Tuesday 29 December 2015

KHATTI-MITHI: फोटोग्राफर कम डिवोर्स कंसल्टेंट !!!!

KHATTI-MITHI: फोटोग्राफर कम डिवोर्स कंसल्टेंट !!!!: कल के मेरे ब्लॉग से बहुत लोग सदमे में होंगे।शरमा कर लाइक किया होगा ,और कमेंट ऐसे चीज़ो पर हिम्मत वाले ही करते है।मै माफ़ी चाहूँगी।मै कोई ताना...

फोटोग्राफर कम डिवोर्स कंसल्टेंट !!!!

कल के मेरे ब्लॉग से बहुत लोग सदमे में होंगे।शरमा कर लाइक किया होगा ,और कमेंट ऐसे चीज़ो पर हिम्मत वाले ही करते है।मै माफ़ी चाहूँगी।मै कोई ताना नही दे रही आप सब को।बस मन में थोड़ा डर है कि ,आप मुझे असभ्य या अश्लील ना सोच ले।क्या करूँ जब यात्रा के बारे में लिख रही हूँ।जो भी हुआ वो ना लिखना नाइन्साफ़ी होगी ,आपलोग के साथ।या फिर हो सकता हो मेरे कोई दोस्त जो न्यूड बीच जाना चाहते हो।कमसे कम मेरा ब्लॉग पढ़ कर उनको जाने की हिम्मत मिलेगी :P वैसे मै उतनी ही असभ्य या अश्लील हूँ ,जितना की एक आम इंसान।हाँ हर किसी का पैमाना अलग-अलग हो सकता है :) आप मुझे अपनी पैमाने के हिसाब से माप ले।बाकी तो मैने माउंटेन ड्यू पी ली है।डर पर भी काबू पा लिया है।खुद को जानती ही हूँ।यात्रा को आगे बढाती हूँ। हॉलोवेर बीच के बाद हमलोग साउथ बीच पहुँचे।हॉलोवेर बीच से 15 -20 मिनट की दुरी पर होगा साऊथ बीच।साउथ बीच पर पार्किंग की बहुत मारा -मारी थी।पार्किंग भी 35 डॉलर की।हमने गाड़ी पार्क की और भगवान का नाम लेकर बीच की तरफ चल पड़े।यहाँ तो काफी भीड़ थी।सफ़ेद बालू धुप में चाँदी से चमक रहे थे।रोड के किनारे हॉटेल और दुकाने अटी पड़ी थी।थोड़ी गर्मी थी उस दिन।पानी में जा के आने के बाद हमलोग बीच पर ही बैठे हुए थे।पानी जैसा नीला आसमान हो।धुप की वजह से या फिर हॉलोवेर बीच की वजह से शतेश का सिर दुखने लगा था।दिन के 2 ;30 बज गए थे।शतेश बोले खाना खा लेते है।हमलोग वही पास में 10 मिनट की दुरी पर एक इंडियन रेस्टॉरेंट "कॉपर चिमनी " गए।हमने ,बेबी कॉर्न मन्चूरियन ,बिरयानी ,छोले भटूर और छाछ आर्डर किया।शतेश का सिर दर्द बढ़ गया था।खाना खा कर उन्होने सिर दर्द की दवा ली।अच्छा हुआ मै दवा साथ ले गई थी।मैंने हॉटेल चलने को बोला।शतेश बोले नही चलो बीच पर ही लेट लूंगा।ज्यादा ड्राइव का मन नही है अभी।हमलोग बीच पर वापस आ गये।शतेश आ कर लेट गए। मै फोटो क्लिकिंग में लग गई।आधे घंटे के बाद शतेश को कुछ आराम हो गया।तब -तक वहाँ एक मॉडल का फोटो शूट हो रहा था।लोग उसको देख रहे थे।उसके साथ फोटो ले रहे थे।बीच -बीच में वहाँ कुछ -कुछ चल रहा था ,जो हमलोगो के लिए सामन्य नही था।हमलोग शाम को कपडे बदलने के लिए बाथरूम साइड गए।वहाँ बहुत बड़ी लाइन थी।लोग गाड़ियों के बीच में या उनके पीछे ही चेंज कर रहे थे।किसी को की फर्क नही पड़ रहा था। कोई किसी को देख भी नही रहा था।मैन कोई ऑप्शन ना पाकर गाड़ी के अंदर ही दोनों तरफ से तौलिया लगा कर चेंज किया।शाम को बीच पर घूमने के बाद। हमलोग स्ट्रीट नंबर 9 गए।बीच से वाकिंग डिस्टेंस पर ही है।बहुत ही लाइवली।रेस्टॉरेंट ,लाइव म्यूजिक ,बार लोगो की भीड़ आह बहुत ही सुन्दर।हमलोग "मैंगोज़ " रेस्टॉरेन्ट में गए।वहाँ शोज हो रहे थे लैटिन डांस और म्यूजिक पर।पर पर्सन एक ड्रिंक लेना कंपल्सरी था।मैंने लेमोनेड विथ कोकोनट वाटर लिया।शतेश का मालूम नही। खाने को बींइंग वेजिटेरिअन हर जगह दिक्कत होता है।हमने वेजी पिज़ा का आर्डर दिया।चीज़ो के दाम ज्यादा थे।पर ठीक है ,म्यूजिक ,डांस सब उसमे ही था।बिल कुछ 135 डॉलर के आस -पास आया।वहाँ से हमलोग रात के 11 बजे तक निकल लिए।जैसे -जैसे रात बढ़ रही थी ,वहाँ भीड़ बढ़ रही थी।हमारा अगला हॉटेल कीवेस्ट के रास्ते में था।सुबह  कीवेस्ट के रास्ते में बहुत ट्रैफिक होती।इसलिए हमने कीवेस्ट जाने के रास्ते में ही हॉटेल बुक कर लिया था।अब तक हमारे सारे ट्रिप का सबसे सस्ता हॉटेल "लॉस वेगास" के बाद का।सिर्फ 45 डॉलर पर नाईट।रूम भी बहुत अच्छा ,ब्रेकफास्ट के भी ढेरो ऑप्शन।अमूमन हॉटेल में ब्रेकफास्ट के नाम पर सिर्फ ओट मील ,ब्रेड कंफ्लाक्स ,जूस ही होते है।पर यहाँ मफिन्स ,वफलस् ,फ्रूट्स ,डिफ़्फेरंट -डिफ़्फरेंट जूस ,कॉफी ,फ्रॉईड पोटैटो और भी बहुत कुछ।मुझे बहुत अच्छा लगा।मुझे तो डर था ,कि सस्ता है तो बकवास ना हो।पर इसका रिव्यु अच्छा था तो बुक कर लिया था।हमलोग ब्रेकफास्ट कर किवेस्ट के लिए निकल पड़े।आह बहुत ही सुन्दर ड्राइव थी वो।4 घंटे कैसे निकल गए मालूम ही नही चला। दोनों तरफ पानी बीच में सड़क और बादल ऐसे मनो नीचे की तरफ आ गए हो।हमलोग किवेस्ट पहुँचे।छोटा सा जगह पर बहुत साफ़ -सुथरा।छोटे -छोटे दूकान।रोड पर लाइव शोसज हो रहे थे।हमलोग एक पॉइंट पर गए जहां से "क्यूबा "90 माइल्स की दुरी पर था।समंदर के किनारे एक कोने पर सीमेन्ट का स्तूप जैसा बना था।उस पर 90 माइल्स टू क्यूबा ,साउदरन  मोस्ट  पॉइंट लिखा था।उसके साथ फोटो खिंचाने की लाइन लगी थी।एक तो गर्मी उसमे हमलोग भरी दोपहरी में पहुँचे थे। मैंने शतेश को बोला दूर से मतलब एक हाथ की दुरी से ही उसकी और मेरी फोटो ले लो।कौन एक घंटे लाइन में लगेगा।इसी बीच एक और मजेदार बात हुई।मियामी से किवेस्ट आते समय।बहुत ही प्यारा लाइट हॉउस जैसा दिखा।कुछ लोग वहाँ गाड़ी पार्क करके बैठे थे।मैंने शतेश को गाड़ी रोकने को बोला।हमने लेट ना हो इसलिए "चिपोटेले" मेक्सिकन रेस्ट्रोरेन्ट से खाना पैक करा लिया था।साथ में चिप्स पानी सब था।मैंने कहा हमलोग भी यही बैठ के खा लेते है और थोडे देर बाद चलते है।जब वहाँ पहुँचे एक लड़की ने मेरे स्कार्फ़ की तारीफ की और बोली बहुत ही अच्छे से बाँधा है ,तुमने।थैंक यू बोल कर हमलोग थोड़ा आगे चले गए।बहुत ही सुन्दर नजारा था।हमलोग एक दूसरे का फोटो लेने लगे।तभी वहाँ बैठे कुछ लोगो में से एक आदमी आया।बोला की अगर हमें कोई तकलीफ ना हो तो वो हमारी फोटो निकाल सकता है।उसने खुद को प्रोफेशनल फोटोग्राफर बताया।हमने उससे चार्ज पूछा तो ,बोला फॉर यू गायज इट्स फ्री।मेरी फ्रेंड को तुम्हारी वाइफ का टर्बन (स्कार्फ )अच्छा लगा। हमें क्या था.हमने उसे कैमरा दे दिया।सच में उसने बहुत प्यारी- प्यारी तस्वीरें निकली। हमें भी अपने कैमरे के इतने खूबी नही मालूम थी जितनी उसे।ये रही उसकी निकाली तस्वीर।
फोटो सेशन के बाद खाना खा कर हमलोग थोड़ी देर वही बैठे रहे।जब हम जा रहे थे। उस फोटोग्राफर ने हमें रोका। पूछा क्या तुमलोग न्यूली मैर्रेड हो।वैसे तो शादी के दो साल हो गए थे।पर मैंने हाँ कह दिया :)  उसने अपना कार्ड हमारी तरफ बढ़ाया। बोला आई आम अ डिवोर्स कंसलटेंट टू। मतलब मै तलाक भी करवाता हूँ।अगर हमें लगे तो उसे कॉल करे। हम दोनों हँस पड़े।शतेश बोले नो वी आर गुड,थैंक यू।और कार्ड नही लिया। मैंने कहा जल्दी भागो यहाँ से।नही तो आये थे साथ जायेंगे अलग -अलग।रात को हमलोग वापस हॉटेल पहुँचे।चेंज करके फिर साउथ बीच पहुंच गए।इस बार हमलोग हमने 9थ स्ट्रीट पर ही दूसरे रेस्टोरेंट गए।मुझे उसका नाम नही याद अभी।मेरा पेट भरा था ,तो सलाद आर्डर किया।शतेश ने बर्गर ,फ्रीइस आर्डर किया।भगवान सलाद के नाम पर दो चार टुकड़े गाजर और खीरे के बाकी पालक के पत्ते सरसों के सॉस के साथ।शतेश हँसते हुए बोले मना किया था ना सलाद मत मँगाओ।चलो एक और बर्गर आर्डर कर देता हूँ।हमलोग जब कल रात मैंगोज़ में गए थे एक लड़की मुझसे बात करने की कोशिश कर रही थी।पर मै शोर में उसको सुन नही पाई।शतेश पीछे से मेरे कंधे पर टैप करके बोले ,देखो शायद फोटो लेने को वो लड़की तुमसे बोल रही है।मैंने जब उससे पूछा तो उसने असल में मेरी ड्रेस की तरीफ के लिए बात की।शतेश का मुँह बन गया।क्योकि ये ड्रेस उन्हें उतनी पसंद नही थी।इसकी वजह इसका प्रिंट और रँग था।मैंने चहकते हुए शतेश को बोला देखा -देखा।शतेश अभी उसी का बदला सलाद के टाइम ले रहे थे।तपस्या जरुरी नही हर वक़्त तुम्हारी पसंद सही हो,देखा -देखा।हमलोग 1 बजे रात तक वहाँ रुके।अगले दिन जेट स्की किया।एवरग्लाड नैशनल पार्क गए।जहाँ  बोट पर बिठा के एक राइड पर ले गए।मगरमच्छ और क़ुछ विलुप्त हो रहे चिड़ियों को दिखाया।बॉट पर बैठी मै आस -पास के नज़रो से रिलेट करती हुई खुद को "हंगरी टाइड "की "पियाली रॉय" समझने लगी।जो बे ऑफ़ बंगाल में डोळ्लफिन पर रीसर्च करने आई होती है।फर्क ये था मै "तपस्या" हूँ और मै लुप्त हो रहे मगरमच्छ को देख रही थी।रात को हमारी वापसी की फ्लाइट थी।हमलोग फिर से पाम बीच पहुँचे।थोड़ा वहाँ घुमा और वापस एयरपोर्ट आगये।

