Sunday, 31 March 2019

भीमाशंकर !!!!

आज आप सबको मैं भीमाशंकर  मंदिर लेकर चलती हूँ ।पुणे से करीब सौ -एक सौ दस किलोमीटर दूर सह्याद्रि पर्वत पर बना ये मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है ।
जाने का रास्ता ठीक -बेठीक का मिश्रण है ।यहाँ आप बस या प्राइवेट गाड़ी से जा सकतें है ।
लाल रंग की पहाड़ी पर स्थित ये मंदिर जंगल ,भीमा नदी ,बंदरों और कहीं -कहीं पर काजू के पेड़ों का समूह है ।मंदिर तक जाने के लिए कुछ सौ -डेढ़ सौ सीढ़ियाँ है पर सीढ़ियाँ ऐसी चौड़ी बनाई गई हैं की आपको बहुत कम थकान होती है उतरने- चढ़ने में ।

यहाँ ज़्यादा बाज़ार का प्रसार नही ।मंदिर के लिए प्रसाद ,फूल और कुछ मालाएँ -खिलौने तक सीमित ये मंदिर परिसर ख़ूब साफ़ -सुथरा है ।साथ ही यहाँ पंडा वाला सिस्टम नही देखने को मिला जैसा अपने बाबाधाम में है ।जाइए जल चढ़ाई आगे बढ़िए ।

चलिए मंदिर से जुड़ी कहानी बताती हूँ -हुआ यूँ कुंभकर्ण की मृत्यु राम के हाथो हुई ये तो आप सबको मालूम हीं है ।उसकी मृत्यु के तुरंत बाद उसे पुत्र हुआ जिसका नाम भीम था ।शोक में डूबी उसकी पत्नी अपने पति के निशानी को पालने लगी ।जैसे ही भीम बड़ा हुआ उसकी माँ ने उसके पिता के हत्यारे राम का नाम बताया ।साथ ही राम की ताक़त का भी परिचय दिया ।ऐसे में भीम ने कठोर तपस्या करके कई अस्त्र हासिल किए और फिर मनुष्य -देव सबको हानि पहुँचाने लगा ।सभी देव दौड़ कर भगवान शिव के पास गए ।शिव में सबकी प्रार्थना सुनी और भीम का वध किया ।
सभी लोगों ने शिव जी से आग्रह किया की जहाँ युद्द हुआ वे वहीं निवास कर जाएँ और ऐसे यहाँ भीमाशंकर विराजमान हो  गए।

इस शिवलिंग की मोटाई ज़्यादा है इसलिए इसे लोग” मोटेश्वर महादेव “ भी कहते है ।

अच्छा रुकिए आप इसे मोटेश्वर महादेव “उत्तराखण्ड “वाला से कन्फ़्यूज़ ना हो ।कहते है ये मंदिर भीमाशंकर का हीं उपज्योतिर्लिंग है ।पर इसकी कथा बिल्कुल अलग है ।पर नाम का संयोग ऐसा की कहते है यहाँ “पांडव भीम “ ने गुरु द्रोणचर्या को गुरु दक्षिण स्वरूप ये मंदिर बनवा कर की थी ।हुआ यूँ कि कौरव -पांडव को शिक्षा देते समय गुरु को ये शिवलिंग दिखा ।फिर इसपर मंदिर कार्य भीम ने कराया ।

तो इस तरह दोंनो भीम के साथ भीमाशंकर की कथा समाप्त हुई ।मंदिर के दर्शन करे और मुझे आशीर्वाद दे :)


Friday, 29 March 2019

ओशो !!

आज मेरे लेटर बॉक्स में दो बड़े लिफ़ाफ़े मिले ।भूरे रंग की इन लिफ़ाफ़ों के अंदर क्या था ,ये जानने की बड़ी जल्दीबाज़ी थी मुझे ।बार -बार शतेश से पूछ रही थी कि ,आपने तो कुछ ऑर्डर नही किया ? ना में जबाब पा कर उत्सुकता और बढ़ती जा रही थी ।घर पहुँचने तक रहा नही गया मुझसे और घर की सीढ़ियों तक पहुँचते -पहुँचते एक लिफ़ाफ़े को जैसे तैसे खोल लिया ।भूरी काग़ज़ अंदर से प्लास्टिक की बबल से चिपकी हुई थीं ।इन मासूम बबल्स के बीच एक गुलाबी फूलों वाली किताब दिखी ।
किताब के गुलाबी फूल मेरे चेहरे पर खिल हीं रहीं थीं कि ,मैं घर के अंदर आ चुकी थी ।दूसरे लिफ़ाफ़े को चाक़ू की मदद से खोला तो ,इनमे से तिलतियाँ उड़ कर मेरे चेहरे के गुलाबी फूलों को चूमने लगी ।इन सब के बीच ,किताब के लेखक का नाम देखते हीं मैं समझ गई की ये किसने भेजा है ।लेखक है “ओशो “ और भेजने वाली है मेरी “मौसी “ ।
मेरी रश्मि मौसी ।

