Wednesday, 29 March 2017

तुलसीदास की महिला फैन फॉलोविंग !!!

नवरात्री की ढेरो शुभकामनाएं आप सभी को। माँ शक्ति ,शक्ति समंजस बना के रखे।पूजा -पाठ तो शुरू हो ही गई होगी। अच्छा दोस्तों नवरात्री में सुन्दरकाण्ड पढ़ने का बड़ा चलन है।मुझे मालूम नही क्यों ? मैंने भी पढ़ा है। इस बार "मीर मस्ताना " मेरे बेटे की वज़ह से नही पढ़ पाई। हाँ -हाँ वहीँ सुन्दरकाण्ड जिसमे तुलसीदास जी ने लिखा है -

ढोल गवांर सूद्र पसु नारी ।
 सकल ताड़ना के अधिकारी।।


जिसको पढ़ते ही हँसते हुए आप कहते है ,देखा- देखा।
वैसे तो सीधे शब्दों में इसका अर्थ तो ये ही बनता है -ढ़ोलक ,मुर्ख ,नीच ,जानवर, स्त्री ये सब प्रताड़ित होने के हक़दार है।वहीं कुछ लोग कहते है-,तुलसीदास जी ने नारी को नीचा दिखाने के लिए ये लाइन नही लिखी।वो तो समुद्र के घमण्ड को दर्शाने के लिए ,राम के क्रोध को उकेर रहे थे।तुलसीदास जी भी ना ,उन्हें सोचना चाहिए था। राम तो राजा थे।राजाओं को तो महिलाएं सिर्फ रानी ,महारानी या नौकरानी रूप में भाती थी। आप तो ज्ञानी थे। आप ही कोई बुध्दि लगा के शुद्धि  कर देते।खैर अब तो लिख दिया था। ग्लानि में तप रहे थे। एक दिन उदास होकर गंगा किनारे  बैठे थे। सोच रहे थे ,जिस नारी कारण मैं ज्ञानी बना। रामचरित मानस लिख डाली। रामचरित मानस भी वो ,जिसकी नींव ही सीता और सोने का मृग था। ऐसे में घोर पाप हो गया मुझसे। आह ! इस अपराध का क्या निवारण हो? इसी चिंतन -मनन में थे कि ,ठीक इसी समय नारद जी पधारते है।नारायण -नारायण करते ,वीणा बजाते। तुलसीदास जी को दुःखी देख पूछते है -हे ज्ञानी तुलसीदास आप किस दुबिधा में हैं ? आप जैसे तेजस्वी पुरुष और दुःखी ? बात कुछ समझ नही आई। तुलसीदास जी बोले -पहले तो नारायण -नारायण बंद करे।सब आपके नारायण का कांड है।जाइये कलयुग में आपकी तरह लोग मुझ जैसे सिद्ध योगी का नाम लेंगे। नारायण -नारायण की जगह योगी -योगी कहेंगे। और मैं काहे का ज्ञानी ? ज्ञान होता तो स्त्रियों ,पशुओं के बारे में ऐसा लिखता ? काहे का तेजस्वी ?अब तो ज्ञानी बनने से अच्छा ,कलयुग में मैं बिहार प्रान्त में जन्म लूंगा। एक ग्वाले राजा का बेटा बनकर पशुओं की सेवा करूँगा। आगे चल कर राम की तरह राज करूँगा। बहुत हुई लिखाई -पढ़ाई। अब कभी ज्ञानी नही बनूँगा। नारद जी बोले-अरे , ये क्या कह दिया कविवर ? इस मुहर्त में तो कही बात सत्य होकर ही रहेगी। अब  तुलसीदास जी और दुःखी। स्थिति की गंभीरता देख कर नारद जी बोले -कविवर ,इसमें इतना दुःखी होने की क्या बात है ? जन्म तो अब आप लेंगे ही ,फिर भी अपनी ग्लानि मिटाना चाहते है तो एक ऊपाय है। तुलसीदास जी बोले -बताइये नारद मुनि। नारद जी ने कहा -आपने रामचरित मानस में जो सबसे पहले बालकांड लिखा है।उसी में एक पन्ना जोड़ दे। उसमे पन्ने में नारी का गुण -गान कर दीजिये। बस हो गया महाराज सारा मसला ख़त्म। नारद जी की बात सुनकर ,तुलसीदास बोले- क्या बात कही नारद मुनि आपने। माना आप चुगली करते है ,पर इसमें भी काम की बात कर जाते है। आप ना हो तो क्या हो देवताओं का। नारद जी की सलाह पर ,तुलसीदास जी ने बालकांड में इस श्लोक के साथ अपनी ग्लानि मिटाई और जबरदस्त नारी फैन फॉलोविंग बढ़ाई। 

