो बहुत बड़का घर हो गए है गाँव में।पर इस बड़के घर को भी ये नदी नहीं छोड़ती थी।समय के साथ नदी भी बूढ़ी होती गई।उसका क्रोध भी अब जवानी के साथ ढलता गया।अब कभी -कभार बरसात में फकफकाते दीये सा जोर मरती है ,पर उससे कोई डरता नहीं।ना हीं कोई घर गिरता है।बस बच्चे मछली पकड़ने का खेल शुरू कर देते है।अब जम के बरसात भी तो नहीं होती।गर्मियों में नदी जब सूखी होती है तो ,कुछ यूँ नजारा होता है इसका -
मैं अपनी चचेरी बहनों के साथ नदी में बैठी हूँ।इस सूखी नदी देख कर आप कह नहीं सकते कि ,इसने कितने घर तबाह किये होंगे।मैंने कभी इस नदी की तबाही नहीं देखी ,इसलिए मुझे इससे हमेशा लगाव रहा।लगाव का कारण इसका साफ़ पानी और इसके तलहटी में मिटटी की जगह सफ़ेद बालू का होना है।नदी में घुसते ही ,आप अपने पैरों को साफ़ -साफ़ देख सकते है।मैंने इतनी साफ़ नदी कही नहीं देखी।गंगा नदी को भी देखा है , पर उसका पानी भी मटमैला होता है।बरसात की दिनों में गाँव की औरते कहती -आग लगो ,बजर पड़ो ये नदी में।मुझे ऐसी बातें सुनकर हँसी आती।भला नदी में भी आग लग सकती है।पर ऐसी हालात में भी कोई उस वक़्त गाँव छोड़ कर नहीं गया।और अब जब नदी शांत हो गई है,तो सबका पलायन शुरू है।शायद लोगो का रोमांच खत्म हो गया नदी के साथ ,तो दूसरे रोमांच की ख़ोज में शहर भाग रहे है।एक तस्वीर इसी साल की नदी में पानी के साथ-
जो सबसे ऊपर की तस्वीर है ,जिसमे हम बहनें सूखी नदी में बैठे है।उस जगह से 3 /4 हाथ दूरी पर नदी में एक बाँस गड़ा था ,लाल पताके के साथ।उसको पकड़ के मैंने अपने चाचा के बच्चों से पूछा - ये हनुमान जी का धज्जा यहाँ क्यों लगा है ? मुझे बाँस को पकड़े देख मेरे चाचा का लड़का हसँते हुए भागा और चिल्ला कर बोला- ये चुन्नी दीदी, लभली दीदी मरघटिया वाला बाँस छू दी है।सब भाई बहन हँसते हुए मुझे दूर भागने लगे।चुन्नी बोली -अरे पागले बाड़ू साफ़ ,यहाँ मुर्दा जलावल जाला।सब मुझे डराने लगे कि ,अब भुत मुझे पकड़ लेगा।मै उनकी बातो मजाक़ में ले रही थी।मुझे डरता ना देख, थोड़ी देर बाद चुन्नी बोली ,अरे सब यूँही चिढ़ा रहे है ,घर चल कर बस नहा लेना।घर आने के बाद उनकी तरह मैंने भी सिर्फ हाथ -पैर धोया।नहाना मेरे लिए शुरू से ही एक युद्ध के सामान था।आज भी है ,पर थोड़ा सुधार हुआ है।इसके बाद आते है ,ककड़ी ,खीरा ,बट्टी और लालमी (तरबूज ,खरबूज )के खेत के पास ,जो नदी से थोड़ी दूर घर वापसी के रस्ते में था।
ये दोनों ही तस्वीरें अलग -अलग तरह की झोपड़ी की है।ये झोपड़ियाँ खीरे -तरबूजे की निगरानी करने वालो के लिए बनी होती है।कुछ महीनों के लिए बनी इन झोपड़ियों पर किसान ज्यादा मेहनत नहीं करते है। बस गर्मी में छाया देने भर की होती है।कोई -कोई इसमें खटिया भी डाल देता है,आराम करने के लिए।तो कोई खुली झोपड़ी में बोरा डाल कर बैठा या लेटा होता।जिस खटिया पर हम बहनें बैठी है ,उसके खेत का रखवार चाचा के बच्चों को जानता था।हमलोग को देख कर वो बोला -नदी घूमे गईल रहनी ह का बाबू लोग? मेरे चाचा के लड़के ने कहा हाँ भाई।चलअ ककड़ी खियावअ।रखवार बोला तूर ली रउरा सबे।चाचा के बच्चों के साथ मैं भी खेत में घुस गई ककड़ी तोड़ने।तभी रखवार बोला अरे बबुनी चप्पल पहिन के ना।ना त सारा ककड़ी के लती सूख जाई।मैं घबरा कर बाहर निकल गई।पहली बार सुना था ,चप्पल पहन के ककड़ी के खेत में घुसने से उसकी बेले सूख जाती है।