Wednesday 31 May 2017

लॉन्ग वीकेंड ट्रिप "अकार्डिया नेशनल पार्क "

इस लॉन्ग वीकेंड हमारी सवारी निकली "अकार्डिया नेशनल पार्क " की सैर करने। लास्ट ईयर इसी मेमोरियल डे के लॉन्ग वीकेंड पर हमलोग "येलो स्टोन नेशनल पार्क " गए थे। उस समय मेरे  सत्यार्थ का सृजन हो रहा था। मेरा सत्यार्थ मेरी आँखों से सब देख रहा था। इस बार सत्यार्थ हमलोग के साथ ,अपनी प्यारी -प्यारी आँखों से सब देख रहा था। तेज हवा के झोंके जब उसके नन्हे चेहरे से टकराते तो ,थोड़ा घबड़ाता ,थोड़ा चौंक जाता।फिर आँखे खोलने -बंद करने लगता।

अकार्डिया नेशनल पार्क ,"मेन स्टेट " में आता है। ये  स्टैंफोर्ड से कुछ छह घंटे की दुरी पर है। पहले हमलोग 6 /7 घंटे की दुरी एक ही ब्रेक में पूरी कर लेते थे। अभी सत्यार्थ है तो ,छोटे -छोटे ब्रेक लेने का सोचा। इसलिए हमलोग फ्राइडे चार बजे    ही घर से निकल गए। इस बार की सवारी में फिर से  ड्राइवर रिपीटेड  (शतेश ),मनमौजी सवारी (तपस्या ) रीपिटेड। बस एक नये सदस्य सत्यार्थ जुड़े थे। पहली बार किसी ट्रिप पर हमलोग सामान भर -भर कर ले जा रहे थे। बेचारी सी आर  वी  कह रही थी ,मुझ पर रहम करो। गाड़ी है ट्रक नहीं। ट्रंक फुल हो जाने के बाद भी ,रॉकर को आगे की सीट पर रख के ले जाया गया। इस बार हमलोग खाना पकाने का सामान भी साथ ले जा रहे थे। पहले कहीं भी रुक कर खा लेते थे। अभी सबकुछ मीर मस्ताना अका सत्यार्थ तय करता है। वैसे तो सत्यार्थ ज्यादा परेशान नहीं करता ,पर उसका भी मूड अपनी माँ की तरह स्विंग होता रहता है। दूसरा हम उसे ज्यादा परेशान नहीं करना चाह रहे थे।

चार घंटे की दुरी पर ही हमने हॉटेल लिया था। छह बज गया था। सत्यार्थ को भूख लग गई थी। हमने एक ब्रेक लिया। डंकिन डोनट्स में रुके। उसको फीड कराने के साथ-साथ हमने भी कॉफी , हास्ब्रॉउन लिया। दूसरी कुर्सी पर एक अधेड़ उम्र की महिला अकेली बैठीं थी। हमने नोटिस किया की वो हर आने वाले को पकड़ कर बातें करने लगती थी।  हमे भी पकड़ लिया। इंडिया में कहाँ से हो -दिल्ली से  ? मैंने कहा नहीं ,बिहार से। उन्होंने  बिहार नहीं सुना था ,पर कलकत्ता मालूम था। मालूम होने की वजह मदर टेरेसा थी।लग रहा था ,काफी दिनों बाद लोग मिल रहे थे उनको ,बात करने के लिए । वो बीच -बीच में मीर की तारीफ किये जा रही थी। जैसे ही मीर की फीडिंग पूरी हुई ,हमलोग निकल पड़े। हमलोग उनसे विदा ले कर सामान समेट ही रहे थे कि ,उन्होंने एक और फॅमिली को पकड़ लिया। मुझे लगता है ,उनकी यही छुट्टीयाँ बिताने का अंदाज होगा।

हमलोग अपने पड़ाव पर रात के नव साढ़े नव बजे पहुँचे। स्टेंडर्ड स्टे अमेरिका हॉटेल लिया था। किचेन था तो मस्त अदरख वाली चाय बनाई। घर से आलू के पराठे और आलू मटर की सब्जी ले गई थे। वही खाया और चाय पी । टीवी देखते हुए मीर  को फीडिंग कराई और सो गए।

Thursday 25 May 2017

टीन ऐज मॉम !!!

