आज फिर वो मसान के किनारे आई थी ।लेकिन आज का आना अलग था ।मैंने उसे कई बार देखा है ,बस देखा है।जिस तरह उसका आज का आना अलग लग रहा था ,ठीक वैसे ही मेरा उसे आज का देखना अलग था ।जाने क्यों मैं आज उसे बार -बार देख रहा था ।एक वो है जिसे ख़बर भी नही कि कोई उसे देख रहा है । पानी को देख रही है ।कुछ गुनगुना रही है ।फिर धीरे से अपने दोनो पाँव पानी में डाल देती है ।कुछ देर अपने पाँवो को देखने के बाद गर्दन टेढ़ी कर आसमान को देखने लगती है ।मैं नदी के किनारे रेतीली पगडंडी पर आगे बढ़ने लगता हूँ ।उसे ख़बर भी नही कि कोई जा रहा है ।
देखता हूँ घर लौटते हुए कुछ पशु नदी के उसी घाट पर पानी पी रहें हैं ।जहाँ से कुछ दूर पहले वो अपने पैरों को पानी में डाल जाने किस लोक में खोई हुई ।उसने कभी मसान का पानी पिया होगा ?
मैंने तो नही पिया ।आख़िर क्यों पीयूँ मैं इसका जल ? इस पहाड़ी नदी ने जाने कितने जीवन और मृत्यु को सींचा है ।कौन जाने मेरे भाग्य में क्या हो ?
फिर देखता हूँ ,जीवन तो ये पशु मुझसे बेहतर अभी जी रहे हैं ।जाने आज मसान के पानी में क्या था जो इसे पी कर ये जल क्रीड़ा में डूब गये थे ।कहीं ये उन क़दमों का असर तो नही ?हाँ हो सकता है ।
तो क्या मैं भी आज मसान का पानी चख लूँ ? इसी सोच विचार में मैं कभी उसे तो कभी नदी तो कभी पशुओं को देखता हूँ ।वो अब भी आँखे बंद किए गुनगुना रही है ।नदी शांत चीत बह रही है और पशु जल क्रीड़ा में लिप्त हैं।
इसी बीच मैं अचानक डर जाता हूँ ।सोचता हूँ ,कहीं मेरे जल पीने से पहले वो अपने पाँव ना पानी से निकाल ले ।मैं नदी की तरफ़ भागता हूँ और गिर पड़ता हूँ ।मेरे गिरने से धम्म की आवाज़ होती है और वो आँखे खोल देती है ।झट से अपने पैर नदी से निकाल मेरी तरफ़ बढ़ती है ।पूछती है लगी तो नही ? मैं बुदबुदाता हूँ -ओह !पैर क्यों निकाला ?क्या मेरा अमृत आज रह गया ?
उसे मेरा दर्द भरा ओह सिर्फ़ सुनाई देता है ।
मुझे उठाते हुए पूछती है - ज़्यादा लगी क्या ? देखूँ तो और मेरे पैर देखने लगती है ।
मैं उससे देखता रह जाता हूँ ।सोच में पड़ जाता हूँ कि किसी अनजान से इतनी आत्मीयता ।शायद इसके मन का प्रेम हीं अमृत तो नही ।
मुझे कुछ चुभन सी हो रही है ।सोचता हूँ ये निश्चित हीं उस अमृत से वंचित होने की चुभन है ।
तभी वो कहती है -देखो ठेस लगने से नाख़ून निकल आया है तुम्हारा ।चलो पानी से धो लो ।ख़ून बंद हो जायेगा।
मैं बुत के समान उसके पीछे चल पड़ता हूँ ।नदी के घाट पर पहुँचता हूँ ।
आह रे मसान ! ठीक इसी जगह पर कुछ देर पहले इसके पाँव इस जल में थे।तू सच में कभी अमृत तो कभी विष है ।
जाने क्यों संकोचवश मैं अपना घायल पाँव मसान में डालता हूँ और पूछ पड़ता हूँ -आप क्या गा रहीं थी ?
विषमय हो कर वो पूछती हैं -मैं ?
मैं कहता हूँ -हाँ आप ।
वो उठ खड़ी होती है ।नदी पार कर गाती हुई चली जा रही है नदी नारे ना जाओ श्याम पाइयाँ पड़ूँ।
देखता हूँ घर लौटते हुए कुछ पशु नदी के उसी घाट पर पानी पी रहें हैं ।जहाँ से कुछ दूर पहले वो अपने पैरों को पानी में डाल जाने किस लोक में खोई हुई ।उसने कभी मसान का पानी पिया होगा ?
मैंने तो नही पिया ।आख़िर क्यों पीयूँ मैं इसका जल ? इस पहाड़ी नदी ने जाने कितने जीवन और मृत्यु को सींचा है ।कौन जाने मेरे भाग्य में क्या हो ?
फिर देखता हूँ ,जीवन तो ये पशु मुझसे बेहतर अभी जी रहे हैं ।जाने आज मसान के पानी में क्या था जो इसे पी कर ये जल क्रीड़ा में डूब गये थे ।कहीं ये उन क़दमों का असर तो नही ?हाँ हो सकता है ।
तो क्या मैं भी आज मसान का पानी चख लूँ ? इसी सोच विचार में मैं कभी उसे तो कभी नदी तो कभी पशुओं को देखता हूँ ।वो अब भी आँखे बंद किए गुनगुना रही है ।नदी शांत चीत बह रही है और पशु जल क्रीड़ा में लिप्त हैं।
इसी बीच मैं अचानक डर जाता हूँ ।सोचता हूँ ,कहीं मेरे जल पीने से पहले वो अपने पाँव ना पानी से निकाल ले ।मैं नदी की तरफ़ भागता हूँ और गिर पड़ता हूँ ।मेरे गिरने से धम्म की आवाज़ होती है और वो आँखे खोल देती है ।झट से अपने पैर नदी से निकाल मेरी तरफ़ बढ़ती है ।पूछती है लगी तो नही ? मैं बुदबुदाता हूँ -ओह !पैर क्यों निकाला ?क्या मेरा अमृत आज रह गया ?
उसे मेरा दर्द भरा ओह सिर्फ़ सुनाई देता है ।
मुझे उठाते हुए पूछती है - ज़्यादा लगी क्या ? देखूँ तो और मेरे पैर देखने लगती है ।
मैं उससे देखता रह जाता हूँ ।सोच में पड़ जाता हूँ कि किसी अनजान से इतनी आत्मीयता ।शायद इसके मन का प्रेम हीं अमृत तो नही ।
मुझे कुछ चुभन सी हो रही है ।सोचता हूँ ये निश्चित हीं उस अमृत से वंचित होने की चुभन है ।
तभी वो कहती है -देखो ठेस लगने से नाख़ून निकल आया है तुम्हारा ।चलो पानी से धो लो ।ख़ून बंद हो जायेगा।
मैं बुत के समान उसके पीछे चल पड़ता हूँ ।नदी के घाट पर पहुँचता हूँ ।
आह रे मसान ! ठीक इसी जगह पर कुछ देर पहले इसके पाँव इस जल में थे।तू सच में कभी अमृत तो कभी विष है ।
विषमय हो कर वो पूछती हैं -मैं ?
मैं कहता हूँ -हाँ आप ।
वो उठ खड़ी होती है ।नदी पार कर गाती हुई चली जा रही है नदी नारे ना जाओ श्याम पाइयाँ पड़ूँ।
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