मैंने उनसे पूछा तो वो बोले ये बड़ा नेम -जेम वाला खेती है बबुनी।मुझे इसके पीछे कारण ये लगता है कि ,कही चप्पल से दब जाने पर बेले सूख जाती होंगी।नंगे पैर इन्सान थोड़ा सम्भल कर चलता है ना।ककड़ी खाते हुए घर लौटते वक़्त एक घास काट कर जाती महिला को देखा।उसकी घाँस से भरी टोकरी मुझे बहुत अच्छी लगी।मैंने उनसे कहा -ये सुनी ना थोड़े देर ला आपन टोकरी देंम का ? पहले तो वो घबरा गई ,फिर पूछा काहे ? मैंने कहा बस उठाना है।उसने हँसते हुए टोकरी मेरे सिर पर रख दी।सच मानिये देखने में इतनी हल्की और मासूम टोकरी मेरी गर्दन की ऐसी -तैसे कर दी थी।काफी भारी थी।मैं उतारो -उतरो चिल्लाने लगी।मेरे चाचा के बच्चे मजे लेने लगे।कोई मेरी फोटो ले रहा है ,तो कोई हँस -हँस कर गिर रहा था।घाँस वाली बेचारी मुझे परेशान देख मदद को आने लगी कि ,चाचा के बेटी को मजाक सुझी बोली -अगर टोकरी उतर दी तो घास तुम्हारे घर नहीं जायेगा।वो बेचारी डर कर वही रुक गई।मैं गर्दन के दर्द से बिलबिला उठी ,गुस्से में बोला अगर अभी टोकरी नहीं उतारा तो मैं टोकरी नीचे फेंक दूँगी।तब जाके मेरे चाचा के बच्चों ने घसवाहीन के साथ मिल टोकड़ी उतारी।2 /3 दिन तक मेरे गर्दन रहा।चाची रोज 2 /3 बार मेरे गर्दन की मालिश करती और अपने बच्चों को डाँटती उस घटना के लिए।बार -बार कहती हम जीजी (मेरी माँ )को क्या मुँह दिखायेंगे।ये तस्वीर उस भयानक मज़ाक की।पर धन्य है घसवाहीन।उस घसवाहीन का दुःख मैंने तब जाना।भगवान् उसके सारे दर्द को दूर करे।
कुछ और तस्वीरें रह गई है ,जो अगले बार के लिए है।पर ऐसे दुखी नोट पर इस ब्लॉग का अंत तो हो नहीं सकता।माना गाँव में थोड़ी दुःख, परेशानी हो सकती है पर, थोड़ा सूख भी तो है भाई।तो लीजिए एक और तस्वीर जिसमे मैं मीठे ऊख (गन्ने ) का मज़ा ले रही हूँ ,वहीं शतेश सालियों (मेरी बहनों ) के जिद्द के आगे अपना पसंदीदा गाना मुश्कुराने की वज़ह तुम हो गा रहे है।
मैं अपनी चचेरी बहनों के साथ नदी में बैठी हूँ।इस सूखी नदी देख कर आप कह नहीं सकते कि ,इसने कितने घर तबाह किये होंगे।मैंने कभी इस नदी की तबाही नहीं देखी ,इसलिए मुझे इससे हमेशा लगाव रहा।लगाव का कारण इसका साफ़ पानी और इसके तलहटी में मिटटी की जगह सफ़ेद बालू का होना है।नदी में घुसते ही ,आप अपने पैरों को साफ़ -साफ़ देख सकते है।मैंने इतनी साफ़ नदी कही नहीं देखी।गंगा नदी को भी देखा है , पर उसका पानी भी मटमैला होता है।बरसात की दिनों में गाँव की औरते कहती -आग लगो ,बजर पड़ो ये नदी में।मुझे ऐसी बातें सुनकर हँसी आती।भला नदी में भी आग लग सकती है।पर ऐसी हालात में भी कोई उस वक़्त गाँव छोड़ कर नहीं गया।और अब जब नदी शांत हो गई है,तो सबका पलायन शुरू है।शायद लोगो का रोमांच खत्म हो गया नदी के साथ ,तो दूसरे रोमांच की ख़ोज में शहर भाग रहे है।एक तस्वीर इसी साल की नदी में पानी के साथ-
जो सबसे ऊपर की तस्वीर है ,जिसमे हम बहनें सूखी नदी में बैठे है।उस जगह से 3 /4 हाथ दूरी पर नदी में एक बाँस गड़ा था ,लाल पताके के साथ।उसको पकड़ के मैंने अपने चाचा के बच्चों से पूछा - ये हनुमान जी का धज्जा यहाँ क्यों लगा है ? मुझे बाँस को पकड़े देख मेरे चाचा का लड़का हसँते हुए भागा और चिल्ला कर बोला- ये चुन्नी दीदी, लभली दीदी मरघटिया वाला बाँस छू दी है।सब भाई बहन हँसते हुए मुझे दूर भागने लगे।चुन्नी बोली -अरे पागले बाड़ू साफ़ ,यहाँ मुर्दा जलावल जाला।सब मुझे डराने लगे कि ,अब भुत मुझे पकड़ लेगा।मै उनकी बातो मजाक़ में ले रही थी।मुझे डरता ना देख, थोड़ी देर बाद चुन्नी बोली ,अरे सब यूँही चिढ़ा रहे है ,घर चल कर बस नहा लेना।घर आने के बाद उनकी तरह मैंने भी सिर्फ हाथ -पैर धोया।नहाना मेरे लिए शुरू से ही एक युद्ध के सामान था।आज भी है ,पर थोड़ा सुधार हुआ है।इसके बाद आते है ,ककड़ी ,खीरा ,बट्टी और लालमी (तरबूज ,खरबूज )के खेत के पास ,जो नदी से थोड़ी दूर घर वापसी के रस्ते में था।
