नवरात्री की ढेरो शुभकामनाएं आप सभी को। माँ शक्ति ,शक्ति समंजस बना के रखे।पूजा -पाठ तो शुरू हो ही गई होगी। अच्छा दोस्तों नवरात्री में सुन्दरकाण्ड पढ़ने का बड़ा चलन है।मुझे मालूम नही क्यों ? मैंने भी पढ़ा है। इस बार "मीर मस्ताना " मेरे बेटे की वज़ह से नही पढ़ पाई। हाँ -हाँ वहीँ सुन्दरकाण्ड जिसमे तुलसीदास जी ने लिखा है -
ढोल गवांर सूद्र पसु नारी ।
सकल ताड़ना के अधिकारी।।
जिसको पढ़ते ही हँसते हुए आप कहते है ,देखा- देखा।
वैसे तो सीधे शब्दों में इसका अर्थ तो ये ही बनता है -ढ़ोलक ,मुर्ख ,नीच ,जानवर, स्त्री ये सब प्रताड़ित होने के हक़दार है।वहीं कुछ लोग कहते है-,तुलसीदास जी ने नारी को नीचा दिखाने के लिए ये लाइन नही लिखी।वो तो समुद्र के घमण्ड को दर्शाने के लिए ,राम के क्रोध को उकेर रहे थे।तुलसीदास जी भी ना ,उन्हें सोचना चाहिए था। राम तो राजा थे।राजाओं को तो महिलाएं सिर्फ रानी ,महारानी या नौकरानी रूप में भाती थी। आप तो ज्ञानी थे। आप ही कोई बुध्दि लगा के शुद्धि कर देते।खैर अब तो लिख दिया था। ग्लानि में तप रहे थे। एक दिन उदास होकर गंगा किनारे बैठे थे। सोच रहे थे ,जिस नारी कारण मैं ज्ञानी बना। रामचरित मानस लिख डाली। रामचरित मानस भी वो ,जिसकी नींव ही सीता और सोने का मृग था। ऐसे में घोर पाप हो गया मुझसे। आह ! इस अपराध का क्या निवारण हो? इसी चिंतन -मनन में थे कि ,ठीक इसी समय नारद जी पधारते है।नारायण -नारायण करते ,वीणा बजाते। तुलसीदास जी को दुःखी देख पूछते है -हे ज्ञानी तुलसीदास आप किस दुबिधा में हैं ? आप जैसे तेजस्वी पुरुष और दुःखी ? बात कुछ समझ नही आई। तुलसीदास जी बोले -पहले तो नारायण -नारायण बंद करे।सब आपके नारायण का कांड है।जाइये कलयुग में आपकी तरह लोग मुझ जैसे सिद्ध योगी का नाम लेंगे। नारायण -नारायण की जगह योगी -योगी कहेंगे। और मैं काहे का ज्ञानी ? ज्ञान होता तो स्त्रियों ,पशुओं के बारे में ऐसा लिखता ? काहे का तेजस्वी ?अब तो ज्ञानी बनने से अच्छा ,कलयुग में मैं बिहार प्रान्त में जन्म लूंगा। एक ग्वाले राजा का बेटा बनकर पशुओं की सेवा करूँगा। आगे चल कर राम की तरह राज करूँगा। बहुत हुई लिखाई -पढ़ाई। अब कभी ज्ञानी नही बनूँगा। नारद जी बोले-अरे , ये क्या कह दिया कविवर ? इस मुहर्त में तो कही बात सत्य होकर ही रहेगी। अब तुलसीदास जी और दुःखी। स्थिति की गंभीरता देख कर नारद जी बोले -कविवर ,इसमें इतना दुःखी होने की क्या बात है ? जन्म तो अब आप लेंगे ही ,फिर भी अपनी ग्लानि मिटाना चाहते है तो एक ऊपाय है। तुलसीदास जी बोले -बताइये नारद मुनि। नारद जी ने कहा -आपने रामचरित मानस में जो सबसे पहले बालकांड लिखा है।उसी में एक पन्ना जोड़ दे। उसमे पन्ने में नारी का गुण -गान कर दीजिये। बस हो गया महाराज सारा मसला ख़त्म। नारद जी की बात सुनकर ,तुलसीदास बोले- क्या बात कही नारद मुनि आपने। माना आप चुगली करते है ,पर इसमें भी काम की बात कर जाते है। आप ना हो तो क्या हो देवताओं का। नारद जी की सलाह पर ,तुलसीदास जी ने बालकांड में इस श्लोक के साथ अपनी ग्लानि मिटाई और जबरदस्त नारी फैन फॉलोविंग बढ़ाई।
उद्भवस्थितिसंहारकारिणी क्लेशहरिणीम्।
सर्वश्रेयस्कारीं सीता नतोऽहं रामवल्लभाम्।।
