Monday, 20 April 2015

cherry blosom Adventure last part

मेरी एक दोस्त ने मुझे कॉल किया और पूछा तपस्या तुमलोगो को गाड़ी मिली या नही ?मैंने कहा चिंता मत करो आज के ब्लॉग में गाड़ी मिल जाएगी :), तो कहानी अब आगे बढ़ती है दोस्तों।लडके दो-दो करके दो दिशा में गए।कुछ 10 मिनट के बाद कॉल आया कि गाड़ी मिल गई है।हमलोग रोड की साइड आ जाये।चलो जान में जान आई।जैसे हमलोग रोड तक पहुंचे शतेश बाबू मिस्टर शाक्या के साथ गाड़ी चलते हुए पहुंचे।दूसरी तरफ से मिस्टर जैन और बंसल भी आ गये।हमलोग फटाफट गाड़ी में सवार हो गए।शतेश ने बताया जहाँ हम बैठे थे उसके बेसमेंट में ही पार्किंग थी।बेसमेंट होने की वजह से दिख नही रही थी :),चारो लड़के एक साथ पार्किंग में पहुंचे थे।सबके चेहरे पे हंसी थी।इसके बाद डिसाइड हुआ कि, होटल जाने से पहले खाना खा लिया जाय। भूख भी लगी थी और होटल जाके आने तक रेस्तरॉ बंद भी हो जाते।सबकी सहमति से हमलोग डाउनटाउन की तरफ हो लिए।डाउनटाउन में पार्किंग की दिक्कत।हमने पेड पार्किंग ढूंढी $25 की रसीद मिली।अब खाने की बारी थी सबने थाई या इंडियन खाने का सुझाव दिया।पास में इंडियन रेस्तरॉ "ताज इंडिया " दिखा।वहां पहुंचे तो बहुत ही भीड़ थी।अटेंडर ने हमें 30 वेट करने को कहा।हुमलोगो सोचा जहाँ भी जायेंगे भीड़ मिलेगी तो यही इंतज़ार कर लेते है।आने जाने में दुकाने न बंद हो जाये।रात के 10 बज चुके थे।45 मिनट बाद भी हमारा नंबर नही आया। फिर डिसाइड हुआ कि चार -चार करके अलग -अलग टेबल पे बैठ जाते है।हम चार लड़िकियाँ एक साथ बैठ गई ,और हमने अपना आर्डर दे दिया।सूप ,साग पनीर ,छोले ,दाल मखनी ,लच्छा पराठा ,गार्लिक नान और राइस कोम्प्लिमेंट्री (मुफ्त ) था।लड़को को टेबल 10 मिनट बाद मिला।हमारा आर्डर नही आ रहा था।हमलोग बस आस -पास के लोगो की प्लेट देख के कमेंट करके आपस में हँसे जा रहे थे।हमारे सामने दो अमेरिकन बन्दे समोसा कांटा चमच्च से खा रहे थे।हमलोगो को समोसे पे हो रहे अत्याचार पर हंसी आ रही थी।मिसेस बंसल ने कहा काश वो समोसा हमारी प्लेट में होता तो उससे इतनी तकलीफ ना होती।मिसेस बंसल का चेहरा किचेन की तरफ ही था ,वो हर आर्डर को हमारा बताती कि ,लो आ गया आपना आर्डर। आर्डर आता तो था लेकिन किसी और टेबल पे परोस दिया जाता था।तभी मिसेस बंसल ने कहा अरे लड़को ने हमसे बाद आर्डर दिया और उनकी टेबल पे आर्डर आ भी गया।मिसेस जैन ने कहा पक्का मिस्टर बंसल और जैन ने ड्रिंक आर्डर की होगी।वैसे भी लड़के पब जाने को बोल रहे थे ,लेकिन भूख और थकान की वजह से थोड़ा प्लान चेंज करना पड़ा।