आदतन सुबह उठने के बाद न्यूज़ ,फेसबुक,व्हाट्सऐप ,टविटर चैक किया।दिल थोड़ा भरी सा हो गया ,हर जगह एक ही चर्चा कि, एक राजस्थान के किसान ने दिल्ली में आत्महत्या कर ली।आत्महत्या भी कहि सुनसान या बंद कमरे में नही ,लाखो की बीच में। जहां आम आदमी पार्टी की रैली चल रही थी।रैली जंतर -मंतर पर लैंड बिल के विरोध में चल रही थी। ये वही जंतर -मंतर है ,जो ग्रहो की गति नापने के लिए बना था। आज वो धरना केंद्र के रूप में ज्यादा जाना जाता है। यहां पर कई महत्वपूर्ण धरने हए।उनमे अन्ना हज़ारे ,निभ्या कांड ,नर्मदा बचाओ ,मनरेगा ,भोपाल गैस कांड ,आसाराम के भक्तो का धरना,एंटी आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (AFSPA ) जैसे कई है।मुझे न्यूज़ पढ़ के दुःख के साथ बहुत क्रोध भी हुआ ,कि कैसे कोई मरता रहा और इतने लोगो के बावजूद कोई कुछ कर ना पाया। क्या लोगो को मौत की इतनी आदत पड़ चुकी है ,या लोगो की भावनायें मर चुकी है ? एक और जहाँ एंटी AFSPA के लिए धरने पर बैठी "इरोम शर्मीला " को इसलिए कैद कर लिया जाता है कि ,वो भूख के द्वारा आत्महत्या कर रही थी।ऐसा नेताओ और पुलिस का मानना था। फिर आज तो वो शख्स खुले आम मर रहा था ,उसे क्यों नही पकड़ा गया ? शायद वो बच जाता। मरने वाले किसान का नाम गजेन्द्र सिंह कल्याणवत था।मैंने न्यूज़ में पढ़ा की गजेन्द्र के पिता के पास 20 बीघा जमीन भी है ,लेकिन बारिस की वजह से सारी फसल ख़राब हो गई।गजेन्द्र जयपुरिया साफे का भी कारोबार करते थे। वो राजनाथ सिंह (गृह मंत्री ) सहित दूसरे कई प्रसिद्ध हस्तियों को साफा बांध चुके थे।उनके तीन बच्चे भी है।क्या मरने से पहले एक बार भी गजेन्द्र को अपने बच्चो की याद नही आई ?चलो ठीक है ,आप बहुत परेशानी से जूझ रहे होंगे ,पर उसका हल मृत्यू तो नही? वैसे ये अच्छा किया जब मरने का सोचा तो जगह अच्छी चुना। हो सकता हो काफी लोगो को मेरी ये लाइन अच्छी ना लगी हो।पर जरा सोच के देखिए वो पागल तो था नही ,जो अचानक कुछ कर बैठे। हर इंसान अपनी जिंदगी पूरी जीना चाहता है। यहां तक की किसी बुजुर्ग से भी पूछो तो वो कुछ और साल जीना चाहता है। क्योकि उसे अपने परिवार से मोह हो जाता है। खुदखुशी सबसे अंतिम और निराशाजनक क्रिया है। जब इंसान कुछ कर नही पता और परिवार का भी साथ नही होता। शायद अपनी तंगी हालत मेंगजेन्द्र की भी यही हालत होगी। उसने लगभग हर किसी से मदद तो मांगी ही होगी।फिर सोचा होगा कुछ नही कर पा रहा हूँ अपने परिवार के लिए "एक जान है वही तौफे में दे दूँ " . घर से निकलते वक़्त उसके दिमाग में क्या चल रहा होगा ?सोच रहा होगा कितना बदकिश्मत हूँ ,मौत समय से पहले आ रही है ,परिवार भी साथ नही। मारना भी उन अनजानों के बीच जिनके हृदय में दया नही। संतोष बस इस बात का है कि ,मौत का मेरा तौफा मेरे परिवार वालो के काम आयेगा। मैं किसान हूँ ,गरीब हूँ पर सबको कुछ न कुछ तो दे के जॉंऊंगा। निर्दयी पत्रकार मेरी मौत की तस्वीर ले के पैसे कमाएंगे ,राजनेता राजनीती करेंगे ,कुछ लोग फिर से मेरे लिए इसी जगह पर मेरे लिए ही धरना करेंगे। ये वो सब लोग होंगे जो उस वक़्त मेरी मौत का नज़ारा देख रहे थे। उस वक़्त मेरी थमती हुई साँसे और बोझिल आँखे कह रही थी ,मुझे बचालो मैं जीना चाहता ,घर वापस जाना चाहता हूँ , अपने बच्चो के पास अपने परिवार के पास। लेकिन हर कोई बस चाहता था ,मैं मर जाऊ।हूँ भी तो एक गरीब किसान। मैंने भी अपने आखिरी सांसो तक मानवता का इंतज़ार किया पर उसके आने तक मैंने इतनी पथरीली आँखे देखी कि मनो मेरी बंजर भूमि मेरे आगे हो।सोचा बची सांसे बचाने से क्या फायदा जब इतनी घृणा देख ली। जीवन जीने के लिए प्यार और दया में विश्वास होना जरुरी है ,जो मैं खो चूका हूँ।