बीते शुक्रवार को राधाष्टमी थी। पर एक भी पोस्ट इस सिलसिले मे सोशल मीडिया पर नही दिखा। ये कुछ नया नही था मेरे लिए। राधा को लोग कृष्णा अष्टमी के दिन हीं याद कर के कोटा पुरा कर लेते। इसी तरह रामनवमी को राम के साथ सीता का भी खाना पूर्ति कर दिया जाता है। सीता के जन्म पर तो बहुत ही कम लोग उत्सव मनाते है। नेपाल और बिहार के कुछ राज्यों में, अपनी बेटी होने का दवा कर पूजन कर लिया जाता है। उसी तरह मथुरा-वृंदावन- बरसाना के साथ इस्कौन राधा का जन्म मना कर अपना धर्म भर निभा लेता है। तभी तो जहाँ कृष्ण के जन्म पर दिन-रात का जश्न होता है राधा का जन्म को दोपहर तक निपटा लिया जाता।
वहीं कई बार देखती हूँ कि, कृष्ण के जन्म पर छोटी-छोटी बच्चियों को भी कृष्णा बनाया जाता। इसमें कोई बुराई नही, अच्छा हीं लगता हैं देख कर पर क्या उनके माता-पिता को राधा की याद नही रहती ? या फिर उनको कृष्ण के व्यक्तित्व से ज़्यादा प्यार है। या वे नही चाहते कि उनकी बेटी का जीवन राधा जैसा हो। या फिर उन्हें नटखट कान्हा, जिसका सारा गोकुल दीवाना था, वैसी हीं छवि कहीं ना कहीं अपनी बेटी में पाना चाहते हो।
अगर ऐसा है तो फिर, उसी बेटी के एक -दो दीवाने को भी वे कैसे नही बरदस्त कर पाते। फिर क्यों उस बेटी को राधा जैसा दंड दे दिया जाता है?
अपने इन अजीब सवालों से अलग मुझे उन मजनुओं के बारे में ख़्याल आ रहा है, जो कृष्ण को सिर्फ़ इसलिए पूजतें हैं कि, वे प्रेम के देवता हुए। पर उन्मे से किसी ने ये नही सोचा कि, किसी के प्रेमिका को भाव नही दोगे तो वो मित्र होकर भी अपनी प्रेमिका के पीछे हीं भगेगा, तुम्हारा साथ छोड़ देगा। ये तो जग जाहिर है।
चाहें तो वें अपना ख़ुद का उदाहरण ले सकतें है।
ख़ैर, हर साल की तरह मैं त्योहार मानने के बाद पोस्ट लिख रहूँ हूँ। इस बार तो सत्यार्थ मेरा कृष्णा बना हीं नही तो राधा क्या हीं बनता। चलिए इसकी पुरानी तस्वीर हीं लगा देती हूँ। पर याद रखिए राधे के बिना श्याम आधे वाली बात....
राधे-राधे..... राधे-कृष्णा.....
वहीं कई बार देखती हूँ कि, कृष्ण के जन्म पर छोटी-छोटी बच्चियों को भी कृष्णा बनाया जाता। इसमें कोई बुराई नही, अच्छा हीं लगता हैं देख कर पर क्या उनके माता-पिता को राधा की याद नही रहती ? या फिर उनको कृष्ण के व्यक्तित्व से ज़्यादा प्यार है। या वे नही चाहते कि उनकी बेटी का जीवन राधा जैसा हो। या फिर उन्हें नटखट कान्हा, जिसका सारा गोकुल दीवाना था, वैसी हीं छवि कहीं ना कहीं अपनी बेटी में पाना चाहते हो।
अगर ऐसा है तो फिर, उसी बेटी के एक -दो दीवाने को भी वे कैसे नही बरदस्त कर पाते। फिर क्यों उस बेटी को राधा जैसा दंड दे दिया जाता है?
अपने इन अजीब सवालों से अलग मुझे उन मजनुओं के बारे में ख़्याल आ रहा है, जो कृष्ण को सिर्फ़ इसलिए पूजतें हैं कि, वे प्रेम के देवता हुए। पर उन्मे से किसी ने ये नही सोचा कि, किसी के प्रेमिका को भाव नही दोगे तो वो मित्र होकर भी अपनी प्रेमिका के पीछे हीं भगेगा, तुम्हारा साथ छोड़ देगा। ये तो जग जाहिर है।
चाहें तो वें अपना ख़ुद का उदाहरण ले सकतें है।
ख़ैर, हर साल की तरह मैं त्योहार मानने के बाद पोस्ट लिख रहूँ हूँ। इस बार तो सत्यार्थ मेरा कृष्णा बना हीं नही तो राधा क्या हीं बनता। चलिए इसकी पुरानी तस्वीर हीं लगा देती हूँ। पर याद रखिए राधे के बिना श्याम आधे वाली बात....
राधे-राधे..... राधे-कृष्णा.....
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