Friday 31 July 2015

Aasha ,Nirasha or Ummid !!!!!!

मेरा मन आशा ,निराशा से भर गया जब मैंने अपने कल के ब्लॉग "कलाम और याकूब आये" की प्रतिक्रिया देखी।ख़ुशी है कुछ लोगो ने इसकी बातो को समझा।वही मुझे दुःख हुआ ,मेरे भाई के एक दोस्त की प्रतिक्रिया पे हुई।इतनी कम उम्र और इतनी नफरत।उसका कहना था,अच्छा हुआ मर गया ,इसके घर वाले को इसका शव तो मिल गया ,मुंबई में तो  मरे हुए लोगो के शव भी नही मिले।क्या करोगे बच्चे तुम शव लेके ? जिनको जाना था वो चले गए। उनके जलती लाशो को देख खुद को जलना कहाँ तक सही है ? उन्होंने ने जाते वक़्त तुमसे ये नही कहा तुम उनके गुनहगार को मार डालो।जो घायल भी होंगे, उस वक़्त वो भी सब भूल के कह रहे होंगे ,मैं जीना चाहता हूँ।मुझे बचा लो।जब आखरी वक़्त मरते हुए की कामना जीवन है ,तो जीवन से बड़ा क्या ? मेरे पिता नही है ,उनकी भी अकाश्मिक मृत्यू हुई ,तो क्या मेरी माँ या हमलोग भगवान से लड़ने लगे।या फिर जिंदगी से हताश हो जीना छोड़ दिया। हमे बहुत अच्छा परिवार मिला ,दोस्त मिले ,जीवन साथी मिला।क्या ये जीने और खुशियाँ बांटने के लिए कम है  ?जो दिल में नफरत भर के मरते रहो या मारते रहो।बात याकूब की है ,तो आज से ज्यादा नही 6 महीने पहले तक कहाँ थे याकूब के साथ /खिलाफ लड़ने वाले।आज अचानक मिडिया और पॉलिटिक्स की बात सुनकर सब दो भागो में बट गए।सबने पन्ने रंग डालें ,सोच रंग डाली।मैं भी उनमे से एक हूँ। मुझे भी न्यूज़ मिली।लोगो को लड़ते देख मैंने भी अपनी सोच के मुताबिक ब्लॉग लिख डाला।पर एक बात मैं साफ़ कर दूँ ,मैंने किसी को न तो उपदेश दिया, या कही भी फांसी हो या ना हो लिखा या पूछा। मैंने सिर्फ कलाम साहब और याकूब के जरिये ये जानने की कोशिश की ,कि आखिर गुनहगार कौन हो सकता है ? मीडिया ,पॉलिटिक्स ,आतंकवाद ,जातिवाद ,हथियार बनाने वाले या हम ? मुझे भारत की संस्कृती या भारतीय होने पे गर्व है।दुःख तो इस बात का है,कि  भारत में इतने योग्यवान व्यक्तियों के होते हुए  ,आज भी राजनीती ,आंतकवाद या तो हिन्दू होते है या मुस्लमान।मीडिया या इनके भाड़े के लोग इसी बात का फायदा उठाते है ,और अपनी दाल -रोटी चलाते है।कलाम की श्रद्धांजली भूल ,पंजाब के गुरदासपूर की घटना भूल सब याकूब के पीछे लग गए।अगर आपको लगता है ,फांसी से लोगो में डर बना रहेगा।तो ये भी सच है 20 साल बाद फांसी से भी कोई डर नही बनता।राजनीती होती है बस।इसको इतना उछालने की जरुरत ही नही थी ,जिससे देश दो हिस्सों में बट जाये।कही न कही हमारी न्याययिक प्रणाली भी इसकी दोषी है।जहां पूरा देश कसाब के मौत पे एक मत था ,याकूब पे अलग -अलग क्यों ? मैंने सुना है ,फेसबुक या कोई भी शोसल साइट दंगा या भड़काने वाले पोस्ट को पब्लिश नही करती।पर दुःख के साथ कहना पड़ रहा है ये बिल्कुल झूठ है। इनको भी कमाना है।फेसबुक भरा पड़ा है, याकूब के पक्ष /नपक्ष पे। इतने बुरे- बुरे कॉमेंट पढ़े जिनकी आशा न थी।फर्ज कीजिए मैंने कोई पोस्ट की और, लोग उसपे गन्दी भाषा का प्रयोग कर रहे है ,तो मेरे दोस्त ,भाई ,बहन या पति को गुस्सा नही आयेगा ? अब मुझे समझ आया कैसे और क्यों लोग आतंकवादी बनते है।इसका एक ही उपाय है ,ऐसे कोई भड़काऊ पोस्ट ना  करो या इनपे ढंग का कमेंट करो या तो न करो।कमसे कम हम इसको बढ़ावा न दे।अपने मन की बात लिखना सही है ,सबको लिखने ,सोचने या बोलने की आजादी मिले।पर नफरत फैलाने की कीमत पर ,तो कतई नही।आज न्यूज़ में पढ़ा याकूब की वाइफ को संसद बना दो।क्यों बना दो ? माना उसका पति दोषी /निर्दोष था।इसका ये मतलब तो नहीं अनुभवहीन को सत्ता दे दो।अगर कलाम साहब की पत्नी के बारे में बात होती, तो भी मैं यही कहती।शुक्र है कलाम जी आपने शादी नही की।वरना आपकी बीबी पे भी राजनीती होती।आप सारे हिंदुस्तानी से यही विनती है ,""जैसे आपने एक होके  देल्ही की सत्ता पलट की""।जातिवाद को करारा जवाब दिया।वैसे ही देश का उद्धार करे ,किसी के बहकावे में ना आये। हम सब एक है।या फिर इन राजनेताओ को कहे अगर कर सकते हो तो, सारे मुसलमान भाइयो को उनकी और उनके दोस्तों की सहमति से पाकिस्तान भेज दो।और अगर ऐसा नही कर सकते तो अपनी राजनीति कम से कम जात -पात पे ना करो।आतंकवाद को इससे ना जोड़े। हम जैसे लोगो को न भड़कावो।हमें हिंदुस्तानी बने रहने दो।हम सब में कलाम और याकूब है। किसी कारण वाश अगर हम याकूब बनने की राह पर हो तो ,उम्मीद करती हूँ, हमरे अंदर का कलाम या हमारे भाई -बंधू कलाम हमें सही रास्ते पे जरूर लायेंगे।मुझे उम्मीद है,कि किसी की मौत , जश्न का दिन नही हो सकता। ये हो सकता है, किसी के मरने पर दुःख भी ना हो।मुझे उम्मीद है ,मेरे भाई का दोस्त समझ गया हो।मुझे उम्मीद है ,हमारा भारत भी समझ जायेगा।मुझसे उम्मीद है  !!!!

Thursday 30 July 2015

Abdul Kalam or(and) Yakub memon aaye !!!!!

मैं " बासु चटर्जी " की एक फिल्म " एक रुका हुआ फैसला " देख रही थी।ये  "12 एंग्री मेन " फिल्म का हिंदी में रूपांतरण है। वैसे तो इसमें 12 कलाकार है ,लेकिन मैं दो का ही नाम जानती हूँ। एक पंकज कपूर दूसरा अन्नू कपूर। फिल्म जब आप देखेंगे बाकी कलाकार आपको देखे हुए लगेंगे।कहानी कुछ यूँ है ,एक नौजवान लड़के के ऊपर उसके पिता के क़त्ल का इल्ज़ाम है।सारी दलीले उसके खिलाफ है।कोर्ट ने 12 लोगो को इस विषय पे चर्चा करके ,अपना मत रखने को कहा है।ताकी उसको फांसी मिले या रोक दिया जाय।सभी लोग बिना विचार किये हुए कहते है ,सारी सबूते लड़के के खिलाफ है ,तो लड़का दोषी है। विचार करके क्यों समय बरबाद करना दोषी मान कर फांसी के हक़ में जबाब दे देते है। उसमे (11वा आदमी )एक शख़्स होता है ,जिसको ये बात सही नही लगती। वो बोलता है उस नौजवान की जिंदगी हमारे हाथ है।हमें ऐसे बिना सोचे समझे कोई निर्णय नही लेना चाहिए। हमें एक बार केस के सारे पहलुओ को देख कर अपना -अपना मत देना चाहिए।उसकी बातो से एक दो लोग सहमत होते है , और केस पे चर्चा शुरू करते है।जैसे ही चर्चा शुरू होती है।मेरा गेट खटखटाता है।मुझे फिल्म में दिलचस्पी आ गई है ,इसलिए गेट बजने से थोड़ा अनमने मन से गेट खोलने जाती हूँ।मुझे गेट पर  "कलाम साहब " और  "याकूब मेमन " दिखते है।दोनों पूछते है ,हमें जानती हो या पहचानती हो ? मैंने खुश होके कहा अरे ! सादर प्रणाम कलाम सर मैं आपको जानती तो नही ,पर पहचानती जरूर हूँ।आपके साथ में कौन है ? इन्हे भी कही देखा है ,पर याद नही।कलाम साहब कहते है ,हम सबके पास जा के लोगो का मन जाँच रहे है। वैसे भी याकूब कहता है ,हम दोनों लगभग एक से है।इस बार हम तुम्हारे मन को जाँचने आये है तपस्या।उम्मीद करता हूँ तुम अपने मन का सच कहोगी ,और हमदोनो का  इंसाफ करोगी।मैं तो खुश हो जाती हूँ और उन्हें अंदर बुलाती हूँ।दोनों को आमने -सामने के सोफे पर बिठा कर मैं बीच में  बड़े सोफे पर बैठ जाती हूँ।जज की तरह नकल करते हुए ,उन्हें अपना मत रखने को कहती हूँ।मैं याकूब को अनदेखा कर कलाम साहब से कहती हूँ ,मुझे आपकी बुक " विंग्स ऑफ़ फायर " और " इग्नाइटेड माइंड "बहुत अच्छी लगी।तभी कलाम साहब कहते है ,तपस्या तुम पछ्पात ना करो मुझे भी आम इंसान समझो। मैंने माफ़ी मांगी।याकूब से कहा ,आप बताइये क्या कहना चाह रहे है ?

