Thursday 30 April 2015

chulbul ke bahane aur poddar aunti :)

जैसे कोई लेखक अपनी किताब को अपने परिवार या फ्रैंड्स को समर्पित करता है,या उनके सहयोग के लिए धन्यवाद देता है। वैसे ही आज की मेरी स्टोरी "निक्की " और "आशीष " के लिए है। निक्की और आशीष कब हमारे दोस्त से फैमिली बन गए हमे मालूम ही नही चला। शायद परदेश में हम दोनों को और उन दोनो को भी अपने घर की याद आती रही होगी ,और हमारा रिश्ता खुद ही बन गया।निक्की और आशीष के बारे में कभी और लिखूंगी।फिलहाल निक्की के कहने पे चुलबुल की कहानी तो पूरी कर दूँ।मुझे मालूम है मैं बहुत अच्छा तो नही लिखती पर लिख लेती हूँ।उनकी तारीफ से मुझे और लिखने की प्रेरणा मिली।थैंक्स निक्की और आशीष जिन्होंने ने मुझे कॉल किया और ख़ास कर लिखने को प्रोत्साहित किया।

अब कहानी वही से शुरू होती है ,जहां पिछली बार ख़त्म किया था। नटखट चुलबुल के बहाने स्कूल न जाने के। जैसा आपने पहले पढ़ा कि,चुलबुल का एडमिशन तो हो जाता है ,लेकिन वो ज्यादातर स्कूल से बाहर होता है। टॉयलेट जाना और पानी पीना उसके सबसे पसंदीदा बहाने थे।लेकिन पिछली बार मदन सर से पकडे जाने के बाद ,उसने नए बहाने इज़ाद करने के सोचे।आज की सुबह तो चुलबुल के लिए और भी तकलीफदेह थी ,एक तो स्कूल में पुरे टाइम रुकना और दूसरा शाम में मदन सर का टूशन क्लास।रात भर ठीक से सो भी नही पाया था। सपने में मदन सर उसे किसी राक्षस की तरह डरा रहे होंगे।सुबह हुई माँ उसे जगाते हुए बोली उठ जाओ चुलबुल स्कूल भी तो जाना है।चुलबुल उठा बाथरूम से आकर वापस सो गया।माँ क्या देखती है ,स्कूल के लिए तैयार होने की जगह चुलबुल सो रहा है ।माँ ने फिर से डांटा और कहा स्कूल नही जाना ?चुलबुल बोला अभी तो 9 :00 बज रहे है स्कूल10 :00 से होता है।माँ ने भी ध्यान नही दिया।थोड़ी देर के बाद माँ फिर से बोली तैयार होने को।  देखा तो चुलबुल ने कम्बल ओढ़ रखी थी ,और माँ से बोला बुखार लग रहा है।माँ ने कहा अगर झूठ बोल रहा होगा तो आज तो पिटाई पक्की।माँ पास जाके देखती है, तो चुलबुल का सिर थोड़ा गर्म था।माँ भी थोड़ी डर गई की अचानक बुखार कैसे?उसने चुलबुल से पूछा कल बर्फ(गोला ) खाया था क्या ? चुलबुल ने कहा नही तो। माँ ने सोचा थोड़ा देख के डॉक्टर के पास ले जायेंगे।चुलबुल की माँ लवली और चुलबुल के एक छींक से भी घबरा जाती थी।डॉक्टर से लेके भगवन के प्रसाद तक कुछ नही छोड़ती थी। भगवान भी सप्ताह में कुछ न कुछ अच्छा खाते रहते :) , माँ ने मुन्नी दीदी जो काम करती थी ,उनको कहा की रोटी और परवल की सब्जी बना के चुलबुल को खिलाये। ऐसा मानना है कि ,परवल (पटल ) की सब्जी खाने से पेट की गर्मी ख़त्म हो जाती है।माँ ने लवली को कहा वो स्कूल जाये चुलबुल नही जायेगा आज।लवली भी सोच रही थी ,काश उसे भी बुखार आया होता। स्कूल से छुट्टी के साथ सेवा भी और खाने के लिए अलग-अलग चीज़े भी :) लेकिन सब की किस्मत चुलबुल सा कहाँ ? दुखी मन से वो अकेले स्कूल गई।पांचवी घंटी में लवली क्या देखती है ,चुलबुल रोता हुआ माँ के साथ स्कूल आया है।माँ चुलबुल को स्कूल छोड़ के वापस चली गई।लवली सोचती है, चुलबुल के सुबह का बुखार और माँ का प्यार अचानक सब ख़त्म कैसे ? स्कूल की छुट्टी हो गई।चुलबुल और लवली साथ घर आरहे थे।लवली ने चुलबुल के अचानक स्कूल आने के बारे में पूछा।चुलबुल बोला ये सब उस पोद्दारिन (पोदार आँटी )के कारन हुआ है।लवली ने पूछा वो कैसे ?चुलबुल बोला सुबह मैं उनके यहां से प्याज मांग कर लाया था ,जब बाथरूम गया था तब।दो प्याज़ क्या दिए माँ को बता दिया।चुलबुल के यहां प्याज या लहसन जब कोई गेस्ट या उसके चाचा चाची आते तभी बनता था।ऐसे में उसके घर प्याज़ था नही। उसने कहीं सुन रखा था ,की प्याज को कांख में दबा के सो जाने से फीवर हो जाता है।उसने ट्राय किया और बॉडी हल्का गर्म हो गया।इसका कारण प्याज़ था ,या कम्बल जो उसने ओढ़ रखा था, मालूम नही।चुलबुल की माँ थोड़े देर से ऑफिस जा रही थी,ऑफिस भी कॉलोनी में ही एक कोने में बना है।बाहर उनको पोदार आँटी मिल गई।पोदार आंटी माँ के ऑफिस स्टाफ की वाइफ है।लगभग सारे स्टाफ एक ही कॉलोनी में रहते है।माँ के देर से ऑफिस जाने की वजह पूछी।माँ ने बताया चुलबुल की तबियत थोड़ी ठीक नही है ,इसलिए देर से जा रही है। माँ जैसे ही आगे बढ़ी वो पीछे से पूछती है ,चुलबुल की माँ घर से कोई आया है क्या ? माँ ने कहा नही तो ,ऐसा क्यों पूछ रही है।फिर उन्होंने कहा चुलबुल सुबह प्याज लेने आया था, तो मुझे लगा कोई आया होगा।माँ रास्ते से वापस घर आ गई, और चुलबुल से इस बारे में पूछा।चुलबुल की पोल खुल गई थी। अब माँ की बारी थी ,सुबह का सारा प्यार निकलने की :) चुलबुल पे हाथ साफ करने के बाद उसे वैसे ही स्कूल ले आई।लवली खुश हो रही थी ,की अच्छा हुआ उससे इस तरह का बुखार नही हुआ। अब इंतज़ार था शाम में मदन सर के टूशन का :)

