Tuesday 25 June 2019

टर्की रन पार्क !!!!

वैसे तो घुमना -फिरना हमारा बारहों महीना लगा रहता है पर, गरमी के दिनो में ये और भी बढ़ जाता है। उन्मे से सब के बारे में तो नही लिख पाती पर जो महत्वपूर्ण हैं या जो मुझे ज़्यादा पसंद आतें हैं उनकी सैर ज़रूर करा देती हूँ।

तो चलिए आज इंडीऐना का एक स्टेट पार्क जिसका नाम “टर्की रन स्टेट पार्क” है वहाँ लेकर चलती हूँ। इसके नाम के पीछे की कहानी तो किसी को ठीक से मालूम नही पर पार्क के इन्फ़र्मेशन सेंटर पर पता लगा कि शायद कभी यहाँ टर्की( एक तरह का पक्षी) यहाँ ख़ूब रहते होंगे। 2382 एकड़ में फैला ये पार्क पहाड़, पेड़-पौधों, छोटे-मोटे जंगली जानवर और पत्थरों का घर है। इसके बीच से एक नदी बहती है जिसका नाम शुगर क्रीक रिवर है। नदी का पानी तो वैसे हीं मीठा होता है पर इसके नाम के पीछे इसके मीठे पानी का योगदान कम इसके किनारे उगे मीठे मेपल ट्रीज़ का योगदान ज़्यादा है।

इस पार्क की ख़ूबसूरती में चार चाँद यहाँ के ट्रेल लगाते हैं। कुल ग्यारह अलग-अलग तरह के ट्रेल है। पथरीले ट्रेल को सुलभ बनाने की हर कोशिश की गई है फिर भी कुछ थोड़े मुश्किल भरे थे। ट्रेल 9 सबसे कठिन था और सत्यार्थ के साथ ये और मुश्किल होता तो इसे छोड़ हमने सारे ट्रेल किए। जब पैरों की हालत थोड़ी पतली होने लगी फिर घड़ी पर नज़र गई, हमारे क़दमों की गिनती सोलह हज़ार के पार पहुँच चुकी थी। हालाँकि ये क़दम नाप लगातार नही था, हम रुकते-रुकाते आगे बढ़ रहें थे। घर आने से पहले हमने साँझ की बेला में घोड़े की सवारी करनी चाही जो की पहाड़ों की सैर अपने ढंग से कराता पर सत्यार्थ की वजह से वो हो ना सका। हुआ यूँ कि, ये लास्ट टूर था और छः साल से छोटे बच्चें को उस पथरीले रास्ते पर घोड़े की सवारी माना थी। अब ऐसे में या तो मैं जाती या फिर शतेश। फिर तय हुआ कि छोड़ो फिर कभी ,अभी अब घर को निकलते हैं।

घर आने से पहले आपको बता दूँ कि यहाँ तक पहुँचने का रास्ता बड़ा ख़ूबसूरत है। वहीं मेरा पसंदीदा कंट्रीसाइड , छोटी सड़के, खेत-खलिहाल, जीव-जानवर और रास्ते में मिला एक क़ब्रिस्तान। हमें जाने वक़्त एक शव यात्रा भी मिली। हम क़ब्रिस्तान के थोड़ी हीं दूर थे। मैंने शतेश को बोला भी की चलो देखते है पर उधर मुड़ने का रास्ता कहीं दिख नही रहा था।  क़रीब बीस मिनट के बाद के मोड़ आया तब तक हुआ कि छोड़ो अब और हम पार्क पहुँच गए।

तो चलिए तस्वीरों के ज़रिए सैर पर निकलते हैं,

Monday 24 June 2019

इंद्रधनुष और प्रेम का पुल !!!

तीसरी  मंज़िल  की खिड़की और पीछे हम दोनो। काँच के इस तरफ़ से चार आँखे नीचे की तरफ़ देख रहीं थी। एक की नज़र जहाँ कार पर थी वहीं दूसरे की नज़र उसके पास खड़े दो लोगों पर। दो ऐसे लोग जो विदा के इस पल को सह नही पा रहें थे। बार-बार एक दूसरे से गले मिल रहें थे, एक दूसरे को चूम रहे थे।

मैं उनके इस एकांत की अकेली गवाह नही थी। उनके साथ एक तीसरी महिला और पूरा परिवेश था , जो उनके विदा से दुखी हो रहा था। तभी तो कुछ पल के लिए बदली सी घिर आई थी। उनके इस विदा को देख मेरा मन भी दुखी हो रहा था, वह भी कह रहा था, “ ये जो भी हों अलग ना हो”