ये दोनों ही तस्वीरें अलग -अलग तरह की झोपड़ी की है।ये झोपड़ियाँ खीरे -तरबूजे की निगरानी करने वालो के लिए बनी होती है।कुछ महीनों के लिए बनी इन झोपड़ियों पर किसान ज्यादा मेहनत नहीं करते है। बस गर्मी में छाया देने भर की होती है।कोई -कोई इसमें खटिया भी डाल देता है,आराम करने के लिए।तो कोई खुली झोपड़ी में बोरा डाल कर बैठा या लेटा होता।जिस खटिया पर हम बहनें बैठी है ,उसके खेत का रखवार चाचा के बच्चों को जानता था।हमलोग को देख कर वो बोला -नदी घूमे गईल रहनी ह का बाबू लोग? मेरे चाचा के लड़के ने कहा हाँ भाई।चलअ ककड़ी खियावअ।रखवार बोला तूर ली रउरा सबे।चाचा के बच्चों के साथ मैं भी खेत में घुस गई ककड़ी तोड़ने।तभी रखवार बोला अरे बबुनी चप्पल पहिन के ना।ना त सारा ककड़ी के लती सूख जाई।मैं घबरा कर बाहर निकल गई।पहली बार सुना था ,चप्पल पहन के ककड़ी के खेत में घुसने से उसकी बेले सूख जाती है।मैंने उनसे पूछा तो वो बोले ये बड़ा नेम -जेम वाला खेती है बबुनी।मुझे इसके पीछे कारण ये लगता है कि ,कही चप्पल से दब जाने पर बेले सूख जाती होंगी।नंगे पैर इन्सान थोड़ा सम्भल कर चलता है ना।ककड़ी खाते हुए घर लौटते वक़्त एक घास काट कर जाती महिला को देखा।उसकी घाँस से भरी टोकरी मुझे बहुत अच्छी लगी।मैंने उनसे कहा -ये सुनी ना थोड़े देर ला आपन टोकरी देंम का ? पहले तो वो घबरा गई ,फिर पूछा काहे ? मैंने कहा बस उठाना है।उसने हँसते हुए टोकरी मेरे सिर पर रख दी।सच मानिये देखने में इतनी हल्की और मासूम टोकरी मेरी गर्दन की ऐसी -तैसे कर दी थी।काफी भारी थी।मैं उतारो -उतरो चिल्लाने लगी।मेरे चाचा के बच्चे मजे लेने लगे।कोई मेरी फोटो ले रहा है ,तो कोई हँस -हँस कर गिर रहा था।घाँस वाली बेचारी मुझे परेशान देख मदद को आने लगी कि ,चाचा के बेटी को मजाक सुझी बोली -अगर टोकरी उतर दी तो घास तुम्हारे घर नहीं जायेगा।वो बेचारी डर कर वही रुक गई।मैं गर्दन के दर्द से बिलबिला उठी ,गुस्से में बोला अगर अभी टोकरी नहीं उतारा तो मैं टोकरी नीचे फेंक दूँगी।तब जाके मेरे चाचा के बच्चों ने घसवाहीन के साथ मिल टोकड़ी उतारी।2 /3 दिन तक मेरे गर्दन रहा।चाची रोज 2 /3 बार मेरे गर्दन की मालिश करती और अपने बच्चों को डाँटती उस घटना के लिए।बार -बार कहती हम जीजी (मेरी माँ )को क्या मुँह दिखायेंगे।ये तस्वीर उस भयानक मज़ाक की।पर धन्य है घसवाहीन।उस घसवाहीन का दुःख मैंने तब जाना।भगवान् उसके सारे दर्द को दूर करे।
कुछ और तस्वीरें रह गई है ,जो अगले बार के लिए है।पर ऐसे दुखी नोट पर इस ब्लॉग का अंत तो हो नहीं सकता।माना गाँव में थोड़ी दुःख, परेशानी हो सकती है पर, थोड़ा सूख भी तो है भाई।तो लीजिए एक और तस्वीर जिसमे मैं मीठे ऊख (गन्ने ) का मज़ा ले रही हूँ ,वहीं शतेश सालियों (मेरी बहनों ) के जिद्द के आगे अपना पसंदीदा गाना मुश्कुराने की वज़ह तुम हो गा रहे है।
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