उद्भवस्थितिसंहारकारिणी क्लेशहरिणीम्।
सर्वश्रेयस्कारीं सीता नतोऽहं रामवल्लभाम्।।

उत्पत्ति, स्थिति (पालन) और संहार करनेवाली, क्लेशों को हरने वाली तथा समस्त कल्याणों को करने वाली स्वयम् भगवन को प्रिय नारी शक्ति को  मैं नमन करता हूँ।

Monday, 27 March 2017

गोरखनाथ हठ योगी !!!

आजकल गोरखपुर और गोरखनाथ बहुत चर्चा में है।कारण तो आपलोगो को मालूम ही होगा।संयोग से मैंने गोरखपुर रेलवे स्टेशन को छुआ है ,एक बार दिल्ली से बेतिया जाते समय।गोरखनाथ जी के बारे में पहले भी मुझे सीमीत जानकारी थी ,आज भी है।गोरखनाथ जी को समझना अंतर्नाद को समझना है।बात गोरखपुर की तो ,बिहार से लोग या तो ईलाज़ के लिए गोरखपुर जाते हैं या फिर गोरखनाथ के दर्शन को।कुछ लोग पढाई के लिए पहुँचने लगे हैं।इनमे सबसे प्रमुख कारण मैंने ईलाज़ ही सुना है।जो भी दावा दारू के लिए जाते है ,लगे हाथ गोरखनाथ  के दर्शन भी कर आते हैं।वैसे भी  दुःख के समय लोग ज्यादा धार्मिक हो जाते है ,कंडीशन अप्लाई।कुछ लोग धार्मिक होते ही हैं और फल स्वरुप राज्याभिषेक पाते है।मेरी माँ के ऑफिस के एक स्टाफ जिनको हमलोग अमीन चाचा कहते। वो भी अपने ईलाज़ के लिए गोरखपुर गए थे। वो भी गोरखनाथ का दर्शन  करके आये। वहां से प्रसाद और मालायें लाये थे। मेरे घर भी प्रसाद और माला आया।माला के लॉकेट में शिव जी की तस्वीर थी।तभी से मैंने बिना किसी से पूछे ये जान लिया कि ,गोरखननाथ भगवान शंकर  जी ही है। बस शिव जी ने नाम बदल लिया है।अमीन चाचा ये भी बताते थे ,वहाँ एक कुआँ है।जिसमे लोग चावल की पोटली डालते देते है।थोड़ी देर बाद चावल उबल कर भात बन जाता है।लोग इसे चमत्कार मानते और प्रसाद रूप में ग्रहण करते है।बचपन में मुझे सुनकर आश्चर्य होता।सोचती एक बार गोरखपुर जाने का मौका मिल जाता तो देखती कैसे कूएँ में चावल पकता है।मौका तो नही मिला अलबत्ता एक दिन विज्ञानं के किताब में पढ़ा - ज्वालामुखी और गर्म पानी के कुंड के बारे में।तब जाके मालूम हुआ ये कोई चमत्कार नही विज्ञानं है। इसी तरह काफी बाद में जब कुमार गन्धर्व जी के द्वारा गया -"गुरु जी मैं तो एक निरंजन ध्याऊँ " सुन रही थी।मैं कही खो गई।मुझे बहुत अच्छा लगा।बस क्या था ,लिरिक्स ढूंढने लगी।और फिर मुझे मिला -गोरखनाथ भजन " गुरु जी मैं तो एक निरंजन ध्याऊँ "मैं चौंक गई।सोचा भगवान शंकर ने नाम बदला वो तो ठीक ,पर भजन कब लिख दिया ?इसी सब घनचक्कर से निकलने के लिए गूगलिंग शुरू हो गई।फिर जाके मालूम हुआ -गोरखनाथ तो नाथ पंथ के योगी थे।नाथ पंथ के योगी शिव जी के भक्त होते है।उनका कोई फिक्स ठिकाना नही होता।घुमक्कड़ होते है।अलख इनका मंत्र होता है।जीवन के अंतिम समय में ये लोग किसी एक स्थान पर धूनी रमाते है। शिव के भक्त होने के कारण गोरखनाथ जी के प्रसाद में शिव जी माला थी। वैसे गोरखनाथ जी हठ योगी थे ,तो उनके अनुयायी योगी जी भी कम हठी नही।वहीँ अवघड़ दानी ने भी सिद्ध कर दिया की वे ही योगी को राजयोगी मेरा मतलब राजयोग दे सकते है।जय बाबा भोले नाथ।

Thursday, 23 March 2017

एक ख़ूबसूरत जर्नी -सत्यार्थ तक !!!