आपको बताऊँ ओशो के किताबी दुनिया से मेरा परिचय इन्होंने हीं कराया था ।पहले मैं सिर्फ़ ओशो का नाम और उतना हीं नाम -काम जानती थी जितना न्यूज़ वैगरा में सुना था ।पुणे आने के बाद घूमने की जगह में ओशो आश्रम का भी नाम था पर वहाँ जाने की पाबंदियाँ इतनी सुनी थी की सोचा नही कभी जाने को ।तब ओशो में इतनी रुचि भी नही थी ।साथ ही मेरी प्रिय सखी प्रशंसा की कोई जाननेवाली वहाँ काम करती थीं तो ,उसने बहुत कुछ सुन रखा था आश्रम के बारे में ।उत्सुकता तो कभी -कभी हमें होती थी पर हमारे ठिकाने से दूर होने के कारण भी नही जा पाते ।

एक रविवार यूँ ही मैं कोमल और प्रशंसा निकल पड़े कोरेगाँव पार्क ।पहुँचे देर हो गई जर्मनबेकरी में पेट पूजा की और फिर वहीं रोड साइड दुकान से चपल ,कुर्ते लेने लगे ।यहाँ जुट की बनी चपले ख़ूब सुंदर -सुंदर मिलती थी ।इन्हें ओशो चपल हीं कहते थे ।अब कौन जाता है आश्रम ,खाना ,शोपिंग और फिर वापस ठिकाने पर ।

बाद में मैं जब रश्मि मौसी से मिली तो उनके पास ओशो की मैगज़ीन देखी ।मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ ।मौसी और ये किताबें ।सच मानिए मैंने पहले ऐसा हीं सुना था कि ओशो सेक्स से जुड़ी बातें या किताबें हीं लिखते है या बताते है ।तब सेक्स पाप या कोई गन्दी चीज़ लगती थी ।मौसी ने कहा ले जाओ पढ़ो अच्छी किताबें हैं ,पर वापस कर जाना ।इस तरह मैं ओशो को दूसरी तरह से जान पाई ।

मौसी की दी मैगज़ीन के अलावा मैंने कभी ओशो को ख़ुद ख़रीद कर नही पढ़ा ।आज फिर मौसी के द्वारा हीं ओशो मेरे आगे आए ।अब मेरी छोटी सी लाईब्रेरी में ओशो भी विराजमान है ।इसके लिए थैंक यू मौसी ।
पर थैंक यू क्यों ये तो आपका कर्तव्य है कि आप मुझे सही जानकारी ,अच्छी चीज़ें बताती रहे और मैं आपसे लेती रहूँ ।

बहुत बहुत बहुत प्यार आपको इसके लिए ।

Wednesday, 27 March 2019

ये कैसा पिता !!!!

एक वीडीयो कल वाइरल हुआ जिसमें एक पिता अपनी बेटी को बुरी तरह पीट रहा है ,गालियाँ दे रहा ।पीटने का कारण बच्ची के जन्मदिन मानने की इक्षा और उसकी माँ का उसके पिता को छोड़ जाना है ।
ऐसी कई बच्चियाँ और महिलाएँ है जो रोज इससे अधिक पीड़ा चुप-चाप सहती हैं ।पति -परिवार द्वारा छोड़े जाने का भय कभी उन्मे हिम्मत हीं नही भर पाता कि वो इस पीड़ा से निकलने की सोचे ।

मैंने जहाँ तक देखा है ये जितनी भी प्रताड़ना है वो एक माध्यम वर्गीय परिवार में ज़्यादा है ।इनको हीं समाज की ,लोक लाज की ज़्यादा चिंता होती है ।बेटी को सहनशील होने की घुट्टी उसके परिवार से मिलती आ रही होती है ।कभी अपनी माँ तो कभी भाभी को पिटते देख उनका मन पत्थर का बन रहा होता है ।बाक़ी शरीकपीड़ा तो छुपाई जा नही सकती ।

मैंने ऐसा भी देखा है कि पति से मार गाली खाकर भी कई महिलाएँ ख़ुश हैं ।एक बार किसी को टोका तो उलटे मुझे जबाब मिला “मारे ला त मारे ला करेजी त खियावेला “
हाय रे जीवन ,शरीर के दर्द को जानवर के कलेजे भकोस कर शांत किया जा रहा है ।मुझे ग़ुस्सा तो बहुत आया था पर जब आप हीं शरीर बना -बना कर मार खाने के आदि हो चुकीं है तो कौन आपका साथ देगा ।
जब इतना हीं करेजी खाईं है तो दम दिखाइए अपने हाथो में भी ।

