Sunday, 29 March 2020

तुमसा नही देखा !!!

क्या था इस लड़के में जो मैं इसकी हँसी पर फ़िदा थी। थी नही हूँ ... जब दुनिया राजकपूर पर फ़िदा हो रही थी मुझे राजेंद्र कुमार लुभा रहें थे। जब लोग अमिताभ पर प्यार लूटा रहे थे तो मैं विनोद खन्ना की दीवानी थी और जब जनता राजेश खन्ना पर मर रही थी तब मुझे संजीव कुमार और शशि कपूर लुभा रहें थे।

शशि कपूर से अपनापन लगता जब कोई उसे कुकरदाँता कहता। ये बात पहले भी कई बार लिख चुकीं हूँ। ख़ैर आज इनकी याद एक गाने की वजह से आइ।
गाना फ़िल्म राजा साहब से है। गाने को सुनकर मै अपनी माँ को याद करने लगी। अरे घबड़ाइए मत गाना इतना भी बेकार नही की माँ की याद दिला दी कहवाहत शुरू हो जाए।
वो क्या है ना मेरी माँ ये गाना देख रही होती तो कहती ,” जा ये मलेछिन इतना अच्छा लड़का मना रहा आ तुमको नाटक सुझ रहा है”
माँ क्या कहती सोचते हुए मैं अपनी सोच पर गई की आख़िर शशि ने किया क्या जो नंदा से माफ़ी माँगना पड़ रहा है। तुरंत तफ़सिस के लिए फ़िल्म ढूँढीं गई। फ़िल्म शुरू हुई और पहली बार नंदा इतनी बुरी दिखीं। फ़िल्म भागते हुए गाने से ठीक कुछ पहले तक पहुँची तो देखा खाया- पिया कुछ नही ग्लास तोड़ा बारह। हँस-हँस के हालात ख़राब। पर मेरी हँसी नंदा को बुरी लगी और वो ख़फ़ा हो गई।

ख़ैर शशि कपूर हीं इतनी छोटी सी बात पर इतने भोलेपन से माफ़ी माँग सकतें हैं और शशि कपूर हीं किसी कुरूप का बुरी तरह से तिरस्कार कर सकतें है।

नोट:- आज इस फ़िल्म के गाने से पहले के कुछ सीन दुबारा देखे जैसे कभी द हाउस होल्डर के कई सीन सिर्फ़ शशि कपूर के लिए बैकवार्ड करके देखे थे।

Friday, 27 March 2020

भाई-बहन संवाद महामारी के दिनों में !!!

भाई -बहन संवाद महामारी के दिनों में ;
बहन:- क्या खाए हो ?
भाई:- खिचड़ी ।

बहन:- खिचड़ी ? सारा राशन चार दिन में हीं खा गए हा-हा-हा
भाई:- ना रे बाकी, दाँत निकल रहा है। खाया नही जा रहा। लगता है इसी समय सारा ज्ञान मिल जाएगा हा-हा-हा...

बहन:- दवा तो नही होगा घर में एक लौंग रख लो मुँह में आराम मिलेगा।
भाई:- हम्म देखते है। भाई हँसते हुए, वैसे तुम भी रामदेव बन गई हो।

भाई:- कैसे लोग कह रहा है की बोर हो रहें है। हमको तो जानती हो इतना समय भी कम लग रहा है।
बहन:- मुझे भी। कितना कुछ रोज अधूरा रह जा रहा है। उसपर तुम्हारा भगिना क्या हीं कहें...

भाई:- क्या कर रहा है ? दिखाओ उसे।
बहन:- फ़ोन उसकी तरफ़ दिखती हुई( वीडीयो कॉल चल रहा है) ये देखो टीवी में आग लगने पर यहाँ बैठा अपने फ़ायर ट्रक से आग बुझा रहा है।
भाई:- कितना समझ रहा है रे, देख मुँह से पानी की आवाज़ भी निकाल रहा है हा-हा-हा....

