Tuesday 24 May 2016

KHATTI-MITHI: बुद्ध द्वारा तपस्या , तपस्या द्वारा बुद्ध !!!!

KHATTI-MITHI: बुद्ध द्वारा तपस्या , तपस्या द्वारा बुद्ध !!!!: मैं हमेशा की तरह नास्ता करके फोन -फोन खेल रही थी।मेरी एक दोस्त का मैसेज आया।तपस्या आज बुद्ध पूर्णिमा थी।हमलोग गंगा स्नान के लिए बनारस गए थे...

बुद्ध द्वारा तपस्या , तपस्या द्वारा बुद्ध !!!!

मैं हमेशा की तरह नास्ता करके फोन -फोन खेल रही थी।मेरी एक दोस्त का मैसेज आया।तपस्या आज बुद्ध पूर्णिमा थी।हमलोग गंगा स्नान के लिए बनारस गए थे।साथ ही भोले बाबा के दर्शन भी हो गए।मैंने कहा अरे वाह !चलो पाप धोने के क्रम में गंगा को तो गन्दा किया ही ,ये बुद्ध पूर्णिमा के दिन भोले बाबा को क्यों परेशान कर दिया :)वो बोली अरे ना रे, एक हमारे पाप से गंगा क्या गन्दी होंगी।तू अपना सोच।फिर बोली - घरवालों ने सोचा नहान के साथ भोले बाबा के दर्शन भी हो जायेगे।हम भी बहती गँगा में हाथ धो लिए।पता नहीं अब कब काशी विश्वनाथ के दर्शन हो ?वैसे ये बता- अमेरिका में जैसे होली ,दुर्गा पूजा ,दिवाली मनाती हो ,वैसे नहान का भी कोई उपाय है क्या ? मैंने कहा -यार ऐसी तो कोई सुबिधा नहीं है यहाँ।कोई गंगा कहाँ से लेकर कर आऐ ? हाँ इंडियन राशन की दूकान पर ,गंगा जल छोटी-छोटी शीशियों में बिकती जरूर है।कौन जाने पानी है या गंगा जल।थोड़ा दुखी होकर मैंने कहा -देखो ना मैंने तो बिना नहाए ,पूजा किये ही नास्ता कर लिया।उसने कहा कोई बात नहीं।तुझे मालूम थोड़े था।मेरे घर वाले भी ना ,भगवान राम ,कृष्ण ,भोलेनाथ ,हनुमान जी ,दुर्गा जी ,लक्ष्मी जी ,सरस्वती माता के पूजा के दिन एक महीने पहले से बताने लगते है।लभली ये पर्व आने वाला है।और देखो आज।बुद्ध सिर्फ किताबो तक ही सिमटे है मेरे समाज में।बाद बाकी घूमने- फिरने ,कभी -कभार बोध गया या राजगीर चले जाते है।याद रहे सिर्फ घूमने के लिहाजे से जाते है।हाँ कोई -कोई पिंड दान के लिए भी गया चला जाता है।दोस्त से बात होने के बाद मैंने सोचती रही ,बुद्ध जब भगवान विष्णु के नवें अवतार के रूप में जाने जाते है ,तो उन्हें विष्णु सा सम्मान क्यों नहीं ? जबकि विष्णु से ठीक उलट उन्होंने शांति और अहिंसा को माना।कही इसका कारण ये तो नहीं कि ,शांति और अहिंसा को समाज में दब्बूपन के रूप में समझा जाता रहा है।शाम की सैर का विषय भी आज यही था।शतेश ने कहा -ऐसा नहीं है तपस्या ,एशिया पेसिफिक रीजन में बुद्ध के फॉलोवर भरे पड़े है।नार्थ अमेरिका में भी कुछ पर्सेंट है।मैंने कहा तो फिर दीखते क्यों नहीं ? शतेश बोले -क्योकि हमलोग ढूंढते या जानने की कोशिश नहीं करते।ये भी देखो ना, बोध गया में दुनिया भर से लोग आते है ,बुद्ध पूर्णिमा के दिन और हम ही कभी नहीं गए वहाँ।वैसे सुना नहीं है -"ओम शांति ओम" का डायलॉग -अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो तो सारी कायनात उससे मिलाने कोशिश में लग जाती है।तुम भी दिल से चाहो बुद्ध मिल जायेंगे हा -हा हा।मैंने कहा हो गया ? पहली बात तो ये कि ,ये "द अलकेमिस्ट "की लाईन है।दूसरी मैंने ये मूवी नहीं देखी।शतेश बोले कुछ भी।मैंने कहा बुक पढ़ लेना।"एंड ,व्हेन यू वांट समथिंग ,आल द यूनिवर्स कनस्पिर्स इन हेल्पिंग यू टू अचीव ईट" बाई "पाउलो कोएल्हो" मैंने कहा छोडो ये सब बातें।इंडिया चले क्या ? शतेश हँसते हुए बोले -कही बौद्ध भिक्षु बनने का इरादा तो नहीं कर लिया तुमने।मैंने कहा ऐसा कुछ नहीं है।शतेश बोले वैसे ,बुद्ध तक जाने का रास्ता तुम ही हो।मैंने पूछा वो कैसे ? शतेश हँसते हुए बोले क्योकि तुम तपस्या हो।मुझे भी हँसी आ गई, कहा इतना बकवास जोक कुछ तो तरस खाओ।फिर मैंने कहा- बुद्ध द्वारा तपस्या से ,बुद्ध को आत्मबोध हो गया था ,और मैं ! मैं तपस्या द्वारा बुद्ध -"आत्मबोध प्राप्त करने के लिए प्रयास हूँ"।शतेश बोले हम्म ,एफर्ट टू अचीव सेल्फ रेअलाजसन।मैंने कहा अबकी सही समझे बाबू।वाक करते- करते हमलोग वही लेक के किनारे पहुँचे।बुद्ध से बिहार ,बिहार से गाँव तक पहुँच गए।फिर पुरानी बातों का सिलसिला।कभी खुश होते तो कभी उदास।मुझे बुद्ध की एक कहानी याद आई।मैंने शतेश को सुनना शुरू किया -किसी गाँव में बुद्ध उपदेश दे।कह रहे थे -हर किसी को धरती माता की तरह सहनशील और क्षमाशील होना चाहिए।क्रोध एक ऐसी आग है ,जिसमे क्रोध करने वाला दूसरो को जलायेगा और खुद भी जल जायेगा।उपदेश सुनने वालो में एक अत्यन्त क्रोधी स्वाभाव का व्यक्ति बैठा था।उसको ये सब बाते बकवास लगी।थोड़ी देर तक वो सुनता रहा ,फिर गुस्से में लाल -पीला होकर बुद्ध को कहा - तुम पाखंडी हो।बड़ी -बड़ी बातें करना ,लोगो को भ्र्मित करना यही तुम्हारा काम है।आज के समय में ऐसी बातों का कोई मायने नहीं।ऐसे कड़वे वचन सुनकर भी बुद्ध शांत रहे।बुद्ध ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।ये देख कर वो व्यक्ति और क्रोधित हो गया।गुस्से में बुद्ध के ऊपर थूक कर वो वहाँ से चला गया।अगले दिन जब उस व्यक्ति का क्रोध शांत हुआ तो ,वो बुद्ध को ढूँढ़ने निकला।बुद्ध दूसरे गाँव उपदेश देने चले गए थे।दूसरे गाँव पहुँच कर उसने बुद्ध को ढूँढा और उनके पैर पकड़ कर माफ़ी माँगने लगा।बुद्ध बोले -तुम कौन हो भाई ? उसने कल वाली घटना बताई।बुद्ध प्रेमपूर्वक बोले -भाई बिता हुआ कल तो मैं वही छोड़ कर आ गया ,और तुम अभी तक वही अटके हो।तुम्हे अपनी गलती का अहसास हो गया।तुमने पश्चाताप कर लिया।अब तुम निर्मल हो चुके हो।बुरी बाते और बुरी घटनाएँ याद करने से वर्तमान और भविष्य दोनों बिगड़ जाते है।बीते कल या आने वाले कल के बारे में मत चिंतित रहो।वर्तमान को जियो।आओ अपने वर्तमान में कदम रखो।और इस तरह वो व्यकि बुद्ध की शरण में आ गया।तो शतेश बाबू कथा गईल बन में सोचअ अपना मन में।शतेश बोले सच में अगर बुद्ध को अपना लिया जाय तो विश्व में शांति और सुख चैन कायम हो सकता है।कोई दुखी ना हो।मैंने कहा नहीं बाबू दुःख तो जब तक सुख है ,जीवन पर्यन्त रहेगा।पर हाँ उनके बचने के उपाय भी है।जैसा कि बौद्ध धर्म का आधार है -1 संसार में दुःख है।
              2 दुःख का प्रमुख कारण तृष्णा (तीव्र ईक्षा ) है। 
              3 दुखो का समुदाय है। 
              4 दुखो से बचने के उपाय है। 
       

