Wednesday 22 December 2021

कोरोना डोज़

देह ऐसा हुआ है मानो वीपिंग चेरी ट्री। हल्की गुलाबी फूलों की लड़ी सी झुकती, पसरती,  टूटती और हौले से बिखरती… तनिक भी हाथ इधर-उधर करो और मानो सारे फूल बिखर जाए। फूलों को समेटती हाथ में पड़े किताब को सुला देती हूँ। एक किताब जो बोझिल पलो में भी मुस्कान बिखेर जाता है। 

डॉक्टर तुलसीराम , मुर्दहिया में लिखते है , “ अरे रामा परि गय बलुआ रेत, चलब हम कईसे ये हरी” यह लोकगीत अकाल के दिनों में खेती करती कुछ महिलायें गा रही है। यह एक ऐसी किताब जो मैं जब-तब पलटती रहती हूँ। ख़ास कर तब, जब कुछ और पढ़ने का मन ना हो और कुछ करने को भी ना हो। पर आज इसे भी पढ़ कर माथा भारी हो रहा है। 

गले में हल्की ख़राश सी होती है। चाय पीने की इक्षा हो रही है पर रात के तीन बजे चाय कौन बनाए ?  ऊह आह के साथ जलते हुए तलवों को कार्पेट पर रखती हूँ। नज़र पैरों के नाख़ूनों पर अटक गई। essie forever yummy का लाल रंग नाख़ूनों पर धारी सी रह गई है। कितना वक्त हो गया ना पैरों पर ध्यान दिए। ठीक होते ही पहले पैरों की सेवा होगी, बुदबुदाते हुए मैं रसोई की तरफ़ बढ़ चली। 

कॉफी उतनी पसंद ना होते हुए भी आसानी की वजह से बना ली गई। उसकी हल्की कड़वी चुस्कियाँ लेते हुए मैं अपनी पहली किताब के नायक से जा टकराई। नायक, जिसे अपने बुख़ार से, अपनी ताप से प्रेम हो गया था… बुख़ार का इंतज़ार वह ऐसे करता जैसे कोई अपनी प्रेमिका का इंतज़ार करता हो। तभी तो वह “मनलहरी” था । 

अचानक हँसी आई, तब यह किरवना, कोरोना जो नही था। यह होता तो क्या नायक को इसके रूप से वैसा ही प्रेम होता जैसा टाईफ़ाईड के साथ हुआ ?  यूँ तो कई बार टाईफ़ाईड भी जानलेवा है और कई बार कोरोना के जीव भी अपना शिकार छोड़ देते है। 

ख़ैर, देह की ऐठन में भी दिमाग़ बिना ऐंठे सोच-विचार कर रहा है, कमाल है ना। यह दिमाग़ ही तो है जो बीमार पड़े किट्स से कविताएँ लिखवा लेता है। जॉर्ज ओरवेल से 1984 लिखवा लेता है। काफ़्का से चिट्ठियों द्वारा बात करवा लेता है और वर्जिन्या वुल्फ़ से , “अ रूम ओफ़ वंज़ ओन” लिखवा सकता है…

ना कॉफी ख़त्म हुई ना सोच-विचार कि मेरे इश्क़ तोशू के रोने की आवाज़ कानों में पड़ी। उफ़्फ़ ! एक माँ तबियत से बीमार भी नही पड़ सकती। तब तो और भी नही जब नवजात का जीवन छाती से सींचा जा रहा हो। 

कॉफी सोफ़े के साइड टेबल पर अधूरी रह गई… माँ बच्चे का डाइपर चेंज करने लगी। भला हो “मैरिऑन डोनवेंन” का जिन्होंने ने डिस्पोजिबल डाइपर बनाई। 

भला से याद आई आज की नर्स। जाने किस सोच में पड़ी उस सुंदरी ने सुई को भाला समझ घोंप दिया। भारत में होती तो बूँद-बूँद रिसता खून कब का मुँहा-मूही एक बोतल में तब्दील हो गया होता, सोच कर हाथ का दर्द छन भर को ग़ायब और चेहरे पर मुस्कान खिल गई। 