हज़ारो की भीड़ थी नेता ,अधिकारी ,आम आदमी सब मौजूद। उनके बीच में मैं फांसी लगा रहा हूँ,चाहे जो भी वजह हो।गमछे को डाल से बांधते वक़्त सोचा क्या सच में मोदी चाय बेचा करते थे ? यदि हाँ तो वो गरीबो की समस्याओ को क्यों नही समझते? या गरीबी के कारण वो सुख ना भोग पाये उससे ही पूरा कर रहे है।उनकी भी इच्छाये होगी कीमती सूट पहने की ,चमचमाती गाड़ी में जाने की ,हवाईजहाज पे चढ़ने की और दुनिया देखने की।खैर मुझे गमछे को बांधते देख भी किसी ने नही रोका।गर्दन फसाई तो भी किसी ने नही रोका ,झूल गया तभी लोग देखते रहे।मैंने सोचा मरने का मेरा फैसला गलत तो नही था ?क्या मेरे ना रहने से मेरे घर की खुशिया वापस आजाएंगी ?तभी मैंने मन में ईश्वर से प्रार्थना की ,कि हे प्रभु मेरे जैसा कोई और किसान मूर्खता ना करे। क्योकि जब सामने कोई नही आपको बचा रहा ,उनसे आपने परिवार वालो की सलमती आप कैसे सोच सकते हो ?नेता ,प्रशासन को छोड़ दे।जो लोग वहां थे, या जो सो कॉल्ड पढ़े लिखे वॉलेंटियर थे ,वो भी शायद ये देखने लगे की फाँसी से पहले जीभ बाहर आती है या आँख।ओह ! भगवान मेरे परिवार को ऐसी दुनिया से बचाना।जहां मौत पे न्यूज़ बनती है ,राजनीती होती है ,और सभ्य समाज धरना देता है।मेरा यहां मरने के ख़ाश कारण ये हो सकता है की, मेरे परिवार को सरकार और दूसरे नेता गणो से मदद मिल जाये। सरकार से अनुरोध है, मेरी जान की कीमत सान्तवना या सिर्फ 1 /2 लाख रूपये नही।मैं वो हूँ जिसने आपके देश की जनता का पेट भरा।उन्हें स्वास्थ्य बनाया।तो सान्तवना देने मेरे घर तो बिल्कुल नही जाये।मेरे बच्चो के बारे में जरूर सोचे ।जो न्यूज़ चैनल वालो ने मेरे मरते वक़्त मुझे न बचा के तस्वीर लेने और खबर को बेच पैसा कमने की सोची ।उनसे अनुरोध है उसका कुछ हिस्सा ही सही मेरे बच्चो के नाम कर दे।जो लोग मेरे लिए धरना पर बैठने को तैयार है ,उनसे मेरी आखरी गुजारिश है ,किसी मरते हुए को बचा ले। धरने पे बैठने से अच्छा किसी की मदद कर दिया करे।धरना सिर्फ और सिर्फ नेताओ को करने दे ,जिससे उनकी दाल- रोटी चलती है।ओह !जो मेरी मौत के वक़्त भी भाषण झाड़ते रहे।उनके बारे में क्या कहूँ ?उनके एक सहयोगी ने कहा, जो कभी पत्रकार भी रह चुके थे,की मुख्यमंत्री का काम नही पेड पर चढ़ के किसी को बचाना ये प्रसासन का काम है। तो क्या भावी मुख्यमंत्री का काम चुनाव के दौरान नाले साफ करना ,लोगो के पैर पड़ना ,गरीब के यहां खाना भर था ? मैं आग या पानी में नही था जहां मुख्यमंत्री की शुरक्षा का सवाल हो। हाँ आप मुख्यमंत्री है तो क्या ?है तो एक इंसान। हमने आपको बुद्धिजीवी समझ के चुना ,लेकिन जो इंसान नही वो बुद्धिजीवी कहाँ हो सकता है ? "हाँ मैं ही सोना बोने वाली चिड़िया हूँ ",जिसने सोना तो बो दिया ,लेकिन प्रकृति ने मिटटी बना दिया। कुछ सरकारी स्कीम मिलने की आशा में सरकारी तंत्र के पिंजरे में कैद हो गया।बंद पिंजरे में कभी अपने पंख तो कभी अपने सिर से मार कर उड़ने की कोशिश करता रहा ।देखो आज मैं उड़ गया। पिजरा और मेरा शरीर पीछे रह गया।अब जिसको जो मन वो इस पिंजरे और मेरे पार्थिव शरीर का करे।
महत्वपूर्ण :- हो सकता हो मेरा लेख कुछ लोगो को अच्छा लगे। कुछ लोग ये भी कहे तुमने क्या किया बस अपनी भावनायें व्यक्त की। मेरा आप सब से अनुरोध है ,मैं सच में किसानो के लिए कुछ करना चाहती हूँ। अगर आप कुछ सुझाव दे ,या हम सब मिल के कुछ कर सके।कम से कम हम एक अन्न देने वाले किसान की भी मदद करे तो,मैं अपना जीवन धन्य मानूंगी। आपके सुझाव की प्रतीक्षा में ,या कोई और मदद कर रहा हो तो कृपया मुझे जरूर बताये।
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