बहन:- हम्म। वहाँ के कैसे हालात है?
भाई :- सब ठीक हीं है। वैसे कुछ मज़दूर पैदल हीं अपने घर को निकल चुकें है। सुनने में आया है की कई जगह उन्हें गाँव में घुसने नही दिया जा रहा की करोना लेकर आया है सब।

बहन :- आह ! दुखद। इनका भी हाल ट्रेन टू बुसन वाला ना हो। सभी अपने को बचाने में ख़ुद हीं मरेंगे।
भाई:- ये तो अभी शुरुआत है। अभी तो महामारी के अलावा हमें आगे भी बहुत कुछ सहने को तैयार रहना होगा। मेरे मुहल्ले में दो दिन पहले एक चोर आ गया था। लोगों ने उसे ख़ूब पिटा है। अब किसी के घर में खाने को नही होगा तो क्या करेगा ? जान है तब ना करोना है।

बहन:- हम्म। यहाँ भी वहीं हालत है। ग़रीब हर कोने में ग़रीब हीं है। उसके लिए सबसे बड़ी महामारी पेट है। यहाँ भी 15-20दिन से सब बंद है पर मेरी सोसाइटी में मज़दूर लगभग हर रोज काम कर रहें है। हालाँकि यहाँ सोशल दूरी तो पहले से हीं है। लोग कहाँ लोगों से इतना मिलते है फिर भी यहाँ बीमारी  फैलती जा रही है। लेकिन इनको कोई फ़र्क़ नही पड़ता जैसे। ये बेचारे हमारी सोसाइटी को सुंदर बनाने में लगे हुए है। इस समय में भी दुनियाँ को ख़ूबसूरत बनाने की चाह इंसान हीं कर सकता है।

भाई:- हम्म। चिंता की कोई बात नही बहन। मन और मस्तिष्क को मज़बूत रखना है। जो होना होगा वो होगा। वैसे ये कोई नया नही है। इससे पहले एच वन एन वन से भी करोड़ों लोग मरे थे। पर दुनिया आज भी है।
अच्छा ये बताओ कि और कोई साइंस से जुड़ी फ़िल्म ? आजकल मैं फ़िज़िक्स ख़ूब पढ़ रहा हूँ।

बहन:- अभी ऑल ओफ सड़ेन तो एक दो हीं नाम याद आ रहें है, इतना ना फ़िल्म देख लिए है की कोकटेल हो गया है हा-हा-हा
हाँ, थेओरी आउफ़ एवेरीथिंग, ब्यूटिफ़ुल माइंड, रेन मैन, फ़ॉरेस्ट गम्प तुम्हें पसंद आयेंगी।





Thursday, 26 March 2020

हेडी लमार !!!!

नेटफलिक्स पर एक बायोग्राफ़िकल डॉक्युमेंट्री है, “ बॉम्शेल हेडी”
कहानी एक ऐसी अदाकारा कि, जिसकी ख़ूबसूरती के चर्चे ख़ूब हुए। ख़ूबसूरती जिसके बारे में उन्होंने कहा;

“कोई भी लड़की ख़ूबसूरत हो सकती है, इसके लिए उसे सिर्फ़ मूर्ख दिखना और खड़े रहना है “

ज़ाहिर सी बात है ऐसा कहने वाली “हेडी लमार” ने अपने व्यक्तिगत जीवन में ये सब सहा- महसूस किया तभी कहा।

9 नवंबर 1914 को  ऑस्ट्रीया में जन्मी यहूदी हेडी, हमेशा अपने समय से आगे रहीं। कम उम्र में हीं अडल्ट फ़िल्म में काम करना, फिर शादी और हिटलर के युग में भाग कर अमेरिका आना।  हॉलीवुड की फ़िल्मों में काम करना और मन मुताबिक़ काम ना मिलने पर कुछ ना कुछ इंवेंट करने  की कोशिश करते रहना। इन सबके बीच इनकी प्रेम कहानियाँ और एक के बाद एक करके छः शादी के क़िस्से ख़ूब चले पर एक भी शादी कामयाब नही हुई।

