Sunday, 2 February 2020

मनलहरी भाग -२

मुझे ऐसे देखते देख वो बोल पड़ी ,”क्या देख रहे हो ? चलो पैर धो लो ......ऐसे किसी को घूरना अच्छी बात नही ।”

मेरे कान उसकी इस बात से गरम हो गए। आँखें झुक गई। जीभ सूखने को हो आए। मै अनजाने श्राप के डर से भीतर तक काँप गया।
क्या मेरी आँखो पर अब पाबंदी की पट्टी बाँध दी जाएगी ? 
नही -नही…….
एक मेरी आँखें ही तो है जो बोलती है वरना  “हम्म” से ज़्यादा मेरी जीभ जानती भी क्या है ? 
मेरे डर को वो शायद समझ गई। मुझे कोई सज़ा, कोई श्राप ना देते हुए मेरे साथ घाट तक आई। ठीक उसी जगह पर जहाँ कुछ देर पहले जीवन से भरे उसके पैर मसान को सींच रहे थे।

आज कुछ तो था जो आस -पास सब अलग लग रहा था। सब कुछ अलग हो रहा था ये सोचते हुए मैंने अपना पैर पानी में डाला। 
एक चुभन सी हुई......
पर ये चुभन मेरे घाव की नही हो सकती। ये तो मसान के जल को जीवन रहित बनाने की चुभन है या फिर मेरे पनिले लाल ख़ून से मसान को अपवित्र करने की चुभन है।

आह रे मसान ! तु सच में कभी अमृत तो कभी विष पीती है। तुझे जो मिलता है उसे ख़ुद में समेट लेती है फिर मुझे क्यों शिकायत तुमसे ?
मुझसे थोड़ी दूर बैठी वो पूछ रही है; “ख़ून निकलना बंद हुआ ?” 
मै अपने गहरे भूरे पैर को देखता हूँ। सफ़ेद बालू पर जमा वो मसान के भीतर से मोटा लग रहा है। डर से भरा मेरा मन उन्हें हिलाता है ये सोच कर कि, कही मेरा अंगूठा ख़ून की कमी से मर तो नही गया.... 

टेढ़ी-मेढ़ी ऊँगलियाँ कुछ बालू में धंसी तो कुछ बालू पर उतराई। 
आहहऽऽऽ.... जय हो बरहम बाबा, जय हो काली माई मेरा अंगूठा तो बच गया है, कह कर मैं एक गहरी साँस लेता हूँ।

इधर मेरा साँस लेना और उधर उसका जाना अब तय हो चुका था ......

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