KHATTI-MITHI
Wednesday 8 April 2015
Gantvya !!!
यात्रा पर निकला हूँ ,
लोग बार -बार
पूँछते हैं ,कितना चलोगे ?
मैं मुस्कुरा कर
आगे बढ़ जाता हूँ ,
कि कहीं तो नही जाना ,
मुझे इस बार
अपने तक आना है।
एक और बेहतरीन कविता मुनि क्षमासागर जी की।
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment