Thursday, 29 November 2018

रुई का बोझ !!!

चंद्रकिशोर जयसवाल की उपन्यास पर एक बेहतरीन फिल्म बनी “रुई का बोझ “
फिल्म की कहानी एक बुज़ुर्ग व्यक्ति की है जो अपने परिवार से त्रस्त है ।अगर आपको ये लाइन पढ़ कर अमिताभ बच्चन की बागवान या राजेश खन्ना की अवतार की याद आ  रही है तो ,मै आपसे यही कहूँगी बस एक बार देखिये इस फिल्म को। 
जो ना देख पाए उनको लेकर चलती हूँ एक गाँव  में।इस गाँव में एक बुज़ुर्ग अपने तीन बेटों के साथ रहता है। समय के साथ बेटों का शादी -ब्याह होता है ,घर गृहस्ती से बोझ बढ़ता है और नौबत घर के बटवारे तक आ जाती है। 
घर  का बटवारा तो हो जाता है पर बुज़ुर्ग रहे किसके साथ ?तय होता है कि ,छोटे बेटे को उसकी जरुरत है तो उसके साथ रहे। 
कुछ दिनों तक तो बेटा -बहू खूब सम्मान देते है ,पर समय के साथ वो सम्मान कम होने लगता है। ऐसी स्थति में बुज़ुर्ग चिड़चिड़े से रहने लगते है।
उनकी हमउम्र का एक दोस्त उन्हें समझाता है -“बूढ़े लोग रुई के गठ्ठर के समान होते हैं। शुरू मे हल्के -फुल्के पर बाद में भींगी रुई समान भरी  इसलिए ,पारिवारिक शांति के लिए कुछ बातों को अनदेखा अनसुना करते रहना चाहिए। 
पर बुज़ुर्ग को ये बात समझ नहीं आई। उसे लगता है कि बूढ़ा हो जाने से अच्छा खाना पीना नहीं खाया जा सकता ?क्या अच्छा पहना नहीं जा सकता ?
रोज की कलह एक दिन बाप -बेटे में ऐसी नौबत ला देता है कि  बेटा क्रोध में बाप को घर के पीछे कोठरी में रहने की सजा दे देता है। इस समय फिल्म के बैकग्राउंड में जो सितार बज रहा होता है ,मानो आपके दिल को झकझोर रहा होता है। सोचिये कभी घर का मालिक और आज कोठरी में पड़ा हुआ है। 

ऐसे में बुज़ुर्ग घर छोड़ने का मन बनाता है।जंगल के मठ की ओर चल पड़ता है। घर के लोगो को अपनी गलती का अहसास हो जाता है पर ,बुज़ुर्ग रुकता नहीं है ।फिल्म का सबसे सुन्दर पार्ट यही है। बैलगाड़ी पर जाता बुज़ुर्ग ख्यालों में अपने दोस्तों से बातें करता है। 
उसका दोस्त कहता है -“कलयुग है ,पर कलयुग का ये मतलब नहीं की घर छोड़ कर भाग जाया जाय “ वापस लौट जाओ। 

बैलगाड़ी चल रही होती है ।बुज़ुर्ग गाड़ीवान से कहता है -कोकन घर से निकलते समय सोचा था अब घर नहीं लौटूँगा ,पर मैं अकेले कैसे रह पाउँगा ?सोच रहा हूँ ,दो -तीन दिन में जल चढ़ा कर लौट आऊंगा। 
गाड़ीवान कहता है -बहुत अच्छा मालिक  ।हम भी यही कहने का सोच रहे थे। 
बुज़ुर्ग गाड़ीवान को डांट लगाता है तो कहा क्यों नहीं ? अच्छी बात कहने में तुमलोग इतना सोचते क्यों हो ?
फिर कहता है कि दो -तीन दिन वहाँ क्या करूँगा ?आज शाम तक ही लौट आऊँगा और अंत में ये उसकी हालत ये होती है कि गाड़ीवान से कहता है -गाड़ी घुमा ले घर की तरफ। वहाँ जा कर मेरा मन बदल गया फिर ? बाल -बच्चों के बिना कैसे जिंदगी बिताऊंगा ।

**“गीता कनेक्शन :-
गाड़ीवान पूछता है -मालिक आप अचानक मन क्यों बदल लिए ?
बुज़ुर्ग कहते है -कोकन गीता का एक श्लोक याद आ गया ,

तुल्यनिन्दास्तुतिमोर्नी  संतुष्टो येन केनचित ।
अनिकेतः स्थिरमतिभक्तिरमान्मे प्रियो नरः ।।
 यानि ,जो निन्दा -स्तुति को सामान समझता है ,किसी भी प्रकार से शरीर निर्वाह में सदा ही संतुष्ट है और रहने के स्थान में शांत चित आसक्ति रहित है ,वो स्थिरबुद्धि मनुष्य मुझे प्रिय हैं ।

गाड़ीवान फिर पूछता है -लेकिन परमधाम का क्या मालिक ?
बुज़ुर्ग कहते है ,गीता में ही कहा गया है -

यत्सांख्ये प्राप्तये स्थानं ताद्दोगैरपि गम्यते ।
एकं सांख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति ।।
यानयोगियों द्वारा जो परमधाम प्राप्त किया जाता है कर्मयोगियों को भी वही प्राप्त होता है ।इसलिए जो मनुष्य ज्ञानयोग और कर्मयोग को एक सामान देखता है वही यथार्थ देखता है ।

नोट:-क्या मैं इस दुनियाँ का अकेला हूँ जो बूढ़ा हुआ ?क्या तुम सब कभी बूढ़े नहीं होंगे ?
ध्यान दीजियेगा इस लाइन पर और साथ ही गीता श्लोक पर ।



Monday, 26 November 2018

पोर्ट रीको के ख़ूबसूरत घर !!!!!