मुझे बहुत भूख लगी थी ,तो मैंने लड़कियों को कहा मैं ,लड़को का स्टाटर् खा के आती हूँ। मिसेस जैन ने कहा तपस्या देख आना कि ड्रिंक भी टेबल पे था क्या ? मै लड़को के टेबल तक पहुंची,मैंने शतेश की प्लेट से एक पनीर का टुकड़ा उठा के खा लिया। चारो लड़के हँसने लगे कि ,कैसा लगा तवा पनीर।मिस्टर जैन हँसते हुए बोले हम वैसे भी इससे चेंज करने वाले थे ,तुम खा लो। मेरी तो हालत ऐसी की फेक भी ना पाउ और खा भी ना पाउ। खैर वापस मै अपने टेबल पे पनीर चबाते हुए पहुंच गई।मिसेस बंसल ने कहा अकेले -अकेले खा लिया हमारे लिए नही लाई।मैंने कहा बहुत ही बेकार है। तो सब हँसने लगी कि खुद खा रही है ,और हम भूखो को बेकार बता रही हो।हमारा आर्डर भी 30 मिनट के बाद आ ही गया।शायद  वेटर और अटेंडर हमारे खाना घूरने और बार -बार टोकने से परेशान हो  गए थे  :),खाना आते हीं मैंने वेटर को थैंक यू बोला और ताली बजाई। वेटर बेचारा थोड़ा झेप गया और अपनापन दिखाते हुए बोला मैं आपसे पहले मिल चूका हु। मैंने गुस्से के साथ हँसते हुए कहा नहीं।मिसेस जैन ने कहा ये सब इनका खुश करने का तरीका है।हमने खाना शुरू किया।एक भी चीज़ खाने लायक नही थी। हमने वापस वेटर को बुलाके पनीर की एक और डिश आर्डर किया ,और कहा तीखा तीखा बनाने को। सब जैसे -तैसे थोड़ा -थोड़ा खा रहे थे ,रसोइये को कोसते हुए।उसने पनीर की डिश ला दी। भैया कमाल तो ये था कि ,उसने तीखा के बदले खट्टा और क्रीमी बना दिया था।किसी ने एक स्पून भी ठीक से नही खाई सब्जी।कैसे भी खा रहे थे ,तभी होटल का मालिक आया देखा सारा खाना वैसे ही पड़ा ही ,सिर्फ एक एक स्लाइस नान की खत्म हुई थी। उसने सॉरी बोला और कहा नमक ,मिर्च ,निम्बू या आचार ला दू। हमलोग इतने इर्रिटेट होगये थे कि ,कहा नही रहने दे।वो चला गया।मिसेस बंसल कहती है नमक मिर्च ही खाना होता तो होटल क्यों आते :) हद तो तब हो गई जब मालिक दुबारा आता है और पूछता है इनको टू गो करदू। हमलोग हँसने लगे। वो समझ गया और बोला मैडम इंडियन तो कभी -कभी आते है। अमेरिकन के हिसाब से बनाना पड़ता है। कुक ही ऐसा है।हमने कुछ नही कहा तभी लड़के भी हमारी टेबल तक आगये। उनका भी वही हाल था। उन्होंने भी ढंग से खाया नही था और शिकायत भी की मालिक से।हमलोग बिल पेय करके बहार आगये। बिल $200 आया था ,मिस्टर जैन बोले खाया पिया कुछ नही ग्लास तोड़े बारह। हमने कहा चलो अब होटल तो चल ले।मैरिएट में रूम बुक है कम से कम वोतो वसूले।रस्ते में लड़के अपने खाने की कहानी बता रहे थे। मिस्टर बंसल कम बोलते थे पर जब भी बोलते थे सब हंस के लोट- पोट हो जाते।तबी जैन जी ने बताया की बंसल जी तो वेटर को खिलने लगे थे। जब उन्होंने वेटर को कहा की खाना अच्छा नही था ,और उसने कहा नही सब तो इस डिश की बहुत तारीफ करते है। बेचारा वो वेटर दोबारा नही आया ,मालिक को ही भेज दिया :) हमलोग होटल पहुंच गए। लडकिया एक रूम में और लड़के दूसरे रूम में सो गए। हमलोग तो बस जाते ही चेंज करके सो गये।