दोस्तों आज मैं आप सबके साथ अपने जीवन का एक बेहद खूबसूरत अहसास शेयर करने जा रही हूँ। एक ऐसी ख़ूबसूरत
जर्नी जो मैं कभी भूल नही सकती।मेरे "सत्यार्थ "का मेरे जीवन में आने तक की कहानी। सच बताऊँ तो मैं माँ बनने से बहुत डरती थी।बस हनुमान जी का नाम लेकर कूद पड़ी इस यात्रा पर।इस जर्नी में सबसे ज्यादा शतेश के बाद मुझे मेरे भाई ने हिम्मत दिया। मेरी मौसी @रश्मि मिश्रा ,बहन @ शिल्पी मिश्रा और उसके प्यारे जीवनसाथी @अंशुमान मिश्रा ने मुझे हिम्मत के साथ बहुत अच्छे -अच्छे सुझाव दिए।साथ ही भगवान की कृपा से परदेश में भी ,इतने प्यारे -प्यारे ,अच्छे दोस्त मिले।जिन्होंने घर जैसा ही प्यार दिया मुझे।सबके प्यार और आशीर्वाद के लिए सदा आभारी रहूंगी।छोटे से सत्यार्थ के ऊपर तो प्यार की बौछार हो रही है। इसके मामा इसके "मस्ताना "पुकारते है।मैं कभी मीर तो कभी ईशित .शतेश के दोस्त सत्या।वही मेरे एक दोस्त ने - अध्येय ,तो दूसरा -गोविन्द नाम रखे है।बाबा ,दादी और नानी का तो पूछे मत -राजा ,सोना ,चालू ,बाबू जाने क्या -क्या।फिलहाल सत्यार्थ और मेरी इस जर्नी को मैं एक "सोहर "से सजा कर आप तक पहुँचा रही हूँ।कहानियों में फिर कभी सजाऊँगी।सोहर एक लोकगीत है। इसे अमूमन बच्चे के जन्म पर गया जाता है।इसकी ख़ूबसूरती ये है कि ,ये बेटी या बेटे में फर्क नही करता।घर की महिलायें जब एक साथ मिलकर गाती है ,तो उसका आनंद कुछ और ही होता है।मेरे पास ऐसा कोई संग्रह नहीं होने की वजह से ,आज छन्नू लाल जी का सोहर लगा रही हूँ।वैसे तो चन्दन तिवारी का भी सोहर मुझे पसंद है ,पर उनके सोहर में प्रसव की पीड़ा का जो जिक्र है ,वैसा मेरे साथ कुछ हुआ ही नही।भगवान की कृपा से मेरे जर्नी बहुत ही सहज रही ,एक आध तकलीफों को छोड़ कर।आप साबका भी बहुत -बहुत धन्यवाद।आपके प्रोत्साहन से मैं लिखती रही ,आपका साथ बना रहा।इससे भी मेरी जागती रातें आसान हुई।सबको बहुत -बहुत धन्यवाद।

Wednesday, 22 March 2017

कहावत के जरिये व्यक्ति परिचय !!!