समुद्र तटों के अलावा पोर्ट रीको का दूसरा सबसे बड़ा अट्रैक्शन यहाँ का समृद्ध इतिहास और कला है ।यहाँ के कलरफूल घर ,घरों की बालकनी में झूलते फूल ,नीले -काले पत्थरो से बनी गालियाँ ,गली -गली में रेस्ट्रोरेंट ,आर्ट शॉप,और ख़ूब सारे पेड़ -पौधे आपका हर पल मन मोहते रहते है ।
ओल्ड सैन जुआन में कई सारी चीज़ें है देखने को ।सुबह से शाम तक का वक़्त कैसे बीत जाता है आपको पता भी नही चलता ।शाम को तो और भी रौनक़ हो जाती है ।म्यूज़िक ,डान्स खाना पीना सब आपको किसी ना किसी कोने पर मिल जाएँगे ।सच में लैटिन लोगों से सीखा जा सकता है हर माहौल में ख़ुश रहने का तरीक़ा ।

सबसे पहले मैं आपको यहाँ के फ़ोर्ट लेकर चलती हूँ ।कैस्टीलो सैन क्रिस्टॉबाल 500साल पुराना किला है ।शहर को बाहरी लोगों के हमले से बचाने के लिए ,स्पेनिश लोगों ने मिलकर अटलांटिक ओसन के आगे  एक दीवार खड़ी कर दी ।छः मंज़िला ये किला बाद में नेशनल हिस्टोरिक साइट घोषित हुआ ।इसके हर कोने पर एक एक गार्ड हाउस जैसा बना है ।जिसमें 24घंटे एक गार्ड रहता निरीक्षण को कि कोई हमला करने तो नही आ रहा ।क़िले के नीचे के दो फ़्लोर बंद है ।यहाँ घूमने के लिए दोपहर के बाद जाना ठीक होगा ।कारण अक्टूबर में भी हमारा दम निकल गया था ।आपको सीढ़ियों से ही एक फ़्लोर से दूसरे तक जाना है ।दम निकलने के बाद भी आप घूमना नही छोड़ते इतना ख़ूबसूरत नज़ारा आपके आँखो के आगे होता है ।
जैसा कि मैंने पहले बताया था यहाँ घूमना सस्ता है ।इसकी एंट्री फ़ी मात्र 7डॉलर पर पर्सन ,वो भी इस चार्ज में आप दो दिन घूम सकते है ।दो दिन के साथ दो किला भी ।दूसरा किला यहाँ से लगभग 15-20मीनट वॉकिंग है ।मेरा सुझाव ये है ,अगर आप अकेले है। तो ठीक पर बच्चे के साथ पैदल ना जाए ।शतेश पहले क़िले में हीं थक गये थे ।बोले मैं नही जा रहा ।मैं सत्यार्थ को लेकर निकल पड़ी बोली आप गाड़ी पार्किंग से लेकर क़िले तक 30 मिनट के बाद पहुँचो ।तबतक यही आराम करो ।मेरी जो हालत हुई मैं हीं जानती हूँ ।क़िले का शॉर्ट कट गेट बंद था ,लम्बा घूम कर गई तो वहाँ क़रीब 25/30 सीढ़ियाँ ।मेरी हिम्मत जबाब दे गई और मैं वही बाहर बैठ कर शतेश का इंतज़ार करने लगी ।

क़िले के साथ हीं सैंटा मारिया मैग्डलेना सेमटेरी है ।इस ख़ूबसूरत सेमेटेरी को अटलांटिक ओशन के सामने बनाने का कारण मृत्यु को ख़ूबसूरत दिखाना है ,ऐसा मुझे वहाँ पर खड़े एक गाइड ने बताया ।उसने कई फ़ेमस लोगों के नाम बताए जो यहाँ दफ़न थे और मैं उन्मे से किसी को नही जानती थी ।आप इसे भीतर से भी देख सकते है पर हमारे पास समय कम था ।भीतर जाने के लिए फिर आपको लम्बा पैदल जाना होता ।वैसे आप इसे बाहर से भी अच्छी तरह देख सकते है ।इसके पीछे ग्राउंड है जहाँ लोग पतंग उड़ाने के लिए आते है ।एक छोटा सा बुक स्टोर भी है जो हेरिकेन के बाद सिमट गया है ।
वापस स्ट्रीट पर आते हैं तो एक गली में छतरी टाँग रखी है ,जहाँ फ़ोटो लेने के लिए भीड़ लगी थी ।हम भी उसका हिस्सा बन गए ।उसके आगे ही गवर्नर का महल है ।

आज के अंतिम पड़ाव में कैसे तबाही को ख़ूबसूरती में बदला जाय ये कोई ऑर्ट आउफ़ यूनाइट से सीखे।यौको में हेरिकेन के बाद बहुत से घर तबाह हुए ।कई लोगों के रोजगार बंद हो गए ।ऐसे में यहाँ पर इस ऑर्ट ग्रूप ने लोगों के घरों को ख़ूबसूरत पेंट से सज़ा दिया ।यहाँ जाने की कोई एंट्री फ़ी नही ।आप अपनी इक्षा से लोकल लोगों के घरों से कुछ खाने पीने का ख़रीद ले ।हमने एक लोकल फ़्रूट आइसक्रीम ली थी ।
चलिए आगे अब तस्वीरों के ज़रिए यात्रा पर निकलते हैं -


Sunday, 25 November 2018

ही लाफ़ड ऐट माई सीनस इन हिज़ आर्मस आई मस्ट स्टे!!!!

पिछला सप्ताह मेरे लिए एक मेंटल ट्रॉमा जैसा रहा ।कुछ तबियत ख़राब तो कुछ मन ।मन के ख़राब होने का कारण एक बहुत प्यारी दोस्त भारत वापस लौट गई ।उसके जाने से पहले हम कुछ दोस्तों ने बाहर पार्टी रखी ।बातचीत के दौरान मुझे मालूम ही नही चला कब वेटर ने वेज और नॉनवेज स्टार्टर ला दिया ।शतेश ग़लती से चिकेन 65मेरी प्लेट में परोस दिए जीवन में पहला बाइट ग्लानि से भर गया ।वेटर आकर माफ़ीपर माफ़ी माँग रहा है ।मेरी आँखो में जाने क्यों आँसू आ गए हैं।बाथरूम की तरफ़ भागती ।शतेश और वेटर पीछे आते हैं।मैंने कोई बात नही कह कर बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर लिया ।

कल हीं तो मैने “ऑन बॉडी एंड सोल “ हंगेरीयन फ़िल्म देखी थी ।कितनी निर्दयता से उसमें जानवर को काटते है ।मुझे अभी वो याद आ रहा था साथ ही ऊबकाई और रूलाई दोनो आ रही थी ।थोड़ी देर बाद मैं बाहर आई तो शतेश वहीं खड़े थे ।मेरे कुछ दोस्त भी थोड़ा आगे खाना छोड़ मेरा इंतज़ार कर रहे थे ।मुझे आते ही संतावना देने लगे ।ख़ैर उस रात मैं सो नही पाई ।