महत्वपूर्ण :-मुझे नही मालूम की सच में प्याज़ से बुखार होता है ,या सिर्फ थोड़ा शरीर गर्म हो जाता है।लेकिन इतना याद है ,कहि तो 6 /7 क्लास में पढ़ा था ,की प्याज़ हवा में मौजूद वाइरस और बैक्टेरिया को अपनी तरफ खींचता है ,अगर इसे कटा हुआ छोड़ दे तो।गूगल किया तो ये कुछ लोगो ने हाँ और कुछ लोगो ने ना में वोट दिया है।अगर आप को शक है ,तो देर  किस बात कि ,नुस्खा आसान है कभी भी आज़मा सकते है :)





Wednesday 22 April 2015

Duniya Ke rang or meri maut

आदतन सुबह उठने के बाद न्यूज़ ,फेसबुक,व्हाट्सऐप ,टविटर चैक किया।दिल थोड़ा भरी सा हो गया ,हर जगह एक ही चर्चा कि, एक राजस्थान के किसान ने दिल्ली में आत्महत्या कर ली।आत्महत्या भी कहि सुनसान या बंद कमरे में नही ,लाखो की बीच में। जहां आम आदमी पार्टी की रैली चल रही थी।रैली जंतर -मंतर पर लैंड बिल के विरोध में चल रही थी। ये वही जंतर -मंतर है ,जो ग्रहो की गति नापने के लिए बना था। आज वो धरना केंद्र के रूप में ज्यादा जाना जाता है। यहां पर कई महत्वपूर्ण धरने हए।उनमे अन्ना हज़ारे ,निभ्या कांड ,नर्मदा बचाओ ,मनरेगा ,भोपाल गैस कांड ,आसाराम के भक्तो  का धरना,एंटी आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (AFSPA ) जैसे कई है।मुझे न्यूज़ पढ़ के दुःख के साथ बहुत क्रोध भी हुआ ,कि कैसे कोई मरता रहा और इतने लोगो के बावजूद कोई कुछ कर ना पाया। क्या लोगो को मौत की इतनी आदत पड़ चुकी है ,या लोगो की भावनायें मर   चुकी है ? एक और जहाँ एंटी AFSPA के  लिए धरने पर बैठी "इरोम शर्मीला "  को इसलिए कैद कर लिया जाता है कि ,वो भूख के द्वारा आत्महत्या कर रही थी।ऐसा नेताओ और पुलिस का मानना था। फिर आज तो वो शख्स खुले आम मर रहा था ,उसे क्यों नही पकड़ा गया ? शायद वो बच जाता। मरने वाले किसान का नाम गजेन्द्र सिंह कल्याणवत था।मैंने न्यूज़ में पढ़ा की गजेन्द्र के पिता के पास 20 बीघा जमीन भी है ,लेकिन बारिस की वजह से सारी फसल ख़राब हो गई।गजेन्द्र जयपुरिया साफे का भी कारोबार करते थे। वो राजनाथ सिंह (गृह मंत्री ) सहित दूसरे कई प्रसिद्ध हस्तियों को साफा बांध चुके थे।उनके तीन बच्चे भी है।क्या मरने से पहले एक बार भी गजेन्द्र को अपने बच्चो की याद नही आई ?चलो ठीक है ,आप बहुत परेशानी से जूझ रहे होंगे ,पर उसका हल मृत्यू तो नही? वैसे ये अच्छा किया जब मरने का सोचा तो जगह अच्छी चुना। हो सकता हो काफी लोगो को मेरी ये लाइन अच्छी ना लगी हो।पर जरा सोच के देखिए वो पागल तो था नही ,जो अचानक कुछ कर बैठे। हर इंसान अपनी जिंदगी पूरी जीना चाहता है। यहां तक की किसी बुजुर्ग से भी पूछो तो वो कुछ और साल जीना चाहता है। क्योकि उसे अपने परिवार से मोह हो जाता है। खुदखुशी सबसे अंतिम और निराशाजनक क्रिया है। जब इंसान कुछ कर नही पता और परिवार का भी साथ नही होता। शायद अपनी तंगी हालत मेंगजेन्द्र की भी यही हालत होगी। उसने लगभग हर किसी से मदद तो मांगी ही होगी।फिर सोचा होगा कुछ नही कर पा रहा हूँ  अपने परिवार के लिए "एक जान है वही तौफे में दे दूँ " . घर से निकलते वक़्त उसके दिमाग में क्या चल रहा होगा ?सोच रहा होगा कितना बदकिश्मत हूँ ,मौत समय से पहले आ रही है ,परिवार भी साथ नही। मारना भी उन अनजानों के बीच जिनके हृदय में दया नही। संतोष बस इस बात का है कि ,मौत का मेरा तौफा मेरे परिवार वालो के काम आयेगा। मैं किसान हूँ ,गरीब हूँ पर सबको कुछ न कुछ तो दे के जॉंऊंगा। निर्दयी पत्रकार मेरी मौत की तस्वीर ले के पैसे कमाएंगे ,राजनेता राजनीती करेंगे ,कुछ लोग फिर से मेरे लिए इसी जगह पर मेरे लिए ही धरना करेंगे। ये वो सब लोग होंगे जो उस वक़्त मेरी मौत का नज़ारा देख रहे थे। उस वक़्त मेरी थमती हुई साँसे और बोझिल आँखे कह रही थी ,मुझे बचालो मैं जीना चाहता ,घर वापस जाना चाहता हूँ , अपने बच्चो के पास अपने परिवार के पास। लेकिन हर कोई बस चाहता था ,मैं मर जाऊ।हूँ भी तो एक गरीब किसान। मैंने भी अपने आखिरी सांसो तक मानवता का इंतज़ार किया पर उसके आने तक मैंने इतनी पथरीली आँखे देखी कि मनो मेरी बंजर भूमि मेरे आगे हो।सोचा बची सांसे बचाने से क्या फायदा जब इतनी घृणा देख ली। जीवन जीने के लिए प्यार और दया में विश्वास होना जरुरी है ,जो मैं खो चूका हूँ।हज़ारो की भीड़ थी नेता ,अधिकारी ,आम आदमी सब मौजूद। उनके बीच में मैं फांसी लगा रहा हूँ,चाहे जो भी वजह हो।गमछे को डाल से बांधते वक़्त सोचा क्या सच में मोदी चाय बेचा करते थे ? यदि हाँ तो वो गरीबो की समस्याओ को क्यों नही समझते? या गरीबी के कारण वो सुख ना भोग पाये उससे ही पूरा कर रहे है।उनकी भी इच्छाये होगी कीमती सूट पहने की ,चमचमाती गाड़ी में जाने की ,हवाईजहाज पे चढ़ने की और दुनिया देखने की।खैर मुझे गमछे को बांधते देख भी किसी ने नही रोका।गर्दन फसाई तो भी किसी ने नही रोका ,झूल गया तभी लोग देखते रहे।मैंने सोचा मरने का मेरा फैसला गलत तो नही था ?क्या मेरे ना रहने से मेरे घर की खुशिया वापस आजाएंगी ?तभी मैंने मन में ईश्वर से प्रार्थना की ,कि हे प्रभु मेरे जैसा कोई और किसान मूर्खता ना करे। क्योकि जब सामने कोई नही आपको बचा रहा ,उनसे आपने परिवार वालो की सलमती आप कैसे सोच सकते हो ?नेता ,प्रशासन को छोड़ दे।जो लोग वहां थे, या जो सो कॉल्ड पढ़े लिखे वॉलेंटियर थे ,वो भी शायद ये देखने लगे की फाँसी से पहले जीभ बाहर आती है या आँख।ओह ! भगवान मेरे परिवार को ऐसी दुनिया से बचाना।जहां मौत पे न्यूज़ बनती है ,राजनीती होती है ,और सभ्य समाज धरना देता है।मेरा यहां मरने के ख़ाश कारण ये हो सकता है की, मेरे परिवार को सरकार और दूसरे नेता गणो से मदद मिल जाये। सरकार से अनुरोध है, मेरी जान की कीमत सान्तवना या सिर्फ 1 /2 लाख रूपये नही।मैं वो हूँ जिसने आपके देश की जनता का पेट भरा।उन्हें स्वास्थ्य बनाया।तो सान्तवना देने मेरे घर तो बिल्कुल नही जाये।मेरे बच्चो के बारे में जरूर सोचे ।जो न्यूज़ चैनल वालो ने मेरे मरते वक़्त मुझे न बचा के तस्वीर लेने और खबर को बेच पैसा कमने की सोची ।उनसे अनुरोध है उसका कुछ हिस्सा ही सही मेरे बच्चो के नाम कर दे।जो लोग मेरे लिए धरना पर बैठने को तैयार है ,उनसे मेरी आखरी गुजारिश है ,किसी मरते हुए को बचा ले। धरने पे बैठने से अच्छा किसी की मदद कर दिया करे।धरना सिर्फ और सिर्फ नेताओ को करने दे ,जिससे उनकी दाल- रोटी चलती है।ओह !जो मेरी मौत के वक़्त भी भाषण झाड़ते  रहे।उनके बारे में क्या कहूँ ?उनके एक सहयोगी ने कहा, जो कभी पत्रकार भी रह चुके थे,की मुख्यमंत्री का काम नही पेड पर चढ़ के किसी को बचाना ये प्रसासन का काम है। तो क्या भावी मुख्यमंत्री का काम चुनाव के दौरान नाले साफ करना ,लोगो के पैर पड़ना ,गरीब के यहां खाना भर था ? मैं आग या पानी में नही था जहां मुख्यमंत्री की शुरक्षा का सवाल हो। हाँ आप मुख्यमंत्री है तो क्या ?है तो एक इंसान। हमने आपको बुद्धिजीवी समझ के चुना ,लेकिन जो इंसान नही वो बुद्धिजीवी कहाँ हो सकता है ? "हाँ मैं ही सोना बोने वाली चिड़िया हूँ ",जिसने सोना तो बो दिया ,लेकिन प्रकृति ने मिटटी बना दिया। कुछ सरकारी स्कीम मिलने की आशा में सरकारी तंत्र के पिंजरे में कैद हो गया।बंद पिंजरे में कभी अपने पंख तो कभी अपने सिर से मार कर उड़ने की कोशिश करता रहा ।देखो आज मैं उड़ गया। पिजरा और मेरा शरीर पीछे रह गया।अब जिसको जो मन वो इस पिंजरे और मेरे पार्थिव शरीर का करे।