दिवस -दिवस का खेल है बड़ा निराला।हर किसी के लिए एक दिवस चिपका दिया गया है।एक तरह से ठीक भी है।जैसे हर दिन किसी एक का जन्मदिन या म्रत्यु शोक मनाना थोड़ा अटपटा लगेगा।उसी तरह हमेशा एक तरह का राष्ट्र प्रेम या क्षेत्रीय प्रेम घातक हो सकता है। प्रेम कोई भी हो ,दिन ब दिन कम -ज्यादा होते रहना चाहिए।इससे उदासीनता का बोध नही होता।22 मार्च ,आज बिहार दिवस है।आप सभी को बिहार दिवस की शुभकामनायें।हर व्यक्ति को अपनी जन्मभूमि से प्यार होता है।मुझे भी है। फिर भी मैं बिहार का ज़्यादा गुणगान ना करते हुए सिर्फ यही कहूँगी -ये बुद्ध की धरती है। बुद्ध जो अपने आप में सम्पूर्ण है।वही बिहार अभी सम्पूर्णता की ओर छोटे -बड़े कदम तलाश रहा है।कई समस्याएं है ,उसमे प्रमुख माइग्रेशन है जो माइग्रेन से भी ज्यादा खतरनाक होते जा रहा है।दोनों ही दशा का अनुभव है मुझे।खैर जो है सो है। चलिए आज भोजपुरी की कुछ कहावत के जरिये राजनीती का मज़ा लेते है।मेरी माँ के पास लगभग हर सिचुएशन के लिए कहावत मौजूद है।उन्ही से इंस्पायर होकर मैं एक कोशिश कर रही हूँ।शुरुआत मोदी जी से ,

मोदी जी -हाथी चले बाजार ,कुत्ता भूके हजार।

सोनिया जी -माइ करे जिया -जिया ,पूत करे छीया -छीया।

राहुल जी -पूत कपूत हो जाई , लेकिन माता कुमाता ना होई।

अखिलेश यादव जी -केकड़वा के बियान केकड़वे के खाये।

आदित्यनाथ योगी जी -भगवान के घर देर बा,अंधेर नाही।

स्वाति सिंह जी -बिलाई के भागे (भाग्य ) सिकहर टूटल।

मायावती जी -नाच ना आवे आँगन टेढ़ा।

अरविन्द केजरीवाल जी -मुस मोटहिये लोढ़ा होहियें।

और उत्तरप्रदेश की जनता -जेकर राम ना बिगड़ीहिये ओकर कोई ना बिगाड़ी।

Saturday, 18 March 2017

"अनकही "जो बहुत कुछ कहती है !!!

अनुष्का शर्मा की आने वाली फिल्म फिल्लौरी का ट्रेलर देखा।मजेदार फिल्म होगी ऐसा लगता है। ट्रेलर में दिखाया गया है -एक लड़के की कुंडली में मंगल दोष है ,इसलिए उसकी शादी पहले एक पेड़ से होगी।ऐसे सब्जेक्ट पर फिल्मे अलग -अलग तरीके से बनती रही है।"वेलकम टू सज्जनपुर "में भी काफी हास्यपद तरीके से कुंडली और शादी का खेल दिखाया गया है। फिल्लौरी का ट्रेलर देख कर ,मुझे "अमोल पालेकर "की एक बेहतरीन मूवी याद आई।बड़ी ही बख़ूबी से इसमें ज्योतिष शास्त्र और कुंडली के बारे में दिखाया गया है। फिल्म का नाम है -"अनकही " दीप्ती नवल ,अमोल पालेकर ,विनोद मेहरा ,श्रीराम लागू  ने बेहतरीन भूमिका निभाई है।फिल्म के संगीत का क्या कहना ,"जयदेव जी "ने म्यूजिक दिया है।मैंने पहली बार किसी फिल्म के लिए "भीमसेन जोशी "जी को गाते सुना था।

