फ़ाइनली आज मेरी दूसरी इ -बूक, “ऐसे भी कोई करता है भला” लाइव हो गई अमेजन पर।
लाइव-ज़िन्दा...
कहने को वो आज आपलोगों के लिए ज़िन्दा हुई पर मेरे साथ वो बीते कुछ सालों से जी रही है और आगे भी जीती रहेगी।
इस बार कहानी लिखना मेरे लिए ज़्यादा कठिन था कारण, इसमें कल्पनाएँ कम रही। कल्पना करके एक इंसान स्वर्ग तक पहुँच सकता है पर जीवन के नर्क को, स्वर्ग लिखना बेहद मुश्किल है....
कई रातें ऐसी हुई की मै ठीक से सो नही पाती। एक डर हमेशा मन मे रहता, किसी को खोने देने का...बार- बार उठ कर गहरी नींद मे सोए हुए प्रेम को जगाती, “तुम ठीक हो?”
ऐसे मे “मनलहरी की सालगिरह” और फिर से शतेश ने मुझे दूसरी किताब की तरफ धकेला।
साथ ही मुझे याद आई एक मराठी फ़िल्म “फ़ाइअरब्राण्ड “ जिसमें नायिका को अपने डर से जीतने के लिए मनोचिकित्सक कहता है- अपने तकलीफ को रोज लिखो और उसे जोर से पढ़ो। इतनी बार लिखो- इतनी बार पढ़ो की वो बात आम बात लगने लगे तुम्हें। बस मैंने सोचा मै भी इसी बहाने एक किताब लिख डालूँ। कौन जाने प्यार याद रह जाए और बाक़ी सब बस कहने की बातें।
वैसे तीन सप्ताह से भी कम समय मे किताब पूरी करना अभी के लिए मुश्किल भरा रहा पर वहीं है, मेरी जिद्द कई बार मुझसे कुछ अच्छा करवा लेती है।
भाई और शतेश कहते रहे की कोई डेड लाइन थोड़े है आराम से लिख कर पोस्ट करो, पर मुझे था की ये किताब इनके जन्मदिन तक उपलोड हो जानी चाहिए। चाहे मै रात के चार बजे तक क्यों ना जगूँ। कितने आँसू क्यों ना बहाऊँ...
ख़ैर किताब आपके बीच आ गई है। अमेजन से लेकर आप इसे “के डि पी” ऐप पर पढ़ सकते है। हाँ लिंक देने से पहले एक बात उन सभी दोस्तों से कहना चाहूँगी जिन्हें, मेरी यात्रा वृतांत मे आनंद आता रहा और मुझे इसे किताब की शक्ल देने को कहते रहे। तो ये रही प्रेम -दुःख-विश्वाश-ग़ुस्से मे डूबी यात्रा वृतांत....