बाक़ी कहने या लिखने को तो कोई भी कुछ कह सकता है लिख सकता है पर शायद इसके लिए बहुत हिम्मत चाहिए होगी ।ये कोई सोसल मीडिया नही जो फ़्रेंड बनाया अनफ़्रेंड कर दिया ।इससे मुझे याद आया कि कुछ महीनों पहले मुझे एक लड़के ने फ़्रेंड रिकवेस्ट भेजा ।प्रोफ़ाइल अच्छी थी और उससे भी अच्छा उसका नाम ।मैंने सोचा अच्छा लड़का है एक्सेप्ट कर लेती हूँ रिकवेस्ट ।

एक्सेप्ट करते हीं मैसज आया “हाय हॉटी ।तुम एक माँ बिल्कुल नही लगती ।”

मुझे बड़ा ग़ुस्सा आया ।ख़ास कर माँ नही लगने वाली बात पर ।बिना उससे कोई सवाल जबाब के उसे ब्लॉक कर दिया ।जो एक माँ को नही देख सकता वो उसकी भावनायें क्या ख़ाक समझेगा ।

फिर सोचिए उस माँ के बारे में जिसने अपनी बच्ची को पीटते हुए देखा होगा कई बार -बार -बार ।संयोग देखिए पिता का नाम है “मुक्तिबोध “
अब क्या हीं कहूँ ,अंत “गजानन मुक्तिबोध “ की कविता से जो उस बच्ची और उसकी माँ के लिए है -

सभी उरों के अंधकार में एक तड़ित वेदना उठेगी,
तभी सृजन की बीज-वृद्धि हित जड़ावरण की महि फटेगी
शत-शत बाणों से घायल हो बढ़ा चलेगा जीवन-अंकुर
दंशन की चेतन किरणों के द्वारा काली अमा हटेगी ।

Sunday, 24 March 2019

संगीत !!!!

फ़रवरी का लड़का मार्च की लड़की
संगीत ....

फ़रवरी :-तेरे मेरे दिल का, तय था इक दिन मिलना
जैसे बहार आने पर, तय है फूल का खिलना
ओ मेरे जीवन साथी…ला ला ऊम ...
इसके आगे क्या है मार्च मुझे याद नही आ रहा ,ला ला ला उम्म्म ....

मार्च :-बताऊँ तो क्या मिलेगा मुझे ?
फ़रवरी :-संगीत ...
मार्च :-हा-हा-हा सच में अजीब हो तुम ।
वैसे क्या बात है आज “गारा” गाया जा रहा है ।
फ़रवरी :-इस काली रात में इससे सुंदर और क्या हो तुम्हीं बताओ ?

मार्च :-यमन भी तो है ।
फ़रवरी :-है तो बहुत कुछ मार्च  पर जो तुम इतने प्यार से पूछोगी तो फिर यहीं कहूँगा -ऐसे तो ना देखो की हमको नशा हो जाए ,ख़ूबसूरत सी कोई हमसे ख़ता हो जाए ....

मार्च :-उफ़्फ़ !
(मुस्कुराते हुए ) आज लगता है इस गारा से पीछा नही छूटने वाला ।चलो इससे अच्छा मैं बता हीं देती हूँ -
लाख मना ले दुनिया ,साथ ना ये छूटेगा 
आके मेरे हाथों में हाथ ना ये छूटेगा ,ओ मेरे जीवन साथी ला ला ला लाला लला ....

फ़रवरी :-आह ! सच में अद्भुत ।
मार्च :-हम्म।

फ़रवरी :-क्या सोचने लगी ? 
मार्च :-यही कि ,जिया ले गए जी मोरा साँवरिया हा -हा-हा।
फ़रवरी :-अच्छा ...आगे ?

मार्च :-आगे कुछ नही ...
कभी -कभी मुझे लगता है तुम फ़रवरी ना होके सरोद हो ।स्टील के परतों पर गूँजती “डीपर सोल स्टरिंग “
फ़रवरी :-फिर तो तुम्हें सितार होना होगा मेरी मार्च ।

मार्च :-हाँ सच में ।अच्छा सोचो ,काश हम दोनो की नाड़ियाँ इन दोंनो तंत्री में बदल गई ।हमारे अंदर की प्राण वायु इसे बजा रही हो ।हमारा शरीर इन ध्वनि से प्रकाश में बदल रहा हो और अंततः दो तीव्र ध्वनि प्रकाश पुंज एक होकर ब्रह्मांड में फैल रहे हो ।

Tuesday, 19 March 2019

होली है !!!!