मेरी नज़रों के नीचे एक सोलह-सत्रह साल का लड़का खड़ा था, जो  किसी महिला को जाने से पहले विदा दे रहा था। महिला की पीठ मेरी तरफ़ थी। ऐसे में मैं समझ नही पा रही थी कि ये किस उम्र की होगी। शरीर से थोड़ी ज़्यादा, हल्के लाल छोटे-छोटे केश। काली जैकेट के साथ घुटने तक की नीली पैंट में लिपटी उस महिला को लड़का बार-बार गले लगा रहा था। उसके माथे को चूम रहा था। महिला भी प्रतिरूप अपना प्यार लूटा रही थी। कभी उसके बाज़ुओं को चूम तो कभी उसके गालों को। कभी दोंनो अपने आँखों के किनारे पोंछते। बार-बार लड़का गाड़ी तक जाता फिर आकर उसे गले लगा लेता। ऐसा देख मुझे लगा ये शायद लड़के की दादी या नानी होगी।

अंतत: एक दूसरी महिला जो लड़के की माँ जैसी लग रही थी, चलने का इशारा करती है। गाड़ी से निकल कर वो दूसरी महिला को गले लगा कर, ड्राइविंग सीट पर बैठ जाती है। लड़का भी गाड़ी में बैठ जाता पर जबतक उसकी माँ शायद अड्रेस लगा रही थी तबतक वो उतर कर उस महिला को फिर से गले लगता है। उसके सिर के साथ इस बार होंठों को भी चूमता है। महिला भी वैसा हीं करती है पर ये चुम्बन देखने में कुछ ऐसा लगा जैसे किसी ने फूलों को होंठों से छुआ हो।
इसके बाद मुझे लगा, हो सकता है ये उस लड़के की दोस्त हो, प्रेमिका हो। इतना दुःख अलग होने का ओह! जाने दोनो कौन थे ? उनके बीच जो भी रिश्ता हो, बड़ा हीं पवित्र लग रहा था। इस प्रेमपूर्ण वियोग की घड़ी में मैं भी बहे जा रही थी कि, सत्यार्थ बोल पड़ा पानी-पानी।

सत्यार्थ को पानी देकर मैं यहीं सोचने लगी कि यहाँ लोग प्यार को भी कितने प्यार से करतें हैं। अपनी प्रेमिका के बालों को ऐसे सहलाते हैं जैसे वो कोई रेशम हो। उसके हाथों को अपने हाथ में ऐसे लेते हैं जैसे किसी मासूम बच्चा के हाथ हों।उसके होंठों को ऐसे चूमतें हो जैसी उसकी आत्मा को चूम रहें हो।

शायद यहीं आत्मा का वियोग इतना बढ़ा गया था कि शाम को ख़ूब बारिश हुई और एक ऐसा इंद्रधनुष उगा जो मानो मेरे नीचे के माले से लेकर उस लड़के के पड़ाव तक जुड़ गया हो। मानो इस इंद्रधनुष ने संदेश दिया हो कि मैंने सारे रंगो के पुल बना दिया है तुम्हारे लिए अब सफ़र तुम ख़ुद तय करो।




Monday 17 June 2019

प्यार की अनुमति !!!

बीते दिनों तीन ख़ूबसूरत मूवीज़ देखी। हामिद, नोटबूक और चौक एंड डस्टर। जिसमें  हामिद एक सचाई बयान करती, तो नोटबूक एक ख़ूबसूरत प्रेम कहानी। तीसरी फ़िल्म  चौक एंड डस्टर तो ज़रूर देखी जानी वाली फ़िल्म है। 
आज मैं नोटबूक के बारे में लिख रही हूँ कारण वही शाम की चाय और संगीत का नाता। तलत महमूद जी गा रहें थे,

प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी
*तू बता दे के तुझे प्यार करूँ या ना करूँ।

ठीक इसी तरह की अनुमति नोटबूक में सलमान खान की आवाज़ माँग रही थी,

मैं तारे तोड़ के लाऊं
मेरे इतने लम्बे हाथ नहीं
सबके जैसा हूँ मैं भी
कोई मुझमें अलग सी बात नहीं
हाँ मुझमें अलग सी बात नहीं 

दिल फिर भी चुप के से
ये पूछ रहा तुमसे
*तुम मुझसे ए प्यार करोगी क्या....

