Friday, 17 April 2015

Cherry blossom in Washington DC Adventurous trip !!!!

हमारी जर्नी टू चेरी ब्लॉसम इन वाशिंगटन डीसी।दोस्तों अपनी यात्रा के बारे में बताने से पहले मैं आपको चेरी ब्लॉसम के बारे में बता दू।चेरी ब्लॉसम टोक्यो ,जापान का प्रसिद्ध है।वैसे ये वर्ल्ड में कई जगह होता है।भारत में भी हिमाचल प्रदेश ,उत्तराखंड,जम्मू & कश्मीर ,सिक्किम वैगरा जगहों पे होता है।अमेरिका में भी कई शहरों में होता है।लेकिन वाशिंगटन डीसी का चेरी ब्लॉसम ज्यादा प्रसिद्ध है।वाशिंगटन डीसी अमेरिका की राजधानी है।वैसे तो यहाँ देखने को काफी कुछ है,लेकिन चेरी ब्लॉसम की बात ही कुछ और है।चेरी ब्लॉसम में एक खास किस्म के पेड़ पे फूल खिलते है।पूरा पेड़ सिर्फ   फूलो से लदा हुआ रहता है।ज्यादा तर फूल सफ़ेद या हलके गुलाबी रंग के होते है।ये खाश किस्म के पेड़ जापान ने सन 1912 में अमेरिका को दोस्ती स्वरूप दिया था।कुछ पेड़ो को मेनहट्टन के सकुरा पार्क में लगाया गया और कुछ को टाइडल बेसिन के किनारे वाशिंगटन में।जो दो प्रमुख प्रजाति के पेड है,उनका नाम योशिनो ट्री (सफ़ेद फूल) और क्वांज़ां ट्री (गुलाबी फूल) है।चेरी ब्लॉसम स्प्रिंग(बसंत ऋतु ) यानि की मार्च से अप्रैल के बीच होता है।इसकी डेट भी निर्धारित होती है ,जो मौसम के अनुसार बताये जाते है ,कि किस डेट के आस पास पूरे फूल खिलेंगे।ये तो हो गई चेरी ब्लॉसम की बात।अब कहानी हमारी चेरी ब्लॉसम यात्रा की।
चेरी ब्लॉसम की प्रिडिक्शन के मुताबिक हम चार कपल ने 4 /11 /2015 को वाशिंगटन जाने का प्लान बनाया बनाया।कपल में मिस्टर &मिसेस जैन ,मिस्टर & मिसेस शाक्या ,मिस्टर & मिसेस बंसल और मैं ,मेरे जीवनसाथी शतेश।मुझे पतिदेव कहना कुछ खाश पसंद नही इसलिए जीवनसाथी लिखा 😜।हमलोग न्यू जर्सी से सुबह 9 :45 निकले वाशिंगटन के लिए।न्यू जर्सी से वाशिंगटन चार घंटे की दुरी पे है,लगभग 260 किलोमीटर(162 माइल्स )।मिस्टर जैन के जिम्मे गाड़ी रेंट करना और दो कपल बंसल और शाक्या के साथ मेरे घर तक आना था।हमारा घर वाशिंगटन के रास्ते में ही पड़ता है।यात्रा की शुरुआत तो मस्ती के साथ हुई ,लेकिन आधे रस्ते मे सब परेशान ,कारण ट्रैफिक।हमलोगो ने सोचा था 2 बजे तक पहुंच जायेंगे,फिर उधर ही लॉन्च करेंगे ,ट्रैफिक देख के हमलोगो ने रस्ते में ही खाने का प्लान किया।भारतीय होने के नाते खाने का बेस्ट ऑप्शन चिपोटेले (मेक्सिकन फ़ूड ),थाई या पिज़्ज़ा अगर इंडियन फ़ूड ना मिले तो।सर्वसम्मति से चिपोटले को ज्यादा वोट मिले।हमलोगो ने चिपोटेले में पेट पूजा की और फिर से यात्रा की शुरुआत की।डीसी पहुँचते -पहुँचते 3 :30 हो गए।हमें टाइडल बेसिन जाना था ,जहां चेरी ब्लॉसम वाले पेड़ लगे है।