होली अपने साथ रंग -प्रेम -उत्सव तो लाती हीं है साथ हीं गृहस्थों के लिए ढेरों काम भी लाती है ।ऐसे में एक नव विवाहित  जोड़ा कैसे अपने प्रेम को लोकगीतों के माध्यम से दर्शाता है ,कैसे उसी घर की विवाहित बेटी अपने पिया का इंतज़ार कर रही है की गवना नही कराया कोई बात नही लेकिन होली में तो मिलने आ जातें ।

सरसों की पिटाई हो रही है ।चार दिन की बहूरिया अपने मेहंदी लगे हाथों से सरसों को पीट रही है ।ऐसे में उसके दूल्हे की नज़र उसपर पड़ती है ।अपनी दुल्हन की हालत देख वो कहता है -
“पानवा नियर गोरी आतर पातर
“फूलवा नियर सुकूमार होऽऽऽ गोरी हो आतर -पातर ......

इतना सुनते ही दुल्हन का मुँह शरम से लाल हो जाता है ।अँचरा से मुँह ढाँक कर कनखी से अपनी ननद की तरफ़ देखती है कि कहीं वो तो नही सुन रही ये सब ।ननद  रानी इन सब को देख कर अनदेखा करती हुई सरसों को मसल रहीं है ।सोच रही है कि एक मेरा मरद है जिसे मेरी चिंता हीं नही ।ऐसे में भाभी पूछती है ,बबूनी काहे मुँह सूखईले बानी ,सब ठीक बा नू ?
ननद रानी भरे आँख रुँधे गले से कहती है भौजी तुमसे क्या छिपाना
“पिया छोड़ी गईले परदेसवा रे सखियाँ
आइल फागुन के महिनवा रे सखियाँ .....”

भौजी ,ननद को समझाती है कि चिंता मत करीं बबी ।भोले बाबा पर बीसबास रखी ,पाहुन होली में ज़रूर आएम ।भौजी की बात से ननदो को बल मिलता है और दोंनो ननद भौजाई सरसों को पसार घर के काम में लग जातीं है ।शाम को भोजन की तैयारी में लगी भौजी तरकारी के लिए हरदी पीसने बैठी ,हरदी ऐसा पुरान की जल्दी कुचाए ना ।झनक कर बर्तन धो रही अपनी ननद से पूछती है ये बबी -
“कहवा के हाऊवे सील-सीलवटीया
कहवा के हरदी पुरान हो ऽऽऽ

ननद रानी हँस कर कहती हैं
,राउरा नाईहर के हाऊवे सील -सिलवातिया ,ससुरा के हरदी पुरान हो ऽऽऽऽ
आंगना में पिसेलू हरदीया ....

इधर दिन भर की सरसों पिटाई और पूरवा हवा के ज़ोर से बेचारी सुकुमार कनिया को सर्दी -ज़ुकाम हो जाता है ।नाक झाड़ -झाड़ के लाल ।ऐसे में उसके दूल्हे को देखा नही जाता ।कहता है कि “सुनअ  ना नकबेसर खोल के रख द ना तक नाक छिला जाई।कनिया को भी बात सही लगती है ।उ भी ई नकबेसर से परेशान है ।निकाल कर रख देती है अँगना में जहाँ महावीर जी का स्थान है ।अपने दूल्हा से कहती है तनी देखत रहेम हम आँगनवा लीप ली ।इधर दूल्हा राजा कई दिन के खेत खरिहान से थके खटिया पर पड़े हम्म तो कह देते है पर इसी बीच इनको आँख लग जाती है ।
सुबह -सेबर के बेरा में कउवा सब का मौज होता है ।ऐसे में एक कउवा भोजन की तलास में अँगना में मँडरा रहा था ।नकबेसर को ही अपना भोग समझ कर ले भागा।

कनिया कौवा को नकबेसर ले जाते देखती है तो छाती फाड कर चिल्लाने लगती है -
“नकबेसर कागा ले भागा मोरा साइयाँ अनाड़ी ना जागा “
सैंया राम जब अपनी दुल्हनिया का विलाप सुनते है तो कहते हैं मत रोअ हमार करेजा ।हमारा से ग़लती हो गईल हम तोहरा ला “लाली चुनरी ले आएम “कनिया पूछती है कहवा के लाली चुनरी ? साइयाँ जबाब देते है
“हाजीपुर के लाली हो चुनरिया ,पटना के रंगरेज सजनी लाली चुनरी .....”

