Tuesday 26 April 2016
KHATTI-MITHI: शाम की सैर और ग़ालिब का ख़ुमार !!!
KHATTI-MITHI: शाम की सैर और ग़ालिब का ख़ुमार !!!: तपस्या - हाथ खींचती हुई ,चलो तो कुछ नहीं होता।एक -आध बार तो जा ही सकते है। शतेश - देखो तो कौन जा रहा है उधर ?जिनको भी जाना होता है उस तरफ...
शाम की सैर और ग़ालिब का ख़ुमार !!!
तपस्या - हाथ खींचती हुई ,चलो तो कुछ नहीं होता।एक -आध बार तो जा ही सकते है।
शतेश - देखो तो कौन जा रहा है उधर ?जिनको भी जाना होता है उस तरफ ,उनके लिए वाकिंग ट्रेल बनी है।वैसे भी उधर के घास थोड़े बड़े है।
तपस्या -तो क्या हुआ जूते तो पहने है।और ऐसा नहीं है ,मैंने कभी -कभार लोगो को उधर जाते देखा है।
शतेश - तुम मानोगी नहीं ?
तपस्या -नहीं ना।
शतेश -तो फिर चलो।
सिगनल पर खड़े होकर हमदोनो रेड लाइट के वाइट होने तक हाँ -ना करते रहे।अमेरिका में पैदल चलने वालो को क्रॉसिंग के समय एक बटन दबाना होता है।ये बटन हर कोने पर एक खम्भे से जुड़ा होता है।आप बटन दबाओ ,थोड़ी देर में सफ़ेद लाइट सिगनल बोर्ड पे दिखेगी।फिर आप आराम से क्रॉस कीजिए।आपके लिए तबतक गाड़ियाँ रुकी रहेंगी।पैदल चलने वालो की भी यहाँ बहुत इज़्ज़त है भाई।क्रॉस करके हमदोनो पैदल चलने वाले रास्ते पे ना जा के उसके उल्टा घास पे चलने लगे।तक़रीबन रोज शाम की चाय के बाद टहलने निकलते है हमदोनो।इन तीन सालों में एक यही एक्सरसाइज है जिसे हमने दिल से किया है।सैर के वक़्त कितनी कहानियाँ हमने कही -सुनी होंगी।आज की कहानी कुछ यूँ है - मेरा कई दिनों से वॉकिंग ट्रेल के दूसरी तरफ जो जंगली घास थे ,उनपे चलने का मन था।अपने तर्क या ,यूँ कहे प्यार से मैंने शतेश को मना लिया ,उधर चलने को।दोनों हाथ पकड़ कर चले जा रहे थे।रास्ता थोड़ा लम्बा था।मौसम भी मेहरबां।हल्की -हल्की हवा चल रही थी।वो थोड़े लम्बे घास हवा के साथ हमारे पैरो से लिपट रहे थे।हमदोनो हमेशा की तरह बातों में गुम थे।चलते हुए शतेश पूछते है -ये बताओ तपस्या तुम्हे ये ऊटपटांग चीज़े ही क्यों अच्छी लगती है ? कभी तुम्हे मिट्टी के मटके फोड़ने होते है।कभी तुम सड़क के किनारे लगे बलून को फोड़ने की बात करती हो।कभी रोड पे पड़े खाली केन के ऊपर कूद के आवाज़ निकलती हो।कभी कहती हो -शतेश ये जो बड़ी वाली ग्लास की बल्डिंग है ,उसपे पत्थर मरू तो सारे एक साथ भररा जायेंगे क्या ? मूवी की तरह।तुम्हे तोडना -फोड़ना अच्छा लगता है क्या ? मैंने कहा नहीं तो ,देखो तुम तो सही -सलामत हो :) शतेश फिर बोले ,अच्छा छोड़ो ,ये बताओ कल हमलोग मंदिर गए थे।वहाँ एक जोड़ा सगाई कर रहा था।तुम मुझे लेके चली गई उनको बधाई दिलवाने।जबकि हमलोग उन्हें जानते तक नहीं थे।मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था।मैंने हँसते हुए कहा -यू नो हार्मोनल चेंजेज।वैसे तो ये हर महिला की समस्या है।पर मेरे साथ कुछ ज्यादा ही इमबलनेंस है।हमें पता नहीं होता कि कब गुस्सा आ जाये ,कब प्यार।पल में हँसी तो अगले पल रोना।वैसे कल मुझे उन दोनों को देख के बुरा लग रहा था।सोचो उनकी लाइफ का इतना महत्वपूर्ण दिन और सिर्फ तीन लोग।वो भी उनकी उम्र के।माँ -बाप ,रिश्ते -नाते वाले कोई थे ही नहीं।दोनों रिंग पहनाने के बाद ,सिर्फ फोटो खिचवाये जा रहे थे।साफ़ लग रहा था कुछ मिसिंग था।तुमने देखा जब हमने उन्हें बधाई दी।दोनों कितने खुश हुए।उनके चेहरे की चमक बढ़ गई थी।कोई जरुरी नहीं ख़ुशी देने के लिए जान पहचान होनी चाहिए।शतेश मेरे हाथ को और जोर से पकड़ते हुए बोले -तपस्या आई लव यू डिअर।मैंने कहा डिट्टो और दोनों हँस पड़े।शतेश बोले दो दिन से तुम ग़ालिब के बारे में देख रही हो ,कुछ बताओ मुझे भी।वो ऐसा है कि, शतेश नावेल या आर्ट मूवी कम ही देखते या पढ़ते है।कभी कोई क़िताब ली भी तो चार पन्नो के बाद ,बाबू बहुत पढ़ लिया।थक गया हूँ।और फिर किताब रख देते है।पर कहानी सुनना पसंद है इन्हे।तो तय हुआ कि, मैं जो भी किताब पढ़ूँ या अच्छी मूवी देखूँ उसकी कहानी इन्हे सुना दिया करूँ।चलते -चलते हमदोनो को 15 -20 मिनट हो गए थे।जंगली घास का रास्ता भी ख़त्म हो चूका था।सामने एक आर्टिफीसियल लेक के किनारे लगे बेंच पर हमदोनो बैठ गए।बैठे -बैठे मैं गुनगुनाने रही थी।शतेश बोले तो बताओ आज की ताज़ा ख़बर।मैं सामने पानी में तैरते वुड डक के झुण्ड को देख रही थी।गुनगुना रही थी।शतेश बोले अरे बोलो भी।मैंने हँसते हुए कहा -"हम है मुश्ताक और वो बेजार या इलाही ये माजरा क्या है"।शतेश बोले कुछ समझ नहीं आया।मैंने कहा समझ तो मुझे भी ग़ालिब के कई शब्द नहीं आये।आज पुरे दिन गूगल किया शब्दों का।इसका मतलब है -मै हूँ परेशान और तुम शांत/आराम से हे भगवान् ये क्या हो रहा है।ये गज़ल अभी के लिए ठीक हुई ना ,मैं गुनगुना रही हूँ और तुम सवाल पूछ रहे हो :) काश मैंने कुछ उर्दू /फ़ारसी सीखी होती तो बात -बात में गूगल नहीं करना पड़ता।एक तो चुलबुल भी ना जब कुछ पूछना हो तो फ़ोन आउट ऑफ़ रीच हो जाता है उसका।आपको बताया था ना एक दोस्त है।उससे पूछूंगी शब्दों का मतलब,पर वो तो मुझसे भी बोका निकला।बोलता है इरादा क्या है उर्दू /फ़ारसी सिखने का ? इसकी बहुत लम्बी कहानी है।शतेश बोले कोई बात नहीं।बहुतों को नहीं मालूम होता ,जैसे की मुझे या फिर वक़्त नहीं होता इतना समझाने का।इसमें बुरा क्या मानना।वैसे भी तुम मेरी गूगल रानी हो।नहीं कोई तो वही से सीखो -समझो।मैंने कहा हाँ वो तो है।अच्छा जाने दो इसे पर ,मुझे एक बात समझ नहीं आई शतेश चुलबुल के पास ढ़ेरो किताबें थी ,पर उसमे ग़ालिब कही नहीं थे।ना ही उसने कभी ग़ालिब के बारे में मुझे बताया।हालांकि कई बार उसने बेग़म अखतर की आवाज में -ये ना थी हमारी क़िस्मत के विसाल -ए -यार ( प्रेम से मिलना )होता ,अगर और जीते रहते ,यही इंतज़ार होता ,सुनाया था।मुझे दो दिन पहले ही मालूम हुआ कि ,ये ग़ालिब की रचना है।मालूम है ,पहले मै कई बार चीड़ जाती थी कि ,क्यों पका रहे हो भाई।ऑफिस से आओ और दिन भर की किचकिच के बाद आ -आ सुनो।कितनी पागल थी ना मैं।शतेश हँसते हुए बोले और अब।मैंने कहा जो भी है ,एक बात तो है मेरे ज्ञान का आधा श्रेय मेरे भाई को जरूर जाता है।वैसे इसमें दिल्ली का भी बहुत योगदान है।कई बार बिजली ना होने पर दोनों भाई -बहन छत पर घूमते थे।उसी दरमियान चुलबुल मुझे बहुत कुछ सुनाता ,बताता।आपको मालूम है चुलबुल गाता भी बहुत अच्छा है।पकड़ -पकड़ के मुझे "सुन ना बहिन" देखो ये ऐसे कवी, ये वो शायर ,ये हिन्दुस्तानी क्लासिकल ,तो ये सूफ़ी के मज़ार के पीछे की कहानी ,तो कभी अमृता प्रीतम ,तो कभी पकिस्तान बटवारा ,कभी बाबरी कांड ,कभी किताबी बाते तो कभी एक साथ बैठ के आर्ट मूवीज़ देखना ,फिर लड़ना ओह ! क्या वक़्त था वो।मैं थोड़ी इमोशनल हो गई।मुझे अपनी तरफ खींच के हँसने हुए शतेश बोले क्या हुआ फिर से हार्मोनल चेंजेज।मैंने कहा चलो अब घर चले।देर हो गई।लौटते वक़्त हमलोग वॉकिंग ट्रेल से आ रहे थे।रास्ते में मुझे ग़ालिब के जो एक दो शेर याद थे ,शतेश को सुनाए जा रही थी।"हज़ारो ख़्वाहिशें ऐसे की हर ख़्वाहिश पे दम निकले ,बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले"।मतलब ये कि -मेरी बहुत सी इक्षाये पूरी हुई लेकिन बहुत सी अभी बाकी है शतेश बाबू।शतेश बोले जैसे की ? मैंने कहा मेरे भाई का यहाँ ना होना।शतेश ने कहा उदास ना हो।उज्जवल जरूर आयेगा,नहीं तो हम तो जायेंगे ही।कुछ और याद है तो सुनाओ।मैंने कहा तो सुनो -"ग़ालिब ने यह कह कर तोड़ दी तस्बीह (माला ) गिनकर क्यों नाम लू उसका जो बेहिसाब देता है"।और तो देखो शतेश आज के माहौल के हिसाब से ग़ालिब ने 100 साल पहले ही क्या लिख दिया था-"जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौज़ूद, फिर ये हंगामा ये खुदा क्या है"
ग़ालिब की रचनाएँ तो अनमोल है।एक और शेर है जिसे सुनकर मै रोई थी शतेश फिल्म देखते वक़्त -"तेरे वादे पर जिए हम तोह यह जान झूठ जाना ,कि ख़ुशी से मर ना जाती अगर ऐतबार होता"।इसका मतलब ये कि ,ये ना समझो कि मैं तुम्हारे वादे पर जी रही थी।अगर मुझे तुम्हारा यकीन होता तो ख़ुशी से मर गई होती।
जो मुझे सबसे ज्यादा पसंद आई वो कुछ इस तरह थी -
जो मुझे सबसे ज्यादा पसंद आई वो कुछ इस तरह थी -
* "हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है ,तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़ -ए -गुफ़्तगू (बात का तरीका ) क्या है ?