PS - यह कथा, कोरोना के दूसरे डोज़ का असर है। वैसे मैंने इस साल दो चमत्कारी काम किया। पहला तो प्लेट में दीया रख तस्वीर खिंचा ली जो इतनी उम्र बीतने के बाद अब तक नही ली गई थी और दूसरा सुई का आनंद लेते हुए, ज़माने के साथ कदम मिलाते, उसकी तस्वीर जबरन लिवाई पर्सनल फ़ोटोग्राफ़र से। 

Sunday 12 December 2021

डायरी

 अभी पाँच-छह दिन पहले ही केंटकी के बारे में लिखा था। वही जहाँ अब्राहम लिंकन का जन्म हुआ, मोहम्मद अली का जन्म हुआ और मेरे पसंदीदा अभिनेता में से एक जॉनी डेप का जन्म हुआ। यहीं इस वीकेंड को टोरनाड़ो आया था। वैसे तो यह चक्रवात अमेरिका के पाँच-छह राज्यों में आया था। पर सबसे ज़्यादा नुक़सान केंटकी में हुआ। 80 से  ज़्यादा लोगों की मरने की ख़बर है। केंटकी के इतिहास का यह सबसे भयंकर तूफ़ान रहा। लूईविल केंटकी का सबसे बड़ा शहर है।इंडियापोलिस ख़त्म होते ही लूईविल में प्रवेश होता है। ऐसे में हमारे यहाँ भी सचेत रहने का मैसेज आया। हमने ख़राब मौसम देखा और लिट्टी लगा ली। लिट्टी -चोखा खाने के बाद गर्मागर्म चाय पी और ठोक-पीट कर बच्चों को सुलाने लगी। कमरतोड़ मेहनत के बाद छोटका सोया ही था कि मानो, हवाएँ खिड़की पर झूलने लगी।  गोंऽऽऽ…गोंऽऽऽ करती वे जड़ काँच पर थपेड़े बरसाने लगी कि तुम्हारी इतनी हिम्मत, हम ठंढ से काँप रहें और तुम अपना द्वार नही खोल रही। बेचारी खिड़की पराधीन, वह काँपते हुए बोली, माफ़ करो बहन ऐसे मौसम में तुम्हारा किसी भी घर में प्रवेश वर्जित ही है। उग्र हवा और काँच की खिड़की के विवाद में मेरा बच्चा डर कर जग गया। मैं खीज उठी और इन हवाओं को कोसने लगी। शायद मेरा ताना उन तक पहुँचा और वे धीमी चलने लगी। मेरी खिड़की से लड़ना छोड़ बादल से टकराने लगी। उनकी टकराहट इतनी बढ़ गई कि एक सफ़ेद चिंगारी फूटी और तेज गर्जना के साथ  वे दोनों एक दूसरे पर बरस पड़ी। उनकी बरसात, धरती के साथ मेरे घर को भीगो रही थी। 

मैंने फिर से कमर कसा, बेटे को सुलाने लगी। बेटा राम मेरी गोद में सावन का झूला झूल रहे थे। इधर मैंने पढ़ रही एक किताब का pdf खोला और आगे पढ़ना शुरू किया। 

किताब है, “The book of  Mirdad” किताब अब तक जितनी पढ़ी वह और आगे पढ़ने की लालसा जगाती जाती है पर रात्रि जागरण और नींद प्रेम के कारण किताब धीरे-धीरे मुझमें घुल रही है। मिखाइल नईमी लिखते हैं, 