इधर भोले बाबा और रेल बाबा की किरपा से ननदो के पाहुन अपने ससुरा में रंग खेलने पहली बार आ रहें है ।सूट -बूट के साथ अटैची लिए जब गाँव में प्रवेश करतें है तो देखते है -
“फाग खेलत सारा गाँव रे रसिया फागुन आया ....”

गाँव का लाईका सब पाहुन को रास्ते में पकड़ कर रंगने लगता है ।इधर एक छोट लाइका दौड़ कर घर पहुँचता है बताने को कि जीजा जी आ रहें है ।ननद रानी भोली बाबा को बार -बार गोड़ लाग रहीं है ,बार -बार खिड़की ,दुआर तक जा रहीं है कि कहाँ रह गए पिया मोरे ।एक लाईका को भेजतीं है पता लगाने को वो आकर कहता है
“यमुना तट श्याम खेलत होरी यमुना तट ...”

अब ननद से सबर नही होता है अबीर रंग की थाल लेकर वो निकल पड़ती है अपने श्याम राम को रंगने ।
“उत से निकली नवल जानकी लेकर हाथ अबीर ,होरी खेलत रघुबीर ......”

इधर नई कनिया होली के रंगो से सराबोर अपने दूल्हे को प्रेम पूर्ण ताना देती है कि

“ऐसी होरी ना खेलो कन्हाई रे ऐसी होरी
तन मन रंग सब श्याम तुम जानत ,जाओ -जाओ बनवारी रे .....”

इसी बीच ननद रानी भूत बनी अपनी पति के साथ घर पहुँचती  है ।भाभी उनका स्वागत रंगो से करती है ।दोनो जीजा -साला और उनके दोस्त मिलकर ऐसी होली खेलते हैं कि उन्हें देख दोनो विवाहिता गा उठती है
खेले मसान में होरी दिगम्बर




Monday, 18 March 2019

सर्च आउफ़ फ़ेलीनी !!!!

“सर्च आउफ़ फ़ेलीनी “
एक ऐसी मासूम लड़की की कहानी जो दुनियावी सचाई से दूर है ।कार्टून ,फ़िल्मों और अपनी माँ की रची एक सुंदर दुनिया को हीं वो असली दुनिया समझ रही होती है ।

फ़िल्म की कहानी सुनाने से पहले कुछ बातें -
मैं “फ़ेडरिको फ़ेलीनी “की कोई बहुत बड़ी फ़ैन नही ।बड़ी उलझी -सुलझी इनकी फ़िल्मे होती है ।दूसरा इनकी फ़िल्मों के सब टाइटल भी जल्दी नही मिलते ।

ये फ़िल्म नेटफलिक्स पर थी तो मैंने सोचा क्यों ना देखी जाए ।फ़िल्म कोई बहुत ज़बरदस्त नही पर पूरी देखने का कारण कहीं -कहीं लूसी से ख़ुद को जोड़ना और “लूसी “(कसनिया सोलो ) की आँखें  ।उफ़्फ़ ! भगवान ने सारी ख़ूबसूरती उन गोलियों जैसी आँखो में भर दिया है ।उसपर उसका मुस्कुराना ओह !कोई इतना मासूम कैसे दिख सकता है ?

सबसे महत्वपूर्ण ,लूसी कई बार मुझे अपने बचपन की तरफ़ ले गईं।उसकी आँखो से मन कर रहा था कंचे खेलूँ या फिर अगर आँखो में डूबना इसे कहते है तो डूब जाऊँ इनमे ।

कहानी शुरू होती है लूसी के बचपने और उसकी माँ की बीमारी के साथ ।माँ के हिस्से में काफ़ी कम दिन बचे है पर वो मासूम लूसी को बताना नही चाहती ।इधर अनजाने में लूसी माँ की बात सुन लेती है और ज़िम्मेदार बनने के तरफ़ क़दम बढ़ाती है ।फ़िल्मों की शौक़ीन लूसी एक जॉब को जाती है जहाँ ,उसे मालूम होता है कि वो जॉब किसी पॉर्न फ़िल्म के लिए है ।वहाँ से वो भागती है और क़िस्मत से फ़ेलीनी के फ़िल्म फ़ेस्टिवल में पहुँच जाती है ।

फ़ेलीनी की फ़िल्मे देख उसके सोचने का नज़रिया बदल रहा है ।वो फ़ेलीनी से मिलने रोम जाना चाहती है पर माँ को साथ लेकर ।उसकी माँ उसे कहती है की वो अब 20साल की हो गई उसे अकेले जाना चाहिए ।ऐसे में लूसी अकेले जाने से डरती है और मना कर देती है ।उसकी माँ डाँटतीं है ,फिर बेटी को समझती है वो नही जा सकती उसके साथ पर वो जाए -
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। 
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणी॥ 
कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों में कभी नहीं। इसलिए फल प्राप्त के लिए कर्म न करो और न ही काम करने में तुम्हारी आसक्ति हो।

