Wednesday, 26 August 2015

KHATTI-MITHI: बिहार का माँझी और ताजमहल !!!

KHATTI-MITHI: बिहार का माँझी और ताजमहल !!!: एक फिल्म आई है ,"माँझी द माउंटेन मैन "।जिसके पोस्टर पर छोटे अक्षरो में नीचे लिखा है ,एक इंसान जिसने प्यार के लिए पहाड़ तोड़ डाला।मु...

बिहार का माँझी और ताजमहल !!!

एक फिल्म आई है ,"माँझी द माउंटेन मैन "।जिसके पोस्टर पर छोटे अक्षरो में नीचे लिखा है ,एक इंसान जिसने प्यार के लिए पहाड़ तोड़ डाला।मुझे स्वर्गीय दसरथ माँझी के बारे में पहले से मालूम था।पर मैंने कभी ये नही सोचा था की ,बिहार की पृष्टभूमि को लेकर कोई भी डायरेक्टर प्रेम कहानी बनायेगा।धन्यवाद केतन मेहता जी।बिहार को लेकर तो बस नफरत ,गुंडागर्दी ,अपहरण जैसी ही मुद्दो पर ही फिल्मे बनी है।सफल भी हुई है।लोगो ने खूब तालिया भी बजाई है।बाद में हमारे दोस्त हम जैसे बिहारी से पूछते भी है ,क्या सच में बिहार में यही सब होता है ? मैं हँसते हुए जबाब देती हूँ।हाँ होता तो है ,पर ये बताओ की किस राज्य में ये नही होता है ? सुपर मॉडल गुजरात ही देख लो।वहां तो कांड की सीमा पार हो गई।फिर भी बदनामी सिर्फ बिहार के नाम।माफ़ कीजिए मैं आज बिहार की वकालत पर नही लिख रही।बस ये छोटे -छोटे टीस है ,जो आपके तानो से भरते नही।हमें अखंड भारत बनाना है।ना की राज्य पर राज्य।मन में इतने सारे ताने -बाने है ,की उलझ ही जाते है।जैसे लिखना था ,मांझी पर पहुँच गई बिहार।खैर दसरथ माँझी कोई राजा दसरथ नही थे ,ना ही पूर्व बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम माँझी के सगे -संबंधी।कही नाम समान है ,तो कही कुलनाम।माँझी बहुत ही गरीब और समाज के बनाये हुए ,सबसे निचले तबके से थे।बिहार के गया जिले के गहलोत गाँव के रहने वाले।गाँव से छोटे शहर के लिए भी लम्बी दुरी तय करनी पड़ती थी।गाँव के पास पहाड़ होने के कारण रास्ता नही था।लोगो को पहाड़ का चकर लगा कर या पहाड़ चढ़ कर पास के छोटे शहर तक जाना होता था।फिल्म में इसी सच्ची घटना को दिखाया गया है।कैसे माँझी जमींदार के यहाँ काम नही करना चाहते।कैसे बाल -विवाह "फगुनिया " से हुआ ? कैसे जमींदार लोगो पर जुल्म करता है ,कैसे किसी की पत्नी को जमींदार का बेटा उठा लेता है ? कैसे उस औरत का पति नक्सलवाद की दहलीज़ तक पहुंच जाता है ? कैसे फगुनिया बिपरीत परिस्तिथि में माँ बनती है ? दसरथ के लिए खाना ले जाते वक़्त पहाड़ नही चढ़ पाती।कैसे पहाड़ से गिर कर फगुनिया की मौत होती है ? कैसे माँझी ने पहाड़ तोड़ने की सपथ ली थी ? आकाल का दर्द।कैसे राजनीती , घूसखोरी ,पत्थर माफिया ,न्यूज़ रिपोटर और माँझी अपनी मंजिल तक पहुँचते है ? एक बार तो माँझी के मिसाल के लिए फिल्म देखनी चाहिए।इसलिए कहानी आधी अधूरी लिखी।पर एक बात तो लिखनी पड़ेगी।आज कल कोई प्यार या फिल्म का ऐसा सीन "बाहुबली " के सीन से न मिले तो प्यार अधूरा ही होगा मानो।फिल्म के गाने में पहाड़ और झरने से गिरते माँझी और फगुनिया।मुझे हँसी आ रही थी ,काश माँझी होते तो कैसा रियेक्ट करते इसपर ? कम से कम एक आम इंसान तो ऐसा प्यार नही कर सकता।हो सकता है ,डायरेक्टर को लगा हो ,भईया रियल के चक्कर में रील के पैसे न डूब जाये।जनता -जनार्दन की भी तो सोचना है।कुछ बनावटी सीन को छोड़ फिल्म इतनी अच्छी है ,कि आपके आँखों में आँसू आ जायेंगे।नवाजुद्दीन की बेहतरीन अभिनय।फिल्म के सवांद बेहतरीन।जैसे बहुत बड़े हो ,बहुत घमंड है ,तोड़ के रखूंगा तुम्हे।एक बार चुनाव जीतो घर एकदम संगमरमर ,नीच जात सब लात की भाषा समझे है , मूस (चूहा ) खाते -खाते जानवर घुस गया है माथा में,दिल्ली दूर है ,जबरदस्त ,शानदार ,जिन्दाबाद।फिल्म देखने के बाद मैं सोच रही थी कि ,प्यार सिर्फ शाहजहाँ ही नही कर सकता, माँझी जैसे भी कर सकते है।लैला -मजनूँ ,हीर -राँझा ,  रोमिओ -जूलियट ,कृष्णा -राधा से कही बढ़ कर है, "दसरथ -फगुनिया" का प्यार।लैला -मजनूँ ,हीर -राँझा ,रोमियो -जूलियट  प्यार में जान दे देते है।प्यार में मारना ही सर्वपरी प्यार नही।वही कृष्ण तो राधा की मटकी फोड़ ,वस्त्र चुरा ,रास रंग में रहने वाले ,उन्हें राधा की क्या पीड़ा महसूस हो ,जब सहस्त्र रानीयाँ हो।शाहजहाँ ने मुमताज के मरने के बाद 22 हज़ार मजदूरो को काम पर लगा कर "ताजमहल " बनवाया।जो प्रमुख मजदुर थे ,उनके हाथ तक काट डाले ,ताकि भविष्य में दूसरा ताज न बने।पर उस ताज का क्या फायदा ,जो न तो उसकी बेगम देख पाई ,ना उसको बनाने वाले हाथ रह पाये।दूसरी तरफ एक अछूत ,गरीब दसरथ माँझी जो ना तो राजा था ,ना पत्नी के मरने पर आत्महत्या की ,ना तो दूसरी शादी और ना पत्नी के मटके फोड़े।अलबत्ता उसे तो पत्नी के मटके फूटने का दुःख हुआ।कारण चाहे गरीबी ही हो।पत्नी के दुःख के साथ और जन कल्याण के लिए अकेला 22 साल पहाड़ को काटता रहा।कोई आधुनिक हथियार नही बस छेनी और हथौड़ी।हो सकता हो उस वक़्त उसे जन कल्याण की सुध ना हो ,पत्नी मोह भी ना हो ,बस एक गुस्सा एक हठ कि तुम्हारे कारण मेरी पत्नी नही रही ,तुम्हारे कारण मुझे रोजगार के लिए तुझे पार करना होता है ,तुम्हारे कारण मेरे बच्चे स्कूल नही जा पाते।कारण जो भी हो ,एक अकेले इंसान की कामयाबी शायद इससे ज्यादा नही हो सकती।वैसे बिहार में हठी लोगो की कमी नही।शतेश बताते है ,इनके गाँव के एक पंडित ने कुरता पहना छोड़ दिया ,कारण समय पर उनकी पत्नी इस्त्री करके नही लाई।एक व्यक्ति बस का इंतज़ार कर रहे थे ,बस टाइम पर नही आई तो पैदल ही 10 /12 किलोमीटर चल दिए।मेरी दादी जब तक रही उन्हें "कियोकार्पिन " तेल ही लगाना था ,चाहे कही से लाओ।प्रोफेसर आनंद कुमार को ही देखे ,उन्हें हर साल 28 /30  आई आईटीएन बनाना है तो बनाना है।अब लालू प्रसाद को ही देख ले ,जितने भी घोटाला किये हो पर राजनीती तो जिद है भाई।खुद नही तो बीबी ,साले, बेटी ,बेटा सब को जोत दो।नीतीश जी की तो बात ही न्यारी है ,इन्होने केंद्र सरकार से हमेसा की तरह दुश्मनी ही रखनी है।खैर जाने दीजिये ,देर से ही सही पर मांझी के प्यार को दुनिया ने जाना।कम से कम फिल्मो के जरिये ही बिहार का दूसरा पहलू लोगो को दिखा।वरना धारणा तो ऐसी है कि , हम तो बन्दूक की नोक पर लड़कियाँ उठाते है।ऊ काहे है भाई आर्यभट ,चाणक्य ,गुरुगोविंद सिंह ,शेर शाह सूरी ,वीर कुंवर सिंह ,राजेन्द्र प्रसाद ,जयप्रकाश नारायण ,जगजीवन राम ,रामधारी सिंह दिनकर ,विद्यापति ,गोपाल सिंह नेपाली ,नागार्जुन ,बिश्मिल्ला खान ,शारदा सिन्हा ,प्रकाश झा ,इम्तियाज़ अली ,मनोज वाजपई ,हो तो बिहारी ही ना।जाने बिहार की त्रासदी कब ख़त्म होगी ? कब तक माँझी को आज के युग में छेनी हथौड़ी उठानी होगी ? 

