बदलाव की हवा चल रही है। शासन बदला ,सड़क का नाम बदला ,शहर का नाम बदला। अब बात हो रही है , राष्ट्रीय पशु की। कल बारी अगर राष्ट्रीय फूल की आएगी तो ? आपके हिसाब से कौन सा फूल बाजी मार ले जायेगा ? सोचिये -सोचिये।
गुलाब ? अरे नहीं जी ,गुलाब तो मजनुओं की पसंद है। एंटी रोमियों वाले पहले ही छाँट देंगे। कुछ लोग कोट -वोट में भी खोंसते थे /है। साथ में काँटे भी लगे है। बिल्कुल नर्दोष नहीं है जी ,ये तो। गुलाब तो ऐसे ही आउट हो गया। बेली ,गेंदा ,जूही ,मोगरा ये सब तो कमल के आस -पास भी नहीं टीक सकते। फिर ?
फिर क्या ? मुझे लगता है ,एक फूल है। जो पूरी तरह जीत सकता है। "पारिजात " के फूल। इनको "हरसिंगार " भी कहते है। सफ़ेद और "गेरुआ "रंग का मिश्रण इस फूल को और खूबसूरत बनाता। ख़ुश्बू भी कमाल की होती है। हरसिंगार के फूल ,पेड़ ,पत्ते ,छाल सबका उपयोग औषधि बनाने में होता है। इतना निर्दोष फूल है की ,दिन की तपिश तक नहीं सह सकता। और तो और नाम तो देखिये -हरसिंगार ,"हरि " हाँ जी दैवीय कनेक्शन भी है।पहली बार पृथ्वी पर आया भी तो कहाँ ?
द्वारिका में महाराज। सुनिए , एक कथा है। जो माँ बताया करती थी हरसिंगार के बारे में ,सुनाती हूँ -
फिर क्या ? मुझे लगता है ,एक फूल है। जो पूरी तरह जीत सकता है। "पारिजात " के फूल। इनको "हरसिंगार " भी कहते है। सफ़ेद और "गेरुआ "रंग का मिश्रण इस फूल को और खूबसूरत बनाता। ख़ुश्बू भी कमाल की होती है। हरसिंगार के फूल ,पेड़ ,पत्ते ,छाल सबका उपयोग औषधि बनाने में होता है। इतना निर्दोष फूल है की ,दिन की तपिश तक नहीं सह सकता। और तो और नाम तो देखिये -हरसिंगार ,"हरि " हाँ जी दैवीय कनेक्शन भी है।पहली बार पृथ्वी पर आया भी तो कहाँ ?
द्वारिका में महाराज। सुनिए , एक कथा है। जो माँ बताया करती थी हरसिंगार के बारे में ,सुनाती हूँ -
हरसिंगार के फूल समुन्द्र मंथन के समय प्रकट हुए थे । इंद्र की चालाकी की कथा तो आप सब ने सुनी ही होगी। वे इस फूल को भी इंद्रलोक लेकर चले गए। एक बार कृष्ण ,रुक्मिणी जी के साथ इंद्रलोक गए। वहाँ रुक्मिणी जी को ये फूल बहुत पसंद आये। उन्होंने कुछ फूल अपने बालों में खोंस लिया। वापस जब कृष्ण और रुक्मिणी द्वारिका आये तो ,कृष्ण की दूसरी पत्नी सत्यभामा ने ,उन फूलों को रुक्मिणी के बालों में देखा। सत्यभामा ,कृष्ण से जिद्द कर बैठी। कान्हा ,मुझे भी ये फूल चाहिए। कृष्ण क्या करते। पहुंचे इंद्र के पास। पर इंद्र ने पारिजात को पृथ्वी पर भेजने से मना कर दिया। फिर क्या था ,युद्ध हुआ। मार -काट मचा कर पारिजात द्वारिका तक पहुँचा। सत्यभामा फूल पा कर खुश हो गई। इसके अलावा ये फूल लक्ष्मी जी को भी पसंद है।
साथ ही ,मेरी यादों के फूल में ,एक नाम हरसिंगार का भी है। मैंने भी इसे लगाया था। पर कुछ सालों बाद बारिश के पानी के जमा होने से पेड़ सड़ गया। कितने सुन्दर फूल लगते थे। खिलते भी शान से। साल में एक बार ही। वो भी पवित्र महीने में -कुछ दशहरा ,दिवाली ,छठ के आस -पास। मेरे बाग़ान में जो पेड़ था। उसके नीचे माँ ,रात में एक धुला हुआ चादर बिछा देती। सुबह फूलों को समेट कर कुछ माँ रखती तो कुछ पड़ोसी पूजा के लिए ले जाते।
इस पेड़ की काँट छाँट कर सकते है क्या ? कृपया इसके बारे मे बताए
ReplyDeleteशुक्रिया