प्रेम प्रभु की रचना है।
तुम जीते हो ताकि तुम प्रेम करना सीख लो।
तुम प्रेम करते हो ताकि तुम जीना सीख लो।
मनुष्य को और कुछ सीखने की आवश्यकता नहीं।
साथ ही यह भी कि , जीने के लिए मरे या मरने के लिए जिए।
हर अगली लाइन पढ़ने के बाद कुछ देर ठहरने का मन करता है। इसी पढ़ने, ठहरने के बीच मेरा इश्क़ तोशू फिर से जगता है। उसे भूख लग आई है। मैं उसका मुख देखती हूँ तो अपना बचपन जीती हूँ। ऐसे में किताब रख अब लाड़-प्यार पर अटकी हुई थी। लेकिन रात के साढ़े तीन भी तो बज रहे थे। पलकों पर नींद झूलने लगी। ऐसे में मैंने संगीत का मुँह देखा और जो हिस्ट्री में पहला गीत दिखा वह हौले से बजा दिया। 
गीत, चिट्ठियों वाला प्यार है। यह गीत जाने कितने दिनों बाद सुना। इसकी याद आई बीते दिनों डाकघर जाने के बाद। तो चलिए आप भी सुनिए इसे चिट्ठियों के नाम। 



Monday 6 December 2021


आज हम फिर से केंटुकी घूमने चलते है। याद है ना, इससे पहले हमलोग “मोहम्मद अली” का जन्म स्थान देखने यहाँ पहुँचे थे। kfc चिकेन की भी बात हुई थी पर आज आपको जो देखना है वह है “अब्राहम लिंकन” का जन्म स्थान।

12 फरवरी, 1809 को  लिंकन का जन्म केंटुकी के हार्डिन काउंटी में हुआ था। पर आज यहाँ जाने के लिए आपको जी पी एस में,  2995 लिंकन फार्म रोड, हॉजगेनविले, केंटकी, पता डालना होगा।

लिंकन के जन्म स्थान तक पहुँचे, इससे पहले क्यों ना ड्राइव करते-करते इनके बारे में थोड़ा जान ले। वैसे तो आप सब इनके बारे में जानते ही होंगे पर मुझे इनकी जीवनी, रोलर कोस्टर राइड की तरह लगती है। इनके संघर्ष को देख कर लगता है कि क्यों हम छोटे-छोटे दुखों से इतनी जल्दी हार मान जाते है। वैसे लिंकन ने ही कहा है , “जिसका जीवन जितना संघर्षपूर्ण रहा, उसने उतना ज़्यादा सीखा” 

गरीब परिवार में जन्में लिंकन का घर लकड़ी का एक छोटा सा कमरा भर था। बाद के दिनों में ज़मीन की लड़ाई-झगड़े में इनके परिवार को यह घर भी छोड़ना पड़ा और केंटुकी से इंडिआना के “पैरी काउंटी” में आना पड़ा। लिंकन ने तीन घर बदले और उनके हर घर को एक स्मारक का रुप दिया गया है। 

जब ये 21 साल के थे तब अपने पिता से अलग हो गए थे। पिता चाहते थे कि बेटा, पढ़ाई-लिखाई, कविता-कहानी छोड़, उनके साथ मज़दूरी में हाथ बटाए पर लिंकन को यह मंज़ूर ना था। 

जैसे -तैसे थोड़ी पढ़ाई हुई। नौकरी की पर वहाँ से भी निकाल दिए गए। फिर इन्होंने बिजनेस शुरू किया। वह भी कुछ समय के बाद पूरी तरह से ठप हो गया। इस बीच जिस लड़की से प्रेम करते थे, उसका देहांत हो गया। लिंकन डिप्रेशन में चले गए। 

ब्याह हुआ जिस लड़की से उससे कभी मन ना मिला। चार बच्चे हुए पर तीन की मृत्यु बचपन में ही हो गई और चौथा 18 साल की उम्र में नही रहा। 

इधर समाज में ऊँच-नीच का भेद मिटाने को वह राजनीति में घुसे तो वहाँ भी इन्हें करारी हार मिली। सीनेट के चुनाव में 11 असफलताओं के बाद उन्हें शानदार जीत मिली। इसके बाद उन्होंने अमेरिका का प्रेसिडेंट चुनाव लड़ा और अमेरिका के 16 प्रेसिडेंट बने।  