जला है जिस्म जहाँ दिल भी, जल गया होगा, कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजु (खोज,ढूँढना )क्या है ?
रगों में दौडते फिरने के हम नहीं कायल ,जब आँख से ही न टपका तो ,फिर लहू क्या है ?
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैरहन (कपडा,शर्ट )हमारी जेब(शर्ट का कॉलर )को अब हाज़त -ये -रफू क्या है "
आख़िर में सारे दोस्तों के नाम ग़ालिब का एक पैगाम मेरे कलम से -"रफ्तार कुछ जिंदगी की यूँ बनाये रख ग़ालिब कि ,दुश्मन भले आगे निकल जाये पर दोस्त कोई पीछे ना छूटे"।
Tuesday 19 April 2016
KHATTI-MITHI: बिहार ,बियाह अ हमार ब्लॉगस्कोप !!!
KHATTI-MITHI: बिहार ,बियाह अ हमार ब्लॉगस्कोप !!!: बाइस्कोप तो नहीं है मेरे पास,पर ब्लॉगस्कोप के द्वारा ले चलते है ,आपको बिहार के बियाह में।चले से पहलइहे बता देत बानी बियाह से हसी -मजाक के ...
बिहार ,बियाह अ हमार ब्लॉगस्कोप !!!
बाइस्कोप तो नहीं है मेरे पास,पर ब्लॉगस्कोप के द्वारा ले चलते है ,आपको बिहार के बियाह में।चले से पहलइहे बता देत बानी बियाह से हसी -मजाक के उम्मीद रखेम सभनी।ना त बाद में कह देम भाक तेरी कुछु सिखहूं के ना मिलल।त चली सभनी के "इन्द्राणी निवास" बियाह के खट्टा -मीठा बात के मजा लेवे।मेरे देवर की शादी थी।बिहार के हर प्रान्त में लगभग एक जैसे ही रीति -रिवाज़ होते है।जो मुख्य रस्मे है वो बताती हूँ।बियाह की शुरुआत -सत्यनाराण की पूजा या फिर पार्थिव पूजा से होती है।फिर "हल्दी कुटाई" -जिसमे शादीशुदा औरतें कच्ची हल्दी को कूटने के बाद दूल्हे /दुल्हन को लगाती है।फिर होता है "चुमावन " इसमें दूल्हा /दुल्हन के अँजुली में पीला चावल रखा जाता है।फिर घर की औरते उसमे से चावल लेकर दूल्हा /दुल्हन के ऊपर छिड़कती है।एक फोटो चुमावन की
ये रस्म लगभग बार -बार होता है।शादी खत्म होने तक।फिर बारी आती है "तिलक" की -इसको तो आप सभी भली -भाती जानते होंगे।कहते है ,सीता जी को उनके पिता ने गिफ्ट के तौर पे सोने -चाँदी ,हीरे -जवाहरात दिए थे।वही से ये प्रथा शुरू हुई और तिलक के नाम से समाज में स्थापित हो गई।ये राम -सीता की कहानियों ने समाज में कुछ ज्यादा ही छाप छोड़ा है।राम जी तो आये दिन मार-काट करवाते रहते है।माने कह रहे है।इस बात को दिल से नहीं दिमाग़ से लगाइए।चलिए तिलक में पहुँचते वरना खाना ख़त्म हो जायेगी।तिलक में गिफ्ट रूपी दहेज़ वधू पक्ष वाले वर पक्ष को देते है।हाई टेक जमाना है भाई ,हम सोने चाँदी के अलावा ,फ्रिज ,कूलर ,टीवी ,सोफा बेड सब देते- लेते है।समझिए अगर आपने नया घर बनवाया है ,और ब्याह लायक लड़का है, तो किसी चीज़ की खरीदारी में पैसा ना लगाए।बस बेटे का ब्याह तय कर दे।लीजिए घर सेट।बेटा का क्या है ,वो भी सेट ही समझिए।आगे बढ़ते है "मटकोर" की तरफ -इस रस्म में मिट्टी कोडने जाते है।कुछ बोने के लिए क्या ? अरे नहीं यार हर बात में लॉजिक क्यों घुसेड़ रहे हो ? मिटटी को लाके मण्डप में रखने के लिए।इस रस्म में तो भगवान् कसम औरतो की लाज लाश में बदल जाती है।ये गाली की बौछार।माने मिट्टी कोडए की समय जो गाने के रूप में गलियाँ दी जाती है पूछो मत।औरतो को इसी बहाने एक से एक गाली देने का मौका मिलता है।जिसको गाली दी जा रही होती है ,वो लड़के /लड़की की माँ ,बहन ,भाभी ,चाची ,बुआ,मौसी कोई भी हो सकती है।ये देखो चाची ने बुआ को गाली गाई तो बुआ भी कहाँ कम जबाबी गाली शुरु।कुछ औरते इधर से तो कुछ उधर से दोनों का साथ देती हुई।हँसी -ठहाकों -गालियों के बीच शायद सबके मन में यही भाव रहता हो -व्हाई शुड मेन्स हैव ऑल द फन ओ वुमनिया ओ ओ वुमनिया।पहले बड़े घर की बहू -बेटियाँ भी शादी -ब्याह में गीत के रूप में गालियाँ गाती थी।हँसी -मजाक,छेड़ -छाड के तौर पर।हर रस्म के बाद गीतों के रूप में एक दो गारी गई जाती थी।पर अब पढ़े -लिखे परिवार की आड़ में ये सब लुप्त होते जा रहा है।गारी तो छोड़िए अब तो लोक गीत,शादी के गीत भी लुप्त हो रहे है।मुझे खुद नहीं आता दूसरों को क्या कहूँ ? जाने दीजिये जो लुप्त हो रहा है ,होने दे।किसे फरक पड़ता है।इससे शादी तो नहीं रुक जायेगी ? तो बढ़िए आगे।पहुँचते है ,"मण्डपछाधन /मड़वा" बनाने के लिए।मंडप बाँस ,मूंज (झोपडी की घास),केले के पेड़ ,आम की पत्तियों से बनाया जाता है।ये दुल्हन के घर बनता है।जहाँ ब्याह की रस्मे होंगी।मंडप के बीच हरीश (हल जोतने के काम आता है ) लगाया जाता है।शायद इसका कारण हो दोनों का जीवन हरे -भरे खेत जैसा हो।फिर बात आती है "परिछावन" की।बारात निकल रही है।घर की औरते दूल्हे को बुरी नज़र से बचाने के लिए परिछावन करती है।होता क्या है -आटे के छोटे -छोटे टुकड़े रखे होते है ,उसके साथ कुमकुम ,हल्दी ,दियाऔर एक लोढ़ा रखा रहता है।लोढ़ा मसाला पीसने के काम आता है।अरे वही जो सिलबट्टे के सिर पे चढ़ा रहता है,देखा नहीं क्या ? हाँ तो ,बारी -बारी से धकामुकी के बीच औरते दूल्हे को टीका करती है।आरती दिखती है।आटे के गोले को तोड़ कर दूल्हे के सिर के ऊपर से फेंकती है।अब बारी आती है लोढ़े की ,उसे दूल्हे के दोनों गालों से छुआया जाता है।मुझे इसका लॉजिक नहीं मालूम।हो सकता हो इस लोढ़े का गुण सामने खड़े लोढे को ट्रांसफर किया जाता हो :P जा तू आज से लोढ़ा बन ,पत्नी के सिर पर बैठे रहना :) दोनों एक दूसरे की खुशी ,दुःख में एक साथ पीसते रहना।एक के बिना दूसरा किसी काम का नहीं चलेगा।खाली पत्थर रह जायेगा।परछावन की बात हो तो नेग भला क्यों पीछे रहे।सच मानिये तो बियाह नेग ,गीत -संगीत ,हँसी -मजाक़और लोगो के बिना फीका ही लगता होगा।आप किसी काम में हो तभी कोई चिल्लाएगा ,अरे भाभी कहा बाड़ी जी ? काहे लुकाइल बाड़ी नेग दी।अभी तो ये आर्केस्ट्रा वाले की आवाज थी।हजामीन (ठाकुर की पत्नी ,शोले के ठाकुर की नहीं बाबा ,अंग्रेजो बार्बर की वाइफ ) को अगर आपने गलती से 50 /100 का नोट दिया ,हजामीन हाथ चमका कर बोलेगी राखी रउरे।कहाए के लईका के भाभी अउरी 50 /100 रुपया दे तानी।हजामीन के तो इतने नेग थे कि, मैंने और दीदी ने उसे पटा लिया था।मैंने कहा बार -बार का लेम ? शादी के अंत में एके बार दुनो के तरफ से 1000 रूपये ले लेम।दीदी मुझे बोलती है ,तपस्या तुम सच में पागल हो 500 बोलना था ना।मैंने कहा वही तो किया 500 आपकी तरफ से 500 मेरी तरफ से।दीदी ने सिर पकड़ लिया :) फिर आई विडिओ ग्राफी वाले के बारी -मुझसे कहता है ,भाभी है ना जी आप।आपसे तो 1000 से कम नहीं लूँगा।इनलोगो को लोग बता देते है ,कौन भाभी है ,कोन माँ कौन मौसी।मैंने दीदी की तरफ देखा और 100 रूपये दिए।वो बोला आपसे तो 1000 के नीचे नहीं लूँगा।आप तो अमेरिका रहती है।मेरा एक तो अमेरिका -अमेरिका सुन के दिमाग का दही हुआ था।इसने फिर से साँप के बिल में हाथ दाल दी।मैंने 100 रुपया भी पर्स में रख लिया।बोला आप ही थे ना ,मेरे शादी के विडिओ कैसेट बनाने वाले ? इतना बेकार वीडिओ कैसेट मैंने देखा नहीं।वो थोड़ा सकपकाया बोला ,हुआ क्या था कैसेट में ? मैंने कहा हर जगह आप मुझसे दुश्मनी निकाल रहे है।कही मुझे झरने से गिरा रहे है ,कही दिल बना कर चक्कर लगवा रहे है।कभी फूल के बीच में कैद कर दिया ,तो कही शतेश के आगे पीछे -ऊपर -नीचे करवा रहे है।ये बताइए शादी बिहार में हुई थी ना ? तो कैसेट में कंगारू ,मैपल ट्री ,बर्फ ,एयरोप्लेन कहाँ से आ गया ? ऊपर से गाने तो आपने ऐसे डाले है ,कि सुन कर कैसेट बंद करने को जी चाहता है।आपको ढंग का एक भी भोजपुरी गीत नहीं मिला ? भोजपुरी शादी और भर -भर के फ़िल्मी गाने ठूस दिया।गाने भी वही ,आज मेरे यार की शादी है ,पापा मै छोटी से बड़ी हो गई , सात फेरो के सतो बचन।इसकी जगह आप जबतक पुरे ना हो फेरे सात नहीं डाल सकते ? भाई वो तो घबड़ा गया।बोला देखिये ये सब मिक्सिंग वाले की गलती है।आप गुस्साये मत।मत दीजिये पैसा।और भाग गया।बारात चली गई।