इस लॉन्ग वीकेंड हमारी सवारी निकली "अकार्डिया नेशनल पार्क " की सैर करने। लास्ट ईयर इसी मेमोरियल डे के लॉन्ग वीकेंड पर हमलोग "येलो स्टोन नेशनल पार्क " गए थे। उस समय मेरे सत्यार्थ का सृजन हो रहा था। मेरा सत्यार्थ मेरी आँखों से सब देख रहा था। इस बार सत्यार्थ हमलोग के साथ ,अपनी प्यारी -प्यारी आँखों से सब देख रहा था। तेज हवा के झोंके जब उसके नन्हे चेहरे से टकराते तो ,थोड़ा घबड़ाता ,थोड़ा चौंक जाता।फिर आँखे खोलने -बंद करने लगता।
अकार्डिया नेशनल पार्क ,"मेन स्टेट " में आता है। ये स्टैंफोर्ड से कुछ छह घंटे की दुरी पर है। पहले हमलोग 6 /7 घंटे की दुरी एक ही ब्रेक में पूरी कर लेते थे। अभी सत्यार्थ है तो ,छोटे -छोटे ब्रेक लेने का सोचा। इसलिए हमलोग फ्राइडे चार बजे ही घर से निकल गए। इस बार की सवारी में फिर से ड्राइवर रिपीटेड (शतेश ),मनमौजी सवारी (तपस्या ) रीपिटेड। बस एक नये सदस्य सत्यार्थ जुड़े थे। पहली बार किसी ट्रिप पर हमलोग सामान भर -भर कर ले जा रहे थे। बेचारी सी आर वी कह रही थी ,मुझ पर रहम करो। गाड़ी है ट्रक नहीं। ट्रंक फुल हो जाने के बाद भी ,रॉकर को आगे की सीट पर रख के ले जाया गया। इस बार हमलोग खाना पकाने का सामान भी साथ ले जा रहे थे। पहले कहीं भी रुक कर खा लेते थे। अभी सबकुछ मीर मस्ताना अका सत्यार्थ तय करता है। वैसे तो सत्यार्थ ज्यादा परेशान नहीं करता ,पर उसका भी मूड अपनी माँ की तरह स्विंग होता रहता है। दूसरा हम उसे ज्यादा परेशान नहीं करना चाह रहे थे।
चार घंटे की दुरी पर ही हमने हॉटेल लिया था। छह बज गया था। सत्यार्थ को भूख लग गई थी। हमने एक ब्रेक लिया। डंकिन डोनट्स में रुके। उसको फीड कराने के साथ-साथ हमने भी कॉफी , हास्ब्रॉउन लिया। दूसरी कुर्सी पर एक अधेड़ उम्र की महिला अकेली बैठीं थी। हमने नोटिस किया की वो हर आने वाले को पकड़ कर बातें करने लगती थी। हमे भी पकड़ लिया। इंडिया में कहाँ से हो -दिल्ली से ? मैंने कहा नहीं ,बिहार से। उन्होंने बिहार नहीं सुना था ,पर कलकत्ता मालूम था। मालूम होने की वजह मदर टेरेसा थी।लग रहा था ,काफी दिनों बाद लोग मिल रहे थे उनको ,बात करने के लिए । वो बीच -बीच में मीर की तारीफ किये जा रही थी। जैसे ही मीर की फीडिंग पूरी हुई ,हमलोग निकल पड़े। हमलोग उनसे विदा ले कर सामान समेट ही रहे थे कि ,उन्होंने एक और फॅमिली को पकड़ लिया। मुझे लगता है ,उनकी यही छुट्टीयाँ बिताने का अंदाज होगा।
हमलोग अपने पड़ाव पर रात के नव साढ़े नव बजे पहुँचे। स्टेंडर्ड स्टे अमेरिका हॉटेल लिया था। किचेन था तो मस्त अदरख वाली चाय बनाई। घर से आलू के पराठे और आलू मटर की सब्जी ले गई थे। वही खाया और चाय पी । टीवी देखते हुए मीर को फीडिंग कराई और सो गए।
अकार्डिया नेशनल पार्क ,"मेन स्टेट " में आता है। ये स्टैंफोर्ड से कुछ छह घंटे की दुरी पर है। पहले हमलोग 6 /7 घंटे की दुरी एक ही ब्रेक में पूरी कर लेते थे। अभी सत्यार्थ है तो ,छोटे -छोटे ब्रेक लेने का सोचा। इसलिए हमलोग फ्राइडे चार बजे ही घर से निकल गए। इस बार की सवारी में फिर से ड्राइवर रिपीटेड (शतेश ),मनमौजी सवारी (तपस्या ) रीपिटेड। बस एक नये सदस्य सत्यार्थ जुड़े थे। पहली बार किसी ट्रिप पर हमलोग सामान भर -भर कर ले जा रहे थे। बेचारी सी आर वी कह रही थी ,मुझ पर रहम करो। गाड़ी है ट्रक नहीं। ट्रंक फुल हो जाने के बाद भी ,रॉकर को आगे की सीट पर रख के ले जाया गया। इस बार हमलोग खाना पकाने का सामान भी साथ ले जा रहे थे। पहले कहीं भी रुक कर खा लेते थे। अभी सबकुछ मीर मस्ताना अका सत्यार्थ तय करता है। वैसे तो सत्यार्थ ज्यादा परेशान नहीं करता ,पर उसका भी मूड अपनी माँ की तरह स्विंग होता रहता है। दूसरा हम उसे ज्यादा परेशान नहीं करना चाह रहे थे।
चार घंटे की दुरी पर ही हमने हॉटेल लिया था। छह बज गया था। सत्यार्थ को भूख लग गई थी। हमने एक ब्रेक लिया। डंकिन डोनट्स में रुके। उसको फीड कराने के साथ-साथ हमने भी कॉफी , हास्ब्रॉउन लिया। दूसरी कुर्सी पर एक अधेड़ उम्र की महिला अकेली बैठीं थी। हमने नोटिस किया की वो हर आने वाले को पकड़ कर बातें करने लगती थी। हमे भी पकड़ लिया। इंडिया में कहाँ से हो -दिल्ली से ? मैंने कहा नहीं ,बिहार से। उन्होंने बिहार नहीं सुना था ,पर कलकत्ता मालूम था। मालूम होने की वजह मदर टेरेसा थी।लग रहा था ,काफी दिनों बाद लोग मिल रहे थे उनको ,बात करने के लिए । वो बीच -बीच में मीर की तारीफ किये जा रही थी। जैसे ही मीर की फीडिंग पूरी हुई ,हमलोग निकल पड़े। हमलोग उनसे विदा ले कर सामान समेट ही रहे थे कि ,उन्होंने एक और फॅमिली को पकड़ लिया। मुझे लगता है ,उनकी यही छुट्टीयाँ बिताने का अंदाज होगा।
हमलोग अपने पड़ाव पर रात के नव साढ़े नव बजे पहुँचे। स्टेंडर्ड स्टे अमेरिका हॉटेल लिया था। किचेन था तो मस्त अदरख वाली चाय बनाई। घर से आलू के पराठे और आलू मटर की सब्जी ले गई थे। वही खाया और चाय पी । टीवी देखते हुए मीर को फीडिंग कराई और सो गए।
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