Tuesday, 7 May 2019

अक्षय तृत्या !!!!

अक्षय तृत्या बीत जाए इससे पहले मैं आप सबको ले चलती हूँ क़िस्सों की दुनियाँ में। तो हमेशा की तरह बरहम बाबा और दुआरा पर की माई के साथ हनुमान जी की जय बोलें और पंक्ति में बैथ जाएँ।
वैसे तो इससे जुड़ी मैंने दो-चार कहानियाँ सुन रखी है पर आज परशुराम जी और बाँके बिहारी जी के क़िस्से से जुड़ी याद बताती हूँ।

ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृत्या के दिन ही परशुराम जी का जन्म हुआ। जिन्हें ज़्यादा जानकारी नही और नाम में राम से तुक्का लगा रहें है तो बिलकुल सही जा रहें है। ये भगवान विष्णु के हीं छठे अवतार हैं। इनके बाद राम आए। यानी राम सातवें अवतार हुए। तो क्या राम नाम इनसे लिया गया है, जैसे मेरे पड़ोस के लोग सुनासुनी नाम रख लिया करतें थे।  जैसे मेरे पड़ोस में भाई के नाम को कई लोगों ने आगे बढ़ाया पर मेरा तो बस पुछे मत। लोग ठीक से तपस्या कह लेते वहीं बहुत था मेरे लिए।

फिर विषयान्तर हुआ। ये मेरी भटकने की आदत भी ना। ख़ैर मुद्दे की बात ये रही कि राम का नाम, परशुराम से लिया गया या ओरिजनल था मुझे इसकी कोई जानकारी नही। हाँ परशुराम का जन्म तो हो गया पर इनसे जुड़ी कथाओं में सबसे मनोरंजक जो मुझे लगी वो ये है,

परशुराम मुनि जमदग्नि और रेणुका के चौथे बेटे थे। एक दिन रेणुका पूजा के लिए जल लेने नदी के किनारे गई। वहाँ उसने गंधर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ नदी तट पर विहार करते देखा। गंधर्वराज और अप्सराओं की क्रीणा देखने में वह इतनी खो गईं कि पूजा के लिए समय पर जल लेकर नहीं पहुँच पाई। मुनि डेर हों जाने पर अपनी दिव्यादृष्टि चलाई और सीसी टीवी पर सब फूटेंज आ गया। क्रोधित हो गये मुनि राज। किसी को भी क्रोध आएगा। मैं यहाँ पूजा पर बैठा हूँ और धर्मपत्नी वहाँ रास-रंग देख रही है। ऐसे में क्रोधित मुनि ने  अपने बेटों को माँ का सिर लाने को कहा। सबने पिता को मना कर दिया परन्तु परशुराम ने अपने फरसे से माँ का काम तमाम कर दिया। वहीं फरसा जो शिव जी ने इन्हें गिफ़्ट किया था। बाद बाक़ी शिव जी ग़ुस्साए भी इनपर कि मेरे गिफ़्ट से ये सब काम बरदस्त नही होगा मुझे।

इधर मुनि अपने दूसरे बेटों को आज्ञा ना मानने के एवज़ में मौत की सज़ा दे चुकें थे पर परशुराम पर बहुत ख़ुश थे। उन्हें वर माँगने को कहा। परशुराम भले ही क्रोधित व्यक्ति रहे हो पर कहते है ना जो खिसियाता है उसके मन मे छल नही होता तो बात सही हुई। परशुराम ने आपनी माता और भाईयों को जीवित होने का वरदान माँगा। साथ ही ये  भी माँगा कि इन्हें ये सब बातें याद ना रहें।

दूसरा क़िस्सा:- आज के दिन बाँके बिहारी के दर्शन की पूजा की भी मान्यता है। अब आपको तो मालूम होगा हीं बाँके बिहारी, कृष्ण का हीं दूसरा नाम है। पर इस नाम ने मुझे बचपन में बहुत कनफ़्यूज किया था। मैंने बिना किसी से पुछे ,जाने ये मान बैठी थी कि कृष्णा का कोई दूसरा रूप बाँके बिहारी हैं , जो मथुरा की जगह बिहार में जन्मे हैं। जैसे अपनी सीता माइयाँ। 

काफ़ी बाद में मुझे “अमीन चाचा “ जो माँ के सहकर्मी और मेरे धार्मिक या फिर क़िस्से कहानियों के गुरु रहे। उन्होंने मुझे सही जानकारी दी। उन्होंने ने हीं मुझे परशुराम जी वाली कथा भी सुनाई थी। 
अच्छा उनकी आदत थी कोई क़िस्सा सुनाने से पहले टेस्ट लेते की उसके बारे में मालूम है या नही? अगर है तो कितनी? 

ऐसे में एक गरमी की शाम वो मुझसे पुछ बैठे, अच्छा प्रियंका( मेरे दादा-दादी द्वारा दिया नाम) ये बताओ कृष्ण को बाँके बिहारी क्यों कहते हैं? 
मैंने जैसा ऊपर लिखा है वैसा ही जबाब उन्हें दिया और फिर उनकी हँसी छूट गई। बोले भक बुडबक किसने कहा तुमसे .....
और फिर आज इतना ही बोलिए बाँके बिहारी की जय। आपको मालूम हैं तो बताइए क्यों कहते है कृष्ण को “बाँके बिहारी”

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