बात फ़िल्म की तो क्या कहूँ ,ऐसी फ़िल्म मैंने आज तक नही देखी थी ।ज़बरदस्त बात तो ये कि इस फ़िल्म की डिरेक्टर एक महिला हैं ।सच में एक महिला ही एक समय में इतनी क्रूर और अनंत प्रेमिका हो सकती है ।बहुत ही ख़ूबसूरती से शांत कविता की तरह इस फ़िल्म को बनाया गया है ।कई बार तो मैं डर जाती तो वही अगले पल उस हिरणी सी आँखो वाली नाईका की ऐक्टिंग में खो जाती ।बार -बार आप सपने के तिलस्म में खो से जातें हैं पर फ़िल्म अधूरा नही छोड़ पाते।
फ़िल्म कि कहानी कुछ यूँ है ,नायक और नाईका एक कसाईख़ाना में काम करते है ।दोनो ही अंतरमुखी व्यक्तित्व वाले होते है ।खास कर नाईका ।ऐसे में एक दिन उन्हें कॉम्पनी की मनोचिकित्सक द्वारा मालूम होता है की दोनो एक ही सपना देखते है।जी हाँ एक हीं सपना ।
मैंने आज तक एक बात को कई बार दो लोगों को कहते सुना है ,एक ही चीज़ सोचते भी देखा है पर एक ही सपना और वो भी रोज़ ।ये कभी नही सोचा था ।
हाँ तो ,दोनो सपने में हिरण होते है ।बर्फ़ीली वादी में एक तालाब के किनारे मिलते हैं।उन दोनो को भी इस बात पर यक़ीन नही होता ।इसलिए अगले दिन से वे आपना सपना एक पेपर पर लिख कर एक दूसरे को देते हैं।फिर उन्हें यक़ीन हो जाता है कि वे दोनो एक हीं सपना देखते है ।इस तरह रोज़ अपना सपना शेयर करने से उनके बीच प्रेम उपजने लगता है ।
नाईका जैसा कि बहुत ही अंतर्मुखी शर्मीली होती है वो नायक के प्रेम स्पर्श को एक बार नकार चुकी है ।नायक इसे अपनी ग़लती ,उम्र का फ़ासला और एक हाथ से अपाहिज होना  समझता है ।वो नाईका को अनदेखा करने लगता है ।नाईका इसे सह नही पाती है और आत्महत्या की कोशिश करती है ।

बाथटब में ख़ून और दर्द से भिंगी नाईका मौत का इंतज़ार कर रही है तभी टेप बजना बंद हो जाता है ।वो बेचैन सी टेप की तरफ़ बढ़ती है और फ़ोन की घंटी सुनाई देती है ।भाग कर वो फ़ोन के पास जाती है ।अब उसके चेहरे पर शांति है ।
मानो उस एक फ़ोन कॉल ने उसे जीवन दे दिया है ,जब नायक कहता है -मुझे नही मालूम कि मैंने तुम्हें इस वक़्त क्यों कॉल किया ।मुझे ऐसा लगा जैसे मैं मर रहा हूँ ।
फ़िल्म का सबसे डरावना ,मार्मिक ,रोमांटिक सीन यही है ।इस एक सीन में आप सब जी लेते हैं।
नायक और नाईका अंततः एक होते  है ।सपने का जादू ख़त्म हो चुका है ।अगली सुबह जब वे जागते है उन्हें याद हीं नही कि उन्होंने कोई सपना देखा हो ।

जाते- जाते
 फ़ॉरगिव मी हियर
आई कैनॉट स्टे
ही कट आउट माई टंग
देयर इस नथिंग टू से
लव मी ?
ओह लॉर्ड ही थ्रू मी अवे
ही लाफ़ड ऐट माई सीनस इन हिज़ आर्मस आई मस्ट स्टे


Saturday, 24 November 2018

नदी नारे ना जाओ श्याम पाइयाँ पड़ूँ!!!

आज फिर वो मसान के किनारे आई थी ।लेकिन आज का आना अलग था ।मैंने उसे कई बार देखा है ,बस देखा है।जिस  तरह उसका आज का आना अलग लग रहा था ,ठीक वैसे ही मेरा उसे आज का देखना अलग था ।जाने क्यों मैं आज उसे बार -बार देख रहा था ।एक वो है जिसे ख़बर भी नही कि कोई उसे देख रहा है । पानी को देख रही है ।कुछ गुनगुना रही है ।फिर धीरे से अपने दोनो पाँव पानी में डाल देती है ।कुछ देर अपने पाँवो को देखने के बाद गर्दन टेढ़ी कर आसमान को देखने लगती है ।मैं नदी के किनारे रेतीली पगडंडी पर आगे बढ़ने लगता हूँ ।उसे ख़बर भी नही कि कोई जा रहा है ।

देखता हूँ घर लौटते हुए कुछ पशु नदी के उसी घाट पर पानी पी रहें हैं ।जहाँ से कुछ दूर पहले वो अपने पैरों को पानी में डाल जाने किस लोक में खोई हुई ।उसने कभी मसान का पानी पिया होगा ?
मैंने तो नही पिया ।आख़िर क्यों पीयूँ मैं इसका जल ? इस पहाड़ी नदी ने जाने कितने जीवन और मृत्यु को सींचा है ।कौन जाने मेरे भाग्य में क्या हो ?
फिर देखता हूँ ,जीवन तो ये पशु मुझसे बेहतर अभी जी रहे हैं ।जाने आज मसान के पानी में क्या था जो इसे पी कर ये जल क्रीड़ा में डूब गये थे ।कहीं  ये उन क़दमों का असर तो नही ?हाँ हो सकता है ।
तो क्या मैं भी आज मसान का पानी चख लूँ ? इसी सोच विचार में मैं कभी उसे तो कभी नदी तो कभी पशुओं को देखता हूँ ।वो अब भी आँखे बंद किए गुनगुना रही है ।नदी शांत चीत बह रही है और पशु जल क्रीड़ा में लिप्त हैं।
इसी बीच मैं अचानक डर जाता हूँ ।सोचता हूँ ,कहीं मेरे जल पीने से पहले वो अपने पाँव ना पानी से निकाल ले ।मैं नदी की तरफ़ भागता हूँ और गिर पड़ता हूँ ।मेरे गिरने से धम्म की आवाज़ होती है और वो आँखे खोल देती है ।झट से अपने पैर नदी से निकाल मेरी तरफ़ बढ़ती है ।पूछती है लगी तो नही ? मैं बुदबुदाता हूँ -ओह !पैर क्यों निकाला ?क्या मेरा अमृत आज रह गया ?