Monday 16 May 2016

KHATTI-MITHI: आम ,कब्रिस्तान और हमारा प्यार !!!

KHATTI-MITHI: आम ,कब्रिस्तान और हमारा प्यार !!!:  सिंगल लेन रोड।गाड़ी मे मैं और शतेश बसंतपुर से मढ़ौरा लौट रहे थे।जून का महीना था।सूर्य देवता भी एकदम हॉटम हॉट थे।मालूम नहीं उनको किस बात का ग...

आम ,कब्रिस्तान और हमारा प्यार !!!

 सिंगल लेन रोड।गाड़ी मे मैं और शतेश बसंतपुर से मढ़ौरा लौट रहे थे।जून का महीना था।सूर्य देवता भी एकदम हॉटम हॉट थे।मालूम नहीं उनको किस बात का गुस्सा था ? कही लड़कियाँ हॉट होती है ,वाला जोक तो नहीं सुन लिया ? या फिर सुबह सूर्य को जल देते समय ,किसी महापंडित की नजर सामने से गुजरती हुई हॉट लड़की पर पड़ गई ? यही कह-कह कर मैं हँस रही थी।शतेश मुस्कुराए जा रहे थे।मुझसे बोले -यार तपस्या कम से कम भगवान को तो छोड़ दो।तभी सड़क पर पड़े किसी कील के चुभ जाने से गाड़ी की टायर पंचर हो गई।शतेश बोले लो हो गया कांड।गाड़ी में एक्स्ट्रा टायर भी नहीं है।मै कहा अब ? शतेश बोले रुको एक गराज वाले को जानता हूँ।उसे कॉल करता हूँ ,शायद आ जाये।शतेश ने उसे कॉल लगाया।उससे बात होने के बाद मुझसे बोले -तपस्या वो तो एक घंटे में आयेगा।मैंने आने को बोल दिया है।तबतक चलो गाड़ी में बैठते है।फिर मुस्कुरा कर बोले-इतने में तुम दो -चार सूर्य भगवान पर और जोक कह लेना।मैं भी हँस पड़ी।मैंने कहा गाड़ी में बैठने से अच्छा सामने एक बगीचा दिख रहा है ,वहाँ चलते है ना।शतेश बोले चलो ये भी अच्छा रहेगा।बगीचे कुछ 5 मिनट की दुरी पर था।वहाँ पहुँचने के बाद हमदोनो ने राहत की साँस ली।हल्की-हल्की हवा बह रही थी।बगीचे में आम ,लीची और बहेड़ा के पेड़ लगे थे।आम के पेड़ पर लगे आम को देख शतेश बोले -तपस्या चलो अच्छा हुआ यहाँ आये।तुम्हारा पसंदीदा फल भी मिल गया।तोडू क्या ? मैंने कहा नहीं-नहीं रहने दो ,कही मालिक आ गया तो ? शतेश बोले एक आम से कुछ नहीं होता।चलो तो।हम दोनों पेड़ के पास पहुँचे।वहाँ पहुँचे तो मालूम हुआ कि ,हमलोग एक कब्रिस्तान में पहुँच गए है।सामने सीमेंट की बानी एक पलंगनुमा कब्र थी।सफ़ेद रंग से पुती हुई।उसके ऊपर सुग्गापंखी रँग से उर्दू में कुछ लिखा था।शायद मरनेवाला /वाली का नाम -गाँव हो।मैंने कहा चलते है शतेश।शतेश हँसते हुए बोले -क्यों डर गई क्या ? मैंने कहा नहीं तो।पर यहाँ क्यों बैठना ? शतेश बोले रुको तो सही।अब तो ये आम सार्वजानिक लग रहा है।खा के चलते है।बहुत दिन हुए पेड़ से तोड़ कर आम खाये और पेड़ पर चढ़ने लगे।आम का पेड़ ज्यादा ऊचा नहीं था।शतेश आराम से चढ़ कर ,दो आम तोड़ लाये।हम दोनों उसी पेड़ के नीचे बैठ कर आम खाने लगे।मैं आम खाते हुए सामने कब्र को देख रही थी।शतेश से बोली ,देखो ना बेचारे /बेचारी की आत्मा तड़प रही होगी।शतेश बोले भला क्यों ? मैंने कहा जिसके जिस्म पर मनो मिटटी का बोझ हो, वो भला खुश कैसे होगा ? शतेश बोले तुम इतनी इमोशनल क्यों हो जाती हो ? भला मरे हुए को क्या फर्क पड़ता है।आम खाओ।फिर बोले -अरे तपस्या तुमने तो सलमान की आँखों वाला प्यार बताया ही नहीं।मैंने हँसते हुए कहा अभी तक सलमान पर ही अटके हो।अपने रक़ीब से इतना प्यार।हाय !मैं मर जाऊँ।शतेश बोले अरे नहीं ,मैं तो तुम्हे खुश करने के लिए पूछ बैठा।चलो मान लो अभी मैं तुम्हारा सलमान हूँ फिर।मैंने मुस्कुरा कर कहा -शुक्रिया ,शुक्रिया ,शुक्रिया दिल रखने के लिए।शतेश भी मजाक़ में बोले पड़े -कुबूल है ,कुबूल है ,कुबूल है।मुझे हँसी आ गई।मैंने शतेश से पूछा -मालूम है 3 बार कुबूल कब कहते है ? शतेश मुस्कुरा कर बोले -जब तुम 3 बार शुक्रिया बोले तब मेरी जान।मेरी और हँसी छूट गई।हाथ में लगे आम को चाटते हुए बोली -अरे मेरे भोले सलमान 3 बार कुबूल ,निकाह यानि शादी के वक़्त बोलते है।शतेश फिर तपाक से बोले मुझसे शादी करोगी ? मैंने कहा -ना भाई हम दिल दे चुके सनम।शतेश फिर उदास होकर बोले तो लौटाओ मेरा कुबूलनामा।मैंने कहा ऐसी भी क्या जल्दी है ? उधार रहा।वैसे भी मेरी शादी हो गई है :) थोड़ी देर तक एक खामोशी छाई रही।फिर शतेश बोले -जाने -ए -मन  हमको मालूम है इश्क़ मासूम है ,दिल से हो जाती है गलतियाँ ,शब्र से इश्क़ मेहरूम है।अरे ईतना भाव ना खाओ तपस्या।मान भी जाओ।तुम्हे क्या मालूम मेरे दिल का हाल अब तो तू ही तू हर जगह आज कल क्यों है? ,रास्ते हर दफा सिर्फ तेरा पता मुझसे पूछे भला क्यों है ? एक पल प्यार का ज़िन्दगी से बड़ा ,ऐसा मेरा ख़ुदा क्यों है ? बोलो ना तपस्या।मै तब भी मुस्कुरा के चुप रही।शतेश अबकी बोलते है ,उफ्फ ! ईतनी अकड़ पर तो सलमान भी भाग जाए।मेरी हँसी छूट गई।मैंने कहा प्रीतम प्यारे  -मुझे मालूम है ,ये सलमान नकली है।वैसे असली भी होता तो मैं उसे हाँ नहीं कहती।शतेश बोले वो भला क्यों ?मैंने कहा - क्योकि मुझे शादी शुदा और इंगेज लोगो में दिलचस्पी नहीं :)उसे हाँ कहने से मेरे कितने रिश्ते टूट जायेंगे।मेरा दीवाना शतेश पागल हो जायेगा।मेरी प्रिय दोस्त आकांक्षा मेरी दुश्मन हो जायेगी।मेरी बहन शिल्पी मेरा मुँह तक नहीं देखेंगी।फिर सलमान तुम्हारी आँखे मुझे कितनी भी पसंद क्यों ना हो ,वो शतेश की आँखों से प्यारी नहीं बन सकती।पसंद और प्यार अलग -अलग होते है शतेश शुभ्रांशु जी।मेरी बात सुनकर शतेश हमेशा की तरह मुस्कुराये।थोड़ा और मेरे करीब आये।मेरी हाथो को हाथ में लिया और पूछे तो शतेश के लिए कुबूल है।मैंने कहा हट पगले एक जन्म के लिए एक ही सजा काफी है :P दोनों हँस पड़े।पीछे से एक गाने की आवाज आ रही थी।शायद कोई साइकिल सवार अपनी चाईनीज़ मोबाईल पर गाना सुनते हुए जा रहा था।
इतनी मोहब्ब्त सह ना सकूँगा ,सच मानो जिन्दा रह ना सकूँगा
तुझको सम्भालू ये मेरा जिम्मा मैं हूँ तो क्या गम जाने तमन्ना।
अब जीना मरना मेरा जानम तेरे हाथ है ,मैंने कहा ना सनम अब तू मेरे साथ है ,
तो फिर संभाल कि मैं चला ,जाना कहाँ आ दिल में आ। 
साथिया तूने क्या किया ,बेलिया ये तूने क्या किया। 
नोट :-ये कहानी काल्पनिक है :)