वर पक्ष के यहाँ रात को खाने -पीने के बाद "डोमकच" होता है।जिसमे औरते ,लड़कियाँ लगभग रात भर नाचती -गाती है।मुझे नहीं मालूम इसका नाम डोमकच क्यों पड़ा ? शायद डोम जाती के शोर शराबे से जोड़ा गया हो।वो क्या है ना ,बिहार में पहले नीची जाती वाले शाम को शराब पी के या यूँ भी हल्ला -हंगामा करने लगते थे।सो किसी ने इसी से जोड़कर नाम रख दिया होगा।कृपया इसे ऑफेंसिव ना समझे।उधर वधू पक्ष के यहाँ मंत्री पूजन होता है ,बारात के पहुँचने पर।जिसमे दुल्हन के घर के बुजुर्ग पूजा पर दूल्हे के साथ बैठते है।फिर होता है "जयमाला "जो आप सब अच्छी तरह से जानते ही है।ये रस्म कम फोटोसेशन ज्यादा होता है।इसके बाद "गुरहथनी या भसुर निरक्षण" होता है।पहले तो ये बता दूँ ,ये भसुर कोई दैत्य लोक का नहीं ,दूल्हे का बड़ा भाई होता है।मुझे सारे रिश्तों के नाम में ये मज़ेदार लगता है।मानो भैसासुर :) ये रस्म दूल्हे का बड़ा भाई अपना या चचेरा कोई भी कर सकता है।बस उम्र में दूल्हे से बड़ा होना चाहिए।इस रस्म में वो दुल्हन को गिफ्ट के रूप में गहने ,कपड़े ,श्रृंगार के सामान आदि देता है।साथ ही जहाँ लड़का लड़की को मंगलसूत्र पहना है ,वैसे ही एक ताग -पात ढ़ोलना होता है ,जो भसुर दुल्हन के सिर पर रखता है।भसुर का नियम बड़ा ही कठोर है।उसे अपनी भावे यानि दुल्हन से दूर -दूर रहना होता है।माने एक दूसरे से टच नहीं होना चाहिए ,एक बेड पर बैठना नहीं और भी बहुत कुछ।थैंकफूली मेरे भसुर यानि बड़े भईया बहुत कूल है।कहते है जिस कमरे में है उसकी जमींन तो एक ही है ,इसका क्या करें।अब आते है दो दुश्मन आमने -सामने ढंग से।माने दूल्हा -दुल्हन।3 /4 घंटे की फुर्सत।बाकी लोग खा -पी आर्केस्टा देखते है ,या सोते है।ये दोनों और कुछ औरते रात जगा करती है ,विवाह सम्पन होने तक। "कन्यादान" होता है ,सबसे इमोशनल समय।पिता अपने दायां में लड़की की माँ का दायां हाथ लेता है ,उसके ऊपर दूल्हे का दायां हाथ और सबसे ऊपर दुल्हन का दायां हाथ सबको कवर किये हुए।औरते भी इस वक़्त इतने रुलाने वाले गीत गाती है कि कोई भी रो दे।ओह! मै इमोशनल हो रही हूँ।पिता और माँ अपनी बेटी का दान कर मंडप से चले जाते है।विवाह आगे फेरो और सिंदूर दान से सम्पन होता है।फेरा तो आप सब को मालूम ही होगा।इसमें 7 वचन होते है जो मुझे ठीक से याद नहीं।फिल्मों में दिखाते रहते है ना देख लीजिएगा।मुझे बस एक ही याद है ,जिसकी हामी के लिए शतेश मान नहीं रहे थे -मैं कोई लेन -देन ,अपने घर के कार्यो में या किसी को कुछ देने या खर्च से पूर्व अपनी पत्नी से सलाह लूँगा।पंडित जी ने जब ये बोल तो शतेश बोले सब के लिए हाँ है ,पर ये थोड़ा मुश्किल है।मुझे कुछ लेना हो और तपस्या ने मना कर दिया तो ? पंडित हैरान हँस के बोले अरे बाबू अभी बोल दीजिये ना।मेरे मामा का लड़का ,मेरे चचेरे भाई और मेरा भाई बोले ना पंडित जी जब ले ठीक से हाँ ना कहिये आगे के वचन ना होइ :) बेचारे शतेश को बहुमत और मेरे भाईयो के आगे झुकना पड़ा।सिंदूरदान हुआ ,बियाह ख़त्म।कुलदेवता का आशीर्वाद ले ,कोहबर घर में (पूजा घर ) बड़ो का आशीर्वाद ले।दुल्हन की विदाई हुई।मायका सुनसान हो गया और ससुराल में रौनक आ गई।फिर ससुराल में मुँह दिखाई सबसे अनकम्फर्टेबल रस्म।जिसमे सब दुल्हन को देखते है ,और गिफ्ट देते है।लास्ट बट नॉट लिस्ट चौठारी -इसमें अपने कुलदेवता ,ग्राम देवता सबको जाके लड़के की माँ प्रणाम करती है ,कि हे देव लोग आपकी कृपा से ब्याह संपन्न हुआ।हे देवताअपना आशीर्वाद बनाए रखना।Friday 15 April 2016
KHATTI-MITHI: प्रेम और मर्यादा की पीड़ा ,अध्याय दूसरा !!!!
KHATTI-MITHI: प्रेम और मर्यादा की पीड़ा ,अध्याय दूसरा !!!!: आज की कहानियाँ वास्तविक है।इसका जीवित और मृत व्यक्तियों से सबंध हो सकता है।इसका उद्देश्य ज्ञान बाँटना तो बिल्कुल भी नहीं है।किसी कारण वश आप...
प्रेम और मर्यादा की पीड़ा ,अध्याय दूसरा !!!!
आज की कहानियाँ वास्तविक है।इसका जीवित और मृत व्यक्तियों से सबंध हो सकता है।इसका उद्देश्य ज्ञान बाँटना तो बिल्कुल भी नहीं है।किसी कारण वश आप संतुस्ट नही हो पाये तो ,ये आपकी जिम्मेदारी है।मेरा उद्देश्य सिर्फ अभिवक्ति है।लिखने के क्रम में एक जानवर के नाम का प्रयोग किया गया है।जो कि जानवर की गलती हो सकती है।या फिर उस शब्द को बनाने वाले की।इस ब्लॉग को आप पिछले ब्लॉग "प्रेम और मर्यादा की पीड़ा" का दूसरा अध्याय भी समझ सकते है।तो फिर कामदेव की जय से कहानी शुरू करती हूँ।हुआ यूँ कि ,बारहवीं की पढ़ाई के लिए मुझे पटना भेजा गया।लड़कियों का हॉस्टल फुल हो चूका था।मेरे रहने का इंतज़ाम माँ के ऑफिस के एक स्टाफ़ के यहाँ किया गया।मैं एक पेइंग गेस्ट की तरह रहने लगी।बाद में मै उस घर की सदस्य जैसी बन गई थी।जिनके यहाँ रहती थी ,उनको दो लड़की और एक लड़का था।अंकल जॉब की वजह से बाहर रहते थे।ऑन्टी पटना रह के बच्चों की पढ़ाई- लिखाई में जुटी हुई थी।उनकी बड़ी लड़की ,मेरे साथ ही मेरे कॉलेज में पढ़ती थी।थोड़ी मुझसे बड़ी थी।मैं उन्हें दीदी कहती थी।एक शाम हमलोग बालकनी में खड़े होकर बाते कर रहे थे।ऑन्टी एक लड़की को जाते देख बोली -हे गे गुडिया देखै छेे की हालत हो गयैल छे ?गुड़िया उनकी बड़ी बेटी।ऑन्टी गुडिया दी को सामने जाती हुई लड़की दिखा रही थी।ये माँ लोग भी ना दूसरों की कहानी सुना -सुना कर इनडायरेक्ट वे में अपनी बेटियों को आगाह करती रहती है।सीधे नहीं कह सकती देखो प्यार -व्यार के चक्कर में मत पड़ना।पढाई पर ध्यान देना।तो सामने जो लड़की जा रही थी ,उसी मुहल्ले की थी।पढ़ने में बहुत होशियार।सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही थी।तूफान तब आया जब उसे अपने पड़ोस के एक लड़के से प्यार हो गया।और लड़का भी क्या उसके घर के आगे जो दूकान थी ,वहाँ दिन भर बैठा रहता था।आने जाने वाली लड़कियों को छेड़ना उसका काम था।सुना है प्यार अँधा होता है।यहाँ भी अंधेपन वाली बात काम कर गई।दोनों ने भाग के शादी कर ली।दो महीने बाद वापस घर आये।पहले तो दोनों के घरवालों में खूब झगड़ा हुआ।लड़की के घरवालो ने द फेमस डायलॉग मारा - जा तू आज के बाद हमारे लिए मर गई।वही गालियों के साथ ,लड़के के घरवाले ने बेटे का मोह करके दोनों को घर में रख लिया।अब कहनी का सामना सच्चाई से होता है।लड़का तो नालायक था ही।फिर से दोस्तों के साथ दूकान पर बैठने लगा।लड़की पढ़ी लिखी।जाहिर सी बात थी कि ,थोड़ा स्वाभिमान था उसमे अभी।उसने पास के एक प्राइवेट स्कूल में मास्टरनी की नौकरी कर ली।घर के कामकाज़ ,स्कूल, जिम्मेदारियो और समाज के तानो के बीच उसके सारे सपने टूट गए।ऑन्टी कह रही थी -पहले लोग इसकी मिशाल देते थे।और देखो आज भी मिशाल ही दे रहे है।क्या थी और क्या हो गई ? मैंने शादी से पहले उसे देखा नहीं था।मेरे वहाँ रहने के 6 महीने पहले की ये कहानी थी।अभी तो वो मुझे एक बीमार लड़की जैसी दिखती थी।गली में कभी उसे सिर उठा के चलते नहीं देखा।कहीं इसकी वजह इस गली का अब ससुराल बन जाना तो नहीं था ? खैर ,अब दूसरी कहानी पटना की ही।मेरी 11 वी की परीक्षा हो चुकी थी।मै और गुड़िया दी क्लास करके घर आ रहे थे।रास्ते में एक हनुमान मंदिर पड़ता था।वहाँ बहुत भीड़ लगी थी।सोचा जा के देखे।एक तो भीड़ उसपे वहाँ पुलिस को देख हमलोग वापस घर आ गए।दूसरे दिन एक ख़बर आग की तरह हर जगह फैली थी।खबर ये थी कि -हनुमान मंदिर में एक लड़की को किसी लड़के ने सिंदूर लगा दिया था।यहाँ मामला कुछ उल्टा था।लड़की हर मंगलवार को उस मंदिर में पूजा करने जाती थी।लड़के को उससे प्यार हो गया।उसने लड़की को मंदिर में प्रपोज़ किया।और जैसा लगभग हमेशा होता है ,लड़की ने मना कर दिया।लड़का वहाँ से चला गया और लड़की पूजा करने लगी।थोड़ी देर में लड़का सिंदूर लेके वापस आता है और ध्यानमग्न लड़की की माँग में सिंदूर भर देता है।