ऐसे क्यों देख रही हो मुझे ? हाँ ,जो गोद में बच्चा अभी उठाया ,वो मेरा ही है। तुम भी तो माँ हो ,मुझे कैसे नहीं पहचान पा रही ? बीलिंग काउंटर की लाइन में लगे हम दोनों आँखों से बातें कर रहे थे। कभी तुम नजरे बचा कर मुझे देखती तो ,कभी मैं तुम्हें ।यहाँ दूसरों को घूरना असभ्यता जो है । वैसे कद काठी में हम दोनों बराबर ही होंगे। रँग का थोड़ा फर्क है बस। तुमने तो मुझे आसानी से इंडियन समझ लिया होगा। या हो सकता है मैक्सिकन भी समझा हो। इंडियन ,मैक्सिकन लड़कियाँ थोड़ी मिलती -जुलती जो है। पर मैंने तुम्हे सिर्फ अफ्रीकन या अमेरिकन अफ्रीकन समझा। बराबर की लाइन में तुम स्ट्रॉलर ले कर खड़ी हो। स्ट्रोलर में जो बच्चा है वो तो तुमसे थोड़ा अलग है। उसकी आंखे चाइनीज लोगों की तरह छोटी है। रंग भी थोड़ा साँवला है। पहली नज़र में मुझे लगा ही नहीं ये तुम्हारा बच्चा है। मैंने अपने मीर को गोद मे लिए तुम्हे जानने की कोशिश कर रही हूँ। तुमने और तुम्हारे बच्चे ने शायद मेरे मन की बात जान ली। वो थोड़ा रोया। तुमने  बच्चे को गोद में उठा लिया और इब्राहिम माय बेबी कह कर किस करने लगी। जिस तरह तुम उसे लाड़ कर रही थी। वो एक माँ ही कर सकती है।शनिवार का दिन है।भीड़ बहुत है ,इसलिए  बीलिंग  की लाइन भी  धीरे -धीरे आगे बढ़ रही थी। चलो हमलोग के पास समय है ,,एक दूसरे को देखने का। स्माइल करने का। पर ना तो तुमने बात की ना मैंने।

अरे रुको ,कही तुम्हे ये तो नहीं लगा  कि ,मैं भी टीन ऐज मॉम हूँ। बहन मैं अपने चंद सफ़ेद बालों की कसम खा कर कहती हूँ -मैं सिर्फ माँ हूँ। अब तुम हँस मत देना कि ,कसम खाई भी तो सफ़ेद बाल की। बाल सफ़ेद करवाना तो एक फैशन है यहाँ।

खैर तुम उम्र के जिस पड़ाव पर हो ,वो मैं पार कर चुकी हूँ। वो बात अलग है ,साल दर साल मैं और ख़ूबसूरत हो रही हूँ। मन से भी और तन से भी। ख़ुद पर ज़्यादा ना इठलाते हुए ,मैं तुम्हे फिर से देखती हूँ। तुम जो कपड़े ली हो ,उसे देख रही हो। सोच रही हूँ -कौन -कौन होगा तुम्हारे साथ ? कैसे हिम्मत आई होगी तुममे इस उम्र में बच्चे को सँभालने की ? भले शरीर से तुम माँ दिख रही हो पर क्या तुम्हारा मन भी माँ की तरह मज़बूत हुआ होगा ? सोच रही थी की ,आवाज़ आई -नेक्स्ट प्लीज़  और मैं आगे बढ़ गई। तुम पीछे छूट गई।

अमेरिका में टीन प्रेग्नेंसी बहुत ज़्यादा है।कुछ  कारण ,अशिक्षा ,गरीबी ,बच्चों का अकेले होना। तो कुछ सेक्सुअल हरासमेंट और टीन ऐज में मैच्योर दिखने की बीमारी है। दूसरा यहाँ अबॉरशन रेट बहुत कम है। वैसे सरकार इन बच्चों की मदद तो करती है ,पर ज्यादातर लड़कियां अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देती है। जबकि स्कूल में डे केयर भी बना होता है ,इनके बच्चों के लिए। सरकार की तरफ से इन्हे कुछ काइंड ऑफ़ पेंशन जैसा मिलता है। जिससे ये आपने बच्चे की परवरिश कर सके।पर इसके लिए कुछ माप दंड होते है।


Tuesday 23 May 2017

कुत्तों की भी कम मौज नहीं यहाँ !!!