उसे मेरा दर्द भरा ओह सिर्फ़ सुनाई देता है ।
मुझे उठाते हुए पूछती है - ज़्यादा लगी क्या ? देखूँ तो और मेरे पैर देखने लगती है ।
मैं उससे देखता रह जाता हूँ ।सोच में पड़ जाता हूँ  कि किसी अनजान से इतनी आत्मीयता ।शायद इसके मन का प्रेम हीं अमृत तो नही ।

मुझे कुछ चुभन सी हो रही है ।सोचता हूँ ये निश्चित हीं उस अमृत से वंचित होने की चुभन है ।
तभी वो कहती है -देखो ठेस लगने से नाख़ून निकल आया है तुम्हारा ।चलो पानी से धो लो ।ख़ून बंद हो जायेगा।
मैं बुत के समान उसके पीछे चल पड़ता हूँ ।नदी के घाट पर पहुँचता हूँ ।
आह रे मसान ! ठीक इसी जगह पर कुछ देर पहले इसके पाँव इस जल में थे।तू सच में कभी अमृत तो कभी विष है ।

जाने क्यों संकोचवश मैं अपना घायल पाँव मसान में डालता हूँ  और पूछ पड़ता हूँ -आप क्या गा रहीं थी ?
विषमय हो कर वो पूछती हैं -मैं ?
मैं कहता हूँ -हाँ आप ।
वो उठ खड़ी होती है ।नदी पार कर गाती हुई चली जा रही है नदी नारे ना जाओ श्याम पाइयाँ पड़ूँ।




Tuesday, 20 November 2018

पोर्ट रीको !!!!

अमेरिकी प्रवास के पाँच सालों में ख़ूब घूमना फिरना हुआ ।अमेरिका के लगभग सारे टॉप डेस्टिनेशन लिस्ट पूरा हो चुके थे पर घुमाई तो जारी रखनी है ।ऐसे में कुछ ऐसी जगह जो हर बार सोचते पर किसी ना किसी वजह से जा नही पाते ,वहाँ जाने का सोचा ।रह गए लिस्ट में पोर्ट रीको ,अलास्का और हवाई थे ।इस बार पोर्ट रीको की पर्ची निकली और हमेशा की तरह मेरी विश पहले पूरी हुई कारण शतेश का मन हवाई जाने को था ।

तो चलिए इस बार नैचरल ब्यूटी ,सागर के घर पोर्ट रीको आपको लेकर चलती हूँ ।सच बताऊँ तो ये जगह मुझे इतनी अच्छी लगी कि फिर से अभी जा सकती हूँ ।इतनी बड़ी त्रासदी (मारिया हरिकेन 2017) के बावजूद हर चीज़ फूल आउफ़ लाइफ़ मुझे नज़र आ रही थी ।मैं तो लगभग खोई हुई हीं रहती थी ।ख़ूब कल्पनाएँ की ,बादल ऐसा तो समुन्दर ऐसे ,पेड़- पोधो की आकृति ऐसी ,कोफ़ी का स्वाद ऐसा तो ऑर्ट ऐसे ।मुझे हर चीज़ में एक आकृति नज़र आ रही थी ।
।दूसरी सबसे बड़ी बात, ये जगह कुछ- कुछ अपने भारत सा लग रहा था ।शतेश कभी साउथ में पहुँच जा रहे थे तो कभी छपरा ,वही मैं कभी महाराष्ट्र तो कभी सिवान -बेतिया ।यहाँ के लोग भी इतने मिलनसार की क्या हीं कहा जाय ।इसपर अलग से लिखूँगी ।और और और ये अमेरिका के दूसरे शहरों से बहुत अलग था ।यहाँ हर चीज़ की अलग पहचान थी ।दुकान भी अलग -अलग ,हाँ चेन स्टोर (वॉल्मार्ट ,टार्गट ,मेसीज और भी बड़े स्टोर )थे पर उनकी बनवाट थोड़ी अलग थी ।बाक़ी पूरे अमेरिका में आपको एक ही तरह के रंग -रूप बनावट में सारे दुकान  ,घर  ,स्कूल ,सड़क दिखेंगे ।

ख़ैर ,मुझे नही लगता कि मैं एक बार में इतनी सारी बातें लिख पाऊँगी इसलिए कम से कम तीन भाग में इस यात्रा को लिखने फिर से जीने का सोचा है ।
हम्म तो पहले बता दूँ कि पोर्ट रीको “कोलंबस “की खोज है और यहाँ के बंदरगाह की वजह से इसका नाम पोर्ट रीको पड़ा ।हिन्दी में इसका मतलब समृद्ध बंदरगाह है ।हाँ तो जब कोलंबस पहली बार भारत की खोज में निकला तो वो 1493 में यहाँ पहुँचा।यहाँ के निवासी “टाईनो” को देख वो इंदीयन कह कर सम्बोधित किया ।जो बाद में इंदीयन कहलाने लगे ।फिर यहाँ की राजधानी “सेन जुआन “बनी जो कि एक संत के नाम पर रखी गई ।