लड़की को बहुत गुस्सा आया और उसने लड़के की पिटाई शुरू कर दी।अब वहाँ भीड़ इकट्ठी हो गई।कुछ लोग लड़की को समझा रहे थे ,जाने दो बेटी अब क्या फायदा माफ़ कर दो।अब तो ये तुम्हारा पति हो गया।वही कुछ लोग लड़के को मारने -पीटने में लगे थे।मामला बिगड़ता देख दोनों के घरवालों को बुलाया गया।पुलिस आई।लड़की भी जिद्दी मानने को तैयार नहीं।बोली राह चलता कोई भी मेरी माँग में सिंदूर भर दे और मैं उसे पति मान लूँ ? वही मज़नू लड़का मार खाने के बावज़ूद भी कहता है -तुम नहीं मानी तो मैं ज़हर खा लूँगा।अब दोनों के परिवार वाले भी परेशान की क्या करे ? लड़की बोली खा लो ज़हर।मुझे कोई परवाह नहीं।घर वाले लड़की को समझाने लगे की जो होना था हो गया।मान जाओ।मजेदार बात तब हुई जब लड़की बोली -पहली बात तो इसने धोखे से सिंदूर डाला।दूसरी कि ये हनुमान मंदिर है ,तो शादी वैध नहीं।जब शादी वैध नहीं तो मै कहाँ से विधवा होने लगी ? :) अब लड़के के भी होश गुम।लड़के को उसके घरवाले मना बुझा कर ले गए।लड़की घरवालों के मना करने के बावजूद मंदिर में ही सिंदूर धोया।फिर अपने घरवालों के साथ घर गई।एक तरफ कुछ लोग लड़की की बड़ाई कर रहे थे ,तो वही कुछ लोग भगवान् की मर्जी मान कर लड़के को अपनाने की बात कर रहे थे।मुझे उस लड़की से मिलने की बहुत ईक्षा हुई ,पर मालूम नहीं वो किधर रहती थी।अब एक आखिरी कहानी जो कि मेरे भाई ने मुझे सुनाई।हुआ यूँ की मेरे ब्लॉग को पढ़ कर ,वो ये कमेंट करना चाह रहा था।पर बस से कही जाने के क्रम में ठीक से टाइप नहीं कर पा रहा था।उसने सोचा इतना बड़ा कमेंट करने से अच्छा मैं दीदी से जब बात होगी तभी अपने पक्ष रख दूँगा।उसका कहना था -प्यार के दो रूप हो सकते है।एक शारीरिक और एक आध्यात्मिक।आध्यात्मिक तो आजकल होता ही नहीं है।होता भी होगा तो उसकी संख्या बहुत बहुत ही कम है।शारीरिक वालो की तादात ज्यादा है।वो ऐसे कि ,हमलोग बिना किसी को जाने उसकी बाहरी सुंदरता से एट्रैक्ट हो जाते है।उसे प्यार का नाम दे देते है।उसने जो आध्यात्मिक प्रेम की कहानी सुनाई वो थोड़ा बाद में।पहले मैंने सोचा वैज्ञानिक रूप से भी जान लिया जाय की प्रेम है क्या ? होता कैसे है ? विज्ञान के अनुसार प्रेम तीन चरण में पूरा होता है।तीनो की अपनी -अपनी रासायनिक प्रक्रिया है।पहला लस्ट(कामुकता ,अभिलाषा ) - एस्ट्रोजन और टेस्टोस्टेरॉन दो ऐसे हार्मोन है जो इसके लिए जिम्मेदार है।दूसरा अट्रैक्शन (आकर्षण)-सबसे ख़ूबसूरत समय।जिसके जिम्मेदार एड्रेनलिन ,डोपामाइन और सेरोटोनिन हार्मोन है।तीसरा और आखिरी अटैचमेंट(अनुराग ,लगाव ,मोह ) -इसके लिए जिम्मेदार ऑक्सीटोसिन और वैसोप्रेसिन हार्मोन है।जहाँ डोपामाइन हार्मोन एक तरह के ड्रग की तरह काम करता है, वही वैसोप्रेसिन आपके रिलेशनशिप को मजबूत बनाता है।तो इस तरह से प्रेम के किसी भी घटना के जिम्मेदार हम नहीं ,हमारा दिमाग और हमारे हार्मोनस है।अगली बार किसी से प्यार हो तो डरने की जरुरत नहीं।कहिये हम क्या करे हम तो नादान अनाड़ी है।ये तो केमिकल लोचा है :) अब आते है भाई की कहानी की तरफ।महात्मा बुद्ध के प्रिय शिष्य में एक आनंद।आनंद देखने में बेहद ख़ूबसूरत नौजवान था।एक दिन भिक्षा माँगने के क्रम में उसे प्यास लगी।पानी पीने के लिए वो वो कुएँ पर गया।पानी भरती एक लड़की से उसने पानी माँगी।लड़की आनंद के रूप से इतनी मोहित हुई कि ,उसने आनंद से ही ब्याह करने की हठ कर ली।आनंद ने उसे बहुत समझया फिर भी वो पीछे -पीछे मठ तक चली आई।आनंद परेशान हो भगवान् बुद्ध के पास गया।अपनी सारी व्यथा सुनाई।भगवान् बोले कोई बात नहीं।उस लड़की को मेरे पास लेकर आओ।लड़की से भगवान् ने पूछा -तुमने आनंद में ऐसा क्या देखा जो इससे विवाह के लिए हठ कर बैठी ? लड़की बोली -आनंद की आँखे भगवान्।भगवान् बोले तुम सुबह उठ के देखना ,इसकी आँखों में कितना कीचड़ भरा होता है।लड़की फिर बोली अच्छा ,तो इसका मुँह भगवान।भगवान् बोले सुबह तो उससे और बास आती है।लड़की थोड़ा परेशान होकर बोली -मुझे आनंद का सुन्दर शरीर पसंद है भगवान्।भगवान् बोले शरीर का क्या है ?आनंद तीन /चार रोज नहीं नहायेगा तो उसमे भी मैल और बदबू हो जायेगी।लड़की को अपनी भूल का अहसास हो गया था।भगवान् के चरणों में गिरकर माफ़ी माँगी उसने।भगवान् से उसे भी आश्रम में रखने और भिक्षु बनने की प्रार्थना करने लगी।भगवान् ने उसे बहुत समझया की अभी तुम युवा हो।अपने दूसरे सामजिक कर्तव्यों का वहन करो।पर लड़की का मोह भंग हो गया था।बुद्ध की अनुमति से वो आश्रम में रहने लगी।आजीवन वो आनंद के साथ आश्रम में रही।पर वो प्रेम अब आध्यात्मिक हो गया था।
एक के बाद एक इन कहानियों में मैंने प्रेम के अलग -अलग रँग लिखे है।कही मृग तृष्णा है ,तो कही छल।आध्यत्मिक और वैज्ञानिक दोनों पहलुओं को ही मैंने अपने समझ के अनुरुप लिखा है।कहीं किसी की बातें अच्छी है ,किसी की सुंदरता ,किसी का बुद्धिजीवी होना तो किसी का सरल होना।पर क्या ये प्रेम की माप दण्ड हो सकती है ? दुनिया में एक से बढ़ कर एक सुन्दर ,ज्ञानी लोग मिलेंगे।कब तक हम मृग तृष्णा में डूबे रहेंगे? रही बात हार्मोन्स की तो भाई इसका आपसब ख़ुद इलाज़ समझे :) कहानी ख़त्म हुई।प्रसाद के रूप में ये तस्वीर।हर दिल से एक घंटी लगी है।हर दिल का एक अलग कोना है -कोई प्यार का कोई समर्पण का ,कोई दया का कोई छल का।आपकी पसंद और आपकी जिम्मेदारी की किस घंटी को आप बजाते है।अंत में बोलिए कामदेव की जय हार्मोन्स की जय :)
एक के बाद एक इन कहानियों में मैंने प्रेम के अलग -अलग रँग लिखे है।कही मृग तृष्णा है ,तो कही छल।आध्यत्मिक और वैज्ञानिक दोनों पहलुओं को ही मैंने अपने समझ के अनुरुप लिखा है।कहीं किसी की बातें अच्छी है ,किसी की सुंदरता ,किसी का बुद्धिजीवी होना तो किसी का सरल होना।पर क्या ये प्रेम की माप दण्ड हो सकती है ? दुनिया में एक से बढ़ कर एक सुन्दर ,ज्ञानी लोग मिलेंगे।कब तक हम मृग तृष्णा में डूबे रहेंगे? रही बात हार्मोन्स की तो भाई इसका आपसब ख़ुद इलाज़ समझे :) कहानी ख़त्म हुई।प्रसाद के रूप में ये तस्वीर।हर दिल से एक घंटी लगी है।हर दिल का एक अलग कोना है -कोई प्यार का कोई समर्पण का ,कोई दया का कोई छल का।आपकी पसंद और आपकी जिम्मेदारी की किस घंटी को आप बजाते है।अंत में बोलिए कामदेव की जय हार्मोन्स की जय :)
Monday 11 April 2016
KHATTI-MITHI: प्रेम और मर्यादा की पीड़ा !!!
KHATTI-MITHI: प्रेम और मर्यादा की पीड़ा !!!: रविवार का दिन।सुबह से मौसम भी धुप -छाँव जैसा और मन भी कुछ धुप -छाँव जैसा।दिन खाते -पीते ,सोते -जागते गुजर गया।शाम हुई शतेश बोले तपस्या मै च...
प्रेम और मर्यादा की पीड़ा !!!
रविवार का दिन।सुबह से मौसम भी धुप -छाँव जैसा और मन भी कुछ धुप -छाँव जैसा।दिन खाते -पीते ,सोते -जागते गुजर गया।शाम हुई शतेश बोले तपस्या मै चाय बनाता हूँ।मैंने कहा ठीक है बनाओ।मैं यूटूब से मेरे प्लेलिस्ट से गाने ढूँढ़ने लगी।मौसम थोड़ा बारिश सा हो रहा था।सोचा गज़ल लगाती हूँ।फेवरट गज़ल लिस्ट बजने लगी।मै तबतक नमकीन लेने किचन में गई।गाना बजता है -अब तक दिल -ए -खुशफ़हमी को है तुझसे उम्मीदें।नमकीन लेकर मै टीवी के पास गई ,और गाने को शुरू से प्ले किया।"मेंहदी हसन जी" की आवाज में अहमद फराज़ का लिखा हुआ।आह ! कितनी ही बार सुना होगा इसे।जिस दिन भी इसे बजाया होगा ,कम से कम दो -तीन बार तो रीपीट जरूर की होगी।चाय का इंतज़ार करती मैं ,नमकीन खाने लगी।गाना खत्म होता है ,तबतक चाय भी आ जाती है।मैं वापस से गाना प्ले करती हूँ।शतेश कहते है वापस से वही।मैंने कहा शतेश बाबू कुछ गानों से मेरे कान का ,दिमाग़ का ,मन का ऑर्गैज़म होता है।दोनों हँस पड़े।शतेश बोले ,अच्छा है कैसेट नहीं है।वरना कब की घिस गई होती।चाय पीते हुए शतेश मोबाइल से खेलने लगे ,और मैं गज़ल की लाईनो में खो गई।बार -बार किसी की याद आ रही थी।ओह !