हमेशा कुछ आविष्कार करने की ललक ने एक दिन हेडी को एक ऐसे आविष्कार के क़रीब ला दिया जिसका प्रयोग आज हम बहुत ज़्यादा करतें है। आविष्कार था, “फ़्रीक्वन्सी होपिंग टेक्नॉलोजी”  जो की ब्लूटूथ  का बेसिस है। हेडी ने अपने मित्र “जॉर्ज ऐन्थील” के साथ मिलकर इसका आविष्कार किया था। हालाँकि फ़िल्म इंडस्ट्री से होने के कारण उस वक़्त अमेरिकीन  नेवी ने इनके इस आविष्कार को इतना ध्यान नही दिया। उनके अनुसार इनका काम सुंदर दिखना और लोगों का मनोरंजन करना भर था ना की आविष्कार।
पर बाद में इनका यही आविष्कार अमेरिकी नेवी के काम आया और इन्हें सम्मान भी दिया गया।

पर  ये सम्मान पाने तक हेडी बहुत कुछ गवाँ चुकी थीं। इस बिलीयन डॉलर के आविष्कार के लिए उन्हें एक पाई भी नही मिली पर वो ख़ुश थी अपने नाम के सम्मान से।

कभी दुनियाँ की सबसे ख़ूबसूरत महिला हेडी, ढलती उम्र में ख़ुद को बदसूरत नही देख सकती थी। इसके लिए उन्होंने एक के बाद एक प्लास्टिक सर्जरी करवाई। कुछ कामयाब रही तो कुछ नाकामयाब। पर कहा जाता है उस दौर में प्लास्टिक सर्जरी कराने वाली वो शायद पहली अभिनेत्री थीं।

आज हेडी लमार हमारे बीच नही है पर वो हमेशा हमारे बीच है, फ़ोन के ज़रिए, जी. पी. एस के ज़रिए , ब्लूटूथ से जुड़ी हर डिवाइस के ज़रिए और उन सब लोगों के ज़रिए जो कहते है,” सुंदर लड़की का काम बस सुंदर दिखना है” 

Tuesday, 24 March 2020

क्रमशः अमित दत्ता फ़िल्म

क्रमशः
डिरेक्टर अमित दत्ता की शॉर्ट फ़िल्म जिसे मैंने कुछ तीन साल पहले देखा हो गर्वित के कहने पर। किताब, फ़िल्म, संगीत में मेरी रुचिदेखते हुए दोस्त महीब बताते रहते है कि ये कुछ अलग है देखो।

उन दिनों मैं माँ बनने वाली थी। गर्वित का मैसेज आया दीदी ये फ़िल्म नही देखीं है तो देखिए। मैंने फ़िल्म देखी और मुझे बहुत पसंद आई थी। एक अलग तरह की फ़िल्म है। सब कुछ रेफ़्रेशिंग। पुराने घर, उनकी मुँडेर पर हरियाली, पानी, पेड़, फूल, बैकग्राउंड म्यूज़िक और सिनेमेटोग्राफ़ी तो ज़बरदस्त। एक हीं पल में सिंघा और ढोल बज रहे है तो साथ में बच्चे की किलकारी, अगले पल हीं कोई क्लासिकल पीस जिसे ठीक से सुनने के लिए मैंने बीस बार बैकवार्ड-फ़ॉरवॉड किया होगा पर ठीक से सुन नही पाई। उस वक़्त मुझे नैरेटर पर बड़ा ग़ुस्सा आया कि चुप नही रह सकता थोड़ी देर...

इधर कुछ दिनों से इस फ़िल्म को देखने की बड़ी इक्षा पर नाम हीं नही याद आ रहा था। डिरेक्टर भी मुझे मणिक़ौल या तपन सिन्हा याद आ रहें थे, जिस वजह से फ़िल्म नही मिल रही थी। गूगल भी किया की, “घर में बरगद के पेड़ वाली फ़िल्म” पर मिली नही।

लगन इतनी की ग़ायब रहने वाले गर्वित भाई फिर फ़ेसबूक पर प्रकट हुए और थोड़ा बताने के बाद आज इन्होंने फ़िल्म का नाम भेज दिया। फिर से देखी फ़िल्म और फिर उस क्लासिकल पीस तक आते-आते खीज उठी।

इस छोटी सी फ़िल्म में भी दो-तीन कहानी चल रही है तो आप ख़ुद देखें इस बार स्पून फ़ीडिंग नही:)


Friday, 20 March 2020

रूम और करोना !!!