Thursday 12 May 2016

KHATTI-MITHI: इरफ़ान की आँखों से ज्यादा इंटेस मेरा प्यार !!!!

KHATTI-MITHI: इरफ़ान की आँखों से ज्यादा इंटेस मेरा प्यार !!!!: ख़ूबसूरत है वो ईतना सहा नहीं जाता ,कैसे हम ख़ुद को रोक ले रहा नहीं जाता। चाँद में दाग है ये जानते है हम लेकिन ,रात भर देखे बिना उसको रहा नह...

इरफ़ान की आँखों से ज्यादा इंटेस मेरा प्यार !!!!

ख़ूबसूरत है वो ईतना सहा नहीं जाता ,कैसे हम ख़ुद को रोक ले रहा नहीं जाता।
चाँद में दाग है ये जानते है हम लेकिन ,रात भर देखे बिना उसको रहा नहीं जाता।
 रोग फिल्म का ये गाना बैकग्राउंड में गाना बज रहा था ,और मैं किचेन में चाय बना रही थी।शतेश मेरे बगल में खड़े हँसे जा रहे थे।मैंने कहा क्या हुआ ? हँस क्यों रहे हो ?अच्छा सॉन्ग तो है।शतेश बोले अच्छा या नॉनवेज सॉन्ग है :P मैंने कहा दिमाग़ सही जगह हो तो अच्छा सॉन्ग है।शतेश टीवी की तरफ मुड़े और बोले - यार तपस्या इसकी हिरोइन कितनी हॉट है ना।मैं भी टीवी की तरफ मुड़ी।गाने को देख कर कहा- गाने के बोल खूबसूरती पर है लेकिन ,मुझे तो इस लड़की में वो दिख नहीं रही।बाकि तुम लड़को के खूबसूरती का क्या पैमाना है ,आई डोंट नो।वैसे शतेश -जिस तरह से इरफ़ान खान उस लड़की को देख रहा है ,मैं होती तो भाग ही जाती।शतेश पूछते है क्यों भाई ? ईतना टैलेंटेड ऐक्टर है।तबतक चाय बन गई होती है।मैं चाय लेकर हॉल में पहुँची।शतेश नास्ता निकालने चले गए।हम दोनों की ये अंडरस्टैंडिंग है कि ,अगर चाय एक बनाए तो दूसरा नास्ता निकालेगा :P उनके आने के बाद मैंने कहा हाँ टैलेंटेड तो है ,पर मुझे उसकी मेढ़क जैसी आँखे नहीं पसंद।शतेश बोले अरे इसकी आँखे ही तो ऐक्टिंग करती है।कितनी इंटेंस आँखे है।मैंने कहा होंगी -पर मुझे तो इनसे डर लग जायेगा।पता ही नहीं चलता प्यार से देख रहा है या घूर रहा है।वो तो भला हो बैकग्राउंड म्यूज़िक का ,जिनसे मालूम होता है ,डरा नहीं रहा प्यार कर रहा होता है।शतेश जोर से हँस पड़े।बोले अभी प्रेम को तुमने समझा नहीं बाबू।खाली पढ़ने ,सुनने या देखने से कुछ नहीं होगा।मैंने भी कहा मेरे श्याम सुन्दर सिर्फ इरफ़ान की आँखो को लेकर तुमने मेरे प्रेम की नॉलेज पे संका किया।तुम्हारी आँखे मेंढक जैसी नहीं तो, मैं कैसे उन आँखों के प्यार को समझू ? जाओ अब से इरफ़ान की मूवी बंद।शतेश मुस्कुरा के बोले अरे नहीं यार मैं तो ऐसे ही कह रहा था।तुम ही तो हो, मेरे प्रेम की रानी।बातो -बातो में मैंने चैनल "एम ट्यून" से "म्यूजिक इंडिया" लगा दिया।इस चैनल पर शाम को पुराने सॉन्ग आते है।शाम की हमारी चाय लगभग इन्ही गानो के साथ होती है।इस बार गाना बज रहा होता है -लग जा गले कि फिर ये हसी रात हो ना हो ,शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो ना हो।शतेश फिर हँसने लगे।मैंन कहा- शतेश तुम होपलेस हो।कुछ नहीं हो सकता तुम्हारा।कितना रोमांटिक गाना है।इसके मायने कितने ख़ूबसूरत है।शतेश बोले मैं भी रोमांटिक समझ के ही हँस रहा हूँ।नॉनवेज तुम्हारे दिमाग़ में भरा है।जब कभी तुम मुझे प्यार से खा जाने की बात करती हो ना ,तब भी मैं वेज ही समझता हूँ।हम दोनों हँसने लगे।चाय की अंतिम चुस्की के साथ शतेश बोले -तपस्या तुम्हारे गाँव वाले ब्लॉग ने गाँव की याद दिला दी।वैसे सच में तुम्हारा गाँव बहुत खूबसूरत है।मानो भगवान् खूबसूरत लोगो की हर चीज़ खूबसूरत बनता है :) मैंने कहा हो गया या और भी बकवास बाकी है।शतेश बोले अरे सच में ना ,मुझे तुम्हारा गाँव बहुत पसंद आया।फिर कभी चलेंगे। फिर वो बोले -वैसे एक बात कहूँ तुम कभी -कभार प्रेम पर भी कुछ लिख दिया करो।देखे तो सही इरफ़ान के आँखों से डरने वाली तपस्या ,सलमान की आँखों की कैसी तारीफ करती है :P सलमान का नाम और मैं चुप रह जाती ? मैंने भी कहा चैलेंज ना दो बलम बबुआ।अगला जो ब्लॉग होगा पढ़ लेना।और सुन लो मेरे सलमान को इनसब में मत घसीटो।रहा मेरा तुम्हे खा जाना कहना, वेज है या नॉनवेज ये तुम जानो।मेरे लिए वो तुम्हारे इरफ़ान खान के इंटेंस आँखों से ज्यादा मेरा इंटेंस प्रेम है।मेरे लिए तो वो बस एक ऐसी ईक्षा है जो कि सिर्फ मै समझ सकती हूँ, या कोई खाने की ईक्षा रखने वाला।तुम अभी बालक हो।मेरी बात से शतेश मुस्कुरा उठे।तो चलिए फिर प्यार की शुरुआत हो चुकी है खट्टी मिट्ठी पर।अगले ब्लॉग में प्यार और हमदोनो।तबतक के लिए सभी प्यार करने और प्यार में पड़ने वालो को मेरा प्यार।