"रघुबर तुमको मेरी लाज ,सदा -सदा मैं शरण तिहारी "
आह क्या गीत है। इस गीत के लिए इन्हें नेशनल फिल्म अवार्ड भी मिला।फिल्म के सभी गाने कमाल के है।मुझे तो आशा जी का गया -"मुझको भी राधा बना ले नन्दलाल "भी पसंद है।
फिल्म की कहानी कुछ यूँ है -अमोल पालेकर के पिता एक जानेमाने ज्योतिषी होते है। उनकी भविष्वाणी सच होती है। अमोल की एक प्रेमिका होती। अमोल उससे शादी की ईक्षा घरवालो के आगे ज़ाहिर करते है। शादी की बात सुनकर माँ -बाप बहुत खुश होते है और कुंडली मिलाते है। अमोल की कुंडली देख कर उनके पिता कहते है ,उनके जीवन में दो शादियाँ लिखी है। पहली पत्नी उनकी उनके बच्चे को जन्म देते समय मर जाएगी। पिता की भविष्यवाणी से अमोल और ऊसकी माँ दुखी हो जाता है। अमोल के पिता बड़े ज्योतिष है पर ,उनके पास भी इस कुंडली दोष का कोई उपाय नही।वो कहते है ,जो नियती है वो होकर रहेगी। ऐसे में अमोल अपनी प्रेमिका को खोना नही चाहते। इसी बीच गाँव से अमोल के पिता का एक दोस्त आता है।उसकी बेटी को दौरे पड़ते है।गाँव के ओझा से दिखा के वो थक गया है।इसलिए शहर अपने दोस्त के पास आया है।अमोल के घरवाले उस लड़की यानि दीप्ती नवल को डॉक्टर से दिखाते है। डॉक्टर कहता है ,बीमारी लाईलाज तो नही।पर कुछ कह नही सकते।समय के साथ ,प्यार और आत्मविश्वास से ठीक हो सकता है।अमोल सोचता है क्यों ना इस पागल लड़की से शादी कर लूँ। कुंडली के दोष के अनुसार इसके मरने के बाद प्रेमिका से शादी कर लूँगा। ये मर भी गई तो क्या बुरा होगा। पर इस बात के लिए ना तो अमोल का परिवार राज़ी होता है ना ही उसकी प्रेमिका। इधर दीप्ती के पिता कुंडली के श्राप से अनभिज्ञ ,ख़ुशी से पागल हो रहा है कि ,अमोल जैसा पढ़ा -लिखा लड़का उसकी लड़की से शादी करना चाहता है।अमोल के पिता अपने दोस्त की ख़ुशी को देखते हुए ,सशंकित मन से हाँ कर देते है। शादी के बाद अमोल और उसका परिवार एक आत्मग्लानि की पीड़ा से रोज गुजरता है। उन्हें लगता है एक निर्दोष की जान उनकी वजह से जाएगी।साथ ही  घर के लोगो का प्रेम पाकर दीप्ती ठीक हो जाती है।दीप्ती जब माँ बनने वाली होती है। घर के सभी लोग परेशान हो जाते है।गर्भ के आखिरी महीने तक ,दीप्ती को घरवालों और अमोल की परेशानी का कारण मालूम चलता है।वो अमोल की प्रेमिका से मिलने जाती है।वही उसका लेबर पेन शुरू हो जाता है।फिल्म का ये हिस्सा ओह क्या रचनात्मकता है। एक तरफ अमोल के माँ -बाप की बेचैनी ,दूसरी तरफ अमोल की प्रेमिका की ग्लानि ,तीसरा अमोल खुद नही चाहता दीप्ती मरे।दूसरी तरफ दीप्ती के पिता सब से अनभिज्ञ ख़ुशी में पागल गा रहे है  और इधर दीप्ती ,जो जानती.है वो मरने जा रही है। इन सारी तीव्र भावनाओं के बीच एक बार फिर से  "भीमसेन जोशी " जी की आवाज -
"हरी आओ हरी आओ" सच में लाज़वाब।
एक बेहतरीन फिल्म जिसमे दिखाया गया -कैसे एक पढ़ा लिखा इन्शान ज्योतिष की भविष्यवाणी के आगे झुक जाता है। ये जानते हए भी की जो होना है उसे टाला नही जा सकता।क्यों इन्शान भविष्य को लेकर चिंतित हो जाता है ? भविष्य बदलना तो उपर वाले के हाथ में है ,अगर आप आस्तिक है तो। अगर नास्तिक हुए तो क्या डरना। दोनों ही सूरतों में डर को छोड़ अपना कर्म करना ही बेहतर विकल्प है।बाद बाकी जिसे विश्वास करना है ,जरूर करे पर पागल ना बने। अगर समय हो तो ये फिल्म जरूर देखे।फिलहाल सुनिये ये गाना -

Monday, 13 March 2017

फगुआ ना सुनने की कसक !!!

