Monday 27 March 2017

गोरखनाथ हठ योगी !!!

आजकल गोरखपुर और गोरखनाथ बहुत चर्चा में है।कारण तो आपलोगो को मालूम ही होगा।संयोग से मैंने गोरखपुर रेलवे स्टेशन को छुआ है ,एक बार दिल्ली से बेतिया जाते समय।गोरखनाथ जी के बारे में पहले भी मुझे सीमीत जानकारी थी ,आज भी है।गोरखनाथ जी को समझना अंतर्नाद को समझना है।बात गोरखपुर की तो ,बिहार से लोग या तो ईलाज़ के लिए गोरखपुर जाते हैं या फिर गोरखनाथ के दर्शन को।कुछ लोग पढाई के लिए पहुँचने लगे हैं।इनमे सबसे प्रमुख कारण मैंने ईलाज़ ही सुना है।जो भी दावा दारू के लिए जाते है ,लगे हाथ गोरखनाथ  के दर्शन भी कर आते हैं।वैसे भी  दुःख के समय लोग ज्यादा धार्मिक हो जाते है ,कंडीशन अप्लाई।कुछ लोग धार्मिक होते ही हैं और फल स्वरुप राज्याभिषेक पाते है।मेरी माँ के ऑफिस के एक स्टाफ जिनको हमलोग अमीन चाचा कहते। वो भी अपने ईलाज़ के लिए गोरखपुर गए थे। वो भी गोरखनाथ का दर्शन  करके आये। वहां से प्रसाद और मालायें लाये थे। मेरे घर भी प्रसाद और माला आया।माला के लॉकेट में शिव जी की तस्वीर थी।तभी से मैंने बिना किसी से पूछे ये जान लिया कि ,गोरखननाथ भगवान शंकर  जी ही है। बस शिव जी ने नाम बदल लिया है।अमीन चाचा ये भी बताते थे ,वहाँ एक कुआँ है।जिसमे लोग चावल की पोटली डालते देते है।थोड़ी देर बाद चावल उबल कर भात बन जाता है।लोग इसे चमत्कार मानते और प्रसाद रूप में ग्रहण करते है।बचपन में मुझे सुनकर आश्चर्य होता।सोचती एक बार गोरखपुर जाने का मौका मिल जाता तो देखती कैसे कूएँ में चावल पकता है।मौका तो नही मिला अलबत्ता एक दिन विज्ञानं के किताब में पढ़ा - ज्वालामुखी और गर्म पानी के कुंड के बारे में।तब जाके मालूम हुआ ये कोई चमत्कार नही विज्ञानं है। इसी तरह काफी बाद में जब कुमार गन्धर्व जी के द्वारा गया -"गुरु जी मैं तो एक निरंजन ध्याऊँ " सुन रही थी।मैं कही खो गई।मुझे बहुत अच्छा लगा।बस क्या था ,लिरिक्स ढूंढने लगी।और फिर मुझे मिला -गोरखनाथ भजन " गुरु जी मैं तो एक निरंजन ध्याऊँ "मैं चौंक गई।सोचा भगवान शंकर ने नाम बदला वो तो ठीक ,पर भजन कब लिख दिया ?इसी सब घनचक्कर से निकलने के लिए गूगलिंग शुरू हो गई।फिर जाके मालूम हुआ -गोरखनाथ तो नाथ पंथ के योगी थे।नाथ पंथ के योगी शिव जी के भक्त होते है।उनका कोई फिक्स ठिकाना नही होता।घुमक्कड़ होते है।अलख इनका मंत्र होता है।जीवन के अंतिम समय में ये लोग किसी एक स्थान पर धूनी रमाते है। शिव के भक्त होने के कारण गोरखनाथ जी के प्रसाद में शिव जी माला थी। वैसे गोरखनाथ जी हठ योगी थे ,तो उनके अनुयायी योगी जी भी कम हठी नही।वहीँ अवघड़ दानी ने भी सिद्ध कर दिया की वे ही योगी को राजयोगी मेरा मतलब राजयोग दे सकते है।जय बाबा भोले नाथ।

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