Tuesday 10 May 2016

KHATTI-MITHI: रँगीन तस्वीरें और मेरे गाँव की सैर !!!

KHATTI-MITHI: रँगीन तस्वीरें और मेरे गाँव की सैर !!!: गाँव पहुँचे और गाँव ना घूमे तो क्या मजा ? तो चलिए आज आपलोग को "ईनारबरवाँ" की सैर कराती हूँ।ईनारबरवाँ मेरे गाँव का नाम है।मुझे नही...

रँगीन तस्वीरें और मेरे गाँव की सैर !!!

गाँव पहुँचे और गाँव ना घूमे तो क्या मजा ? तो चलिए आज आपलोग को "ईनारबरवाँ" की सैर कराती हूँ।ईनारबरवाँ मेरे गाँव का नाम है।मुझे नहीं मालूम इस गाँव का नाम ईनारबरवाँ क्यों पड़ा ? वैसे मुझे ऐसा लगता है कि ,इस गाँव में लगभग हर घर के आगे एक कुआँ है।और भोजपुरी में कुआँ को ईनार कहते है।तो शायद इस वजह से पूर्वजो ने इस गाँव का नाम ईनारबरवाँ रखा होगा।गाँव की बात हो और खेत का जिक्र ना हो ? भाई खेत से ही तो हमारे गाँव की सुंदरता में चार चाँद लग जाते है।हमारे यहाँ मुख्यत: गन्ने और धान की खेती होती है।कुछ लोग गेंहू और मक्का भी बोने लगे है।पर अभी भी इनकी तादात कम है। गेंहू तो फिर भी ठीक है ,पर मक्का तो एक दो लोग ही लगाते।उसपे भी मक्के की ईतनी रखवारी की पूछो मत।बच्चों का आम खेल होता मक्का चोरी करना।मालिक ने भी परेशान होकर एक मचान बना ली है खेत के बीच।पहले मेरे गाँव की मुख्य फसल गन्ने की एक तस्वीर -
गन्ने की खेती जनवरी -फरवरी महीने में शरू होती है।मैं मार्च -अप्रैल में गाँव गई थी।तबतक गन्ने की फसल का शैशव काल शुरू हो गया था।आह कितना खूबसूरत नज़ारा था।एक तरफ गन्ने की हल्की पीली और हरे रंग से मिश्रित पत्तियां।दूसरी तरफ मक्के के गहरी हरी रंग की पत्तियां और सामने सोने जैसे गेंहू की बालियां।उफ्फ ये धरती भी ना कितनी अदा दिखाती है।एक साथ इतनी खूबसूरती ,प्रकृति के अलावा किसी की हो ही नहीं सकती।चलिए एक तस्वीर मक्के के खेत और मचान के साथ। 
तस्वीर निकलवाने के दरमियाँ वहाँ खेत में कुछ बच्चे और दो औरते काम कर रही थी।काम छोड़ कर वो लोग हमें देखने लगे।मैं भी उनकी तरफ देख के मुस्कुराई।एक बच्चा बहुत प्यारा लगा मुझे।मैंने उससे उसका नाम पूछा ? शरमाते हुए उसने अपना नाम बताया।ओह !मेरी मंद बुद्धि या जीवन की व्यस्ता मैं उसका नाम और उसे भूल गई।इस बार जब मैं घर गई थी ,तो उसके बारे में अपने चाचा की लड़की से पूछा।उसने बताया वो कही कमाने चला गया है। 
जो नील रंग के कमीज में है ,वही वो बच्चा है।जो औरत मेरे साथ है ,वो शायद उसकी माँ थी।मुझसे बोली- ये मलकिनी हमार भी फोटो ले ली।कभी फोटो खिचवयले नईखी हमनी के।उसका ईतना कहना था ,कि मेरी चाचा की लड़की उसपे गुस्सा हो गई।मुझे भी डाँटते हुए बोली क्या जरुरत छोट जात से बात करने का ?मैंने कहा जाने दो ना एक तस्वीर की ही तो बात है ,निकाल देती हूँ।वो गुस्से में बोली मैं नहीं निकालूंगी। मैंने कहा कोई बात नहीं मेरी तस्वीर तो निकालोगी ना ? और फिर मैं जा के उनके साथ खड़ी हो गई।मेरी चचेरी बहन ने तस्वीर तो निकाल दी ,पर रास्ते भर मुझसे दूर -दूर रही।घर आ कर दादी और चाची को भी बता दिया कि, मैंने छोटी जात के साथ सट के फोटो निकाली।मुझे नहाने का ऑडर मिला।अब गुस्सा मुझे आ रहा था ,पर दादी की वजह से मैं नहाने चली गई। 
जब पहली औरत के साथ मैंने तस्वीर निकलवाई तो ,दूसरी औरत को भी हिम्मत आई जो पास ही घास काट रही थी।बोली मलकिनी खाली उनके फोटो हमार ना ? मैंने उनके साथ भी एक फोटो ली।फिर डिज़िटल कैमरे में उनकी फोटो उनको दिखने लगी।बच्चे तो खुशी से नाच रहे थे।और तरह -तरह से पोज़ से फोटो निकलवा रहे थे।अफ़सोस की वो सारी तस्वीरें लैपटॉप फॉर्मेट के साथ डिलीट हो गई।ये कुछ कैमरे की मेमोरी में थी ,जो की मेरी यादो का हिस्सा बानी रही। 
ये गेंहू का खेत ,जो मक्के के खेत से थोड़ी दूर पर था।इसकी सुंदरता से मैं खुद को रोक नहीं पाई।ढ़लते हुए सूरज की रौशनी में गेंहू की बालियाँ ,मानो धरती पे किसी ने सुनहरी रौशनी बिछा दी हो।आपको बता दूँ ,ये तस्वीर मक्के के खेत में जाने के पहले की है।देखिये जरा यहाँ हम दोनों बहनो में कितना प्यार है :)
और ये रही उस घास कटती महिला के साथ तस्वीर लेने के बाद का नज़ारा।दोनों बहनों का मुँह फुला हुआ हा -हा -हा।अच्छा हुआ कैमरा मेरी एक और बहन के पास था।हमदोनो को हँसाने के लिए वो कुछ -कुछ बातो के साथ तस्वीरें लेने लगी।पर हमारी दुरी कायम रही :) इस बार भी जब गाँव गई थी ,तो तस्वीरें थोड़ी बदली है ,
पर मेरे घरवाले अभी भी मालिक -मलकिनी ही बने है।इसका एक उदाहरण -मेरा भाई गाँव में घर बनावा रहा था।मैं ,शतेश ,भाई और चाचा की लड़की शाम को घर देखने गए।वहाँ कुछ कुम्हार खड़े थे।भाई को देख के बोले सब ठीक बा नु बाबू।भाई बोला हाँ।दीदी ,जीजा जी आये है ,तो घर दिखाने ले जा रहा हूँ।उनलोगो ने मुझे प्रणाम किया।मैंने भी जबाब में प्रणाम कर दिया और हाल चाल पूछ लिया।मेरे चाचा की लड़की को मेरा उनलोगो को प्रणाम करना अच्छा नहीं लगा।उनको कहती है -अब इससे प्रणाम करवाओगे तुमलोग।उनलोगो ने कुछ नहीं बोला।मुझे शर्म आ गई अपनी बहन की बात से।मैंने बहन को घर चलने को कहा।घर आकर मैंने उसे डाँटा तो कहती है, तुमलोग गाँव का रिवाज़ ख़राब कर रहे हो।मैंने उसे समझने की कोशिश की।पर उसका जबाब था ,तुमलोग तो यहाँ रहते नहीं ,तुमलोग क्या समझोगे गाँव और गाँव के लोग को।
 दुःखद नोट पे क्यों गाँव की तस्वीरों को छोड़ना।ये देखिये गेंहू की बाली के आगे फीकी मेरी सुंदरता।कुछ और भी तस्वीरें है जो अगली बार -