याकूब -मैं एक भारतीय हूँ ,जाति मुस्लिम , मैं एक चार्टड अकाउंटेट बना।
कलाम -मैं भी एक भारतीय हूँ ,मेरी भी जाती मुस्लिम ,कठीन परिश्रम के बाद एक वैज्ञानिक बना।

याकूब - मैं मुम्बई 1993  में  257 लोगो की मौत और 700 लोगो के घायल होने का सबब बना ,पर ये मैंने खुद नही किया था।इन कामो में मदद की वजह से मैं आतंकवादी हुआ।
कलाम -मैंने मिसाइल्स बनाने और ,पोखरण न्यूक्लिअर  टेस्ट 1998 में महत्वपूर्ण योगदान दिया।मैंने भी ये खुद नही वैज्ञानिको के सहयोग से किया।मुझे भारत की सारी बड़ी उपाधियाँ मिली।मुझे राष्ट्रपति बनाया गया।
तपस्या - फिर तो मामला साफ़ है, याकूब आप बुरे और कलाम साहब अच्छे ये तो साफ़ दिखता है।याकूब कहते है ,इतनी जल्दी ना करो फैसला सुनाने में मेरा दूसरा पक्ष भी तो सुन लो।
याकूब -कलाम साहब और तपस्या ,मैंने किन परस्थितियों की वजह से ये दोज़ख (नरक ) का काम किया मुझे भी नही मालूम। वो अयोध्या कांड /गोधरा का असर था ,या मेरे भाई की मदद करना या मैं जातिवाद के बहकावे में था। बस इतना पता है मेरी वजह से मासूमो की जान गई।उनकी चीखे मुझे सोने नही दे रही थी।मैं पकड़ा गया या समर्पण था ये भी नही जनता। बस इतना पता है ,कि मैंने गलती की जिसकी कोई माफ़ी नही।मुझे सजा मिली 21 साल घुटा -मरता रहा।कभी लोगो की रूह का डर कभी फांसी का।मुझे शुरू में ही फांसी दे दी जानी चाहिए थी।मर तो मैं उसी दिन गया था ,जिस दिन इस पाप में भागी बना।ये तो मेरा जिश्म है जो ,रोज- रोज मरता है , और उम्मीद है की मरने नही देती।
तपस्या - तो मैं इसमें क्या करू ?करनी का फल तो मिलता है।
 कलाम -तपस्या पहले याकूब की बात तो पूरी सुन लो। तुम यंग जेनरेशन के बच्चों का यही प्रॉब्लम है।हर वक़्त जल्दीबाज़ी ,गुस्सा ,जजमेंटल होना ,दुसरो की बातो में आना ,हताश होना।अपनी कमजोरी को अपना हथियार बनाओ।कभी भी दूसरे के बातो में आने से पहले अपने मन की ,दया की ,सचाई की राह चुनो।कम से कम तुम्हरी आनेवाली नस्ले तो सुख -शांति से रहे।तुमलोगो ने बहुत कुछ देखा ,सुना।भविष्य में ऐसा ना हो इसलिए याकूब की पूरी बात सुनो।
याकूब -तपस्या मैंने साथ दिया या नही दंगे में वो अलग बात है ,मैंने ब्लास्ट करवाये या नही वो भी अलग है। पर कम से कम ये तो पक्का है मैंने नही कहा ,अल्ला मियाँ मुझे मुस्लिम बना कर भारत में भेजो। अगर भेजा भी तो मुझे ,कलाम के घर क्यों नही भेजा ? मेरे भाई के मन में भारत के प्रति नफरत क्यों भरी ?या आपने हथियार  बनाने वाले लोगो को क्यों बनाया ? जिस सवाल के जबाब के लिए हम आये है वो ये है , मेरे हिसाब से कलाम भी दूसरे देशवाशी के लिए आतंकवादी है।उन्होंने ने भी न्यूक्लिअर बम  बनाये है। कल को किसी देश से ख़ुदा न करे युद्ध हो, और बम  गिरना पड़ जाये।सोचा है कितने लोग मरेंगे ? तो क्या उस वक़त इन्हे भी कैद /फाँसी होगी ?
तपस्या -तुम पागल हो गए हो ,देशद्रोही। कलाम ने देश की सुरक्षा के लिए अविष्कार किये है। तुम अपनी तुलना ,कलाम से तो बिल्कुल न करो।तुम्हे सजा होनी चाहिए।तुमने लोगो की जाने ली है।
कलाम -मैं तुमसे पहले ही कह रहा था याकूब ,तुम लोगो का मन न टटोलो।लोगो ने जितनी भी गीता /कुरान /बाइबिल पढ़ी हो उनमे आज भी सच और गलत की परख कमहै   ,दया नही ,माफ़ी नही।तुम जी कर भी रोज मरोगे तो अच्छा ये कि मर ही जाओ।जहाँ तक मेरा विचार है ,मैं अपने जीते -जी कोई युद्ध नही चाहता। मुझे आज भी अपने अविष्कार पे शर्म महशुस होती है ,जब हिरोशिमा /नागासाकी के अपाहिज बच्चो को देखता हूँ।मैं कर भी तो कुछ नही सकता।पूरा विश्व घ्रीणा की आग में जल रहा है ,सबको चाँद -सूरज पर पहुचने की जल्दी है। उसके लिए लाखो लोगो की जान जाती है तो जाये।
  तपस्या कोई भी उपलब्धि /तरक्क़ी/घृणा /प्यार/जाति /समाज मानव जीवन से बढ़ के नही।ना कोई जाति से आतंकवादी बनता है न वैज्ञानिक।किसी एक की मौत से कभी न तो आतंकवाद ख़त्म होगा न बढ़ेगा।जब तक तुम जैसे युवा इसमें साथ न दे।तुम लोग उगते सूरज हो ,जात -पात की राजनीती से बहार आओ। माफ़ी माँगना और क्षमा करना सीखो।मेरा क्या है ,उम्र हो गई है।सदा तुम्हे दिशा दिखने को न रहूंगा। कल को मेरी मौत के एक /दो दिन बाद याकूब को अगर फांसी मिलती है ,तो दुनिया मुझे भूल कर याकूब के पीछे लग जाएगी।यही नया युग है।पर याद रखना याकूब को फांसी देने वाला भी कही न कही एक खून का मुजरिम है।अब तुम बताओ क्या फैसला है तुम्हारा ,तुम एक "रुका हुआ फैसला का 11  किरदार हो "। याकूब और कलाम साहब मुझसे बार-बार मेरे मन की बात पूछ रहे है।मैं उनसे रोते हुए कहती हूँ माफ़ करो मुझे।मैं कोई जज नही।मैं किसी के मौत पे खुश नही हो सकती। मैं किसी के मौत पे खुश नही।तभी शतेश मुझे झिकझोड़ते है ,क्या हुआ तपस्या कोई बुरा सपना देखा क्या ?मैं पसीने से तर रोती हुई कहती हूँ।कलाम साहब और याकूब मेमन मेरे सपने में आये थे। शतेश बोलते है ,इसलिए कहता हूँ न्यूज़ पढ़ के ना सोया करो।दोनों ही मर चुके है।आह दोनों ही  मर चुके है !!!!!!!

Saturday 25 July 2015

KHATTI-MITHI: Rocking KALYUG Is Baar AHALYA/AHIYLA Bach Gai !!!!...

KHATTI-MITHI: Rocking KALYUG Is Baar AHALYA/AHIYLA Bach Gai !!!!...: सुजॉय घोष ने 14 मिनट की एक छोटी फिल्म बनाई है।जो आज कल सोशल मिडिया में खूब शेयर किया जा रहा है।ये वही सुजॉय है ,जिन्होंने विद्या बालन को ले...

Rocking KALYUG Is Baar AHALYA/AHIYLA Bach Gai !!!!!!