महत्वपूर्ण :- हो सकता हो मेरा लेख कुछ लोगो को अच्छा लगे। कुछ लोग ये भी कहे तुमने क्या किया बस अपनी भावनायें व्यक्त की। मेरा आप सब से अनुरोध है ,मैं सच में किसानो के लिए कुछ करना चाहती हूँ। अगर आप कुछ सुझाव दे ,या हम सब मिल के कुछ कर सके।कम से कम हम एक अन्न देने वाले किसान की भी  मदद करे तो,मैं अपना जीवन धन्य मानूंगी। आपके सुझाव की प्रतीक्षा में ,या कोई और मदद कर रहा हो तो कृपया मुझे जरूर बताये।

Monday 20 April 2015

cherry blosom Adventure last part

मेरी एक दोस्त ने मुझे कॉल किया और पूछा तपस्या तुमलोगो को गाड़ी मिली या नही ?मैंने कहा चिंता मत करो आज के ब्लॉग में गाड़ी मिल जाएगी :), तो कहानी अब आगे बढ़ती है दोस्तों।लडके दो-दो करके दो दिशा में गए।कुछ 10 मिनट के बाद कॉल आया कि गाड़ी मिल गई है।हमलोग रोड की साइड आ जाये।चलो जान में जान आई।जैसे हमलोग रोड तक पहुंचे शतेश बाबू मिस्टर शाक्या के साथ गाड़ी चलते हुए पहुंचे।दूसरी तरफ से मिस्टर जैन और बंसल भी आ गये।हमलोग फटाफट गाड़ी में सवार हो गए।शतेश ने बताया जहाँ हम बैठे थे उसके बेसमेंट में ही पार्किंग थी।बेसमेंट होने की वजह से दिख नही रही थी :),चारो लड़के एक साथ पार्किंग में पहुंचे थे।सबके चेहरे पे हंसी थी।इसके बाद डिसाइड हुआ कि, होटल जाने से पहले खाना खा लिया जाय। भूख भी लगी थी और होटल जाके आने तक रेस्तरॉ बंद भी हो जाते।सबकी सहमति से हमलोग डाउनटाउन की तरफ हो लिए।डाउनटाउन में पार्किंग की दिक्कत।हमने पेड पार्किंग ढूंढी $25 की रसीद मिली।अब खाने की बारी थी सबने थाई या इंडियन खाने का सुझाव दिया।पास में इंडियन रेस्तरॉ "ताज इंडिया " दिखा।वहां पहुंचे तो बहुत ही भीड़ थी।अटेंडर ने हमें 30 वेट करने को कहा।हुमलोगो सोचा जहाँ भी जायेंगे भीड़ मिलेगी तो यही इंतज़ार कर लेते है।आने जाने में दुकाने न बंद हो जाये।रात के 10 बज चुके थे।45 मिनट बाद भी हमारा नंबर नही आया। फिर डिसाइड हुआ कि चार -चार करके अलग -अलग टेबल पे बैठ जाते है।हम चार लड़िकियाँ एक साथ बैठ गई ,और हमने अपना आर्डर दे दिया।सूप ,साग पनीर ,छोले ,दाल मखनी ,लच्छा पराठा ,गार्लिक नान और राइस कोम्प्लिमेंट्री (मुफ्त ) था।लड़को को टेबल 10 मिनट बाद मिला।हमारा आर्डर नही आ रहा था।हमलोग बस आस -पास के लोगो की प्लेट देख के कमेंट करके आपस में हँसे जा रहे थे।हमारे सामने दो अमेरिकन बन्दे समोसा कांटा चमच्च से खा रहे थे।हमलोगो को समोसे पे हो रहे अत्याचार पर हंसी आ रही थी।मिसेस बंसल ने कहा काश वो समोसा हमारी प्लेट में होता तो उससे इतनी तकलीफ ना होती।मिसेस बंसल का चेहरा किचेन की तरफ ही था ,वो हर आर्डर को हमारा बताती कि ,लो आ गया आपना आर्डर। आर्डर आता तो था लेकिन किसी और टेबल पे परोस दिया जाता था।तभी मिसेस बंसल ने कहा अरे लड़को ने हमसे बाद आर्डर दिया और उनकी टेबल पे आर्डर आ भी गया।मिसेस जैन ने कहा पक्का मिस्टर बंसल और जैन ने ड्रिंक आर्डर की होगी।वैसे भी लड़के पब जाने को बोल रहे थे ,लेकिन भूख और थकान की वजह से थोड़ा प्लान चेंज करना पड़ा।मुझे बहुत भूख लगी थी ,तो मैंने लड़कियों को कहा मैं ,लड़को का स्टाटर् खा के आती हूँ। मिसेस जैन ने कहा तपस्या देख आना कि ड्रिंक भी टेबल पे था क्या ? मै लड़को के टेबल तक पहुंची,मैंने शतेश की प्लेट से एक पनीर का टुकड़ा उठा के खा लिया। चारो लड़के हँसने लगे कि ,कैसा लगा तवा पनीर।मिस्टर जैन हँसते हुए बोले हम वैसे भी इससे चेंज करने वाले थे ,तुम खा लो। मेरी तो हालत ऐसी की फेक भी ना पाउ और खा भी ना पाउ। खैर वापस मै अपने टेबल पे पनीर चबाते हुए पहुंच गई।मिसेस बंसल ने कहा अकेले -अकेले खा लिया हमारे लिए नही लाई।मैंने कहा बहुत ही बेकार है। तो सब हँसने लगी कि खुद खा रही है ,और हम भूखो को बेकार बता रही हो।हमारा आर्डर भी 30 मिनट के बाद आ ही गया।शायद  वेटर और अटेंडर हमारे खाना घूरने और बार -बार टोकने से परेशान हो  गए थे  :),खाना आते हीं मैंने वेटर को थैंक यू बोला और ताली बजाई। वेटर बेचारा थोड़ा झेप गया और अपनापन दिखाते हुए बोला मैं आपसे पहले मिल चूका हु। मैंने गुस्से के साथ हँसते हुए कहा नहीं।मिसेस जैन ने कहा ये सब इनका खुश करने का तरीका है।हमने खाना शुरू किया।