कैरिबियन सागर और उत्तरी अटलांटिक सागर के बीच बसे इस आईलैंड पर क़रीब तीन सौ बीचेज है।इसके आस पास छोटे -छोटे कई आईलैंड है ।जिसमें मुख्य कुलेब्रा  ,वीकुएस ,मोना हैं ।कुलेब्रा का बीच तो विश्व के टॉप बीच की श्रेणी में भी आता है ।
हमने अपने तीसरे दिन की शुरुआत कुलेब्रा के बीच से हीं की ।यहाँ जाने के लिए आप फेरी या फिर लोकल फ़्लाइट से जा सकते हैं।हमने फेरी फ़जार्डो के एक नेवी बेस पोर्ट से ली ।पर पर्सन आने जाने का मिलकर कर टिकेट सिर्फ़ साढ़े चार डॉलर ।हम चकित थे ।यहाँ घूमना बहुत सस्ता है ।अगर फ़्लाइट से भी जाते तो सिर्फ़ 40डॉलर लगते पर हमें फ़्लाइट का पूरा मालूम बाद में हुआ ।कारण ज़्यादातर लोग फ़ेरी का हीं इस्तेमाल करते है ।फ़ेरी से हम 45मिनट में कुलेब्रा पहुँच गये ।वहाँ से टैक्सी ली फ़्लमेंको बीच के लिए ।ये भी सिर्फ़ पाँच डॉलर में आना जाना ।बीच का एंट्री टिकेट पर पर्सन 2डॉलर है ।
बीच का तट ख़ूब पेड़ पौधों से घिरा था ।मुर्ग़ियाँ बीच पर ऐसे हीं घूम रहीं थी पहली बार ऐसा देखा था ।सत्यार्थ की तो चाँदी हो गई थी ।और भी कई छोटे -मोटे जीव जंतु थे ।कुछ एक मच्छर जैसा काटता था पर मच्छर नही था ।वहाँ के एक दुकानदार ने बाताया कि मारिया के बाद अभी ये काफ़ी ठीक है ।
आज बस इतना ही ।आप तस्वीरों के ज़रिए सैर कीजिए .....

Sunday, 18 November 2018

मजनूँ और फ़्लॉरेंटीनो!!!

क्या कोई सारी उम्र किसी का इंतज़ार कर सकता है ? क्या कोई किसी से इतना प्रेम कर सकता है कि उसे अपने प्रेमी के अलावा कोई दिखता ही ना हो ? क्या ये बातें सिर्फ़ कहानियाँ  है या किसी ने इसे सच में जीया है ?
कई ऐसे सवाल आज की फ़िल्म के अंत के साथ फिर ज़िन्दा हो गए है । फ़िल्म थी इम्तियाज़ अली और साजिद अली की लैला मजनूँ।
इस फ़िल्म के साथ एक और अजीब बात मेरे साथ हो रही थी ।फ़िल्म को देखते -देखते मैं कई बार लव इन द टाइम आउफ़ कॉलरा मोड में चली जा रही थी ।कई बार लग रहा था कि मार्केज़ और इम्तियाज़ मिल कर कहानी लिख रहे थे ।हालाँकि पहली बार में मुझे लव इन द टाइम आउफ़ कॉलरा उतनी पसंद नही आई थी ।इसपर लिखा भी था ,पर इस बार फिर से पढ़ी तो कुछ अलग लगा ।पहली बार में किताब ना पसंद होने के कारण इस किताब के नायक की रूप रेखा और उसका कई बार औरतों ,विधवाओं ,प्रॉस्टिटूटऔर नाबालिग़ लड़की से सम्बंध बनाना फिर भी नायिका से झूठ कहना की वो वरजिन है ।मुझे ग़ुस्सा था झूठ क्यों बोला ? अगर इतना प्रेम था तो इतनी औरतों के पास क्यों गया ? जान ली ,एक बच्ची मर गई इस मैनियक के कारण ।

ख़ैर अब क्या सोचती हूँ वो बाद में ,अभी लैला मजनूँ के साथ चलिए ।इस फ़िल्म में भी नायक नायक जैसा नही लगता ।मैंने फ़िल्म के ट्रेलर को देख शतेश से कहा था बकवास फ़िल्म होगी ।पर पर पर फ़िल्म ओह क्या बनी है ,क्या लड़के ने काम किया है ,बहुत -बहुत सुंदर ।
नायक ख़ुद ही फ़िल्म में कहता है शक्ल अच्छी नही इसलिए जिम जाता हूँ ,कपड़े -जूते मेंटेंन करता हूँ ।आप कुछ देर के बाद ही नायक की शक्ल भूल कहानी में खो जाएँगे ।
इस फ़िल्म में भी नायक बिगड़ैल लड़का होता है पर लैला के मिलने के बाद सब बदल जाता है ।वो भी फ़्लॉरेंटीनो (किताब के नायक )की तरह नाईका पीछा करता रहता है ।नाईका के विवाह के बाद भी उसका इंतज़ार करता रहता है ।
हाँ मरखेज की किताब का नायक थोड़ा क्रूर भी कभी होता है ।उसे इंतज़ार होता है नाईका के पति के मरने की ।वही अपना मजनूँ कभी -कभी स्पिरिचूअल हो जाता है ।उसे दुःख  होता है लैला के पति के मरने पर ।

दोनो ही पात्र इंतज़ार में मानसिक बीमार जैसे हो जाते है ।एक औरतों की देह में प्रेम और शांति ढूँढता है तो दूसरा अपने आस पास लैला के होने के अहसास में डूबा रहता है ।शायद भारतीय प्रेम कहानी है तो इसे ऐसे ही दिखा सकते थे ।
जो भी हो पर दोनो ही नायक को प्रेम में मरना पसंद है ।अपनी प्रेमिका को भूलना इतना कठिन है कि एक 72 साल की उम्र में प्रेम का इंतज़ार कर रहा है और दूसरा चार साल की दूरी में अपनी प्रेमिका को हर वक़्त अपने क़रीब पाता है ।

आख़िर ऐसा क्या है इनके प्रेम में ? क्यों मृत्यु से शुरू होने वाली ये कहानियाँ जीवन तक जाती मालूम पड़ती है ।
क्यों मजनूँ लैला के इंतज़ार में बैठे अपने दोस्त से पूछता है -तुम्हें क्या लगता है कि वो आएगी ? दोस्त कहता है हाँ भाई ।
फिर मजनूँ हँसते हुए कहता कि -फिर मुझे क्यों लगता है कि वो नही आएगी ।
आशा -निराशा के बीच झूलता ये प्रेम कई बार तो लगता है कि दोनो के अहंकार से डूब गया जैसा देवदास में हुआ था ।प्रेम में इतना अहम कहाँ से आ जाता है ये भी समझना मेरी समझ से परे हो जाता है ।

ख़ैर दोनो कहानियों फ़िल्म और किताब से इस बार मुझे ये बात समझ आई कि प्रेम मन /आत्मा की तृप्ति है जहाँ देह सिर्फ़ देह रह जाती है ।कई बार होकर भी ये कई बार अधूरी रह सकती है तो कभी सिर्फ़ एक मुश्कान से पूरी मालूम होती है ।
मजनूँ सच में मजनूँ ही है कहता है -
तुम नज़र में रहो
ख़बर किसी को ना हो
आँखे बोले लब पे ख़ामोशी ।

उसे क्या इतनी भी ख़बर नही की खुदा की दी सबसे सच्ची चीज़ मनुष्य शरीर में आँखे हीं तो है ,वो क्या छुपा पायेंगी कुछ भी ।

Friday, 16 November 2018

दो गर्भ एक जीवन !!!