सुजॉय घोष ने 14 मिनट की एक छोटी फिल्म बनाई है।जो आज कल सोशल मिडिया में खूब शेयर किया जा रहा है।ये वही सुजॉय है ,जिन्होंने विद्या बालन को लेके कहानी फिल्म बनाई थी।इससे कम से कम आप इनके काम का अंदाजा लगा सकते है। ये जो छोटी फिल्म है ,इसका नाम "अहल्या " है।कुछ लोगो ने मुझसे कहा कहानी अच्छी है ,पर कहानी का अंत समझ नही आया।मैं बहुत बड़ी जानकार तो नही पर अपनी समझ के अनुसार उन्हें समझाया।फिर ख्याल आया ,इसपे भी कुछ लिखू।ये कहानी अहल्या नाम की औरत का ,जिसकी शादी एक अधेड़ उम्र के पुरुष से हो जाती है।फिल्म में शुरु में दिखता है ,एक पुलिस वाला अहल्या के पति के पास ,एक व्यक्ति की खोज में आता है।पुलिस वाला अहल्या को देखता है ,और अहल्या की ओर आकर्षित हो जाता है।घर में टेबल पर कुछ मूर्तियाँ रखी होती है ,जो अचानक गिर जाती है।अहल्या वापस उसे उठा के रख देती है ,और कहती है ,जब भी कोई अंजान व्यक्ति आता है ये गिर जाते है।घर में एक पत्थर भी रखा रहता है।पुलिस वाले की नज़र उसपे पड़ती है। तब तक अहल्या का अधेड़ पति आता है।उससे पुलिस वाले को पता चलता है कि ,अहिल्या शादी -शुदा है।वो पत्थर छूने से पुलिस वाले को मना करता है।पुलिस वाला जिस व्यक्ति की खोज में आया है ,उसके बारे में पूछता है।अहल्या का पति पत्थर को दिखा के कुछ जादू की बाते करता है ,जो पुलिस वाले को मजाक लगती है।उसका पति पुलिस वाले से इसे आजमाने को कहता है।पुलिस वाला थोड़ा घबराता है ,फिर मान जाता है।वो पुलिस वाले को कहता है ,मान लो वो अहल्या का पति है ,और यही सोच के वो अहल्या के कमरे में जाए। पुलिस वाला कमरे में पहुँचता है ,तो अहल्या उसे अपना पति समझती है।पुलिस वाला उसके करीब जाता है।इसके बाद पुलिस वाला खुद को दिवाल में जड़ा पता है।वो बहार निकलने के लिए मदद माँगता है। तभी एक और नया व्यक्ति अहल्या के घर आता है।और इस बार टेबल से पुलिस वाले की मूर्ति गिरती है।फिल्म ख़त्म हो जाती है।ये है कलयुग की अहल्या की कहानी। इसपे अपनी सोच बताने से पहले ,मैं आपको सतयुग की अहल्या के बारे में कुछ बताती हूँ।वैसे तो आपलोगो को मालूम ही होगा ,रामायण में अहल्या के बारे में लिखा /दिखाया गया है।अहल्या महर्षि गौतम (सप्तऋषि ) की पत्नी थी।उनको ब्रह्मा की मानक पुत्री भी कहते है।ब्रह्मा को श्रिस्टी का जनक कहते है। लेकिन पता नही क्या साबित करने के चक्कर में उन्होंने अपने बेटी के भाग्य में अधेड़ पति और पत्थर होना लिखा।अहल्या बहुत ही सुन्दर थी। उनसे विवाह के लिए राजा -महाराजा ब्रह्मा के पास आने लगे। ब्रह्मा ने तय किया जो सबसे पहले तीनो लोक घूम के आयेगा उससे अपनी पुत्री का विवाह करेंगे।अप्सराओ से घिरे रहने वाले इंद्र भी अहल्या पे लट्टू थे।वैसे ये इंद्र के लिए कोई नई बात नही थी।उन्हें देव राज क्यों बनाया गया मुझे आज तक समझ ना आया।भईया लोगन अगर सतयुग में देवताओ द्वारा अपना नेता गलत चुन लिया जाता है ,और उसे हर गलती की माफ़ी है।तो हम तो खैर इंसान है।हम कलयुग वाले इंसान देवताओ से भी आगे है। हम सिर्फ एक इंद्र को ही मौका नही देते। हर 5 /10 /15 साल पर इंद्र बदलते रहते है :) हर किसी को मजा का पूरा मौका देते है।हम मुद्दे से भटक रहे है।तो भाईयो इंद्र ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल किया और टॉप उम्मीदवार बने।लेकिन नारद मुनि ने मामला गड़बड़ कर दिया।उन्होंने ने कहा मुनि गौतम अपनी गाय की सेवा कर रहे थे ,और गाय तीनो लोक के सामान है।तो विजय वो हुए।बेचारी अहल्या कहाँ इंद्राणी बनती ,अब उसे सन्यासनी बनना था :P उसकी शादी अधेड़ गौतम मुनि से हो गई।फिर मेरे मन में प्रश्न आता है ,मुनि गौतम इस उम्र में शादी क्यों कर रहे है भाई ? अगर करना ही था तो ,पहले करते। मुनि होने का ये मतलब नही की अपनी इच्छाओ को दबाओ ,और अगर दबा ही दिया तो एक सुन्दर नारी के लिय तोड़ दो क्या बात है।साबित होता है ,इस केस में भी सतयुग वाले हमसे पीछे थे।मुनि गौतम ,हमारे पास श्री आसाराम बापू जी है।हमलोग इंद्र की तरह आपके श्राप से डरे नही।आप तो सर्वज्ञानी है ,आपको मालूम ही है उनका आश्रम आज कल कारागाह में है :P फिर मुद्दे से भटकी मैं ,क्या करू मन बड़ा चंचल जीव है। तो शादी के बाद अहल्या मुनि की पत्नी बन कर आश्रम में रहने लगती है। इंद्र को अभी चैन नही। वो चन्द्रमा से मिलकर चाल चलते है। भईया वो सतयुग ही था ना ,या ग्रंथो में गलती हो गई :)दुस्ट को राजा बनाना ,बुढ़ापे में काम उम्र की कन्या से विवाह ,पराई नारी से प्यार ,चाल और ...... खैर चन्द्रमा भोर होने का सिग्नल देते है। सर्वज्ञानी  मुनि गौतम को कुछ पता नही चलता है ,और गंगा स्नान को सुबह समझ के चले जाते है। उघर उनके जाते ही इंद्र मुनि गौतम का रूप धर कर ,अहल्या के पास आते है।अहल्या भी भोली उसे शक नही होता ,की स्वामी इतनी जल्दी कहाँ से पधार गए ? :) कही -कही पढ़ा या सुना है ,अहल्या को मालूम था ,वो इंद्र है।दोनों एक होते है ,तभी गंगा मईया मुनि को  बताती है। अरे मूरख मुझमे अपनी लुटिया ना डूबा ,तेरी लुटिया डूब गई है (हा -हा -हा) घर जा ,इंद्र तेरे घर आया है।मुनि घर आते है ,और इंद्र और अहल्या को देखते है।गुस्से में अहल्या को श्राप देते जा पत्थर बन जा।इंद्र को श्राप देते है ,कुरूप और पुरुसार्थ हीन हो जा।दोनों माफ़ी माँगते है। इंद्र को कहते है प्राश्चित कर तेरे पाप की अवधि कम हो जायेगी ,तू फिर राज करेगा।हा हा हा सतयुग में स्वर्ग के लिए योग्य व्यक्ति की राजा पद के लिए कमी थी। लेकिन यहां भी हम आगे है ,आपके पास ब्रह्मा ,बिष्णु ,महेश ,वरुण देव,अग्नि देव ,ये देव ,वो देव सब थे ,फिर भी इंद्र। हमने टोपी वाले ,साड़ी वाली ,पगड़ी वाले ,कोट वाले ,कुरता वाले ,लुंगी वाले ,मफलर वाले ,चाय  वाले ,झाड़ू -पोछा ,हाथी ,लालटेन ,कूड़ा -करकट सबको मौका दिया।मुनि अहल्या को कहते है ,त्रेता युग में राम आएंगे ,उनके चरण स्पर्श से फिर नारी बन जाओगी।अंतर्यामी  मुनि देव हद हो गई हद सतयुग को ख़त्म होने में 1 ,728 ,000 साल लगे। इसके बाद त्रेता युग आता है।आपको इतने आगे का मालूम है की,राम आएंगे ,पर 1 /२ घंटे पहले का पता न चला की इंद्र आयेंगे ;) आपने श्राप में भी पक्षपात किया ,आपको अहिल्या को कुरूप बनाना था और इंद्र को पत्थर।आपको क्या पता एक औरत के लिए कुरूपता किसी श्राप से कम नही :) इंद्र को तपस्या से मुक्ति और अहल्या को पैर से छुने से।अहल्या इंद्र के पास नही इंद्र अहल्या के पास आया था।अगर उसे मालूम भी था ये इंद्र है ,तो इसमें आपकी और ब्रह्मा की गलती थी।जब आप जैसे ज्ञानी को इच्छा हो सकती बुढ़ापे में सुंदर ,युवा कन्या से शादी की।तो उसको क्यों नही ,वो आपकी तरह ज्ञानी और मैचोयोर नही।सजा का निवारण भी ऐसे के पैर से जो व्यक्ति (राम )अपनी पत्नी पे भरोशा नही करेगा।वाह गौतम मुनि आपने भी साबित किया सतयुग हो या कलयुग सजा हमेशा महिलाओ को ही ज्यादा मिले और उनका स्थान पुरुषो के चरणो में हो।पुरुषो को हर चीज़ में छूट।मुझे बहुत ख़ुशी है ,मैं कलयुग में हूँ।यहां बहुत सारे इंद्र ,गौतम ,अहल्या है।फिर भी हमेशा तो नही पर कभी -कभी अहल्या की जीत होती है।ऐसी ही जीत की कहानी है ,सुजॉय घोष अहल्या। इसकी कहानी काफी मिलती है ,सतयुग की अहल्या से।अलग है तो ये की, इस बार अहल्या को श्राप नही ,इंद्र को मिलता है।और इस बार गौतम यानि अहल्या का पति अहल्या के साथ होता है।बहुत -बहुत धन्यवाद घोष साहब जो आपने अहल्या का दर्द समझा।आपके फिल्म को आये 2 वीक से ज्यादा हुए। पर कोई हंगामा नही संस्कृति के नाम पे। एक तरह से ये अच्छा है ,या फिर हो सकता है ,लोग अब तक गजेन्द्र चौहान की नियुक्ति ,हिंदुत्व ,मांसाहार पे ही अटके हो। या बिहार की चुनाव की रणनीति बना रहे हो।    

Friday 24 July 2015

KHATTI-MITHI: Boston ,MIT, Harvard , kanuni Hasina And Friends p...