एक भी चीज़ खाने लायक नही थी। हमने वापस वेटर को बुलाके पनीर की एक और डिश आर्डर किया ,और कहा तीखा तीखा बनाने को। सब जैसे -तैसे थोड़ा -थोड़ा खा रहे थे ,रसोइये को कोसते हुए।उसने पनीर की डिश ला दी। भैया कमाल तो ये था कि ,उसने तीखा के बदले खट्टा और क्रीमी बना दिया था।किसी ने एक स्पून भी ठीक से नही खाई सब्जी।कैसे भी खा रहे थे ,तभी होटल का मालिक आया देखा सारा खाना वैसे ही पड़ा ही ,सिर्फ एक एक स्लाइस नान की खत्म हुई थी। उसने सॉरी बोला और कहा नमक ,मिर्च ,निम्बू या आचार ला दू। हमलोग इतने इर्रिटेट होगये थे कि ,कहा नही रहने दे।वो चला गया।मिसेस बंसल कहती है नमक मिर्च ही खाना होता तो होटल क्यों आते :) हद तो तब हो गई जब मालिक दुबारा आता है और पूछता है इनको टू गो करदू। हमलोग हँसने लगे। वो समझ गया और बोला मैडम इंडियन तो कभी -कभी आते है। अमेरिकन के हिसाब से बनाना पड़ता है। कुक ही ऐसा है।हमने कुछ नही कहा तभी लड़के भी हमारी टेबल तक आगये। उनका भी वही हाल था। उन्होंने भी ढंग से खाया नही था और शिकायत भी की मालिक से।हमलोग बिल पेय करके बहार आगये। बिल $200 आया था ,मिस्टर जैन बोले खाया पिया कुछ नही ग्लास तोड़े बारह। हमने कहा चलो अब होटल तो चल ले।मैरिएट में रूम बुक है कम से कम वोतो वसूले।रस्ते में लड़के अपने खाने की कहानी बता रहे थे। मिस्टर बंसल कम बोलते थे पर जब भी बोलते थे सब हंस के लोट- पोट हो जाते।तबी जैन जी ने बताया की बंसल जी तो वेटर को खिलने लगे थे। जब उन्होंने वेटर को कहा की खाना अच्छा नही था ,और उसने कहा नही सब तो इस डिश की बहुत तारीफ करते है। बेचारा वो वेटर दोबारा नही आया ,मालिक को ही भेज दिया :) हमलोग होटल पहुंच गए। लडकिया एक रूम में और लड़के दूसरे रूम में सो गए। हमलोग तो बस जाते ही चेंज करके सो गये।सुबह लड़को ने बताया वो लोग जगे थे और मस्ती कर रहे थे। चलो सुबह का नास्ता बहुत अच्छा था मैरिएट में सबने पेट भर के खाया। फिर तैयार होक घूमने निकल पड़े। आज भी बहुत भीड़ थी। कहि पार्किंग नही मिली। कल वाली जगह पे पार्किंग थी लेकिन हमलोग जाना नही चाह रहे थे। सो पार्किंग के चक्कर में हमने ३/4 राउंड डाउनटाउन और एम्बेसी का लगा दिया। हमने देखा कितने छोटे -छोटे बिल्डिंग थे एम्बेसी के इंडिया के  कम्पेअर में। कोई गार्ड नही बाहर। इन्डोनेशियाई एम्बेसी के आगे बहुत ही सुन्दर "सरस्वती माता" की मूर्ति है। बार -बार हम घूम के एक घोड़े पे सवार व्यक्ति वाले स्टेचू  के पास आ जा रहे थे। बाद में मालूम हुआ वो भी एक अट्रैक्शन था। उसका नाम होनकॉक स्टेचू था। फाइनली तय हुआ वाशिंगटन के बाहर कुछ हो तो देखे,यहां पार्किंग मिलनी मुश्किल है। एक आइलैंड था लेकिन वो २ घंटे की दुरी पर था। जैन जी ने कहा जू चल लेते है 200 साल पुराना है।मिसेस बंसल ने मजाक में कहा तब तो सारे जानवर बूढ़े होने हमें नही जाना।इसी सब में दिन के 2 बज गए थे।तो सबने सोचा घर वापस निकल लेना चाहिए ,नही तो और ट्रैफिक मिलेगेगी।हमलोग घर वापस निकल लिए। रास्ते मैं पिज़्ज़ा खाया फिर आगे बढे।ट्रैफिक फिर मिल गई।बंसल जी कहते है जैसा छोड़ के ट्रैफिक गए थे वैसा ही मिला। सब हँसने लगे। शाक्या जी डीजे का काम कर रहे थे 90 के गाने ,तो कभी आइटम सांग ,तो कभी आर जे नवेद की कॉमेडी सुनते हुए सबको हँसा रहे थे।शाम को हमने कॉफी के लिए गाड़ी रोकी,वही पे एक एक डोनट्स लिया।डोनट्स को केक बना के मिसेस शाक्या से कट करवाया,क्योकि इंडिया टाइमिंग के हिसाब से उनका जन्मदिन हो चूका था।अमेरिका के हिसाब से अगले दिन होता।हमने वहां थोड़ी मस्ती की।फिर गाड़ी में सवार होक घर चल पड़े।रात को 11 टैको बेल से टू गो लिया सबने गाड़ी में ही खाया।मेरा घर सबसे पहले आता था मुझे इस बात की ख़ुशी थी। अंततःमैं अपने घर 11 :30 तक पहुंच गई।सारे दोस्तों को विदा दिया खट्टी मीठी इन दो दिनों के यादो के साथ। सफर कितना भी अडवेंचरस हो ,साथ में आपके दोस्त हो तो सफर का मजा और बढ़ जाता है। हमारे साथ सब उल्टा हो रहा था फिर भी हमलोग मस्ती कर रहे थे।सारे दोस्तों के नाम ये ब्लॉग :)
सुझाव - 1 अगर आप चेरी ब्लॉसम देखने जाये तो ट्रैफिक और भीड़ के लिए मानसिक रूप से तैयार हो के जाये
             2 पार्किंग के लिए जीपीएस को न फॉलो करे बीबी की बात मने
              3  कभी भी ताज में खाने न जाये
  