एक फ़िल्म है “रूम”
अगर आपकी फ़िल्मों  में रुचि है तो इसे ज़रूर देखिए। आजकल के हालत पर तो ये मेरे हिसाब से एकदम सटीक फ़िल्म है।
इसकी कहानी कुछ यूँ है;
एक लड़की अपने पाँच साल के बेटे के साथ एक छोटे कमरे में क़ैद है। लड़की को एक सनकी आदमी ने सात साल पहले अगवा  कर लिया था। उसके साथ बलात्कार करता और ज़िन्दा रहने भर का सामान उसे देता रहता। लड़की उस वक़्त 19 साल की डरी- सहमी, कमज़ोर महिला थी। एक-आध बार भागने की नाकाम कोशिश के बाद उसकी क़ैद और कठिन कर दी गई। इसी बीच उसे एक बेटा होता है। उसमें जीवन को उम्मीद जगी रहती है। रोज़ाना उसी छोटे कमरे में वो ख़ुद को और अपने बेटे को स्वस्थ रखने का हर उपाय करती है।

दिन बीतते है। बेटा बड़ा हो रहा है। बेटे की पाँचवी जन्मदिन पर उसे लगता है की, अब बाहर कैसे भी निकलना है नही तो उसका बेटा दुनिया नही समझ पाएगा,  ना हीं सुरक्षित रह पाएगा। ऐसे में वो अपने बेटे को ट्रेंड करती है भागने के लिए। मदद लेकर आने के लिए।
बेटा माँ की बताए तरीक़े से मरने की ऐक्टिंग करता है। उसका दुष्ट पिता जब उसका शव फेकनें को ले जाता है, वो ट्रक से कूद पड़ता है। फिर पुलिस की मदद से माँ भी आज़ाद हो जाती है।

तो इस कहानी को आप आज की इस भयंकर महामारी से जोड़ कर देखें।
* महामारी- वो शैतान इंसान है जिसने लड़की को अगवा किया था। लड़की शैतान की ताक़त को जानती हुई चुप-चाप क़ैद रही सालों। पर वो ख़ुद को तैयार कर रही थी।
* लड़की - आप और हम।
*  बेटा- तैयारी  और इलाज। तैयारी जो हम स्वस्थ रहने के लिए कर रहें है और इलाज, जिसकी खोज में डॉक्टर- वैज्ञानिक लगें हुए है।

आप भी कुछ  दिन क़ैद रह लीजिए बाक़ी तो आपको भी आज़ाद होना हीं है। बस लड़की की तरह धीरज रखिए। दिमाग़ से काम लीजिए। 

राग थेरेपी , गूगल जानकारी

हृदय रोग (cardiac care) राग दरबारी व राग सारंग से संबन्धित संगीत सुनना लाभदायक है। इनसे संबन्धित गीत हैं :-
* तोरा मन दर्पण कहलाए (काजल), 
* राधिके तूने बंसरी चुराई (बेटी बेटे ), 
* झनक झनक तोरी बाजे पायलिया ( मेरे हुज़ूर ), 
* बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम (साजन), 
* जादूगर सइयां छोड़ मोरी (फाल्गुन), 
* ओ दुनिया के रखवाले (बैजू बावरा ), 
* मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये (मुगले आजम )

2. अनिद्रा (insomania) राग भैरवी व राग सोहनी सुनना लाभकारी होता है, जिनके प्रमुख गीत हैं :-
* रात भर उनकी याद आती रही (गमन), 
* नाचे मन मोरा (कोहिनूर), 
* मीठे बोल बोले बोले पायलिया (सितारा), 
* तू गंगा की मौज मैं यमुना (बैजु बावरा), 
* ऋतु बसंत आई पवन (झनक झनक पायल बाजे), 
* सावरे सावरे (अनुराधा), 
* चिंगारी कोई भड़के (अमर प्रेम), 
* छम छम बजे रे पायलिया (घूँघट ), 
* झूमती चली हवा (संगीत सम्राट तानसेन ), 
* कुहू कुहू बोले कोयलिया (सुवर्ण सुंदरी )