KHATTI-MITHI: Boston ,MIT, Harvard , kanuni Hasina And Friends p...: पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा कि हमें पुलिस ने रोका और फाइन किया।शतेश थोड़े से दुखी थे,मुझसे कहते है ,तुम कैसे इस समय भी हँस रही हो ? मैंने कहा फ...

Boston ,MIT, Harvard , kanuni Hasina And Friends part -2 !!!!!

पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा कि हमें पुलिस ने रोका और फाइन किया।शतेश थोड़े से दुखी थे,मुझसे कहते है ,तुम कैसे इस समय भी हँस रही हो ? मैंने कहा फाइन ही तो है पेय कर देना :) वैसे भी तुम्हे उससे बहस नही करनी चाहिए थी। ऐसे तो कोई महिलाओ से जीतता नही ,वो तो पुलिस वाली थी :P शतेश को मेरी बात से हँसी आ गई।सब भूल कर हमने अपनी यात्रा फिर शुरु की।मिस्टर बंसल का कॉल आया कितनी देर में पहुँचोगे ? ट्रैफिक देखते हुए हमने बताया 11:30 होगा पहुँचते -पहुँचते।हमलोग रात के 12 के आस -पास पहुंचे।शतेश ने पार्किंग के लिए मिस्टर बंसल को कॉल किया।देखा तो मिस्टर बंसल के साथ प्यारी तृषा भी हमारा बाहर इंतज़ार कर रही थी।मैंने उसको गोद में उठा लिया ,और वो भी बिना किसी हिचकिचाहट के मेरे पास आ गई।ऐसा लग रहा था जैसे हमलोग को पहचानती हो :) घर में जाने के बाद मिसेस बंसल से मिली।फ्रेश होने के बाद हमलोग खाने पे टूट पड़े। मिस्टर एंड मिसेस बंसल ने भी नही खाया था।वो लोग भी हमारा इंतज़ार कर रहे थे।खाना बहुत ही टेस्टी था।खाने के बाद बातो का सिलसिला शुरू।मैं और मिसेस बंसल तो रात के 3 बजे तक बात करते रहे। मेरी आवाज बिल्कुल ही चोक हो गई थी ,फिर भी दो महिलाये बिना बात के :) फाइनली हमलोग सोये। सुबह मुझे हल्का बुखार हो गया था। मैं आराम कर रही थी। मिसेस बंसल ने पूछा नाश्ते में पराठा खाओगे ? भईया इतनी ख़ुशी हुई सुन कर पूछो मत। नाश्ते के टेबल पर गरमा -गर्म पराठा ,ऊपर से बटर।ओहोहो मजा आ गया 2 साल में पहली बार नाश्ते में पराठा मिला था।शतेश कहते है पंजाबियों के घर पराठे न खाए तो क्या किया :) हमें लग ही नही रहा था कि घूमने आये है। आराम से नास्ता फिर चाय फिर गप शुरू।मैं भी फीवर की दवा लेके बातो में लग गई।तृषा बार -बार शतेश के गोद में बैठ जाती।शतेश सदमे में कि ऐसा इस बार कैसे ,अमूमन शतेश बच्चो से दूर और बच्चे शतेश से :) बातो -बातो में मिसेस बंसल हँसते हुए कहती है ,तपस्या पता है मैंने मिस्टर बंसल को कहा ठीक से रहने को ,वरना तुम अपने ब्लॉग में लिख दोगी। मैं भी अपनी हँसी रोक नही पाई। मिस्टर बंसल ने भी कहा तुम्हारे ब्लॉग से पता चलता रहता है ,तुमलोगो के बारे में।सच में मुझे बहुत खुशी हुई उस दिन।मैंने सोचा नही था ,ये दोनों मेरे ब्लॉग पढ़ते होंगे :P खैर इनसबके बीच दिन के 2 बज गए थे। मिस्टर बंसल ने कहा क्या- क्या देखना है ? शतेश ने कहा MIT और हार्वर्ड देख लेंगे। ज्यादा भागमभाग नही करनी।मैंने कहा 130 डॉलर का चुना लगा है ,आये है तो आराम से घूमते है :) हमलोग पहले हार्वर्ड गए।जैसा सोचा था वैसा कैंपस बिल्कुल नही था।हमने पूछा पक्का यही हार्वर्ड है ? मिस्टर बंसल ने कहा हाँ भाई यही है :) ये तो फिर भी ठीक है MIT का कैंपस तो है ही नही। हमलोग वहाँ पे कुछ फोटो लिए और ऐसे ही घूम रहे थे।सोच रहे थे कैंपस जैसा भी है ,पर एक बार इसमें पढ़ने का मौका मिल जाये।शतेश को अचानक रोहलखण्ड यूनिवर्सिटी का भूत चढ़ा। बोलते है हमारा जैसा भी कॉलेज था ,उसी की बदौलत आज हार्वर्ड देख रहे है :)हमलोग हार्वर्ड से निकल कर MIT पहुंचे। हे भगवान बीच में रोड दोनों साइड नॉर्मल बिल्डिंग।इससे अच्छा प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी का कैंपस है। पर बात वही है ,हर कुछ दिखावा ही नही होता।पहली तस्वीर हार्वर्ड  कैंपस की दूसरी MIT की।
MIT में हमने एक शादी भी देखी।क्रिस्टिन लोगो का कल्चर अच्छा है ,कही भी कभी भी आई डू बोल दो :) मैं मजाक नही उड़ा रही।सच में ऐसा सोचती हूँ।उसके बाद हमलोग MIT के अंदर पहुंचे। वहां पे अलग -अलग लैब देखे। तभी शतेश को याद आया पार्किंग का टाइम खत्म हो गया है।सो हमलोग भागे पार्किंग की तरफ।दोनों ही यूनिवर्सिटी में रोड साइड पार्किंग है 1 डॉलर की।लेकिन सिर्फ एक या दो घंटे की। वो भी आपकी किस्मत अगर मिल जाये तो। नही तो 10 पेय करो प्राईवेट पार्किंग में। वहां से निकने के बाद हमलोग एक पंजाबी ढाबे पे खाने को गए।6 डॉलर में प्रॉपर खाना।शायद स्टूडेंट एरिया की वजह से सस्ता रखा होगा।हमने फिर डाउन -टाउन देखने का प्लान किया। डाउन टाउन में ही क्विंसी मार्किट है ,वो भी एक अट्रैक्शन है। तो हम वहाँ भी पहुँच गए। यह एक इनडोर मार्किट है, और खाने के तो इतने ऑप्शन पूछो ही मत।मुझे फीवर लग रहा था ,मेरा मन अब बिल्कुल घूमने का नही था।बस आराम करना चाह रही थी।शतेश ने मेरी हालत देख मिस्टर एंड मिसेस बंसल से चलने को कहा।आज हमलोग को शतेश के एक दूसरे दोस्त मिस्टर पात्रा के यहां रुकना था।उनका  कॉल आया कब आ रहे हो ? डाउन टाउन से उनका घर लगभग 1 घंटे की दुरी पर था। मिस्टर एंड मिसेस बंसल ने हमे विदा किया।उनलोगो को ट्रैन से जाना था,तो वो थोड़ी देर के बाद वहां से निकलने का प्लान किया। हमलोग फिर मिलने का वादा करके गाड़ी की तरफ निकल पड़े।एक बात और मिसेस बंसल ने मुझे बहुत प्यारी ड्रेस दी :) मुझे इंडिया की याद आ गई।इंडिया में किसी के घर जाओ तो वापस खाली हाथ नही जाने देते।हमलोग रात के 10 बजे मिस्टर पात्रा के यहाँ पहुँचे। 4th जुलाई की वजह से डाउन टाउन में इतनी भीड़ की पूछो मत।उनके घर पहुचने तक मेरा गला बिल्कुल बैठ गया था।बाहर मिस्टर पात्रा हमारा इंतज़ार करते मिले।हमलोग पहले भी मिल चुके थे।मुझसे हँसते हुए कहते है क्या किया जो आवाज नही निकल रही है। हमलोग घर के भीतर पहुँचे। मिसेस पात्रा "सेरेन "उनकी बेटी को गोद में लेकर हमारे पास आई। मैं थोड़ा डर रही थी सेरेन को लेने में या मिसेस पात्रा से गले मिलने में। कारण मुझे सर्दी -खाँसी ,फीवर था। और कही बेबी को भी इन्फेक्शन न हो जाए। सेरेन अभी 5 /6  महीने की ही होगी।बच्चो को इन्फेक्शन जल्दी होता है।पर मिसेस पात्रा कहती है ,कोई बात नही तुम पकड़ो इसे।सर्दी -जुकाम तो होते रहता है बेबी को। इसे कहते है प्यार।वरना मैंने कितने इंडियन को देखा है ,जिनके बच्चो को बिना सेनिटीज़र आप गोद में नही ले सकते। मैं इसे बुरा नही मानती।बच्चो की सेफ्टी ज्यादा जरुरी है।मैंने मिसेस पात्रा से कहा मैं बात तो कर नही सकती।बेटर मैं खाना खा के दवा खा लूँ।फटाफट मैंने खाना खा के दवा ली। फिर शतेश और मिस्टर पात्रा बातो में लग गए। मिस्टर पात्रा ने बहुत ही प्यारा घर ख़रीदा है। उन्हें देख लगा अमेरिका में वे ही असली मस्ती कर रहे है :P थके होने के कारण हमलोग जल्दी क्या 1 बजे सो गए।सुबह आराम से 10 बजे उठे। नाश्ता किया और चाय के साथ उनके खूबसूरत पैटीओ में गपशाप शुरू हुआ।सेरेन को बस कोई बात करने वाला चाहिए वो खुश। दिन के 12 बज गए थे। बारिश भी हल्की -हल्की हो रही थी।हमरा भी कोई खाश कही जाने का मन नही था। बस लग रहा था आराम करो।फिर तय हुआ आये हो, तो कुछ तो देख लो। सो हमलोग फटाफट रेडी हुए। तबतक मिसेस पात्रा ने खाना लगा दिया था। इतना कुछ था खाने को लेकिन मेरा मन नही कर रहा था। मिस्टर पात्रा कहते है ,तुम तो बच्चो से भी कम खाती हो :) मुझे उनकी कल रात की चने की फ्राई बहुत अच्छी लगी। और वही खाने का मन भी कर रहा था। पर उसके लिए चने को 24 घंटे भिगोना जरुरी था :( वो चटपटा था और फीवर की वजह से मुझे वही टेस्टी लग रहा था।खाने के बाद हमलोग ओसन  ड्राइव न्यू पोर्ट गए।शाम को समंदर के किनारे बैठे और वापस रात में न्यू पोर्ट सिटी आये। बहुत ही अच्छा क्राउड था। हर तरफ सिर्फ यंग लोग ,इंडियन तो शायद सिर्फ हमी लोग थे।रोड के दोनों साइड रेस्तरॉ ,लाइव म्यूजिक ,पब हाउस फुल लाइवली क्राउड।बहुत अच्छा लगा मुझे ये जगह ,और रुकना चाह रही थी।लेकिन फायर वर्क्स के बाद काफी ट्रैफिक हो जाती।सो हमलोगो ने  सोचा खा के निकलते है।हमलोग थाई रेस्तरॉ में गए ,मैंने स्पेशली करी को हॉट बनाने को कहा था। जब खाना आया भगवान वेटर ने दिल पे ले लिया था ,उसने इतना तीखा बनाया की खाया ही नही जाय :) मिस्टर पात्रा मेरी हालत देख के हँसे जा रहे थे। मिसेस पात्रा ने नॉन वेज ऑर्डर किया था ,जिसमे पाइनएपल था ,बोली इसमें से खा लो :) भूख लगी थी सो जैसे -तैसे खा के घर लौटे।आने के थोड़ी बाद हमलोग सोने चले गए। हमलोग को अगले दिन वापस न्यू जर्सी भी आना था।अगले दिन मिस्टर एंड मिसेस पात्रा कहते रहे खाना खा के जाओ ,पर हमलोग नास्ता करके घर को निकल पड़े।डर था वापस ट्रैफिक न मिले। खैर जल्दी निकलने का भी कोई फायदा न हुआ हमे ट्रैफिक मिला ही।शाम 4 :30 को हम घर पहुंचे तृषा और सेरेन की प्यारी यादो के साथ :) 

