पिछला सप्ताह मेरे लिए एक मेंटल ट्रॉमा जैसा रहा ।कुछ तबियत ख़राब तो कुछ मन ।मन के ख़राब होने का कारण एक बहुत प्यारी दोस्त भारत वापस लौट गई ।उसके जाने से पहले हम कुछ दोस्तों ने बाहर पार्टी रखी ।बातचीत के दौरान मुझे मालूम ही नही चला कब वेटर ने वेज और नॉनवेज स्टार्टर ला दिया ।शतेश ग़लती से चिकेन 65मेरी प्लेट में परोस दिए जीवन में पहला बाइट ग्लानि से भर गया ।वेटर आकर माफ़ीपर माफ़ी माँग रहा है ।मेरी आँखो में जाने क्यों आँसू आ गए हैं।बाथरूम की तरफ़ भागती ।शतेश और वेटर पीछे आते हैं।मैंने कोई बात नही कह कर बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर लिया ।
कल हीं तो मैने “ऑन बॉडी एंड सोल “ हंगेरीयन फ़िल्म देखी थी ।कितनी निर्दयता से उसमें जानवर को काटते है ।मुझे अभी वो याद आ रहा था साथ ही ऊबकाई और रूलाई दोनो आ रही थी ।थोड़ी देर बाद मैं बाहर आई तो शतेश वहीं खड़े थे ।मेरे कुछ दोस्त भी थोड़ा आगे खाना छोड़ मेरा इंतज़ार कर रहे थे ।मुझे आते ही संतावना देने लगे ।ख़ैर उस रात मैं सो नही पाई ।
बात फ़िल्म की तो क्या कहूँ ,ऐसी फ़िल्म मैंने आज तक नही देखी थी ।ज़बरदस्त बात तो ये कि इस फ़िल्म की डिरेक्टर एक महिला हैं ।सच में एक महिला ही एक समय में इतनी क्रूर और अनंत प्रेमिका हो सकती है ।बहुत ही ख़ूबसूरती से शांत कविता की तरह इस फ़िल्म को बनाया गया है ।कई बार तो मैं डर जाती तो वही अगले पल उस हिरणी सी आँखो वाली नाईका की ऐक्टिंग में खो जाती ।बार -बार आप सपने के तिलस्म में खो से जातें हैं पर फ़िल्म अधूरा नही छोड़ पाते।
फ़िल्म कि कहानी कुछ यूँ है ,नायक और नाईका एक कसाईख़ाना में काम करते है ।दोनो ही अंतरमुखी व्यक्तित्व वाले होते है ।खास कर नाईका ।ऐसे में एक दिन उन्हें कॉम्पनी की मनोचिकित्सक द्वारा मालूम होता है की दोनो एक ही सपना देखते है।जी हाँ एक हीं सपना ।
मैंने आज तक एक बात को कई बार दो लोगों को कहते सुना है ,एक ही चीज़ सोचते भी देखा है पर एक ही सपना और वो भी रोज़ ।ये कभी नही सोचा था ।
हाँ तो ,दोनो सपने में हिरण होते है ।बर्फ़ीली वादी में एक तालाब के किनारे मिलते हैं।उन दोनो को भी इस बात पर यक़ीन नही होता ।इसलिए अगले दिन से वे आपना सपना एक पेपर पर लिख कर एक दूसरे को देते हैं।फिर उन्हें यक़ीन हो जाता है कि वे दोनो एक हीं सपना देखते है ।इस तरह रोज़ अपना सपना शेयर करने से उनके बीच प्रेम उपजने लगता है ।
नाईका जैसा कि बहुत ही अंतर्मुखी शर्मीली होती है वो नायक के प्रेम स्पर्श को एक बार नकार चुकी है ।नायक इसे अपनी ग़लती ,उम्र का फ़ासला और एक हाथ से अपाहिज होना समझता है ।वो नाईका को अनदेखा करने लगता है ।नाईका इसे सह नही पाती है और आत्महत्या की कोशिश करती है ।
बाथटब में ख़ून और दर्द से भिंगी नाईका मौत का इंतज़ार कर रही है तभी टेप बजना बंद हो जाता है ।वो बेचैन सी टेप की तरफ़ बढ़ती है और फ़ोन की घंटी सुनाई देती है ।भाग कर वो फ़ोन के पास जाती है ।अब उसके चेहरे पर शांति है ।
मानो उस एक फ़ोन कॉल ने उसे जीवन दे दिया है ,जब नायक कहता है -मुझे नही मालूम कि मैंने तुम्हें इस वक़्त क्यों कॉल किया ।मुझे ऐसा लगा जैसे मैं मर रहा हूँ ।
फ़िल्म का सबसे डरावना ,मार्मिक ,रोमांटिक सीन यही है ।इस एक सीन में आप सब जी लेते हैं।
नायक और नाईका अंततः एक होते है ।सपने का जादू ख़त्म हो चुका है ।अगली सुबह जब वे जागते है उन्हें याद हीं नही कि उन्होंने कोई सपना देखा हो ।
जाते- जाते
फ़ॉरगिव मी हियर
आई कैनॉट स्टे
ही कट आउट माई टंग
देयर इस नथिंग टू से
लव मी ?
