Thursday 6 April 2017

राजा गोपीचंद और मैं !!!!

मेरी और भाई की जब भी लड़ाई होती ,भाई को कूटने के बाद माँ एक कहावत कहती -सबका दुअरिया जइह ये गोपीचंद बहिना दुअरिया जनी जा। ये कहावत भाई की कुटाई के बाद ,माँ की सिम्पैथी होती ।अब कहावत सुनकर साफ़ -साफ़ यही लगता की बहन को भाई के यहां या पास नहीं जाना चाहिए। इतने साल से हम दोनों भाई बहन यही सुनते आ रहे हैं।एक आध बार माँ से ये सुना था कि ,पहले योगी लोग आते थे। गोपीचंद की कहानी को गीतों का रूप देकर गाते फिरते। ये कहावत उसी का हिस्सा है।इतने दिनों से जो कहावत की  ग़लतफ़हमी में हम भाई -बहन जी रहे थे ,उसका भेद योगी जी के मुख्यमंत्री बनने पर खुला। हुआ यूँ कि ,योगी जी से गोरखनाथ और ,गोरखनाथ से गोपीचंद याद आ गए।फिर क्या था गूगलिंग शुरू।जब सही जानकारी मिली हँस -हँस के हालात खऱाब। भाई को कॉल लगाया -भाई रे भाई धोखा हुआ है हमलोगों के साथ। माँ ने इतने सालों बेवकूफ़ बनाया। वो जिस संदर्भ में हमें कहावत को कहती ये तो ठीक उसके विपरीत है।भाई भी हँसने लगा। बोला हो सकता हो माँ के पास जो योगी आते हो वो अधूरी बात बताते हो या यही तक माँ ने सुना हो।अब इस बात की पुष्टि कैसे हो ? मैंने तुरंत माँ को कॉल लगाया। माँ घबड़ा गई। बोली सब ठीक हैं ना ? इतनी रात को कॉल ? मैंने कहा सब छोडो ,जो गोपीचंद का कहावत तुम कहती थी उसका मतलब क्या है ? माँ ये सुनकर और परेशान। पूछने लगी क्या हुआ ? फिर भाई -बहन में झगड़ा हुआ क्या ? कितना दिन तक हम फैसला करते रहेंगे ? मैंने कहा माता श्री कुछ नहीं हुआ।ये बताओ तुमने इतने दिन तक हमें अँधेरे में रखा। तुम्हे सचाई मालूम है कि क्या हुआ था गोपीचंद और उसकी बहन के बीच ?  माँ बोली हाँ ,और जो मैंने गूगल किया था वही लगभग बताई। हँसते हुए माँ  पूछी तो ये जानने के लिए तुमने इतनी रात कॉल किया है। मैंने कहा सालों से मैं इस ग्लानी में थी कि ,बहन दुस्ट होती है। भाई की उसे परवाह नहीं होती। चुलबुल भी ३/4 दिन फोन ना करो तो कह देता है। मस्ताना की माई अब तुम्हे मेरी फ़िक्र नहीं।माँ ठीक ही कहती है -बहिना दुआरे जन जाईए ये गोपीचंद। आज जब सचाई सामने आई तो चुप कैसे रहती ? माँ बोली बाऊवो ,तुमलोग का फरियवता ख़त्म नहीं होने वाला। वो तो मैं इसलिए कहती कि ,इतना बहन को भाई से प्रेम था फिर भी उसके दरवाज़े पर भाई उपास था।मैं थोड़ा झल्लाई ,तो पहले क्यों नही पूरी बात बताई। माँ हँसने लगी।बोली अच्छा बउओ रात बहुत हो गई है सोने दो।माँ सोने चली गई और मैं एक बार फिर से हँस पड़ी। मेरे और भाई की कहानी कुछ ज़्यादा हो गई ,इसलिए गोपीचंद जी की कहानी में काट -छाँट कर के सुनती हूँ :) कहानी कुछ इस तरह है -

