Tuesday, 6 June 2017

बसंतपुर मेरा मालगुडी !!!

बसंतपुर मेरा मालगुडी से कम नहीं। चुलबुल -लवली की कहानियाँ तो इसके बिना अधूरी ही है। आज की कहानी कुछ इस तरह है।
चुलबुल तो छोटा था ,साथ ही नटखट भी। इस वजह से लवली को ही बाहर के काम करने पड़ते थे। मसलन राशन ,सब्जी ,किरोसिन तेल ,दवा -दारू सब लाना। इनकी माँ बाज़ार कम ही जाती । कई बार लवली अपनी माँ से कहती -माँ तुम जाओ ना बाजार। मुझे खेलने जाना है। माँ प्यार से समझती ,बेटा बड़े घर की महिलायें रोज बाज़ार नहीं जाती। तुम तो बड़ी समझदार हो ,फटाफट सबकुछ लेकर आ जाओगी। इस तरह लवली का बसंतपुर बाजार से परिचय हुआ। किसी दिन सब्जी लाना ,तो किसी दिन साबुन -तेल ,कभी मिठाई तो कभी दवाई। सब्जी छोड़ कर ,सबकुछ लगभग एक ही जगह मिल जाती। वो जगह थी "भारत मार्किट"

बसंतपुर में मार्किट जैसा शब्द पहली बार भरत मार्किट के लिए ही सुना। ऐसे तो सब्ज़ी मंडी ,भीतरी बाज़ार, हाई स्कूल रोड में दुकान हुआ करती थी। पर मार्केट नाम से एक ही था ,भरत मार्केट ।
भरत मार्केट में कुछ लाइन से आठ -दस छतदार दुकानें थी । एक -दो झोपड़ी वाली दूकान भी थी। झोपड़ी वाली दुकान लवली को ज्यादा पसंद थी। हो भी क्यों ना ? उसमे मिठाइयाँ जो बिकती थी।रघुनाथ की मिठाई की दुकान। भरत मार्किट सड़क से सटा हुआ था। लाइन से जो दुकानें थी -उसमे कोने पर एक पंक्चर बनाने वाले की दूकान थी। उसके बाद एक किराना स्टोर था। फिर बसंत जी की दवा की दुकान। इसके बाद न्यू गोल्डन जेनरल स्टोर। न्यू गोल्डन परचून की दूकान थी। साबुन -तेल ,एसनो -पाउडर से लेकर चॉकलेट -बिस्कुट ,कॉपी -किताब सब कुछ मिल जाता था इसमें। इससे लगे ही नेहलिया जेनरल स्टोर भी था । इसके बाद चंदन मेडिकल शॉप। इस मेडिकल शॉप के बाहर बेंच लगी हुई होती। लोग बैठ कर अखबार पढ़ते। बात -चीत करते। लवली -चुलबुल के गांव से जब भी बाबा जी ,चाचा जी आते। उनका पहला अड्डा चन्दन मेडिकल दूसरा शर्मा जी पेपर वाले की दूकान। सबसे अंत में फिर  से एक किराना की दुकान ।इन दुकानों के पीछे भी कुछ दुकानें थी । जिसमें लवली का जाना कम ही होता। दूकान थी ,गीता प्रेस। लवली सिर्फ एक बार अपनी माँ के साथ रामायण लेने गई थी।
 इस मार्किट की खास बात लवली को ये लगती की ,एक तो जो छतदार दूकान थे। उसमे दोनों तरफ से सीढ़ी बने हुए थे। ऊपर की तरफ़ कुछ तीन दुकान थी ।तीनों ही सिलाई की दुकान ।मोती टेलर ,चाँद टेलर ।तीसरे दूकान का नाम बदलता रहता। लवली कभी -कभी एक तरफ से सीढ़ियों से चढ़ कर जब सारे दूकान के ऊपर से गुजरती ,खूब खुश हो जाती। दूसरी तरफ से निचे उतरती। फिर चढ़ती ,फिर उतरती। कभी नीचे जाते लोगों को देखती तो उसे और मजा आता। आहा मैं इन सबसे ऊपर हूँ। कभी -कभी छत की मुँडेर से नीचे झाँकती तो ,डरती हुई भागती। दिल उसका जोर -जोर से धड़कता। गिर गई होती तो ? सुई लगती क्या ?