Monday 28 December 2015

KHATTI-MITHI: अनप्लांड मियामी यात्रा और आदि मानव !!!

KHATTI-MITHI: अनप्लांड मियामी यात्रा और आदि मानव !!!: कुछ दोस्तों ने मुझसे पूछा था ,मियामी की यात्रा कब लिखोगी ? मैंने तब उनको यही कहा था कि ,साल के अंत में मियामी और न्यू यॉर्क के बारे में लिख...

अनप्लांड मियामी यात्रा और आदि मानव !!!

कुछ दोस्तों ने मुझसे पूछा था ,मियामी की यात्रा कब लिखोगी ? मैंने तब उनको यही कहा था कि ,साल के अंत में मियामी और न्यू यॉर्क के बारे में लिखूंगी।मिआमी और कोलोराडो मेरी सबसे पसंदीदा यात्रा रही है।अब तक की यात्राओ में से।मिआमी जहाँ बिना प्लान के सब कुछ मजेदार हो रहा था।वही कोलोराडो दोस्तों के साथ रोड ट्रिप (16 घंटे की) मजेदार थी।अभी बात मिआमी की।मियामी जाने के लिए शतेश ने यूनाइटेड एयर लाइन की टिकेट ली थी।टिकट थोड़ी सस्ती मिली थी।पर उसमे एक क्लॉज था।अरे भाई कोई भी चीज़ सस्ती या फ्री नही होती क्या समझे ?तो क्लॉज ये था कि ,हमलोगो को डायरेक्ट नेवार्क से फ्लाइट ना लेके,पहले फिलिडेल्फिया जाना होगा।वहाँ से "एम ट्रैक" लेकर नेवार्क जाना होगा।फ्लाइट की टिकट एम ट्रैक के टिकेट काउंटर पर ही मिलेगी एकसाथ।फिलिडेल्फिया हमारे घर (न्यू जर्सी )से 45 मिनट या एक घंटे की दुरी पर होगा।बेस्ट पार्ट ये था की ,हमें एम ट्रैक का टिकेट नही लेना था।हमलोग खुश थे की ,अमेरिका के सबसे तेज चलने वाली,महँगी ट्रैन का हमलोग फ्री में दौरा कर रहे है।मुझे नही पता इससे एयरलाइनस को क्या फायदा हुआ होगा।हो सकता हो उनका कुछ एम ट्रैक वालो से कॉन्ट्रैक्ट हो।फिलिडेल्फिया पहुंच कर हमने वहाँ से एम ट्रैक लिया नेवार्क एयरपोर्ट के लिए।शाम के 8 बजे के करीब हमारी फ्लाइट थी।नेवार्क हमलोग समय से पहुंच गए थे।थोड़ा टाइम था ,तो हमने सोचा खाना खा लेते है।वैसे भी लोकल फ्लाइट में खाना नही मिलता।एयरपोर्ट पर ही रेस्तरां एरिआ में फ्राइड राइस ,सलाद और वेज रोल लिया।खाना ख़त्म करके वेटिंग एरिया में कुछ 20 मिनट वेट किया होगा।इसके बाद चेकिंग शुरू हो गई। हमलोग11 :30  के आस -पास मियामी से नियरेस्ट एयरपोर्ट "वेस्ट पाम बीच" पहुंचे।गाड़ी रेंटल लेने और बाहर निकले तक 12 ;45 हो गए थे।वहाँ से पास में ही शतेश ने हॉटेल बुक किया था।हमलोग 1 बजे तक हॉटेल पहुँचे।अगले दिन सुबह 9 बजे फ्रेश होकर हमलोग ब्रेकफास्ट के लिए निकले।ब्रेकफास्ट के साथ कहाँ -कहाँ जाना है ,का बुकलेट देखने लगे।जो हर टूरिस्ट प्लेस के हॉटेल या रेस्तरॉ में मिलता है।हुमलोगो ने एक दिन बीच ,एक दिन कीवेस्ट और एक दिन एक्टिविटी और अदर्स के लिए रखा।फटाफट तैयार होकर हमलोग निकल पड़े फेमस साउथ बीच की तरफ।शतेश ने जीपीएस में पॉइंट ऑफ़ इंट्रेस्ट डाला।और साउथ बीच की तरफ निकल पड़े।जीपीएस ने रास्ते में एक और बीच दिखाया।शतेश बोले इस बीच को भी देखते चले क्या ?सुना है यहाँ के सारे बीच बहुत सुन्दर है।मैंने कहा ठीक है चलो।रास्ते में ही तो है।इसे भी देख लेते है।हमलोग वहाँ पहुँचे तो ,पार्किंग के सिर्फ 7 डॉलर की।पार्किंग टिकेट के साथ संस्क्रीम  के दो छोटे पाउच भी मिले।हमदोनों खुश कि ,इतनी सस्ती पार्किंग मिल गई।साथ में संस्क्रीम भी।वैसे भी हमारी क्रीम जल्दीबाजी में घर पर ही रह गया था।मैंने रास्ते में शतेश को बोला था ,कही मेडिसिन शॉप या वॉलमार्ट देख कर रोक लेना संस्क्रीम लेनी है।हमें कही कोई शॉप ऐसी नही दिखी।शतेश बोले अरे यार टेंशन मत लो।हमलोग इंडियन है।हमें टैनिंग नही होती :) गाड़ी पार्क करके हमलोग बीच ढूँढने लगे।जहाँ पार्किंग थी ,उसके सामने समदर तो था ,पर किनारे पत्थर लगे हुए।बैठने के लिए बेंच और ग्रिल करने की जगह थी।ट्रेल बने थे वॉक के लिए।दूसरी तरफ सड़क थी।4 -5 लोग तौलिया लेकर उस तरफ जा रहे थे।शतेश बोले इन्ही के साथ चल लेते है। लोग सड़क को पार कर लाइन से लगे पेड़ की तरफ जा रहे थे।हमलोग जब उधर गए तो एक बोर्ड पर लिखा था "हॉलोवेर बीच" दिस साइड।हमलोग भी सड़क को पार करके बीच की तरफ गए।दो -चार लोग आते -जाते दिख।मैंने शतेश से पूछा मैंने तो सुना है ,यहाँ के बीच पर बहुत भीड़ होती है।यहाँ तो लोग ही नही दिख रहे।शतेश बोले मै भी पहली बार आया हूँ मियामी।चलो थोड़ा आगे चलते है।हमलोग थोड़ा ही आगे गए होंगे कि ,कुछ नंगे लोगो को दौड़ते देखा।मैं हँस पड़ी।हमे लगा एक आध पागल हर जगह मिल जाते है ,शायद ये वही हो।हमलोग इग्नोर करके आगे गए।ओ बेटा आगे का नज़ारा देख कर मेरे तो आँख -कान दोनों लाल हो गए।शतेश मुझसे बोलते है ,कही ये न्यूड बीच तो नही ? मैंने कहा मुझे क्या मालूम।आपने जीपीएस देवी से पूछो।शतेश मुझसे सॉरी -सॉरी किये जा रहे थे।हमलोग ने सोचा अब क्या करे ? उन सारे लोगो में मतलब 1000 /2000 आदि मानव के बीच हमलोग बिल्कुल अलग दिख रहे थे।हमने सोचा थोड़ी देर बैठ जाते है।कोई एक कोना पकड़ के समुन्दर की तरफ देखते है।तुरंत जाना भी थोड़ा अजीब लग रहा था।वैसे भी कुछ लोग हमें भी देख रहे थे।वो समझ गए होंगे की ,हमलोग पहली बार ऐसी जगह पर आये है।या जैसे मैंने उन्हें पागल समझा था ,वो हमे समझ रहे होंगे।हमलोग थोड़ा और आगे जाकर ,जहाँ थोड़ी कम भीड़ थी।एकदम समुन्दर के किनारे तौलिया बिछाया ताकि हमारे आगे कोई ना हो।समुन्दर की तरफ देख के बाते करने लगे।बाते भी क्या इंडिया और अमेरिका के फ्रीडम को लेकर।यहाँ देखो ,औरत -मर्द ,बूढ़े -जवान सब नंगे मतलब नंगे घूम रहे है।आदि मानव की तरह।किसी को कोई फर्क नही पड़ रहा था।सब अपने -अपने तरह से एन्जॉय कर रहे थे।कोई डिस्क थ्रो खेल रहा था ,तो किसी का पति या बॉयफ्रेंड अपनी पत्नी या गर्लफ्रेंड का मसाज कर रहा था।बूढ़े लोग कही चेयर पर कही नीचे लेटे आराम से बाते कर रहे थे।इनसब सब दृश्य के साक्षी हमलोग बात -चीत के दौरान थोड़ा -इधर उधर नजर मार कर बने थे।तभी कुछ यंग लड़के -लड़की का ग्रुप हमारे सामने खाली पड़े समदर में कूद गया।अब हमलोग किधर देखे ? उफ्फ ये भारतीय लोक -लाज का खून।।शतेश को कुछ नही सुझा तो ,पेट के बल बालू पर लेट कर मोबइल निकाल कर अगला डेस्टिनेशन ढूँढने लगे।बोले बहुत हुआ चलते है। हमलोग अमूमन 15 -20 मिनट रुके होंगे वहाँ।बेचारे शतेश मन में सोच रहे होंगे ,यार कहाँ से तपस्या के साथ आ गया।अकेले या दोस्तों का साथ होना चाहिए था यहाँ।और मै चलो ये भी शौक पूरा करवा दिया तुमने शतेश को बोला।शतेश को लगा ये कमेंट था शरमा कर बोले ,अरे मुझे भी कहाँ मालूम था।हमलोग वहाँ से चलने लगे।आते वक़्त कोने पे झाड़ के नीचे एक बोर्ड दिखा। जिसपे लिखा था -बियॉन्ड दिस पॉइंट न्यूड बीच स्टार्ट।सेक्स इस ओफ्फेंसिव।यू मेय अरेस्टेड।नोट का सार ये था कि -इसके आगे नग्न लोग का समंदर मिलेगा।शारीरिक सम्बन्ध जुर्म है ,आपको जेल भी हो सकती है।मैं तो जोर -जोर से हँसने लगी ,कि इस बोर्ड को इतने कोने में क्यों लगा रखा है ? ताकी हम जैसे लोग कही नज़र पड़ते ही ना भाग जाये।पर एक बात माननी पड़ेगी।आजादी का हर मायना मैंने यहाँ (अमेरिका ) में देखा ,समझा और महसूस किया है।अच्छा है ऐसे बीच इंडिया में नही है।आप सोच सकते है ।वहाँ तो कपड़ो के ऊपर रेप हो जाता है।फिर यहाँ तो बात न्यूड बीच की थी।ये रहा हॉलोवेर बीच का एक कोना 
तो ये थी ,हमारी अनप्लानड  यात्रा।हॉलोवेर बीच के बाद हमलोग ने जीपीएस माता को छोड़ गूगूल भईया का साथ चुना।और पहुँच गए ,साऊथ बीच।कल उसकी कहानी ...........     