3. एसिडिटी (acidity) होने पर राग खमाज सुनने से लाभ मिलता है। इस राग के प्रमुख गीत हैं :-
* ओ रब्बा कोई तो बताए प्यार (संगीत), 
* आयो कहाँ से घनश्याम (बुड्ढा मिल गया), 
* छूकर मेरे मन को (याराना), 
* कैसे बीते दिन कैसे बीती रतिया (अनुराधा), 
* तकदीर का फसाना गाकर किसे सुनाये ( सेहरा ), 
* रहते थे कभी जिनके दिल मे (ममता ), 
* हमने तुमसे प्यार किया हैं इतना (दूल्हा दुल्हन ), 
* तुम कमसिन हो नादां हो (आई मिलन की बेला)

4. दुर्बलता (weakness) यह शारीरिक शक्तिहीनता से संबन्धित है| व्यक्ति कुछ कर पाने मे स्वयं को असमर्थ अनुभव करता है। इस में राग जयजयवंती सुनना या गाना लाभदायक है। इस राग के प्रमुख गीत हैं :-
* मनमोहना बड़े झूठे (सीमा), 
* बैरन नींद ना आए (चाचा ज़िंदाबाद), 
* मोहब्बत की राहों मे चलना संभलके (उड़नखटोला)
* साज हो तुम आवाज़ हूँ मैं (चन्द्रगुप्त ), 
* ज़िंदगी आज मेरे नाम से शर्माती हैं (दिल दिया दर्द लिया ), 
* तुम्हें जो भी देख लेगा किसी का ना (बीस साल बाद )

5. स्मरण (memory loss) जिनका स्मरण क्षीण हो रहा हो, उन्हे राग शिवरंजनी सुनने से लाभ मिलता है | इस राग के प्रमुख गीत है - 
* ना किसी की आँख का नूर हूँ (लालकिला), 
* मेरे नैना (मेहेबूबा), 
* दिल के झरोखे मे तुझको (ब्रह्मचारी), 
* ओ मेरे सनम ओ मेरे सनम (संगम ), 
* जीता था जिसके (दिलवाले), 
* जाने कहाँ गए वो दिन (मेरा नाम जोकर )

6. रक्त की कमी (animia) होने पर व्यक्ति का मुख निस्तेज व सूखा सा रहता है। स्वभाव में भी चिड़चिड़ापन होता है। ऐसे में राग पीलू से संबन्धित गीत सुनें :-
* आज सोचा तो आँसू भर आए (हँसते जख्म), * नदिया किनारे (अभिमान), 
* खाली हाथ शाम आई है (इजाजत), 
* तेरे बिन सूने नयन हमारे (लता रफी), 
* मैंने रंग ली आज चुनरिया (दुल्हन एक रात की), 
* मोरे सैयाजी उतरेंगे पार (उड़न खटोला),

7. मनोरोग अथवा अवसाद (psycho or depression) राग बिहाग व राग मधुवंती सुनना लाभदायक है। इन रागों के प्रमुख गीत है :-
* तुझे देने को मेरे पास कुछ नही (कुदरत नई), 
* तेरे प्यार मे दिलदार (मेरे महबूब), 
* पिया बावरी (खूबसूरत पुरानी), 
* दिल जो ना कह सका (भीगी रात), 
* तुम तो प्यार हो (सेहरा), 
* मेरे सुर और तेरे गीत (गूंज उठी शहनाई ), 
* मतवारी नार ठुमक ठुमक चली जाये मोहे (आम्रपाली), 
* सखी रे मेरा तन उलझे मन डोले (चित्रलेखा)

