ऐसी क्या मनोदशा हो सकती है कि ,कोई सब कुछ छोड़ दे। सबकुछ छोड़ने से मेरा मतलब भौतिक सुख से है। कौन सी घुट्टी ये धार्मिक गुरु पिलाते हैं ? क्या होता है इन ऑर्गनाइज़ेशन का मोटो ? क्या ये लोग सच में खुश रहते हैं ? क्या सच में मोक्ष मिल जाती है ? मोक्ष क्या है ?
ऐसे बहुत से सवाल कई बार मन को अशांत कर देते है। पीछे कुछ महीनों में ,कबीर ,बुद्ध और कृष्ण के बारे में जितना हो पाया ढूंढा ,पढ़ा। अभी भी खोज जारी ही है। पर संतुष्टि वाला उत्तर नहीं मिला। कुछ गुणी जनों से भी इसके बारे में जानने की कोशिश की।कुछ जान पाई कुछ रह गया।
मेरा एक प्रिय दोस्त करीब सात -आठ साल पहले इस्कॉन से जुड़ गया। भाई ने इसके बारे में बताया था। सुनकर दुःख तो हुआ था। पर उस वक़्त मैं और भी बेपरवाह थी। खुद से फ़ुरसत कहाँ थी ,जो ऐसी बातें सोचती या जानने की ईक्षा रखती। उम्र भी तो ऐसी ही थी।
फिर मुझमे और मेरे दोस्त में क्या अंतर था। उसे बीस -बाईस साल में ईतना ज्ञान कैसे मिल गया ? माना वो पढ़ने में इंटेलिजेंट था ,पर मैं भी तो थी। जहाँ तक मुझे लगता है ,उसके घर से ज्यादा तो मेरे घर में धार्मिक माहौल था और है। ऐसा भी नहीं था कि ,गरीबी और दुःख में उसका जीवन बिता हो। एक बहुत ही संपन्न परिवार से ताल्लुक है उसका। ख़ैर मैं उसे लगभग भूल चुकी थी ,कि कुछ महीनों पहले वो मुझे फिर से मिल गया। उससे जितनी बातें हुई। जितने सवाल -जबाब हुए। हर बात का एक ही जबाब ,सांसारिक वास्तु से सुख नहीं मिल सकता तपस्या। मोक्ष चाहिए। नहीं तो फिर से जीवन चक्र में फँस जायेंगे। तपस्या तुम भी महामंत्र जपा करो।
महामंत्र -हरे राम -हरे राम ,राम -राम हरे हरे ,
हरे कृष्ण -हरे कृष्ण ,कृष्ण -कृष्ण हरे हरे !
इस्कॉन वाले इसे महामंत्र कहते है। मुझे अब तक नहीं मालूम था कि ,ये महामंत्र है।
उससे बहुत सी बातें हुई। कुछ तस्वीरें भी भेजी उसने। देखा तो सारी मण्डली युवाओं की। मन बेचैन हो गया।
आह ! इनके माता ,पिता ,भाई -बहन पर क्या बीतती होगी ? ऐसे कौन सी सुख की ,मोक्ष की तलाश है इनकों ,जो प्रियजनों का दिल दुखा के मिलने वाला माँ कहती है -किसी के आत्मा को रुला के आप चैन से नहीं रह सकते। फिर इन्हें चैन कैसे मिल जाता है ? क्या इनके परिजन सच में खुश होते होंगें ,इनके इस निर्णय से ?