Thursday 24 December 2015

KHATTI-MITHI: क्योकि तुम माँ हो तुम कुछ भी कर सकती हो !!!

KHATTI-MITHI: क्योकि तुम माँ हो तुम कुछ भी कर सकती हो !!!: माँ ! क्या लिखूँ तुम्हारे जन्मदिन के अवसर पर ? यही कि अब मुझे अच्छा नही लगता तुम्हारा जन्मदिन। "पच्चीस दिसम्बर" पूरी दुनिया में ...

क्योकि तुम माँ हो तुम कुछ भी कर सकती हो !!!

माँ !
क्या लिखूँ तुम्हारे जन्मदिन के अवसर पर ? यही कि अब मुझे अच्छा नही लगता तुम्हारा जन्मदिन। "पच्चीस दिसम्बर" पूरी दुनिया में क्रिसमस के लिए जाना जाता है।पर हमारे लिए तो सिर्फ तुम्हारा जन्मदिन होता है ।क्रिसमस तो एक छूटी भर था।वैसे भी छोटे जगह से होने के कारण हम कहाँ क्रिसमस ट्री लगाते या सांता का इंतज़ार करते ? हमारे लिए तो तुम्हारा जन्मदिन ही त्यौहार होता।और तुम हमारी प्यारी सांता।जन्मदिन तुम्हारा होता है ,नए कपडे हमलोग पहनते।मिठाई खाते ,कॉलोनी के लोगो में बाँटते।आज भी वो सिलसिला बरकार है।पर हमलोग साथ नही।तुम्हे जन्मदिन मानना पसंद नही।फिर भी हमेशा से ना चाहते हुए भी, तुम नए कपडे पहनती हो।हर बार कहती हो कि ,अब क्या जन्मदिन मानना।मैं बूढ़ी हो गई हूँ।हर बार हमारे लिए वो सब करती हो ,जो हमें अच्छा लगता है।तुम्हे याद है एक बार मैंने तुम्हारा बाल बनाया था।अपनी ड्रेस पहना दी थी।उस वक़्त भी तुम ना चाहते हुए ,मेरी ख़ुशी के लिए वो सब कर रही थी।तुम कितनी सुन्दर लगी थी। 
मेरी और चुलबुल की हमेशा लड़ाई होती कि ,तुम किसे ज्यादा प्यार करती हो ? तुम्हारा हमेशा का फेवरेट डायलॉग तुम दोनों मेरे दोनों आँख हो।किसी एक को भी तकलीफ होगी तो दूसरा आँख रोयेगा।और चुलबुल जोश में आकर कहता तो लाओ मेरा वाला आँख मैं निकाल लेता हूँ।तुम इतनी भोली हो की तुम्हे लगता कि, सच में वो तुम्हारी आँख निकाल लेगा।तब मासूम सा चेहरा बना कर कहती ,अच्छा ठीक है निकाल लो।तुम्हारी ही माँ अंधी हो जायेगी।तुम्हे तो याद ही होगा ये तस्वीर
चुलबुल हमेशा लड़ता कहता माँ तुम मुझे प्यार नही करती।अगर करती तो थोड़ा काजल मुझे भी लगा देती।तुम्हे कुछ नही सूझता तो कहती ,अरे तुम तो ऐसे ही सुन्दर हो।या फिर स्टूडियो वाले ने दीदी को लगा दिया था।और मै तुम्हारे इस सफाई पे हँस -हँस के लोट -पोट हो जाती।माँ तुम्हार बारे में क्या लिखूँ ? मैंने तुम्हे हर रूप में देखा है।कभी एकदम कड़क तो कभी मुलायम ,कभी चिंतित तो कभी ख़ुशी में झूमती ,कभी हमसे मिलकर रोना तो कभी ना मिलने पर रोना।तुम्हारे संघर्ष के ऊपर तो एक किताब भी कम पड़ जायेगी।मैं कभी नही समझ सकती कैसे तुमने मेरा 14 साल इंतज़ार किया होगा।वो कौन सी उम्मीद रही होगी या फिर पापा का प्यार रहा होगा? पापा के ना होने की हमें कभी कमी महसूस ना होने दी।हर ख्वाहिशे पूरी की।मुझे याद है ,चार दिन का मुझे गिटार बजाने का भूत सवार हुआ।तुमने बिना कुछ कहे गिटार खरीदी दी।कभी डाटा नही की ,लड़की केवल पैसे बरबाद करती है।चुलबुल को कुछ माना भी कर दो पर मेरे लिए तुम हमेशा खड़ी रही।तुमने हर वक़्त मेरा साथ दिया ,चाहे वो पढाई हो या मेरी पर्सनल लाइफ।कही मैं गलत भी होती तो तुम और चुलबुल मुझे संभाल लेते।मेरी शादी के वक़्त सब बोल रहे थे कि ,कन्या दान जोड़े को देना चाहिए।तुम थोड़ी उदास थी ,पर मेरी ख़ुशी के लिए वो भी करने को तैयार थी।पर शायद तुम ये भूल गई थी कि ,तुमने दो जिद्दी ,शैतान बच्चो को जन्म दिया है।हमने भी कन्यादान तुमने से ही कराया।जिनको जो कहना था कहते रहे।पता है मुझे अपने शादी के एल्बम से तुम्हारी एक फोटो मिली। देखो तो जरा कौन सी माँ अपनी बेटी की शादी में जम्हाई पे जम्हाई ले रही होगी :)
 वैसे एक बात बताऊ नींद तो मुझे भी आरही थी।शतेश तो बीच में सो भी गए थे :) कमबख्त इतने सारे रिवाज़ ही होते है ,कि इन्शान थक जाये।पर मुझे ये तस्वीर देख के बहुत हँसी आई।कमीना फोटोग्राफर मेरी माँ की जम्हाई पर नज़र डाले हुए था।मुझे नही पता मैं आज क्यों तस्वीरों ,ख़यालो में ही उलझी हूँ।रात के ढाई बज रहे है।हँस रही हूँ ,रो रही हूँ ,तुम्हे याद कर रही हूँ।इस वक़्त मेरी मन की क्या दशा है ,मै खुद नही जानती।मन कर रहा उड़ के तुम्हारे पास आ जाऊँ।अगर सच में कही सांता है।तो हे सांता ! मुझे और मेरे भाई को एक ही गिफ्ट दो।मेरी माँ की अच्छी सेहत ,ऐसा ही भोलापन ,और हमारा उम्र भर का साथ।माँ मै तुम्हारे साथ ही बूढ़ी होना चाहती हूँ।सोचो दोनों आराम कुर्सी पर बैठ कर अपने -अपने बच्चो की बुराई करेंगे।सामने हमारी बचपन की तस्वीर टंगी होगी।चुलबुल अपनी छड़ी के सहारे इधर -उधर घूमता तुमसे बहस कर रहा होगा कि ,तुम दीदी को ज्यादा प्यार करती हो।मै अपने टूटे दाँत के सहारे हँसती।और तुम अपनी काँपती उँगलियों  को होठ पर रख मुझे चुप होने का इशारा करती।माँ तुमने सब इक्षायें पूरी की है।ये भी कर देना। क्योकि तुम माँ हो तुम कुछ भी कर सकती हो। कुछ भी।!