Sunday 19 April 2015

Cheery blossom adventure part-2

जैसा कि आपसब ने पहले पढ़ा ,हमलोग गाड़ी की पार्किंग की तरफ जा रहे थे।पहले तो पढ़ने के लिए दिल दे धन्यवाद।तो चलिए मेरे साथ इस अचानक एडवेंचर पे।जीपीएस को बहुत बाद में न फॉलो करने का फैसला लिया गया,और अनुमान वाले रस्ते पे सब चले जा रहे थे जहां पडेस्ट्रियन नही था।सब परेशान क्या करे ?मुझे तो बहुत कोफ़्त हो रही थी लड़को से।लड़के चाहे शादी- शुदा हो या कुँवारे बस किसी लड़की की प्यारी सी आवाज सुनी और फॉलो करना शुरु।ये मैंने जीपीएस वाली लड़की के बारे में कहा :) ,भईया एक अनजान लड़की के बताये रास्ते पे जाना मंजूर लेकिन बीबी की बात नही मानेंगे।खैर अब लेट बात मानने से क्या फायदा ?अब तो और सबकी हालत ख़राब क्या करे आगे चलने का रास्ता नही।सबको थोड़ी भूख भी लग गई थी।वापस लड़को ने जीपीएस महारानी को फॉलो करने को कहा।हमलोग भी कुढ़ते हुए बताये रस्ते पे चलने लगे।लड़के लीड कर रहे थे। मैं और मिसेस शाक्या एक साथ चल रहे थे।हमसे दो चार कदम पीछे मिसेस बंसल और जैन चल रही थी।इसका कारण एक तो पेडेस्ट्रियन ज्यादा चौड़ी नही थी ,दूसरा मिसेस जैन को जूती की वजह से दिकत हो रही थी।मेरी इस ब्लॉग को पढ़ने वाली सारी महिलाओ को ये सुझाव है ,कभी भी ज्यादा घूमने वाली जगह पे हील या बिना मोज़े वाली जूती पहन के न जाये।चलने में तकलीफ के साथ पैर छिल भी जाते है।वैसे अगर आप फैशन से कोम्प्रोमाईज़ नही कर सकती तो बहुत अच्छा ,सुन्दर दिखना हर औरत अधिकार है :),हाँ तो हम चले जा रहे थे ,तभी मिसेस शाक्या को एक एक बिल्डिंग के आगे "यूनाइटेड स्टेट इंस्टिट्यूट ऑफ़ पीस"लिखा दिखा।देखा तो मैंने भी था ,लेकिन मंजिल तक पहुचने के चक्कर में क़ुछ कहा नही।तभी वो बोली हद है ,यहाँ तो पीस (शांति ) का भी इन्स्टिटूट खोल रखा है।हमारे इंडिया में तो रिक्से वाला भी ज्ञान देता है।हमसब उनकी बातो से हँस पड़े।चलो इसी बहाने मूड थोड़ा ठीक हुआ।मैं चलते हुए सोच रही थी कि ,मिसेस शाक्या ने ठीक ही तो कहा ,फिर क्यों कभी -कभी यही रिक्शे वाले सब भूल के सारी हदे पार कर जाते है।दोस्तों फिर मै कहानी भटक गई।थोड़ा भटकना भी चाहिए आखिर हम इंसान है :), अंततः हमलोग जे एफ कैनेडी आर्ट सेंटर पहुंचे जहाँ गाड़ी पार्क थी।लेकिन सबके होश ग़ुम,पता तो सही था ,लेकिन वहां पार्किंग नही थी।सबलोग शतेश को बोलने लगे कि ,कही पार्किंग वाली लड़की ने पार्किंग के बदले तुम्हे अपने घर का पता तो नही दिया।मिस्टर जैन ने कहा तपस्या मैंने तभी तुमको कहा था ,जब शतेश अड्रेस लेने में इतना टाइम ले रहा था। मैंने भी मुश्कुरा दिया उनकी बात सुन के।लड़के मजाक बे बिजी थे ,दिस इज़ कॉल्ड बॉयज स्पिरिट ,कहि भी फन ढूंढ लेते है।लड़कियों का चल -चल के हालत ख़राब था ,क्या करे नाजो वाली लडकियाँ बस थक चूर हो जाया करती है।माँ -बाप के प्यार की वजह से लडकिया थोड़ी नाजुक हो जाती है :),मजाक के बीच में मिस्टर शाक्या ने सुझाव दिया बिल्डिंग के गार्ड से पूछते है।अमेरिका में किसी से पता पूछना थोड़ा अटपटा है ,सब जीपीएस महारानी को ही फॉलो करते है।लेकिन कर भी क्या सकते थे महारानी ने एड्रेस तक तो पंहुचा ही दिया था।वो अलग बात थी, पार्किंग नही दिख रही थी।इस वक़्त इंडिया की याद आ गई।सबने मिस्टर शाक्या को बोला ठीक है ,पूछ के आओ हमलोग बिल्डिंग के पास इंतज़ार करेंगे।गॉर्ड ने बताया पता सही है ,थोड़ा आगे जाने पे पार्किंग है।हमारी जान में जान आई।हमलोग उत्साहित होक आगे बढ़ने लगे।लड़के तेज चल रहे थे।तभी मिस्टर नटखट जैन हसते बोले तुमलोग आगे मत आओ वरना हमलोग को मर डालोगी।बहुत शर्म के साथ कह  रहा हूँ ,कि आगे डेड एंड (कोई रास्ता नहीं ) है।वो हँसे जारहे ,हमें लगा अदतनुसार जैन जी मजाक कर रहे है। सो हमलोग भी पहुंच ही गए देखने।सच में रास्ता बंद था।वहां पे दुभ लगी थी।लड़कियों ने तय किया वो अब कहि नही जाएँगी ,लड़के गाड़ी ढूँढ के लए।आर्ट सेंटर मैं प्रोग्राम चल रहे थे ओपरा टाइप।हुमलोगो ने उसके आस -पास देखा लेकिन कहि पार्किंग नही दिखी।थक के हमलोग आर्ट सेंटर के पीछे बने स्लैब पे बैठ गए। लड़कियों ने ना हिलने का प्लान बनया और लड़को को गाड़ी ढूंढने भेज दिया। लड़को ने मोबाइल ऑन रखने को बोल कर, दो अलग दिशा में गाड़ी ढूंढने निकल पड़े।