रंजिश ही सही ,दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
पहले से मरासिम (सम्बन्ध )ना सही ,फिर भी कभी तो ,रस्मे -रहे- दुनियाँ ही निभाने के लिए आ।
किस -किस को बतायेंगे जुदाई का सबब हम ,तू मुझसे ख़फा है तो ,ज़माने के लिए आ।
इक उम्र से हूँ लज़्ज़ते गिरिया (रोने के स्वाद ) से भी महरूम (दूर ),अय राहत-ऐ - जाँ मुझको रुलाने के लिए आ।
अब तक दिल -ए -खुशफ़हमी को है तुझसे उम्मीदें ,ये आखिरी शम्मे बुझाने के लिए आ।
कुछ तो मेरे पिन्दारे (आत्म -सम्मान ,गौरव )मोहब्ब्त का भरम रख,तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ।
इक उम्र से हूँ लज़्ज़ते गिरिया (रोने के स्वाद ) से भी महरूम (दूर ),अय राहत-ऐ - जाँ मुझको रुलाने के लिए आ।
अब तक दिल -ए -खुशफ़हमी को है तुझसे उम्मीदें ,ये आखिरी शम्मे बुझाने के लिए आ।
कुछ तो मेरे पिन्दारे (आत्म -सम्मान ,गौरव )मोहब्ब्त का भरम रख,तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ।
माना के मोहब्ब्त का छुपाना है मोहब्ब्त ,चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ।
जैसे तुम्हे आते है ना आने के बहाने ,ऐसे ही किसी रोज ना जाने के लिए आ।रंजिश ही सही ,दिल ही दुखाने के लिए आ।रंजिश ही सही।
जैसे तुम्हे आते है ना आने के बहाने ,ऐसे ही किसी रोज ना जाने के लिए आ।रंजिश ही सही ,दिल ही दुखाने के लिए आ।रंजिश ही सही।
कानो में आवाज़ आ रही थी -लवली मुझे प्यार हो गया है।गज़ल की हर लाईन मुझे उनकी याद दिला रही थी।यूँ तो मैंने इसे कई बार सुना है ,पर आज मन बहुत से उलझनों में जकड़ा था।आज ही मेरी उससे बात हुई।उसकी सिसकियाँ कानो के साथ दिल -दिमाग पर अबतक छाई हुई है।उसपे ये गज़ल।शायद उसके लिए ही बना हो।सोच रही थी कौन गलत है ? कहाँ गलत है और क्यों गलत है ? प्यार करना हमेशा से गुनाह क्यों रहा है ?कभी नहीं सुना की फलाने ने प्यार किया और सब उनके प्यार से खुश है।कही लड़की नहीं राज़ी तो कही लड़का।कही परिवार नहीं राज़ी तो कही समाज।देखो तो तुमने भी अपने दिल का बोझ किसके साथ साझा किया ?मैं लिख तो सकती हूँ तुम्हारी कहानी ,पर क्या समझ सकती हूँ ? जब तुम मुझसे बात कर रही थी ,मै तुम्हारी बातों को मजाक़ समझ रही थी।मैंने मज़ाक में ही कहा रुको, इसपे भी कुछ लिखती हूँ।और तुमने कितने आत्मविश्वास के साथ कहा जरूर लिखो।अगर मुझे लिखना होता लवली , तो मैं बीसियों पन्ने रँग डालती।तुम्हारी इस बात से मैं थोड़ी देर के लिए चुप हो गई।समझ में आया सच में तुम सीरियस हो।तुमने मुझसे कहा मैंने अपने दिल का हाल इस कदर किसी से बयां नहीं किया।कई बार सोचा अपने पति को सबकुछ बता दूँ।पर उससे क्या होगा ? डर लगता है ,कही वो गुस्से में कुछ कर ना बैठे।वैसे भी ये सिर्फ मेरी ख़ुशी की बात नहीं।दो परिवार की इज़्जत की भी बात है।मेरे बच्चों के भविष्य की भी बात है।मै सिर्फ उसकी बातें सुनी जा रही थी।बीच -बीच में उसकी सिसकियाँ महसूस कर रही थी।मुझे खुद पे गुस्सा आ रहा है कि ,मै भी कितनी डरपोक या समाजवादी सोच वाली हूँ।तुमको कह दिया जिस गाँव जाना नहीं ,उसका पता पूछ के क्या फायदा ? तुमने एक आह भरी और कहा -मै जानती हूँ ,तभी तो अपना नंबर बदल दिया।उससे बात करना बंद कर दिया।पर क्या करू मुझे उसकी याद बहुत आती है।शादी के 5 सालो में प्यार क्या होता है ? इसके और कितने रँग है ,ये अब मैंने जाना।सबके सामने मै खुश रहने का नाटक करती हूँ।किसको बताऊँ ?क्या बताऊँ ? मैंने कहा छोड़ ना।इस बार अपने पति से बात कर।बोल तुझे भी अपने साथ ले जाए।तुमने कहा अब कहाँ बच्चों की पढाई शुरू हो गई है।उसपे अम्मी -अब्बू की देखभाल भी तो करनी होती है।मुझे लवली अब अकेले ही रहना अच्छा लगता है।मेरा पति आता भी है तो ,मुझे कोई खुशी नहीं होती।मैंने पूछा कही तेरे पति का किसी से कोई अफेयर तो नहीं ? बोली नहीं यार अभी तो ऐसा कुछ नहीं है।पर शादी के पहले था।मेरा पति मुझे किसी चीज़ की तकलीफ नहीं देता।वो अपनी दुनियाँ में खुश रहता है ,मैं अपनी।बस कमी है तो साथ की ,प्यार की।तुझे मालूम है ,इस दुबई ने मुझे चंद पैसो ,गहनों के सिवा कुछ नहीं दिया।शादी के 5 सालो में पति के प्रेम के रूप में मुझे दो बच्चे मिले और कुछ नहीं।कितना खाली -अधूरा लगता है ,जब अपने दोस्तों को उनके परिवार ,पति के साथ खुश देखती हूँ।इन सबके बीच एक अंजान रॉन्ग नंबर से कॉल आता है।धीरे -धीरे उस अंजान शख्स से मेरी बात होने लगती है।मैंने तुम्हे बताया भी था ,याद है तुम्हे ? मैंने कहा हाँ।पर तूने तो कहा था ,तूने मना किया था ,कि रॉन्ग नंबर है ,कॉल या मैसेज ना करे।हाँ यार कहा तो था।पर मालूम नहीं बात कैसे -कैसे बढ़ गई।शायद मेरा अकेलापन हो या उसका प्यार।वो इतना प्यारा है कहते -कहते एक बार फिर तुम्हारा गला रुंध गया।जानती हो मुझसे 3 साल छोटा है।कहता है ,कैसे है आपका पति ?आपको छोड़कर साल -साल भर दूर रहता है।मै होता तो आपको साथ ऑफिस ले जाता।सामने बिठा कर काम करता।मुझे हँसी आ जाती है।ये तुम भी जानती हो ,मै भी और वो लड़का भी कि ऐसा हमेशा के लिए मुमकिन नहीं।पर वही है ,प्रेम की कल्पना कुछ भी हो सकती है।तुम धीरे -धीरे अपने राज खोल रही थी।कभी खुश हो कर तो कभी रो कर।मैं बस तुम्हारी बातो से बेचैन हो रही थी।बेचैनी तो और बढ़ी जब तुमने कहा कि ,तुम उससे मिली भी।तुमने बताया ससुराल में तो तुम उससे मिल नहीं पाती।वो रहने वाला भी दूसरे शहर का था।तुम दोनों मिलना चाह रहे थे ,पर कैसे मिलते ?कुछ महीनो बाद तुम्हारा बनारस जाना हुआ।मायके पहुँच कर भी तुम दोनों की बात होती रही।तुमने उसे बताया कि तुम बनारस आई हो।उसने पूछा क्या तुम वहाँ मिल सकती हो? तुमने कहा मालूम नहीं।घर पर मै बुला नहीं सकती।बाहर किसी काम से या किसी के साथ ही निकलना होता है।हाँ -मैं कल कुछ कपड़ो की शॉपिंग को जाऊँगी।पर साथ भाईजान -भाभी भी होंगी।उसने कहा चलो दूर से ही सही मिल तो लूँगा।पटना से मेरी खातिर वो बनारस आता है।और किस्मत देखो लवली मै ठीक से उससे मिल भी नहीं पाई।भाभी ,भतीजे की वजह से नहीं आ पाई।भाईजान के साथ मै गोदौलिया मार्किट पहुँची।कपूर्स साड़ीज के यहाँ से साड़ी लेने लगी।उसका मैसेज आया मै गोदौलिया मार्किट में पहुँच चूका हूँ।मेरी दिल की धड़कने तेज थी।मैंने दूकान का नाम बताया।वो वहाँ पहुँचा।हमने बस हाय -हेलो किया।तबतक भाईजान दुकानदार को पैसा पे कर चुके थे।पूछा कौन है ये ?मैंने बताया कॉलेज में साथ थे ,और दूकान से निकल पड़ी भाईजान के साथ।तुम्हारी बातों से अफ़सोस साफ झलक रह था।तुमने कहा यार मै उसके साथ कुछ देर किसी कॉफी शॉप में बैठना चाहती थी।बातें करना चाहती थी।पहली मुलक़ात भी सिर्फ हाय -हेलो तक रह गई।जबकि कितनी बाते करने को थी।मैंने कहा अरे पागल तो भईया को बोल देती।दोस्त है थोड़ी देर बात करके चलते है।तुमने कहा सबकी किस्मत में उज्जवल जैसा भाई नहीं होता लवली।मुझे ही खुद पे काबू करना होगा।मै सामने बैठ कर उसे समझाना चाहती थी।मेरी एक ख़ुशी बहुत कुछ तबाह कर सकती है।और तो और देख उसका मज़हब भी अलग है।मुझे प्यार भी होना था ,तो इस वक़्त ऐसी हालात में।मैंने कहा छोड़ ना, जब तूने सोच लिया है कि ,आगे नहीं बढ़ना तो क्यों याद करना ,क्यों रोना ? तुमने फिर कहा याद ! हाँ याद से याद आया मैंने सिर्फ सुना था ,पर इस बार महसूस किया।याद में कैसे कोई दूसरे को उसी वक़्त याद करता है।मेरे पति को मैंने कितनी दफ़ा याद किया होगा।पर कभी कोई कॉल नहीं जबाब नहीं।अपने टाइम और सुबिधा के अनुसार फ़ोन किया करते है।लेकिन एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरा जब मैंने इसे याद किया हो ,और उस वक़्त उसका कॉल ना आया हो।मैंने सिर्फ हम्म से जबाब दिया।क्या कहती मै ? तुम अपने दिल को समझाने की कोशिश कर रही हो।भगवान् तुम्हे भावनात्मक रूप से मजबूत बनाए।पर क्यों हमेशा प्यार को मर्यादा में बाँध दिया जाता है ? ये सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं है मेरी दोस्त।लड़को की भी कमोबस यही हालत होती होगी ,जब उनके सामने भी प्यार , मर्यादा और जिम्मेदारी को चुनना होगा।तुम्हे ये भी डर था कि ,कही इस वजह से मै तुम्हे गलत ना समझ बैठूँ।पर डरना क्यों ? कभी भी ख़ुद को दूसरों की सोच से मत तौलो।तुम्हारा जीवन है ,तुम्हारा शरीर है ,तुम्हारी आत्मा है।खुद पर विश्वास रखो।हाँ ये बात अलग है ,जब अगनि परीक्षा की बारी आती है तो, सीता ही जलती सेज पर बैठती है।तुमने सीता की कहानी तो सुनी होगी ? हाँ वही राम की पत्नी सीता ,जो अपने पवित्रता को साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा देती है।