मगर मनो ऐसा लग रहा था पूरा अमेरिका वही जमा हो।इतनी भीड़ पहली बार मैंने देखि थी किसी अमेरिकी पार्क में वो भी फूल देखने केलिए।वैसे भीड़ तो डिज़िनी लैंड में भी थी ,पर पार्किंग की प्रॉब्लम नही थी।खैर काफी ढूंढने के बाद जॉन एफ कैनेडी सेंटर ऑफ़ आर्ट के पार्किंग में जगह मिली।आपको पुरे दिन के पार्किंग का $15 चार्ज लगेगा वहाँ।पार्किंग के बाद हमने पद यात्रा शुरु की।टाइडल बेसिन पहुंचते तो सारी ट्रैफिक की फ्रस्ट्रेशन दूर हो गई।इतना सुन्दर नज़ारा था कि दिल खुश हो गया।मानो ऐसा लग रहा था बादल पेड़ो पे आगए हो।हमरा फोटोसेशन शुरू हुआ।हमें वहां एक अमेरिकन कपल की शादी देखने का भी मौका मिला।अमेरिकन लोगो का अच्छा है ,कभी भी कही भी शादी कर लेते है 😊।टाइडल बेसिन के पास ही लिंकन मेमोरियल है ,जिसमे लिंकन की बहुत बड़ी मूर्ति लगी है।उसके ठीक सामने वाशिंगटन मोन्यूमेंट है।अगर किसी को वाशरूम जाना हो तो लिंकन मेमोरियल के बेसमेंट में टॉयलेट बना है।उसकेलिए भी लम्बी लाइन थी।अगर भारत में ऐसी हालत होती तो आप टॉयलेट जा नही पाते।लिंकन मेमोरियल के बाद हमलोग लेक के किनारे लगे पडो को देखते हुए आगे बढ़ रहे थे।फोटोग्राफी की पूरी कला मिस्टर शाक्या दिखा रहे थे।फोटो लेने का चार्ज उन्हें दे दिया गया था।वो मेरी ,शतेश और मिसेस शाक्या की फोटो लेने में बिजी हो गए।वही मिस्टर जैन थोड़े नॉटी और लेज़ी टाइप के फोटो में लिस्ट इंट्रेस्टेड।वो मिस्टर बंसल साथ आराम से चले जा रहे थे।मिसेस जैन और मिसेस बंसल के थोड़ा गुस्सा करने पे उन्होंने ने बाद में फोटो में सहयोग किया।चलो फाइनली हमारा ग्रुप फोटो ली गई।लेक के दूसरी तरफ जेफ़र्सन मेमोरियल और एम एल के मेमोरियल भी है।हमलोग बस चलते हुए थोड़ा रुक  के देखते जा रहे थे।घूमते -घूमते 8 बज गए और पैर भी दुखने लगे थे।हमलोगो को वापस गाड़ी तक जाना था।मिसेस जैन  कैब करने का सुझाव दिया पर लड़को ने कहा पास है वाक करते हुए चल लेंगे।डायरेक्शन पता करने के लिए मोबाईल के जीपीएस का सहारा लिया गया।कुछी दूर जाने पर नेशनल वर्ल्ड वॉर 2 मेमोरियल मिला।जितनी भी अट्रैक्शन का मैंने जिक्र किया वो सब फ्री है। इनके लिए कोई टिकेट नहीं है। इसके बाद एडवेंचर शरू हुआ।जीपीएस रास्ता कुछ गलत लग रहा था। क्योकि आते वक़्त हमें इतना टाइम नही लगा था।सब अपने अपने मेमोरी अनुसार रास्ता बताने लगे।लडकिया ज्यादा ही थक गई थी।इसलिए एक बार अनुमान वाले रस्ते पे गए ,जीपीएस को न फॉलो करके।आगे जाने के बाद पैडेस्टियन (पैदल चलने की सड़क )ही नही थी।सब परेशान कि अब क्या करे ?


क्रमशः  .......

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