बहुत दिनों बाद मौसम अच्छा हुआ था। अच्छा इन द सेन्स जैकेट ,कोट का बोझ उतार फेकने का मौसम। लोग रंग- बिरँगे शॉट्स ,वन पीस ,स्कर्ट आदि में घूम रहें थे। हमलोग भी मीर के साथ डाउनटाउन के बीच बने पार्क में घूमने निकल पड़े। पार्क के सामने ही ,सड़क के दोनों तरफ रेस्टोरेंट है।लोग बाहर लगी टेबल कुर्सियों पर बैठ कर खा -पी रहे है। यहां अमूमन लोग शाम के सात से आठ बजे के बीच डिनर कर लेते है ,वीकडेज़ में। हमलोग शाम की चाय पीकर निकले थे। शतेश बोले साढ़े आठ हो गए है तपस्या। इधर ही खा कर घर चलते है। आईडिया तो अच्छा था ,पर मीर के भी फीडिंग का समय हो रहा था। मैंने मना किया और घर की तरफ चल पड़े। अपार्टमेंट के लिफ्ट के बाहर एक लड़की कुत्ते के साथ खाड़ी थी। उसका कुत्ता इतना बड़ा था कि ,हमलोग थोड़ा डर गए अचानक सामने देख कर। हमें इट्स ओके बोल कर ,मैडम ने अपने कुत्ते की बड़ाई की -ही इज अ फ्रेंडली डॉग। कुत्ता भी अपनी बड़ाई पर पूंछ हिलाने लगा। मैंने लड़की का दिल रखने के लिए कुत्ते का नाम पूछ लिया। लड़की खुश होकर बोली - जोज़ो।

 दूसरे दिन भी मौसम अच्छा था। शतेश ऑफिस से आते ही बोले -तपस्या ,आज समुंदर के किनारे वॉक पर चलते है। हमारे यहाँ से बाई ड्राइव ,पांच से सात मिनट की दुरी पर ही बीच है। शतेश ने फटाफट चाय बनाई। तबतक मैं मीर को तैयार  कर खुद भी कपडे चेंज करने चली गई। मुश्किल ये हुई ,आफ्टर डिलीवरी मेरे कोई शॉर्ट्स मुझे फिट नहीं आ रहे थे। इधर चाय की कप टेबल पर विराजमान हो गई थी। शतेश बोले -अरे यार चाय ठंढी हो जाएगी। कोई स्कर्ट पहन लो ,इतने तो है तुम्हारे पास।अब  स्कर्ट कौन आयरन करे। मैं उन्हें अनसुना कर ,एक काला शॉट्स खुद में फँसाया। चाय ख़त्म कर बीच के किनारे पहुँचे। बीच के स्टार्टिंग में ही दो बड़े पार्क है। जिसमे एक साइड कुछ लोग  फुटबॉल  खेल रहे थे  तो दूसरी तरफ बेसबॉल। कुछ फॅमिली उसी में डिस्क थ्रो खेल रही थी। हमलोग आगे बढ़ते हुए पार्किंग तक पहुंचे।
अच्छी खासी भीड़ थी। लोग गाड़ी के डिक्की (ट्रंक ) में खाने -पीने के सामान सजा रखे थे। पार्किंग में ही खाना -पीना शुरू था। कुछ लड़के गाड़ी का म्यूजिक लाऊड करके झुण्ड में बियर और सिगरेट का मजा ले रहे थे। कुछ लोग समुंदर के किनारे बने ट्रेल पर टहल रहे थे। तो कुछ अपने बच्चों के साथ पानी और बालू से खेल रहे थे। यहाँ  एक छोटा सा बोड वाक भी है। बोड वाक पर बैठने के लिए बीच में बेंच लगे हुए है। आप चाहे तो बैठ कर समुंदर को घंटों  निहार सकते है। 
एक बेंच पर एक बूढ़ी औरत बैठ कर बड़ी तल्लीनता से कुछ बुन रही थी। शायद अपने नाती -पोते का स्वेटर बना रही हो। उधर से मेरी नज़र हटी तो सामने देखा ,दो कप्पल कायकी (कश्ती खे ) कर रहे थे ।लड़का आगे -आगे लड़की एक कुत्ते के साथ पीछे -पीछे। कुत्ता भी निर्भीक खड़ा था ।वो भी मौसम और समुन्द्र का मजा ले रहा था ।मुझे बहुत अच्छा लगा देख कर । झट से एक तस्वीर ले ली ।पर दुरी की वजह से साफ़ नहीं आ पाई। मौसम इतना अच्छा था की आने का तो मन नहीं कर रहा था ,पर 8 :45 हो गए थे। हमलोगों ने घर का रास्ता लिया।आते हुए हमें एक लड़का गाड़ी के डिक्की पर चिपका हुआ दिखा। दूसरा लड़का ,गाड़ी फ़ास्ट ,स्लो चला रहा था। म्यूजिक कम ज्यादा कर रहा था। साथ में चिल्ला कर गाये जा रहा था। शायद नशे में थे। वैसे ऐसा यहाँ पहली बार देखा मैंने। पुलिस देखती तो फाइन हो सकती थी।खैर तस्वीरों का मजा लीजिये। 

हाँ मैंने उस बूढ़ी महिला की भी एक तस्वीर ली।बिना बताये ली ,इसलिए सामने से नहीं लिया।

Sunday 21 May 2017

ठंढे आँसू !!!