उत्पत्ति, स्थिति (पालन) और संहार करनेवाली, क्लेशों को हरने वाली तथा समस्त कल्याणों को करने वाली स्वयम् भगवन को प्रिय नारी शक्ति को मैं नमन करता हूँ।
ढोल गवांर सूद्र पसु नारी ।
सकल ताड़ना के अधिकारी।।
जिसको पढ़ते ही हँसते हुए आप कहते है ,देखा- देखा।
वैसे तो सीधे शब्दों में इसका अर्थ तो ये ही बनता है -ढ़ोलक ,मुर्ख ,नीच ,जानवर, स्त्री ये सब प्रताड़ित होने के हक़दार है।वहीं कुछ लोग कहते है-,तुलसीदास जी ने नारी को नीचा दिखाने के लिए ये लाइन नही लिखी।वो तो समुद्र के घमण्ड को दर्शाने के लिए ,राम के क्रोध को उकेर रहे थे।तुलसीदास जी भी ना ,उन्हें सोचना चाहिए था। राम तो राजा थे।राजाओं को तो महिलाएं सिर्फ रानी ,महारानी या नौकरानी रूप में भाती थी। आप तो ज्ञानी थे। आप ही कोई बुध्दि लगा के शुद्धि कर देते।खैर अब तो लिख दिया था। ग्लानि में तप रहे थे। एक दिन उदास होकर गंगा किनारे बैठे थे। सोच रहे थे ,जिस नारी कारण मैं ज्ञानी बना। रामचरित मानस लिख डाली। रामचरित मानस भी वो ,जिसकी नींव ही सीता और सोने का मृग था। ऐसे में घोर पाप हो गया मुझसे। आह ! इस अपराध का क्या निवारण हो? इसी चिंतन -मनन में थे कि ,ठीक इसी समय नारद जी पधारते है।नारायण -नारायण करते ,वीणा बजाते। तुलसीदास जी को दुःखी देख पूछते है -हे ज्ञानी तुलसीदास आप किस दुबिधा में हैं ? आप जैसे तेजस्वी पुरुष और दुःखी ? बात कुछ समझ नही आई। तुलसीदास जी बोले -पहले तो नारायण -नारायण बंद करे।सब आपके नारायण का कांड है।जाइये कलयुग में आपकी तरह लोग मुझ जैसे सिद्ध योगी का नाम लेंगे। नारायण -नारायण की जगह योगी -योगी कहेंगे। और मैं काहे का ज्ञानी ? ज्ञान होता तो स्त्रियों ,पशुओं के बारे में ऐसा लिखता ? काहे का तेजस्वी ?अब तो ज्ञानी बनने से अच्छा ,कलयुग में मैं बिहार प्रान्त में जन्म लूंगा। एक ग्वाले राजा का बेटा बनकर पशुओं की सेवा करूँगा। आगे चल कर राम की तरह राज करूँगा। बहुत हुई लिखाई -पढ़ाई। अब कभी ज्ञानी नही बनूँगा। नारद जी बोले-अरे , ये क्या कह दिया कविवर ? इस मुहर्त में तो कही बात सत्य होकर ही रहेगी। अब तुलसीदास जी और दुःखी। स्थिति की गंभीरता देख कर नारद जी बोले -कविवर ,इसमें इतना दुःखी होने की क्या बात है ? जन्म तो अब आप लेंगे ही ,फिर भी अपनी ग्लानि मिटाना चाहते है तो एक ऊपाय है। तुलसीदास जी बोले -बताइये नारद मुनि। नारद जी ने कहा -आपने रामचरित मानस में जो सबसे पहले बालकांड लिखा है।उसी में एक पन्ना जोड़ दे। उसमे पन्ने में नारी का गुण -गान कर दीजिये। बस हो गया महाराज सारा मसला ख़त्म। नारद जी की बात सुनकर ,तुलसीदास बोले- क्या बात कही नारद मुनि आपने। माना आप चुगली करते है ,पर इसमें भी काम की बात कर जाते है। आप ना हो तो क्या हो देवताओं का। नारद जी की सलाह पर ,तुलसीदास जी ने बालकांड में इस श्लोक के साथ अपनी ग्लानि मिटाई और जबरदस्त नारी फैन फॉलोविंग बढ़ाई।
उद्भवस्थितिसंहारकारिणी क्लेशहरिणीम्।
सर्वश्रेयस्कारीं सीता नतोऽहं रामवल्लभाम्।।
उत्पत्ति, स्थिति (पालन) और संहार करनेवाली, क्लेशों को हरने वाली तथा समस्त कल्याणों को करने वाली स्वयम् भगवन को प्रिय नारी शक्ति को मैं नमन करता हूँ।