जब नोटबूक देख रही थी तब भी इस तरफ़ ध्यान गया था। साथ हीं संयोग कहिए या फिर कहिए “मनोज मुन्तशिर” ने “साहिर लुधियानवी” के बोल सुने होंगे और और इससे मिलता- जुलता कुछ करने की सोची होगी। आख़िर इस फ़िल्म की नायिका प्रनूतन , नूतन की पोती भी तो है। दिलचस्प बात ये की दोनो हीं गाने पानी के बीच सूट हुए हैं। 

इधर नूतन से तलत कहते है ,
मेरे ख़्वाबों के झरोखों को सजाने वाली
तेरे ख़्वाबों में कहीं मेरा गुज़र है के नहीं
पूछ कर अपनी निगाहों से बता दे मुझको
मेरी रातों के मुक़द्दर में सहर है के नहीं 
तो वही मनोज लिखते है, 
सपनों में मेरे अजनबी
धीरे से दाखिल हो कभी
गलियों गलियों तेरा किस्सा आम है
सपना ये सच कर पाऊं
मेरे ऐसे तो हालात नहीं

मतलब कुल मिला कर मुझे नोटबूक फ़िल्म तो अच्छी लगी पर इसके गाने और संगीत बार-बार मुझे दूसरे-दूसरे गानों से जोड़ रहें थे। अगर इस फ़िल्म के दूसरे गाने की बात करें तो,“नई लगदा” का पूरा संगीत ही सुना हुआ सा लगता है। साथ ही एक ही गीत में आपको  आरजीत सिंह+अदनान सामी+ आतिफ़ असलम सब की आवाज़ जैसा कुछ सुनने को मिलेगा, हालाँकि इनमे से किसी ने इस गीत को नही गया। 

संगीत से इतर ये फ़िल्म एक बार तो देखने लायक है। फ़िल्म के नायक, नायिका नए ज़रूर हैं पर कही से भी ये इनकी पहली फ़िल्म नही लगती। और सबसे अच्छा तो इसकी सिनेमेटोग्राफ़ी है। कश्मीर को इतना सुंदर दिखाया है कि क्या कहूँ। बीच-बीच में मन कर रहा था कि अगली ट्रिप काश कश्मीर की हो जाती।

नोट:-फ़िल्म को आए समय हो गया पर मैंने अभी देखी सत्यार्थ की मेहरबानी से। सिनेमाघर में गए ढाई साल हो गए हैं:)

Thursday 6 June 2019

एल्विस प्रेस्ली !!!

जैसा की मैंने पिछले दिनों लिखा था कि, पेंसाकोला हमलोग रुकते-रुकाते जा रहें थे। यू एस स्पेस एण्ड रोकेट साइंस से निपटने के बाद हमलोग मिसीसिपी “टूपेलो” के लिए निकल पड़े। निकलने से पहले आपको बताती चलूँ कि यहाँ जाने का शतेश का मन नही था। प्रमुख कारण हमें थोड़ा अलग रूट लेना होता और इससे लगभग ढाई घंटे की दूरी बढ़ जाती। ख़ैर ना जाने के शतेश के कई बहाने पानी की तरह बह गए और हम निकल पड़े इस संगीतमय यात्रा पर।

ये जो जगह है यहाँ कभी गायक “एल्विस प्रेस्ली” का जन्म हुआ था। संगीत के राजा कहे जाने वाले प्रेस्ली को पहली बार मैंने आज से पाँच साल पहले सुना था। इनको सुनने के पीछे भी एक कहानी है। हुआ यूँ कि, आपको मेरी दोस्त डेजी तो याद होगी हीं। अरे हाँ वहीं -वहीं जिसकी चिट्ठी का ज़िक्र मैंने कुछ महीने पहले किया था। वहीं पोस्टकार्ड जिसपर एल्विस की तस्वीर छपी थी।
हाँ ,तो जब हमलोग प्रिंसटन में आमने-सामने रहते, हमारी ख़ूब दोस्ती हो गई थी। ऐसे में मैं कभी उसके घर तो वो कभी मेरे। एक शाम उसकी बेटी मुझे पिज़्ज़ा खाने को बुलाने आई। पाँच -छः क़दम की दूरी नाप कर मैं उसके घर में दाख़िल। पिज़्ज़ा बनने-बनने को था और स्पीकर पर एल्विस जी गा रहें थे,
“लव मी टेंडर, लव मी लोंग
टेक मी टू योर हार्ट, फ़ोर इट्स देर दैट आइ बिलोंग
एण्ड विल नेवर पार्ट”