Monday 21 December 2015

KHATTI-MITHI: मेरा इन्कॉउंटर !!!!

KHATTI-MITHI: मेरा इन्कॉउंटर !!!!: मैं और शतेश आज बसंतपुर जा रहे थे।सुबह से बारिश हो रही थी।हमलोग तैयार होके बैठे थे ,कि कब बारिश ख़त्म हो ,हमलोग निकले।मम्मी हँस रही थी।बोली ल...

मेरा इन्कॉउंटर !!!!

मैं और शतेश आज बसंतपुर जा रहे थे।सुबह से बारिश हो रही थी।हमलोग तैयार होके बैठे थे ,कि कब बारिश ख़त्म हो ,हमलोग निकले।मम्मी हँस रही थी।बोली लगता है तपस्या तुम्हारी माँ का बनवाया खाना ,वैसे ही रह जायेगा।भाई का कई बार कॉल आ गया था।नास्ते से लेकर खाने तक पर वो मेरा इंतज़ार कर रहा था।पर ये दुस्ट बारिस रुक ही नही रही था।हमलोग शाम के 4 बजके 30 मिनट पर घर से निकले।रोड तो अच्छा था ,पर लोग रोड को अपनी निजी सम्पति मान कर चल रहे थे।किसी ने रोड पर ही ठेला लगा रखा था।तो किसी की गाड़ी रोड पर पार्क थी।लोग बीच रोड पर साइकिल ,मोटर साइकिल चला रहे थे।बच्चे -बड़े रोड को फुटपाथ समझ कर खेल रहे थे ,चल रहे थे।हॉर्न की उनको कोई परवाह नही थी।मनो कह रहे हो ,बड़ा गाड़ी वाला बनतारह ,ना हटम का करबअ? शतेश सम्भल-सम्भल के गाड़ी चला रहे थे।मैंने हँसते हुये कहा ,टक्कर हो ना हो तुम खेत में जरूर गाड़ी ढुला दोगे।हमलोग 5 ;30 तक बसंतपुर पहुंचे।कॉलोनी का गेट बंद था।मैं छोटे गेट से दौड़ती हुई अंदर पहुँची।बाहर कॉलोनी की कुछ औरते -बच्चे बैठे थे।मुझे दौड़ते हुए देख कर बच्चे भी दौड़ते हुए मेरे पास आये।औरते आई बाप आई बाप करने लगी।मैंने उनको प्रणाम किया।तो मिसेस सिंह बोली जा हो लभली बियाह हो गईल लेकिन अभीहो उहे बुद्धि बा।दूल्हा के बाहर छोड़ के दौड़ैते आगइलु।मैं थोड़ा झेप गई।तब तक भाई भी बाहर आया।गेट खुलवा कर शतेश को अंदर लेकर आया।मुझे मारते हुए बोला और रात को आती।माँ मेरे आने की उम्मीद छोड़ शाम की पूजा की तैयारी कर रही थी।मुझे देख कर थोड़ी शॉक हुई ,फिर थोड़ा इमोशन दिखाया।मुझे बोली सुबह से सिर्फ खाना बनवा रही हूँ,और तुम आ ही नही रही थी।मैंने माँ को गले लगाया और थोड़ा रोना गाना हुआ। फिर माँ की नज़र मेरे कपड़ो पर गई।बोली अरे साड़ी और गहने क्यों नही पहने ? सब क्या सोच रहे होंगे।मैंने कहा छोडो ना ,जाओ शतेश भी आये है ,मिल लो उनसे।मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।रोज लोगो का मिलना-जुलना लगा रहता था।सुबह की चाय एक कॉलोनी के ही भईया के यहाँ से आती थी ,तो ब्रेकफास्ट किसी चाचा के यहाँ से,तो खाने की दावत कही और से।माँ परेशान की घर का भी खाना खाओ।ये ऐसा पहली बार नही था मेरे साथ। मैं जब भी बाहर से घर जाती, कॉलोनी के सब लोग ऐसा ही वर्ताव करते।बच्चे दिन भर हमारे यहाँ ही रहते।कोई स्कूल की छुट्टी ले लेता ,तो कोई टिफिन के बाद नही जाता।मुझे ख़ुशी थी कि ,वो सिलसिला आज भी मौजूद था।बस एक चीज़ का दुःख था कि ,अब लोग थोड़ा दिखावा कर रहे थे।थोड़े प्रैक्टिकल हो गए थे।मसलन कही जाओ ,जाते ही चाय नास्ता।उसके बाद आपने आस -पास के लोगो की बुराई।फिर मुझे बच्चा कब होगा और अमेरिका की बाते।ये तीनो बाते मुझे इरिटेट कर रही थी।पहले सब औरते एक साथ बैठती थी।अब लोगो का एक दूसरे के यहाँ आना -जाना बंद।बच्चे भी केवल मोबाइल या सीरियल ,फिल्म की बात कर रहे थे।क्या हो गया है सब को ? सबसे बड़ा ट्रेजेडी तो उस दिन हुआ ,जब मेरे यहाँ काम करने वाली बबिया की माँ एक लड़की को मेरे यहाँ लेकर आई।बबिया की माँ को भी दिखावे की बीमारी है।वो अपने पड़ोस की लड़की को सिर्फ ये दिखाने लाई थी ,की उसकी बेटी ठीक -ठाक घर में काम करती है।मैं ,भाई ,शतेश और भाई के एक -आध दोस्त आपस में बात कर रहे थे।तभी वो आई मुझसे बोली दीदी आपसे माँ किसी को मिलवाना चाहती है।मैं अंदर गई। देखा तो कोई 22 /23 साल की एक लड़की उसके साथ एक 15 /16 की दूसरी लड़की और बबिया की माँ बैठी थी।मुझे देख कर बबिया की माँ बोली यही इनकी बेटी है।माँ बोली लवली तुमलोग बाते करो मैं शाम का तुलसी जी को दिया दिखा देती हूँ।अब मेरा इन्कॉउंटर शुरू हुआ।बबिया की माँ मुझे बोली बबी तनी कुछ नास्ता (उस लड़की को) दे दी।मैंने बिस्कूट ,मिक्चर और थोड़ी मिठाई प्लेट में दे दी।तभी वो बोली अरे तनी नारंगिया आ सेउआ (सेब )भी काट के दे दी।तभी माँ तुलसी जी को दिया दिखा के वापस आई।ये सुनते ही माँ गुस्सा गई।बोली ये क्यों देगी ?आप दीजिये या बबिया को बोलिए।मेरी बेटी से मैं कभी पानी तक नही माँगती।बबिया की माँ शरमा गई बोली ,अरे नही हम खुद ले लेते है।माँ तो चली गई।पर इसका बदला उस लड़की ने मुझे पका कर लिया।उसके कुछ अंश।लड़की को आप इंटरभिवअर मान ले और मैं कैंडिडेट।
     लड़की ;अच्छा तो शादी के कितने साल हुए ?
लवली ;दो साल।
लड़की ; शादी कहाँ हुई ? हसबेंड जी क्या करते है ?
लवली : शादी मढ़ौरा में हुई है। हसबेंड नौकरी करते है।
लड़की :मतलब क्या काम करते है ?
लवली :इंजीनियर है।
 लड़की : इंजीनियर तो है।पर करते क्या है ?कोन से फील्ड में है ? पाइप फिटिंग की या बिजली- विजली का काम ?
लवली :(मन में कुढ़ते हुए अरे मेरी माँ) कुछ तो करते है कम्प्यूटर पर।
लड़की :अच्छा कम्प्यूटर। तो ये सब ठीक करते होंगे क्या जी ?
लवली : हम्म्म। सवाल से बचने के लिए छोटा हम्म्म।
लड़की :आपने सिंदूर क्यों नही लगाया ?पैर भी नही रँगे ? सुहागन को ये सब करना चाहिए।बाकी आजकल लोग कम ही करते है ,फैशन में।और भी कुछ बेतुके शादी से जुड़े सवाल।
लवली : थोड़ा हँसते हुए ,तुम्हारी तो शादी नही हुई ना ,बड़ा एक्सपीरियंस है।
लड़की :शादी की बात से खुश होते हुए।अरे नही महराज हम तो ऐसे ही पूछे। हमारी होगी तो हम भी करेंगे। (बातो से लग रहा था शादी के लिए मरे जा रही हो।)फिर सवाल- दो साल हो गए बच्चा क्यों नही हो रहा जी?
लवली :शर्म से लाल। (हे भगवान !अच्छा फ़साया।पहली बार मिल रही है।एक तो छोटी और देखो कितने कॉन्फीडेंट के साथ मेरे पर्सनल सवाल पूछ रही है) बोली अभी सोचा नही है।
तभी मेरी माँ फिर से आती है।ये सवाल सुन कर वो भी बोलती है ,उस लड़की से।अब तू ही पूछअ हम त पूछ के थाक गायनी।
मेरा गुस्सा सातवे आसमान में।मैंने गुस्से में माँ से पूछा ,पूजा के लिए देर नही हो रही ? लड़की खुद को तीसमार खान समझ कर।माँ के सामने ही दूसरा सलाह दे डाला।देखिए दवाई -वावई मत खाईयेगा।लोगो को उससे बच्चा नही होता।मैं वहाँ से बिना कुछ बोले ही उठ रही थी ,कि माँ समझ गई।अब तो होगा बिस्फोट।बोली अरे नही अभी ये लोग घूम- फिर रहे है।कोई बात नही आराम से सोच लेंगे।माँ उस लड़की को क्लैरिफिकेशन दे रही थी।मैं फिर बैठ गई।मन में सोच रही थी ,चलो कम से कम इसे दवा का तो मालूम है।वरना ये तो बच्चो की लाइन लगा देगी।इस लड़की को क्या समझाऊ।यहाँ तो शादीशुदा जिनको 3 /4 बच्चे है।उन्हें भी सेल्फ प्रोटेक्शन के नाम पर सिर्फ दवा ही मालूम है।हर कोई मुझे वहाँ यही सलाह दे रहा था।बच्चे करो ,दवा मत खाना।छोटे जगह रहते हुए भी सबको फैशन का मालूम है।सारे दिन टीवी से चिपके रहती है।सीरियल का एक -एक कैरेक्टर याद है।सारे विज्ञापन की चीज़े आपके घर में है।पर क्या कभी "कॉन्डोम" का ऐड नही देखा ? मामला गर्म देख कर उसने सवाल बदला।
लड़की ;तो कहाँ रहती है ,आप ?
लवली ; गुस्से को शान्त करते हुए ,अमेरिका।
लड़की :आपकी तो माँ बोल रही थी ,बिदेश।
लवली : हँसते हुए ,तो आपके अनुसार विदेश कहाँ-कहाँ  है ?
लड़की :बिदेश त सउदिया में है ना।
लवली :ज्यादा दिमाग ना खपाने के चकर में ,हाँ।अमेरिका भी विदेश ही है।
लड़की :कितना तनखाह मिलता होगा ?
लवली :( बेटा आज तो तेरा मानसिक बलात्कार हो गया )खाने -पीने का खर्च निकल जाता है।
लड़की :दादी माँ की तरह आशीर्वाद देती हुई।अच्छा भगवान सबकी रोजी- रोटी बनाये रखे।खाने पीने तक हो जाता है और क्या चाहिए ? बाहर झाँकती हुई ,आपके हसबेंड कौन है ,बाहर बैठे लोगो में?
बबिया की माँ :अरे ऊ जे कुर्सिया पर हाफ पाइंट में नईखन बईठल इनका भाई के लगे उहे।
  लवली :उसको भगाने के इरादे से ,बबिया की माँ को बोलती है। चाची इनके घर फ़ोन कर दीजिये ? शाम 7 :30 हो रहे है। घर वाले कही परेशान होंगे ?
लड़की :समय का जान कर।अरे नही- नही अब हमलोग जायेंगे। (दिमाग तो आपका चाट लिया ,पेट नास्ते से भर लिया और क्या चाहिए ?) आप भी आइये कभी हमारे यहां। हमारे यहाँ भी कमी नही है ,किसी चीज़ की।भगवान की दया से आटा चक्की है।सेवई पेरने की मशीन भी है।जाते -जाते उसे लगा होगा अरे इसने तो मेरे बारे में कुछ पूछा ही नही ?मैं ही बता देती हूँ।तभी बबिया की माँ बोली ये लोग सिर्फ कॉलोनी में रहते है।ज्यादा किसी के यहाँ आते- जाते नही।मुझे मिलने का फिर से वादा देकर वो प्रौढ़ ज्ञान की देवी गई।मैं भुनभुनाती हुई भाई के पास गई।सारा गुस्सा उसपर निकला।वो हँस कर बोला तो वहाँ से आ जाती या मुझे बुला लेती।मैं भी बबिया के माँ की वजह से मजबूर थी।जब थोड़ा गुस्सा शांत हुआ।मन में सोचा कितनी कम उम्र में लड़कियाँ/लड़के बड़े हो जा रहे है ,आजकल।या फिर उनको बड़ा बनने का शौख हो गया है?