Friday 6 May 2016

KHATTI-MITHI: रँगीन तस्वीरें और मेरा खाँटी गाँव !!!

KHATTI-MITHI: रँगीन तस्वीरें और मेरा खाँटी गाँव !!!: न्यू जर्सी से डलास ,टेक्सास आये हुए एक महीने से ज्यादा हो गया है।लेकिन अभी तक मैंने क्लाजट रूम ठीक नहीं किया मैंने।आज सोचा ये शुभ काम कर ही...

रँगीन तस्वीरें और मेरा खाँटी गाँव !!!

न्यू जर्सी से डलास ,टेक्सास आये हुए एक महीने से ज्यादा हो गया है।लेकिन अभी तक मैंने क्लाजट रूम ठीक नहीं किया मैंने।आज सोचा ये शुभ काम कर ही दूँ।क्लाजट रूम एक छोटी कोठरी जैसा होता है।जिसमे रैक बने होते है ,कपड़े रखने के लिए।माने अलमारी का काम अमेरिका में क्लाजाट रूम पूरा करता है।कपड़े ठीक करने के दौरान मुझे एक अल्बम मिला।कपड़ो को छोड़ -छाड़ कर मैं तस्वीरें देखने लगी।ओह! कितनी प्यारी-प्यारी यादें ताज़ा हो गई।सच में "थॉमस वेजवूड" को दिल से सलाम जिन्होंने फोटोग्राफी की सौग़ात दी।वैसे कई बार तस्वीरें भी आपका मनोरंजन करती है।बोर हो रहे हो तो पुराना अल्बम देख लो।चेहरे पे मुस्कराहट आ जाएगी।इंडिया में तो कुछ सालो पहले तक ये रिवाज था कि ,कोई गेस्ट आये चाय -पानी ,थोड़े गपसप के बाद अल्बम पकड़ा दो।मेरे कहने का मतलब रिवाज से ये था कि ,अल्बम एक तरह से अतिथि को एंटरटेन करने का तरीका भी था।उस वक़्त बिजली तो होती नहीं थी।टीवी कहाँ से चलाते ? फ़ोन भी लैंडलाइन ही हुआ करते थे।आदमी भी कितना बकर -बकर करेगा? उस वक़्त अल्बम ही हमारी आन और शान होती थी।छोड़िए जनाब पुरानी बातें।बिजली- पानी का रोना तो हमेशा से रहा है।आते है मेरे अल्बम पर ,जो कि पुरानी तो है ,पर आपको तस्वीरों के जरिए मेरे गाँव ले जायेगी।तो ,लीजिए खुला मेरा पिटारा टन -टना ,ये रही पहली तस्वीर मेरे गाँव के रास्ते की और साथ इसकी कहानी -
 
