Tuesday, 13 November 2018

संजीव अभ्यंकर जी गा रहें हैं
उधो मन ना भए दस बीस
दस बीस ,दस बीस ।
इधर मेरा एकलौता मन भी सुख रोग से पीड़ित है।आँख से पानी अभ्यंकर जी के आवाज़ के जादू के कारण है या रोग के ये तो मालूम नही चल पा रहा पर नाक का पानी मन का रोग ही है।
काश सच में दस बीस मन होते ,एक बिगड़ा तो दूसरे का सहारा होता ।ऐसे में छठ पूजा का आना और पीड़ा दे रहा है।
इस बार भी जैसे -तैसे मालूम हुआ कि शिकागो मे कुछ लोग छठ कर रहें है।शाम की अरग मे जाने का सोचा था पर एक तो मन ऐसा उसपर कल एक्सट्रीम वेदर का अलर्ट आ गया।यानी ठंड ज़्यादा होगी ।ऐसे में इस बार शायद छठी मईया की इक्षा नही हमें बुलाने की।

मन बहलाने के लिए छठ गीतों की शुरुआत हुई पर यहाँ तो आलम ये कि हम दम्पती दुःख में डूबते जा रहें थे ।ऐसे में गाना बदल कर चू -चू टीवी लगा दिया गया ,कम से कम सत्यार्थ तो ख़ुश रहे।
जाने क्यों ये छठ सारे व्रत त्योहार के बराबर अकेली याद लेकर आती है ।

ख़ैर पिछले साल की तरह इस बार भी सत्यार्थ के साथ वीडीयो बनाने की कोशिश की है ।छठ के गीतों में आज का गीत भी मुझे ख़ूब प्रिय है।माँ अक्सर गाया करती थी /है ।
इसी के साथ आप सबको छठ पूजा की ख़ूब -ख़ूब शुभकामनाएँ ।छठी मईया ,सूर्य देव हम सब पर कृपा बनाए रखें।

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