बंद शीशे के घर में रहने के इतने सालों बाद भी , आदत नही हुई बारिश में बेफ़िक्र रहने की। जब भी बारिश होती है ऐसा लगता है कि कुछ भींग तो नही रहा? कपड़े उड़ ना गए हो आँधी में,या फिर अब तो बिजली जाएगी ही जैसी बातें। ऐसा कुछ होता तो नही पर मन एक बार घर या दिल्ली घुम ज़रूर आता।
बिजली देवी की असीम कृपा से आज एक चिंता पुरी हुई,”बिजली जाने” की। और पुरी भी ऐसी की चाय तक नदारद। मन भनभना उठा, भाक साला इससे अच्छा तो दिल्ली ही था कम से कम चाय तो मिल जाता था। झमाझम बारिश के बीच मैंने दूध में में जैसे पत्ती डाली थी बिजली भूकभूकाई। उसकी भूकभूकी को नज़रअन्दाज़ कर मैंने अदरख और चीनी दूध में डाल, बारिश का वीडीयो बनाने बालकनी में पहुँची। इधर मैं बाहर उधर बिजली भी घर से बाहर। चाय बेचारा उफ़नते-उफ़नते रह गया।
शतेश बाबू का भी आगमन हो चुका था। अब बिना चाय के, बिना संगीत के और बिना वाक् के क्या हो तो हम गीतों की कड़ी अंताक्षरी खेलने लगे। सालों बाद हम दोंनो अंताक्षरी खेल रहे थे। आलम ये कि मैंने सारे चालू गाने गा डाले और शतेश एक से एक गीत चुन रहें थे। मुझे अच्छे गीत याद हीं नही आ रहें थे। पर गेम तो गेम है जैसे खेलो....
शतेश पर मैं दबाव बनाए हुए थी। प्रेसर में लड़के को अच्छा करने की आदत है। हर बार बच जातें फिर “ह” “ल” और “स” ने इतना पानी-पानी किया कि एक-दो बार तो लगा मैं भी फँस गई पर धन्यवाद हो पवन गवैया का और हमारी बड़ज़ोरी की ल से “लगावेलू तू लिपिसटिक “ शतेश को मानना पड़ा।
लगभग 45मिनट से एक घंटे के खेल में शतेश राम “स” से फँस कर हार बैठे। उनके हारने के बाद मैंने जीत का गाना गया,” शादी करके फँस गया अच्छा ख़ासा था कुँवारा”
खेल ख़त्म पर बिजली रानी अब भी नदारद थीं। बारिश बंद हो चुकी थी तो हम वाक् को निकल पड़े। यहाँ अंधेरा अब लगभग साढ़े आठ- नव बजे के आस-पास होता है। वापस आने के बाद भी कहीं कोई चमक नही। अलबत्ता आज मालूम हुआ कि हमारे अग़ल -बग़ल कौन -कौन रहता है। जैसे बारिश में बिल में पानी भर जाने से सारे जानवर इधर-उधर पसरे होते ठीक वहीं आलम था आज हम जीवों का।
तीन घंटा से ऊपर हो गया बिजली माई का कोई पता नही। अब ये नही तो गैस बंद, गैस बंद तो खाना बंद। ऐसे में हम पहुँचे पिज़्ज़ा के ढाबा। बिजली के ना होने से ट्राफ़िक लाईट भी करिया बक्सा जैसा झुल रहीं थी। अच्छा हुआ बड़ा ज्ञान देतीं रहती है, हरिहर -लाल होती हैं बात-बात पर। आज सब अपनी मर्ज़ी से सामने वाले का मिज़ाज भाँप कर गाड़ी बढ़ा रहें थे। नियम वहीं जो पहले आया पहले जाएगा।
पिज़्ज़ा रेडी था, लिया और घर आ कर कैंडिल लाईट डिनर हुआ।
हाय रे कैंडिल लाईट डिनर ! लाईका के हंगामा और ठंडाते पिज़्ज़ा को जैसे -तैसे ग्रहण किया।
वैसे बिजली जाने का भी अपना ही सुख है। कभी -कभी इसे जाना चाहिए......