Thursday 23 July 2015

KHATTI-MITHI: Boston ,MIT, Harvard , kanuni Hasina And Friends p...

KHATTI-MITHI: Boston ,MIT, Harvard , kanuni Hasina And Friends p...: बॉस्टन, नाम तो सुना ही होगा।ये किसी फिल्म का डायलॉग नही।बस यूँही पूछ लिया मैंने।याद है जब हमलोग "बॉस्टन टी पार्टी " के बारे में प...

Boston ,MIT, Harvard , kanuni Hasina And Friends part -1 !!!!!

बॉस्टन, नाम तो सुना ही होगा।ये किसी फिल्म का डायलॉग नही।बस यूँही पूछ लिया मैंने।याद है जब हमलोग "बॉस्टन टी पार्टी " के बारे में पढाया गया था।मास्टर साहब ने कहा कल आपको बॉस्टन टी पार्टी के बारे में बताएँगे। नाम सुन के लगा कोई पार्टी हुई होगी ,जिसमे चाय पिलाई गई होगी।सोचा चलो कुछ तो मजेदार हुआ था इतिहास में।वरना हमेशा तारीख पे तारीख ,या उनके वंसज या युद्ध की तिथि या कौन हरा कौन जीता को रटते रहो।इतनी लड़ाइयों को पढ़ -पढ़ कर ,हम पर भी युद्ध की खुमारी चढ़ती।भाई और मैं  प्रैक्टिकल करते।तो  माँ क्यों पीछे रहती।युद्ध से जो घर की छति होती उसकी पूर्ति तो करती।फिर माँ बनती थी रानी लक्ष्मी बाई और हम दोनों मासूम भारतीय सैनिक जो अंग्रेजो की तरफ से लड़ रहे थे :) माँ हमें गाजर - मूली की तरह काट डालती ,फिर महसूस होता युद्ध का दर्द :P  लगता था कैसे इतिहास से पीछा छूटे ? अब लगता है, समय कोई भी हो इतिहास कभी पीछा नही छोड़ता।उदाहरण देख लीजिये मैं अभी अपने स्कूल टाइम की बात कर रही हूँ  ,जो की इतिहास बन चूका है।खैर बात बॉस्टन की।ये वही बॉस्टन है, जहाँ बॉस्टन टी पार्टी हुई थी।इसमें भी कोई चाय - वाय नही पिलाई गई थी।ये वो वक़्त था ,जिस समय ब्रिटेन का हर जगह राज था।ब्रिटेन से मामूली कर पर चाय का आयत अमेरिका में होता था।उस वक़्त बॉस्टन अंतराष्ट्रीय पोर्ट हुआ करता था।अमेरिका ने कर का विरोध किया।और इस विरोध में अमीरीकी लोगो ने बॉस्टन हार्बर पर, चाय से भरी तीन जहाजो के चाय को चेस्टर नदी में बहा दिया। कहा जाता है ,इस बिरोध का अमेरिकी क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान रहा।बॉस्टन टी पार्टी को काफी सारी क्रांति में उदाहरण के रूप में दिया जाने लगा।महात्मा गांधी ने भी नमक के कानून के वक़्त इसका जिक्र किया था। खैर मैं अब इतिहास से बाहर आती हूँ।बॉस्टन मस्चुस्टस की राजधानी है। हार्वर्ड ,मस्चुस्टस इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (MIT ), बॉस्टन यूनिवर्सिटी इसकी ख़ाश पहचान है।टाइम था लॉन्ग वीकेंड का।शतेश ने प्लान किया बॉस्टन जाने का। घूमना तो  एक बहाना था ,हमें शतेश के दोस्तों से मिलना था :) न्यू जर्सी से बॉस्टन बाई ड्राइव 4 आवर्स की दुरी पर है।हमलोग गुरुवार को शाम 5 बजे घर से निकले।जाने के दो रास्ते है ,एक टोल पेय करके दूसरा बिना टोल के। हमने दोनों का टाइम डिफरेंस चेक किया तो एक घंटे का अंतर आया। फिर डिसाइड हुआ टोल से चलते है ,थोड़ी जल्दी पहुंचेंगे।हमें "मिस्टर बंसल"  के यहाँ जाना था।मिस्टर बंसल और शतेश की दोस्ती कॉग्निजेंट के ऑफिस में हुई।शतेश के मुताबिक मिस्टर बंसल काफी इंटेलीजेंट और सीधे -सरल वयक्ति है।मिस्टर बंसल और मिसेस बंसल पहले ऐसे शतेश के दोस्त थे, जिनसे बिना मिले मैंने खुद से बात करना शुरू कर दिया था।कारण उनकी प्यारी बेटी "तृषा" एक दिन शतेश ने मुझे उसकी फोटो दिखाई और मैं खुद को रोक नही पाई :) उसे देख के लगा कोई पोस्टर बेबी है इतनी प्यारी।शतेश हमेशा कहते बंसल भाई बिल्कुल गाय है।मुझे हंसी आई और मैं बोली तुमने मुझे भी गाय समझ के शादी की पर वो गाय गलती से मारखाय निकल गई :P हमलोग रास्ते में आरव की बात करते जा रहे थे।आरव मेरे निआग्रा वाले ब्लॉग का सुपर हीरो था।मैंने आरव को कॉल लगाई थोड़ी बाते की तब तक टोल आ गया।ऐसा लग रहा था टोल वाला रूट लेके गलत किया।बार -बार टोल।हमने कुल मिला के 4 /5 जगह टोल पेय किया ,लगभग 25 /30 डॉलर और ट्रैफिक भी मिला।मैं थोड़ी थकी हुई थी,और मेरे गले में ख़राश सी हो रही थी।दिन में मेरी एक यूरोपिन फ्रेंड " डेजी " ने पूल पार्टी ऑर्गनाइज़ किया था।वो न्यू जर्सी से डलास मूव हो रही थी।मैंने उसे कहा मुझे आज 5 बजे से बॉस्टन जाना है।उसने कहा कोई बात नही तुम जल्दी वापस आ जाना,पर चलो।मैं गई तो पर मस्ती में भूल ही गई टाइम।शतेश का कॉल आया कि , तैयार हो न मैं निकल रहा हूँ ,ऑफिस से। मैंने डेजी को बाय किया और भागी घर की तरफ।घर आने के बाद फटाफट बैग पैक किया और तैयार हो गई।उस वक़्त मेरी फुर्ती देख कोई नही कह सकता की महिलाये तैयार होने में समय लगाती है।धूप में पूल में ज्यादा देर रहने से सर्दी -गर्मी अपना असर दिखाना शुरू कर दी। मेरी आवाज भारी होने लगी थी।शतेश ने कहा अब बात बंद गाना सुनते हुए चलते है।वरना मिस्टर बंसल के यहां जाके और बोल नही पाओगी।रात के 10 बज गए थे ,हमलोग गाने सुनते हुए जा रहे थे।तभी पुलिस के सायरन की आवाज और लाइट हमारी गाड़ी पर पड़ी।नियम के मुताबिक शतेश ने गाड़ी साइड में रोकी। हमलोग कंफ्यूज की हमने तो कुछ गड़बड़ नही की ,फिर हमें क्यों रोक ? जब आपको पुलिस रोके तो आपको गाड़ी साइड में रोक के गाड़ी में ही बैठे रहना होता है ,जब तक कोई पुलिस वाला ना आये। हमलोग इंतज़ार कर रहे थे ,तब तक ओ माय गॉड इतनी सुन्दर और फिट पुलिस वाली आई।उसने पूछा तुम्हे पता है कि ,तुम्हे क्यों रोका ? मैंने कहा नही।शतेश का कोई रिप्लाई नही। मैंने मन में सोचा भगवान क्या लड़का है ? पुलिस ने रोका है और ये देखे जा रहा है। ये साबित करता है ,कुछ भी हो लड़के लड़के ही होते है :) थोड़ी देर में शतेश पुलिस वाली से बोले नही पता तुम बताओ क्यों रोका,मैं कोई स्पीडिंग नही कर रहा था ?मैंने फिर सोचा बन्दा मरवायेगा क्या , क्यों टशन दे रहा है? पुलिस वाली ने कहा तुम मेरे गाड़ी के काफी नजदीक थे। शतेश फिर बोले मैंने लेन चेंज किया और सेफ डिस्टेंस पे था।मैंने शतेश को बोला क्यों पंगा ले रहे हो।मैंने पुलिस वाली को सॉरी बोला पर शतेश नही।वो और खार खा गई और रूल्स बताने लगी एक गाड़ी और दूसरी गाड़ी में लगभग 3 कार का डिस्टेंस होना चाहिए।ये पूरे अमेरिका में नियम है।शतेश से उसने गाड़ी के पेपर और लइसेंस मांगे।पेपर शतेश ने उसे दिया और बोला मैं सेफ ड्राइव कर रहा था।उसने कुछ कहा नही और बोली वेट करो। 2 /3 मिनट बाद एक इन्वेलोप के साथ आई और बोली लॉन्ग वीकेंड है केयर फूली ड्राइव करो।खूबसूरत हसीना इन्वेलोप दे कर चली गई। शतेश ने एनवेलोप खोला तो 132 डॉलर का चुना लगा गई थी , क़ानूनी हसीना :) शतेश गुस्से में थे ,ये क्या बात हुई ? मैंने कहा और घूरो और टशन दिखाओ उसे :) मैं हँसे जा रही थी ,की चलो मेरे ब्लॉग के लिए कुछ मसाला मिला और ट्रिप भी एडवेंचरस हुई :) आगे की यात्रा वृतांत कल फिर से.. ....    