Tuesday, 18 August 2015

KHATTI-MITHI: बारिश ,धान ,किसान ,नेता और बदलता समाज !!!

KHATTI-MITHI: बारिश ,धान ,किसान ,नेता और बदलता समाज !!!: "सावन  भादउवा के शुभ रे महिनवा ,चल हो गोरिया आईल  धनवा के रोपनिया चल हो गोरिया। टेढ़ी मेढ़ी अरिया के टेढ़ी रे कियारयिया ,ठेस ना लागे तो...

बारिश ,धान ,किसान ,नेता और बदलता समाज !!!

"सावन  भादउवा के शुभ रे महिनवा ,चल हो गोरिया आईल  धनवा के रोपनिया चल हो गोरिया।
टेढ़ी मेढ़ी अरिया के टेढ़ी रे कियारयिया ,ठेस ना लागे तोरा बाली रे उमिरिया ,चल हो गोरिया 
आईल बरखा के दिनवा चल हो गोरिया ,आईल धनवा के रोपनिया चल हो गोरिया।।"
ये एक भोजपुरी रोपनीगीत (लोकगीत) की कुछ लाइन है।जिसमे किसान अपनी पत्नी से कहता है।चलो बहुत शुभ सावन भादो का महीना आया है।बारिश हुई है।धान की बोआई करते है।साथ में अपनी पत्नी को कहता है ,खेत के रास्ते टेढे -मेढ़े है ,ठीक से चलना वरना ठेस लग जाएगी। 
गाने से मुझे याद आया ,एक बार मैं धान की बोआई के समय गाँव गई थी।वैसे हमलोग ज्यादातर गाँव छठ पूजा या होली में जाते थे।कभी -कभार किसी की शादी -ब्याह या मृत्यु हो तो अलग बात थी।मैं शायद आपने मुंडन या किसी के मरने पर गई थी।कारण सावन भादो में ब्याह तो होते नही।मुझे ठीक -ठीक याद नही।मेरा गाँव  पश्चिमी चंपारण में है।वही चंपारण जहां से ग़ांधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था।वही चंपारण जो कवि गोपाल सिंह नेपाली का जन्मस्थल है।जो लोग गोपाल सिंह नेपाली को नही जानते ,उनके लिए प्रकाश झा फिल्म निर्माता और मनोज वाजपई अभिनेता भी चंपारण के ही है।चंपारण में धान की खेती बहुत होती है।एक ऐसा वक़्त था ,जब हम गाँव जाते तो हमे ,नाश्ते में भात (चावल) ,खाने में भात ,शाम का नाश्ता भी चावल का भुजा और रात का खाना भी भात मिलता।हमलोग परेशान हो जाते।हमलोग को सुबह -सुबह उठा कर दादी कहती ,जा बाबू नास्ता कर ल ,सब लइका (बच्चा ) खा लेलस।मेरे भाई की तो हँस -हँस के हालत ख़राब,कहता दादी भात से नास्ता।मतलब चावल ही जीवन था।हर जगह चावल का इस्तेमाल ,चाहे पूजा के अक्षत के रूप में , दान के रूप में ,भोजन के रूप में ,भिक्षा देने में ,या फिर कुछ सामान खरीदने के लिए भी।हो भी क्यों ना ,उस वक़्त चावल की कमी भी तो नही थी।हमारे बाबाजी (दादा जी )की अकेले की फसल कम से कम 200 किवंटल  होती थी।मैं धान की बोआई के बारे में जो जानती हूँ, आपलोगो को बता रही हूँ ।धान बोआई जुलाई ,अगस्त में शुरू होती है।फसल की कटाई नवंबर /दिसंबर के आस -पास होती है।बोआई से लेकर फसल पकने और कटने तक ,किसान के घर में त्योहारो सा मौसम होता है।हमारे यहाँ जिस दिन बोआई थी , घर में सबको सुबह -सुबह उठा दिया गया।मेरे लिए सब कुछ नया था।मैंने दादी से पूछा आज कोई त्यौहार है क्या ? दादी बोली की आज खेत का पूजा होगा।सबलोग नहा कर नए कपडे पहनेगे,पूजा करेंगे।मैंने देखा बाबाजी भी नए कुरता -धोती पहन कर सिर पर गमछा रख के पूजा के लिए तैयार हो गए।दादी -बाबाजी ने मिल कर कुल देवता ,हनुमान जी के धजा और घर के आगे दुर्गा मंदिर में पूजा की।इसके बाद बाबाजी -दादी ने मिलकर "हल " (खेत जोतने के काम आता है ) की पूजा की।फिर दादी घर में आ गई।बाबाजी पूजा की थाल ,जिसमे अक्षत ,दुभ ,फूल ,गुड ,सिंदूर ,हल्दी ,दही ,अगरबती ,दिया ,लोटे में जल और लड्डू होते ,लेकर खेत पर चले गए।वहां सब मजदुर बाबाजी का इंतज़ार कर रहे थे।खेत के किनारे ,पूरब दिशा की ऒर ,मुख कर बाबाजी पूजा किया।कुछ देर आँखे बंद कर प्रार्थना की।शायद मन में यही प्रार्थना कर रहे होते ,"हे धरती माँ हर साल की तरह इस बार भी मेरी फसल अच्छी हो। मैं अपने परिवार की सारी जरूरते इस फसल से पूरा कर सकूँ।हे वरुण देव फसल के अनुरूप ही बरसना।फसल पर ही मेरे परिवार की खुशियाँ निर्भर करती है।आपका आशीर्वाद बना रहे।इसके बाद बाबाजी 5 या 7 धान के बीज को बोया और थोड़ी देर रुक कर घर आ गए।धान बोन वाले मजदुर भी, धरती माँ और बीज को प्रणाम कर बोआई शुरू करते।धान की बोआई पुरे दिन चलती है।ऐसे में मजदुर लोक -गीत गाते हुए ,खुशियाँ मानाते हुए रोपनी करते।उस दिन घर पर अच्छे -अच्छे पकवान बने।पर यहाँ भी पकवान में पुआ -पूड़ी नही।चावल दाल ,कई तरह की सब्जियाँ ,पकौडे पापड़ बना।शाम को बोआई के बाद सारे मजदूरो को खाना खिलाया गया।फिर कुछ दिनों बाद फसल की हरियाली देख कर परिवार में खुशी का माहौल होता।समय के साथ फसल पक के तैयार हो जाती है।फसल कटनी के वक़्त ,फिर से हँसुआ (लोहे की अवजार जिससे फसल काटते है ) की पूजा होती।फसल को प्रणाम कर कटाई शुरू होती।उनकी बालियों को लेकर कुलदेवता पर चढ़ाया जाता है।उस दिन फिर अच्छा खाना बनता है।फिर से मजदूरो को ख़ुशी में खिलाया जाता है।भगवान की कृपा से फसल भी अच्छी होती थी।फसल से धान निकाल कर घर के बाहर  "बेढी "  में और कुछ बचे हुए धान घर के अंदर  "डेहरी" में रखते थे।बेढी और डेहरी की तस्वीर ये रही