पिछले दिनों एक न्यूज पढ़ कर चौंक गई।सोचने लगी ऐसा भी हो सकता है क्या ? कैसे किया होगा ? कुछ भी संभव है जैसे कई विचार मन में आ जा रहे थे साथ ही पॉर्टरीको जाने की तैयारी भी चल रही थी।घूमने और  त्योहारों के बीच ये एक अनोखा न्यूज़ रह गया था।
न्यूज़ था कि टेक्सास में रहने वाली दो महिला कपल (लेस्बियन ) ने एक बच्चे को जन्म दिया। अब आप सोचेंगे  इसमें क्या अचरज की बात ? आई वी फ का जमाना है ,किसी भी स्पर्म डोनर से स्पर्म लेकर फर्टिलाइज़ कराया जा सकता है। हॉस्पिटल में बाक़ायदा ये सुबिधा मौजूद है।

अचरज ये रहा कि  एक बच्चा दो माँ के गर्भ में पला। ये अब तक का पहला और एकलौता प्रयोग था।
हुआ यूँ दोनों लड़कियाँ  काफी समय से रिलेशनशीप में थी। शादी भी कर ली थी। अब माँ बनने की ईक्षा थी। तय किया की आई वी फ की मदद से माँ बना जाय। पूरी तैयारी हो गई भ्रूण भी  तैयार हो गया। फैसला हुआ की बड़ी लड़की बच्चे को जन्म देगी। दोनों लड़कियों में कुछ ऐज गैप भी था। बच्चा बड़ी लड़की के गर्भ में पलने लगा।फिर पहले सेमेस्टर की परेशानियाँ उसे शुरू होने लगी। ऐसे में परेशान हो गर्भवती लड़की कहने लगी की वो बच्चा नहीं रखना चाहती।

अब ऐसे में  दोनों लड़कियां डॉक्टर के पास गई। डॉक्टर ने एक रास्ता निकला की भ्रूण को गर्भवती लड़की से निकाल ,दूसरी लड़की में ट्रांसफर कर दिया जाय अगर दूसरी लड़की इसे पालना चाहती हो तो। दूसरी राजी हो गई और इस तरह एक बच्चा दो माँओं के गर्भ से होता इस दुनिया में आया।

कितना अद्भुत है ना। मैं तो सोच रही थी कि अगर ये बच्चा बिहार में हुआ रहता तो कितना सुकून होता इसे। जब भी किसी से लड़ाई होती और वो लाठी लिए कहता कि एक माई के औलाद बाड़ा त बाहर आव।
और बच्चा हँसते हुए कहता एक माँई के औलाद नईखी ,ना आएम का करबअ।

Tuesday, 13 November 2018

बाल दिवस 2018!!!!

बाल दिवस की बात हो और बच्चे ना हो ऐसा हो सकता है भला ?
तो चलिए इस बार मिलाते है मेरे गाँव के कुछ बच्चों से ।
वैसे तो ये बच्चे दिन भर मेरे दुआर पर खेलते रहते है पर इनका मेरे घर मे गृह प्रवेश मेरे और भाई के रहने पर ही होता है ।भाई ने कई बार इनको पढ़ाने की भी कोशिश की है ।
बस इनका मेरे घर की लगभग मालकीन बाबिया से नही बनता।करण दरवाज़े पर लगे फ़ुल खेल में तोड़ देना ,बाहर का नल खोल देना या फिर गंदे पैर घर में घुस जाना।

मेरे रहते ये कभी सत्यार्थ के साथ खेलने आते या फिर मुझे डाँस या गीत सुनाने।कभी -कभी ये टीवी देखने भी आतें।बाबिया भुनभुना  कर टीवी बंद कर देती ,इन्हें भगाती तबतक मैं आ जाती।ऐसे में इनकी मुझसे अच्छी दोस्ती हो गई थी ।

इसी बीच मेरा जन्मदिन आया।बाबिया ने घर को बेलून से सजाया था ।भाई ने बेतिया से केक भेजा था ।बाबिया मुझे अगले कमरे से निकाल सजावट कर रही थी।ऐसे में मैं दरवाज़े की सीढ़ी पर बैठ बाहर खेलते बच्चों को देखने लगी।

रुखानी आकर मेरे पास बैठ गई।मैंने उससे पुछा ,रुखानी क्या तुमने कभी केक काटा है ? वो शर्माते हुए बोली ना ।
फिर मैंने उन सब खेलते बच्चों को बुलाया ।सबसे उनका जन्मदिन पुछा पर किसी को ठीक से उनका जन्मदिन नही मालूम था ।थे भी तो छोटे -छोटे ।कोई बोल रहा था फागुन मे तो कोई जेठ ,अगहन ।ऐसे में मैंने सोचा क्यों ना आज इन बच्चों से ही केक कटवाया जाय ।

अब सबका नाम लेकर तो बडेय सोंग गाने मे दिक़्क़त होती तो रुखानी जो सबसे बड़ी थी उसका ही नाम लिया मैंने।मेरी तो हँस -हँस के हालत ख़राब हो रही थी उनको केक पर टूटता देख कर ।
बता नही सकती बच्चे कितने ख़ुश थे और उनसे ज़्यादा मैं ।भगवान इनसब बच्चों के साथ विश्व के तमाम बच्चों को प्यार दे दूलार दे ।ये यूँ ही हँसते मुस्कुराते रहें ।

उदासी!!!