मुझे बहुत अच्छा लगा ये गीत और डेज़ी से पूछ बैठी कि ये किसने गया है? उसने फिर इनके बारे में बताया और फिर घर आकर मैंने इस गाने को घिस दिया। बाद में कुछ और गाने सुने पर ये मन को ज़्यादा भाया। अरे नही -नही दो और इनके गाना अच्छे लगे। लिंक पोस्ट के कोम्मेंट में लगा होगा, सुनने की इक्षा होगी तो सुनिएगा नही तो क्या आगे बढ़िए ....

हाँ तो इनके बारे में ज़्यादा जानकारी आप गूगल बाबा से प्राप्त कर सकतें है, मैं आपको बस यात्रा और पड़ाव तक पहुँचा कर कुछ झलक दिखा दूँगी।

जैसा कि मुझे सिटी से ज़्यादा कंट्री साइड पसंद है तो मैं बाहर के नज़ारों में व्यस्त होती कि इससे पहले शतेश टोकते हैं, ये बताओ कि तुम इंडिया में कितने साल रही ? तुम्हारा पसंदीदा गायक कौन? उनका जन्म कहाँ? और तोप सवाल की तुम वहाँ गई हो क्या ?
इन सारे सवाल का जबाब उन्हें मालूम था फिर भी तोप सवाल से पहले भाव-भंगिमा तो बनानी पड़ती हैं ना।

मैंने कहा अब जब तुम मान ही गए हो चलने को फिर खामखां इतने सवाल। शतेश हँसते हुए बोले, नही मैं सच में जानना चाहता हूँ कि मोहम्मद रफ़ी का जन्म कहाँ हुआ है। अगली बार भारत गए तो तुम्हें वहाँ ले चलने की कोशिश करूँगा। मैं इतनी ख़ुश हुई इस बात से कि शतेश कि बाँहें चूम ली। पीछे बैठ कर बाँह तक हीं जा सकतें है।

इस तरह मैंने रफ़ी और किशोर कुमार के जन्मस्थल तो बताए पर मुकेश का मुझे मालूम ना था। तुरंत गूगल किया और मालूम चला कि अरे ये तो दिल्ली है।
फिर हमलोग के बात करने का टॉपिक सम्मान और किसी भी चीज़ को कैसे टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाया जाए पर भटक गया। बीच-बीच में खेतों की लाल मिट्टी मेरा ध्यान खिंच रही थी।

हम अपने पड़ाव तक पहुँच चुकें थे। सफ़ेद रंग के इनके घर को देखने का टिकेट था $8 अगर आप इसके साथ इनकी फ़िल्म और टूर लेना चाहतें है तो इसकी क़ीमत $27
 हमारे पास समय की कमी थी तो हमने घर का टूर हीं सिर्फ़ लिया और आस-पास घूमे। वैसे गाइड की ज़रूरत नही थी हर जगह सारी चीज़ें लिखीं हुई थी। घर में एक गाइड पहले से था जो दो कमरे के घर के बारे मे बता रहा था।

तो चलिए तस्वीरों के ज़रिए आप भी निकलिए सैर पर;


Monday 3 June 2019

पेंसाकोला !!!!

जैसा की मैंने वोट काउंटिंग के दिन बताया था कि स्वामी का मन बड़ा प्रसन्न है, यात्रा हमारी सुखद होने वाली है और ऐसा ही हुआ। तीन दिन की छुट्टी थी। हमने “फ़्लॉरिडा के पेंसाकोला बीच “ जाने का प्लान किया। हमारे यहाँ से पेंसाकोला की दूरी 750 माइल है। इतनी दूरी गाड़ी से तय करने में कुछ साढ़े दस से ग्यारह घंटे लगते। हमने ने रुकते-रुकाते जाने का प्लान बनाया था।
 शुक्रवार की दोपहर से यात्रा प्रारम्भ हुई। बीच में एक -आध छोटे कोफ़ी -पानी ब्रेक के बाद, हमलोग छः घंटे की दूरी पर “हनट्सविल अलबमा” में रात को रुकें। हमने होटेल और आस-पास घूमने की जगह पहले से हीं बूक और तय करके रखा था।
नश्विल में रुक कर हमने खाना पैक करा लिया था। होटेल का गुजराती मालिक जबतक खाना पैक होता तबतक मोदी का गुणगान करने लगा। बिहार की राजनीति जाननी चाही और स्वामी शुरू हो गए। मैं इसी बीच सत्यार्थ को वाशरूम से लेकर आ गई। वार्ता अभी चल हीं रहा था, खाना आया नही था तो माँ-बेटा रेस्टरों के बाहर टहलने लगें। थोड़ी देर में खाना लेकर स्वामी प्रकट हुए और आगे की यात्रा प्रारम्भ हुई।