Wednesday 15 July 2015

Barish ,Chai or Kajari

आह बाहर बारिश हो रही है।मन किया बाहर निकलू बारिश के बूंदो को महसूस करू ,पर कमबख्त शर्दी -जुकाम ने रोक लिया।बालकनी के शीशे के दिवार के पीछे खड़ी हो कई किस्से को याद करने लगी। कैसे बचपन में कागज का नाव बनाना,ग़ढे में भरे पानी में कूद जाना , भाई के साथ कागज वाले नाव पे चींटी को बैठना और उसको जाते देखना।बर्फ अगर गिरती तो और मजा आता। चुन -चुन के बर्फ खाना और तभी घर के भीतर से माँ की आवाज।आओ घर पे तो बारिश के बाद थपड़ से धुलाई होगी :) आह उस बारिश वाले बर्फ का स्वाद किसी भी कीमती बर्फ से कही ज्यादा है। कोई स्वाद नही फिर भी वो ख़ुशी ,कि भाई मैंने तुमसे ज्यादा चुनके बर्फ खाया ,शायद ही अब मिले।वो यादे तो उम्र भर साथ रहेंगी।उन यादो के साथ मैं भी बड़ी हो रही थी।बड़े होने के साथ अब भीगने में शर्म आने लगी।बारिश में छाते की कमी महसूस होने लगी।साथ में थोड़ा फैशन का ज्ञान भी आ गया तो ,कलर फूल छाते खरीदने लगी।छाते में पानी से बच -बच के चलने लगी।ऐसा लगता था कि नमक की बनी हु ,जो पानी से गल जाऊँगी :P जो मजा पहले भींगने और बर्फ चुनने में था ,अब वो छाता दिखाने में आने लगा।भींगने का मन तो अभी होता था।पर बड़े और समझदार बनने के लिए उसकी क़ुर्बानी देनी पड़ी।कई बार लड़के -लड़कियों को एक छाते के नीछे देख मेरा भी मन करता।काश मेरे छाते के नीचे भी कोई हो।
सिर्फ बारिश के लिए बॉयफ्रैंड ढूढ़ना मुश्किल था ,सो आडिया ड्राप करना पड़ा।मुझे अब उन दोस्तों पे अब गुस्सा आता है ,जो कहते है मैं तुम्हे प्यार करता था।अरे दुष्टों अब क्या फयदा।मेरी छाते में घूमने वाली विश तो अब पूरी हो गई :) फिर थोड़ी और समझदार हुई या यूँ कहे पसंद बदली।
अब किताबे ,म्यूजिक ,आर्ट मूवी अच्छी लगने लगी।फिर भी बारिश मेरी फिलिंग्स से जुड़ा रही।पहले जहां टिप -टिप बरसा पानी ,लगी आज सावन की ऐसी झड़ी ,भींगी -भींगी रातो में ,अभी जिन्दा हूँ तो जी लेने दो ------सुनती थी ,अब मैं हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक सुनने लगी।वैसे दोस्तों के साथ टिप -टिप बरसा पानी ही बेस्ट है :) क्लासिकल गाने अकेले में सुनने ,समझने के लिए ठीक है।वैसे तो मुझे कई सिंगर और म्यूजिशियन पसंद है।पर बात बारिश की तो ,मैं आज "कजरी " के  बारे में लिखती हूँ।
कजरी ;-सेमी क्लासिकल सिंगिंग होता है।ये बिहार और उत्तर -प्रदेश से शुरू हुआ।ऐसी लोक कथा है, मिर्जापुर में  कि कजली नाम की एक औरत थी। जिसका पति शादी के बाद परदेश कमाने चला जाता है।ऐसे में जब बारिश का मौसम आता है,तो वो खूब रोती है।और अपने पति को याद करके कुछ दुःख में गाने लगती है।वही गाने आज कजरी हो गया।वैसे तो कजरी गाने वाले बहुत है।लेकिन उनमे मुझे सबसे अच्छा श्रीमती गिरीजा देवी और श्री छन्नूलाल मिश्रा जी का गया हुआ लगता है।कजरी के कुछ बोल ;
1 - बरसन लगी बदरिया रूम -झूम के 
2 -भीज जाऊ मैं पिया बचाई लियो 
3 -हरी बीन काली बदरिया छाई -2 ,बरसत घेर -घेर चहुँ दिश से ,दामिनी चमक जनाई ,हरी बीन काली बदरिया छाई। कोयल कूह्के ,बादुर बोलत ,ताल -तलैया मनहु काम बढ़ाई ,हरी बीन ----- ,कौन देश छाये नन्द नंदन ,पाती हुना पठाई हरी बीन काली बदरिया छाई। 
4 -काली बदरा रे तू तो जूलम किया रे -2 ,एक तो काली रात दूजे पिया परदेश ,तीजे बदरा रे झमकाये बुंदियाँ रे। बादर गरजे घनघोर ,बिजूरी चमके चहुँ ओऱ ,सूनी सेजिया रे ,मोरा धरके जिया रे ,कारे बदरा रे तू तो जुलम----,कोयल कूह्क सुनावे ,पपीहा सोर मचावे ,बैयरी निंदिया रे ,नाही आवे अंखिया रे.कारे बदरा रे तू तो जूलम किया रे। 
 सोचिये उस वक़्त अगर फ़ोन, इंटरनेट  होता तो ,कजरी आज गाई ना जाती होती।कजली देवी फोन पे ही अपने -दुःख -सुख सुना देती।उनके पति देव भी तुरंत स्काईप पे हाज़िर :) वैसे आज के ज़माने में कोई कहे ,भींग जाऊ मैं पिया बचाई लियो ,तो पिया जी कहेंगे मैंने कहा बारिश में जाने को।मुझे कोई और काम नही जो ऑफिस छोड़ तुम्हे बचाने आऊ :P किसी फिल्म में मैंने देखा , हीरोइन भींग रही है ,तो हीरो हाथ से उनका सिर को ढकता है। मेरी एक फ्रेंड कहती है ,हाउ रोमांटिक।मुझे हंसी आ गई।मैंने कहा भईया अब तो छातो की दूकान बंद।वैसे भी उतना बचने से अच्छा भींग ही लो।फिर अगर प्रेमिका/पत्नी रो-रो के कहेगी ,कारी बदरा रे तू तो जूलम किया रे।तो घरवाले कहेंगे जूलम तो तूने किया है।बेशर्मी की हद है ,पति कमाए नही तो खाओगे क्या ? ये जो माइकल कोर का पर्स है ,कहाँ से आयेगा :)  दुःख तो इस बात का है ,कजली के समय इंटरटेनमेंट के लिए भी तो कुछ नही था।उसपे बारिश तो आस -पास वाले भी घर में कैद।क्या करे बेचारी रोये नही तो ? हमें देखो बारिश है ,तो मस्त चाय बनाओ ,कोई गाना यू टूब पे बजा दो। चाय की चुस्कियो के साथ खूबसूरत बारिश का मजा लो।कजरी सुनो और बारिश को और महसूस करो।