लिंकन के संघर्ष से हार ना मनाने की प्रेरणा लेकर अब हम इनके जन्म स्थान को देखते है। इस जगह को अब “Abraham Lincoln Birthplace National Historical Park” नाम दिया गया है। यहाँ इनके लड़की के घर का हमशक्ल बना कर एक मेमोरीयल के रूप में रखा गया है। कहते है कि इसकी कुछ लकड़ियाँ लिंकन के पुराने घर से ली गई है पर वहाँ बैठा गाइड बताता है कि, लकड़ियाँ लाई ज़रूर गई थी पर वह बहुत पुरानी होने की वजह से ठीक से काम ना आ सकी तो ये सारी नई लकड़ियाँ है। 

इसके अलावा यहाँ, “नैन्सी लिंकन “ जो लिंकन की माँ थीं, उनका भी केबिन बना है। एक छोटा सा झरना है जिसे कहते है कि इससे लिंकन के पिता खेतों की सिंचाई करते थे। साथ ही एक छोटा सा म्यूज़ियम है जिसमें घर के कुछ बर्तन, कुछ अवज़ार, लिंकन की मूर्ति, एक छोटा सा प्रोजेक्टर हॉल भी है। जिसमें लिंकन की जीवनी दिखाते है। 

तो चलिए, तस्वीरों के साथ आप भी सैर पर निकले और हाँ सीढ़ियाँ चढ़ते हुए थकिएगा नही क्योंकि मैं भी चढ़ी थी जबकि, मैं माँ बनने वाली थी। 




Wednesday 1 December 2021

पोस्टपार्टम डिप्रेशन को जाने !!!

अमेरिका में नॉर्मल डिलीवरी हो या सी सेक्शन, बच्चे के जन्म के बाद माँ को कुछ दिनों में डॉक्टर को दिखाना होता है। यह नॉर्मल रूटीन चेक अप जैसा होता है। जिसमें आपकी जाँच के साथ कुछ सवाल पूछे जाते है जैसे, 

कोई तकलीफ़, ब्लीडिंग , पेन, स्टीचेज कैसी है, कमजोरी, यूट्रस का पोजिशन, ब्रेस्ट फ़ीडिंग या फ़ॉर्म्युला और “डिप्रेशन” की समस्या। 

डिप्रेशन ? 

जी हाँ, डिप्रेशन के लक्षण के बारे में पूछे जाते है। आप चौंक गए होंगे ना कि माँ बनने का डिप्रेशन से क्या लेना- देना ? मैं भी चौंक गई थी , जब पहली बार सत्यार्थ के होने पर नर्स का कॉल आया था। किसी-किसी जगह डॉक्टर विजिट से पहले उसकी नर्स का कॉल आता है, सारी जानकारी लेने के लिए। तब मैं “कनेक्टिकट” में रहती थी। मैंने चौंकते हुए नर्स से कहा , “ नही तो, मुझे तो कोई डिप्रेशन के लक्षण नही पर आप ऐसा क्यों पूछ रही है ?”

उसने कहा, “ यह हमारा प्रोटोकल है, पूछना।  फिर उसने समझाया कि,  माँ बनने के दौरान एक स्त्री के शरीर में कई हार्मोनल चेंज होते है। इसमें एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रोन, टेस्टोस्टेरोन जैसे हार्मोन्स में बदलाव का असर उसके व्यवहार पर पड़ता है। शरीर का कमजोर होना और अचानक नवजात की देख भाल करना अपने आप में एक बड़ा काम है। ऐसे में किसी -किसी माँ में डिप्रेशन की समस्या देखी गई है। हालाँकि यह रेशियो बहुत कम है, 10 से 15%  माँ में ही यह लक्षण देखने को मिले है।”  इसके बाद उसने फोन रख दिया। 

मुझे बड़ी हँसी आई कि देखो ना, यहाँ कितना ड्रामा है। माँ बनने से भी कहीं डिप्रेशन होता होगा क्या ? अपने भारत में तो कभी ऐसा देखा या सुना नही।  

