पद्मश्री हीरालाल यादव जी की निधन की ख़बर सुनकर मन भ्रमित सा हुआ। भ्रमित होने का कारण उनकी मृत्यु नही है। मृत्यु तो जीवन का सत्य है इससे कैसा भ्रम।
फिर भी भ्रम की स्थिति इसलिए पैदा हुई कि, अरे इतनी जल्दी। पिछले बुधवार को हीं तो मैंने पहली बार इनका गया बिरहा सुना।
हुआ यूँ कि, हमेशा की तरह खाना पकाते समय मैं गाने बजा रही थी। मेरा मन उस दिन भजन का था तो भजन वाली प्लेलिस्ट लगा ली। जसराज जी के बाद, किशोरी अमोनकर फिर छन्नूलाल लाल मिश्रा और फिर ओसमान मीर के “ कैलाश के निवासी” के साथ मेरा घर भक्तिमय रस से भर रहा था। सत्यार्थ को उलझाने में उलझे शतेश का ध्यान ओसमान मीर के भजन पर गया। मेरे पास आए और पुछे ये कौन गा रहा है, बड़ा अच्छा गा रहा है। गाँव पर जो बिरहा होता था उसकी याद आ गई।
मैंने उन्हें इनके बारे में बताया और साथ हीं कहा कि इन्होंने रामलीला फ़िल्म भी गाना गया है। “मोरारी बापू” के प्रोग्राम में भी भजन गातें है। शतेश ने सिर्फ़ मोरारी बापू का नाम सुना है, कभी उनका रामायण पाठ या भजन नही सुना तो अच्छा कह कर मेरे सवाल का जबाब देने लगे। मैंने पुछा था, बिरहा के जैसा कैसे गा रहें हैं? लय ताल तो अलग से हैं इनके।
वो बोले; बिरहा में भी फ़िल्मी धुनो पर भजन या कोई प्रसंग गया जाता है। मैंने कभी ऐसे ठीक से बिरहा नही सुनी थी। चलते- फिरते कहीं बजते हुए सुन लिया। ऐसे में कैलाश के निवासी पुरा होते हीं मैं बिरहा की खोज में लग गई। खोजने कि वजह ये हुई की, शतेश को किसी बिरहा गायक का नाम हीं याद नही आ रहा था अभी।
ऐसे में मुझे हीरालाल जी मिले। मैंने उस दिन इनके द्वारा गाया, शंकर जी की लीला और जौनपुर कांड सुना। अच्छा लगा मुझे सोचा, किसी दिन इनके बारे में और जानकारी इक्कठा कर इनके बिरहा और ओसमान मीर के भजन को मिला कर लिखूँगी और संयोग देखें आज इनके नही रहने की ख़बर मिली।
महामाया ने क्या जाल रची मुझे इनतक पहुँचाने की। उम्र के इस पड़ाव पर बीमार, बुढ़ा गायक अस्पताल के बेड पर पड़ा क्या सोचता होगा?
शायद यहीं की उसकी आवाज़ हर एक संगीतप्रेमी तक पहुचें।
हीरालाल जी आपको सादर नमन।
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