सा रे गा मा पा लिटिल चैम्पस देख रही थी। आज मदर्स -डे स्पेशल शो था। माँ के ऊपर बने बेहतरीन गीत बच्चे गा रहे थे।वैसे तो सब अच्छा गाते है ,पर मुझे श्रेयान बहुत पसंद है। एक तो वो अच्छा गाता है ,दूसरा हमने मेरे सत्यार्थ यानि मीर मस्ताना का एक नाम" श्रेयान " भी सेलेक्ट किया था। पर आज रिया बिस्वास  (प्रतियोगी ) ने इमोशनल कर दिया। आज कुछ ऐसा हुआ ,जिससे मेरा दिल तो भरा ही ,आत्मा भी भींग गई।

हुआ यूँ ,मीर मस्ताना को गोद में लेकर मैं ये प्रोग्राम देख रही थी। मीर भी मेरे गले के चेन से खेलने में व्यस्त था। प्रोग्राम में  रिया ने ,तू कितनी अच्छी है ,गाना शुरू किया और मेरी आँखों से आँसू बरसने लगे। नाक ने भी रोना शुरू कर दिया। मुझे ऐसा देख ,शतेश हमेशा की तरह मेरे आँसू पोंछते हुए बोले -अरे -अरे ,बस तपस्या बस । पर मेरे आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। बरसते जा रहे थे। शतेश टिशू पेपर लाने कीचेन में गए। इधर मेरा मीर ये सब देख रहा था। पता नहीं उसे क्या महसूस हुआ ?  वो भी मेरी तरफ देख कर रोने लगा। आम तौर पर वो जोर -जोर से रोता है। पर ईस बार उसकी रुलाई अलग थी। कुछ मेरी तरह ही रो रहा था। म्यूट मोड़ में। अपने होठ को उल्टा करके। उसकी आँखे आँसुओं से भरी थी।चेहरे के भाव ऐसे ,मानों उसको कितनी तकलीफ़ हुई हो। मैंने मेरे मीर को ऐसे कभी नहीं देखा था। उसे तुरंत अपने  सीने से चिपका लिया। हम दोनों की धड़कनें एक सामान काँप रहे थे। मानों मेरी भावनाएँ मेरा मीर समझ रहा था। मेरे सीने से लगते ही वो चुप हो गया। पर उसके भरे ऑंखों के दो -चार बून्द ठंढे आँसू ,मेरे बाजू पर गिरे पड़े। फिर तो मेरे ठंढे आँसुओं की बरसात एक बार फिर चल पड़ी। सच में आज समझ आया ,माँ और बच्चों के तार कैसे दिल से जुड़े होते है। "सच में मेरी माँ  ,तुम ठीक ही गाती हो  "माई रे माई तोर मनवा जइसे गंगा के पनिया हो राम " इन्ही आँसुओं पर  एक दिलचस्प वाक्या याद आ रहा है।

मेरे एक दोस्त ने मुझसे पूछा था -तुम्हे मालूम है तपस्या ,आँसू कितने तरह के होते है ? उसका सवाल सुनकर मैं हँस पड़ी थी। बोली -आँसू का एक ही प्रकार होता है -गीला। उसने कहा हाँ ये ठीक है तपस्या ,पर आँसू दो तरह के होते है। एक ठंढे आँसू और दूसरा गरम। मैंने पूछा कैसे ? उसने कहा -जब आप  प्रेम में रोते हैं ,तो उस समय ठंढे आँसू बहते है। वहीँ जब आप क्रोध में रोते हैं ,तो गरम आँसू गिरते हैं। कितना सच कहा था उसने। सच में आज आँसू ठंढे ही थे। वैसे तो मुझे मीर के आँसू बिल्कुल नहीं पसंद। पर आज इन्हे देख कर लगा -मेरा नन्हा मीर मुझसे कितना प्यार करता है। आज के इसके आँसू मुझे हमेशा याद रहेंगें। इन्हें संभाल तो नहीं पाई मैं ,पर इन्हें अपने आँखों में जरूर छुपा लिया है। इस पल को मैं कभी नहीं भूल पाऊँगी। मेरे मीर अब तुम कभी मत रोना। तुम्हारी माई ने तुम्हारे सारे आँसू अपनी आँखों में छिपा लिए है।

Wednesday 17 May 2017

सुई ,मैं और मीर मस्ताना !