रंग -गुलाल ,खाना- पीना ,ढ़ोल -मंजीरे ,गीत -संगीत, इसी का नाम तो होली है। ना कोई बड़ा ना छोटा ,नाही जात -धर्म की खाई। सब एक रंग में रँगे हुए।होली तो बहुत खेली है मैंने ,पर एक तम्मना अधूरी रह गई।अब शायद पूरी भी ना हो। मुझे फगुआ सुनने का बड़ा मन होता है।देखना चाहती थी और हूँ की ,कैसे लोग इक्कठे होकर ढोल -झाल पर फ़ाग गाते , चैता गाते।जब छोटी थी ,तो कई बार अलग -अलग वजहों से गाँव नही जा पाती।प्रमुख कारण स्कूल की एक दिन की छुट्टी होती।माँ जाने ही नही देती।वही मेरा भाई शुरू से दबंग रहा। रो -गा कर कैसे भी चला जाता। जब गाँव से आता तो ,वहां की होली के बारे में बताता। कैसे दिन भर गोबर कीचड़ की होली के बाद शाम को बूढ़े ,जवान ,बच्चे सब मिलकर ढ़ोलक ,झाल ,हारमोनियम लेकर लगभग हर किसी के दरवाजे पर जाते।दुआर पर तिरपाल या बोरा बिछा रहता।हर किसी के दरवाजे पर 1 /2  होली के गीत गाये जाते।हमारे घर से गीत -संगीत शुरू होता,तो जाहिर है गीत भी हमारे दुआर पर ज्यादा गया जाता। घर से चाची लोग पुआ- पूड़ी ,दही बड़ा ,नास्ते का सामान सब बाहर भेज कर छत पर चली जाती।छत के झरोखे से ,नीचे होने वाले नाच गाने का आनन्द लेती।झरोखा मतलब छत की चारो तरफ की बाउंड्री, जिसमे बीच -बीच में ईंट नही लगी होती।ये रहा वो झरोखा -
मतलब घर की महिलाएं नीचे गाने वालो को देख सकती थी ,पर नीचे गाने वाले उन्हें नही। वैसे उस वक्त कोई घर की छत की तरफ देखता भी नही था।खैर महिलायं भी आनंद लेती फगुआ का।बीच -बीच में ऊपर से ही गुलाल नीचे फेक देती और खुश हो लेती ,कि फलां भाई साहब पर डाल दिया। भाई से गाँव की होली की बात सुनकर मै तड़प उठती। माँ से कहती अगली बार मैं तो जरूर जाउंगी। माँ तभी तो हाँ कह देती ,लेकिन अगले बार फिर मेरे इरादों पर पानी पड़ जाता।भाई ने ही मुझे पहली बार फगुआ सुनाया था -

"खेले मसान में होरी दिगंबर खेले मसान में होरी "
उसके गाने के तरीके और धुन से मैं दुखी हो गई की इतना सब कुछ मिस हो गया।
जब  बारहवीं पास करके बसंतपुर गई तो ,मैंने माँ को कहा -अब बस इस बार तो मैं गाँव जाउंगी। अब मै बड़ी हो गई हूँ माँ ,तुम्हारी बातों में नही आउंगी। हा -हा -हा ये होली का असर है ,ऐसा कुछ नही कहा मैंने। मैंने माँ को कह-इस बार मैं गाँव  जाऊँगी माँ होली में।माँ बोली जाना है तो जाओ ,पर इसबार होली शायद ना खेली जाय।घोठा पर वाले बाबा(रिलेटीव )जी नही रहे।मुझे लगा माँ फिर नही भेजने के लिए बहाने ढूँढ़ रही है।मैंने कहा जो भी हो ,मैं जाउंगी।एक्चुअली माँ को होली में 2 दिन की छुट्टी होती।वो ख़ुद गाँव नही जा पाती।ऐसे में उन्हें लगता हमलोग गाँव अकेले ना जाए ,वो भी त्यौहार पर। खैर इस बार भाई के साथ मै गाँव गई।हुआ वही जो माँ कह रही थी।हम बच्चों ने होली तो खेल ली , पर कोई मंडली हमारे दरवाजे पर नही आई।मैं बहुत उदास थी। मेरा भाई मेरा मज़ाक उड़ा रहा था।मैं लगभग रोने -रोने हो गई थी। सोचा इससे अच्छा तो बसंतपुर रहती।मुझे दुखी देखकर चाची सब समझाने लगी -बबी ,अब ये सब वैसे भी काम हो गया है।गाने बजाने वाले बुज़ुर्ग अब रहे नही।नए लोग ना सीखे ना ही उन्हें गाने में इंटरेस्ट है। वो लोग मुझे समझती रही और मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। दादी मेरी वही बैठी थी।कब से वो ये ड्रामा देख रही थी।थोड़ा गुस्सा होते हुए बोली -ई त बड़ा जिद्दी हो गइल बिया।का बाहर पढ़ेले ? देह बढ़ल बा खाली।तो इस तरह मेरा आखिरी प्रयास भी नाकामयाब रहा।इसके बाद मैं कभी होली में गाँव नही गई।मेरे गाँव में महिलाओं के लिए होली ,मुझे बहुत बोरिंग लगी।कोई हुरदंग नही।खैर मुझे तो फगुआ ,चैता सुनना था।वो अरमान पूरा नही हो सका।अपनी इस ख़्वाहिश को अब मैं यू ट्यूब के जरिये पूरा करती हूँ।काश कभी मुझे लाइव सुनने का मौका मिल जाता।बरहाल पूरी कहानी का पीछे की कहानी ये है -आज यहां होली है। शतेश ऑफीस चले गए। सत्यार्थ दूध पीने और सोने में लगा रहा और मैं दिन भर बेग़म अख़्तर ,आबिदा प्रवीण ,शोभा गुरटू ,गिरिजा देवी और छुन्नू लाल को सुनती रही।होली का त्यौहार भी संध्या के साथ समाप्ति की ओर है। ऐसे में "आबिदा जी "की गाई होरी रंग के साथ प्रेम और अध्यात्म की ओर ले जा रहा है।आप भी सुने