माँ के इस व्यवहार से लूसी बेचारी बिना बताए ,एक नोट छोड़ अकेली निकल पड़ती है रोम की यात्रा पर ।

पहली बार अकेली यात्रा के दौरान वो डरी होती है ।इस यात्रा में उसके साथ  फ़ेलीनी के फ़िल्मों के पात्र काल्पनिक रूप में उसके साथ होते हैं।उसका समान ऐयरपोर्ट पर गुम चुका है ।पास में एक स्केच डायरी और कुछ छुट्टे पैसे रह गए है ।ऐसे में उसकी मुलाक़ात एक चित्रकार लड़के से होती है जो उसकी मदद करता है ।वो भी फ़ेलीनी का फ़ैन होता है ।दोनो को एक दूसरे से प्यार हो जाता है ।
ऐसे में उसे फिर उसे काल्पनिक महिला मिलती है जो कहती है “पुरुषों पर कभी विश्वास मत करना ,वो सिर्फ़ तुम्हारा इस्तमाल करेंगे “
लूसी एक बार फिर डर जाती है और अपने प्रेमी को छोड़ वो आगे की यात्रा पर निकल जाती है ।यहाँ वो फिर भटक जाती है और ग़लत ट्रेन में चढ़ कर “वेनिस “ पहुँच जाती है ।

फ़ेलीनी का मैनेजर फ़ोन पर लूसी से ग़ुस्सा हो जाता है कि वो बार -बार समय लेकर नही मिल पा रही है ।अब फ़ेलीनी उससे नही मिल सकते ।साथ ही उसने लूसी को एक संदेश दिया जो फ़ेलीनी ने उसके लिया छोड़ा था -

“कभी -कभी आप दूर बहुत दूर भटक रहे होते है उस प्रिय चीज़ के लिए जो आपके बिल्कुल पास होता है “
लूसी दुनिया के हर सवाल का जबाब” गीता “ में है ।इसे पढ़ो और समझो की तुम्हारा फ़ेलीनी कौन है ? 

फ़िल्म के आख़िरी सीन में लूसी फ़ेलीनी के पते पर पहुँचती है और वो पता होता है उसके प्रेमी का ।

और मैं इस कहानी का अंत फ़ेडरीको फ़ेलीनी के साथ करना चाहती हूँ ऐसे -
“अनुभव वो है जो आपको तब मिलता है जब आप कुछ और खोज रहे होते है “



Saturday, 16 March 2019

आमवस्या का उन्मुक्त प्रेम !!!

फरवरी का लड़का मार्च की लड़की ..

फरवरी :-छः साल हो गए आज साथ -साथ जीते -मरते  मार्च ।
मार्च :-हाँ फेब ।संयोग तो देखो आज सोमी अमवास्या है ।
फरवरी :-मुझे तो बस कलेंडर पर घेरा “चार मार्च”और तुम दिख रही हो ।

मार्च :-अच्छा !
चलो फिर थोड़ी देर के लिए बालकनी में आमवस्या को देखें।काली रातों को क्यों शिकायत हो कि ,प्रेमी पूर्णिमा से हीं प्रेम करतें  है ।

फरवरी :-हा -हा हा ....
तुम सच में बड़ी भोली हो मार्च ।यें रातों ये प्राकृति हमसे ज़्यादा जानती है ।इन्हें मालूम है कि प्रेमियों को कौन सी रातें ज़्यादा पसंद है ।
मार्च :-वो भला कैसे ?

फरवरी :-तुम्हीं बताओ ,प्रेम में आसहाय एक जोड़े को पूर्णिमा में चाँद को ताकना या अमवास्या में अपने चाँद के माथे को चूमना क्या अच्छा लगेगा ?
मार्च :-तुम सच में अजीब हो ।
फ़रवरी :-“अजीब” कह कर जो मेरे दिल को चुरा लेती हो तुम
काश मैं कोई कवि होता
काश मैं कोई ग़ालिब होता होता ।

मार्च (मुस्कुरा कर ):- चलो भी ।
फरवरी :- चलो पर एक बात बताऊँ ,आज की रात भूत -प्रेत ,जीव -जंतु सब तुम्हारी तरह उन्मुक्त होते है ।

मार्च :-मेरी तरह उन्मुक्त ? तो क्या वो मुझे काँट खाएँगे ? क्या वो मुझे तुमसे दूर कर देंगे ?
नही -नही ....