यहाँ के डॉक्टर कमाल के हैं। आप जब भी जाते है ,उतनी ही देर के लिए आपसे इतनी दोस्ती गाढ़ लेंगें की पूछिए मत। आपसे ऐसे मिलेंगें ,जैसे आपको कुछ हुआ ही ना हो।छोटी -मोटी बीमारी जैसे ,सर्दी -खाँसी ,बुखार  ,फोड़े -फुंसी में तो पहली बार दवा ही नहीं देते।आपको पानी पीने और आराम करने की सलाह दे देते है ।दवा दे या ना दे ,हर विज़िट का कोपेय देना होता है। कोपेय आपके टोटल फीस का कुछ परसेंट होता है।जिसे आपको देना होता है।बाकी आपका इन्शुरन्स पेय करता है।यहाँ हर किसी का इन्शुरन्स होना जरुरी है।इन्शुरन्स के बिना कई डॉक्टर देखते नहीं।वही बिना इन्शुरन्स के फीस बहुत ज्यादा हो जाती है।

कल मेरे मीर मस्ताना को ,चार महीने पर लगने वाला टीका लगा।मुझे याद है ,जब मुझे कभी सुई लगती थी।दो -चार लोग तो पकड़ने वाले होते। निरमोही डॉक्टर सामने ही मेडिसीन की शीशी तोड़ता। दवा सुई में भरता। दो -चार बून्द सामने ही फिचकारी टाइप मार कर गिरता। फिर दांत दिखाते हुए कहता अरे कुछ नहीं होगा ।रोना बंद करो। पहले मैं ऊन -ऊन करके रोती रहती। जैसे थोड़ा सुई चुभता फिर, अहहां -अहहां करती। जब सुई चुभ जाती तो आआआआ करती। डॉक्टर साहब इसकी परवाह किए बिना फिचकारी मारते और दवा अंदर जाती। दवा अंदर जाते ही मेरा ,आय -आय काय -काय सब हो जाता।आँख -नाक सबका पानी मिल कर मुँह पर टपक रहा होता।

मेरा मीर मस्ताना बहादुर है।वो बस कांय से किया।आँखों में आंसू भर आये थे ।मुँह थोड़ी देर तक खुला रहा ।अपने यहाँ इसे साँस टँगा कर रोना कहते है।नर्स तुरंत गोदी में लेकर हिला दी ,चुप हो गया। तीन सुइयाँ पड़ी ।दो नर्स तैयार थी ।मीर के दोनो जाँघों को पकड़ा। दोनों ने आपस में बात की -रेडी और दोनो पैर में एक ही बार में घोप डाला ।सारा मामला खत्म।दवा -दारू सब बना के ,सुई में भर कर ही लाई थीं ।बच्चा रोया नहीं की ,उनका आई ऍम सॉरी बेबी ,ब्रेव लिटल मैन शुरू हो जाता है। अब बच्चे को मैन कह दोगे तो ,शर्म से चुप हो ही जायेगा।साथ में कार्टून वाला हैंडीप्लस चिपका देते हो ।मेरे डॉक्टर तो कहते थे -ज्यादा रोई तो एक और सुई लगा दूँगा।रुई में स्पीरिट लगा कर मल देते ।माँ को कहते -कोई बात नहीं बच्ची है ।डर गई है ।चुप हो जायेगी थोड़ी देर में ।

