द सैक्रिफाइस
एक ऐसी फ़िल्म जिसे देखते वक़्त मुझे “राजा हरिश्चंद्र” की याद आई थी। जाने इसे बनाने से पहले आंदरे तारकौस्की को इस भारतीय राजा की कहानी मालूम थी भी या नही?
वैसे मैंने सुना था कि, रूसी लोग राज कपूर के बड़े दीवाने। ऐसे मे हो भी सकता है कि भारत के बारे मे इन्हें जिज्ञासा हुई हो और ये कहानी इनके हाथ लग गई हो।
या फिर कैंसर से जूझते तारकौस्की अपने अंतिम दिनों मे सब कुछ त्यागने की इक्षा रखते हो और त्याग भी ऐसा जो कैमरा से सुंदरता को आज़ाद कर रहा हो..
फ़िल्म की शुरुआती कहानी जाने क्यों बड़ी सुस्त लग रही थी मुझे। पर जैसे इसके सभी कलाकार एक छत के नीचे मिले मज़ा आने लगा। वो आपस मे ऐसे बात कर रहे थे, जैसे कोई नाटक चल रहा हो। साथ ही फ़िल्म की जान इसकी सिनेमेटोग्राफ़ी जो आपको कहीं जाने नही देती, वरना कहानी की हिंट तो मिल ही गई थी।
एक इंसान जो विश्व युद्ध के भय से अपने परिवार को बचाना चाहता है, उसने भगवान से प्रार्थना किया कि, हे परमात्मा इस विध्वंश से बचा लो तो मै अपनी सारी प्रिय चीज़ों का त्याग कर दूँगा। हमेशा प्रवचन देने वाला मै कभी एक शब्द नही बोलूँगा।
स्वप्न मे जैसे राजा हरिश्चंद्र ने सब राज-पाट दान कर दिया था, ठीक वैसे ही इस नायक ने स्वप्न मे युद्ध का भय देखकर भगवान के आगे सब कुछ त्याग डाला। अपना सुंदर घर, पत्नी और प्रिय पुत्र...
पिता के चुप होते ही गूँगा पुत्र बोल पड़ा शायद यही नियम है समाज के लिए की, एक को चुप रहना है तो दूसरे को बोलना। दोनो साथ बोले तो शोर बढ़ जाएगा...
ख़ैर इतने दिनों बाद इस फ़िल्म की याद “मोदी जी और केजरीवाल सर” की वजह से आई। भाई को कहा कि क्या हमारे राजा के मन मे यह बात नही आती की प्रजा के लिए सब कुछ छोड़ दे? कुछ ऐसा करे की विध्वंश ना हो।
और चमत्कार देखिए तो, कुछ दिनो बाद ख़बर आती है कि महाराज ने सोशल मीडिया का त्याग करने का प्रण लिया।
राजा ने दंगाइयों पर कठोर सज़ा का निर्देश दिया चाहें वो आप क्यों ना हो।
पर क्या “सैक्रिफाइस” इतना आसान है ?
एक ऐसी फ़िल्म जिसे देखते वक़्त मुझे “राजा हरिश्चंद्र” की याद आई थी। जाने इसे बनाने से पहले आंदरे तारकौस्की को इस भारतीय राजा की कहानी मालूम थी भी या नही?
वैसे मैंने सुना था कि, रूसी लोग राज कपूर के बड़े दीवाने। ऐसे मे हो भी सकता है कि भारत के बारे मे इन्हें जिज्ञासा हुई हो और ये कहानी इनके हाथ लग गई हो।
या फिर कैंसर से जूझते तारकौस्की अपने अंतिम दिनों मे सब कुछ त्यागने की इक्षा रखते हो और त्याग भी ऐसा जो कैमरा से सुंदरता को आज़ाद कर रहा हो..
फ़िल्म की शुरुआती कहानी जाने क्यों बड़ी सुस्त लग रही थी मुझे। पर जैसे इसके सभी कलाकार एक छत के नीचे मिले मज़ा आने लगा। वो आपस मे ऐसे बात कर रहे थे, जैसे कोई नाटक चल रहा हो। साथ ही फ़िल्म की जान इसकी सिनेमेटोग्राफ़ी जो आपको कहीं जाने नही देती, वरना कहानी की हिंट तो मिल ही गई थी।
एक इंसान जो विश्व युद्ध के भय से अपने परिवार को बचाना चाहता है, उसने भगवान से प्रार्थना किया कि, हे परमात्मा इस विध्वंश से बचा लो तो मै अपनी सारी प्रिय चीज़ों का त्याग कर दूँगा। हमेशा प्रवचन देने वाला मै कभी एक शब्द नही बोलूँगा।
स्वप्न मे जैसे राजा हरिश्चंद्र ने सब राज-पाट दान कर दिया था, ठीक वैसे ही इस नायक ने स्वप्न मे युद्ध का भय देखकर भगवान के आगे सब कुछ त्याग डाला। अपना सुंदर घर, पत्नी और प्रिय पुत्र...
पिता के चुप होते ही गूँगा पुत्र बोल पड़ा शायद यही नियम है समाज के लिए की, एक को चुप रहना है तो दूसरे को बोलना। दोनो साथ बोले तो शोर बढ़ जाएगा...
ख़ैर इतने दिनों बाद इस फ़िल्म की याद “मोदी जी और केजरीवाल सर” की वजह से आई। भाई को कहा कि क्या हमारे राजा के मन मे यह बात नही आती की प्रजा के लिए सब कुछ छोड़ दे? कुछ ऐसा करे की विध्वंश ना हो।
और चमत्कार देखिए तो, कुछ दिनो बाद ख़बर आती है कि महाराज ने सोशल मीडिया का त्याग करने का प्रण लिया।
राजा ने दंगाइयों पर कठोर सज़ा का निर्देश दिया चाहें वो आप क्यों ना हो।
पर क्या “सैक्रिफाइस” इतना आसान है ?
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