बात आइ-गई हो गई। फिर मैं जब भारत आई तो एक पुरानी दोस्त से बातों के दरम्यान एक बचपन की बात सामने आई। उसने एक महिला के बारे में बताया , “ अरे तुझे मालूम नही था, वह पागल थी। अपने छोटे-छोटे बच्चों को कहीं भी पटक देती, दूध नही पिलाती, खाना नही देती। दिन भर पड़ी रहती। कहती कि तबियत ठीक नही लगती। घरवालों को लगता कि वह काम से जी चुराने का बहना करती है। फिर धीरे-धीरे उसकी तबियत ज़्यादा बिगड़ी तो घरवालों ने डॉक्टर को दिखाया पर बीमारी का पता नही लगा। बात दवा से हट कर दुआ और झाड़-फूँक तक पहुँच गई।” 

मैने हँसते हुए कहा , “ अब एक के बाद एक छह बच्चे पैदा होंगे तो कितनों को वह देखेगी, सम्भलेगी। यहाँ तो एक बच्चे के रोने से दिमाग़ ख़राब हो जाता है।”  

उस वक्त तो हँसी-मज़ाक़ , ओहो -हो हो … तक बात रह गई। फिर एक दिन मैं बच्चों से जुड़ी डोक्यूमेंट्री देख रही थी, इसी बीच मुझे एक ऐसी डोक्यूमेंट्री दिखी जो पोस्टपार्टम डिप्रेशन के बारे में थी। मुझे अचानक से नर्स की बात याद आई, पोस्टपार्टम डिप्रेशन” और मैं इसे देखने लगी। इसे देखते हुए मुझे वह महिला याद आई, जिसके बारे में दोस्त ने बताया था। 

हो सकता हो वह भी इस परेशानी से जूझ रही होंगी पर किसी को समझ नही आया। जाने ऐसी कितनी महिलाएँ भारत में भी होंगी पर हमें मालूम ही नही चलता होगा। यूँ भी दिमाग़ी बीमारी को लोग सहज नही ले पाते। वे समझ नही पाते कि जैसे हाथ-पैर-फेफड़े-गुर्दे में बीमारी/तकलीफ़ हो सकती है वैसे दिमाग़ में भी हो सकती है। यह भी तो शरीर का ही एक भाग है। 

बाक़ी, डिलीवरी के बाद जो महिलाएँ इस पीड़ा से गुजरती होंगी सोचिए उन पर क्या बीतती होगी। पर घबराने की बात नही, इसका निदान है। आप अपने डॉक्टर से इस बारे में बात करे। क्योंकि यह आपका शरीर है, इसकी देख -भाल आपके ज़िम्मे है जैसे आपके नवजात की ज़िम्मेदारी आपकी है। 

अगर पोस्टपार्टम डिप्रेशन के बारे में जानना चाहते है तो थोड़ा गूगल करिए और ना हो तो एक डिक्यूमेंटी देख डालिए , “ when the bough  Breaks “

इस पोस्ट का मेन उद्देश्य यह है कि, “यह ना समझे कि, माँ ने बच्चे को जन्म दे दिया बस हो गया। अगर ऐसी कोई भी लक्षण माँ में दिखे तो तुरंत डॉक्टर से सम्पर्क करें नही तो यह माँ और बच्चे दोनों के लिए घातक है।” 


Thursday 18 November 2021

कहानी सपने में बुनी।


कल अमृता प्रीतम की किताब, नागमणी पढ़ कर पूरी की। कहानी पढ़ कर देर तक सोचती रही और आँख लग गई। सपने में मैंने एक कहानी बुनी। कहानी में अलका और कुमार ही थे पर इस बार अलका ने खुद को कुमार से बदल लिया था। कहानी अब कुमार की नज़र से नही अलका की नज़र से देखी जा रही थी….

कहानी, 

वह छत से भागता हुआ नीचे कमरे में आया। उसे देख कर अलका का जी भर आया पर अपने मन के भेद पर पर्दा रख कर उसने पूछा, “ वह आ गई ?”