निचे वाली तस्वीर डेहरी की है।जिसे घर में रखते थे।पर हमारे यहां इसके ऊपर "दौरी" (मुंज से बुनी )जो कटोरे जैसा दिखता है ,रखते थे।अब तो घर के अंदर डेहरी की जगह बड़े -बड़े स्टील के ड्रम ने ले ली है।शुक्र है भगवान का की, बेढी अब तक दरवाजे की शान बढ़ा रहा है।पहले ऐसे कहते थे ,जिसके दरवाजे पर जितनी बेढी उतना बड़ा जमींदार।अब तो जमींदारी भी नही रही।ले दे के 3 /4 बेढी रह गई है।जो अभी भी हमारी फसलो का अहसास दिलाती है।एक वक़्त था ,जब मेरे बाबाजी ने सेक्रिटेरियट की नौकरी छोड़ ,खेती करवाने का फैसला लिया।एक आज का वक़्त है ,की सारे खेत बटइयादार के पास है।सब लोग खेती छोड़ नौकरी पेशा हो गए।हमारी पीढ़ी के जवानो को खेती से कोई लगाव नही।हमारे क्या हमारी माँ या चाचियों को भी याद नही की रोपनी गीत क्या था ? सारे पारंपरिक, मिटटी से जुड़े रिवाज ख़त्म हो रहे है।जिन बटइयादार को जमीन दी गई है ,खेती के लिए।उनकी हालत तो और भी ख़राब है।सोचती हूँ वो क्या रिवाजो के अनुसार पूजा करके ,गीत गा कर खेती करते होंगे ? एक तो ,गरीबी उसपर फसल बोअनी के लिए नए कपडे कहाँ से ला पायेगे ?कहाँ से पकवान बनवायेगे ? अब तो गाँव में  मजदुर भी नही मिलते।सब पंजाब /दिल्ली /मुंबई कमाने चले गए।मशीन से खेती महंगी हो गई है।उसपर बारिश का कहर।कल ही माँ से बात हुई ,बोली बटइयादार का फ़ोन आया था।फसल पानी बिना ख़राब हो रही है।माँ भी दुखी हो कहती है ,पूरा सावन बीत गया पर बारिश नही हुई।इस कठिन हालत में भी बटइयादार को फसल का आधा हिस्सा देना पड़ता है।आपलोग सोच रहे होंगे कितने निर्दयी हमलोग है।गरीब से आधा फसल ले लेते है।पर हमलोग भी क्या करे ?खेत ऐसे छोड़ने से बंजर हो जाएगी।अगर जमीन बेचते है ,तो इनलोगो की और भूखो मरने वाली हालत हो जाएगी।गाँव के लोग कहते है ,तुमलोग अपनी फसल का हिसाब समय से नही करते ,देखो तुम्ही आधी फसल में से भी बटइयादार ने चुरा लिया।हमे थोड़ा गुस्सा आता है ,फिर सोचते है।इतने महीने उसने मेहनत की।मौसम की मार सही।कितनी बार भूखे रह कर खेत में पानी पटवाया होगा।थोड़ा चुरा ही लिया तो क्या किया ? हमसे अगर मांगता तो शायद हम दे भी देते।लेकिन उसे डर होता की ,कही अगली बार खेत न छुड़ा ले।इनसब के बीच एक आशा की किरण दिखी थी ,"स्वामी नाथन आयोग "के रूप में।जिसमे किसान को फसल की लागत के मूल्य का डेढ़ गुना मिलता।पर ये भूल गई चुनाव में ज्यादातर सपने दिखाये जाते है।जिसमे सरकार द्वारा लिखित वायदा किया गया।जीतने के बाद ,खुद ही कबूल किया गया कि अपना वादा पूरा नही कर सकते।मैं किसी भी पार्टी के पक्ष में नही।बस यही कहना चाहती हूँ ,किसी तरह किसान किसानी ना छोड़े।गाते हुए खेत बोये ,गाते हुए फसल काटे।नही तो कुछ समय बाद खेती करने वाला कोई नही बचेगा।खेत बंजर हो जायेंगे।हमलोग भी चावल - दाल छोड़ नूडल्स ,पिज़्ज़ा ,बर्गर पर जीने लगेगें।या फिर चाइना की प्लास्टिक मिले हुए चावल खाएंगे।जैसे अभी मैं आपलोग को बता रही हूँ, की कैसे खेती होती थी।कुछ सालो बाद लिखना पड़ेगा ऐसे किसान होते थे। 

Thursday, 13 August 2015

एक डोम राजा और दूसरा काशी नरेश !!!!