क्रमशः ----

Friday 17 April 2015

Cherry blossom in Washington DC Adventurous trip !!!!

हमारी जर्नी टू चेरी ब्लॉसम इन वाशिंगटन डीसी।दोस्तों अपनी यात्रा के बारे में बताने से पहले मैं आपको चेरी ब्लॉसम के बारे में बता दू।चेरी ब्लॉसम टोक्यो ,जापान का प्रसिद्ध है।वैसे ये वर्ल्ड में कई जगह होता है।भारत में भी हिमाचल प्रदेश ,उत्तराखंड,जम्मू & कश्मीर ,सिक्किम वैगरा जगहों पे होता है।अमेरिका में भी कई शहरों में होता है।लेकिन वाशिंगटन डीसी का चेरी ब्लॉसम ज्यादा प्रसिद्ध है।वाशिंगटन डीसी अमेरिका की राजधानी है।वैसे तो यहाँ देखने को काफी कुछ है,लेकिन चेरी ब्लॉसम की बात ही कुछ और है।चेरी ब्लॉसम में एक खास किस्म के पेड़ पे फूल खिलते है।पूरा पेड़ सिर्फ   फूलो से लदा हुआ रहता है।ज्यादा तर फूल सफ़ेद या हलके गुलाबी रंग के होते है।ये खाश किस्म के पेड़ जापान ने सन 1912 में अमेरिका को दोस्ती स्वरूप दिया था।कुछ पेड़ो को मेनहट्टन के सकुरा पार्क में लगाया गया और कुछ को टाइडल बेसिन के किनारे वाशिंगटन में।जो दो प्रमुख प्रजाति के पेड है,उनका नाम योशिनो ट्री (सफ़ेद फूल) और क्वांज़ां ट्री (गुलाबी फूल) है।चेरी ब्लॉसम स्प्रिंग(बसंत ऋतु ) यानि की मार्च से अप्रैल के बीच होता है।इसकी डेट भी निर्धारित होती है ,जो मौसम के अनुसार बताये जाते है ,कि किस डेट के आस पास पूरे फूल खिलेंगे।ये तो हो गई चेरी ब्लॉसम की बात।अब कहानी हमारी चेरी ब्लॉसम यात्रा की।
चेरी ब्लॉसम की प्रिडिक्शन के मुताबिक हम चार कपल ने 4 /11 /2015 को वाशिंगटन जाने का प्लान बनाया बनाया।कपल में मिस्टर &मिसेस जैन ,मिस्टर & मिसेस शाक्या ,मिस्टर & मिसेस बंसल और मैं ,मेरे जीवनसाथी शतेश।मुझे पतिदेव कहना कुछ खाश पसंद नही इसलिए जीवनसाथी लिखा 😜।हमलोग न्यू जर्सी से सुबह 9 :45 निकले वाशिंगटन के लिए।न्यू जर्सी से वाशिंगटन चार घंटे की दुरी पे है,लगभग 260 किलोमीटर(162 माइल्स )।मिस्टर जैन के जिम्मे गाड़ी रेंट करना और दो कपल बंसल और शाक्या के साथ मेरे घर तक आना था।हमारा घर वाशिंगटन के रास्ते में ही पड़ता है।यात्रा की शुरुआत तो मस्ती के साथ हुई ,लेकिन आधे रस्ते मे सब परेशान ,कारण ट्रैफिक।हमलोगो ने सोचा था 2 बजे तक पहुंच जायेंगे,फिर उधर ही लॉन्च करेंगे ,ट्रैफिक देख के हमलोगो ने रस्ते में ही खाने का प्लान किया।भारतीय होने के नाते खाने का बेस्ट ऑप्शन चिपोटेले (मेक्सिकन फ़ूड ),थाई या पिज़्ज़ा अगर इंडियन फ़ूड ना मिले तो।सर्वसम्मति से चिपोटले को ज्यादा वोट मिले।हमलोगो ने चिपोटेले में पेट पूजा की और फिर से यात्रा की शुरुआत की।डीसी पहुँचते -पहुँचते 3 :30 हो गए।हमें टाइडल बेसिन जाना था ,जहां चेरी ब्लॉसम वाले पेड़ लगे है।मगर मनो ऐसा लग रहा था पूरा अमेरिका वही जमा हो।इतनी भीड़ पहली बार मैंने देखि थी किसी अमेरिकी पार्क में वो भी फूल देखने केलिए।वैसे भीड़ तो डिज़िनी लैंड में भी थी ,पर पार्किंग की प्रॉब्लम नही थी।खैर काफी ढूंढने के बाद जॉन एफ कैनेडी सेंटर ऑफ़ आर्ट के पार्किंग में जगह मिली।आपको पुरे दिन के पार्किंग का $15 चार्ज लगेगा वहाँ।पार्किंग के बाद हमने पद यात्रा शुरु की।टाइडल बेसिन पहुंचते तो सारी ट्रैफिक की फ्रस्ट्रेशन दूर हो गई।इतना सुन्दर नज़ारा था कि दिल खुश हो गया।मानो ऐसा लग रहा था बादल पेड़ो पे आगए हो।हमरा फोटोसेशन शुरू हुआ।हमें वहां एक अमेरिकन कपल की शादी देखने का भी मौका मिला।अमेरिकन लोगो का अच्छा है ,कभी भी कही भी शादी कर लेते है 😊।टाइडल बेसिन के पास ही लिंकन मेमोरियल है ,जिसमे लिंकन की बहुत बड़ी मूर्ति लगी है।उसके ठीक सामने वाशिंगटन मोन्यूमेंट है।अगर किसी को वाशरूम जाना हो तो लिंकन मेमोरियल के बेसमेंट में टॉयलेट बना है।उसकेलिए भी लम्बी लाइन थी।अगर भारत में ऐसी हालत होती तो आप टॉयलेट जा नही पाते।लिंकन मेमोरियल के बाद हमलोग लेक के किनारे लगे पडो को देखते हुए आगे बढ़ रहे थे।फोटोग्राफी की पूरी कला मिस्टर शाक्या दिखा रहे थे।फोटो लेने का चार्ज उन्हें दे दिया गया था।वो मेरी ,शतेश और मिसेस शाक्या की फोटो लेने में बिजी हो गए।वही मिस्टर जैन थोड़े नॉटी और लेज़ी टाइप के फोटो में लिस्ट इंट्रेस्टेड।वो मिस्टर बंसल साथ आराम से चले जा रहे थे।मिसेस जैन और मिसेस बंसल के थोड़ा गुस्सा करने पे उन्होंने ने बाद में फोटो में सहयोग किया।चलो फाइनली हमारा ग्रुप फोटो ली गई।लेक के दूसरी तरफ जेफ़र्सन मेमोरियल और एम एल के मेमोरियल भी है।हमलोग बस चलते हुए थोड़ा रुक  के देखते जा रहे थे।घूमते -घूमते 8 बज गए और पैर भी दुखने लगे थे।हमलोगो को वापस गाड़ी तक जाना था।मिसेस जैन  कैब करने का सुझाव दिया पर लड़को ने कहा पास है वाक करते हुए चल लेंगे।डायरेक्शन पता करने के लिए मोबाईल के जीपीएस का सहारा लिया गया।कुछी दूर जाने पर नेशनल वर्ल्ड वॉर 2 मेमोरियल मिला।जितनी भी अट्रैक्शन का मैंने जिक्र किया वो सब फ्री है। इनके लिए कोई टिकेट नहीं है। इसके बाद एडवेंचर शरू हुआ।जीपीएस रास्ता कुछ गलत लग रहा था। क्योकि आते वक़्त हमें इतना टाइम नही लगा था।सब अपने अपने मेमोरी अनुसार रास्ता बताने लगे।लडकिया ज्यादा ही थक गई थी।इसलिए एक बार अनुमान वाले रस्ते पे गए ,जीपीएस को न फॉलो करके।आगे जाने के बाद पैडेस्टियन (पैदल चलने की सड़क )ही नही थी।सब परेशान कि अब क्या करे ?