दिल्ली से मैं और मेरा भाई होली में माँ के पास बसंतपुर पहुँचे थे।माँ बोली इसबार गाँव भी जाना है।बाबाजी की बरसी है।मैं कोई 3 -4 साल बाद गाँव जा रही थी।जब तक दादी थीं ,माँ और भाई तो हर साल छठ पूजा में घर जाते थे।मेरा ही पटना ,पुणे की चक़्कर में जाना रह जाता था।पहले बसंतपुर से गाँव जाने में बहुत परेशानी उठानी पड़ती थी।एक तो रास्ता ख़राब दूसरा कोई डायरेक्ट बस या ट्रैन नहीं होती थी।कई बार इस वजह से भी हमलोग चाहते हुए नहीं जा पाते थे।वैसे बसंतपुर से अब मेरे गाँव जाने के कई विकल्प हो गए है।उस वक़्त तो सुबह से शाम या रात हो जाती थी ,घर पहुँचने में।मेरा गाँव पश्चिमी चम्पारण के बेतिया जिले में आता है।इस बार भी हमलोग गाँव के लिए सुबह -सुबह निकले।पहले मलमलिया बस स्टॉप ,फिर मोहमदपुर बस स्टॉप फिर मोतिहारी बस स्टॉप फिर बेतिया।बेतिया से आखिरी बस रामनगर की लेनी होती थी।बस को खुलने में एक घंटा का समय था। हमलोगो ने तबतक समोसा ,भुजा और पकौड़ी से पेट पूजा की।फिर बस में आकर अपना स्थान ग्रहण किया।इस तरह बस बदल -बदल कर हमलोग रामनगर तक पहुंचे।रामनगर जिला मुख्यालय है।यहाँ से मेरे गाँव के लिए कोई पब्लिक सवारी गाड़ी नहीं हुआ करती थी।सिवाय झाझा के।प्राइवेट गाड़ी नदी की वजह से मेरे गाँव में जाने का नाम नहीं लेती थी।हमलोग बस से उतरे।पिता जी(पापा के छोटे भाई )हमलोग को लेने आये हुए थे।मेरे गाँव जाने का सबसे अच्छा विकल्प बैलगाड़ी और टमटम हुआ करता था।बाद में उसकी जगह ट्रेक्टर ,जीप और झाझा ने ले ली।झाझा एक जरनेटर से चलने वाली गाड़ी है।जिसमे इंजन को जरनेटर से जोड़ दिया जाता है।पीछे एक ट्रॉली जोड़ दी जाती है।जिसमे बेंच लगे होते है ,लोगो के बैठने के लिए।जब वो चलती है तो ,झक-झक -झक की आवाज आती है।शायद इसलिए लोगो ने उसका नाम झाझा रख दिया।पढ़ कर आपलोग को हँसी आ रही है ना , मुझे भी लिखते हुए आ रही है।सच में दोस्तों मुझे उसपे ना बैठने का अब तक मलाल है।मलाल का कारण ये कि अब बैलगाड़ी की तरह झाझा भी लुप्त हो रहे है।लोगो के पास अब तो गाड़ी घोड़े के बहुत ऑप्शन हो गए है।पिता जी मेरी माँ से बोले -भाभी जी बैलगाड़ी इसलिए नहीं लाया कि रात हो जाती घर जाते -जाते।गाँव के घोसी के टमटम बा ,ओही से चल जाई।माँ बोली ठीक है बड़ा बाबू।मैंने बीच में टोका - पिता जी झाझा से चलते है ना।पिता जी हँसते हुए बोले - बुड़बक, झाझा से हमलोग की घर की औरतें नहीं जाती।गाँव की छोटी जाती भरी रहती है उसमे।उनकी बात सुनकर मेरा चेहरा उतर गया।वो मेरी तरफ देख के बोले -अरे बेटा झाझा हर गाँव रोकते जायेगा तो देर हो जायेगी।दादी इंतज़ार कर रही होंगी ना।तबतक गाँव का ताँगे वाला भी आ गया।माँ को दूर से ही बोला -मलकिनी प्रणाम।मुझसे बोलता है -बबनी ढेर दिन पर आईल बानी।ठीक बानी न।मैंने मुस्कुरा कर हाँ में जवाब दिया।सामान रखा गया और हमलोग गाँव के लिए प्रस्थान किये।आगे की तरफ घोड़ेवाले के साथ पिता जी और मेरा भाई।पीछे  मैं और माँ।हमलोग रामनगर के चीनी मिल वाला रास्ता क्रॉस ही किये होंगे की घोडा रुक गया।आगे बढ़ ही नहीं रहा था।पिता जी बोले -का भईल भाई ? घोड़े वाला बोला कुछू ना बाबू साहेब घोड़िया अड़ गईल बिया।उनकी बात सुनकर ,मुझे तो अब  मालूम हुआ कि अरे ,ये तो घोडा नहीं घोड़ी है :) घोड़ी वाला घोड़ी को बोलता है  -अये ना चलबू ? चल -चल सब ठीक बा।आए हाव् रे और चाबुक से मारा घोड़ी को।घोड़ी को भी मार का गुस्सा आया।उसने अपने आगे के दोनों पैर खड़े कर दिए।उधर पीछे मैं और माँ गिरते -गिरते बचे।पिता जी बोले -भाई आराम से पीछे परिवार बा।मेरा भाई तो हमलोग को लगभग गिरते देख हँस -हँस के पागल हो रहा था।मुझे गुस्सा भी आरहा था हँसी भी।माँ के सिर का पल्लू भी भरभरा गया।कुछ लोग आस-पास के देखने लगे।वो लोग पिता जी को पहचानते थे।बोले प्रणाम भाई।पिता जी ने जबाब दिया प्रणाम -प्रणाम।तबतक घोड़ी वाले ने घोड़ी पे काबू पा लिया था।जानने वालो को पिता जी ने बताया -अरे बड़की भाभी जी के लेवे आईल रहनी ह।देखअ घोड़ी के ड्रामा खत्म होखे त घरे जल्दी पहुंची।वो लोग पिता जी से विदा लेकर चले गए।इधर माँ अपनी अस्त -व्यस्त साड़ी का पल्लू ठीक करके  गुस्से से बोली- उह्ह !मुँह मारो ये घर आवला के :P मेरा तो माँ की बात सुनकर हँसते -हँसते हालत ख़राब।पिता जी पूछे क्या हुआ बेटा ?पर माँ ने मेरा हाथ दबा दिया।ये इशारा था नहीं बताने का।उफ़ उस वक़्त माँ लोग अपने देवर या अपने गाँव के लोगो का कितना इज़्ज़त करतीं थी।अबतक घोड़ी भी मान गई थी।हमलोग ऊबड़ -खाबड़ रास्ते का मज़ा लेते हुए घर जा रहे थे।गड्ढों के बीच रास्ते में चलती टमटम ने मुझे और माँ को कई जगह पीठ में चोट लगाई।जब भी चोट लगती माँ भुनभुना उठती और मुझे बैलगाड़ी याद आती।मैंने पिता जी को गुस्से में कहा -पिता जी अगली बार बैलगाड़ी लाइयेगा ,वरना मैं नहीं आऊँगी।पिता जी और घोड़ी वाले दोनों हँस पड़े।घोड़ी वाला बोला -अरे बबी घोड़ी ज्यादा महँगा है बैल से।इसकी देखभाल भी महँगी है।मैंने कहा जो भी हो पर बैलगाड़ी में गड्ढे आने पर चोट नहीं लगती थी।अलबता हमलोग उसी में लुढ़क जाते है।आराम से लेटते।पैर फैला कर घर जाते थे।जब चाहा रस्ते में उतरे ,फिर दौड़ कर आगे चढ़ लिए।वैसे भी आपकी घोड़ी तो हमें गिराने ही लगी थी।फिर घोड़ी वाले ने मुझे घोड़ी के खड़ा होने की राज बताई।उसने बताया अरे कोई जानवर मसलन बिल्ली ,सियार या कुछ और के रास्ता काट देने से घोड़ी डर जाती है।इसलिए आगे नहीं बढ़ रही थी।मुझे पहली बार मालूम हुआ कि ,घोड़ी भी रास्ता काटने के भरम को मानती है।इसी तरह बात करते हमलोग अपने गाँव के नदी तक पहुँच गए। मेरे गाँव में रास्ता ना होने की एक वजह ये नदी भी है।ये एक पहाड़ी नदी है ,जो हर बार रास्ता बदलती रहती है।कभी अचानक इसमें बाढ़ आ जाती है ,तो कभी एकदम सूखा।जिसको भी गाँव जाना होता है ] ,नदी पार करनी ही होती है।एक तरफ से अंदाजे से बैलगाड़ी ,टमटम ,झाझा या कोई और गाड़ी धीरे -धीरे पानी में उतरती और आगे बढ़ती हुई इस किनारे पहुंचती।एक तस्वीर नदी की भी  -
      जो सुखी जमीन आपको दिख रही है वो भी नदी का ही हिस्सा है।बरसात के दिन में आप इस नदी को देख कर डर जायेंगे।इस नदी से भी कई किस्से जुड़े है।फिलहाल आपको अपने घर तक पहुँचती हूँ।नदी से करीब 15 -20 मिनट की दुरी पर मेरा घर है।शाम हो गई है।छत के एक कोने पर बैठी दादी ,हमलोग का इंतज़ार कर रही थी।चाची लोग खाना बनाने में लगी थी।मेरे चचेरे भाई- बहन ,चचेरी फुआ लोग दूर से ही टमटम देख कर हमारी तरफ दौड़ पड़े।मैं और मेरे भाई भी टाँगे वाले को रोक कर दौड़ पड़े।

Monday 2 May 2016

KHATTI-MITHI: बहू ,बियाह व् बाता -बाती !!!