Friday, 10 March 2017

खेलअ जम के तू होली घूँघट वाली !!!

महिला दिवस का धूमधाम खत्म हुआ।फिर से वही महिलाओं वाले जोक मार्केट में छा गए है।महिलायें भी ऐसे मसेज पढ़ कर कभी  :) तो कभी  : p ईमोजी भेज कर मजे लेती रहती है।क्या करे आदत जो पड़ गई है ऐसे मज़ाक की।पुरुष प्रधान समाज में एक दिन महिला दिवस मनाया गया यही काफी है।इससे ज्यादा की उम्मीद आपको फेमिनिस्ट बना सकता है।छोड़िए ये सब तो चलते रहेगा ,होली का त्यौहार है इसका आनंद लीजिये।उत्तर प्रदेश में तो चुनाव के नतीजे से लगता है ,होली अब तो भगवा होगी।वही बिहार में तो महिला प्रधान गानों की बारिश हो रही होगी।आहाहा ,देवर भाभी ,जीजा -साली के गानों की धूम मची होगी।कई बार आस -पास ऐसे गाने सुनकर मैंने औरतों को मुस्कुराते देखा है।क्या सच में उन्हें अच्छा लगता है ,या फिर अपनी झेंप मिटाने के लिए हँसी का सहारा लेती है ? माना हँसी मज़ाक का त्यौहार है ,पर इस हद तक।ये तो हद ही हो जाती है।खैर महिलाओं का तो शोषण का इतिहास रहा है।इसमें नया कुछ नही है। नया है इनका लीपा पोती कर महिला ससक्तिकरण का ।अब ऐसा भी नही कि, बदलाव नही हुआ।हुआ है ,पर उम्मीद से अब भी बहुत कम।अब देखिये न त्यौहार का मतलब आज भी महिलाओं के लिए पकवान बनाना भर ही है। पुरे दिन चूल्हा -चौका करते रहो।समय निकाल कर थोड़ा सज -सँवर लो।बाद बाकी देवर ,जीजा आते होंगे ,कभी आपकी मर्जी तो कभी बिना मर्जी के रंगने के लिए ।आप बस हँसी का नकाब ओढ़े रहो।

लड़कियों के दुःख अजब होते है ,सुख उससे अज़ीब ,हॅंस रही है और काजल भीगता है साथ

बसंतपुर जहां बचपन बीता वहां, मैंने जीवन के कई रंग देखे है।आस -पड़ोस में रंग खेलने जाती तो देखती कोई देवर- भाभी से जबरदस्ती की ठिठोली कर रहा होता।हम कुछ सखियाँ इंतज़ार करते की कब वो महानुभाव जाये और हमारा नंबर आये ,भाभी को रंगने का।लड़कियों का फिर भी हाल ठीक है ,पर भाभीयों पे तो जुल्म हो जाता है।हमें देख कर भाभी ख़ुशी से खिल जाती।उस मनचले देवर से कहती- जाई राउर बहिन लोग आएल बा ,उनका से खेली होली।देवर बेचारे दांत दिखा के चल देते।शुक्र है ,ऐसे महानुभाव ना तो मेरे देवर है न भाई।वरना कांड हो गया होता। खैर उनके जाते ही वो भाभी कहती -बड़ा बदमाश लईका बानी ,पूरा कपड़ा ख़राब कर देनी। इस पर उनकी सास कहती -जाए द परब के दिन ह। देवर -भाभी के त रिवाज ह हँसी मज़ाक के। कास भाभी कह पाती-
मेरी सेज हाज़िर है
पर जूते और कमीज़ की तरह
तू अपना बदन भी उतार दे
उधर मूढ़े पर रख दे
कोई खास बात नहीं
बस अपने अपने देश का रिवाज़ है।