आपलोग सोच रहे होंगे कि , आज मैं किसी राजा -वाजा के बारे में कुछ लिखने वाली हूँ।आपके चेहरे पे मुस्कराहट भी होगी ,चलो काफी दिनों बाद राजा -रानी की कहानी पढ़ेंगे।पढ़ने को भले कम मिले पर फिल्मो में राजा -रानी आते रहते है , कभी काल्पनिक तो कभी इतिहासिक रूप में।अभी हाल में ही " बाहुबली " इसका उदाहरण है।पर मैं आज ना राजा की बात कर रही हूँ ,ना बाहुबली की।आज मैं "मसान" मूवी की बात कर रही हूँ।मेरे एक दोस्त प्रशांत ने मुझे इस पर लिखने को कहा।मुझे ख़ुशी है ,आपने मुझे इसके लायक समझा।कभी -कभी शब्द भावनाओं को व्यक्त नही कर पाते ,जबतक आप देखते या महसूस नही करते।फिर भी मैं अपनी सोच के हिसाब से लिख रही हूँ।मसान अपने आप में ही विशाल है।मैं मसान शीर्षक की बात कर रही हूँ।मसान को आम बोल चाल की भाषा में "शमशान" भी कहते है।ये वो जगह है ,जो ज्ञानी के लिए ज्ञान केंद्र ,दुखियो के लिए दुःख का सागर ,संतो के लिए मुक्ति मार्ग ,और आम जनजीवन के लिए मुक्ति स्थल हो सकता है या है।बनारस में दो ही राजा है।इस पार काशी विश्नाथ /काशी नरेश और दूसरी पार हरिश्चान्द्र घाट के डोम राजा।दोनों ही मुक्ति दिलाने में मदद करते है।बात फिल्म की तो ,ये फिल्म नीरज घयवान ने बनाई है।फिल्म में दो कहानी एक साथ चलती है।निर्देशक ने एक तरफ एक लड़की ,देवी (रिचा चड्डा ) को मजबूत औरत के रूप में तो दूसरी तरफ दीपक (विक्की कौशल )की भावनाओ को बहुत अच्छी तरह दिखाया है।फिल्म के लिए बनारस से अच्छी जगह शायद ही कही होती।मसान कोई आर्ट मूवी ,या सैड मूवी नही।ये काफी हद तक छोटे शहरो की सचाई है।फिल्म में प्यार ,जिज्ञासा ,जात -पात ,लालच ,मृत्यु ,बेबसी बहुत अच्छे ढंग से दिखाई गई है।साथ में इंडियन ओशन का बैकग्राउंड म्यूजिक , ग़ालिब और दुष्यंत कुमार की कविताये चार चाँद लगा देती है।मुझे भी अपने भाई की वजह से एक बार इंडियन ओसेन के ग्रुप से मिलने का मौका मिला था।पुणे के ईशानिया मॉल में।तब नही मालूम था इनके बारे में।खैर कहानी कुछ इस तरह है।
देवी एक कम्प्यूटर इंस्टिट्यूट में रिसेप्नलिस्ट के साथ प्रोजेक्ट टाइप करने और बच्चो को पढाई में हेल्प करने का काम करती है।वही उनकी मुलाक़ात पीयूष  नाम के लड़के से होती है।पीयूष बनारस में पढता है।प्रोजेक्ट टाइप करवाने इंस्टिट्यूट में आते रहता है।दोनों को 2 /4 मुलाकातों में प्यार हो जाता है।दोनों को प्यार और सेक्स की जिज्ञासा होती है।देवी शादी - शुदा औरतो की तरह साड़ी ,बिन्दी लगा कर पीयूष के साथ होटल जाती है।होटल के कमरे में पीयूष उसे एक गिफ्ट देता है।दोनों प्यार कर रहे होते है ,तभी पुलिस का छापा पड़ता है।भागने का मौका ना मिलने और पुलिस के डर से पीयूष खुद को बाथरूम में बंद कर लेता है।पुलिसवाला उसे बाहर निकलने को कहता है।नही निकलने पर उसके घर कॉल करने लगता है।शर्म की वजह से पीयूष बाथरूम के शीशे को तोड़ आत्महत्या कर लेता है।वही पुलिसवाला नंगी देवी का विडिओ बना लेता है।पुलिसवाला देवी के पिता विद्याधर पाठक (संजय मिश्रा ) को पोलिस थाने बुलाता है। देवी की जमानत देने को कहता है ,उसे बताता है देवी क्यों पकड़ी गई।आम परिवार की तरह घर आने पर देवी की धुनाई होती है।वही देवी को अपने किये पर कोई शर्म नही है।उसे लगता है ,लड़का अच्छा था ,दोनों प्यार करते थे।पर वो भूल जाती है ,वो बनारस में है ,जहाँ लीव इन रिलेशन तो दूर की बात।प्यार पर चपले गिरती है।पीयूष के मरने के बाद पुलिसवाला दोनों बाप बेटी को ब्लैक मेल करता है।कभी कोर्ट -कचहरी के नाम पर तो कभी उसकी नंगी विडिओ उपलोड करने के नाम पर।उनको 3 महीने में 3 लाख रूपए देने को कहता है।दोनों बाप -बेटी मिल कर हर महीने रूपये का इंतज़ाम करते है। कभी फिक्स डिपॉज़िट तोड़ कर ,कभी देवी की नई रेलवे की कांट्रेक्टिंग नौकरी की मदद से तो कभी पिता की छोटी सी पूजा -पाठ की सामग्री की दुकान से तो कभी दूकान पर काम करने वाले अनाथ बच्चे झोटला के ऊपर दांव लगा के।एक सीधे -साधा संस्कृत शिक्षक ,कर्म कांड करवाने वाले पिता अपनी उसूलो को छोड़ बच्चे के ऊपर दांव लगता है ,सिर्फ लोक -लाज के भय से।दूसरी तरफ दीपक डोम जाती का होता है।ये बनारस के डोम घाट /हरिश्चंद्र घाट पर रहता है।इनका पुश्तैनी काम लाशों को जलना है।दीपक इन सब से निकलना चाहता है।वो सिविल इंजीनिरिंग में डिप्लोमा कर रहा है।इसी बीच उसे एक बड़ी जाती वाली लड़की शालू गुप्ता (श्वेता त्रिपाठी) से प्यार हो जाता है।प्यार की शुरुआत फेसबुक पर बात -चीत से होती है।शालू को जब मालूम होता है ,दीपक छोटी जाती है ,उसे कोई फर्क नही पड़ता। दीपक को कहती है ,तुम्हे अच्छी नौकरी लग जाये ,तो घरवालो से बात करेगी।घरवाले नही मानेगे तो उसके साथ भाग जाएगी।दीपक प्लेसमेंट की तैयारी में जी -जान से जुट जाता है।शालू अपने परिवार वालो के साथ तीर्थ को जा रही होती है ,तभी उनकी बस नदी में गिर जाती है।शालू की मौत हो जाती है।उसे हरिश्चंद्र घाट पे जलाने को लाते है।आज घाट पर बहुत भीड़ होने और दीपक का पिता के दारू पीने की वजह से।दीपक को आपने भाई की मदद लाश जलने में करने थी।घाट पे उसे मालूम होता है ,शालू की बस का एक्सीडेंट हो गया है।सामने चिता पर शालू लेटी है।शालू की मौत के बाद दीपक टूट जाता है। काफी मुश्किल से उसे इलाहाबाद बाद में नौकरी लगती है।उधर देवी भी पुलिसवाले का पूरा पैसा चूका कर ,रेलवे की नौकरी छोड़ देती है।आगे पढ़ने के लिए इलाहाबाद चली जाती है।इलाहाबाद जाने का एक और कारन पीयूष के माता -पिता से माफ़ी मांगना और सचाई बताना भी है।पीयूष के पिता देवी को समझ नही पाते है ,देवी को गली दे घर से जाने को कहते है।देवी गंगा मैया में ,पीयूष का दिया गिफ्ट बहा कर फुटफुट कर रोने लगती है।वही पास बैठा दीपक उसे रोता देख ,पानी पीने को  देता है।सामने एक नाव वाला सवारी की तलाश में इनको अपने साथ संगम देखने जाने को कहता है।दोनों तैयार हो जाते है।नाव में बैठ कर दोनों बात करना शरू करते है। दीपक बताता है ,संगम दो बार आना चाहिए।एक बार अकेले एक बार जब आपके साथ कोई हो।फिल्म खत्म हो जाती है।साथ में छोटे शहरो की सच्चाई दिखा जाती है।कैसे दो बालिग लोगो को मिलने के लिए शादी -शुदा होने का ढोंग करना पड़ा।पकडे जाने पर शर्म से जान देनी पड़ती है। कुछ घटिया पुलिसवाले मौके का फयदा उठाते है।लाचार माँ -बाप अपनी उसूलो को छोड़ लोक -लाज के चक्कर में पड़ जाते है।दूसरी तरफ छोटी जाती का होने के बवजूद दीपक आखिर है ,तो एक इन्सान।उसे भी पढ़ना है ,कुछ करना है।उसे भी प्यार हो सकता है,सुन्दर भविष्य की कल्पना कर सकता है।कैसे आज भी फेसबुक छोटे जगहों के लिए बड़ी बात है।कैसे दीपक शालू को घूमाने के लिए दोस्तों से मोटरसाइकिल मांगता है ,पेट्रोल भरवाने के शर्त पर।शालू के साथ रेस्तरॉ जाना और ऐसे बरताव करना ,जैसे वो सेजवान सॉस रोज खाता हो।दीपक के दोस्तों का कहना लड़की अपर कास्ट है ,ज्यादा सेंटी मत होना ,जरुरी नही शहर में सब समझदार हो।शालू का शेरो -शायरी से प्यार।कैसे देवी और दीपक दोनों अपना प्यार खोते है।पर हिम्मत नही हारते।साहस के साथ जीवन जीना और दुःख को भूलने की कशिश करते है।किसी के जाने से दुनिया रुक तो नही जाती।आगे बढ़ना ही पड़ता है ,या उन्हें उन्हें ग़ालिब के शेर रास आ गई होगी।  
आँखों में महफूज रखना सितारों को 
अब दूर तलक सिर्फ रात होगी 
मुसाफिर तुम भी हो मुसाफिर हम भी है 
किसी ना किसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी।   

Tuesday, 11 August 2015

तारीफ में कंजूसी ,तुम सुन्दर हो !!!!