“हाँ, आ गई है।” देखो ना वह बेचारी दिवाली पर कितना तैयार हो कर आई है मुझसे मिलने और एक मैं हूँ।

क्यों क्या हुआ, कुर्ता -पजामा तो पहने ही हो अब और कितना तैयार होना बाक़ी रह गया है, अलका ने उसकी तरफ़ देख कर पूछा। 

उसने कुछ कहा नही, बस वापस जाने की बेचैनी में सीढ़ियों की तरफ़ देखा। अलका उसकी बेचैनी महसूस कर बोली, “तुम जाओ। वह तुम्हारा इंतज़ार कर रही होगी।” माँ-बाबू जी जगे हो तो मैं भी आती हूँ उनका आशीर्वाद लेने और हाँ, उससे भी मिल लूँगी। आख़िर उससे अब तुम्हारी साथ है। 

मेरा साथ… माँ -बाबू जी सो चुके है। मैं अब चलता हूँ। आया था आपके पास कुछ दिए और मिठाई लेने। मैं लेना भूल गया था। अब वह आई है तो …

अच्छा, लेते जाओ। सुनो तुमने फुलझड़ी ली है या नही ? 

नही, कहाँ ली। वह अचानक ही आ गई। मुझे बुरा लग रहा है उसके लिए।  

कोई बात नही मैं बहुत सारा ले आई हूँ। ये लो कहते हुए अलका ने दिए- मिठाई के साथ कुछ फुलझड़ियाँ उसके हाथ में थमा दी। उसने वापस जाने को पहली सीढ़ी पर पैर रखा ही था कि तभी घर में शोर हुआ। दोनो भागते हुए शोर की दिशा में पहुँचे तो मालूम हुआ, कहीं से एक कोयल घर में घुस आई थी और उसने जाने रसोई से ऐसा क्या खा लिया कि उसकी आवाज़ चली गई। फ़र्श पर वह बेसुध पड़ी थी। कोयल को देख अलका उदास हो गई, उसकी आँखें भर आई। घर का नौकर उस कोयल को पानी पिला रहा था। अलका काठ सी बनी दरवाज़े के सहारे उस कोयल को निहार रही थी। उसे लगा अब यह कोयल नही बचेगी… बेचैन होकर उसने कुमार की तरफ़ देखा। हाँ, “कुमार” ही तो उसका नाम है जो अलका के साथ खड़ा था। अलका ने देखा वह कोयल को बस देख रहा है पर उसे वापस जाने की बेचैनी है। अलका अपने आँखों का आँसू छिपाते हुए उसे कहती है, “तुम जाओ”

इतने में एक लड़की कुमार के कपड़ों में लिपटी रसोई तक आती है और कहती है, “ शोर सुनकर मैं नीचे चली आई” 

अलका की नज़र उस पर पड़ती है और पड़ती है कुमार की नीली क़मीज़ पर। वह अचरज से कुमार की तरफ़ देखती पर कुमार की मुस्कुराती निगाहें उस लड़की पर टिकी है। अलका का दिल जोर से धड़काता है मानो यह उसकी एक आख़िरी धड़कन हो… इसके बाद शायद दूसरी धड़कन उठ ना पाए। क्षण में एक ऐसी उदासी उसके मन पर पसर गई जिसकी उसने कल्पना तक ना की थी। मिनट की देर से,  धीमी-धीमी आती अपने धड़कनों को महसूस कर वह बेसुध कोयल की तरफ देखती। नौकर अब भी कोयल को पानी पिलाने की कोशिश कर रहा है। अलका पीछे मुड़ कर देखती है और कुमार से कहती है , “ तुमलोग जाओ” 

कुमार को जैसे इसका ही इंतज़ार था। उसने उस लड़की का हाथ पकड़ा और सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। इधर कोयल के शरीर में हलचल हुई। उसने धीरे से कूऊउऽऽ किया और उड़ चली। 