KHATTI-MITHI: बहू ,बियाह व् बाता -बाती !!!: गुलाबी रँग की अनारकली ड्रेस।बेतरतीब बालो का जुड़ा।उसके ऊपर नेट का दुपट्टा और लगभग शाम होने को थी।घर के बाहर बाजे की आवाज ,तो घर में लोगों की...

बहू ,बियाह व् बाता -बाती !!!

गुलाबी रँग की अनारकली ड्रेस।बेतरतीब बालो का जुड़ा।उसके ऊपर नेट का दुपट्टा और लगभग शाम होने को थी।घर के बाहर बाजे की आवाज ,तो घर में लोगों की।बीच -बीच में कोई आवाज देता -तपस्या ये सामान कहाँ रखा है ?तो वो चीज़ देना तो।मुझे भी बहुत ख़ुशी हो रही थी ,इतनी बड़ी जिम्मेदारी का हिस्सा बनकर।ये आलम था मेरे देवर के तिलक के दिन का।गुलाबी रँग की अनारकली और वो नेट का दुपटा मेरी ही व्यस्तता की शोभा बढ़ा रहे था।मेहमान आने लगे थे।इधर -उधर के चक्कर में मुझे तैयार होने का समय नहीं मिल रहा था।बीच-बीच में आने वाले मेहमानों की गोड लगाई (पाई छूना )का कार्यक्रम भी जारी था।मै पियरी धोती निकाल रही थी ,तभी एक ननद आके मुझसे कहती है -भाभी नास्ता लेकर चलिए।मौसी जी आई है।ससुराल में आस -पड़ोस ,इधर -उधर की सब लड़कियाँ ननद और लड़के एक तरह से आपके देवर बन जाते है।मैंने उनसे कहा ठीक है ,आप चलिए मै आती हूँ।नास्ता लेकर मैं गेस्ट रूम में पहुँची।सामने कुर्सी पे मौसी जी बैठी हुई थी।नास्ता एक तरफ रख कर, मैंने उनके पैर छुए।मुझे आशीर्वाद देते हुए वो बोली -अरे तपस्या तैयार क्यों नहीं हुई अभी तक ? सब लोग आ रहे है।मैंने कहा थोड़े देर में हो जाऊँगी मौसी जी।कुछ काम था ,इसलिए देर हो गई।मौसी जी हँसते हुए कहती है -मालूम बा जब हम आवत रहनी ह ,हमार बेटी कहलसिय कि देखिए त मम्मी ,तपस्या भाभी कही मिनी स्कॉर्ट त न पहिनले होईहे।मुझे भी उनकी बात पर हँसी आ गई।मैंने भी हँसते हुए कहा - हा -हा मौसी जी माना कि बहू हूँ ,पर इस अवसर के लिए ये एक्सपेक्टेशन कुछ ज्यादा नहीं हो जायेगा :P पर लगता है ,उन्हें मेरा विटी जोक समझ नहीं आया।वो बोली -अरे ननद के त कामे बा मजाक करके।तू त ऐसे ही सुंदर बाड़ू।एहू कपड़ा में केतना सुन्दर लागत बाडू।खैर उनसे तैयार होने की अनुमति लेकर, मैं सजने-सवरने चली गई।वैसे शादी -ब्याह में कितने तरह के लोग आते है ना।जितने तरह के लोग उतनी तरह की बाते ,उतना ही हँसी-मजाक।कई किस्से -कहानियाँ।फलनवां के दूल्हा ऐसा तो, उसकी बहु वैसी।किसके भाई की शादी हुई तो किसकी बहन कुँवारी है।भगवान इस चक्कर में ,आधा टाइम तो मेरे भाई की ही चर्चा होती थी।भाई के शादी के लिए लोग मुझसे कहते कि ,ये लड़की है बात चलाओ।मैंने सबसे माफ़ी माँग कहती -लड़का यानि कि मेरा भाई आ ही रहा है तिलक में।आपलोग खुद उससे बात कर ले।सबसे मज़ेदार बात तो तब हुई ,जब मेरा भाई मुझसे मिलने घर में आया।मेरे कमरे में मेरी एक मौसेरी ननद और भाभी बैठी थी।मेरी ननद ने मेरे भाई से पूछा -क्या हाल है चुलबुल जी ? मेरा भाई बोला -सब बढ़िया पूजा(परिवर्तित नाम )।तुम बताओ एग्जाम ठीक से बीत गया ना? वो बोली अरे एग्जाम मेरा नहीं था।मेरी एक दोस्त को एग्जाम दिलाना था।भाई बोला अच्छा।फिर वो मुझसे बात करने लगा।मै कुछ काम कर रही थी तो उसने, मेरी ननद को बोला पानी लेकर आने को बोला।तभी भाभी बोली -अरे चुलबुल सिर्फ पूजा क्यों बोल रहे हो ? नाम के साथ जी लगाकर बात करो।हँसी -मजाक का रिस्ता है तुम्हारा।थोड़ा मजाक तो करो।तुम तो बहन जैसा बात कर रहे हो इनसे।मेरी ननद बेचारी शर्मा के लाल हो गई।हँसते हुए बोली कोई बात नहीं।चुलबुल कहता है -ये मेरे बहन जैसी ही होगी भाभी।मैं तो हँसते -हँसते पागल।मेरी सासु माँ ने सोचा था ,उस लड़की से चुलबुल की शादी की बात करेंगी।हो गया बंटाधार।बेचारी लड़की भी बहन वाली बात सुनकर झेंप गई।पानी लाकर दे दिया।भाई भी पानी पीकर बाहर चला गया।ननद बेचारी बस यही बोली कि भाभी आपके भाई बहुत शरीफ है।और मै मुस्कुरा के रह गई।बात एक और वाक्ये की।इसे खट्टी -मीठी कहना ज्यादा अच्छा होगा।शादी तक बहुत से मेहमान घर पर रुके थे।मेरे कमरे में मै ,भाभी और उनका बेटा सोते थे।बच्चे की वजह से हमलोग दरवाज़े की चिटकनी(डोर लच )नहीं लगाते थे।मै और भाभी सोने ही जा रहे थे कि ,रात 11 :30/45 के आस -पास कोई मेरे कमरे के दरवाजे को खोलता है।दरवाजा खुला और सामने मेरी एक चचेरी ननद खड़ी थी।वो बोली भाभी आपलोग से एक जरुरी काम है।मेरे बोलने से पहले भाभी ने कहा -हाँ बताईए क्या बात है ? मेरी ननद बोली आप दोनों में से कोई 10 /12 कप चाय बना दीजिये।ऊपर वाले कमरे में हमलोग जाग रहे है।बातचीत के दौरान चाय पीनी है सबको।भाभी ने इतनी रात को चाय वाली बात की उम्मीद नहीं कि थी ,इसलिए तपाक से बोली थी बोलिए।चाय की बात सुनकर वो चुप हो गई।बोली मेरी तो तबियत ठीक नहीं शाम से और चादर से मुँह ढँक के सो गई।अब बारी मेरी थी -मैंने कहा सॉरी सोनिया जी(परिवर्तित नाम )।