सुबह लड़को ने बताया वो लोग जगे थे और मस्ती कर रहे थे। चलो सुबह का नास्ता बहुत अच्छा था मैरिएट में सबने पेट भर के खाया। फिर तैयार होक घूमने निकल पड़े। आज भी बहुत भीड़ थी। कहि पार्किंग नही मिली। कल वाली जगह पे पार्किंग थी लेकिन हमलोग जाना नही चाह रहे थे। सो पार्किंग के चक्कर में हमने ३/4 राउंड डाउनटाउन और एम्बेसी का लगा दिया। हमने देखा कितने छोटे -छोटे बिल्डिंग थे एम्बेसी के इंडिया के  कम्पेअर में। कोई गार्ड नही बाहर। इन्डोनेशियाई एम्बेसी के आगे बहुत ही सुन्दर "सरस्वती माता" की मूर्ति है। बार -बार हम घूम के एक घोड़े पे सवार व्यक्ति वाले स्टेचू  के पास आ जा रहे थे। बाद में मालूम हुआ वो भी एक अट्रैक्शन था। उसका नाम होनकॉक स्टेचू था। फाइनली तय हुआ वाशिंगटन के बाहर कुछ हो तो देखे,यहां पार्किंग मिलनी मुश्किल है। एक आइलैंड था लेकिन वो २ घंटे की दुरी पर था। जैन जी ने कहा जू चल लेते है 200 साल पुराना है।मिसेस बंसल ने मजाक में कहा तब तो सारे जानवर बूढ़े होने हमें नही जाना।इसी सब में दिन के 2 बज गए थे।तो सबने सोचा घर वापस निकल लेना चाहिए ,नही तो और ट्रैफिक मिलेगेगी।हमलोग घर वापस निकल लिए। रास्ते मैं पिज़्ज़ा खाया फिर आगे बढे।ट्रैफिक फिर मिल गई।बंसल जी कहते है जैसा छोड़ के ट्रैफिक गए थे वैसा ही मिला। सब हँसने लगे। शाक्या जी डीजे का काम कर रहे थे 90 के गाने ,तो कभी आइटम सांग ,तो कभी आर जे नवेद की कॉमेडी सुनते हुए सबको हँसा रहे थे।शाम को हमने कॉफी के लिए गाड़ी रोकी,वही पे एक एक डोनट्स लिया।डोनट्स को केक बना के मिसेस शाक्या से कट करवाया,क्योकि इंडिया टाइमिंग के हिसाब से उनका जन्मदिन हो चूका था।अमेरिका के हिसाब से अगले दिन होता।हमने वहां थोड़ी मस्ती की।फिर गाड़ी में सवार होक घर चल पड़े।रात को 11 टैको बेल से टू गो लिया सबने गाड़ी में ही खाया।मेरा घर सबसे पहले आता था मुझे इस बात की ख़ुशी थी। अंततःमैं अपने घर 11 :30 तक पहुंच गई।सारे दोस्तों को विदा दिया खट्टी मीठी इन दो दिनों के यादो के साथ। सफर कितना भी अडवेंचरस हो ,साथ में आपके दोस्त हो तो सफर का मजा और बढ़ जाता है। हमारे साथ सब उल्टा हो रहा था फिर भी हमलोग मस्ती कर रहे थे।सारे दोस्तों के नाम ये ब्लॉग :)
सुझाव - 1 अगर आप चेरी ब्लॉसम देखने जाये तो ट्रैफिक और भीड़ के लिए मानसिक रूप से तैयार हो के जाये
             2 पार्किंग के लिए जीपीएस को न फॉलो करे बीबी की बात मने
              3  कभी भी ताज में खाने न जाये
  

No comments:

Post a Comment