Tuesday 16 November 2021

ईथोपिया

 सितम्बर का महीना था। यहाँ कुछ भारतीयों द्वारा हिंदी दिवस ‘ईगल क्रिक पार्क’ में मनाया जा रहा था। यह एक नेशनल पार्क है और मेरे घर से क़रीब 30-35 मिनट की दूरी पर है। हमलोग वहाँ जाने का प्लान किए थे कि इसी बीच एक दोस्त के घर जाना पड़ा गणपति विसर्जन के लिए। गणपति विसर्जन के बाद घड़ी देखा तो ढाई बज गए थे। प्रोग्राम के लिए तो अब देर हो चुकी थी फिर भी हम निकल पड़े पार्क की तरफ़। सोचा क्या मालूम प्रोग्राम थोड़ा खिच गया हो तो और ना भी हुआ तो पार्क घुम कर चले आयेंगे। यहाँ जाने पर मोबाइल जी पी एस ने काम करना बंद कर दिया और इस तरह हमारे 20-25 मिनट तो तय जगह ढूँढने में ही लग गए। ऐसे में हिंदी दिवस समारोह समाप्त हो चुका था। थोड़ा ओह-आह भर कर हमलोग पार्क में घूमना शुरू किए। 

घूमते हुए हमलोग एक नदी के किनारे पहुँचे। वहाँ सफ़ेद और लाल कपड़ों में सजी दो महिलाएँ, अपने बच्चों के साथ फ़ोटो ले रही थीं। उनके बच्चे भी उनकी तरह के ही पोशाक पहने थे। मुझे सामने से जाते देख, उनमें से एक  आवऽऽऽ… के साथ कब बच्चे का जन्म होगा पूछ बैठी।  मैंने उसे ऑक्टोबर बताया और साथ ही उससे कहा कि वह बहुत सुंदर दिख रही है। हाँ, यह भी कहा कि तुम्हारी बेटी तो और प्यारी लग रही है। अब कौन सी औरत अपनी सुंदरता की तारीफ़ सुन कर ना खुश होती। उसने बताना शुरू किया कि आज उनका त्योहार है। त्योहार का नाम “मेस्केल” है। 

यह एक एथीयोपियन त्योहार है। इस त्योहार की ख़ास बात यह कि यह कुछ अपने यहाँ के होलिका दहन जैसा है। चौराहे पर लकड़ी इकट्ठा की जाती है। रात को उसने आग लगाई जाती है और अगली सुबह लोग उसकी राख से माथे पर क्रॉस का चिन्ह बनाते है। इस त्योहार को मनाने के पीछे उनकी रानी हेलना का निर्देश था बरसों पहले कि ऐसे आग लगाओ और धुआँ या आग जिस दिशा की तरफ़ जाती दिखे उसी तरफ़ क्राइस्ट का क्रॉस मिलेगा। 

एक और रोचक बात मालूम हुई उनसे मिलकर कि सितंबर में ही उनका न्यू ईयर होता है और क्रिस्मस वे लोग 25 दिसम्बर को ना मना कर 7 जनवरी को मानते है। ऐसा होने के पीछे उनका कॉप्टिक कैलेंडर ज़िम्मेदार है जो उन्हें बाक़ी दुनिया से 7 साल पीछे रखता है। 

कितना रोचक है ना कि आज जब बाक़ी दुनिया 2021 में जी रही है, इथोपियन देश के लोग अब भी 2014 में है। और तो और यहाँ 12 नही 13 महीना का एक साल होता है। वह अलग बात है की तेरहवें महीने में 5-6दिन ही होते है। 

चलते-चलते मैंने उनमें से एक महिला की बेटी के साथ तस्वीर लेने की बात पूछी। वह छोटी लड़की मुझे काफ़ी देर से देख रही थी और नज़र मिलने पर शर्मीली मुस्कान अपने होंठों पर फेर लेती। मुझे वह बहुत-बहुत- बहुत प्यारी लगी। मैंने तस्वीर लेने से पहले उसका नाम पूछा कि इसी बीच उसकी माँ उसकी चोटी खोल, उसका बाल सँवारने लगी। मेरा मन किया की कहूँ, रहने दो ऐसी ही, अच्छी लग रही है पर शायद उसकी माँ को बेटी खुले बालों में ज़्यादा अच्छी लगती हो। ख़ैर उसने अपना नाम धीरे से इसी बीच बताया , “ कियारी” मैंने मन में बुदबुदाया फूलों की क्यारी…

