बीते दिनों तीन ख़ूबसूरत मूवीज़ देखी। हामिद, नोटबूक और चौक एंड डस्टर। जिसमें हामिद एक सचाई बयान करती, तो नोटबूक एक ख़ूबसूरत प्रेम कहानी। तीसरी फ़िल्म चौक एंड डस्टर तो ज़रूर देखी जानी वाली फ़िल्म है।
आज मैं नोटबूक के बारे में लिख रही हूँ कारण वही शाम की चाय और संगीत का नाता। तलत महमूद जी गा रहें थे,
प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी
*तू बता दे के तुझे प्यार करूँ या ना करूँ।
ठीक इसी तरह की अनुमति नोटबूक में सलमान खान की आवाज़ माँग रही थी,
मैं तारे तोड़ के लाऊं
मेरे इतने लम्बे हाथ नहीं
सबके जैसा हूँ मैं भी
कोई मुझमें अलग सी बात नहीं
हाँ मुझमें अलग सी बात नहीं
दिल फिर भी चुप के से
धीरे से दाखिल हो कभी
गलियों गलियों तेरा किस्सा आम है
सपना ये सच कर पाऊं
मेरे ऐसे तो हालात नहीं
मतलब कुल मिला कर मुझे नोटबूक फ़िल्म तो अच्छी लगी पर इसके गाने और संगीत बार-बार मुझे दूसरे-दूसरे गानों से जोड़ रहें थे। अगर इस फ़िल्म के दूसरे गाने की बात करें तो,“नई लगदा” का पूरा संगीत ही सुना हुआ सा लगता है। साथ ही एक ही गीत में आपको आरजीत सिंह+अदनान सामी+ आतिफ़ असलम सब की आवाज़ जैसा कुछ सुनने को मिलेगा, हालाँकि इनमे से किसी ने इस गीत को नही गया।
संगीत से इतर ये फ़िल्म एक बार तो देखने लायक है। फ़िल्म के नायक, नायिका नए ज़रूर हैं पर कही से भी ये इनकी पहली फ़िल्म नही लगती। और सबसे अच्छा तो इसकी सिनेमेटोग्राफ़ी है। कश्मीर को इतना सुंदर दिखाया है कि क्या कहूँ। बीच-बीच में मन कर रहा था कि अगली ट्रिप काश कश्मीर की हो जाती।
नोट:-फ़िल्म को आए समय हो गया पर मैंने अभी देखी सत्यार्थ की मेहरबानी से। सिनेमाघर में गए ढाई साल हो गए हैं:)
आज मैं नोटबूक के बारे में लिख रही हूँ कारण वही शाम की चाय और संगीत का नाता। तलत महमूद जी गा रहें थे,
प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी
*तू बता दे के तुझे प्यार करूँ या ना करूँ।
ठीक इसी तरह की अनुमति नोटबूक में सलमान खान की आवाज़ माँग रही थी,
मैं तारे तोड़ के लाऊं
मेरे इतने लम्बे हाथ नहीं
सबके जैसा हूँ मैं भी
कोई मुझमें अलग सी बात नहीं
हाँ मुझमें अलग सी बात नहीं
दिल फिर भी चुप के से
ये पूछ रहा तुमसे
*तुम मुझसे ए प्यार करोगी क्या....
जब नोटबूक देख रही थी तब भी इस तरफ़ ध्यान गया था। साथ हीं संयोग कहिए या फिर कहिए “मनोज मुन्तशिर” ने “साहिर लुधियानवी” के बोल सुने होंगे और और इससे मिलता- जुलता कुछ करने की सोची होगी। आख़िर इस फ़िल्म की नायिका प्रनूतन , नूतन की पोती भी तो है। दिलचस्प बात ये की दोनो हीं गाने पानी के बीच सूट हुए हैं।
इधर नूतन से तलत कहते है ,
मेरे ख़्वाबों के झरोखों को सजाने वाली
तेरे ख़्वाबों में कहीं मेरा गुज़र है के नहीं
पूछ कर अपनी निगाहों से बता दे मुझको
मेरी रातों के मुक़द्दर में सहर है के नहीं
*तुम मुझसे ए प्यार करोगी क्या....
जब नोटबूक देख रही थी तब भी इस तरफ़ ध्यान गया था। साथ हीं संयोग कहिए या फिर कहिए “मनोज मुन्तशिर” ने “साहिर लुधियानवी” के बोल सुने होंगे और और इससे मिलता- जुलता कुछ करने की सोची होगी। आख़िर इस फ़िल्म की नायिका प्रनूतन , नूतन की पोती भी तो है। दिलचस्प बात ये की दोनो हीं गाने पानी के बीच सूट हुए हैं।
इधर नूतन से तलत कहते है ,
मेरे ख़्वाबों के झरोखों को सजाने वाली
तेरे ख़्वाबों में कहीं मेरा गुज़र है के नहीं
पूछ कर अपनी निगाहों से बता दे मुझको
मेरी रातों के मुक़द्दर में सहर है के नहीं
तो वही मनोज लिखते है,
सपनों में मेरे अजनबीधीरे से दाखिल हो कभी
गलियों गलियों तेरा किस्सा आम है
सपना ये सच कर पाऊं
मेरे ऐसे तो हालात नहीं
मतलब कुल मिला कर मुझे नोटबूक फ़िल्म तो अच्छी लगी पर इसके गाने और संगीत बार-बार मुझे दूसरे-दूसरे गानों से जोड़ रहें थे। अगर इस फ़िल्म के दूसरे गाने की बात करें तो,“नई लगदा” का पूरा संगीत ही सुना हुआ सा लगता है। साथ ही एक ही गीत में आपको आरजीत सिंह+अदनान सामी+ आतिफ़ असलम सब की आवाज़ जैसा कुछ सुनने को मिलेगा, हालाँकि इनमे से किसी ने इस गीत को नही गया।
संगीत से इतर ये फ़िल्म एक बार तो देखने लायक है। फ़िल्म के नायक, नायिका नए ज़रूर हैं पर कही से भी ये इनकी पहली फ़िल्म नही लगती। और सबसे अच्छा तो इसकी सिनेमेटोग्राफ़ी है। कश्मीर को इतना सुंदर दिखाया है कि क्या कहूँ। बीच-बीच में मन कर रहा था कि अगली ट्रिप काश कश्मीर की हो जाती।
नोट:-फ़िल्म को आए समय हो गया पर मैंने अभी देखी सत्यार्थ की मेहरबानी से। सिनेमाघर में गए ढाई साल हो गए हैं:)
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