फ़रवरी :-मार्च की आँखो से गिरते गरम आँसुओं को अपने हथेलियों पर रोकते हुए -आज सच में पूर्ण अमावस्या है मार्च ।देखो तो कैसे तुम्हारा भावुक मन एक छोटे से मज़ाक़ से अति भावुक हो उठा ।

मार्च :-और तुम्हारा मन ?
फरवरी :-वो जो तुम्हारे आँखो से टपक रहा था ।

होली है !!!!

ऋतुओं में बसंत ऋतु का श्रेष्ठ स्थान स्थान है ।प्रकृति ,प्रेम ,विरह -मिलन और उत्सवों की इस ऋतु की हर बात हीं निराली है ।
एक ओर जहाँ माता सरस्वती के आगमन के साथ गीत- संगीत वातावरण में घुलने लगते वहीं दूसरी ओर शिव जी माता पार्वती को ब्याहने निकल पड़ते है ।पेड़ -पौधों के साथ -साथ हर एक जीव -जंतु उल्लास से भरे होते है ।
ऐसे में कहीं पीले फूलों से झुकी सरसों की डाली तो कहीं सफ़ेद हरियाली मोज़रें से ढकीं आम की शाखाएँ ।वहीं महुए के हरे फूल एक भींनी सुगंध बिखेरने की तैयारी में लग जातें है ।

रंगो से भीगीं धरती पर उगे जीव फाग के धूम में झूम रहें होते है ,तो दूर कहीं कोई चैता पर झाल बजा रहा होता है कि मेरे राम जन्म लेने वाले हैं ।

ऐसे एक नव वधू का आगमन घर में होता ।घर जलसों से भर जाता है ।उसी घर में एक और वधू होती है जिसके पिया परदेस कमाने गए होते है ।
जहाँ एक ओर शाम की बेला में ,नव विवाहिता की हल्दी कुटाई की रस्म के साथ सारा घर गूँज रहा है -
“गोरियाँ करीके सिंगार अँगना में पीसेली हरदीया ....”

वहीं थोड़ी दूर बैठी दूसरी वधू जिसका पति होली में घर नही आ पाया है ,उसके मन में चैता विरह घोल रही है ,,
“चैत मासे साइयाँ नाहीं अईले हो रामा जिया घबड़ाला ....”

दुःखी परेशान  वो भगवान शिव से अपने पति की सलामती के साथ उसके आने की प्रार्थना करती है ।भगवान शिव के साथ रेल देव की भी कृपा उसपर होती है और ठीक होली वाले दिन उसका पति घर पहुँचता है ।उसके आगमन से होली का रंग और चटक हो जाता है और फिर होरी शुरू होती है ,

खेले मसान में होली दिगम्बर खेले मसान में होरी
भूत पिसाच बटोरी ,दिगम्बर खेले मसान में होरी .....

Wednesday, 13 March 2019

फरवरी का लड़का मार्च की लड़की ....


फरवरी :-तुम्हें कैसा लगता है मार्च ,जब तुम ये काँटेदार कम्बल ओढ़ती हो ? क्या तुम्हें भी ये महसूस होता है की ,हम इन काँटेदार सूईयों की सेज हैं ।
मार्च :-सूईयों की सेज ?
फरवरी :-हाँ ,मार्च सूईयों की सेज ।
हमारे ऊपर पड़ा ये कम्बल असंख्य सूईयों के तार से हीं तो बुना है ।उस निर्जीव -सजीव जीव ने अपने रोए दिए है हमारे रोओं को गरम करने के लिए पर ,देखो तो उसकी वेदना जो ये चुभन बनती जा रहीं है ।

मार्च :-तुम भी ना ।
फरवरी :- हाँ मैं भी ना ।
तुम इतने कम शब्दों में कैसे काम चला लेती हो ।कम से कम यहीं कहा होता ,फेब तुम्हारी बातें मुझे उलझी रील सी लग रहीं है ।

मार्च :-उलझी रील ?
फरवरी :-हाँ वहीं रील जो सूईयों को पिरोई जातीं है ।पिरोते वक़्त कभी -कभी ऐसी उलझ जाती है कि ,उसे  काटना पड़ता है ।

मार्च :-हम्म ,पर तुम्हारी बातें तो उस रील सी नही मेरे फेव ।
फरवरी :-तो फिर कैसी हैं मेरी मार्च ?

मार्च :-मार्च की धूप सी “गुनगुनी”

फरवरी :-अच्छा ! फिर तो जनवरी के दिनो में मेरी बातें बर्फ़ बन जाती होंगी और फिर, हमें महसूस होती होगी इस काँटेदार कम्बल की ज़रूरत ।फिर वहीं चुभन और वहीं बातें ।

मार्च :-मैं इस बार इस कम्बल पर खोल चढ़ा दूँगी ।सुना है खोल लगने के बाद इसकी गरमी बढ़ जाती है ।
फरवरी :-खोल । अगर फिर भी चुभन कम ना हुई तो ?
मार्च :-मैं हूँ ना ,मैं बन जाऊँगी तुम्हारी खोल .......