दिन के एक बज रहे थे।शतेश खाना खाने घर पर आये थे।अमूमन वो मेरी तारीफ कभी -कभार ही करते है।आज कभी -कभार वाला दिन था।कहते है,तपस्या बहुत अच्छी दिख रही हो।घर पर तो तुम बहुत अच्छे से रहती हो ,बाहर जाते वक़्त क्या हो जाता है ? लीपा -पोती से अजीब बन जाती हो।यही कहना मेरे भाई का भी है।शायद इन दोनों को जैसे -तैसे वाली लड़कियाँ  पसंद है।उलझे बाल ,फैला काजल ,गेहुआ रंग ,नो पाउडर,लाली  ,लिपस्टिक।खैर जो भी हो हर इंसान को अपनी तारीफ अच्छी लगती है।मैं भी खुश हो गई।शतेश के जाने के बाद मैं तुरंत शीशे के पास  भागी। देखने के लिए क्या मैं सच में अच्छी दिख रही हूँ।मुझे तो कुछ खाश नही दिखी मैं। उल्टा मैं काजल और बाल को ठीक करने लगी।फिर ख्याल आया कही शतेश मेरा मजाक तो नही बना रहे थे ,या आज ऑफिस से लेट तो नही आना।जो मक्खन लगा रहे हो।थोड़ा गुस्सा आया ही था ,की शतेश का चेहरा सामने आया।कितने प्यार से तो कहा था ,आज अच्छी दिख रही हो।शायद बाहर के बारिश का असर हो ,लड़का कवि बन रहा हो।शीशे को पीछे छोड़ , मैंने  सोफे पे आसान जमा "टुयूस्डेस विथ मोर्री "मीच अल्बोम् की लिखी हुई किताब पढ़ने लगी।किताब पढ़ ही रही थी कि ,मेरी एक दोस्त "डेसी" का कॉल आया।डेसी एक यूरोपियन लड़की है ,जिसका रियल नाम बहुत ही कठिन है।वो अपना दूसरा नाम ही दोस्तों को बताती है।अभी कुछ दिनों पहले ही वो टैक्सस मूव हुई है।कॉल पर कहती है ,हे लवली ,कैसी हो तुम ? टैक्सस में बहुत गर्मी है।सोचा तुमसे बात करू ,तुम्हारी बाते ठंढी हवा के झोके जैसी होती है।मैंने हँसते हुए कहा मैं ठीक हूँ।अरे बच के रहना ,एक तो गर्मी ऊपर से ठंडी हवा का झोका ,शर्दी -जुकाम हो जायेगा।हम दोनों हँसने लगे।बातो -बातो में दोनों थोड़े इमोशनल भी हो गए। हम दोनों ने साथ में बहुत अच्छा समय बिताया था।संगीत में दोनों की रूचि ,तो म्यूजिक कंसर्ट में कई बार साथ जाना।गर्ल्स डे आउट ,और भी बहुत कुछ। मैंने हमेशा उसमे एक चीज़ देखी उसे ,जो अच्छा लगता है ,उसे बिना देर किये तारीफ करती है।फ़ोन रखने के बाद मेरा मन थोड़ा देर डेसी और उसके बच्चो के आस -पास घूमता रहा।मेरी एक दोस्त ने मुझे एक दो बार कहा भी है ,तपस्या तुम बातो को दिल से ले लेती हो।मैंने हँसते हुए उससे कहा था ,क्या करे मीन राशि जो ठहरे।वैसे भी जब भगवान ने दिल दिया है ,तो कभी -कभार  सिर्फ खून को पंप करने के अलावा कुछ और भी करवाओ दिल से। उसका भी स्वाद बदलेगा।वरना बोर नही हो जायेगा ? डेसी को याद करते हुए मैं सोच रही थी ,हमलोग कितना कंजूसी करते है ,तारीफ करने में।कुछ लोग तारीफ भी करते है ,तो दुखी मुद्रा में।जैसे मुझे याद है ,जब मैं स्कूल में पढ़ती थी।भगवान की दया से अच्छे नम्बर आ जाया करते थे।बगल में रहने वाली शास्त्री जी की पत्नी माँ को देखती तो कहती ,सुने है लवली क्लास में फर्स्ट आई है ? माँ सीना चौड़ा कर कहती हाँ जी।शास्त्री जी की पत्नी कहती ,कैसे ना आती फर्स्ट ,कोई घर का काम नही करती।सिर्फ पढ़ना ,खेलना और स्कूल जाना।वो तो बचपन की बाते थी।जब बड़ी हुई कॉलेज जाने लगी।दोस्त कहते अच्छी दिखती है ,पर बाल क्यों बच्चो जैसे छोटे -छोटे रखे है ? पढाई हुई ,जॉब लगा।फिर अच्छा हुआ बेटी कमाने लगी, वैसे हमलोग तो बेटियों का कमाया नही खाते।ये कमो बेस तारीफ से लिपटा ताना इंडिया में हर कही मिल जायेगा आपको।बेटी की कमाई की डर से माँ मेरी शादी के पीछे पड़ गई।शादी हुई।ससुराल आई।आस -पास वाले दुल्हन यानि मुझे देखने आये।फिर वही सुन्दर तो पतोह बाड़ी लेकिन तनी पातीर बाड़ी (सुन्दर तो बहू है पर दुबळी है ) ,कोई बात नइखे खाइये -पीये  घर में रहिये त मोटा जैहीए (कोई बात नही खायेगी ,पियेगी ,घर में रहेगी तो मोटी हो जाएगी ) मानो इससे पहले मैं उपवास पे थी या वन में रहती थी। हद हो गई नाम तपस्या इसका मतलब ये नही मैं संत थी।लोगो को कमी निकलने या दुःख के साथ तारीफ करना अच्छा लगता।कभी गलती से ये नही कह सकते तुम अच्छी /अच्छे हो।वैसे तो मैं जो चीज़ या इंसान अच्छा लगता है ,उसकी तारीफ तुरंत कर देती हूँ।पर कई बार बातो में भूल जाती हूँ। तो आज उन सभी दोस्तों की तारीफ दिल से क्योकि दिल से अलग -अलग काम लेते रहना चाहिए।
आज मैं सब का नाम लिख रही हूँ। उम्मीद करती हूँ ,किसी  बुरा न लगे ,वैसे तारीफ सबको अच्छी लगती है। 
आकांक्षा तुम मुझे हर ड्रेस में प्यारी लगती हो।मैंने कई बार तुम्हे कहा भी है।मुझे तुम्हारी याद बहुत आती है।तुम मेरी पहली दोस्त थी परदेश में ,और हमेशा रहोगी।सरिता तुम मुझे लहंगे वाली फोटो में बहुत अच्छी लगी।वैशाली जब तुमसे पहली बार मैं मिली थी ,बहुत प्यारी लगी तुम। पर पार्टी की मस्ती में कहना भूल गई।पूनम तुम्हारी तारीफ तो मैंने कॉल करके की।स्वाति तुम तो हम दोनों को पसंद हो।अपराजिता मैंने तुम्हे कहा भी था , शोभना के बेबी सॉवर वाले दिन। तुम ब्लैक साड़ी में बहुत अच्छी लगी थी।वही शोभना नव्या के जन्मदिन के दिन बहुत अच्छी लग रही थी,खाना तो तुम बेमिशाल बनाती हो।बबिता आप बैलून फेस्टिवल के दिन बहुत प्यारी लग रही थी ,आपका ड्रेस बहुत अच्छा था। मैं सोच रही थी बोलूं तबतक आरव दिख गया।अंकिता आपको मैं फार्मर्स डोनेशन डे फेस्टिवल वाले दिन कहना चाह रही थी ,की अच्छी दिख रही हो।पर आप व्यस्त थी।निक्की तुम्हारे हाथ के खाने के हम दोनों कायल हो गए थे।तुमसे पहले -पहल मिलना ही यादगार बन गया। गुंजन और शैलजा आपदोनो आरव के जन्मदिन पर बहुत अच्छे दिख रहे थे।ज्योति बंसल आप नारंगी वाले सूट में तो  कहर ढा रही थी।सारे लड़को को मेरा सलाम ,आप अपने हंसी -मजाक ,देश -दुनिया ,ज्ञान -विज्ञान की बातो से मुझे प्रभावित करते है।जिन दोस्तों को न कह पाई हो ,उनसबको मेरा सलाम आप सब बहुत बहुत अच्छे और सुन्दर वयक्तित्व के मालिक हो।मेरे सारे इंडिया वाले दोस्तों ,आपलोगो को  फेसबुक ,वाटसप पर तारीफ करती हूँ ,करती रहूंगी।मेरी सारी जादुई फैमिली।जिनको भागवान ने खूबसूरती के साथ प्यारा दिल ,तेज दिमाग और सद्भाव की भावना दी है।रश्मि मौसी ,डेसी दी ,शिल्पी ,बंटी ,अनामिका ,रिचा ,चुलबुल ,पवन ,बिटू ,टिंकू ,सनी मामा ,प्रकाश ,मनिंदर भईया आपकी तारीफ के  लिए शब्द नही मेरे पास।मैं बहुत भाग्यशाली हूँ जो आपलोग जैसे दोस्त और परिवार  का साथ मिला।अंत में तारीफ करे तो खुशी से करे।कभी -कभी तारीफ से ख़ुद को भी अच्छा लगता है।जैसे मुझे  लग रहा है ,आपकी करके !

Monday, 10 August 2015

pahli camping in lack placid , barish, khana or chabhi !!!!!