सासु माँ आपने तो लाड़ से कह दिया -ये घर गन्दा मत करा। होने जा भाभी रसोई में बाड़ी।क्या आपने मुझसे पूछा की, मैं कैसे रंगना गना चाहती हूँ ,किससे रंगना चाहती हूँ ? काश कोई मुझे समझ पाता ,

मेरे दिल पे हाथ रखो ,मेरी बेबसी को समझो
मैं इधर से बन रही हूँ ,मैं इधर से ढ़ह रही हूँ।
इस नारी ससक्तिकरण के दौर में कब वो दिन आएगा ,जब भाभी अपने दिल की बात कह पायेगी,या फिर मनचले देवर को पटक के रंग मल देगी। लगता है बिन पीए भांग का नशा चढ़ गया मुझे ,तभी तो बकवास कर रही हूँ।होली है, कुछ प्रेम- मोहब्बत की बातें हो तो कुछ बात हो।ये क्या बौराए जैसा बात कर रही थी अबतक।पर मैं क्या करूँ, ये मौसम ही बाँवरा कर देने वाला होता है।कभी आलस में डूबे होते है ,तो कभी प्यार में।ऐसे में जो प्रेमी अपनी प्रेमिका को रँग नही पाए होंगे।सोम रस के आभाव में भाँग का भोग लगा कर ही चैता गायेंगे।

 हीया जरत रहत दिन रैन हो रामा ,जरत रहत दिन रैन। 

चलते -चलते आप सभी को होली की रंगीन शुभकामनायें।रंग -गुलाल ना सही आपलोगों के लिए एक रंगों से सजा गीत पहुंचे। 

Tuesday, 7 March 2017

आशीर्वाद से नवाज़े !!!


 8 मार्च, ह्म्म्म ! क्या लिखूं आज के दिन ? चलिए शुरुआत सभी महिलाओं को शुभकामनायें देने से करती हूँ।सभी सखियों को महिला दिवस की ढ़ेरो शुभकामनायें।आप जैसी भी है , उम्र के जीस भी पड़ाव पर है ,या किसी भी परिस्थति में है आप बेहद शानदार है।वैसे तो भगवान ने हर एक चीज़ खूबसूरत बनाई है ,पर मुझे ऐसा लगता है कि ,महिलाओं के प्रति उनका सॉफ्ट कॉर्नर ज़्यादा रहा होगा। तभी तो इनको धैर्य ,ममता ,साहस ,बुद्धि ,सुंदरता और वाक पटुता सब कुछ से नवाज़ दिया।भगवान के बाद कोटि -कोटि प्रणाम माँ ,मुझे जन्म देने के लिए। जन्म लेना और जन्म देना दोनों अपने आप में एक जटल प्रक्रिया है ,फिर भी इसकी खूबसूरती सबसे बेमिशाल है।दोस्तों जन्म लेने का तो याद नही सिवा 8 मार्च के पर ,जन्म देने का अहसास क्या होता है ,अब मैं समझ चुकी हूँ।देखिये ना अभी मैं आपलोगों से अपने मन की बात शेयर कर रही हूँ ,और मेरा नन्हा सत्यार्थ मेरी गोद में चैन से सो रहा है।इससे सुखद अहसास क्या हो सकता है।बहुत-बहुत धन्यवाद भगवान आपका मुझे महिला बनाने के लिए।"सत्यार्थ " मेरे बेटे तुम्हे बहुत -बहुत आशिर्वाद और प्यार मुझे मातृत्व का सुख देने के लिए।विश्व में जितनी भी महियालें है ,मातायें है उनसबको मेरा कोटि -कोटि प्रणाम और शुभेक्षा ।कभी और अपने सत्यार्थ की कहानी लिखूंगी।आज बस मुझे और मेरे बच्चे सत्यार्थ को प्यार और आशीर्वाद से नवाज़े।