Tuesday, 5 March 2019

यहूदी और गीता का ज्ञान !!!

 बिमल राय की एक और ख़ूबसूरत कृति “यहूदी “ मुझे कल देखने को मिली ।
फ़िल्म की कहानी कुछ यूँ है ,रोम का शहज़ादा मार्कस ,ब्रूटुस की भतीजी से शादी करने आता है पर उसे प्यार एक यहूदी लड़की हाना से हो जाती है ।रोम साम्राज्य का ज़ुल्म हर तरह से ग़रीबों यहूदियों  पर है ,इसलिए यहूदी लोग इनसे नफ़रत करते हैं ।शहज़ादे को मालूम है की अगर वो अपनी असली पहचान बतायेगा तो यहूदी लड़की उससे प्यार कभी नही करेगी ,इसलिए वो अपनी पहचान छुपा कर रखता है ।

इधर शहज़ादे के इक्षा के विरुद्ध उसका विवाह ब्रूटुस की भतीजी ओकटिविया से होने वाली होती है की तभी यहूदी लड़की अपने पिता के साथ विवाह देखने आती है ।उनदोंनो को नही मालूम था कि राजकुमार ही उसका प्रेमी है ।ऐसे में हाना फ़रियाद करती है कि ,राजकुमार ने उसके साथ छल किया है ।राजकुमार की सज़ा कल तय होगी यह कह कर सभा समाप्त होती है ।ओकटिविया हाना के पास पहुँचती है और उसे कहती है कि ,उसकी फ़रियाद से राजकुमार को मौत भी मिल सकती है ।बेचारी हाना अपने प्रेमी की मृत्यु सोच कर अगले दिन सभा में झूठ कहती है कि ,राजकुमार उसका प्रेमी नही बल्कि उसके प्रेमी के जैसा दिखने वाला व्यक्ति है ।
हाना और उसके पिता को राजकुमार पर जुठा आरोप लगाने के बदले मृत्यु दंड मिलता है ।राजकुमार बार -बार कहता है कि ,हाना उसकी जान के बदले झूठ बोल रही है ।वो हीं उसका प्रेमी है ।पर उसकी बात कोई नही सुनता ।राजकुमार बग़ावत करता है और इसके जुर्म में उसे एक रात की क़ैद के साथ ,उसके आँखो के आगे हाना को मृत्यु दी जाए ये दंड दिया जाता है ।
अपने प्रेम को अपने आँखो के आगे मरते देखने से अच्छा ,राजकुमार ख़ुद को अंधा कर लेता है ।इधर हाना के पिता बेटी की मृत्यु सामने देख ,ब्रूटुस को कहता है -दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्‌ ।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्‌ ॥
भावार्थ : मैं दमन करने वालों का दंड अर्थात्‌ दमन करने की शक्ति हूँ, जीतने की इच्छावालों की नीति हूँ, गुप्त रखने योग्य भावों का रक्षक मौन हूँ और ज्ञानवानों का तत्त्वज्ञान मैं ही हूँ।

यानी की मैंने तुमसे बदला लेने के लिए तुम्हारी बेटी चुरा ली थी ।तुमने मेरे छोटे से बेटे को शेर के आगे फेंक दिया था दुष्ट ।हाना तुम्हारी बेटी है ।भगवान के लिए इसे मत मारो।मैंने इसे अपनी बेटी की तरह पाला है ।अपनी खोई बेटी को पाकर ब्रूटुस ,हाना को छोड़ देता है पर हाना उसे अपना पिता नही मानती और वापस चली जाती है ।

इधर जिस खंडहर में राजकुमार और हाना मिला करते थे ,उसी जगह पर हाना की याद में अंधा राजकुमार आँसू बहा रहा था ।हाना भी दुखी हो यहाँ पहुँचती है और राजकुमार को इस हालत में देखती है और कहती है-ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते ।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम्‌ ॥
भावार्थ : वह परब्रह्म ज्योतियों का भी ज्योति माया से अत्यन्त परे कहा जाता है। वह परमात्मा बोधस्वरूप, जानने के योग्य एवं तत्वज्ञान से प्राप्त करने योग्य है और सबके हृदय में विशेष रूप से स्थित है ।
वो है “प्रेम “।चलो हम उस उजाले दुनिया की ओर चले ।प्रेम की ओर चलें ।