मेरे दोस्त ने मुझे कुछ -कुछ पढ़ने के लिए भी भेजा। मैंने पढ़ा भी। पर विद्या कसम जो भी पढ़ने को उसने भेजा था। वो तो मैं पहले से ही लगभग जानती थी। कभी माँ से सुना तो कभी कहीं पढ़ा था। मैंने उससे कहा भी कि ,इसमें बहुत कुछ नया नहीं है। मुझे मालूम है ये सब। मेरे घर में धर्म -कर्म ,पूजा -पढ़ का माहौल शुरू से रहा है। मेरे दोस्त को ये बात शायद बुरी लगी।(वैसे इनलोगों को गुस्सा नहीं आता ) मुझसे कहता है -ब्राह्मण होने का ईतना गर्व। मैंने उसे अपनी बात समझया की ऐसा नहीं है।
वहीं ,अभी कुछ दिनों पहले ही ,गुजरात के वर्षिल शाह जो मात्र सत्रह साल के हैं। जैन मुनि बन गए। वो भी बारहवीं के टॉपर हैं । कहीं मन्नत तो नहीं थी। टॉप करने पर साधु बन जाऊँगा। खैर ,
-मुझे ये नहीं समझ आ रहा है की ,क्या इस उम्र में मनुष्य की चेतना इतनी प्रबल होती है कि ,अध्यात्म को समझ सके। --क्या इनके अंदर शंकराचार्य ,बुद्ध ,महावीर,विवेकानंद जी जैसा बोध ज्ञान ऊपज चूका होता है।
-क्या पूजा -पाठ ,धर्म प्रचार को कर्म कहा जा सकता है ? अगर हाँ तो इसका फल क्या है ?
-कर्म के बिना फल कैसा ?
-फल की चिंता नहीं तो मोक्ष का लालच क्यों ?
-मोक्ष क्या है ? जब आत्मा अमर है।
-जब आत्मा शरीर बदलती रहती है तो ,जीवन चक्र से मुक्ति कैसे ?
-कृष्ण और राधा का प्रेम ही सर्वपरी है तो ,शिव अर्धनारीश्वर कैसे ?
-मन के दरवाजे खुली रखो ,तो कुछ चीज़ें करने पर पाबंदी क्यों ?
बहुत से सवाल है मेरे ,ढूंढ रही हूँ। देखे कब संतुस्ट हो पाती हूँ।
फिलहाल तो वर्षिल शाह के माता -पिता के मजबूत ह्रदय की तारीफ करनी होगी। उन्हें ख़ुशी है कि ,सी ए बनने वाला उनका बेटा संत बन गया। वो तो इतने खुश हैं कि ,अपनी बेटी को भी इस रास्ते पर भेजना चाह रहे है।
ऐसे बहुत से सवाल कई बार मन को अशांत कर देते है। पीछे कुछ महीनों में ,कबीर ,बुद्ध और कृष्ण के बारे में जितना हो पाया ढूंढा ,पढ़ा। अभी भी खोज जारी ही है। पर संतुष्टि वाला उत्तर नहीं मिला। कुछ गुणी जनों से भी इसके बारे में जानने की कोशिश की।कुछ जान पाई कुछ रह गया।
मेरा एक प्रिय दोस्त करीब सात -आठ साल पहले इस्कॉन से जुड़ गया। भाई ने इसके बारे में बताया था। सुनकर दुःख तो हुआ था। पर उस वक़्त मैं और भी बेपरवाह थी। खुद से फ़ुरसत कहाँ थी ,जो ऐसी बातें सोचती या जानने की ईक्षा रखती। उम्र भी तो ऐसी ही थी।
फिर मुझमे और मेरे दोस्त में क्या अंतर था। उसे बीस -बाईस साल में ईतना ज्ञान कैसे मिल गया ? माना वो पढ़ने में इंटेलिजेंट था ,पर मैं भी तो थी। जहाँ तक मुझे लगता है ,उसके घर से ज्यादा तो मेरे घर में धार्मिक माहौल था और है। ऐसा भी नहीं था कि ,गरीबी और दुःख में उसका जीवन बिता हो। एक बहुत ही संपन्न परिवार से ताल्लुक है उसका। ख़ैर मैं उसे लगभग भूल चुकी थी ,कि कुछ महीनों पहले वो मुझे फिर से मिल गया। उससे जितनी बातें हुई। जितने सवाल -जबाब हुए। हर बात का एक ही जबाब ,सांसारिक वास्तु से सुख नहीं मिल सकता तपस्या। मोक्ष चाहिए। नहीं तो फिर से जीवन चक्र में फँस जायेंगे। तपस्या तुम भी महामंत्र जपा करो।
महामंत्र -हरे राम -हरे राम ,राम -राम हरे हरे ,
हरे कृष्ण -हरे कृष्ण ,कृष्ण -कृष्ण हरे हरे !
