Thursday, 6 June 2019

एल्विस प्रेस्ली !!!

जैसा की मैंने पिछले दिनों लिखा था कि, पेंसाकोला हमलोग रुकते-रुकाते जा रहें थे। यू एस स्पेस एण्ड रोकेट साइंस से निपटने के बाद हमलोग मिसीसिपी “टूपेलो” के लिए निकल पड़े। निकलने से पहले आपको बताती चलूँ कि यहाँ जाने का शतेश का मन नही था। प्रमुख कारण हमें थोड़ा अलग रूट लेना होता और इससे लगभग ढाई घंटे की दूरी बढ़ जाती। ख़ैर ना जाने के शतेश के कई बहाने पानी की तरह बह गए और हम निकल पड़े इस संगीतमय यात्रा पर।

ये जो जगह है यहाँ कभी गायक “एल्विस प्रेस्ली” का जन्म हुआ था। संगीत के राजा कहे जाने वाले प्रेस्ली को पहली बार मैंने आज से पाँच साल पहले सुना था। इनको सुनने के पीछे भी एक कहानी है। हुआ यूँ कि, आपको मेरी दोस्त डेजी तो याद होगी हीं। अरे हाँ वहीं -वहीं जिसकी चिट्ठी का ज़िक्र मैंने कुछ महीने पहले किया था। वहीं पोस्टकार्ड जिसपर एल्विस की तस्वीर छपी थी।
हाँ ,तो जब हमलोग प्रिंसटन में आमने-सामने रहते, हमारी ख़ूब दोस्ती हो गई थी। ऐसे में मैं कभी उसके घर तो वो कभी मेरे। एक शाम उसकी बेटी मुझे पिज़्ज़ा खाने को बुलाने आई। पाँच -छः क़दम की दूरी नाप कर मैं उसके घर में दाख़िल। पिज़्ज़ा बनने-बनने को था और स्पीकर पर एल्विस जी गा रहें थे,
“लव मी टेंडर, लव मी लोंग
टेक मी टू योर हार्ट, फ़ोर इट्स देर दैट आइ बिलोंग
एण्ड विल नेवर पार्ट”

मुझे बहुत अच्छा लगा ये गीत और डेज़ी से पूछ बैठी कि ये किसने गया है? उसने फिर इनके बारे में बताया और फिर घर आकर मैंने इस गाने को घिस दिया। बाद में कुछ और गाने सुने पर ये मन को ज़्यादा भाया। अरे नही -नही दो और इनके गाना अच्छे लगे। लिंक पोस्ट के कोम्मेंट में लगा होगा, सुनने की इक्षा होगी तो सुनिएगा नही तो क्या आगे बढ़िए ....

हाँ तो इनके बारे में ज़्यादा जानकारी आप गूगल बाबा से प्राप्त कर सकतें है, मैं आपको बस यात्रा और पड़ाव तक पहुँचा कर कुछ झलक दिखा दूँगी।

जैसा कि मुझे सिटी से ज़्यादा कंट्री साइड पसंद है तो मैं बाहर के नज़ारों में व्यस्त होती कि इससे पहले शतेश टोकते हैं, ये बताओ कि तुम इंडिया में कितने साल रही ? तुम्हारा पसंदीदा गायक कौन? उनका जन्म कहाँ? और तोप सवाल की तुम वहाँ गई हो क्या ?
इन सारे सवाल का जबाब उन्हें मालूम था फिर भी तोप सवाल से पहले भाव-भंगिमा तो बनानी पड़ती हैं ना।

मैंने कहा अब जब तुम मान ही गए हो चलने को फिर खामखां इतने सवाल। शतेश हँसते हुए बोले, नही मैं सच में जानना चाहता हूँ कि मोहम्मद रफ़ी का जन्म कहाँ हुआ है। अगली बार भारत गए तो तुम्हें वहाँ ले चलने की कोशिश करूँगा। मैं इतनी ख़ुश हुई इस बात से कि शतेश कि बाँहें चूम ली। पीछे बैठ कर बाँह तक हीं जा सकतें है।

इस तरह मैंने रफ़ी और किशोर कुमार के जन्मस्थल तो बताए पर मुकेश का मुझे मालूम ना था। तुरंत गूगल किया और मालूम चला कि अरे ये तो दिल्ली है।
फिर हमलोग के बात करने का टॉपिक सम्मान और किसी भी चीज़ को कैसे टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाया जाए पर भटक गया। बीच-बीच में खेतों की लाल मिट्टी मेरा ध्यान खिंच रही थी।

हम अपने पड़ाव तक पहुँच चुकें थे। सफ़ेद रंग के इनके घर को देखने का टिकेट था $8 अगर आप इसके साथ इनकी फ़िल्म और टूर लेना चाहतें है तो इसकी क़ीमत $27
 हमारे पास समय की कमी थी तो हमने घर का टूर हीं सिर्फ़ लिया और आस-पास घूमे। वैसे गाइड की ज़रूरत नही थी हर जगह सारी चीज़ें लिखीं हुई थी। घर में एक गाइड पहले से था जो दो कमरे के घर के बारे मे बता रहा था।

तो चलिए तस्वीरों के ज़रिए आप भी निकलिए सैर पर;


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