क्रमशः  .......

Thursday 9 April 2015

Love in the time of cholera !!! (Heartbreaking novel)

"लव इन द टाइम ऑफ़ कॉलरा नावेल "नावेल प्राइज विजेता गेब्रियल गार्सीअ मार्क्वेज़ ने लिखी है।आखिर जैसे -तैसे मैंने ये नावेल पढ़ ही डाली।मेरे जैसे -तैसे कहने से ये मतलब है कि ,ये नावेल  बहुत ही सुस्त,अजीबो गरीब और थका देने वाली है। ऐसे लगता है कोई मैराथन चल रहा हो।शुरू में स्लो ,फिर स्पीड ,फिर स्लो, हे भगवान !कई बार किताब उठा के रख  देने का मन होता है ,तो कई बार दो -चार पन्ने पढ़ने के बाद।कभी कहानी बहुत ही रोचक लगती है , तो कभी लगता  है अभी कितना पढ़ना बाकि है?
वैसे मेरे लिए ये काफी कठिन है ,ऐसे महान व्यक्ति के नावेल  के बारे में कुछ कहना।लेकिन एक पाठक के तौर पे मैं अपना मत तो दे ही सकती हूँ।इस नावेल
 को पढ़ने के पीछे दो कारण थे,एक तो ये "मस्ट रीड बुक लिस्ट" में थी ,और दूसरा मार्क्वेज़(लेखक ) का "नावेल प्राइज विनर" होना।
कहानी फ्लोरेंटीनो अरिज़ा(नायक)और फ़ेर्मिना दज़ा (नायिका ) की है।कही पर भी आप नायक या नायिका से खुद को जोड़ नहीं पाते।किताब में नायिका बहुत ही सुस्त,एमोशनलेस और मुझे तो बेवकूफ भी लगी।वही दूसरी तरफ नायक सेक्स अडिक्ट ,रेपिस्ट,चाइल्ड मोलेस्टर।मेरे हिसाब से आलसी,निकम्मा और दिमागी तौर से पागल भी होता है।फ्लोरेंटीनो को फ़ेर्मिना से प्यार हो जाता है। फ़ेर्मिना भी उससे प्यार करने लगती है। फ़ेर्मिना के पिता ने बताया कि ये प्यार नही भ्रम है।फ़ेर्मिना ने पिता की बात मान कर फ्लोरेंटीनो को शादी के लिए मना कर देती है।फ़ेर्मिना फिर अपने पिता और खुद की भी पसंद से एक अमीर डॉक्टर शादी कर लेती है।शादी के बाद वो अपने परिवार और जिम्मेदारी में लग जाती है।उधर फ्लोरेंटीनो फ़ेर्मिना को भूल नहीं पता है। वो सोचता है कि कब फ़ेर्मिना का पति मरेगा?उसके बाद वो उससे फिर से पा लेगा।हद तो ये है कि वो उसका इंतज़ार करता है,और इस इंतज़ार बीच उसने 622 औरतो सेसम्बन्ध बनता है।मुझे समझ नही आया ये कैसे इंतज़ार था। सबसे बुरा तो तब लगा जब एक 14 साल की बच्ची के साथ उसने 76 सालकी उम्र में सम्बन्ध बनाया। वो  भी तब  जब वो उसका गार्डियन था।बाद में उस लड़की ने आत्महत्या कर ली क्योकि फ्लोरेंटीनो उससे अपना नही रहा था।अपने से दोगुनी से भी काम उम्र की बच्ची के साथ शारीरिक सम्बन्ध ,ये कैसा प्यार था मालूम नही।आखिर कर उसका  51 साल ,9 महीने 4 दिन का इंतज़ार ख़त्म होता है। फ़ेर्मिना के पति की मौत होजाती है। जिस दिन उसका अंतिम संस्कार होता है ,उसी दिन वो फ़ेर्मिना को वापस से प्रोपोज़ करता है। फ्लोरेंटीनो फ़ेर्मिना से झूठ कहता है कि अब तक मैंने अपनी वर्जिनिटी तुम्हारे लिए बचा के रखी है।और जैसा की मैंने पहले कहा था की फ़ेर्मिना बेवकूफ औरत है। वो फ्लोरेंटीनो को हाँ कह देती है,और बुढ़ापे  में ही सही दोनों मिल जाते है।
इस किताब में बहुत तरह के प्रेम को दिखाया गया है। लेकिन पढ़ने के बाद आप एक बार ये जरूर सोचते है कि , क्या वाकई  ये प्यार है ? मार्क्विज़ की तारीफ करनी होगी की फ्लोरिनटिनो के इतने बुरा होने पे भी कभी - कभी लगता है उसे फ़ेर्मिना मिल जाये। किताब का नाम भी बहुत सही है एक तरह से फ्लोरेंटीनो का प्यार एक तरह की बीमारी ही है।वैसे किताब का नाम लव इन द टाइम ऑफ़ --- भी हो सकता था।

Wednesday 8 April 2015

KHATTI-MITHI: Gantvya !!!