Wednesday 8 July 2015

amazing Niagara Fall , hum panch or majedar safar part -2

जैसा कि पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा हमलोग पिज़्ज़ा खाने के बाद यात्रा फिर शुरू करते है।फिर से बातो का सिलसिला शुरू हो जाता है।आरव को सीट बेल्ट से दिकत हो रही थी।वो उसे लगाना नही चाह रहा था।अमेरिका में रूल है कि ,छोटे से छोटे बच्चे को गोद में लेके गाड़ी में नही बैठ सकते।उसको सीट बेल्ट लगानी पड़ती है।बच्चो को इसमें थोड़ी दिक्कत होती है ,कारण आसानी से मूवमेंट नही होता।आरव महराज को सीट बेल्ट नही लगनी थी। वो बार -बार ममा की गोद में बैठना है कि जिद करने लगा। हम थोड़ी देर उसे पुलिस अंकल की बहाने बहलाते रहे ,पर वो कहाँ मानने वाला था।अंकिता ने थोड़ी देर के लिए उसे गोद में ले लिया ,और ऊपर से सीट बेल्ट रख ली। डेढ़- दो घंटे बाद पाण्डेय जी और शतेश को रेस्टरूम जाना था।गाड़ी को रेस्ट एरिया में रोका गया। अंकिता ने कहा आरव को भी बाथरूम करा लाती हूँ। तब तक थोड़ी बारिश शुरू होगी थी।रेस्ट एरिया से बाहर आने पर मिस्टर पाण्डेय ने कहा मैं आरव को गोद में लेके गाड़ी तक भागता हूँ ,तुमलोग आओ। मैंने कहा रुकिए मैं छाता ओपन करती हूँ।आरव को बारिश नही लगेगी।मैं छाता ओपन कर ही रही थी कि , मिस्टर पाण्डेय आरव को लेके भागने लगे।मैं भी छाता लेके पीछे -पीछे भागी।आगे -आगे मिस्टर पाण्डेय पीछे -पीछे मैं  :)पीछे शतेश और अंकिता हँसे जा रहे है।मिस्टर पाण्डेय आगे निकल चुके थे ,सो मैं भी रुक गई और हँसने लगी।गाड़ी तक पहुँचने के बाद हमें हँसता हुआ देख मिस्टर पाण्डेय ने पूछा क्या हुआ ? उन्हें पता ही नही लगा कि मैं छाता लेके उनके पीछे भाग रही थी :) फिर से गाड़ी स्टार्ट हुई और हम निकल पड़े नियाग्रा फॉल की तरफ।ढाई घंटे बाद हमलोग बफेलो नामक शहर में पहुंचे जहाँ होटल बुक किया गया था।बफेलो से नियाग्रा फॉल आधे घंटे की दुरी पर है ,लगभग 15 माइल।अब आपके दिमाग में ये ख्याल आयेगा कि हॉटेल नियाग्रा में ही क्यों नही ले ली ?आधे घंटे और गाड़ी चला लेते।वो ऐसा है ,भाईयो नियाग्रा भारतीयों या यूँ कहूँ एशियन लोगो के लिए तीर्थ स्थल की तरह है।वहाँ पर भर -भर के इंडियन आपको मिल जायेंगे।वहां होटल मिलना आसान नही था।जो मिल रहे थे वो बहुत ही महंगे।शतेश ने सोचा क्यों न थोड़ी दूर पे हॉटेल लिया जाए।हमें मर्रिअट होटल मिल गया उतने ही प्राइस में।हम जैसे हॉटेल पहुंचे आरव पूछता है ,ये किसका घर है ? अंकिता कहती है ,बेटा ये पाण्डेय जी का घर है। आज से 1 0 /15 साल बाद हम इसे ले लेंगे। आरव भी कम स्मार्ट नही तुरंत कहता है ,अच्छा तो टॉयज कहाँ है ? हमलोग हँस रहे थे उसकी बातो से ,तभी शतेश कहते है ,भाई यहां इनडोर स्विमिंग पूल बहुत अच्छा है।मैंने चेंकिंग के टाइम देखा।मिस्टर पाण्डेय का तुरंत दुखी रिप्लाई अरे यार मैं अपना स्विमिंग कौस्टुम लाना भूल गया।सब हँसते -हँसते लोट -पोट हो गए।अंकिता कहती है ,जैसे कोई कम्पटीसन में जाना है ,कि कौस्टुम जरुरी ही है।हमलोग केक ,बिस्किट खा के  20 /25 मिनट में हॉटेल से नियाग्रा फॉल के लिए निकले।रास्ते भर आरव पूछता रहा हम नियाग्रा फॉल जा रहे है क्या पस्या ऑन्टी ? फाइनली हमने आपने पावन पैर नियाग्रा की धरती पर रखा :) पैर रखते ही इंद्र देव अपनी कृपा बरसाने लगे। हल्की -हल्की बारिश होने लगी। थोड़ी ठंढ भी हो गई थी ,तो हुमलोगो ने जैकेट भी पहन लिया।प्लान हुआ कि आज वाकिंग थोड़ा मुआयना करते है कल " मैड ऑफ़ द मिस्ट "एक बोट राइड है और दूसरा दूसरा " केव ऑफ़ थे विंड्स "जिसमे फॉल का पानी आपके ऊपर थोड़ा पड़ता है ,देखेंगे। हमलोग विजिटर सेंटर पहुंचे। विज़िटर सेंटर और बारिश से गहरा सम्बन्ध था। जब भी वहाँ जाओ बारिश शुरू। अंकिता कहती है ,भगवान गुस्सा होके कह रहे है ,और आओ हमारी प्रिडिक्शन को नही माना।अब भुगतो :P अंकिता ने आरव को स्ट्रॉलर में बिठाया और ऊपर से छाता ओपन कर दी ,ताकि आरव भींगे ना।आरव को कुछ दिख नही रहा था,तो उसने छाते को आगे से थोड़ा उठा लिया था ,जिससे उसका पैंट भींग गया था।हमलोग को बाद में ये मालूम हुआ।हमलोग कुछ ही दूर चले थे कि, कि हमें ट्राम दिखी। बारिश हो रही थी, सो सोचा ट्राम से ही चकर लगा लेते है अभी।ट्राम का टिकेट 2 डॉलर पर पर्सन था।हमने ट्राम ली और चल पड़े।विज़िटर सेंटर से होते हुए सारे पॉइंट तक ट्राम जाती है।"टेरापिन पॉइंट " तक पहुँचने तक बारिश रुक गई। हमने सोचा उतर कर देख लेते है।वहां पहुंचे ओ माय गॉड मिस्ट हवा में तैर रहे थे। ऐसा लग रहा था ,बादल नीचे आ गये हो ,या धुँआ उठा हो।टेरपिन पॉइंट से हॉर्स शू फॉल का बहुत अच्छा व्यू दिख रहा था।बारिश फिर हल्की -हल्की होने लगी।मैंने अपना चश्मा हटाया।बारिश की बूंदो से दिकत हो रही थी।मैंने चश्मे को बैग के साइड में टाँग दिया।तीन/चार फोटो सेशन के बाद हमलोग भाग निकले बारिश जोर होने लगी थी।दौड़ कर वापस ट्राम पकड़ा।जब हमलोग वापस उतर कर गाड़ी तक जा रहे थे ,अँधेरा हो गया था।मुझे अपना प्यारा चश्मा याद आया।बहुत दुःख के साथ आपलोगो को बताना चाहूंगी कि ,मैंने अपनी नकली आँखे खो दी थी :( शतेश ने कहा चल के ट्राम में देखे। मैंने कहा मुझे याद नही कहाँ गिरा होगा।रहने दो बारिश में क्या परेशान होना।वैसे भी मुझे जो चीज़ खरीदी जा सकती है ,उसके गुमने या टूटने /फूटने पे ज्यादा दुःख नही होता।सो मैं आराम से थी ,शतेश परेशान कि मुझे देखने में परेशानी होगी।पर भगवान का शुक्र है ,मुझे दूर का नही दीखता।तो काम चल सकता था :) उसके बाद हमलोग खाने का ऑप्शन ढूंढने लगे।इतना इंडियन खाने का ऑप्शन शायद ही किसी अमेरिकन टूरिस्ट प्लेस पे मिलता है।