8. रक्तचाप (blood pressure) ऊंचे रक्तचाप मे धीमी गति और निम्न रक्तचाप मे तीव्र गति का गीत संगीत लाभ देता है। शास्त्रीय रागों मे राग भूपाली को विलंबित व तीव्र गति से सुना या गाया जा सकता है। -----ऊंचे रक्तचाप मे (high BP)
* चल उडजा रे पंछी कि अब ये देश (भाभी), 
* ज्योति कलश छलके (भाभी की चूड़ियाँ ), 
* चलो दिलदार चलो (पाकीजा ), 
* नीले गगन के तले (हमराज़) 
-----निम्न रक्तचाप मे (low BP)
* ओ नींद ना मुझको आए (पोस्ट बॉक्स न. 909), 
* बेगानी शादी मे अब्दुल्ला दीवाना (जिस देश मे गंगा बहती हैं ), 
* जहां डाल डाल पर ( सिकंदरे आजम ), 
* पंख होते तो उड़ आती रे (सेहरा ) 

9. अस्थमा (asthma) आस्था तथा भक्ति पर आधारित गीत संगीत सुनने व गाने से लाभ राग मालकँस व राग ललित से संबन्धित गीत सुने जा सकते हैं। जिनमें प्रमुख गीत :-
* तू छुपी हैं कहाँ (नवरंग), 
* तू है मेरा प्रेम देवता (कल्पना), 
* एक शहँशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल (लीडर), 
* मन तड़पत हरी दर्शन को आज (बैजू बावरा ), आधा है चंद्रमा ( नवरंग )

10. शिरोवेदना (headache) राग भैरव सुनना लाभदायक होता है। इस राग के प्रमुख गीत :-
* मोहे भूल गए सावरियाँ (बैजू बावरा), 
* राम तेरी गंगा मैली (शीर्षक), 
* पूंछों ना कैसे मैंने रैन बिताई (तेरी सूरत मेरी आँखें), 
* सोलह बरस की बाली उमर को सलाम (एक दूजे के लिए).

Wednesday, 18 March 2020

युग का प्रारंभ !!!

बाहर जाऊँ या ना जाऊँ... जाऊँ या ना जाऊँ... उहपोह में आकर खड़की से बाहर देखती हूँ। हवाएँ शीशे के दीवार से टकरा रहीं है। मानो उन्हें भी ठंड लग रही है, वो भी काँप रहीं हैं। शीशे की दीवार से गोंऽऽऽऽ ... गोंऽऽऽ गिड़गिड़ाती अंदर आने की विनती कर रहीं है। पर दीवार है जो टस से मस नही होता और इसके पीछे लगी दो आँखें बोल पड़ती है, आज बड़ी ठंडी है।

पाँव ख़ुद ब ख़ुद रसोई की ओर बढ़ चले हैं। हाथ चाय की पतीली ढूँढ रही है और दिमाग़ दूध वाली चाय बनाऊँ या निम्बू वाली ? दूध तो कम ही है,  ख़त्म ना हो जाए।
 ख़त्म हो गया फिर ?
 सत्यार्थ की माँ इतनी भाग्यशाली नही कि, बच्चा रोया और झट से छाती से लगा लिया। प्लास्टिक के गैलन में भरे दूध हीं अब उसके आहार है...

पीछे से आवाज़ आती है; आज इण्डियाना में 31 कन्फ़ॉर्म केस हो गए। मेरे ओफ़्फ़िस को भी पूरी तरह से बंद कर दिया गया।
ऑफ़िस पूरी तरह बंद? क्यों ?
एक व्यक्ति में लक्षण पाए गए है...

लक्षण...बीमारी का, डर का, अपनो को खोने का, मौत का....

दिमाग़ मेरा भटकने के लिए हीं बना है तभी तो ये हवा की ठंडी से इंश्योरेंस तक पहुँच गई और अब भटक रही है रही खिड़की के बाहर पसरी हल्की बर्फ़ की तरफ़। ऐसा लग रहा है कि डि डि टी का छिड़काव हुआ हो। प्राकृति सारे रोग-जीवाणु को ढाँक लेना चाहती है। चाहती है एक हिमयुग की शुरुआत और फिर एक नए लोक की श्रीशती....