Monday 15 May 2017

चार स्टेट तीन घंटे चालीस मिनट में ।

मुझे अमेरिका का ईस्ट कोस्ट ज़्यादा पसंद है ।यहाँ मौसम के हर रंग की अपनी ख़ूबसूरती है ।कभी पेड़ के पत्तों का रंगीन होना (फ़ॉल कलर )तो  कभी पेड़ों का फूलों से लद जाना ।कहीं समंदर तो कहीं न्यू यॉर्क जैसी चमक -धमक ।वेगास सी झलक लिए अटलांटिक सिटी तो ,नयग्रा जलप्रपात की बात ही अनोखी है ।ठंड में हर तरफ़ बर्फ़ की चादर ।ठंड कभी -कभी परेशान तो करती है ।फिर भी मुझे  टेक्सस की तुलना में ईस्ट कोस्ट ज़्यादा पसंद है ।खाने के इंडियन रेस्टरों के साथ मंदिर भी आसानी से मिल जाएँगे ।न्यू जर्सी तो एक तरह से इंडिया ही है ।प्लेनबोरो मे हमारे घर सामने ही स्वीमिंग पूल था ।गरमियों में वहाँ कुछ अंकल -आंटी ,लूँगी और नाईटी में बैठी हुई दिख जाती ।मेरे घर के सामने एलिसाबेला रही थी ।मुझसे पूछती लव्ली -हाउ टू वियर दोस्ज ड्रेस(धोती ) ? मेरे कहने का मतलब न्यू जर्सी में आपको इंडिया की कमी महसूस ही नहीं होगी ।छोटे -छोटे से स्टेट है ।इस सप्ताह हमलोग चार स्टेट लाँघते हुए ,डेलवेर पहुँच गए ।सिर्फ़ 3:40 मिनट में ।शनिवार को पूरे दिन बारिश थी ।शतेश बोले घर में रहने से अच्छा दोस्त से मिलकर आते है ।बस हमलोग निकल पड़े मौसम का मज़ा लेते हुए ।रास्ते में फ़िलिडेलफ़िया में मेरी एक दोस्त रहती है ।2/3 घंटे के लिए उसके यहाँ रुके ।स्वादिष्ट खाना खाया ,ख़ूब बाते की और अलेक्सा से भी मिली ।अलेक्सा एक ईको डॉट है जो साउंड से कमांड फ़ॉलो करती है ।जैसे -अलेक्सा लाइट ऑन और बल्ब जल उठते है ।अलेक्सा स्टोरी सुनाओ ,स्टोरी शुरू ।बात -चीत में समय कब निकल गया  पता ही चला ।विदा लेते समय गुड़िया ने मीर मस्ताना और मुझे कुछ गिफ़्ट दिए ।मुझे अपना गिफ़्ट देख कर घर की याद आ गई ।ख़ूबसूरत चूड़ियाँ थी ।डेलावेर का सफ़र हमलोगों ने आधे घंटे में तय किया ।वहाँ नन्हीं आराध्या ,मीर को देख कर हैरान थी ।कभी मीर के सिर को छूने की कोशिश करती कभी फ़ेस को ।माना करने पर रोने लगती ।रात के खाना के बाद ,गेम्स की बारी थी ।अर्चना बोली -भाभी आराध्या को सुला कर खेलते है ।एक बार सो गाई तो सुबह ही जागती है ।अर्चना उसे सुला कर ख़ुश होकर कहती है -अब खेलते है ।वो नहीं जागने वाली ।तभी मुस्कुराती हुई आराध्या ढुलमुल -ढुलमुल कर चलती आती है ।हमलोग हँस-हँस के पागल हो गए ।ख़ैर उसको फिर से सुला कर गेम शुरू हुआ ।3:30 तक हमलोग जगे रहे ।फिर सोने की तैयारी हुई ।अगले दिन नास्ता करके हमलोग निकल पड़े ।रास्ते में वैंकटेश्वरा टेम्पल (ब्रिज वॉटर टेम्पल ) में दर्शन करते हुए घर आना था ।ट्रैफ़िक मिल जाने से हमलोग घर देर से पहुँचे ।यहाँ की ट्रैफ़िक झेलाऊँ होती है ।सेफ़ डिस्टन्स रखो ,कोई हॉर्न नहीं ,कोई आड़ी टेडी बीच में घुसतीं गाड़ियों का झुंड नहीं ।बस धीरे -धीरे रेंगते रहो ।मंदिर और ट्रैफ़िक की एक तस्वीर ।

Thursday 4 May 2017

मुकुल शिवपुत्रा और पागल मन मेरा !!!

