दोस्तों आज मैं आप सबके साथ अपने जीवन का एक बेहद खूबसूरत अहसास शेयर करने जा रही हूँ। एक ऐसी ख़ूबसूरत
जर्नी जो मैं कभी भूल नही सकती।मेरे "सत्यार्थ "का मेरे जीवन में आने तक की कहानी। सच बताऊँ तो मैं माँ बनने से बहुत डरती थी।बस हनुमान जी का नाम लेकर कूद पड़ी इस यात्रा पर।इस जर्नी में सबसे ज्यादा शतेश के बाद मुझे मेरे भाई ने हिम्मत दिया। मेरी मौसी @रश्मि मिश्रा ,बहन @ शिल्पी मिश्रा और उसके प्यारे जीवनसाथी @अंशुमान मिश्रा ने मुझे हिम्मत के साथ बहुत अच्छे -अच्छे सुझाव दिए।साथ ही भगवान की कृपा से परदेश में भी ,इतने प्यारे -प्यारे ,अच्छे दोस्त मिले।जिन्होंने घर जैसा ही प्यार दिया मुझे।सबके प्यार और आशीर्वाद के लिए सदा आभारी रहूंगी।छोटे से सत्यार्थ के ऊपर तो प्यार की बौछार हो रही है। इसके मामा इसके "मस्ताना "पुकारते है।मैं कभी मीर तो कभी ईशित .शतेश के दोस्त सत्या।वही मेरे एक दोस्त ने - अध्येय ,तो दूसरा -गोविन्द नाम रखे है।बाबा ,दादी और नानी का तो पूछे मत -राजा ,सोना ,चालू ,बाबू जाने क्या -क्या।फिलहाल सत्यार्थ और मेरी इस जर्नी को मैं एक "सोहर "से सजा कर आप तक पहुँचा रही हूँ।कहानियों में फिर कभी सजाऊँगी।सोहर एक लोकगीत है। इसे अमूमन बच्चे के जन्म पर गया जाता है।इसकी ख़ूबसूरती ये है कि ,ये बेटी या बेटे में फर्क नही करता।घर की महिलायें जब एक साथ मिलकर गाती है ,तो उसका आनंद कुछ और ही होता है।मेरे पास ऐसा कोई संग्रह नहीं होने की वजह से ,आज छन्नू लाल जी का सोहर लगा रही हूँ।वैसे तो चन्दन तिवारी का भी सोहर मुझे पसंद है ,पर उनके सोहर में प्रसव की पीड़ा का जो जिक्र है ,वैसा मेरे साथ कुछ हुआ ही नही।भगवान की कृपा से मेरे जर्नी बहुत ही सहज रही ,एक आध तकलीफों को छोड़ कर।आप साबका भी बहुत -बहुत धन्यवाद।आपके प्रोत्साहन से मैं लिखती रही ,आपका साथ बना रहा।इससे भी मेरी जागती रातें आसान हुई।सबको बहुत -बहुत धन्यवाद।
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