भरत मार्किट के मालिक की भी दो दुकान थी। एक बलराम जी की रस्सी ,झाड़ू , चूहेदानी ,चुना आदि की दूकान। दूसरी कपड़ा की दूकान। लवली को बलराम जी की दूकान भी खूब पसंद थी। दुकान की एक ख़ास बात ये थी ,यहाँ बहुत सारे कबूतर होते ।कुछ छोटे -छोटे जानवर जैसे ,ख़रगोश ,बत्तक, तोता ,सफ़ेद चूहा आदि भी बिकते। कई बार सब्ज़ी ख़रीद कर जब लवली लौटती तो ,ख़रगोश के पिंजड़े के पास खड़ी हो जाती । बलराम चाचा कभी तो उन जानवरों से खेलने देते ,कभी उनकों निकाल कर कटवाने की बात से डरा देते  । लवली झोला उठा कर भाग पड़ती। वो हँसने लगते । कहते आओ -आओ नही कटवाएँगे ,पर लवली कहाँ रूकती ।
इसी के साथ ही जो कपड़े की दुकान थी । ज़्यादातर कॉलेनी वाले यहीं से कपड़े खरीदते। कपडे की दूकान के पास ही एक खैनी बेचने वाला बैठता। छोटा सा चौकी टाइप उसका दुकान होता। कई बार जब माँ के साथ लवली कपड़ें  लेने जाती तो उसकी नजर खैनी की दूकान पर ही होती। दूकान वाला खैनी काटने को एक छोटा सा पहसुल जैसा कुछ रखता। उसको दिखा कर मुस्कुरा  कर कहता, आओ बबुनी कान काट दी। लवली डर जाती। पर माँ जो साथ होती तो भागती नहीं। खैनी वाले के दूकान से थोड़ी दूर पर ही एक पकड़ी का पेड़ था। जिसके नीचे एक मोची बैठा करता। बगल में भुजा का ठेला भी लगता था। लवली -चुलबुल के  हवाई चप्पल की मरमत वही होती। कई बार तो मोची एक दो कील मार देता और पैसा भी नहीं लेता। हँसते हुए कहता -बबुनी एतना चप्पल टूटेला ? ठीक से चलल कराअ।
इस मार्किट की एक और खास बात थी। यहाँ एक कुँआ भी था। लवली की माँ लवली को समझा कर भेजती कुँआ की तरफ से मत जाना। कई बार लवली उधर से नहीं जाती पर कई बार उत्सुकता वस चली जाती की देखे क्या होता है। भरत मार्किट के हाते में एक चापाकल भी था। चापाकल के बगल में एक तूत का पेड़ था। लवली कभी -कभी खरीदारी से लौटते समय, तूत बीन कर खाने लगती। लवली के पास एक पीले रंग का पॉकेट वाला फ्रॉक था। उसे वो फ्रॉक बहुत पसंद था। आज बाजार वो वही पहन कर गई थी। लौटते समय तूत के पेड़ ने अपनी तरफ खींच लिया। खूब सारे तूत जमीन पर गिरे थे। उसने ने कुछ खाया और कुछ चुन कर फ्रॉक की पॉकेट में रख लिया। घर पहुँचते -पहुँचते फ्रॉक में कई जगह दाग लग गए थे। लवली खूब रोई। माँ समझती रही ,पर अगली बार से वो फिर कभी तूत के पेड़ की तरफ नहीं गई।
फोटो क्रेडिट -वरुण कुमार। 



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