चलिए कुछ तस्वीरें
बिजली देवी की असीम कृपा से आज एक चिंता पुरी हुई,”बिजली जाने” की। और पुरी भी ऐसी की चाय तक नदारद। मन भनभना उठा, भाक साला इससे अच्छा तो दिल्ली ही था कम से कम चाय तो मिल जाता था। झमाझम बारिश के बीच मैंने दूध में में जैसे पत्ती डाली थी बिजली भूकभूकाई। उसकी भूकभूकी को नज़रअन्दाज़ कर मैंने अदरख और चीनी दूध में डाल, बारिश का वीडीयो बनाने बालकनी में पहुँची। इधर मैं बाहर उधर बिजली भी घर से बाहर। चाय बेचारा उफ़नते-उफ़नते रह गया।
शतेश बाबू का भी आगमन हो चुका था। अब बिना चाय के, बिना संगीत के और बिना वाक् के क्या हो तो हम गीतों की कड़ी अंताक्षरी खेलने लगे। सालों बाद हम दोंनो अंताक्षरी खेल रहे थे। आलम ये कि मैंने सारे चालू गाने गा डाले और शतेश एक से एक गीत चुन रहें थे। मुझे अच्छे गीत याद हीं नही आ रहें थे। पर गेम तो गेम है जैसे खेलो....
शतेश पर मैं दबाव बनाए हुए थी। प्रेसर में लड़के को अच्छा करने की आदत है। हर बार बच जातें फिर “ह” “ल” और “स” ने इतना पानी-पानी किया कि एक-दो बार तो लगा मैं भी फँस गई पर धन्यवाद हो पवन गवैया का और हमारी बड़ज़ोरी की ल से “लगावेलू तू लिपिसटिक “ शतेश को मानना पड़ा।
लगभग 45मिनट से एक घंटे के खेल में शतेश राम “स” से फँस कर हार बैठे। उनके हारने के बाद मैंने जीत का गाना गया,” शादी करके फँस गया अच्छा ख़ासा था कुँवारा”
खेल ख़त्म पर बिजली रानी अब भी नदारद थीं। बारिश बंद हो चुकी थी तो हम वाक् को निकल पड़े। यहाँ अंधेरा अब लगभग साढ़े आठ- नव बजे के आस-पास होता है। वापस आने के बाद भी कहीं कोई चमक नही। अलबत्ता आज मालूम हुआ कि हमारे अग़ल -बग़ल कौन -कौन रहता है। जैसे बारिश में बिल में पानी भर जाने से सारे जानवर इधर-उधर पसरे होते ठीक वहीं आलम था आज हम जीवों का।
तीन घंटा से ऊपर हो गया बिजली माई का कोई पता नही। अब ये नही तो गैस बंद, गैस बंद तो खाना बंद। ऐसे में हम पहुँचे पिज़्ज़ा के ढाबा। बिजली के ना होने से ट्राफ़िक लाईट भी करिया बक्सा जैसा झुल रहीं थी। अच्छा हुआ बड़ा ज्ञान देतीं रहती है, हरिहर -लाल होती हैं बात-बात पर। आज सब अपनी मर्ज़ी से सामने वाले का मिज़ाज भाँप कर गाड़ी बढ़ा रहें थे। नियम वहीं जो पहले आया पहले जाएगा।
पिज़्ज़ा रेडी था, लिया और घर आ कर कैंडिल लाईट डिनर हुआ।
हाय रे कैंडिल लाईट डिनर ! लाईका के हंगामा और ठंडाते पिज़्ज़ा को जैसे -तैसे ग्रहण किया।
वैसे बिजली जाने का भी अपना ही सुख है। कभी -कभी इसे जाना चाहिए......
चलिए कुछ तस्वीरें
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