मुझे मालूम नहीं दोस्त इस रचना या कहानी के पीछे क्या सच्चाई थी।कोई कहता है ,असली सीता को लाना था ,तो कोई कहता है समाज में राम को सन्देश देना था।पर कहानी का आधार क्या था ? सीता की अग्नि परीक्षा।तुम्हारे मज़हब का मुझे इतना कुछ ज्ञान नही।मालूम नहीं वहाँ कोई सीता थी या नहीं।लेकिन परीक्षा तो समाज के हर वर्ग में देनी होगी।तुमने कहा इस जन्म में ना सही अगले जन्म में मिलेंगे।अरे पागल ये कोई सिनेमा नहीं ,जहाँ प्यार अमर होता है।बादलों के पार मर के मिल रहे है।तुम्हे पता है ,बदलो के पार आँखे चौंधिया देने वाली धुप होती है।क्या देख पाओगे तुम एक दूसरे को ? उसपे इतनी गर्मी की तुम्हारी आत्मा जल के वापस धरती पर पैदा लेने को तड़प उठेगी :)और सोचो अगर तुम फूल बन गई और वो बकरी तो हा- हा -हा।मै ये नहीं कह रही कि ,तुम अपने प्रेमी के साथ भाग जाओ।जो भागते है ,वो उम्र भर भागते रहते है।बस इस मृग मरीचिका के भ्र्म से बाहर निकलो।उस लड़के के बारे में भी सोचो ज़रा।तुम उसकी हो नहीं सकती ,तो फिर ये मोह क्यों ?हो सकता है ,मै तुम्हारी भावनावों को समझ नहीं सकी।या फिर समझ के भी समझना नहीं चाहती।सुनो खलील जिब्रान ने क्या लिखा है प्यार के बारे में - प्यार के बिना जीवन फूल या फल के बिना एक वृक्ष की तरह है।प्यार को कोई और इक्षा नहीं बस खुद को पूरा करने की सिवा।मै तुमसे ये कहना हूँ -देखो वृक्ष की पहचान सिर्फ फल या फूल नहीं हो सकते।उसकी जड़ें उसे मजबूत रखती है ,उसकी पत्तियाँ छाया देती है।छाया भी राहगीर के लिए फल जैसा ही मायने रखता है।तो इस वक़्त या तो मजबूत जड़ बनो ,छाया दो खुश रहना सीख लो।या फिर दूसरी लाइन की तरह हिम्मत करो ,खुद को पूरा करो।लेकिन इस दुबिधा से बाहर निकलो। सिर्फ तुम्हारे लिए अहमद फराज़ की एक और गज़ल-
ये जानकार भी कि दोनों के रास्ते थे अलग
अजीब हाल था जब हो रहे थे अलग
हमीं नहीं थे ,हमारी तरह के और भी लोग
अज़ाब में थे जो दुनिया से सोचते थे अलग
अकेलेपन की अज़ीयत का अब गिला कैसा
तुम ख़ुद ही तो औरों से हो गए थे अलग।
ये जानकार भी कि दोनों के रास्ते थे अलग
अजीब हाल था जब हो रहे थे अलग
हमीं नहीं थे ,हमारी तरह के और भी लोग
अज़ाब में थे जो दुनिया से सोचते थे अलग
अकेलेपन की अज़ीयत का अब गिला कैसा
तुम ख़ुद ही तो औरों से हो गए थे अलग।
Wednesday 6 April 2016
KHATTI-MITHI: मिलन -मिलाप 2
KHATTI-MITHI: मिलन -मिलाप 2: कल विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन के बाहर और आज दिल्ली डोमेस्टिक एयरपोर्ट से कहानी आगे बढ़ती है।गो एयर ,सीट नंबर 8 -सी और उससे बँधी मैं अंतरास्...
मिलन -मिलाप 2
कल विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन के बाहर और आज दिल्ली डोमेस्टिक एयरपोर्ट से कहानी आगे बढ़ती है।गो एयर ,सीट नंबर 8 -सी और उससे बँधी मैं अंतरास्ट्रीय विमानों को कोस रही थी।कारण कुछ ख़ास नहीं एयरहोस्टेस थी।सोच रही थी, यार ये छोटी यात्राओं के लिए इतनी सुन्दर -सुन्दर एयरहोस्टेस और लम्बी दुरी के लिए वाइन और बियर।माने, सही मामलो में कैलेंडर वाली एयरहोस्टेस डोमेस्टिक एयरलाइन में ही दिखती है।इंटरनेशनल फ्लाइट में तो बस खाना -पीना ,मूवी देखना और अक्षांश -देशांतर सुनना।ऐसा नहीं है ,कि इंटरनेशनल फ्लाइट में एयरहोस्टेस नहीं होती।होती है, पर देखने लायक कम।अब देखिये इसे नारी अपमान या मेरी तुच्छ सोच से मत जोड़ दीजिए।वो क्या है जो सुन्दर है ,उसकी तारीफ तो करनी चाहिए।चाहे वो महिला हो या पुरुष।खैर छोडियो इन बातो को।सुंदरता देखते हुए और सोते हुए मै पटना एयरपोर्ट पहुँची।सामान लेने के बाद फोन देखा ,नेटवर्क ही नहीं।गेट से बाहर निकली तो सामने फिर से एक स्मार्ट लड़का ,पर बीमार सा दिखा।जिसको देख के मैं थोड़ी परेशान हो गई।पास आया गले मिला और मेरा सामान ले लिया।मैंने पूछा क्या हालत बना रखी है ?छोड़ दो घर बनवाने का काम।वो मुस्कुराया और बोला - बहिन तोरे नू बेचैनी रहे की घर कब बनी ?उसकी मुस्कुराहट मेरे चेहरे पे हँसी तो नहीं ला सकी अलबत्ता आँखे नम कर गई।ये लड़का मेरा भाई उज्जवल।पटना से हमलोग मेरे ससुराल मढ़ौरा पहुँचे।मेरे देवर की शादी बीत जाने के बाद मै बसंतपुर गई।घर तो मेरा बेतिया है ,पर बसंतपुर सही मामलो में मायका है।माँ की नौकरी की वजह से बचपन वही बीता।दोपहर का समय था।मेरे सपने में कोई कविता पढ़ी जा रही थी -स्वस्ती श्री लिखी ले बसंतपुर से पतिया ,माई के परनाम पावे लिखी आपन बतिया।मै समझ गई ये कोई और नहीं कविवर मुकुल जी ही है।स्कूल में कुछ बच्चों का फिक्स जोन था।जैसे मुकुल की ये कविता ,मेरा भाषण ,जावेद का मेरे देश की धरती गीत गाना और रीम -ऋतू दोनों बहनो का -सुन्दर सुभूमि भईया भारत के देसवा से मोरा प्राण बसे हिम खोह रे बटोहिया (देशभक्ति पुरबिया) गीत।सपने में ही मैंने मुकुल से पूछा -भाई मेरे बचपन से ही मै सोचती थी कि ये "स्वस्ती श्री" है कौन ? जो तुम्हे ही पाती लिखते है।तभी फ़ोन की घण्टी टुनटुनाती है।मै जाग जाती हूँ।मैंने फ़ोन उठाया उधर से आवाज़ आई।सो रही हो क्या ? हमलोग पहुँचने वाले है।मैंने कहा आ जाओ ना ,कोई बात नहीं।बेड पर लेटी मैं स्कूल के दिन को याद करने लगी।एक साथ कई चेहरे बंद आँखों के पीछे हल्ला करने लगे।वो 7 -A का क्लासरूम।आगे की बेंच पर कोने में बैठी मै।तीन- चार बेंच लड़कियों की बाकी सारे लड़को के लिए।किसी का कोई फिक्स सीट नहीं था।बस जहाँ बैठना शुरू किया ,वही बैठने लगे।मेरा कोने में सीट चुनने के कई कारण थे।एक तो मै क्लास में छोटी लड़कियों में शामिल थी ,तो फर्स्ट बेंच पे बैठना था।दूसरा एकदम सामने से ब्लैकबोर्ड चमकता था।तीसरा कोने वाली सीट एकदम गेट के सामने तो कोई भी टीचर आये तो पहले से सावधान हो लो।सबसे महत्वपूर्ण कारण तो मेरा क्लास में छुप -छूप के गट्टा (गुड़ की मिठाई ) खाना था।एक दिन ऐसे ही क्लास में गट्टा खा रही थी।सामने के बेंच से चश्मे के पीछे से दो आँखे मुझे देख रही थी।डर लगा कि कही कम्प्लेन ना कर दे सर से।पर चश्मेवाले ने शायद गट्टे की लालच में कम्प्लेन ना की।वहीँ डर के मारे मैंने आधा गट्टा एक लड़की को दे दिया और आधा खुद जल्दी -जल्दी सफाचट कर दिया।सोच के ही चेहरे पर मुस्कान आगई।फिर ख्याल आया अरे! कविवर मुकुल जी आजकल वक्ता हो गए है ,और मै वक्ता कवी /लेखक बनती जा रही हूँ।कितना कुछ बदल गया है।पता नहीं ये जो मिलने आ रहे है ,ये कैसे होंगे ? तभी फिर फ़ोन की घंटी बजी।आवाज़ आई -आरे यार हमलोग तुम्हारे कॉलोनी के गेट के बाहर खड़े है।कौन सा घर है तुम्हारा ? मैंने कहा रुको मै आती हूँ।फटाफट बालों को ठीक कर मैं बाहर पहुँची।देखा तो वही आँखे चश्मेवाली, साथ में एक और दोस्त हशमुद्दीन।चश्मेवाले ने बढ़ कर हाथ मिलाया।हशमुद्दीन से भी मिली और घर के अंदर ले कर आई।हशमुद्दीन तो बहुत बदल चूका था।चश्मेवाले का नाम नेशात नईम था।नईम का पहला सवाल यार हमें बुला कर खुद सो गई ? मैंने बताया देवर की शादी के बाद तबीयत बहुत ख़राब हो गई थी।खाँसी की दवा ली तो नींद आ गई।तपाक से बोलता है ,तुम तो ड्रिंक करती हो फिर खाँसी की दवा से नींद कैसे ?मैंने हँसते हुए कहा बाबू मै कोई पियकड नहीं हूँ।वो कभी एक -आध घूँट पार्टी के नाम पर पी ली।पहली बार में तो मुझे लगा कि ये दोनों मुझसे मिल कर खुश नहीं हुए।हो सकता हो थोड़ा असहज महसूस कर रहे हो ,घर पे मिल के।खैर बात मेरे दुबले होने की दुहाई से शुरू हुई।थोड़े देर बाद दोनों थोड़े सहज हुए।बातो का सिलसिला चल पड़ा।कई दबी कहानियाँ सामने आई।फिर वही ये लड़की कहाँ है वो लड़का कहाँ है ? तभी मुझे मुकुल वाली लड़की याद आई।मैंने उनलोगो से भी पूछा।उन्हें भी कुछ याद नहीं।बात वही आखिर बाहुबली को कट्टप्पा ने क्यों मारा (बाहुबली वाला आइडिया एक दोस्त के कमेंट से आया )? आखिर कौन थी वो ?कहाँ गई वो लड़की ? वो दोनों स्कूल टाईम की कोई बातें पूछते मुझे याद नहीं रहता तो नेशात कमेंट करता -हाँ तुम क्यों याद रखो ?तुम तो अपनी ही दुनिया में मस्त हो।फिर हशमुद्दीन बचाव करता।बोलता भाई समझते नहीं हो ,सबकी जिम्मेदारी बढ़ गई है।नेशात बोलता हाँ ,पर इतनी भी क्या मशरूफ़ियत ?मुझे ऐसा लगा नेशात आज भी बचपन की यादो को हमसबसे ज्यादा सँजो के रखा है।उसी का सुझाव था कि, हमसब एक बार मिले।हसमुद्दीन के यहाँ शादी थी।बीच -बीच में उसके कॉल आ रहे थे ।उसने अपनी पत्नी और बच्चों की तस्वीर दिखाई।नेशात कि बीबी की भी तारीफ की।दोनों ने एक दूसरे की पोल खोली।हसमुद्दीन ने बताया ,कैसे एक लड़की नेशात के लिए छत से कूदने जा रही थी।