ओह लॉर्ड ही थ्रू मी अवे
ही लाफ़ड ऐट माई सीनस इन हिज़ आर्मस आई मस्ट स्टे
कल हीं तो मैने “ऑन बॉडी एंड सोल “ हंगेरीयन फ़िल्म देखी थी ।कितनी निर्दयता से उसमें जानवर को काटते है ।मुझे अभी वो याद आ रहा था साथ ही ऊबकाई और रूलाई दोनो आ रही थी ।थोड़ी देर बाद मैं बाहर आई तो शतेश वहीं खड़े थे ।मेरे कुछ दोस्त भी थोड़ा आगे खाना छोड़ मेरा इंतज़ार कर रहे थे ।मुझे आते ही संतावना देने लगे ।ख़ैर उस रात मैं सो नही पाई ।
बात फ़िल्म की तो क्या कहूँ ,ऐसी फ़िल्म मैंने आज तक नही देखी थी ।ज़बरदस्त बात तो ये कि इस फ़िल्म की डिरेक्टर एक महिला हैं ।सच में एक महिला ही एक समय में इतनी क्रूर और अनंत प्रेमिका हो सकती है ।बहुत ही ख़ूबसूरती से शांत कविता की तरह इस फ़िल्म को बनाया गया है ।कई बार तो मैं डर जाती तो वही अगले पल उस हिरणी सी आँखो वाली नाईका की ऐक्टिंग में खो जाती ।बार -बार आप सपने के तिलस्म में खो से जातें हैं पर फ़िल्म अधूरा नही छोड़ पाते।
फ़िल्म कि कहानी कुछ यूँ है ,नायक और नाईका एक कसाईख़ाना में काम करते है ।दोनो ही अंतरमुखी व्यक्तित्व वाले होते है ।खास कर नाईका ।ऐसे में एक दिन उन्हें कॉम्पनी की मनोचिकित्सक द्वारा मालूम होता है की दोनो एक ही सपना देखते है।जी हाँ एक हीं सपना ।
मैंने आज तक एक बात को कई बार दो लोगों को कहते सुना है ,एक ही चीज़ सोचते भी देखा है पर एक ही सपना और वो भी रोज़ ।ये कभी नही सोचा था ।
हाँ तो ,दोनो सपने में हिरण होते है ।बर्फ़ीली वादी में एक तालाब के किनारे मिलते हैं।उन दोनो को भी इस बात पर यक़ीन नही होता ।इसलिए अगले दिन से वे आपना सपना एक पेपर पर लिख कर एक दूसरे को देते हैं।फिर उन्हें यक़ीन हो जाता है कि वे दोनो एक हीं सपना देखते है ।इस तरह रोज़ अपना सपना शेयर करने से उनके बीच प्रेम उपजने लगता है ।
नाईका जैसा कि बहुत ही अंतर्मुखी शर्मीली होती है वो नायक के प्रेम स्पर्श को एक बार नकार चुकी है ।नायक इसे अपनी ग़लती ,उम्र का फ़ासला और एक हाथ से अपाहिज होना समझता है ।वो नाईका को अनदेखा करने लगता है ।नाईका इसे सह नही पाती है और आत्महत्या की कोशिश करती है ।
बाथटब में ख़ून और दर्द से भिंगी नाईका मौत का इंतज़ार कर रही है तभी टेप बजना बंद हो जाता है ।वो बेचैन सी टेप की तरफ़ बढ़ती है और फ़ोन की घंटी सुनाई देती है ।भाग कर वो फ़ोन के पास जाती है ।अब उसके चेहरे पर शांति है ।
मानो उस एक फ़ोन कॉल ने उसे जीवन दे दिया है ,जब नायक कहता है -मुझे नही मालूम कि मैंने तुम्हें इस वक़्त क्यों कॉल किया ।मुझे ऐसा लगा जैसे मैं मर रहा हूँ ।
फ़िल्म का सबसे डरावना ,मार्मिक ,रोमांटिक सीन यही है ।इस एक सीन में आप सब जी लेते हैं।
नायक और नाईका अंततः एक होते है ।सपने का जादू ख़त्म हो चुका है ।अगली सुबह जब वे जागते है उन्हें याद हीं नही कि उन्होंने कोई सपना देखा हो ।
जाते- जाते
फ़ॉरगिव मी हियर
आई कैनॉट स्टे
ही कट आउट माई टंग
देयर इस नथिंग टू से
लव मी ?
ओह लॉर्ड ही थ्रू मी अवे
ही लाफ़ड ऐट माई सीनस इन हिज़ आर्मस आई मस्ट स्टे
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