हमलोग एक पंजाबी रेस्टुरेंट गए।देख के ही लगा बेकार होगा।आगे लिखा था ,पहले बिल भरे फिर खाये। मतलब की खाना इतना गन्दा होगा कि कोई बिना बिल दिए न भाग जाये :) हमलोग वहां से निकल लिए और "जायका "रेस्टुरेंट  पहुंचे। थोड़ी वेटिंग थी ,पर खाना ओ माय गॉड इतना स्वादिस्ट।मैंने ये दूसरी बार किसी टूरिस्ट प्लेस पे इतना अच्छा इंडियन खाना खाया।वरना तो थाई ,चिपोटले ,पिज़्ज़ा ही सहारा होते थे :)आरव को भी पालक पनीर खानी थी ,वो भी मिल गया।अच्छा खाने के बाद मन वैसे ही खुश हो जाता है,इतना खाया था ,कि चलने पर पेट दुःख रहा था। हमलोग फिर से फॉल के पास पहुंचे।वहां रात में लाइटिंग होती हैं फॉल के ऊपर तो अच्छा दीखता है ,ऐसा हमने सुना था।हाँ इसी बीच शतेश के एक पुराने दोस्त मिस्टर बाजपेयी जी भी वहां आये थे ,अटलांटा से।शतेश और इनकी मुलाकात सात साल पहले इंफोसिस की ट्रेनिंग में हुई थी। ये शतेश के रूममेट थे।तो शतेश ने इनसे मिलने का भी प्लान बनाया था।वो भी अपनी वाइफ और वाइफ के भाई के साथ लाइटिंग देखने आये थे।शतेश ने कॉल किया और हमलोग मिले।इसी बीच मैं और अंकिता लाइटिंग देख के आये।हमें कुछ खाश नही लगा।हमने झूठी तारीफ करके मिस्टर पाण्डेय और शतेश को देखने भेज दिया :) उन्ही लोग के साथ मिस्टर वाजपेयी और उनकी वाइफ आये।अच्छा लगा उनसे मिल कर।हमलोग बाते करने लगे ,पाण्डेय जी ने कहा हमलोग गाड़ी में वेट करते है तुमलोग आओ बात करके।हमलोग भी 5 मिनट में निकल लिए बारिश होने लगी थी फिर से।वहां से हम हॉटेल पहुंचे। नींद तो आ नही रही थी ,तो फिर से बात -चीत शुरू।अंकिता अपने गाँव की कुछ-कुछ बाते बता रही थी। जो की इतनी मजेदार थी ,हँसते हुए मेरी आँखों से पानी आ रहे थे।वो सब कभी और वरना खाम - खाह एक और पार्ट लिखना पड़ जायेगा :)अगले दिन का सोच के सोने की कोशिश करने लगे ,पर मन किसी का नही था। दूसरे दिन हमलोग 9 बजे तक फिर से फॉल देखने निकल पड़े। आज मौसम अच्छा था ,बारिश भी नही हो रही थी। हमने मेड ऑफ़ द मिस्ट की टिकेट ली ,पर पर्सन आपको 17 डॉलर पेय करना होगा। वो आपको अमेरिकन फॉल एंड हॉर्स शू फॉल दोनों दिखता है।आपको शीप पे जाने से पहले एक नीले रंग का रेनकोट मिलता है। सबको वो पहना जरुरी है, ताकि आप भींग न जाये। पर पता नही क्यों आरव को वो अच्छा नही लग रहा था। वो रोये जा रहा था नही पहना।किसी तरह अंकिता ने उसे पहनाया। भगवान आज कल इतने छोटे बच्चे भी फैशन के मारे है :)इतना सुन्दर नजारा ओह बयां नही किया जा सकता।उसकी तस्वीर यहां है।
उसके बाद हमलोग ब्रीज़ से होते हुए  दूसरे पॉइंट ब्राइडल वेल फॉल पहुंचे वो भी इतना खूबसूरत बयां नही किया जा सकता है।हमें घर भी वापस आना था,तो हमलोग वहाँ से निकल लिए।हमलोग एक गिफ्ट शॉप पहुंचे।आरव शतेश के साथ बाहर था।अपलोगो को तो मालूम है शतेश और शॉपिंग :( आरव ग्रिल पे पड़े बारिश की बूंदे देख ,शतेश को कहता है ,अंकल मैं गन्दा पानी पी जाऊंगा।शतेश उसे समझा रहे थे कि मैं पहुंची।आरव अभी भी शतेश को दिखा के पानी पीने का नाटक करने लगा।शतेश उसे डरा रहे थे फेस बना के।आरव हँसते हूए मुझसे कहता है ,पस्या ऑन्टी शतेश अंकल को डरा दो।मैंने तभी मान लिया बच्चो में भगवान होते है।वरना आरव को कैसे पता पति सबसे ज्यादा अपनी बीबी से डरते है :) 2 बज गए थे सोचा खाना खा के निकलते है। हमने सोचा आज कही और खाते है हमलोग पंजाबी हट रेस्टुरेंट गए। वहाँ बुफे था।हमे खाना कुछ खास नही लगा।सो बहाने बना कर निकल लिए।दूसरा 13 डॉलर पर पर्सन तो बींइंग इंडियन हमने अपनी कैलकुलेशन की ,कल भी तो 13 डॉलर ही पेय किया था और खाना भी अच्छा था।तो वही चलते है :)हमलोग फिर जायका पहुंचे।खाना खा कर घर की तरफ निकल लिए।फिर बाते शुरू हो गई :) तभी आरव की नजर मेरी ड्रेस पे गई।मैंने ओवरऑल (बेब ) पहन रखी थी।जिसका जींस फटा हुआ था।उसने मुझसे पूछा ये कैसे फट गया ?मुझे कुछ सुझा नही तो कह दिया गिर गई थी।उसको शायद मेरा जवाब सही न लगा।बोलता है शतेश अंकल आपने पस्या ऑन्टी का पैंट क्यों फाड़ा ? हमलोग हँस -हँस के लोट -पोट हो गए।शतेश बोलते है मैंने नही फाड़ा आरव ये स्टाइल है।जैसे उसे मालूम हो स्टाइल क्या है :)फिर शतेश से पूछता है अंकल हमलोग कहाँ जा रहे है ? शतेश मजाक में बोलते है नियाग्रा।आरव हँसते हुए कहता है अब बस। नियाग्रा अभी तो देखा। फिर हँसी का माहौल छा गया।शाम होने लगी थी।अब सब थक गए थे सो ,सोचा बाते बंद गाने सुनते है।भईया शतेश ने जो लाइन से " पंकज उदास" के गाने बजाये की उदासी का माहौल बन गया :) मेरा सिर थोड़ा -थोड़ा दुखने लगा।वही मिस्टर पाण्डेय और शतेश गाने का मजा लिए जा रहे थे।अंकिता से भी रहा ना गया।बोलती भईया चेंज कर दीजिये।शतेश बोलते है ,माहौल बना रहा हूँ। पाण्डेय जी ने भी शतेश का साथ दिया।मै सो गई। आरव भी मुझे सोता देख सो गया।थोड़े देर बाद आरव को पोटी लगी। बोलता है ममा छिछि करना है। अंकिता बोलती है ,बेटा अभी रास्ते में कही कोई बाथरूम दिखेगा तो चलते है।पर आरव बार -बार कहने लगा।शतेश कहते है ,इसका माइंड डाइवर्ट करो।मैंने हँसते हुए कहा चलो तुम कर के दिखाओ।साथ ही देख लेंगे तुम कितना बच्चा संभाल सकते हो।शतेश आरव को कहते है ,आरव तुम अपना ध्यान पोटी की तरफ से हटाओ। हमलोग फिर हँसने लगे। अंकिता कहती है ,भईया आप माइंड डाइवर्ट कर रहे है या उसे याद दिला रहे है :) यहाँ ये भी एक मुसीबत है, बच्चे को भी रोड साइड बाथरूम नही करा सकते।थोड़ी देर में एक पेट्रोल पंप आया ,आरव को वहां ले जाया गया।और इस तरह हँसते ,सोते ,जागते हमलोग वापस घर आगये।
सलाह :-एक बार नियाग्रा जरूर जाये। जो भी टूर या खाने -पीने की जगहे और चार्ज है वो मैंने लिख रखी है।