मै तो हँसते -हसँते पागल हो रही थी।मैं भी उस लड़की को जानती थी।थोड़ी पागल तो थी ,पर इतनी पागल की एक पागल के लिए छत से कूदने की हिम्मत रखे।मैंने तो नेशात की खूब खिचाई की।हशमुद्दीन ने अपनी भी पसंद की लड़की की कहानी बताई।बातो -बातो में हशमुद्दीन कहता है ,तपस्या तुम्हारी मासूमियत खो गई है।वो पहले वाली बात नहीं।मेरी फिर से हँसी छूट गई।पूछा कैसे ?बोल बस ऐसे ही।वो मेरे ब्लॉग को पढ़ते रहता है।कई बार मै थोड़ा ऊंच -नीच लिख देती हूँ ,या फिर हो सकता है मेरे चेहरे पर उम्र की लकीरे दिखने लगी हो।जो भी हो हशमुद्दीन ,भाई क्या करे ये दुनिया भोलेपन को बेवकूफ समझती है।इससे पीछा छुड़ाने के क्रम में हम थोड़ा मासूमियत खो देते है।चेहरे पर दिखे ना दिखे ,दिल में मासूमियत रहना चाहिए।इस मुलाकत में फिर से मैंने एक कांड किया।हुआ यूँ कि मैंने इनके लिए खाना नहीं बनवाया था।मुझे सच में उम्मीद नहीं थी कि इतनी बाते होंगी।साथ में तबीयत भी ठीक नहीं थी।माँ मेरी मुझे कुछ करने नहीं देती।इसका ताना नेशात बाबू ने खूब दिया कि खाना भी नहीं खिलाया ,कामचोर लड़की ने।मैंने माँ से भी मिलवाया दोनों को।शाम को करीब 6 ;30 के आस -पास दोनों ने विदा लिया।माँ नेशात को रोक रही थी।वो अमनौर से मिलने आया था।माँ बोली बाबू रात को घर कहाँ जाओगे ?रुक जाओ ,पर उसे हशमुद्दीन के यहाँ रुकना था।शायद दोनों मिल कर अपने पुराने दिन याद करेंगे और गायेंगे -"जुस्तज़ू जिसकी थी उसको तो ना पाया हमने,इस बहाने से मगर देख ली दूनियाँ हमने।तुझको रुसवा ना किया ख़ुद भी पशेमाँ ना हुए ,इश्क़ की रश्म को इस तरह निभाया हमने :P एक तस्वीर दोस्तों के नाम ,उम्मीद है फिर मिलेंगे :)
Monday 4 April 2016
KHATTI-MITHI: मिलन -मिलाप -1
KHATTI-MITHI: मिलन -मिलाप -1: विश्व विद्यालय मेट्रो स्टेशन के बाहर खड़ी मैं ,किसी का इंतज़ार कर रही थी।मैंने कॉल लगाया और उधर से आवाज आई -हाँ कहाँ पहुँची आप ? मैंने कहा मै...
मिलन -मिलाप -1
विश्व विद्यालय मेट्रो स्टेशन के बाहर खड़ी मैं ,किसी का इंतज़ार कर रही थी।मैंने कॉल लगाया और उधर से आवाज आई -हाँ कहाँ पहुँची आप ? मैंने कहा मै तो मेट्रो स्टेशन के बहार खड़ी हूँ।तुम कहाँ हो ?उधर से आवाज आई -आप दो मिनट दीजिये।मै पास ही लाइब्रेरी के पास हूँ।मेट्रो स्टेशन के बाहर खड़ी मै बाहर आने -जाने वालो का मुआयना करने लगी।सच में जो हरियाली दिल्ली में है ,वो और कही नहीं।किसी भी शहर के कॉलेज एरिया की रौनक ही कुछ और होती है।मुआयने के दरमियां सामने नज़र गई।एक जाना पहचाना चेहरा लगभग भागते हुए आ रहा था।मै थोड़ी सोच में की ये वही है या कोई और ? ये थोड़ा स्मार्ट दिख रहा है।पिछली बार तो अलग लगा था।तभी उसकी दूर से ही बत्तीसी दिखी।मै समझ गई भाई लड़का तो वही है ,बस चोला बदल गया है।आते ही कैसी है दीदी के साथ पैर छुआ।मेरे भाई जैसे लड़के का नाम "दीपक दशानन " दशानन को उसने बाद में जोड़ा।शायद वो भी अपने रूप बदलने की कला को जनता होगा।या फिर रावण की तरह दस सिर।पर चेहरे थोड़े अलग -अलग।ये वही लड़का है ,जिसने मेरी पहले की भारत यात्रा में मेरे देवर जी को परेशान किया था।माने सवाल -जबाब से।मेट्रो स्टेशन से आगे हमलोग दिल्ली यूनिवर्सिटी के नार्थ कैंपस पहुँचे।मुझे अपने स्कूल के एक दोस्त से मिलना था।मैंने उसे कॉल लगाया पर कॉल ही नहीं जा रही थी।मैंने कहा अब क्या किया जाय दीपक ? बोला दीदी ऐसा करते है ,थोड़ा कैंपस देख लो।पास में ही एक बहुत अच्छी कॉफी की टपरी है वहाँ कॉफी पीते है।तबतक आपके दोस्त भी आजायेंगे।मैंने कहा ठीक है।वैसे मै कॉफी बहुत पसंद नहीं करती फिर भी साथ देने को पी लिया।बीच -बीच में मैं अपने दोस्त को कॉल भी लगा रही थी।कॉफी खत्म ही हुई थी कि ,दोस्त का कॉल आया।अरे तपस्या कहाँ पहुँची ? मैंने कहा मै तो लौट आई।तुम्हारा कॉल ट्राई किया।लगा नहीं तो चली आई।अफसोस करते हुए बोला -अरे यार मै लाइब्रेरी के अंदर ग्रुप डिसकशन में था।वहाँ नेटवर्क नहीं था शायद।मेरा एक दोस्त आया और बोला मुकुल भाई आपका कॉल नहीं लग रहा है।मै फटाफट बाहर निकला की ,कही तुम भी कॉल नहीं ट्राई कर रही हो।मैंने कहा ओह ,अच्छा तो माफ़ किया।मैं यही हूँ।दीपक है मेरे साथ।आती हूँ कैंपस।मै और दीपक पहुँचे वहाँ।एक जगह देख के बैठ गए।दीपक जो भी लड़का गेट से आता बोलता दीदी ये तो नहीं ?हमलोग बाते कर रहे थे।सामने से मुकुल ,तपस्या बोलते हुए आया।लगभग दौडते हुए हमलोग एक दूसरे के पास पहुँचे।गले मिले।उसके चेहरे से ख़ुशी टपक रही थी।मेरा हाल भी कुछ वैसा ही था।इंसान कही भी चला जाए ,कुछ भी पा ले ,बचपन को भूल नहीं पाता।फिर बचपन के संगी -साथी की तो बात ही कुछ और है।मैंने उसकी टाँग खींचते हुए कहा -तुमने तो कहा था ,तुम्हारे आने पर गाजे -बाजे से स्वागत करूँगा।यहाँ तो फूलमाला भी नहीं ,पान पराग भी नहीं है।अपने खुशमिजाज़ तरीके से उसने मुझसे माफ़ी माँगी।मैंने उसे दीपक से मिलाया।उसने भी अपने कुछ दोस्तो अमित जी ,शशि आनंद जी ,सुशील जी और फहीम साहब से मिलवाया।सब एक साथ सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे है।सबसे मिलके अच्छा लगा।सुलझे हुए ,नम्र और व्यवहारिक लोग थे ये।मुकुल भाई साहब भाषण स्वरुप बात के लिहाजे से ,फेसबुक और हमारे एक दोस्त रवि रंजन को धन्यवाद देने लगे।कहने लगे फेसबुक और रवि ने ही हमसब स्कूल के दोस्तों को मिलाया है।मुकुल के बात करने के अंदाज से कोई दुखी नहीं हो सकता।मैंने उसको कई बार बोला है, तुम पॉलिटिक्स ज्वाइन कर लो।आजकल मार्किट भी गर्म है।युवाओं में भी पॉलिटिक्स का क्रेज़ बढ़ा है।फेसबुक के द्वारा मेरे क्लास के दोस्तों में मै अकेली लड़की मिली।बाकि के 5 /6 लड़के।लड़को को दुःख इस बात का था कि, चलो क्लास के अच्छे विद्यार्थी तो मिल गए ,पर वो जो सुन्दर -सुन्दर बालिकाएँ थी वो कहाँ गई ? जब भी उन लड़को से बात होती है ,भगवान् दिमाग का दही कर देते है।फलाना लड़की कहाँ गई ? तुम उसके टच में हो क्या ? अरे भाइयों मैं खुद "टच मी नॉट थी " मुझे तो तुमलोगो ने ढूँढा।तुम्हारी सो कॉल्ड क्रश जाने कहाँ खो गई।मै कहाँ से ढूँढू।मुकुल जी तो एक ऐसी लड़की के बारे में पूछते है ,जो की भुत है।अरे -अरे वो मरी नहीं।पर हाँ उस नाम की लड़की को कोई दोस्त नहीं जानता या देखा।बेचारा मुकुल अकेला उसे जानता है।पागल क्लास में ही सपने देखा करता होगा।इसलिए बचपन से मोटा रहा :) इसी बीच हमारे एक कॉमन दोस्त आचार्य शैलेश तिवारी जी का कॉल आया।मुकुल ने बताया तपस्या आई है।वो बहुत जिद्द करने लगे की उनसे भी मिल लिया जाए।मै ,मुकुल और दीपक उनके घर पहुंचे।ऑटो में ही दीपक और मुकुल की पॉलिटिक्स शुरू हो गई।दोनों जोर -जोर से बहस करने लगे।मानो संसद भवन में बैठे हो।मैंने कहा भाइयों बस करो।ये दीपक भी ना मौका नहीं छोड़ता कभी।ऑटो वाला बहस का मजा लेते हुए हमें घुमाए जा रहा था।हमलोग को गलत जगह उतार के चलता बना।हमने आस -पास के लोगो से रास्ता पूछा। फिर दूसरा ऑटो लिया और पहुँच गए शैलेश जी के यहाँ।दिल्ली के पॉश इलाके में जबरदस्त घर ,साजो सामान देख के ऐसा लगा आईटी के जॉब में कुछ नहीं रखा।इसी मिलन -मिलाप में मैंने एक कांड कर दिया था।घर की चाभी साथ ले आ थी।मुझे लगा नहीं था ,इतनी देर हो जायेगी।रात के 9 :30 हो गए थे।मेरे देवर ऑफिस से आकर बाहर इंतज़ार कर रहे थे।मैं थोड़ी परेशान हो रही थी।शैलेश जी जाने नहीं दे रहे थे।उनकी वाइफ से मिली।उन्होंने मुझे एक प्यारी सी साड़ी गिफ्ट की।उनको धन्यवाद बोलने के साथ ही ,मै वहां से भागी।शैलेश जी गाड़ी से हमलोग को छोड़ने निकले पड़े।मैने रात की वजह रास्ता समझ नहीं पाई और उलटी तरफ गाड़ी को मुड़ा दिया था।आगे जाने पर रास्ता याद आया।मैंने शैलेश जी को कहा गाड़ी को साइड में रोक ले।रोड क्रॉस करके यहाँ से वाकिंग चली जाऊँगी।वो बोले नहीं मैं छोड़ देता हूँ ना।मैंने मना किया वापस से टर्न ले के आने में और टाइम लगता।मुकुल और दीपक मुझे छोड़ने के लिए आने लगे।मैंने मुकुल को बोला अरे रहने दो।यही वेट कर लो तुमलोग दीपक का।शैलेश जी और मुकुल से विदा ले ,मैं और दीपक घर की तरफ चल पड़े।सामने मेरे देवर दिखे।पागल दीपक मुझे बोलता है -मै बात करूँ क्या दीदी ?आप परेशान मत होना।और अगर आपके देवर आपपे गुस्साए तो बताइयेगा।मुझे हँसी आ गई।मैंने बोला भाई इसकी जरूरत नहीं है।मेरे देवर भी मेरे भाई सामान है।मैं इसलिए परेशान हूँ कि वो मेरी वजह से बाहर खड़े होंगे।उससे बिदा लिया और घर पहुँच गई।आगे जारी -------
Friday 1 April 2016
KHATTI-MITHI: फेसबुक ,क्रिकेट और एयरलिफ्ट का कॉकटेल !!!
