Saturday, 7 September 2019

दोस्तों आज मैं आपको ऐसी जगह ले जाने वाली हूँ जहाँ जा कर आप थोड़ी देर के लिए निराशा से बाहर आ जायेंगे। हालाँकि इस जगह और जिस चीज़ को मैं देखने पहुँची थी इसके बारे में लोगों की अनभिज्ञता जान कर लगा ये सब कुछ पल का शोर-शराबा है। बाद- बाक़ी कुछ हीं लोग इसके बारे में तन्मयता से सोचते है।

ये जगह इंडियापोलिस के स्टेट कैपिटल बिल्डिंग का पार्क है। जहाँ पर आपको ढूँढने पर मिलेगा “मून ट्री”
जी हाँ मून ट्री। इसका क़िस्सा कुछ यूँ है-

जब  “अपोलो 14 मिशन 1971”  में किया जा रहा था तब अंतरिक्ष यात्री “स्टूअर्ट रोज़ा”  अलग -अलग प्रजाति के कुछ 500 पड़ो के बीज लेकर चाँद पर गए थे। वैज्ञानिक दल ये देखना चाह रहें थे कि माइक्रोग्रेविटी का पेड़-पौधों पर क्या प्रभाव पड़ता है। 
चंद्रमा से आने के बाद इन कुछ बचे हुए 100 बीजों का वैज्ञानिको ने अध्यन किया और फिर 1975-1976  के बीच इनको अंकुरुरित किया जाने लगा। फिर बाद में इन पौधों को जाँच परख कर अमेरिका के भिन्न राज्यों में भेजा। अमेरिका के अलावा  दूसरे देशों को भी उपहार के रूप में कुछ पेड़ दिए गए । 

अमेरिका के जिन राज्यों में ये पेड़ पहुँचे  उसमें एक राज्य इंडियापोलिस भी है। हालाँकि दुःख की बात ये है कि, 238,855 miles का सफर कर आए इन पेड़ों को अब कम लोग जानते है। यहाँ तक कि बड़ी मुश्किल से हम इसे ढूँढ पाए। ढूँढने से पहले मैं कुछ 10-11 लोगों से इसका पता पूछ चुकी थी। पर निराशा मिली। ऑनलाइन मैप से उस जगह तो पहुँच गए थे पर सामने खड़े चार पेड़ों ने कन्फ़्यूज़ कर दिया था कि, इनमे से कौन सा मून ट्री है। 

फिर यहाँ भी मैंने आते-जाते कुछ लोगों से पूछा पर किसी ने भी “मून ट्री” जैसा कुछ नही सुना था। एक ग्रूप जो स्टेट बिल्डिंग देखने आया था, मुझे लगा उसके गाइड को तो मालूम हीं होगा। दौड़ कर मैं उसके पास गई पर मालूम हुआ उनका कोई गाइड हीं नही था वे लोग किसी कैम्प के साथी थे और ख़ुद ही घूम रहे थे। उन्मे से एक लड़की ने झट से फोन निकाला और मून ट्री गूगल करने लगी तो मैंने कहा इसके बताए अनुसार मैं यहाँ तक पहुँच चुकी हूँ धन्यवाद आपका। अब लगता है आगे का रास्ता मुझे ख़ुद हीं तय करना होगा। वो मुस्कुरा कर बोली बेस्ट ओफ लक। और हाथ हिलाते हुए विदा के साथ मैं दौड़ कर पति और पुत्र के पास पहुँची। 

तबतक शतेश कुछ वीडीयो देख रहे थे। ये वीडीयो मून ट्री का था। जिसको तीन-चार बार देख कर हमने उन चार पेड़ों में से इस “चिनार” के पेड़ को ढूँढ लिया। और इस तरह हमारा मिशन मून ट्री पूरा हुआ।

कौन जाने “विक्रम” का भी सम्पर्क इसरो से हो जाए। अगर ना भी हो तो हमारे वैज्ञानिकों ने कोशिश तो की।होल-हल्ला से इतर मेरा मन रो पड़ा इसरो के वैज्ञानिको को रोता देख। उनको कैसा लगता होगा उसका अनुमान हम एक पोस्ट या चार बातों से नही लगा सकतें।

तो चलिए इसी के साथ आप कम से कम मून ट्री के दर्शन कर लीजिए। क्या पता कल ये ना रहें और हमें मालूम हीं ना हो की कहीं मून ट्री भी था।

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