बर्तन सारे जूठे पड़े है।रसोईया तो सो चूका है।इतनी ठंढ में मै तो उन्हें धोने से रही।साथ में पानी भी नहीं है।मैं नहीं बना सकती।शतेश के घर पर टंकी के पानी से खाना नहीं बनता है।चापाकल से पानी लाना होता है।मेरे साथ एक ये भी अच्छा था कि ,मुझसे अब तक चापाकल की पूजा नहीं कराई गई थी।तो मै चापाकल चलाती ही नहीं थी।बिहार में शादी के बाद लगभग हर चीज़ की पूजा कराई जाती है ,तभी बहू उसे इस्तेमाल करती है।मेरा ये रस्म रह गया था।मेरी ननद बोली -आई डोंट नो ,चाय तो पीनी है।अब जो भी बनाए।भाभी तो तबियत का एक्सक्यूज़ दे चुकी थी।मेरी ननद दरवाजे पे खड़ी थी।मैंने बोला अगर आप बर्तन साफ़ कर दे, पानी ला दे तो मैं बना सकती हूँ।मेरी ननद थोड़े गुस्से में बोली -भाभी यू नो मैंने आज तक एक चम्मच भी साफ़ नहीं किया।अब मुझे भी गुस्सा आ गया।मैंने भी रुडली बोला-यू नो डिअर मेरे माँ के यहाँ भी दो -दो नौकर है।वो भी फुल टाइम।मैने भी कभी पानी तक ले के नहीं पीया।(शायद बहुत लोगो को ये बात बुरी लगे कि पानी ना लेके पीना क्या बहादुरी हुई ?पर हाँ ये सच है कि ,पहले मैं बहुत आलसी और दुलारे आँधर टाइप थी।जो कि गलत था)पता नहीं क्या सोच कर मेरी ननद बोली -ठीक है ,मैं पानी ला देती हूँ।आप चाय वाले बर्तन में ही चाय बना दे।मैंने कहा ठीक है।वो पानी लेकर आई।मैं उसी चाय बने बर्तन को हल्का रिंस करके, उसमे ही चाय बनाने लगी।थोड़ी देर तक ख़ामोशी थी हम दोनों के बीच।फिर मेरी ननद बोली -भाभी आई एम सॉरी।पर मुझे आपसे इस तरह के जबाब की उम्मीद नहीं थी।आप घर में किसी और से ऐसे बात मत कीजियेगा।इस घर का रिवाज़ है ,जो छोटा होता है उसको सब करना पड़ता है।ख़ास कर बहुओं को।मैंने कहा -आई एम सॉरी डिअर आपको मेरी बात बुरी लगी तो।थैंक यू मुझे समझाने के लिए।वैसे मुझे मालूम है बड़ो से कैसे बात की जाती है।रही बात इस रिवाज़ की तो ,मुझे कभी मम्मी (सासु माँ ) या पापा ने इसके बारे में बताया नहीं।फिर हम दोनों चुप थे।तबतक चाय भी बन गई थी।मैंने एक जग में चाय को छाना और थर्मोकोल वाले कप दे दिए चाय पीने को।मैं अपने कमरे में वापस आ गई और वो चाय लेकर ऊपर कमरे में चली गई।मैं सोने ही जा रही थी ,कि भाभी बोली मुझमे तो इतनी हिम्मत नहीं कि मैं ऐसे जवाब देती तपस्या।मैंने उनसे कहा भाभी मुझे तो लगा आप सो गई थी।वैसे इसमें हिम्मत की बात नहीं।बात सही -गलत की थी।चाय बनना इज़ नॉट अ बिग डील।पर सारी परिस्थियाँ अभी गलत थी।कड़ाके की ठण्ड , दिन भर की थकान मेरा भी दिमाग काम नहीं कर रहा था।सो जाइये आप और मैंने बत्ती बुझा दी।दो /चार दिन बीत गए।शादी भी हो गई।एक दिन हॉल में हमलोग बैठे थे।मेरा भाई भी आया था।मै भाई और पापा को खाना दे रही थी।पापा मुझसे पूछते है -तपस्या बेटा सोनिया के साथ कोई लड़ाई हुई थी क्या तुम्हारी ?मैं कहा लड़ाई तो नहीं हुई थी पापा।थोड़ी बहस जरूर हुई थी।पर आपको कैसे मालूम ?पापा बोले की कुछ लोग बोल रहे थे कि, तपस्या ने ननद को चाय बनाने से मना किया और गलत ढंग से बात की।मैंने पापा को सारी बात बताई।मैंने कहा जाने दीजिये पापा मेरे लिए ऐसे लोगो के विचार मायने नहीं रखते ,जिसे मैं ठीक से जानती भी नहीं ,या वो मुझे समझते ही नहीं।पापा हँसने लगे ,बोले ये तो खूब कही हो।बोले तुमने ठीक किया।कभी भी ना गलत करो ना गलत को बढ़ावा दो।वही मम्मी बोली -अगर घर में छोटे को ही सब करना होता है ,तो वो खुद चाय बना लेती।वो तो तुमसे भी छोटी है।मम्मी ऑलवेज रॉक्स।वहीं भाई मेरा आराम से खाये जा रहा था।उसको इनसब से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।ऐसा नहीं है कि इस वाक्ये के बाद भी हम ननद- भाभी की बात नहीं होती।बातचीत जारी है ,सॉरी -सॉरा के बाद।क्या ख़ूब शब्द है ना सॉरी।शब्द बनाने वाले को दिल से थैंक यू।ये वाक्या लिखने के मेरे दो मक़सद थे।पहला -क्या यार डॉक्टर /इंजीनियर बनकर कर भी वही सास -बहु वाली बाते ? पढाई का कुछ अंश तो सामजिक जीवन में लाओ।मॉडर्न होने का मतलब किसी का दिल दुखाना नहीं होता।आज आप किसी की बेटी ,किसी की ननद हो।कल आप किसी की बहू ,किसी की भाभी बनोगी।आपके साथ कोई ऐसा सलूक करे तो ? ख़ुद करो तो मैं लाड़ली हूँ ,कभी कुछ किया नहीं।ससुराल में आपके साथ ऐसा हो तो ससुराल नर्क ,ननद चुड़ैल।यार सोच बदलो ससुराल ख़ुद बदल जायेगा।सच में अब समझ आया ये सेंटेंस -एक औरत का एक औरत से बढ़ कर कोई दुश्मन नहीं हो सकता।कडिशन अप्लाई :) दूसरा मक़सद - किसी भी औरत की हिम्मत  का राज़ उसकी शिक्षा ,उसकी परवरिश और उसके परिवार का साथ होता है।अंत में मुनि क्षमासागर जी की एक कविता जो आपसब को रिस्तो को समझने में मदद करेगा -
सम्बन्धो  के  बीच
पहले  एक दिवार
हम खुद
खड़ी करते है
फिर उसमे
एक  खिड़की
लगाते है
पर  ज़िंदगी भर
करीब रह कर भी
हम खुल कर
कहाँ मिल पाते है ?