पी एस- कियारी यानि की,  गीत, मधुर, शुद्ध।  



Tuesday 5 October 2021

गांधी

 लखीमपुर खीरी में जो किसानों के साथ हुआ उसे पढ़ कर चंपारण की याद आ गई। याद आ गए गांधी। गांधी को याद करने के पीछे कई वजह रही। एक तो उनकी जयंती अभी-अभी बीती है। दूसरा अमेरिका में भी बीते साल जब ब्लैक लाइफ़ मैटर के नाम से आंदोलन हुए तो कुछ जगह लोग यहाँ भी गांधी की मूर्ति के आगे धरने पर बैठे थे। ऐसे में घूमने-फिरने के दौरान मुझे भी कुछ जगहों पर गांधी जी की मूर्ति दिखी थी, या यूँ कहें तो एक-आध को तो देखने गई थी। 

आज जब सब गांधी जयंती मना कर आर्यन -आर्यन कर रहें हैं तब भी मुझे गांधी ही याद आ रहें हैं। तो चलिए आज मेरे साथ घूमने के दौरान, यहाँ लगी गांधी की मूर्तियों के दर्शन करें, हो सके तो उनकी शिक्षा को अपने जीवन में उतराने का प्रयास करें। 

*पहली तस्वीर, न्यू यॉर्क के “यून्यन स्क्वेर पार्क” की। यहाँ पार्क में गांधी जी एक मूर्ति लगी है। यह पार्क मैडिसन स्क्वायर गार्डन से 20-30 मिनट की वॉकिंग दूरी पर है। मैडिसन स्क्वायर गार्डन वही, जहाँ 2014 में मोदी जी पहली बार अमेरिका आए और उनके भाषण को सुनने जाने कहाँ-कहाँ से 15-20 हज़ार भारतीय पहुँच गए थे। उस वक्त हमलोग टेक्सस में रहते थे और संयोग ऐसा की मोदी जी के यहाँ से जाते ही शतेश का नया प्रॉजेक्ट न्यू जर्सी का मिल गया। न्यू जर्सी रहते हुए, न्यू यॉर्क कई दफ़ा जाना हुआ और उसी दरमियान हमें इस पार्क में गांधी दिखे। 



दूसरी तस्वीर , डेल्लास के इर्विंग शहर की है। यहाँ मूव होने के बाद हम घर देख रहे थे रहने के लिए। इसी दरमियान एक दिन घर ढूँढते हुए हमें एक पार्क दिखा। यह घर वाली सोसाइटी के बिल्कुल सामने था। ऐसे में हमने सोचा घर देखने के बाद पार्क में भी थोड़ा घूम लेंगे। वैसे भी होटल जा कर करना ही क्या था। पार्क में घूमते हुए हमारी नज़र गांधी जी की इस मूर्ति पर पड़ी और फिर मालूम हुआ कि यहाँ गांधी जयंती से लेकर, 15अगस्त और 26जनवरी को झंडा भी फहराया जाता है। 




तीसरी तस्वीर , अमेरिका की राजधानी 

वॉशिंगटन, डी॰ सी॰की है। यहाँ इंडीयन एम्बेसी के प्रांगण में भी गांधी जी की मूर्ति लगी है। यह जगह चेरी ब्लोसम के लिए प्रसिद्ध Tidal besin, लिंकन मेमोरियल से 9-10 मीनट की दूरी पर स्थित है 


 

चौथी तस्वीर, विस्कॉन्सिन राज्य के “मिलवाकी” शहर की है। यहाँ के कॉर्ट हाउस के आगे भी गांधी जी की मूर्ति लगी है। यह कॉर्ट हाउस यहाँ के फ़ेमस “पब्लिक मार्केट” से 2-3 मीनट की दूरी और ऑर्ट म्यूज़ियम से कुछ 20-25 मिनट की दूरी पर होगा।