चाय की आख़िरी घूँट के साथ कुछ पल सब गरम रहा.... आँखें मृत सी उसी ग्लास की खिड़की पर टिकीं  हैं। अचानक उनमें जीवन आ जाती है। चमक भर जाती है...
सामने एक गुलाबी महिला उन बर्फ़ के फुहारों को रोंद रही है । उसके हाथ में लगाम है दो जीवों का...
यही तो है प्रकृति की देवी और उसके हाथ में है, “नर और मादा”

नए युग का प्रारंभ...

Thursday, 12 March 2020

करोना वायरस !!!!


आज सुबह की दो ख़बरों ने थोड़ा परेशान कर दिया। वैसे तो थोड़ी परेशान तब से हूँ, जब से “करोना वायरस”  दिल्ली पहुँचा। भाई अकेला है वहाँ। हर वक़्त चिंता लगी रहती पर वहीं है भारत जैसे देश में पुरी तरह सट डाउन करना भी इतनी जल्दी मुमकिन कहाँ?  बस वहाँ हम सावधानी और प्रार्थनाओं के सिवा कुछ नही कर सकते। 

यहाँ होली के दिन कुछ दोस्त घर आए थे। रंगों के बीच बातचीत जब करोना तक पहुँची तो मालूम हुआ की, कुछ लोग तो दिल्ली में टेस्ट पोज़िटिव आने पर अस्पताल से घर भाग जा रहें है। उन्हें डर है कि, हॉस्पिटल वाले उन्हें क़ैद ना कर लें। 
इस बात में कितनी सच्चाई है मालूम नही पर हाँ हालात इटली तक ना पहुँचे तो हीं बेहतर है।

 क्यों आपकी थोड़ी सी लापरवाही कइयों की जान ले ले? क्यों ना भारत सरकार भी आप पर ग़ैर इरादतन हत्या का जुर्म ठोक दे ?

भारत में शायद करोना अब भी मज़ाक़ का विषय हो पर अब अमेरिका इससे भयभीत है। वो अमेरिका जहाँ के मेडिकल के बारे में आपने सुना हीं होगा। 

लोग अपनी सुरक्षा को लेकर इतने डरे हैं कि, स्टोरस में बेसिक दवाइयाँ, नैपकीन, सेनिटाईजर आदि नही मिल रहें है। आलम ये है कि भारतीय स्टोरों में चावल, आटे और सब्जियों की कमी हो गई है। 
फिर भी अब तक जाने क्यों लग रहा था कि, हम सुरक्षित है। लोग यूँ हीं डर का माहौल बना रहें है। जैसे कई बार भारत में होता है ना,  कि नमक ख़त्म होने वाला है और लोग पैकेट का पैकेट नमक भरने लगते हैं। 

पर अब समझ आ रहा है की,  ये माहौल डर का नही आपकी सुरक्षा का है। दुनिया चाहती है कि हम सब जीवित रहें, स्वस्थ रहें। 
तभी तो सत्यार्थ के स्कूल से मेल आया कि स्कूल बंद रहेंगे अगले अपडेट तक। यहाँ के प्रशासन द्वारा सूचना जारी की गई कि, किसी भी सार्वजनिक स्थल पर झुंड में जमा ना हो। सिनेमा और प्ले भी कुछ दिनों के लिए बंद किए जाए। 
और तो और इंडियाना में होने वाला प्रमुख गेम जो  “नेशनल कॉलेज अथलेटिक अस्सोशिएशन” द्वारा कराए जाते है वो भी रद्द कर दिए। 
आपको याद है ? इसी के तहत होने वाले फूटबोल मैच हम गए साल देखने गए थे।
ख़ैर इस बार तय हुआ कि, बिना दर्शक के हीं गेम होगा पर बाद नेब्रास्का के कोच की तबियत ख़राब होने पर ये पूरा गेम सीरिज़ हीं रद्द कर दिया गया। 

इसके साथ हीं 13 मार्च को होने वाला “ सेंट पैट्रिक डे” का परेड भी रद्द कर दिया गया। 

लोगों को बार-बार घर में रहने का हाथ धोने का सलाह दिया जा रहा है। अब थोड़ा भय लग रहा है कि अमेरिका भी कहीं “इटली” की राह पर आपात घोषित ना कर दे। 

