ठंढ के लगभग जाते ही ,जहाँ एक ओर न्यूयोर्क से वाशिंगटन तक चेरी ब्लोसम वाले फूल होते है।वही दूसरी तरफ टेक्सास में ब्लूबोनेट्स के फूल खिले होते है।चेरी ब्लोसम के फूलों पर पहले भी लिख चकी हूँ।आज बात जंगली फूलों की ,ब्लूबोनेट्स की।
ये एक तरह के जंगली फूल ही हैं ,फिर भी इनकी सुंदरता किसी गार्डन के फूलों से बिल्कुल कम नहीं। यहीं वजह है कि कई जोड़े इन फूलों के बीच शादी भी कर लेते है।हैं ना कमाल की बात।
ये एक तरह के जंगली फूल ही हैं ,फिर भी इनकी सुंदरता किसी गार्डन के फूलों से बिल्कुल कम नहीं। यहीं वजह है कि कई जोड़े इन फूलों के बीच शादी भी कर लेते है।हैं ना कमाल की बात।
टेक्सास में ली दूसरी जो तस्वीर है।उन फूलों को देख कर मुझे मेरा बचपन याद आ जाता है। कुछ इसी तरह के जंगली फूलों से हमलोग खूब खेला करते थे।शुरू से ही मुझे फूलों से बड़ा लगाव रहा है।बसंतपुर में हमारे सरकारी आवास के आस -पास अच्छी खासी खाली जगह है।मैं जब भी समय मिलता ,उसमे फूल लगाना ,पौधों को पानी देना ,उनकी कटाई -छटाई में लग जाती। कई बार माँ नाराज भी हो जाती। कहती हाथ ख़राब हो जायेंगे। दिन भर खुरपी ,कुदाल चलाओगी तो।वहीं कॉलोनी की चाचीलोग ,मेरे बागान को सीता जी की वाटिका कहती।इन्ही फूलों के बीच कुछ जंगली फूल उग आते।कभी मैं उनको रहने देती ,कभी उखाड़ फेंकती।इन फूलों में ज्यादातर के तो नाम भी नहीं मालूम होते। खुद से कभी भुइया फूल तो कभी कटैला फूल नाम दे देते हमलोग।जाने इनका नाम क्या है ? नाम जो भी हो पर इन्हे भूलना इतना आसान भी नहीं।मेरे प्यारे जंगली फूल तुम्हारी तस्वीरों को मुश्किल से ढूंढा है।अब तुम सदा मेरे साथ रहोगे। तस्वीरों को देखें।शायद आप भी इन्हे पहचानते हो।इन्हे जानते हो।
वैसे तो इंग्लिश में इन पौधों को सोरेल पलांट /ओक्सालिस कहते है।हमलोग तो इनको भटकोवा के फूल कहते।भटकोवा खाते भी थे।
इन फूलों को खटमिट्ठी
के फूल कहते। इनकी पत्तियां खट्टी मीठी होती हैं।इनको भी हमलोग खाते और माँ से पेट में दर्द होने का उलाहना सुनते।
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