लॉन्ग वीकेंड था, हमने बॉस्टन जाने का सोचा रहे थे ।तभी मिस्टर जैन का कॉल आता है।अबे भाई कैंपिंग चलेगा।शतेश का मन बॉस्टन जाने का था।कारण इन्होने अपने दोस्तों को आने का बोल रखा था।मैंने कहा शहर तो हम हमेशा घूमते है ,इस बार कुछ अलग करते है।कैंपिंग ही चलते है।शतेश ने बॉस्टन वाले दोस्तों को अगले लॉन्ग वीकेंड आने का प्रोमिस किया ,और कैंपिंग के लिए हाँ किया।इस बार भी हम वही चार कपल जो वाशिंगटन गए थे, कैंपिंग के लिए गए।ऐसे में कुछ गड़बड़ न हो :) आगे पढियेगा क्या -क्या हुआ।न्यू जर्सी से लेक प्लेसिड 6 की दूरी पर है ,लगभग कनाडा बोडर।एक गाड़ी में मिस्टर & मिसेस शाक्या और हम दोनों। दूसरी में मिस्टर & मिसेस जैन और मिस्टर &मिसेस बंसल।प्लान हुआ हमलोग शाक्या जी के घर पहुंचे ,वहां से  रास्ते में कही बाक़ी के लोगो से मिल लेंगे।हमलोगो को कुछ सामान भी लेना था ,इसलिए मिलने का जगह वॉलमार्ट रखा गया। सभी वॉलमार्ट में मिलते है।पहले सोचते है कुछ खा ले फिर शॉपिंग करेंगे, कारण 1 बज गया था।फिर खाने के लिए गाड़ी रोकनी पड़ती।मैंने पिज़्ज़ा का ऑप्शन लिया।सामने पिज़्ज़ा शॉप पे मिसेस और मिस्टर शाक्या के साथ खाने चले गए।मिस्टर ,मिसेस जैन और बंसल ने कुछ हल्का खाना वॉलमार्ट के सबवे से ले लिया।हमलोग खा कर जब पहुंचे।सब मिलकर सामान ढूंढने लगे।मसलन ग्रिल के लिए सब्जियाँ ,चिप्स ,पानी की बोतल,पेपर प्लेट ,ग्लास ,लकड़ी ,तेल , कोक ,ब्रेड ,दूध और भी कुछ स्नैक्स।इनसबके के बीच हमें पता ही नही चला ,हमने 3 घंटे शॉपिंग और खाने में लगा दिए।बाहर निकल कर सामान गाड़ी के ट्रंक में रखना शुरू किया।एक तो दोनों का ट्रंक पहले से भरा था ,स्लीपिंग बैग ,कंफ्टर और बैग से ,उसपे इतना सामान।जैसे -तैसे  ठूस -ठूस के भरा गया। कुछ पैर के नीचे ,तो कुछ आगे पीछे करके।इसके बाद हमारी असली जर्नी शुरू हुई।गाने सुनते ,बाते करते हमलोग जा रहे थे। तभी मिस्टर शाक्या ने बताया ,मिसेस शाक्या बहुत अच्छा गाती है। हमने उनको गाने को बोला।एक दो बार रिवाज की तरह ना कहने के बाद वो गाने लगी।सच में इतनी सुरीली आवाज ,मेरे रोंगटे खड़े हो गए।मैंने शक्या जी को बोला आप इतना अच्छा टैलेंट ,अमेरिका की चक्कर में बरबाद कर रहे है।इन्हे इंडिया ले जाइये ,थोड़ा और सीखे और इसके बारे में सीरियसली सोचे।ऐसे ही गीत -संगीत और हंसी -मजाक के साथ ,हमलोग लगभग अपने गंतव्य तक पहुँच चुके थे।रास्ते में हमे एक बहुत बड़ा पहाड़ ,पेड़ो से ढका और उसके सामने लेक दिखी।बहुत ही सुन्दर व्यू था।हमने थोड़ी देर के लिए गाड़ी रोकी और थोड़ा फोटोसेशन किया।फिर निकल पड़े।करीब आधे घंटे बाद हम कैंपिंग साइट पर पहुंचे।वहाँ पहले से मिस्टर जैन और कम्पनी पहुंचे हुए थे।सामान निकाल कर रात की तैयारी कर रहे थे।हमलोग भी गाड़ी पार्क कर उतरे।बाहर काफी ठण्ड थी।हमारी गाड़ी में से भी जो जरुरी सामान था निकला और जहाँ ग्रिल की जगह थी ,पहुंचे।मिस्टर जैन & बंसल ने एक टेंट लगा दिया था।हमारी गाड़ी से दूसरा टेंट निकाल कर उसे लगाने में मदद करने लगे।लड़कियों के जिम्मे ग्रिल और खाने की जिम्मेदारी थी। हमलोग लोग उसमे लग गए।लड़को के जिम्मे टेंट और ड्रिंक थी ,जो वो शुरू कर दिए।ग्रिल में ही काफी टाइम लग गया। मिसेस जैन ने कहा तबतक चावल -दाल बना लेते है।रात हो गई थी और बाहर सारी दुकाने भी बंद होती।हमलोग खाते -खाते गेम्स भी खेल रहे थे।ठण्ड थी सो आग भी जलाया गया था। सब उसके चारो तरफ बैठ के मजे ले रहे थे।एक तस्वीर उस यादगार पल की। 
बीच में एक मशाल जलाई गई थी। वैसे वहां दूर -दूर पे रौशनी का इंतज़ाम था।मुझे सबसे ज्यादा डर बाथरूम का था।पर यहाँ पर वो भी अच्छे ढंग से बना हुआ था।हर कैंपिंग साइट के पास एक नल ,चार्जिंग पॉइंट ,ग्रिल की जगह थी।इसी बीच लड़के बेडिंग भी टेंट में लगा रहे थे।शतेश और मिस्टर शाक्या ने एयर बेड ख़रीदा था।उसको एक इलेक्ट्रॉनिक /बैटरी वाले पंप से भरना होता था। हमलोग उसे चार्ज करके ही नही ले गए थे। उसे कम से कम 24 घंटे चार्ज करने थे। अब क्या करे ? कैंपिंग साइट के स्टाफ ने बताया यहां पर बहुत लोग आये है ,किसी के पास तो होगा। माँग लो उनसे।शतेश और शाक्या जी किसी से पंप माँग कर लाये।बेड काम लायक फूल गया।फूलने के बाद बेड थोड़ा बड़ा होगया था।तय हुआ एक टेंट में दो लोग और एक में 6 सो जाते है।मिसेस शाक्या को सर्दी से थोड़ी दिक्क्त थी।इसलिए एक में मिस्टर & मिसेस शाक्या सोने चले गए। दूसरे में बाकी लोग।सोने से पहले जब हमलोग आग के चारो तरफ थे ,हल्की बारिश होने लगी।हमलोगो ने फटाफट सामान बंद करके कुछ गाड़ी में ,कुछ टेंट में रखी।मशाल जलते रहने दिया ,ताकी कोई जानवर ना आ जाये।दूसरा टेंट जिसमे हम 6 थे ,वो काफी बड़ा था।हमलोग को कोई दिक्क्त नही हुई।थके होने की वजह से थोड़ा बात चीत करके हमलोग जल्दी सो गए।रात को अचानक तेज हवा के साथ बारिश होने लगी।मुझे थोड़ा डर लगा ,पर देखा सब आराम से सो रहे है।टेंट हिल रहा था ,मैंने मुँह पे कंबल डाली और मैं भी सो गई।सुबह बारिश बंद हो गई थी।शतेश और मिसेस जैन राइस कूकर में चाय और टोस्टर में ब्रेड टोस्ट कर रहे थे।बाकी लोग भी फ्रेश होक धीरे -धीरे आ रहे थे।सबने चाय ,टोस्ट खाया। मैंने और बसल जी ने दूध कंफ्लेक्स खाया।मिस्टर बंसल बोले मैं रात भर नही सोया।कमीनो तुममे से कोई नही जगा।मैं रात को टेंट पकड़ के बैठा था ,कि कही गिर न जाये। मिस्टर जैन  हँसते हुए कहते है ,अबे उठा क्यों ?गिरता तो उससे चोट तो लगती नही ,पड़ा रहता शरीर पर वैसे ही :) नास्ता के बाद सब तैयार हुए ट्रैकिंग पे जाने के लिए।कैंप साइड से पास में ही "हाई जॉर्ज फॉल" और ट्रैकिंग साइट था। हमलोग वहां पहुंचे टिकेट्स कुछ 15 /19 डॉलर की थी ,पर पर्सन।फॉल को देखते फोटो लेते हुए हम ट्रैकिंग कर रहे थे।2/3  घंटे बाद सब थक गए। एक जगह आराम किया और राफ्टिंग के लिए प्लान बनाने लगे।राफ्टिंग का टाइम देखा तो निकल चूका था । हमलोग लेट हो गए थे।वापस गाड़ी में सवार हो के खाने के लिए चल पड़े।लेक प्लेसिड का एक छोटा सा डाउनटाउन भी था।हमलोग वहां पहुंचे ,एक थाई रेस्त्रां में।फिर से  हमारे साथ वाशिंगटन जैसी घटना घटी।जैसे -तैसे सबने खाना पूरा किया।मिस्टर शाक्या पहली बार थाई फ़ूड खाए थे।उन्होंने कान पकड़ा फिर नही जायेंगे कभी थाई रेस्तरॉ।उसके बाद हमने डाउनटाउन के चक्कर लगाये।पार्किंग की यहां भी बहुत दिक्क्त थी।मिस्टर जैन ने कहा हमलोग लेक देख लेते है।उनके बताये रास्ते से सब लेक साइड तो पहुंचे ,पर ये प्राइवेट प्रॉपर्टी थी :) थोड़ा रुक के हमलोग वहां से निकल लिए।वहाँ से सब लोग आइसक्रीम शॉप पहुंचे।मिस्टर जैन और बंसल ने पहले पहुंच कर आइसक्रीम खा ली थी।उनको मिसेस जैन ने आज के राशन के लिए वालमार्ट चलने को कहा। हमलोग आइसक्रीम खा के डाउनटाउन में ही घूमने लगे।पास में एक म्यूजिक शो हो रहा रहा लेक के किनारे। बहुत सुन्दर व्यू था।हमलोग थोड़ी देर वहाँ रुक गए।मिस्टर जैन का कॉल आया सामान ले लिया है ,साइट पे पहुंचे सबलोग।हमलोग वापस कैंप आये।आज थोड़ी कम ठण्ड थी।टाइम भी ज्यादा था ,सबलोग आराम से गपशप करते हुए ,खाना पका रहे थे।आज लड़को को खाना पकाना था।फिर से ग्रिल हुआ ,पर आज उतना स्वादिस्ट नही बना था :) खाते हुए हमलोग कल का प्लान बना रहे थे।मिस्टर शाक्या को गाड़ी से कुछ निकलना था।पर उनकी गाड़ी की चाभी नही मिल रही थी।सारे मिल कर उनकी गाड़ी की चाभी ढूंढने लगे।रात थी तो कम रौशनी की वजह से थोड़ी दिक्क्त आ रही थी।शाक्या जी परेशान 2 क्या करे ? वहाँ फ़ोन का नेटवर्क भी नही मिल रहा था ,की गाड़ी के इन्सुरेन्स वाले को बुलाया जाये। इसी बीच मैं चाभी ढूंढते वाशरूम पहुँची।मुझे वहाँ चाभी टिशू पेपर के निचे रखी मिली।मैंने शाक्या जी को जब चाभी दी खुशी से मुझे गले लगाते हुए कहते है ,शतेश तेरी वाइफ बहुत लकी है।मुझे पार्टी देने का वायदा किया ,जो अब तक बाकी है :) गाड़ी ,ट्रैफिक ,खाना हमेशा से कॉमन रहा जब भी हम चार कपल साथ गए :P  इनसब में लेट हो गया था।इसलिए जल्दी सोने का तय किया गया  , कल थोड़ा घूम के वापस घर भी आना था।रात को मिस्टर बंसल ने हमे बहुत हँसाया।सुबह 5 /6 बजे से लड़के जग कर वाक कर थे।शतेश ने आज फिर चाय चढ़ा दी थी ,जो की प्लान में नही था।प्लान था कही भी बाहर नास्ता करने का।सब फ्रेश होक आ गये।चाय देख सब खुश ,की नास्ता का टेंशन ख़त्म ,ब्रेड ,बिस्कुट ,नमकीन बस हो गया।सारा सामान गाड़ी में लड़के रखने लगे ,तबतक हमलोग तैयार हो गए।मिस्टर शाक्या ने रास्ते में "हॉवे केव" देखने को कहा।सब वहाँ पहुंचे।टिकट पर पर्सन 25 डॉलर था। केव के अंदर बहुत ठंढ थी।बोट टूर भी था।थोड़ी देर के लिए केव  की सारी रौशनी बंद करके हमे घुप अँधेरे का अहसास भी कराया गया। 90 मिनट का पूरा टूर था।मिस्टर & मिसेस जैन ने अपनी गाड़ी मिस्टर बंसल के यहां लगाई थी। हमलोग को उधर जाना उल्टा पड़ता।हुमलोगो ने सबको फिर मिलने का वादा दे ,अलग -अलग रास्ता लिया।वहाँ से वापस हमलोग गपसप ,हँसी -मजाक ,कॉफी पीते शाक्या जी के घर पहुंचे। उन्होंने हमे बहुत रोका पर शतेश के ऑफिस का कॉल था,10 बजे रात को।इसलिए हमने अपनी गाड़ी ली वहाँ से और विदा लिया। 