गोपीचंद धौरागढ़ के राजा थे। उनकी सोलह सौ रानियाँ और सवा हज़ार कन्यायें थी। एक दिन गोपीचंद की प्रिय रानी रत्नकुवंर ने बुरा सपना देखा।रानी का मन व्याकुल था ,इसलिए सेवक को भेज राजा को दरबार से महल में बुलाया।राजा महल में आये तो रानी ने सपने की बात बताई।राजा हँस पड़े। रानी को समझा बुझा के दरबार जाने लगे।फिर सोचा जब अभी आया हूँ तो अपनी माँ से भी मिलता हुआ चलूँ।राजा अपनी माँ के पास पहुँचे।उन्हें देख कर उनकी माँ रोने लगी। माँ को रोता देख राजा पूछते है -माँ क्यों रो रही हो ? क्या मेरी रानियों ने कुछ कहा है ? माँ बोली नही बेटा। मैं तो तुम्हे देख कर रो रही हूँ। कितना सुन्दर मेरा बेटा। इतना बड़ा राजा फिर भी काल इसे नही छोड़ेगा।एक दिन अपने पिता की तरह तुम्हे भी मौत आ जाएगी।राजा हँस पड़ा। बोला माँ ये तो प्रकृति का नियम है। जो आया है ,उसे एक न एक दिन जाना ही है। इसमें रोना कैसा ? माँ बोली नही बेटा एक उपाय है। तुम वैराग धारण कर लो। गोरखनाथ जी के शरण में चले जाओ।फिर तुम्हे मृत्यू नहीं आएगी। माँ की ऐसी बात सुनकर गोपीचंद बोले ठीक है माँ।तुम कहती हो तो मैं जाता हूँ वैराग को ,पर मेरे बाद मेरी राज्य को ठीक से संभालना। मुझे कोई पुत्र भी नही जो राज्य संभाले। मेरी रानियों का ख़्याल रखना और मेरी बेटियों का अच्छे घर में विवाह कर देना।माँ ये सब सुनकर दुखी हो गई। कहने लगी ये क्या कर दिया मैंने। मत जाओ गोपीचंद वैराग को।गोपीचंद बोले माँ मुझे ज्ञान देकर ,अब मुझे मत रोको। ऐसा कह कर गोपीचंद वही से गोरखनाथ की खोज में निकल गए। रास्ते में उन्हें उनके मामा मिले ,जो गोरखनाथ के शिष्य थे। राजा ने मामा से ज़िद की गोरखनाथ से मिलवाने की।मामा गोपीचंद को बहुत समझये ,नहीं मानने पर थक हार के गोपीचंद को गोरखनाथ जी के पास ले गए। गोरखनाथ जी  ने कहा गोपीचंद वापस लौट जाओ। तुम्हारा परिवार तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है। गोपीचंद बोले नही भगवान अब मैं आपकी शरण में रहूँगा।तब गोरखनाथ बोले अच्छा ठीक है। तुम हमारे साथ रह सकते हो पर इसके लिए तुम्हे अपनी प्रिय रानी से माँ कह कर भिक्षा लानी है।गोपीचंद महल वापस आये और योगी के रूप में रानी से भिक्षा मांगी। रानी राजा के हठ के आगे झुक गई और पुत्र कहकर भिक्षा दे दिया। गोपीचंद अपनी माँ से भी भिक्षा लेने गए। माँ ने भी भिक्षा दे दी।इसके साथ चेतावनी दी सब जगह जाना पर अपने बहन के यहां मत जाना। वहीँ बात जो ,कहावत के रूप में मेरी माँ कहती है।गोपीचंद अपनी माँ से पूछे -ऐसा क्यों  माँ ? क्यों बहन के यहां न जाऊँ ? माँ बोली - बेटा तुम्हारी बहन तुमसे बहुत प्यार करती है।तुम्हारी ऐसी हालत देख के वो मर जाएगी।गोपीचंद हैरान। बोली मेरी इतनी रानियां ,इतनी बेटियां तुम माँ होकर नहीं मरी तो बहन क्या मरेगी ? फिर भी मुझे इसकी जांच करनी है।राजा बहन के यहां गए।बहन ने दासी से भिक्षा भेजवा दी। गोपीचंद बोले नहीं मुझे रानी से ही भिक्षा चाहिए।योगी के जिद्द के आगे रानी को बाहर आना पड़ा। अपने भाई की हालत देख कर रानी सच में मर गई।भाई भी दुखी होकर गोरखनाथ को पुकारने लगे।गोरखनाथ आये और राजा के बहन को जीवन दान दिया। तो इस तरह खीसा गइल बन में सोचा अपना मन में।और अब जब भी कोई कहावत सुने नहीं समझ आये तो पूछ जरूर ले :)

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