कई बार तकलीफ़ में आप कुछ अच्छा सीख जाते है ,जान जाते है।बहुत -बहुत धन्यवाद माइग्रेन तुम्हारा।पीड़ा तो तुम दे ही चुके हो।पर इस बीच मुझे अपने कुछ खैरियत चाहने वाले दोस्तों की भी जानकारी हुई।तुम्हारे बहाने सही ,मुझे दोस्तों के प्यार का अंदाज़ा तो हुआ।वरना आजकल किसे इतनी फुर्सत ?कहाँ इतनी आत्मीयता कि मेसेज करके पूछे -ठीक तो है सब ?दूसरा जब भी तुम आते हो ,मेरा क्लासिकल म्यूजिक से प्रेम और बढ़ जाता है।दिल्ली में जब भी सिर दर्द होता ,भाई गुलामी में जुट जाता।साथ ही म्यूजिकल प्रयोग शुरू होता।आह क्या दिन थे वो।अमेरिका आने के बाद दर्द में शतेश ने चाकरी शुरू की।संगीत का प्रयोग मैं अकेली करने लगी।कारण शतेश को क्लासिक म्यूजिक कुछ खास पसंद नहीं।या यूँ कहे पहले कभी सुना नहीं तो आदत नहीं।पर अब तो आलम ये है कि ,जब भी मेरा सिर दुखता है।शतेश खुद से कहते है -तपस्या काहे अब तुम आये बजा लो (मालिनी राजुरकर जी का गया -राग सोहनी )ये संगीत है ही ऐसा कि ,इसका नशा धीरे -धीरे चढ़ता है।वैसे अगर आपको सिर दर्द की समस्या हो तो -राग दरबारी ,राग केदार ,सोहनी और जैजैवंती सुन सकते है।एक सुझाव भी है ,अगर पहले नहीं सुना हो इन रागों को तो ,सर दर्द में पहली बार ट्राई ना ही करे। ऐसा ना हो अच्छा ना लगने पर दर्द और बढ़ जाए।इन रागों से बने फिल्मीं गीत भी सुन सकते है।खैर इसी दौरान मैंने "मुकुल शिवपुत्रा " "पंडित कुमार गन्धर्व "जी के बेटे को सुना।कुमार जी का निर्गुण सुनते समय मुझे यूट्यूब पर मुकुल जी का गाया -बमना एक सगुन बिचारूं सुनने को मिला।इनके बारे में सर्च किया तो मालूम हुआ कि ,ये कुमार गन्धर्व जी के बेटे है।अब समय की ऐसी त्रसदी कह सकते है या प्रेम की पीड़ा। जो ऐसे गुणी व्यक्ति को नशे की लत लग गई।इनके बच्चे के जन्म के बाद इनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। उसके दुःख में इन्होने सब कुछ छोड़ दिया।नशे के धुत में इधर -उधर भटकते रहते।इनके घरवाले भी परेशान रहने लगे।इन्हे इंदौर के नशा मुक्ति केंद्र में रखा गया।मैं थोड़ी परेशान हो गई ,ये पढ़ कर।उस दिन दिनभर मैंने इनके बारे में गूगल किया।इनके गाने सुने।कई जगह पढ़ने को मिला कि ,कुमार जी के बेटे होने का भी प्रेशर था इनपर। तो कहीं लिखा था इनकी बहन (सौतेली ) कलापिनी कोमकली नहीं चाहती थीं कि ,मुकुल जी उनसे आगे जाए गायकी में। खैर इस बात में कितनी सच्चाई है मालूम नहीं। पर ये सच था कि ,ये नशे के आदी थे।इनका इन्दौर में इलाज चल रहा था। मैंने उस दिन कैसे दिन काटा मैं ही जानती हूँ।मन बहुत परेशान हो गया था। जैसे इंडिया में सुबह हुई। मैंने भाई को कॉल लगाया। उससे इनके बारे में पूछा।भाई को इनके बारे में कुछ मालूम नहीं था।मैंने उससे कहा काश तुमको समय होता। जा कर इनसे मिल आते।भाई ने मुझे समझाया ,बोला ऐसे बहुत लोग है बहिन।परेशान मत हो।अन्न्पूर्णा देवी जी को ही देख लो।भाई से और भी बहुत सारी बातें हुई ,म्यूजिक से रिलेटेड।बात खत्म करके, मैं फिर से मुकुल जी को सुनने लगी।मुकुल जी का गया -सांवरे अई जइयो ,जमुना किनारे मोरा गाँव ,सुनकर गाला भर आया। लॉन्च का समय था।शतेश हमेशा की तरह घर आये।और मैं जो उनसे लिपट कर रोने लगी कि ,वो तो घबड़ा ही गए।थोड़े देर बाद जब मैं शांत हुई। तो उन्हें पता चला ,गाना सुनकर रो रही थी।शतेश हँसते हुए बोले -तपस्या गाना सुनकर ऐसे रोते हुए किसी को पहली बार देख रहा हूँ।तुम भी ना ,मुझे तो डरा ही दिया था।आह आज भी जब भी इस बंदिश को सुनती हूँ ,मालूम नहीं क्यों आंसू आ जाते हैं। वैसे इस ठुमरी की मैं पहले भी कुमार जी आवाज में ,वसंतराव जी और प्रभा आत्रे जी की आवाज़ में सुन चुकी हूँ। पर जो शांति मुकुल जी आवाज़ में मिली वो बयाँ नहीं कर सकती।मन कहीं खो सा जाता है।
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