कई बार तकलीफ़ में आप कुछ अच्छा सीख जाते है ,जान जाते है।बहुत -बहुत धन्यवाद माइग्रेन तुम्हारा।पीड़ा तो तुम दे ही चुके हो।पर इस बीच मुझे अपने कुछ खैरियत चाहने वाले दोस्तों की भी जानकारी हुई।तुम्हारे बहाने सही ,मुझे दोस्तों के प्यार का अंदाज़ा तो हुआ।वरना आजकल किसे इतनी फुर्सत ?कहाँ इतनी आत्मीयता कि मेसेज करके पूछे -ठीक तो है सब ?दूसरा जब भी तुम आते हो ,मेरा क्लासिकल म्यूजिक से प्रेम और बढ़ जाता है।दिल्ली में जब भी सिर दर्द होता ,भाई गुलामी में जुट जाता।साथ ही म्यूजिकल प्रयोग शुरू होता।आह क्या दिन थे वो।अमेरिका आने के बाद दर्द में शतेश ने चाकरी शुरू की।संगीत का प्रयोग मैं अकेली करने लगी।कारण शतेश को क्लासिक म्यूजिक कुछ खास पसंद नहीं।या यूँ कहे पहले कभी सुना नहीं तो आदत नहीं।पर अब तो आलम ये है कि ,जब भी मेरा सिर दुखता है।शतेश खुद से कहते है -तपस्या काहे अब तुम आये बजा लो (मालिनी राजुरकर जी का गया -राग सोहनी )ये संगीत है ही ऐसा कि ,इसका नशा धीरे -धीरे चढ़ता है।वैसे अगर आपको सिर दर्द की समस्या हो तो -राग दरबारी ,राग केदार ,सोहनी और जैजैवंती सुन सकते है।एक सुझाव भी है ,अगर पहले नहीं सुना हो इन रागों को तो ,सर दर्द में पहली बार ट्राई ना ही करे। ऐसा ना हो अच्छा ना लगने पर दर्द और बढ़ जाए।इन रागों से बने फिल्मीं गीत भी सुन सकते है।खैर इसी दौरान मैंने "मुकुल शिवपुत्रा " "पंडित कुमार गन्धर्व "जी के बेटे को सुना।कुमार जी का निर्गुण सुनते समय मुझे यूट्यूब पर मुकुल  जी का गाया -बमना एक सगुन बिचारूं सुनने को मिला।इनके बारे में सर्च किया तो मालूम हुआ कि ,ये कुमार गन्धर्व जी के बेटे है।अब समय की ऐसी त्रसदी कह सकते है या प्रेम की पीड़ा। जो ऐसे गुणी व्यक्ति को नशे की लत लग गई।इनके बच्चे के जन्म के बाद इनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। उसके दुःख में इन्होने सब कुछ छोड़ दिया।नशे के धुत में इधर -उधर भटकते रहते।इनके घरवाले भी परेशान रहने लगे।इन्हे इंदौर के नशा मुक्ति केंद्र में रखा गया।मैं थोड़ी परेशान हो गई ,ये पढ़ कर।उस दिन दिनभर मैंने इनके बारे में गूगल किया।इनके गाने सुने।कई जगह पढ़ने को मिला कि ,कुमार जी के बेटे होने का भी प्रेशर था इनपर। तो कहीं लिखा था इनकी बहन (सौतेली ) कलापिनी कोमकली नहीं चाहती थीं कि ,मुकुल जी उनसे आगे जाए गायकी में। खैर इस बात में कितनी सच्चाई है मालूम नहीं। पर ये सच था कि ,ये नशे के आदी थे।इनका इन्दौर में इलाज चल रहा था। मैंने उस दिन कैसे दिन काटा मैं ही जानती हूँ।मन बहुत परेशान हो गया था। जैसे इंडिया में सुबह हुई। मैंने भाई को कॉल लगाया। उससे इनके बारे में पूछा।भाई को इनके बारे में कुछ मालूम नहीं था।मैंने उससे कहा काश तुमको समय होता। जा कर इनसे मिल आते।भाई ने मुझे समझाया ,बोला ऐसे बहुत लोग है बहिन।परेशान मत हो।अन्न्पूर्णा देवी जी को ही देख लो।भाई से और भी बहुत सारी बातें हुई ,म्यूजिक से रिलेटेड।बात खत्म करके, मैं फिर से मुकुल जी को सुनने लगी।मुकुल जी का गया -सांवरे अई जइयो ,जमुना किनारे मोरा गाँव ,सुनकर गाला भर आया। लॉन्च का समय था।शतेश  हमेशा की तरह घर आये।और मैं जो उनसे लिपट कर रोने लगी कि ,वो तो घबड़ा ही गए।थोड़े देर बाद जब मैं शांत हुई। तो उन्हें पता चला ,गाना सुनकर रो रही थी।शतेश हँसते हुए बोले -तपस्या गाना सुनकर ऐसे रोते हुए किसी को पहली बार देख रहा हूँ।तुम भी ना ,मुझे तो डरा ही दिया था।आह  आज भी जब भी इस बंदिश को सुनती हूँ ,मालूम नहीं क्यों आंसू आ जाते हैं। वैसे इस ठुमरी की मैं पहले भी कुमार जी आवाज में ,वसंतराव  जी और प्रभा आत्रे जी की आवाज़ में सुन चुकी हूँ। पर जो शांति मुकुल जी आवाज़ में मिली वो बयाँ नहीं कर सकती।मन कहीं खो सा जाता है। 

Monday 1 May 2017

यादों के काँटेदार ,नशीले फूल !!!