Wednesday, 5 August 2015

Aarav Ka Janmdin ,Desh ki yaad ,Chay ka cup or dher sara pyar !!!!!

बहुत हुई दुनियादारी फिर से आती हूँ ,अपने हल्के -फुल्के ब्लॉग पे।शुरुआत करती हूँ आरव के जन्मदिन से। इससे अच्छा कुछ हो भी नही सकता।आरव मेरा सुपर हीरो ,मेरा राजकुमार। मुझे पता है आरव ,तुम्हे राजकुमार कहलाना पसंद नहीं।वही अगर प्रिंस कहो तो खुश हो जाते हो।अरे बुद्धू काश तुम मेरे ब्लॉग पढ़ सकते तो हँसते ,कैसे पस्या ऑन्टी तुम्हे बेवकूफ बना रही है।आले मेरे प्रिंस, हिंदी में प्रिंस ही राजकुमार है।क्या करे आजकल के बच्चे।एक मेरा बचपन था,जब मेरी मौसी ने मेरा नाम लवली रखा।सब मुझे लबनी- लबनी कह कर चिढ़ाते।लबनी मिटटी का बर्तन होता है ,जिसमे ताड के पेड़ का रस यानि देसी दारू रखते है।मैं खूब रोती मेरा नाम लवली क्यों रखा ? माँ मुझे बहुत समझती बहुत प्यारा नाम है तुम्हारा।बच्चे तो तुमसे चिढ़ कर के चिढ़ाते है। उस वक़्त हमारे यहां डिक्सनरी नही थी।मैं कुछ 4 /5 वीं में पढ़ रही होंगी।माँ ने बगल वाले भईया से डिक्सनरी मांग के मेरा नाम का मतलब दिखाया ,तब जाके मैं खुश हुई।खैर मेरे राजकुमार जब तुम थोड़े बड़े होना ,तब ये ब्लॉग पढ़ के हँसना।वैसे तो आरव का जन्मदिन 30 जुलाई को था ,पर उस दिन गुरुवार की वजह से पार्टी शानिवार को रखी गई।गुरुवार को मैंने उसे कॉल किया था। उसकी तबियत ठीक नही थी। मैंने उससे पूछा क्या हुआ आरव ? कहता है ,कुछ नही पस्या ऑन्टी थोड़ा सर्दी -जुकाम हुआ है। मैं हँस -हँस  के लोट -पोट। इतना छोटा बच्चा और बड़ो जैसी बातें अपनी तोतली आवाज़ में।फिर मुझे याद दिलाता है ,मेरा जन्मदिन है ,गिफ्ट लेके आना। ये होता है बचपन जो दिल में हो बोल दो।वैसे आज कल बनते तो सब बच्चे है ,पर बच्चो वाली कोई बात कह दो तो ,बड़पन दिख जाता है।शानिवार मैं और शतेश सुबह सारा काम फटाफट कर के तैयार हो गये पार्टी में जाने को। मिस्टर पाण्डेय अरे हाँ भाई हाँ वही नायग्रा वाले पाण्डेय जी  ने हमें 5 बजे बुलाया था।दुबिधा में ना पड़े याद कीजिए नियाग्रा वाला ब्लॉग ,मिस्टर पाण्डेय ही आरव के पिताश्री है ,तो वही बुलाएँगे न।धूप बहुत थी ,सो हमने उन्हें कॉल करके कहा ,हमलोग 6 बजे तक पहुँचते है।हमलोग मिस्टर पाण्डेय के घर 6 बजे तक पहुँच गए। गाड़ी पार्क कर रहे थे ,तभी देखा मिस्टर जैन और मिसेस जैन (वाशिंगटन ट्रिप वाले ) अपने पडोसी होने का फ़र्ज़ अदा कर रहे थे :) मतलब वो डेकोरेशन में हेल्प कर रहे थे। साथ में शतेश के छपरा वाले भईया भी थे। मेरी उनसे पहली बार मुलाकात हुई। हाय /हेलो के बाद मिस्टर पाण्डेय ने बताया छपरा वाले भईया यानि मिस्टर प्रकाश भी मेरे सारे ब्लॉग पढ़ते है।मुझे बहुत खुशी हुई। मैं अंकिता ,आरव की माँ से मिली ,पूछा कुछ मदद चाहिए। उन्होंने कहा नही सब हो चूका है ,बस एन्जॉय करो। उन्होंने मेरा पसंदीदा काम मुझे सौप दिया :) थोड़ी देर में और भी मेहमान आने शुरू हुए। करीब 40 /45  लोगो को बुलाया गया था।इसी दौरान मैं आरव के बेस्ट फ्रेंड "कान्हा " से मिली। साथ में कान्हा की माँ यानि मिसेस प्रकाश से भी मिली।पार्टी बाहर लॉन में रखी गई थी।मिस्टर वर्मा और मिसेस वर्मा भी अविका के साथ आये।मैं सबको अंकिता की हस्त कला मेरे कहने का मतलब डेकोरेशन दिखा रही थी।गर्मी का मौसम बहार हल्की -हल्की हवा चल रही थी।ऐसे में इतने सारे भारतीय लोग। हल्की रौशनी। बहार ही नास्ता चल रहा था।तभी अविका ने प्लस्टिक की फोर्क तोड़ डाली अपने मुँह में।सब डर गए ,पर शुक्र है कुछ नही हुआ उसे।उल्टा उसने अपनी माँ को दर्द दे दिया ,उनकी ऊँगली काट के :)  ये सब भारत की याद दिला रही थी। ऐसा लग रहा था ,किसी भोज में आये हो। बस कमी थी पात में बैठने भर की।लगभग सब एक दूसरे को जान रहे थे।ज्यादतर लोग उत्तरप्रदेश /बिहार के थे।खाना पीना चल रहा था।हल्की आवाज संगीत भी बज रहा था,बेबी डॉल मैं सोने दी।हा -हा -हा संगीत शब्द और बेबी डॉल जम नही रहा।तो यूँ कहे म्यूजिक भी बज रहा था।मुझे डर था बीच में कोई चिल्ला ना पड़े ,आरे लाव ता दुनाली ,बेटा के जन्मदिन में गोली न दगाई त का बात भईल (ले आओ बंदूक ,लड़के के जन्मदिन पे गोली तो चलनी चाहिए ) शुक्र है ,किसी ने कहा नही ,वरना बेकार में फजीहत होती दुनाली कहाँ किसी के पास इहाँ भईया।एक तरफ बड़ो की महफ़िल तो दूसरी तरफ बच्चे ने  भी मार -काट मचायी थे।गिफ्ट आरव का और आरव के दोस्तों को उनको छीनने या खोलने की जल्दी।इसी बीच मिस्टर वर्मा आये। उनकी अभी डेढ़ महीने के एक बच्ची है।जैसे ही उन्होंने बच्ची की ट्रॉली नीचे रखी ,चारो तरफ से बड़े ,बच्चे उसे देखने लगे।बच्चे तो और गौर से देख रहे थे। शायद मन ही मन खुश हो रहे हो ,चलो हमसे भी छोटा कोई है।महिला मंडल अपना पति पुराण और कैसे बच्चो को संभाले शुरू की हुई थी।