कभी -कभी उदासी बिना वजह आपको उदास कर जाती है।जैसा की आज मुझे कर रही है।आज फिर मेरे एक दोस्त के माता -पिता यहॉं आए और मेरी जलन मेरी उदासी का कारण बन रही है।जलन का अब क्या कर सकतें है। नाम तपस्या होने से धीर नहीं आ जाता।

कैसी विडंबना है हम ग्रामीण परिवेश के लोगों की ,खास कर बिहार से आने वालों युवाओं की ,जो हमारे  माता -पिता हमारे लिए ऊँचा  आसमान देखते है और खुद धरती का साथ नहीं छोड़ते।
बचपन से हमें डॉक्टर, इंजीनियर ,सरकारी अफसर बनाने का ख़्वाब देखते है ।अपने उन्ही ख़्वाबों  के बीज हमारे अंदर बोने लगते है ।इस ख़्वाब में हमने उन्हें कई बार जलते देखा है।उनकी वो जलन हमें आज तक जलाती है ।
ओह ! मेरी वजह से माँ ने तकलीफ सही ।पापा ने अपना सारा जीवन झोक दिया।
फिर उनके जलन को राहत कैसे मिले ,इसमें हम जलने लगे।उनके सपने पूरी करने लगे।
ना उन्हें मालूम था ना हमें की इन सपनो की कीमत क्या होगी ? उनके  सपने ने वो सब कुछ दिया जो वो मेरे लिए चाहते थे  ,पर कीमत क्या थी ?
दुरी  विछोह …

कई बार कुछ ज्ञानी दोस्त ज्ञान देतें है ,अरे भाई कोई बिज़नेस कर लो ,।मुर्गीफार्म खोल लो , खेती करो ।रेस्टॉरेंट चलाने के बारे में सोचो ।ब्यूटी पार्लर ,कोचिंग सेंटर फ़लाना ढामकान नए स्टारअप अपने शहर में रह कर कर सकते हो ।पैसा कमा सकते हो ।माँ -बाप भी साथ रह सकतें है ,तुम भी ख़ुश माँ -बाप भी ।
भाक साला यहाँ मेरे माँ -बाप ने इतना त्याग मुर्गीफारम के लिए किया है क्या ? ज्ञानी बनते हो कि खेती में काफी संभावना है ।मेरे माँ -बाप ने कभी खेत में ठीक से काम करवाया मुझसे ? क्या अब वो देख पायेंगे मुझे खेतों में झुलसते ?और हमसे होगा क्या ?
 गिन कर तो हम तीन बार भवें बनवाए ,पार्लर क्या ख़ाक खोलेंगे ?
और रही बात कोचिंग की तो कभी बिहार आओ ,आँखे फट जायेंगी तुम्हारी ।ज्ञान देते हो ।

हमें भी ज्ञान आता है पर …
सब छोड़ कर वापस वहां तक जाना उफ्फ्फ ,फिर से अपने बच्चे को इस सपने के जाल में झोकना है
हम जहाँ से है वहॉं इंजीनियर तो बहुत हैं पर ,ढंग की कोई कम्पनी नहीं ।अब ऐसे में वो जो सपने कभी माँ बाप से होते हुए मेरे हो गए उन्हें छोड़ कर कहाँ जाऊँ ?

लोग कहते है कि हमारी सवेंदना मर रही है ।हम निर्मोही हो रहे है ।
पर ,क्या सिर्फ हम ही सवेंदनहीन हो रहे है ?
क्या आप (माँ -बाप ,सगे सम्बंधी )मोह में हैं ?

हाँ आप तो हैं मोह में ,अपनी धरती से ,अपने गांव से ,हमारे घर से ।
हमें उड़ने का ख्वाब दिखा कर ,हमें निर्मोही बना कर आप कहते हैं कि ,सिर्फ हमारी संवेदनाये मर रही है ।
क्या आप कभी ये नहीं सोचते कि जो बीज हमने अपने बच्चे में बोया उसको पेड़ बनाने में ,उसपर फल लाने में कितने उसके अपने दूर हो गए ,कितने उसके सपने मर गए ।
क्या आपको नहीं लगता कभी हमको भी अपना कम्फर्ट ज़ोन छोड़ कर उड़ना चाहिए ।अपने बच्चों के पास होना चाहिए ।

संवेदनाए दोनों की मर रही है इंतज़ार में ……

संजीव अभ्यंकर जी गा रहें हैं
उधो मन ना भए दस बीस
दस बीस ,दस बीस ।
इधर मेरा एकलौता मन भी सुख रोग से पीड़ित है।आँख से पानी अभ्यंकर जी के आवाज़ के जादू के कारण है या रोग के ये तो मालूम नही चल पा रहा पर नाक का पानी मन का रोग ही है।
काश सच में दस बीस मन होते ,एक बिगड़ा तो दूसरे का सहारा होता ।ऐसे में छठ पूजा का आना और पीड़ा दे रहा है।
इस बार भी जैसे -तैसे मालूम हुआ कि शिकागो मे कुछ लोग छठ कर रहें है।शाम की अरग मे जाने का सोचा था पर एक तो मन ऐसा उसपर कल एक्सट्रीम वेदर का अलर्ट आ गया।यानी ठंड ज़्यादा होगी ।ऐसे में इस बार शायद छठी मईया की इक्षा नही हमें बुलाने की।

मन बहलाने के लिए छठ गीतों की शुरुआत हुई पर यहाँ तो आलम ये कि हम दम्पती दुःख में डूबते जा रहें थे ।ऐसे में गाना बदल कर चू -चू टीवी लगा दिया गया ,कम से कम सत्यार्थ तो ख़ुश रहे।
जाने क्यों ये छठ सारे व्रत त्योहार के बराबर अकेली याद लेकर आती है ।

ख़ैर पिछले साल की तरह इस बार भी सत्यार्थ के साथ वीडीयो बनाने की कोशिश की है ।छठ के गीतों में आज का गीत भी मुझे ख़ूब प्रिय है।माँ अक्सर गाया करती थी /है ।
इसी के साथ आप सबको छठ पूजा की ख़ूब -ख़ूब शुभकामनाएँ ।छठी मईया ,सूर्य देव हम सब पर कृपा बनाए रखें।
लक्ष्मी किसे नहीं भाती ? तभी तो इनके आगमन की तैयारी में पूरा परिवार महीनों से जुटा रहता है ।जहाँ महिलायें घर की सफाई में लगी रहती है वही पुरुष और बच्चे अपने आस पास की गंदगी को साफ़  करने में लगे रहते हैं ।

मुझे याद है हम लोग सरकारी आवास में रहते थे फिर भी लगभग हर साल माँ खुद के पैसों से घर की रंगाई करवाती ।कई    बार घर साफ़ होता तो बस बहार की चार दीवारी की रंगाई होती। इसके लिए हम एक ही आदमी को बुलाते बाकी हम भाई बहन ही कर लेते थे। बड़ा अच्छा लगता जब रामराज मिट्टी का घोल दीवारों पर चढ़ता। दिवार के साथ लगभग हम भी रंग गए होते पर इस समय सब माफ़ था। कई बार रामराज मिट्टी और चुना का अंदाजा नहीं लगता ,कम पड़ जाता तो हम भाग कर बलराम चाचा की दूकान पर जातें। दौड़ कर चुना ,मिट्टी ले आतें।