इन फूलों को हमने कई बार देखा होगा। हमारे आस -पास बेतरतीब से ,घांस के बीच अपनी जड़ें जमाये हुए। अपनी ओर खींचते हुए। कुछ को तो मैंने पूजा के लिए भी तोड़ा है ।फिर भी इन्हें वो प्यार नहीं मिला जो ,गुलाब ,गेंदा ,बेली आदि को मिलता हैं। इन पौधों को हम बाग़वानी के लिए भी इस्तेमाल नहीं करते। इसके बावजूद ये ढीठ की तरह कहीं भी उग आते है।अपनी ओर आकर्षित करते है ।बच्चों में तो ये फूल काफ़ी लोकप्रिय होते थे। खेलने के लिए गुलाब ,गेंदा तोड़ कर डाँट खाने से अच्छा इन्हीं से हमलोग प्यार कर लेते। इनके काँटेदार होने की वझह से कई बार हमलोंगों के हाथ में काँटे भी  चुभ जाते ।फिर भी हम इन्हें तोड़ना नहीं छोड़ते । तो चलिए नागफनी से शुरुआत करते है। वैसे भारत में तो मैंने नागफनी की दो ही प्रजाति देखी है।एक जो मैंने बसंतपुर में लगाई थी। लम्बे ,थोड़े पतले से।उनमे सफ़ेद फूल खिलते थे। उन फूलों में ख़ुश्बू भी होती थी।कुछ इस तरह के थे वो
दूसरी पीले फूल वाले। जिनकी पत्तियां चौड़ी और मोटी होती है। वैसे नागफनी की तो अमेरिका में ढेरों प्रजाति है ।एरिज़ोना जब गई थी। वहां तो कई देखने को मिले।मेरी एक फ़्रेंड डेज़ी जो कोस्टारिका कीऔर उसका पति मीगेल जो पुर्तगाली से हैं ।उन्हें कैक्टस प्लांट का बहुत शौख है। उनके घर में भी कैक्टस प्लांट लगे थे।बातों -बातों में ही उसने बताया था ,की  अमेरिका में तो कैक्टस प्लांट की तस्करी होती है ।पकड़े जाने पर भारी जुर्माना भी है ।पर वो कुछ ख़ास तरह के कैक्टस होते है ।बाक़ी तो मार्केट में आसानी से मिलते है।लोग ख़रीद कर उन्हें अपने घरों में ,गॉर्डन में लगाते है ।

ऊपर जो तस्वीर है ,इसमें दूसरा और तीसरा तो भुये का फूल है। कई बार हमलोग इसे रुईया या हवा के के फूल कहते। चौथा जो पीला फूल है ।उसे पोपी कहते थे शायद,ठीक से याद भी।यदि आपलोगों इसका नाम मालूम हो तो बताये ।इनकी पंखुडियाँ अलग करके हमलोग बजाते थे ।कुछ सीटी जैसी आवाज़ निकलती थी ।कभी -कभी जोर से फूँकने पर फट भी जाती थीं। नीचे जो तस्वीर है ,पहली तस्वीर -भेंगराज की है ।जिसके पत्तों से हमलोग सिलेट साफ़ करते थे ।मेरे चाचा की लड़की तो इसे पीस कर बालों में भी लगती थी ।कहते है इससे बाल काले होते है ।
भेंगराज के बाद जो तीन फूल है। उनको बस तोड़ लातें।नाम नहीं मालूम था /है।पाँचवा और छठा फूल ,क्रमशः भांग और मदार के फूल हैं ।इनको माँ भगवान शंकर पर चढ़ाने के लिए तोड़ती।कभी -कभी मुझसे भी मंगवाती ,पर हिदायत के साथ।ये दोनों नशीले पौधे होते।भांग तो फिर भी ठीक है ,पर मदार के फूल लाने के बाद ,माँ तुरंत हाथ साबुन से धोने को कहती ।मदार के फूल तोड़ते समय ,एक दूध जैसा द्रव्य निकलता है ।कहते है अगर वो गलतीं से आँख में पड़ गया तो अंधे हो सकते है ।अच्छा भांग भी अमेरिका में बैन है।आप दारू पी सकते है पर भांग के साथ पकडे जाने पर जेल है ।भांग को यहां मेरुआना कहते है ।