KHATTI-MITHI: Gantvya !!!: यात्रा पर निकला हूँ , लोग बार -बार  पूँछते हैं ,कितना चलोगे ? मैं मुस्कुरा कर  आगे बढ़ जाता हूँ , कि कहीं तो नही जाना , मुझे इस...

Gantvya !!!

यात्रा पर निकला हूँ ,
लोग बार -बार 
पूँछते हैं ,कितना चलोगे ?
मैं मुस्कुरा कर 
आगे बढ़ जाता हूँ ,
कि कहीं तो नही जाना ,
मुझे इस बार 
अपने तक आना है। 
एक और बेहतरीन कविता मुनि क्षमासागर जी की।

Wednesday 1 April 2015

Ho halla !!!

दो -तीन दिनो से सोशल मिडिया में काफी हो -हल्ला मच रहा है। एक विडिओ और दो तस्वीरों को ले कर।वैसे तो ये रोज  का है।फिर भी मैंने सोचा देखा कि जाये ,क्योकि यह नारी सस्कतिकरण और उनकी आजादी के बारे में है।एक तो विडिओ दीपिका पादुकोण की है ,दूसरी  वो आजकल जो भी करती है उसपे हल्ला जरूर मचता है।विडिओ में उन्होंने अपने हिसाब से नारी स्वतंत्रता की बाते की है, "ईटस माय चॉइस "नाम से। विडिओ अच्छा है ,पर उसकी कुछ बाते मुझे पसंद नही आई  क्योकि "ईट्स माय चॉइस " ।हो सकता है नाईट आउट ,छोटी ड्रेस और शादी में रहते हुए दूसरे से रिश्ता ही उनकी आजादी के मायने हो ,पर ये सब चीज़े आज भी सचाई से कोसो दूर है। अगर छोटी ड्रेस या नाईट आउट से नारी ससक्त होती है तो भैया सभी माता -पिता से सादर अनुरोध है ,कि अपनी लड़कियों को ये सब सहूलियतें  दे। एक तो आपकी बेटी ससक्त बनेगी ,दूसरा हो सकता है नाईट आउट में कोई लड़का मिल जाय फिर तो आपकी दामाद ढूढने की भी चिंता खत्म। उसपे सोने पे सुहागा लव मैरेज तो दहेज़ की भी छुट्टी।फिर शादी में सीना ठोक कर हनी सिंह का गाना  बजवइये "छोटी ड्रेस में  बम लगती मैनु "।ऐसा नही लगता कि किसे क्या पहनना ,कहाँ जाना ,क्या करना है ,उसपे छोड़ देनी चाहिए।जरा उनकी भी सोचिये जो गाँवो में रहती है ,खेतो में काम करती है।उनके पास तो ढंग के कपडे नही उन्हें क्या छोटी ड्रेस की फ्रीडम का अहसास।चलो कोई ज्ञानी नेता गण नारी ससक्ति के नाम पे ड्रेस बटवां भी दे तो उसका क्या? स्कर्ट पहन कर मजदूरी करेगी तो और बवाल। मॉडर्न लोग सोच रहे होंगे की ,दीपिका ने वीडिओ में  जो बाते कही है  वही फ्रीडम  की असली परिभाषा होगी।फिर  तो यामी गौतम,ऎश्वर्या रॉय बच्चन ,प्रियंका चोपड़ा भी सही ही होंगी।खूब फेयर एंड लवली लगाइये,लॉरिअल इस्तेमाल करे और "स्कूटी पे बैठ के कहिये व्हाई बॉयज हव् आल फन " ।वो अलग बात है की गलती से स्कूटी पे किसी लड़के दोस्त को बिठा लिया और पड़ोस वाली ऑन्टी ने देख लिया ,फिर तो घर आने पे आपको फ्रीडम का अहसास हो ही जायेगा। मुझे  तो हँसी  आती है ये सोच के  की नारी सस्क्तिकरण और फ्रीडम के  कितने अलग अलग मायने है।तो भैया दिखावे पे मत जाओ अपनी अकल लगाओ ,वरना आपका हाल भी "आप "जैसा ही होगा।
दूसरी तस्वीर रुपी कौर ने  मासिक धर्म की ली थी और इंस्टाग्राम पे पोस्ट की थी।मुझे इसमें कुछ बुरा नही लगा। हाँ हो सकता है भारतीय होने के नाते हमारी  सभ्यता -संस्किृति हमारी पहचान है। शर्म हया भी कोई चीज़ है। लेकिन भैया जब मॉर्डन बने हो तो कहे का शर्म।या फिर लोगो को लगे ,(ध्यान दे मैंने लोगो लिखा है सिर्फ लड़को नहीं ) कि लड़की हो कर ऐसी बात करना ठीक नही।लेकिन इसमें गलत क्या है ,जिसके साथ बीतेगी वही बता सकता है न।जैसे एक प्रेग्नेंट औरत ही अपनी प्रेग्नेंसी की ख़ुशी या तकलीफ बता सकती है ,न की हम और आप।अपनी सोच को आजाद कीजिए फिर किसी को आजाद करने की जरुरत नही होगी।
तीसरी तस्वीर मंदार देवधर की " दिस मुंबई एंड दैट मुंबई "शीर्षक वाली एक नाबालिक लड़की की नहाते हुए तस्वीर है। बुरा क्या है इसमें ,ये तो साइनिंग इंडिया है ?क्या हमने नही देखा छोटी बच्चियों को रोड के किनारे फटेहाल ,भीख मांगते ,कचड़ा चुनते,और नंगे नहाते ? हो सकता है मंदार ने नंगे लड़के की तस्वीर ली होती ,तो इतना हंगामा नही होता।जहाँ तक महिलाओँ  की सम्मान की बात है  तो ,कभी -कभार बलात्कार ,जींस पहने पे पिटाई ,रिस्ता न कबूलने पे एसिड डालना,  और छेड़ना तो बहुत ही छोटी या यु कहो मामूली बात है। जिस छोटी बच्ची की नगी तस्वीर पे हंगमा है ,उन जैसी कितनो को ह्यूमन ट्रैफिकिंग का शिकार होना ,अपने से दुगने तिगने उम्र वालो से ब्याह कर देना होता रहता है। फिर भी हम गर्व से कहते है ,हमें नाज है की हम महिलाओ का सम्मान  करते है। वो अलग बात है की बीच -बीच में कुछ पढ़े लिखे नेता गण कहते है की, जितनी भी बद्तमीजिया महिलाओ के साथ होती है उसका कारण  महिलाये खुद है। वह रे मॉडर्न देश और मॉडर्न देशवाशी।