Wednesday 16 December 2015

KHATTI-MITHI: हमारे गाँव की कुलदेवी !!!

KHATTI-MITHI: हमारे गाँव की कुलदेवी !!!: सिलौहरी मंदिर में पूजा करने के बाद हमलोग गाँव की  कुलदेवी के पूजा को गए।अच्छा एक और बात है ,घर के कुलदेवता या देवी और गाँव के कुलदेवता या द...

हमारे गाँव की कुलदेवी !!!

सिलौहरी मंदिर में पूजा करने के बाद हमलोग गाँव की  कुलदेवी के पूजा को गए।अच्छा एक और बात है ,घर के कुलदेवता या देवी और गाँव के कुलदेवता या देवी अलग -अलग होते है।घर के कुल देवता /देवी को एक परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरागत तरीको से पूजते आते है।वही गाँव के कुलदेवता /देवी को पूरा गाँव पूज सकता है।वैसे ज्यादातर लोग किसी शुभ काम के होने या शादी व्याह जैसे मौके पर ही इनकी पूजा करते है।नही तो घर में है ही शिव जी ,विष्णु जी ,हनुमान जी ,दुर्गा माँ आदि -आदि।मेरे ससुराल के भी कुलदेवता "सोखा बाबा" ही है। इनके बारे में मम्मी ने कुछ नही बताया।शायद उन्हें भी इतना ही मालूम हो की, ये कुलदेवता है।हाँ गाँव की कुलदेवी है "सती मईया "उनकी कहानी मम्मी ने हमलोग को सुनाई।मुझे बड़ी खुशी हुई चलो कही तो मईया है।नही तो हर जगह बाबा ,बाबा।इस भावना का मेरे नारी होने से कोई सम्बन्ध नही।मैं तो बस शक्ति सामंजस्य की बात कर रही थी।अगर हर जगह मईया- मईया होता तो, मुझे बाबा के होने पर ख़ुशी होती।खैर छोड़े इस बवाल की बात को। हमलोग गाँव के एक सिंगल लेन वाले रास्ते से जा रहे थे।करीब 10 /15 मिनट चलने के बाद शतेश ने गाड़ी एक चौड़ी पगडंडी की तरफ मोड़ी।मैंने पूछा क्या हमलोग सही रास्ते पर जा रहे है ? शतेश बोले हाँ।रास्ता कच्चा है ,पर गाड़ियां जाती है वहाँ तक।शतेश मुझे दूसरी तरफ दिखाते हुए बोले ,वो देखो यहाँ हमलोग छठ पूजा करते है।हमलोग को वही उतरना था।चारो तरफ खेत ,पेड -पोधे।छठ पूजा के लिए बना एक तालाब।तालाब के किनारे कुछ छठ के स्तूप बने हुये।आस -पास में कुछ औरते घास काट रही थी।हमलोग को देख के आपस में बात करने लगी।घास काटना छोड़ कर हमें देख रही थी।शायद यही बात कर रही होंगी ,केकर बेटा -पतोह ह लोग ,या कहाँ से आइल बा लोग ? उनकी तरफ देखना छोड़, मैंने पास में एक यज्ञ मंडप देखा।वहां कुछ महीनो पहले बहुत बड़ा यज्ञ हुआ था।यज्ञ में एक आदमी को किसी ने मार डाला था।वो अलग कहानी है फिर कभी।वही पास में एक चापाकल लगा था।हमलोग हाथ पैर धो कर पहुंचे "सती मईया "के स्थान पर।स्थान के नाम पर एक बहुत बड़ा चबूतरा बना था।उसकी के ऊपर एक छोटा सा मंडप, जो ऊपर से खुला था।उसको चुनरी से छत बनाने की कोशिश की गई थी।दो गोलाकार आकृतियाँ।उनके ऊपर पीतल का एक परत चढ़ा हुआ।जिसको लोगो ने लाल -पीला कर रखा था।यही थी सती मईया।एक छोटा सा गेट भी था।मंडप से ठीक सटे ,पीछे की तरफ बहुत बड़ा पीपल और नीम का एक पेड़।ओह वहाँ से आने का मन नही कर रहा था।इतनी गर्मी में एक वही जगह थी जहाँ इतनी प्यारी हवा और मन को मोहने वाला वातावरण था।पूजा करके हम तीनो चबूतरे के पास खड़े होकर सती मईया और खेत- खलिहान की बाते करने लगे।ना चाहते हुए भी वहाँ से घर जाना पड़ा।बहुत सारे सवाल सती मईया के बारे में सोचती हुई, घर के लिए निकल पड़ी।आखिर कौन थी "सती मईया" ? मम्मी ने जो( दन्त कथा) सुनी -सुनाई कहानी हमलोग को सुनाई थी।वो ये थी।शतेश के पूर्वज में एक लड़की थी।उनकी शादी हो गई थी, पर कोई  बच्चा नही था।एक दिन उनके पति का देहांत हो गया।पति की अंतिम यात्रा की तैयारी शुरू हो गई।जब पति को श्मशान घाट ले जाने लगे ,वो अपने पति से लिपट -लिपट के रोने लगी।उन्हें जाने नही दे रही थी। लोग परेशान की अब क्या करे ? वहाँ गाँव का एक तेली भी था।जो अपना आपा खो बैठा और ताने देकर बोला ,रो तो ऐसे रही है ,जैसे सती बन जायेगी।एक तो पति का दुःख ,ऊपर से ऐसी बाते सुनकर उनको बहुत दुःख हुआ।वो बोली हाँ मैं "सती बनूँगी" ,पर मेरी भावना का मजाक बनाने वाले तुम भी गल -गल के मरोगे।तुम्हारा  परिवार भी मेरे श्राप का भागी होगा।इसके बाद वो सती हो गई।उस तेली को भी कुछ समय बाद कुष्ठ रोग हो गया।उनके सती होने के बाद ,उन्हें गाँव की कुलदेवी की उपाधी दी गई।तेली के यहाँ कोई न कोई एक कोढ़ी होता गया, पीढ़ी दर पीढ़ी।अब मेरी दुबिधा ये थी ,क्या एक जीती -जागती स्त्री जल रही थी , दुःख से या समाज के ताने से ? क्या उसको रोकने की किसी ने कोशिश की होगी ?या सच में उसके मन में पति के साथ ही दुनिया छोड़ने की भावना रही होगी ?या फिर उसे जबरदस्ती जलाने के बाद सती माँ का नाम दे दिया गया।वाह समाज तुमने उसके पति के मरने के बाद उसके अंदर जीने की भावना तो नही भरी हाँ !उसके मौत को दैविक जरूर बना दिया।रहा उनके श्राप की बात तो पहले कोढ़ की कोई दवा न थी ,छुआ -छूत की बीमारी थी।घर में किसी को हो तो स्वभाविक है ,दूसरे को भी हो सकती थी।सचाई जो भी हो।आज वो हमारे गाँव की कुलदेवी है।मुझे माफ़ कीजियेगा सती माई।काश उस वक़्त मैं होती ,आपको बचा पाती।
आपसे हमेशा के लिए माफ़ी ,आपको सादर प्रणाम है ,"सती मईया" 