हनट्सविल होटेल पहुँच कर फ़्रेश हुए, खाना खाया और सो गए। हाँ एक और बात बतानी रह गई इस होटेल का मालिक एक इंडियन ही था। रेसेप्शन काउंटर पर एक गुजराती भाई था। अपने परिवार यानी एक बेटे और पत्नी के साथ होटेल के एक कमरे में हीं रहता था। हमें देख कर बड़ा ख़ुश हुआ। अपने बीबी-बच्चे से मिलाया। उसका बेटा सत्यार्थ से दो मन्थ हीं बड़ा था पर देखने में चार साल के बच्चे जैसा था। सत्यार्थ के बाल को देख साह भाई ने बताया कि दो दिन पहले हीं उन्होंने अपने बेटे का मुंडन किया था। घर पर हीं साह भाई ने बाल को सफ़ाचट कर दिया था। बड़ा हीं प्यारा बेटा था उनका। पर हम थके थे तो ज़्यादा समय उन्हें नही दे पाए।
 रूम में जाने से पहले हमने सत्यार्थ के लिए मिल्क माँगा ( अमूमन यहाँ के सभी होटेल में छोटे बच्चे के लिए मिल्क मिल जाता  है। कुछ जगहों पर आप पे करके ले सकतें है पर लगभग कई बार फ़्री हीं मिल जाता है) मिल्क के साथ वे सेब और ओटमिल का एक पैकेट लेते आए। साथ ही कोई ज़रूरत हो तो बताने को कहा।

होटेल का कमरा ठीक-ठाक ही था पर नल में दिक्कत थी। अभी वे हमारे कमरे के नल को ठीक हीं कर रहें थे कि, किसी दूसरे कमरे से स्मोक लाइट की प्रोब्लम आई। उनको आता हूँ कह कर साह भाई हमारे बाथरूम का नल ठीक करने लगे। साथ हीं अपनी व्यथा बताई की पूरे होटेल की ज़िम्मेदारी उनके ज़िम्मे हीं है। रेस्पशन से लेकर मेंटेंस तक। लोग रात को तीन-तीन बजे जगा देते हैं।

उनके जाने के बाद हमने थोड़ी देर उनके बारे में खाते हुए चर्चा की कि, यहाँ रहने के लिए लोग कई तरह के प्रयोग , तिडकम अपनाते हैं । उसमें भी ज़्यादा संख्या गुजराती, साउथ इंडियन और पंजाबियों की है। सोचिए होटेल के एक रूम में कैसे साह भाई अपने परिवार के साथ जीवन बिता रहें है।

सुबह जब हम नास्ते के लिए गए तो साह भाई की पत्नी ढोकला बना रही थी। होटेल के किचन का उपयोग वो अपने घर के काम के लिए भी करती थी। कारण रूम में तो गैस कनेक्शन है नही।फिर पता चला कि किसी इंडियन दुकान में वे ढोकला , थेपला और नमकीन बना कर देती है। पर हमें तो वही वेफल और ओट मिला। नास्ता के बाद हम निकल पड़े “यू एस स्पेस रोकेट साइन्स सेंटर”  होटेल से ये दस मिनट की दूरी पर था।

स्पेस रोकेट साइन्स सेंटर , अलबमा और नासा ह्यसटन के बारे में फिर कभी लिख कर तस्वीरें लगाऊँगी। आज की तस्वीर पेंसाकोला बीच की। जो यहाँ से चार घंटे की दूरी पर है। इस बीच हमलोग एक और जगह गये जो अगले पोस्ट में दिखेगा। फ़िलहाल  आज आपलोग समुन्दर तट की सैर करें ,काहे की गरमी बहुत है:)
तस्वीरें देखें आगे मैं यहाँ के बारे और लिखूँगी।