लड़को का पता नही कौन सी राजनीती ,खेल या वीसा रूल की बात कर रहे थे। कुछ तो ये भी सोच रहे होंगे इतनी सारी महिलाये ,पर एक भी ढंग की नही।हाँ ये तो भूल ही गई थी ,आरव तैयार होने का नाम नही ले रहे थे। उनको उस वक़्त डोरीमन की ब्लैक टी -शर्ट ही पहननी थी ,जो की घर में थी नही।जैसे तैसे अंकिता ने समझा कर उन्हें तैयार किया। फिर केक कटने का टाइम हुआ।पुरे पार्टी का सबसे मजेदार पल था वो ,   सारे बच्चे केक के पास ऐसे खड़े हो गए ,जैसे उनका ही जन्मदिन हो। एक दो ने तो केक कटने से पहले उसे साइड से चखना शुरू कर दिया था। जैसे तैसे उन्हें रोक गया ,की पहले केक तो कट हो।जैसे आरव मुम्बतियो को बुझाने गया ,दो /तीन बच्चे मिल कर बुझाने लगे।सबने बर्थडे सॉन्ग गाना शुरू किया ,तभी आरव का एक दोस्त जोर -जोर से हैप्पी बर्थडे टू यू गाने लगा ,जल्दी -जल्दी। उसको लगा होगा जैसे सांग ख़त्म होगा केक मिल जायेगा।सांग ख़त्म हो आरव को अंकिता केक खिलाये ,इससे  पहले वो बच्चा हाथ से ही ,बड़ा सा केक का टुकड़ा उठा के खा लेता है।सब हँसते -हँसते लोट -पोट।उसकी माँ थोड़ा झेंपते हुए हँस रही थी। पर उसकी माँ शायद ये भूल गई ,यही तो है बचपन।उसके बाद हमलोग खाने की तरफ गए।मेनू में पाव भाजी ,पुलाव -छोले ,रायता ,सलाद और कोम्प्लिमेंट्री अंचार और नीबू -मिर्च था। इससे मिसेस जैन और मिसेस शाक्या कुछ याद आया (वाशिंगटन ट्रिप ). खाना बहुत ही स्वादिस्ट था। मेरे हाथ में प्लेट शुरू से अंत तक था।मिसेस जैन कहती है ,कितना खाओगी तपस्या बस करो।डेजर्ट में मेरा पसंदीदा आइसक्रीम था ,पर जुकाम -खांसी की वजह से मैंने खाया नही।इसके बाद सब एक- एक करके जाने लगे। मैं ,मिसेस जैन और प्रियंका (मिसेस वर्मा की बहन ) अंकिता को थोड़ा किचेन में हेल्प किया। फिर रिटर्न गिफ्ट लिया और ,जाने को निकले। मिस्टर पाण्डेय हमें रोकने लगे ,हमलोग बाहर रुक कर बात ही कर रहे थे ,तभी आरव की आवाज आई। पस्या ऑन्टी अब जाओ। सब हँसने लगे। शतेश महाराज तेज बने उन्हें लगा आरव उनको जाने को नही कहेगा। पूछते है आरव मैं भी जाऊ ?आरव का तुरंत जबाब हाँ जाओ। फिर मिसेस जैन को भी ऊँगली दिखा के कहता है ,आप भी जाओ।आरव को शायद गिफ्ट खोलने की जल्दी थी, या वो अपनी माँ को आराम से बैठे देखना चाहता था।मिस्टर पाण्डेय ने शतेश को कहा अबे कहाँ जाओगे ,चाय पीके जाना। फिर शुरू हुआ चाय का खेल ,हम कहे हमें नही पीना है ,मिसेस जैन कहती है मेरे घर चल लो वही पी लेना। मिसेस प्रकाश कहती है ,मेरा घर पास में है ,मैं बना के लाती हूँ। तभी अंकिता कहती है ,छोड़ो यार मैं नही थकी ,चलो घर के अंदर मैं बनती हूँ चाय।इस चाय के चक्कर में 10 मिनट तक हुआ की पिए या नही ,अगर पिए तो कहाँ ? खैर चाय अंकिता के घर पे ही बनी। आरव बेचारा सोच रहा होगा ,हद हो गई। अभी तो जाने को कहा ये लोग फिर आके बैठ गए। मिस्टर प्रकाश हँसते हुए कहते है ,तपस्या तुम्हारे ब्लॉग के लिए मसाला मिल गया। अंकिता और मिसेस प्रकाश मज़ाक में कहती है ,तपस्या कृपया आरव की तुम्हे भागने वाली बात मत लिखना। हमारा बच्चा छोटा है आगे इसकी शादी -ब्याह भी तो करनी है :) लेकिन मई कैसे इस मजेदार पल को भूल जाऊ और ना लिखूँ। थोड़ी देर चाय के साथ गपशप चलती रही। सबने चाय ख़त्म कर ली थी ,मैं अभी पी ही रही थी ,तभी अंकिता खाली कप्स इक्ठा करने लगी। मेरे हाथ से भी कप लेने लगी। मैंने कप को जोर से पड़ते हुआ कहा ,नही मैं अभी पी रही हूँ। एक बार फिर हँसी का माहौल बन गया। मैंने कहा भईया शतेश अब चलते है ,तुम तो कुर्सी छोड़ नही रहे। यहां पे सिग्नल पे सिग्नल मिल रहे है।मिस्टर जैन और मिस्टर प्रकाश भी हँसते हुए चलने को तैयार होते है। एक बार फिर से आरव और फैमिली और मिस्टर एंड मिसेस प्रकाश को अलविदा कह ,जैन दम्पति और हमदोनों पार्किंग तक आते है।पहले हमारा प्लान मिस्टर जैन के यहाँ रुकने का था ,लेकिन जल्दी में कपड़ो वाला बैग घर पे रह गया। कपडे तो फिर भी ठीक थे ,पर मेरे आँखों के लेंस की प्रॉब्लम थी।इसलिए ना चाहते हुए भी आना पड़ा।पीछे रह गया मेरा बॉक्स भरा पास्ता।मेरे जाते वक़्त फ्रीज़ के ऊपर बैठा दुःख में गा रहा होगा।चला भी आ ,आ जा रसिया ,ओ जाने वाले आजा तेरी याद सताए ,यादो का घरोंदा कही टूट ना जाये :) खूब सारी  मस्ती ,हँसी -मजाक ,अच्छे खाने ,प्यारे दोस्तों और उनके प्यारे -प्यारे बच्चों से मिल कर आरव का जन्मदिन और यादगार हो गया। कुछ लाइन सिर्फ आरव के लिए।
तुम्हारा जीवन चमके सूर्य की तरह 
निरंतर प्रयास ,प्रगति हेतु हो तुम्हारा। 
राह में पत्थर आएंगे परीक्षाओ के 
तुम्हारा लक्ष्य है ,पहुँचना उच्त्तम शिखर पर। 
शुभकामना है ,तुम्हे सदा हमारी 
पहुँचो तुम कार्य क्षेत्र के विश्व शिखर पर।
एक बार फिर से ढेर सारा प्यार मेरा बाबू ,मेरा राजकुमार ,मेरा आरव ,तुम हमेशा खुश रहो।