KHATTI-MITHI: फेसबुक ,क्रिकेट और एयरलिफ्ट का कॉकटेल !!!: आज फेसबुक को देख के मन में कुछ बेचैनी सी हुई।वैसे ये बेचैनी सुबह से ही थी।कारण था इंडियन क्रिकेट टीम की हार।कल तक जो फेसबुक मौका -मौका के न...
फेसबुक ,क्रिकेट और एयरलिफ्ट का कॉकटेल !!!
आज फेसबुक को देख के मन में कुछ बेचैनी सी हुई।वैसे ये बेचैनी सुबह से ही थी।कारण था इंडियन क्रिकेट टीम की हार।कल तक जो फेसबुक मौका -मौका के न्यू वर्जन और ब्लीड ब्लू से अटा पड़ा था।आज उसका रंग सफ़ेद पड़ गया था।ये तो अच्छा हुआ कोहली ने पहले ही टवीट करके सबको माँ ,बहन की याद दिला दी थी।वरना आज बेचारी अनुष्का का क्या होता ? अच्छा है ,कई बार एक ही चीज़ ,एक ही पोस्ट दिमाग में भनभनाहट पैदा कर देती है।कैसे ? अरे यार मालूम है मैच देख रहे हो।बॉल दर बॉल स्टेटस लिखना जरुरी है क्या ? वो क्या है ना भारत में क्रिकेट के लिए सब कही ना कही जुगाड़ बिठा ही लेते है।तो तुम फेसबुक ,वाट्सअप नहीं भी रंगोगे तो भी सबको मालूम हो जायेगा।ध्यान मैच पे दो हाँ नहीं तो।साला एक तो ई स्मार्ट फ़ोन कोई कुछ पोस्ट किया नहीं ,टू -टू ,टे -टा शुरू।मैंने तो अब अपने फ़ोन को ही साइलेंट मोड पर कर दिया।वही फेसबुक वाले "ज़ुकेरबर्ग " जिनको वेडिओ गेम में ज्यादा इंट्रेस्ट है ,सोच रहे होंगे -ओह गॉड कहाँ गई आधी से अधिक इंडियन जनता ? अभी तो होली पे फेसबुक को रंगीन किया था।फिर ऑस्ट्रेलिया से जीत के बाद रंगा था।इस बार इतना सनाटा क्यों है भाई ? कही फेसबुक के दिन तो नहीं लद गए ?अरे ज़ुकेरबर्ग भाई डरो नही इतनी जल्दी लुटिया नहीं डूबेगी तुम्हारी।हम भारतीय तुम्हे अपने तरीके से "अप्रैल फूल " बना रहे है।तुम्हारा फूल बनना और हमारा गम एक साथ निपट जायेगा।दुखी तो मैं भी थी दोपहर तक।बाद में एयरलिफ्ट देख के और दुखी हो गई।काहे ? ये तो और आगे पढ़ने पर ही मालूम होगा।फिलहाल मैं आप सब को बता दूँ ,मैं कोई क्रिकेट गुरु नहीं।मुझे क्रिकेट की मोटा -मोटी ही जानकारी थी।अभी वो मोटा थोड़ा ज्यादा मोटी हो गई है ,शतेश की वजह से।वरना पहले तो हार -जीत ,चौका ,छक्का ,कैच ,आउट ,एक रन ,दो रन ,मेडेन,वाइड ही मालूम होता था।इसका मेरा लड़की होने से कोई सम्बन्ध नहीं।अगर ना यक़ीन हो तो कुछ लड़को से भी क्रिकेट के कुछ खास टर्म पूछ के देखो।हाँ लड़की होने को आप द्रविड़ ,धोनी ,या विराट से जोड़ सकते है।मैंने "राहुल द्रविड़" की वजह से क्रिकेट देखना थोड़ा शुरू किया।फिर धोनी से प्यार हुआ दिल टुटा भी।तबतक क्रिकेट में भी काफी चेंज आ गया।बीच में क्रिकेट छोड़ टेनिस पे अटक गई।यहाँ भी कारन एक ही था "रेफेल नडाल" कॉलेज टाइम में स्पोर्टस्टार खरीदने लगी।ये पत्रिका साप्ताहिक आता है।तो पहले दूकान पर जाके किताब देखती थी।उसमे अगर धोनी या नडाल की तस्वीर हुई तभी खरीदती थी।भाई पैसो का भी देखना होता था।इससे आपको मेरा गेम प्रेम दिख ही गया होगा :)हाँ उस वक़्त एक और चीज़ कॉमन हुई थी।धोनी के भी बाल बड़े ,नडाल के भी बाल बड़े ,और तेरे नाम मूवी में सलमान के भी बाल बड़े थे।छुट्टियों में मैं घर गई तो माँ को दिखाया कि माँ देखो मुझे ऐसे लड़के पसंद है।भगवान् ! सच मानिये मुझे सच में थोड़े लोफर टाइप लड़के ही पसंद थे।मेरी माँ की शक्ल देखने लायक थी।बोली एक भी ढंग का लड़का नहीं है।ऐसे लग रहे है जैसे ,सड़क छाप या रिक्शावाले।मानो जैसा मेरा ब्याह ही इनसे होने वाला हो हा- हा -हा।खैर क्रिकेट की एक टर्म "डक पे आउट होना " मुझे कसम से अनुष्का की वजह से ही मालूम हुआ।वरना मुझे तो यही मालूम था, ज़ीरो पे आउट हुआ।भाई ये एलबीडबल्यू मुझे आज भी कभी -कभी परेशानी में डाल देता है ,कि कैसे आउट ? ऐसे ही एक दिन मैच के दौरान शतेश बोले "बाई " गया।मुझे लगा आउट हुआ ,पर बॉल तो ना कैच हुई ना ,विकेट को लगी ,ना रन आउट तो बाय -बाय कैसे हुआ ? रहा नहीं गया शतेश से पूछा।वो हँस पड़े बोले डिअर इट्स बाई नॉट बाय।एक तो ना ये थोड़ा क्रिकेट जाननेवाले खुद को तीसमार खां समझते है।एक -आध कुछ पूछ क्या लो इनकी हँसी निकल पड़ती है।अगर मैं पूछु "लियो-टॉलस्टॉय " ने कौन -कौन सी किताबें लिखी है ,या मालिनी रजुरक जी कौन है ? जबाब होगा यार ये मेरी हॉबी नहीं।बस कभी -कभार पढ़ ,सुन लेता हूँ।तो यार मेरे मैं भी क्रिकेट शौख के लिए ही देखती हूँ।ना तो मुझे खेलना है ना ही एक्सपर्ट राय देनी है।कुछ क्रिकेट के टर्म तो से सच में गड़बड़ा देंगे ,जैसे - इकोनॉमी रेट ,टिपोट ,लेग ब्रेक।डकवर्थ लेविस लॉ , नेलसन स्कोर के नाम से लगता था ,यार फिर से पढाई करनी होगी क्या ? खैर मेरे इस थोड़े से ज्ञान और क्रिकेटर के समावेश से ही सही हार का थोड़ा तो दुःख हुआ।इसपे मैंने कांड किया एयरलिफ्ट देख के।हुआ यूँ मैच हम हार गए थे।मैंने सोचा कोई अच्छी सी मूवी देखी जाय।वैसे भी इण्डिया ट्रिप की वजह से मूवीयो का बैकलॉक चल रहा है।तो एयरलिफ्ट से शुरुआत की।भाई एक तो इंडिया हार गया।उसपे हिन्दुस्तानियो की ये दशा मूवी में।आपने मूवी देखी होगी तो देखा होगा।जैसे -तैसे कुवैत से निकलने का प्लान बनाया।पापियों ने टीपू सुलतान जहाज को ही रोक दिया।बताओ जाए तो कैसे ? फिर छुप -छुपा कर कुवैत से जॉर्डन पहुँचे।वहाँ कोई नहीं साथ देने को।तभी भारतीय झंडा अपने तीन रँग में शान से लहराता दिखा।मत पूछो यार मेरे नाक के नथुने फड़फड़ा रहे थे।गले में दर्द हो रहा था।आँख से आँसू गिरने को तैयार थे।माने जब भोकास पार के रोआई आवे और रोआई रोकला पर जे होला उहे होत रहे।आखिर आँसू गिर पड़े।फिर लगा कुछ भी हो पर सच में "झंडा है अपना प्यारा"।चाहे बोले या ना बोले "भारत माता की जय" ,देश रहे परदेश रहे।दिल में हिन्दुस्तान तो हमेशा रहता है,दबा हुआ ही सही।चाहे हारे तो जीते तो।फिर इसी बात पर हिन्दुस्तान की जय ,भारतीय क्रिकेट टीम की जय ,मेरे चौथे ,पाँचवे प्यार धोनी की जय ,विराट की जय साथ में सिमंस की भी जय।का है कि हम हिन्दुस्तानी दिल से किसी का बुरा नहीं चाहते।वो अलग बात है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश दिल पर ले लेता है।
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