Tuesday 15 December 2015

KHATTI-MITHI: कहानी मंदिर और दूकानदार की !!!!

KHATTI-MITHI: कहानी मंदिर और दूकानदार की !!!!: मेरी आज की यात्रा एक मंदिर और कुलदेवी की दन्त कथा से जुड़ी है।मेरी जानकारी के अनुसार लगभग हर हिन्दू परिवार के एक कुलदेवी या कुलदेवता होते है...

कहानी मंदिर और दूकानदार की !!!!

मेरी आज की यात्रा एक मंदिर और कुलदेवी की दन्त कथा से जुड़ी है।मेरी जानकारी के अनुसार लगभग हर हिन्दू परिवार के एक कुलदेवी या कुलदेवता होते है।वैसे उनकी कोई तस्वीर नही होती।पूजा घर के एक कोने में उनका स्थान बना रहता है।कुछ कुलदेवता/ देवी का गाँव से बाहर, किसी खेत में, एक बहुत ही छोटा मंदिर बना होता है।देवी /देवता के नाम पर मिट्टी या सीमेंट का गोल आकृति बना होता है।उस गोलनुमा आकृति को लोग सिंदूर ,कुमकुम से पोत -पोत कर लाल कर दिए रहते है।थोड़ा बचपन में जाये तो मैं हमेशा से थोड़ी कंफ्यूज रहती थी।कि ये कैसे देवी /देवता जिनका कोई रूप नही।नाम भी उनके थोड़े अलग होते है।जैसे मेरे मायका के कुलदेवता "सोखा बाबा" और "नर्शिम्हा भगवान" .नर्शिम्हा भगवान को तो कृष्णा सीरियल में देखा था ,पर ये सोखा बाबा कौन है मालूम नही।घर पर सब लोग इन देवताओ से बहुत डरते है।इनका पूजा बहुत ही नियम से होता है।इतनी श्रद्धा देख के कभी हिम्मत ही नही हुई ,सोखा बाबा के बारे में किसी से पूछने की।खैर शादी के बाद जब ससुराल गई तो वहाँ भी कुलदेवी के दर्शन कराये गए।तब तो इतनी जिज्ञासा नही थी ,उनके बारे में जानने की।उस वक़्त तो लग रहा था ,कब ख़त्म होंगे सारे रस्मो -रिवाज़।इस बार घर गई तो मम्मी बोली तपस्या इतने दिनों बाद आई हो ,जाके तुम और शतेश कुलदेवी के दर्शन कर लो।साथ में "सिल्हौरी के भोले बाबा" का भी दर्शन कर लेना।पास में ही है ,बहुत जगता मंदिर है।अमूमन दो -तीन गाँव के बीच कोई ना कोई एक मंदिर बन जाता है ,जो जगता (हर मनोकामना पूरी करने वाला )हो जाता है।दूर -दूर से गाँव वाले भगवान का आशीर्वाद लेने ,तो कभी अपने बेटा -बेटी का देखउकी (शादी की पहली बातचीत की शुरुआत )कराने आते है यहाँ।एक तरह से वो "मंदिर कम कम्युनिटी हॉल" होता है।सौभाग्य से वो जगता मंदिर मेरे घर से 10 मिनट की दुरी पर ही है।मैं ,मेरा भाई और शतेश मंदिर दर्शन के लिए निकले।मंदिर पहुंचे तो बाहर कुछ पंडित बैठे थे।माथे पर अलग -अलग तरीके का तिलक  लगाये हुए।किसी ने गोल बिंदीनुमा ,तो कही गंगा की लहर बह रही थी ,कही शिव जी का आँख बना था।बगल में बैठा एक भक्त बड़ी प्रेम से खैनी मल रहा था।बाबा आवाज लगा रहे थे ,आइये यजमान आइये।पर हमलोग तो ठहरे खुद पंडित।इतनी आसानी से अपना ओहदा कैसे किसी और को दे देते ? हमने खुद ही पूजा करने का फैसला किया।मंदिर परिसर बूढी गाय और हड्डा -बीरनी का डेरा था।लोगो के अनुसार ये सब शिव जी के सवारी और भक्त थे।साफ -सफाई के नाम पर शिव जी के रूम को छोड़ बाकी जगहों पर सिंदूर ,बेलपत्र ,लड्डू ,बतासे गिरे पड़े थे।कुछ भगवान पर तो कुछ नीचे।शतेश और भाई ने हाथ मिलाने टाइप भगवान जी को प्रणाम किया और आगे बढ़ गए।मैं कभी जल गिरा रही थी ,तो कभी फूल और प्रसाद।तभी एक गाय मंदिर के कक्ष में चली आई।ऊपर से हड्डा उड़ने लगे ,प्रसाद और पानी की वजह से।डर से मैं चुलबुल (भाई )- शतेश चिल्लाने लगी।चुलबुल और शतेश आवाज सुनकर दौड़ कर आये।मुझे बाहर ला कर चुलबुल गुस्से में बोला।आज पूजा का सारा भूत उतर जाता ,जब गाय मरती या हड्डा कटता।हमलोग वहाँ का मुआयना टाइप करके बाहर निकल आये।बाहर आये तो मंदिर के पंडित लोग गाँजा पी रहे थे।मंदिर के ऊपर वाले भाग में भी कुछ भगवान थे।मतलब मूर्तियां थी।थोड़ा माहौल अजीब सा देख के भाई बोला रहने देते है।शतेश बोले अरे ये इनका रोज का काम है।कुछ नही होगा।चलो ऊपर भी देख लो।जब  हमलोग ऊपर पहुंचे।देखा भगवान की मूर्तियों को जेल जैसा गेट बना कर बंद कर रखा है।लोगो ने गेट को ही सिंदूर से रंग दिया है।उसी के बीच फूल लड्डू और बतासे ठूसे हुए थे।एक आध पत्थर की मूर्तियाँ टूटी -फूटी कोने में पड़ी थी।वो भी लाल -पीली हो गई थी गुस्से में कि, उन्हें जेल में क्यों नही डाला।प्रणाम करके हमलोग वहाँ से बाहर निकले।मंदिर के बाहर छोटे -छोटे दूकान थे।जिसमे प्रसाद ,सिंदूर और लड़कियों के साजो सामान बिक रहे थे।शतेश के यहाँ एक लड़की काम करने आती है।मैंने सोचा उसके लिए कुछ खरीदा जाये।एक दूकान पर गई।भाई और शतेश भी पीछे -पीछे पहुंचे।मैंने एक माला लिया और एक हेयर पिन का दाम पूछा।दूकानवाले ने  हेयर पिन का 35 रूपये बताया।वैसे मोल- भाव मुझे ठीक से नही आते।फिर भी मैंने उसको दाम थोड़ा कम करने को बोला।तभी मेरा भाई बीच में नारद की तरह कूद पड़ा।बोला एक तो गर्मी में ये सामान बेच रहा है ,ऊपर से दो पैसा कमायेगा नही ? मेरी और भाई की वही बहस शुरू हो गई।मेरा भाई दूकानवाले को बोला भाई एक पैसा कम मत करना।दुकान वाला बोला जाने दीजिये 30 रुपया दे दिजीए।उसे भी लग रहा होगा कैसा मुर्गा मिला है ,खुद ही कटने को तैयार।मैंने कहा ठीक है ,दे दीजिये।पर दूस्ट -पापी भाई बोला नही  ! तुम्हे 35 रूपये ही देना होगा नही तो मैं दे दूँगा।मैंने गुस्से में हेयर पिन छोड़ा और बोला अब मैं लूँगी ही नही इसे।हमारा तमाशा देख के शतेश और दूकान वाले दोनों परेशान।हँसते हुए शतेश बोले अरे यार मैं दे देता हूँ।तुमलोग लड़ो मत।दूकानवाले ने मौका हाथ से जाता देख ,बेचारा सा मुँह बना कर बोला ,बहन जी परता नही पड़ रहा है।फिर भी चलिए 28 रुपया दे दीजिये।इनसब के बीच शतेश फ्रस्टेट होके दूकान वाले को 30रूपये दे दिए।पिन लिया और हुमलोगो को बोले जब तुमदोनो का हो जाये तो गाड़ी के पास आ जाना।हुमदोनो एक दूसरे को कोसते शतेश के पीछे -पीछे चल दिए।ये रही मंदिर की तस्वीर
 कल कुलदेवी की कहानी...... 