फिर तो देखा -देखी और माँ के प्रोत्साहन से कॉलोनी के और लोग भी अपनी दिवार बहार से चमका लेते। सबके घर एक जैसे हो जातें।इसका कारन एक तो रामराज मिट्टी दूसरा पोचरा का कुचा। कॉलोनी में जिसके घर का पोचरा हो गया होता वो बचा हुआ कुचा बगल वाले को दे देता। इससे कभी कभार कुचा खरीदने का दाम पटाखों में लग जाता।

बलराम चाचा की दुकान कई मामलो में प्रिय थी। वहाँ रंगो के अलावा रस्सी ,लट्टू ,और छोटे -छोटे जानवर जैसे खरगोश ,चूहा ,कबूतर आदि भी होते। मैं जाती थी यहाँ झाड़ू ,रस्सी या रंगो के लिए पर कभी टाइम से आती नहीं थी। रुक कर कभी खरगोश तो कभी चूहा देखने लगती।

उम्मीद है आपके घर की भी सफाई हो गई होगी। सफाई यंत्र झाड़ू का लक्ष्मी पूजा के दिन बड़ा महत्व है। लोग इस दिन इसे खरीदते भी है लक्ष्मी मान कर। कई जगह तो इसकी पूजा भी की जाती है।
सफाई हो गई है तो अब देर किस बात की ,दिए ,मुंमबत्तियों की दुकान सजी है। जाइये खरीदिये और अपने घर को रौशन कर दीजिये।
आपने आस -पास का अँधेरा मिटा कर प्रेम ,सद्भाव की रौशनी कीजिये। मिठाइयाँ  खाइए ,पटाके  छोड़िये पर साथ ही प्रदुषण का भी ख्याल रखिये। स्वस्थ  बसंतपुर तो स्वस्थ हम सब लोग।

आप सभी को दीपावली की बहुत -बहुत शुभकामनायें। माँ लक्ष्मी की कृपा आप सबके के साथ मुझ पर भी बनी  रहे। 

Sunday, 4 November 2018

मध्यस्थ (मुनि क्षमसागर जी ,फ़्रेंज काफ़्का )!!!

मैं परिवर्तन में जीता हूँ
और
मौत से बेहद डरता हूँ
यह सोचकर
कि शाश्वत में जीना-मरना
दोनो मुश्किल है।

खिड़की के पीछे से कोई कह रहा था ,खिड़की के इस पार इसपर  झुकी लता फूल बन मुस्कुराई और खिड़की के भीतर झाँक कर बोली ,
मुझे मौत में जीवन के फूल चुनना है
अभी मुरझाना टूटकर गिरना
और
अभी खिल जाना है
कल यहाँ आया था कौन ,कितना रहा
इससे क्या ?
मेरे जाने के बाद लोग आएँ
अर्थी सम्भाले
कंधा बदले
इससे पहले मुझे ख़ुद संभलना है
अभी तो मुझे संभल -संभल कर रोज -रोज जीना और रोज -रोज मरना है ।

खिड़की के भीतर से आई आवाज़ और खिड़की से लिपटी लता की बात सुन रही खंडहर दीवार में चुनी जर्जर खिड़की हवा से खड़खड़ा उठी ।उसकी खड़खड़ाहट से भीतर और बाहर के दोनो जीव उससे लिपट जाते है ।उन्हें डर है कि कहीं ये उनके मिलन का आख़िरी द्वार टूट ना जाय ।

खिड़की दोनो तरफ़ के भाव को बरसों से जानती है ।अपने कबजो के हिलते कील के सहारे चो-चर करती हुई कहती है
सजीव जीवों का काया पलट हो रहा है ।तुम्हें मालूम नही क्या

मरने की चाह हीं दरअसल समझ की शुरुआत का पहला संकेत है ।

तुम दोनो मेरे सहारे एक दूसरे को जाने कब से जीवन दे रहे हो फिर भी मौत का इंतज़ार ।किसकी मौत का इंतज़ार है तुम्हें ?
इस दीवार के एक भाग से जकड़ी मैं कब तक मध्यस्थ रहूँगी ?क्या मेरे बैग़ैर तुम नही मिल सकते ? कहीं मेरे  द्वारा बनी ये दूरी हीं तुम दोनो जीवन तो नही मान बैठे ?
तुम सारे कीड़े -मकोड़े ,संबंधो के बीच
पहले एक दीवार ख़ुद खड़ी करते हो
फिर उसमें एक खिड़की लगाते हो
पर ज़िन्दगी भर क़रीब रहकर भी
खुल कर कहाँ मिल पाते हो ।

खिड़की के भीतर से फिर आवाज़ आई ,हमारे चाहने से क्या होता है ?ब्रह्मांड आपनी तरफ़ सबको खींच रहा है काठ की  खिड़की ।हम चाहे या ना चाहे
जीवन में अलग रहते हुए भी हर जीव कहीं ना कही किसी से जुड़ना चाहता है
किसी भी समय ,परिस्थि ,मौसम ,अवस्था में ,ज़िम्मेदारियों के बावजूद हर आदमी कम से कम एक
स्नेहपूर्ण बाँहों की ओर खुलने वाली
खड़की चाहता है ।

खिड़की जीव के बात से ख़ुद पर इठला रही है ।इतनी ख़ुश कि अपने पल्लो को मानो पंख समझ उड़ जाना चाह रही है ।
एक अकेला कील जो अब तक खिड़की का प्राण बना था उसने खिड़की को मुक्त कर दिया ।हमेशा हमेशा के लिए ।
चर्रर्रर्र की आवाज़ के साथ जुदा होती खिड़की बोली ,
हे तड़पते जीवों मेरे अंदर और बाहर के सुनो ,मैं
गंतव्य यात्रा पर निकल चूकी हूँ।
बार -बार तुम पूछोगे कि कितना चलोगे ?कहाँ तक जाना है
मैं मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाऊँगी
किससे कहूँ कि कहीं तो नही जाना
मुझे इस बार अपने तक आना है ।