Friday, 7 February 2020

द लॉब्स्टर !!!!

एक फ़िल्म है “द लॉब्स्टर” बेकार बैकग्राउंड म्यूज़िक के साथ बनी ये फ़िल्म थोड़ी डिप्रेसिंग भी है पर अगर थोड़ा टिक गए तो मज़ा आने लगेगा। अगर ढूँढे तो इसमें आपको ज़बरदस्त ह्यूमर भी मिलेगा। आप इसी सोच के साथ मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते है कि, हे महादेव ! अगर इसका मेल नही मिला तो ये तो कुत्ता बन जाएगा।

ख़ैर , आज इस फ़िल्म के याद आने के पीछे का कारण “प्रेम दिवस” का आगमन है। जैसे गुलाब दिन पर गुलाब ना मिलने पर कई मासूम, कोमल हृदय  दुःख रो रहे होंगे, वैसे ही जैसे-जैसे खिलवना दिन, लेमनचूस दिन आएगा लोग की बेचैनी बढ़ती जाएगी। गले मिलन दिवस और प्रेम प्रदर्शन दिवस पर तो ये अपने चरम पर होगी।

क्या चरम पर होगी ?

वहीं दुःख और बेचैनी.....
पर क्यों भला ?

अरे भाई  कुछ तो हमारे ऑक्सीटोसीन हार्मोन का कमाल है आ कुछ सामाजिक प्रतिस्ठा का सवाल। इस में फँसी बेचारी प्रेमी जान....
फ़लाँ को ये मिला- चिलना को वो मिला, साथे-साथे बोयफ्रैंडो मिला गर्लफ़्रेंडो मिली आ एक हम है जो ताकते रह गए इसी दुःख -संताप से इतना ख़ूबसूरत महीना कलपते बीत जाता है। साला ई प्रेम ना हुआ डेड लाइन हो गया।

ठीक इस फ़िल्म की तरह की आपको “45दिन” के अंदर अपने मेल का पार्टनर खोजना है नही तो मामला गड़बड़ा जाएगा। आपको इंसान से जानवर बनना होगा।

वैसे एक तरह से सही ही तो दिखाया गया है इस फ़िल्म में। एक तय समय में अपने जैसा जीवन साथी चाहिए वरना आप समाज में रहने के लायक नही। भले उसमें प्रेम हो ना हो रूप-रंग मिलनी चाहिए, पसंद मिलनी चाहिए। बाक़ी तो मामला वही है “बिना प्रेम के आप दोंनो हीं सूरतों में जानवर बन जाते हो।”


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