इस्कॉन वाले इसे महामंत्र कहते है। मुझे अब तक नहीं मालूम था कि ,ये महामंत्र है।
उससे बहुत सी बातें हुई। कुछ तस्वीरें भी भेजी उसने। देखा तो सारी मण्डली युवाओं की। मन बेचैन हो गया।
आह ! इनके माता ,पिता ,भाई -बहन पर क्या बीतती होगी ? ऐसे कौन सी सुख की ,मोक्ष की तलाश है इनकों ,जो प्रियजनों का दिल दुखा के मिलने वाला माँ कहती है -किसी के आत्मा को रुला के आप चैन से नहीं रह सकते। फिर इन्हें चैन कैसे मिल जाता है ? क्या इनके परिजन सच में खुश होते होंगें ,इनके इस निर्णय से ?
मेरे दोस्त ने मुझे कुछ -कुछ पढ़ने के लिए भी भेजा। मैंने पढ़ा भी। पर विद्या कसम जो भी पढ़ने को उसने भेजा था। वो तो मैं पहले से ही लगभग जानती थी। कभी माँ से सुना तो कभी कहीं पढ़ा था। मैंने उससे कहा भी कि ,इसमें बहुत कुछ नया नहीं है। मुझे मालूम है ये सब। मेरे घर में धर्म -कर्म ,पूजा -पढ़ का माहौल शुरू से रहा है। मेरे दोस्त को ये बात शायद बुरी लगी।(वैसे इनलोगों को गुस्सा नहीं आता ) मुझसे कहता है -ब्राह्मण होने का ईतना गर्व। मैंने उसे अपनी बात समझया की ऐसा नहीं है।
वहीं ,अभी कुछ दिनों पहले ही ,गुजरात के वर्षिल शाह जो मात्र सत्रह साल के हैं। जैन मुनि बन गए। वो भी बारहवीं के टॉपर हैं । कहीं मन्नत तो नहीं थी। टॉप करने पर साधु बन जाऊँगा। खैर ,
-मुझे ये नहीं समझ आ रहा है की ,क्या इस उम्र में मनुष्य की चेतना इतनी प्रबल होती है कि ,अध्यात्म को समझ सके। --क्या इनके अंदर शंकराचार्य ,बुद्ध ,महावीर,विवेकानंद जी जैसा बोध ज्ञान ऊपज चूका होता है।
-क्या पूजा -पाठ ,धर्म प्रचार को कर्म कहा जा सकता है ? अगर हाँ तो इसका फल क्या है ?
-कर्म के बिना फल कैसा ?
-फल की चिंता नहीं तो मोक्ष का लालच क्यों ?
-मोक्ष क्या है ? जब आत्मा अमर है।
-जब आत्मा शरीर बदलती रहती है तो ,जीवन चक्र से मुक्ति कैसे ?
-कृष्ण और राधा का प्रेम ही सर्वपरी है तो ,शिव अर्धनारीश्वर कैसे ?
-मन के दरवाजे खुली रखो ,तो कुछ चीज़ें करने पर पाबंदी क्यों ?
बहुत से सवाल है मेरे ,ढूंढ रही हूँ। देखे कब संतुस्ट हो पाती हूँ।
फिलहाल तो वर्षिल शाह के माता -पिता के मजबूत ह्रदय की तारीफ करनी होगी। उन्हें ख़ुशी है कि ,सी ए बनने वाला उनका बेटा संत बन गया। वो तो इतने खुश हैं कि ,अपनी बेटी को भी इस रास्ते पर भेजना चाह रहे है।
No comments:
Post a Comment