यहीं सोच रही थी कि, दूसरी ख़बर आई “टॉम हेंक्स” और उनकी पत्नी भी इस वायरस के चपेट में आ गए है। टॉम मेरे पसंदीदा एक्टर में से एक। ये वहीं हैं जिन्होंने “फ़िलिडेफ़िया” फ़िल्म में एक एड्स पीड़ित का किरदार निभाया था। 
एक वायरस पीड़ित का किरदार जी कर कई अवार्ड जीतने  वाले टॉम आज दूसरे वायरस की चपेट में है। भगवान करें आप जल्दी स्वस्थ हो। 

इन्ही सब समाचारों के बीच मेरे दिमाग़ में एक फ़िल्म घूम रही है “ परफ़ेक्ट सेंस” एक ऐसी फ़िल्म जिसमें विश्व एक अनजान महामारी की चपेट में आ जाता है और इंसान अपनी सारी सेंसेज धीरे- धीरे खो देता है। सारी उम्मीदों और प्रयासों के बाद भी बच जाता है अंत में अंधेरा…
महामारी का अंधेरा।

Wednesday, 4 March 2020

द सैक्रिफाइस !!!

द सैक्रिफाइस
एक ऐसी फ़िल्म जिसे देखते वक़्त मुझे “राजा हरिश्चंद्र” की याद आई थी। जाने इसे बनाने से पहले आंदरे तारकौस्की को इस भारतीय राजा की कहानी मालूम थी भी या नही?
वैसे मैंने सुना था कि, रूसी लोग राज कपूर के बड़े दीवाने। ऐसे मे हो भी सकता है कि भारत के बारे मे इन्हें जिज्ञासा हुई हो और ये कहानी इनके हाथ लग गई हो। 
या फिर कैंसर से जूझते तारकौस्की अपने अंतिम दिनों मे सब कुछ त्यागने की इक्षा रखते हो और त्याग भी ऐसा जो कैमरा से सुंदरता को आज़ाद कर रहा हो..

फ़िल्म की शुरुआती कहानी जाने क्यों बड़ी सुस्त लग रही थी मुझे। पर जैसे इसके सभी कलाकार एक छत के नीचे मिले मज़ा आने लगा। वो आपस मे ऐसे बात कर रहे थे, जैसे कोई नाटक चल रहा हो। साथ ही फ़िल्म की जान इसकी  सिनेमेटोग्राफ़ी जो आपको कहीं जाने नही देती, वरना कहानी की हिंट तो मिल ही गई थी।

एक इंसान जो विश्व युद्ध के भय से अपने परिवार को बचाना चाहता है, उसने भगवान से प्रार्थना किया कि, हे परमात्मा इस विध्वंश से बचा लो तो मै अपनी सारी प्रिय चीज़ों का त्याग कर दूँगा। हमेशा प्रवचन देने वाला मै कभी एक शब्द नही बोलूँगा।
स्वप्न मे जैसे राजा हरिश्चंद्र ने सब राज-पाट दान कर दिया था, ठीक वैसे ही इस नायक ने स्वप्न मे युद्ध का भय देखकर  भगवान के आगे सब कुछ त्याग डाला। अपना सुंदर घर, पत्नी और प्रिय पुत्र...
पिता के चुप होते ही गूँगा पुत्र बोल पड़ा शायद यही नियम है समाज के लिए की, एक को चुप रहना है तो दूसरे को बोलना। दोनो साथ बोले तो शोर बढ़ जाएगा...

ख़ैर इतने दिनों बाद इस फ़िल्म की याद “मोदी जी और केजरीवाल सर” की वजह से आई। भाई को कहा कि क्या हमारे राजा के मन मे यह बात नही आती की प्रजा के लिए सब कुछ छोड़ दे? कुछ ऐसा करे की विध्वंश ना हो।

और चमत्कार देखिए तो, कुछ दिनो बाद ख़बर आती है कि महाराज ने सोशल मीडिया का त्याग करने का प्रण लिया। 
राजा ने दंगाइयों पर कठोर सज़ा का निर्देश दिया चाहें वो आप क्यों ना हो। 

पर क्या “सैक्रिफाइस” इतना आसान है ?