क्रमशः
डिरेक्टर अमित दत्ता की शॉर्ट फ़िल्म जिसे मैंने कुछ तीन साल पहले देखा हो गर्वित के कहने पर। किताब, फ़िल्म, संगीत में मेरी रुचिदेखते हुए दोस्त महीब बताते रहते है कि ये कुछ अलग है देखो।
उन दिनों मैं माँ बनने वाली थी। गर्वित का मैसेज आया दीदी ये फ़िल्म नही देखीं है तो देखिए। मैंने फ़िल्म देखी और मुझे बहुत पसंद आई थी। एक अलग तरह की फ़िल्म है। सब कुछ रेफ़्रेशिंग। पुराने घर, उनकी मुँडेर पर हरियाली, पानी, पेड़, फूल, बैकग्राउंड म्यूज़िक और सिनेमेटोग्राफ़ी तो ज़बरदस्त। एक हीं पल में सिंघा और ढोल बज रहे है तो साथ में बच्चे की किलकारी, अगले पल हीं कोई क्लासिकल पीस जिसे ठीक से सुनने के लिए मैंने बीस बार बैकवार्ड-फ़ॉरवॉड किया होगा पर ठीक से सुन नही पाई। उस वक़्त मुझे नैरेटर पर बड़ा ग़ुस्सा आया कि चुप नही रह सकता थोड़ी देर...
इधर कुछ दिनों से इस फ़िल्म को देखने की बड़ी इक्षा पर नाम हीं नही याद आ रहा था। डिरेक्टर भी मुझे मणिक़ौल या तपन सिन्हा याद आ रहें थे, जिस वजह से फ़िल्म नही मिल रही थी। गूगल भी किया की, “घर में बरगद के पेड़ वाली फ़िल्म” पर मिली नही।
लगन इतनी की ग़ायब रहने वाले गर्वित भाई फिर फ़ेसबूक पर प्रकट हुए और थोड़ा बताने के बाद आज इन्होंने फ़िल्म का नाम भेज दिया। फिर से देखी फ़िल्म और फिर उस क्लासिकल पीस तक आते-आते खीज उठी।
इस छोटी सी फ़िल्म में भी दो-तीन कहानी चल रही है तो आप ख़ुद देखें इस बार स्पून फ़ीडिंग नही:)
डिरेक्टर अमित दत्ता की शॉर्ट फ़िल्म जिसे मैंने कुछ तीन साल पहले देखा हो गर्वित के कहने पर। किताब, फ़िल्म, संगीत में मेरी रुचिदेखते हुए दोस्त महीब बताते रहते है कि ये कुछ अलग है देखो।
उन दिनों मैं माँ बनने वाली थी। गर्वित का मैसेज आया दीदी ये फ़िल्म नही देखीं है तो देखिए। मैंने फ़िल्म देखी और मुझे बहुत पसंद आई थी। एक अलग तरह की फ़िल्म है। सब कुछ रेफ़्रेशिंग। पुराने घर, उनकी मुँडेर पर हरियाली, पानी, पेड़, फूल, बैकग्राउंड म्यूज़िक और सिनेमेटोग्राफ़ी तो ज़बरदस्त। एक हीं पल में सिंघा और ढोल बज रहे है तो साथ में बच्चे की किलकारी, अगले पल हीं कोई क्लासिकल पीस जिसे ठीक से सुनने के लिए मैंने बीस बार बैकवार्ड-फ़ॉरवॉड किया होगा पर ठीक से सुन नही पाई। उस वक़्त मुझे नैरेटर पर बड़ा ग़ुस्सा आया कि चुप नही रह सकता थोड़ी देर...
इधर कुछ दिनों से इस फ़िल्म को देखने की बड़ी इक्षा पर नाम हीं नही याद आ रहा था। डिरेक्टर भी मुझे मणिक़ौल या तपन सिन्हा याद आ रहें थे, जिस वजह से फ़िल्म नही मिल रही थी। गूगल भी किया की, “घर में बरगद के पेड़ वाली फ़िल्म” पर मिली नही।
लगन इतनी की ग़ायब रहने वाले गर्वित भाई फिर फ़ेसबूक पर प्रकट हुए और थोड़ा बताने के बाद आज इन्होंने फ़िल्म का नाम भेज दिया। फिर से देखी फ़िल्म और फिर उस क्लासिकल पीस तक आते-आते खीज उठी।
इस छोटी सी फ़िल्म में भी दो-तीन कहानी चल रही है तो आप ख़ुद देखें इस बार स्पून फ़ीडिंग नही:)
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