Friday 11 December 2015

KHATTI-MITHI: कबीर और मेरी कल्पना का विद्रोही !!!

KHATTI-MITHI: कबीर और मेरी कल्पना का विद्रोही !!!: कबीर और  गोरखनाथ जी की रचनाओं को ,"पंडित कुमार गन्धर्व "जी की आवाज में सुनना हमेशा से आत्मा को तृप्त करने जैसा होता है।ऐसा लगता ह...

कबीर और मेरी कल्पना का विद्रोही !!!

कबीर और  गोरखनाथ जी की रचनाओं को ,"पंडित कुमार गन्धर्व "जी की आवाज में सुनना हमेशा से आत्मा को तृप्त करने जैसा होता है।ऐसा लगता है, मानो मन का ,कानो का एक अद्भुत ऑरगिज़म हो रहा हो।एक नशा जैसा हो जाता है।एक बार सुन लिया तो बार -बार एक ही गाने को प्ले करती रहती हूँ।आँखों से आँसू बहते रहते है।ये आँसू दुःख के कारण नही ,मन में त्याग और समर्पण के भाव के कारण आते है।आज मैं "युगन युगन हम जोगी" और "शून्य गढ़ शहर " सुन रही थी।पर आज इनको सुनने के बाद मन थोड़ा व्याकुल है।बार -बार मन रमाशंकर यादव  "विद्रोही " जी की तरफ चला जाता है।मेरा और विद्रोही जी का साथ सिर्फ एक -आध सप्ताह का ही रहा।एक दो सप्ताह पहले से ही ,मैंने उनके बारे में जाना ,पढ़ा (धन्यवाद गर्वित ,धन्यवाद विष्णु)।पर अब वे मेरी कल्पनाओं में है।अब तक सिर्फ जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्याल तक सिमटा एक वक्ति हर तरफ पन्नो पर क्यों रंगा है ?क्या ये सब पाने के लिए मरना जरुरी था ? क्या दुनिया में आपकी पहचान मरने के बाद ही मिलती है ?हो सकता हो जीते -जी उन्हें भी इन सब की ईक्षा ना हो।या "हो" जो ना मिल पा रही हो ,तो जोगी सा भेष बना लिया।मन को सबसे परे कर लिया।बस अपने आप में खोये रहे।ना समाज का डर ना परिवार का मोह।मन के गुस्से,पीड़ा को कविताओं का रूप दे दिया।मनमौजी जैसी जिंदगी जी।इसी ख्याल में कि कुछ नही तो कम से कम कोई पागल ,कोई फक्कड़ ,कोई विद्रोही ,तो कोई जोगी की तो उपमा जरूर देगा।अंततः आपको वो सब मिला।कही आप परेशान तो नही थे ? कही आपको ऐसा तो नही लगा कि, यहाँ किसान मर रहे है ,और मैं सिर्फ आसमान में धान बोन की बात करता हूँ।क्यों ना वहाँ जाके मैं सच में धान बोऊ।विद्रोही जी आप वहाँ धान बोइए।मै अपनी खिड़की से आसमान में लहराते आसमानी तो कभी सिंदूरी तो कभी काले धान के पौधो को देखूंगी।कबीर की भाषा मेरे कल्पना का एक जोगी एक "विद्रोही "
अवधूता युगन युगन हम योगी
आवै ना जाय मिटै ना कबह
सबद अनाहत भोगी
सभी ठौर जमात हमरी
सब ही ठौर पर मेला
हम सब माय सब है हम माय
हम है बहुरी अकेला 
हम ही सिद्ध समाधि हम ही
हम मौनी हम बोले
रूप सरूप अरूप दिखा के
हम ही हम तो खेलें
कहे कबीर जो सुनो भाई साधो
ना हीं न कोई इच्छा
अपनी मढ़ी में आप मैं डोलूं
खेलूं सहज स्वेच्छा
अंत में कबीर की ही कुछ पंक्तियाँ "विद्रोही "जी के शुभचिंतको ,दोस्तों और परिवार जनो के लिए,

भक्त मरे क्या रोइये, जो अपने घर जाय। रोइये साकट बपुरे, हाटों हाट बिकाय ||
(जिसने अपने कल्याणरुपी अविनाशी घर को प्राप्त कर लिया, ऐसे सन्त भक्त के शरीर छोड़ने पर क्यों रोते हैं? बेचारे अभक्त - अज्ञानियों के मरने पर रोओ, जो मरकर चौरासी के बाज़ार मैं बिकने जा रहे हैं| ) 

Monday 7 December 2015

KHATTI-MITHI: नमकीन दाल भरी पूड़ी या मीठी पूरन पोली !!!!

KHATTI-MITHI: नमकीन दाल भरी पूड़ी या मीठी पूरन पोली !!!!: मै अपने ससुराल पहुँच चुकी हूँ।मेरा भाई ऊपर वाले कमरे में आराम करने चला गया।मुझे और शतेश को भी मम्मी ने आराम करने को बोला और अपने कमरे में च...

नमकीन दाल भरी पूड़ी या मीठी पूरन पोली !!!!

मै अपने ससुराल पहुँच चुकी हूँ।मेरा भाई ऊपर वाले कमरे में आराम करने चला गया।मुझे और शतेश को भी मम्मी ने आराम करने को बोला और अपने कमरे में चली गई।मम्मी के जाने के बाद शतेश तो खर्राटे लेने लगे पर मुझे नींद नही आ रही थी।ये वही कमरा था ,जहाँ से मै और शतेश परमानेंट रूमेंट्स बन गए थे।मेरे कहने का मतलब जो रूम शेयर करे वो रूममेट ही तो होता है।समय के साथ रूमेंट्स बदलते है ,पर अब तो इस जनम का रूममेट मिल गया है,जिसको चेंज नही कर सकते।इस बात की ख़ुशी भी है ,और दुःख भी।ख़ुशी ऐसे की रूममेट के बावजूद पूरा कमरा मेरा ,जैसे चाहूँ चेंजेज कर सकती हूँ।अपना सामान कही भी रख सकती हूँ।इस रूममेट पर अपनी धौंस जमा सकती हूँ।दुःख इस बात की लाख खर्राटों के बावजूद इस रूममेट का मर्डर नही कर सकती।वो तो शुक्र है ,बेड बड़ा है।वरना सुबह मैं नीचे गिरी हुई होती।अच्छा था हॉस्टल लाइफ।कम से कम कमरे में दो बेड तो होते थे।तू कर अपने बेड पे भांगड़ा।तू गिर नीचे ,मै तो आराम से सोऊ।एक दिन मेरा भी दिमाग घूमा।खर्राटे तो आते नही थे ,मैंने वॉलूम तेज करके टेबलेट पर गज़ल सुनने लगी।शतेश को गज़ल या हिंदुस्तानी क्लासिकल कुछ ख़ास पसंद नही।पहले मैंने मालिनी राजूरकर जी को सुना ,फिर जगजीत सिंह जी को,फिर गुलाम अली जी गा रहे थे।पर हद तो तब हुई जो कुम्भकर्ण (शतेश ) को कोई फरक ही नही पड़ा।उसी लय ताल से खर्राटे लेते रहे ,सोते रहे।गुस्से में मैंने दो -चार मुक्का मारा होगा।तभी गुलाम अली का ,हंगामा है क्यों बरपा बजने लगा।मैं जोर से हँस पड़ी।मुक्का खाने और मेरी हँसी सुनकर हड़बड़ा कर शतेश बोले ,क्या हुआ तपस्या सब ठीक है ना।और फिर सो गए।अब तो इस रूममेट की आदत हो गई है।किसी रात खर्राटे नही लेते ,तो मैं डर जाती हूँ।तो शतेश मस्त खर्राटों से घर को बेध रहे थे।मैं लेटी हुई खिड़की से बाहर खेतो के सौंदर्य का मजा ले रही थी।भोर हो गई थी।आस -पास के घरो से बच्चो के जगाने की आवाज आ रही थी।रे रुबिया उठ सबेर हो गईल।नइखू उठत रुकअ आवतानी।तभी मेरे घर से कूकर की सीटी की आवाज आई।समय कुछ 6 या 6 :30 हो रहे होंगे।मैं सौंदर्य पान और बहार की आवाजो से निकल कर किचेन की तरफ गई।देखा तो मम्मी दाल उबाल रही थी कूकर में।मैंने मम्मी को बोला इतनी सुबह क्या कर रही है? आराम से सब होगा।मम्मी बोली सोचा तुमलोग रास्ते में ठीक से खाये नही होगे ,और दाल भर के पूड़ी - खीर बनानी है ,तो समय लगेगा इसमें।मैंने कहा क्या जरुरत दाल भरके पूड़ी बनाने की।मम्मी ने कहा अरे नही तुम आई हो तो ,मैंने सोचा बनाती हूँ।बिहार में शादी के बाद जब नई दुल्हन ससुराल जाती है ,तो ससुराल में दाल भरी हुई पूड़ी ,गुड़ और चावल की खीर और सब्जी बनाया जाता है।इसे पड़ोसियों ,रिश्तेदारो में भी बाँटा जाता है।वैसे ये रस्म मेरा हो चूका था ,फिर भी मम्मी ये सब कर रही थी। उनको ये सब करके ख़ुशी मिल रही थी ,तो दूसरी और मैं भावुक हो रही थी।दाल भरी पूड़ी महाराष्ट्र की पूरन पोली का नमकीन वर्जन है।मतलब सारा प्रॉसेस सेम बस वहाँ दाल में चीनी या गुड़ डालते है ,बिहार में नमक डालते है।क्या करे हम बिहारी है ही नमकीन :) थोड़ी देर बाद शतेश भी जागे।मेरा भाई भी नीचे आँखे मलता हुआ आया।चाय की फरमाइश करके सामने चौकी पर बैठ गया।मैं चाय बना रही थी ,इसी बीच पापा टोकरी में सब्जी ले कर आये।मुझे टोकरी देते हुए बोले "देखअ बेटा अपना खेत में के ह ,हम बोअले बानी"।मैं हँसते हुए शतेश को बोली लो खाओ ऑर्गेनिक सब्जी।अमेरिका में ओर्गानिक ,इनऑर्गेनिक का बहुत ड्रामा है।सब्जी की टोकरी रख कर सबको चाय दिया मैंने।सब एकसाथ चाय पी रहे थे।पापा ने मजाक में मेरे भाई से पूछा , का हो चुलबुल बहिन के साथे ले जाईब का :) (क्या चुलबुल बहन को साथ ही ले जाओगे ) मेरा भाई हँसते हुए बोला ना पापा जी जब आपकी मर्जी हो भेज दीजिये दीदी को।तब तक मैं भी यही रहता हूँ।सबलोग हँसने लगे। 

Tuesday 1 December 2015

KHATTI-MITHI: मच्छर ,ड्राइवर ,खून ,गठिया और मम्मी !!!!

KHATTI-MITHI: मच्छर ,ड्राइवर ,खून ,गठिया और मम्मी !!!!: पिछली यात्रा स्मरण से कहानी आगे बढ़ती है।मेरा भाई कहता है ,चलो घर चले।छपरा वेटिंग रूम से निकल कर हमलोग गाड़ी की तरफ जाते है।गाड़ी के पास पहुँच...

मच्छर ,ड्राइवर ,खून ,गठिया और मम्मी !!!!

पिछली यात्रा स्मरण से कहानी आगे बढ़ती है।मेरा भाई कहता है ,चलो घर चले।छपरा वेटिंग रूम से निकल कर हमलोग गाड़ी की तरफ जाते है।गाड़ी के पास पहुँच कर पापा ड्राइवर को जगाते है।ड्राइवर मस्त शर्ट खोल कर बनियान में, पैर गाड़ी के खिड़की पर रख कर सोया हुआ था।पापा की आवाज सुनकर जागा।सामान गाड़ी में रखने के बाद वो बोला बाबा (मेरे ससुर जी ,को गाँव में सब बाबा कहते है ,ब्राह्मण होने की वजह से )रुकिए गाड़ी घुमा लेते है तो बैठियेगा आपलोग।गाड़ी स्टार्ट करने गया तो गाड़ी स्टार्ट ही नही हो रही।फिर हँसते बोलता है ,बाबा लागत ता धक्का देवे के पड़ी।बैट्री  ख़त्म हो गइल बा।गरमी के वजह से पंखा चला के सूत गईल रहनी ह।पापा थोड़ा झल्लाते हुए बोले साफ़ बोका (मेल बकरी ) बाड़े ,गाड़ी के पंखा चला के सुते के चाही ? इस पूरी वार्तालाप का मतलब ड्राइवर गाड़ी में पंखा चला कर सो गया था ,जिससे बैट्री खत्म होगई थी ,और पापा झल्ला रहे थे।पापा को गाड़ी चलनी नही आती इसलिए एक ड्राइवर रखा है।ड्राइवर है तो बुद्धि से ठीक -ठाक पर थोड़ा और ज्यादा बुद्धिमान बनने की कोशिश करता है।खैर ये तो मनुष्य का स्वभाव ही है।पापा ,मेरा भाई और शतेश गाड़ी को धक्का दे रहे है रात के कोई 3 :30 हो रहे होंगे।मैं पीछे खड़ी सोच कर मुस्कुरा रही थी ,कि कही बीच में गाड़ी स्टार्ट हो जाये और धक्का देने वाला कोई झटके से गिर जाए तो ड्राइवर का क्या होगा।यही तो होता है ,पापी दिमाग की उपज।मुझे उनके गिरने की सोच की हँसी आ रही थी ,उनकी तकलीफ नही दिख रही थी जो वो धक्का लगाने में कर रहे थे।खैर ऐसा कुछ नही हुआ।गाड़ी स्टार्ट भी हो गई ,कोई गिरा भी नही।गाड़ी में जब बैठी तो मच्छरों का आक्रमण शुरू।खिड़की खुली होने से मच्छर गाड़ी के अंदर डेरा जमाये बैठे थे।या फिर हो सकता है ,ड्राइवर का "मजदुर खून" उन्हें पसंद आ गया हो।जो थकान की वजह से सोये ड्राइवर पर हर तरह से प्रहार कर रहे हो।ड्राइवर भी जैसे आँखे मूँदे सोच रहा हो ," खून ही तो है मेरा " ,पी लो।जब इंसान इंसान का खून पी रहा है ,तो तुम तो मच्छर- मक्खी हो।तुम्हारा काम ही खून पीना है।वैसे भी गरीबो का खून तो पसीने के बराबर होता है।"महत्वहीन"  पर मैं भी ज्ञानी हूँ ,अकड़ू हूँ मैं तुम्हे अपने शरीर पर से नही हटाउँगा ,जब पेट भर जाए खुद उड़ जाना।हाँ मच्छर ज्यादा मत पी लेना ,नही तो उड़ा नही जायेगा तुमसे।और गलती से मेरा हाथ हिला तो नरक के अलावा कही और शरण नही मिलेगी।मैं भी क्या मच्छर और ड्राइवर के बीच उलझ गई।मेरा भाई, शतेश ,ड्राइवर और पापा बाते करते जा रहे थे।मैं अँधेरे में ,टिमटिमाते रौशनियों के बीच खिड़की से बहार देखती हुई पुराने दिन याद कर रही थी।मेरी विदाई भी ऐसे ही अँधेरे में हुई थी।समय कुछ 2 /3 घंटे आगे पीछे रहा होगा।ऐसा था कि सूर्योदय से पहले मुझे ससुराल पहुंचना था।तो मेरे भाई ने ठीक से रोने या लोगो से मिलने तक का मौका नही दिया।शादी के बाद कुछ रस्मो के पूरा होते ही मुझे गाड़ी में बिठा दिया।एक बार फिर से वही रास्ते ,वही शतेश।साथ में पापा और भाई का होना, ख़ुशी को और बढ़ा रहा था।सड़क के किनारे एक चाय के ढाबे पर पापा ने गाड़ी रुकवाई।सबने चाय पी और फिर घर के लिए रवाना हुए।बीच -बीच में ड्राइवर रास्ते और हमारी गाड़ी को कहाँ -कहाँ ठोक चूका था, बताते जा रहा था।शतेश की तो जान जा रही थी।उनकी रामप्यारी को ड्राइवर ने कितना कस्ट दिया था।इसी बीच हमलोग घर पहुँच गए। सुबह के 4 :30 हो रहे होंगे।गाड़ी की आवाज सुनकर मम्मी ने गेट खोला।मुझे और शतेश को देख खुद को रोक नही पाई।शतेश और मुझे गले लगाकर खूब रोइ।मैं भी रोने लगी ,शतेश भी थोड़े इमोशनल हो गए।मैं अपने रूम में पहुँची तो मम्मी ने मेरे रूम को काफी साफ़ और सजा कर रखा था।मुझे बहुत अच्छा लगा।मैंने मम्मी को थैंक यू बोला।तो बोली की मेरे लिए तो तुम आज दूसरी बार विदा होकर आई हो।तुम नही होती हो तो बेड मोड़ कर रख देती हूँ ,सारी खिड़की भी नही खोलती।धूल आता है और चूहे गद्दे काट देते है।मुझसे अब रोज -रोज इतनी साफ-सफाई नही हो पाती।पैर में दर्द रहता है ,लोग बोल रहे है गठिया हो गया है।रूबी(काम करने वाली लड़की )को कुछ एक्स्ट्रा पैसे देके सब करवाया है।देखो तुम्हारी शादी वाली बेडशीट बिछाई है।मैं और मम्मी फिर से रोने लगे।तभी पापा आते है ,और कहते है ये क्या रोना -धोना लगा रखी है सब। ये तो ख़ुशी का टाइम है।बेटा -पतोह के लिए कुछ बनाओ खिलाओ।फिर बोले काहो पिंटू लाल (शतेश )अब मत जा अमेरिका इहे रह।फिर रुक कर बोले ,चल ये पर बाद में बात होइ।अभी वैसे भी बहुत सुबह है ,इनलोगो को आराम करने दो और तुम (मम्मी ) भी सो जाओ।मम्मी आराम करने को बोल कर चली गई ,पर मेरी  आँखों में नींद कहाँ।   मच्छर ,ड्राइवर ,खून ,गठिया और मम्मी