Tuesday 5 March 2019

यहूदी और गीता का ज्ञान !!!

 बिमल राय की एक और ख़ूबसूरत कृति “यहूदी “ मुझे कल देखने को मिली ।
फ़िल्म की कहानी कुछ यूँ है ,रोम का शहज़ादा मार्कस ,ब्रूटुस की भतीजी से शादी करने आता है पर उसे प्यार एक यहूदी लड़की हाना से हो जाती है ।रोम साम्राज्य का ज़ुल्म हर तरह से ग़रीबों यहूदियों  पर है ,इसलिए यहूदी लोग इनसे नफ़रत करते हैं ।शहज़ादे को मालूम है की अगर वो अपनी असली पहचान बतायेगा तो यहूदी लड़की उससे प्यार कभी नही करेगी ,इसलिए वो अपनी पहचान छुपा कर रखता है ।

इधर शहज़ादे के इक्षा के विरुद्ध उसका विवाह ब्रूटुस की भतीजी ओकटिविया से होने वाली होती है की तभी यहूदी लड़की अपने पिता के साथ विवाह देखने आती है ।उनदोंनो को नही मालूम था कि राजकुमार ही उसका प्रेमी है ।ऐसे में हाना फ़रियाद करती है कि ,राजकुमार ने उसके साथ छल किया है ।राजकुमार की सज़ा कल तय होगी यह कह कर सभा समाप्त होती है ।ओकटिविया हाना के पास पहुँचती है और उसे कहती है कि ,उसकी फ़रियाद से राजकुमार को मौत भी मिल सकती है ।बेचारी हाना अपने प्रेमी की मृत्यु सोच कर अगले दिन सभा में झूठ कहती है कि ,राजकुमार उसका प्रेमी नही बल्कि उसके प्रेमी के जैसा दिखने वाला व्यक्ति है ।
हाना और उसके पिता को राजकुमार पर जुठा आरोप लगाने के बदले मृत्यु दंड मिलता है ।राजकुमार बार -बार कहता है कि ,हाना उसकी जान के बदले झूठ बोल रही है ।वो हीं उसका प्रेमी है ।पर उसकी बात कोई नही सुनता ।राजकुमार बग़ावत करता है और इसके जुर्म में उसे एक रात की क़ैद के साथ ,उसके आँखो के आगे हाना को मृत्यु दी जाए ये दंड दिया जाता है ।
अपने प्रेम को अपने आँखो के आगे मरते देखने से अच्छा ,राजकुमार ख़ुद को अंधा कर लेता है ।इधर हाना के पिता बेटी की मृत्यु सामने देख ,ब्रूटुस को कहता है -दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्‌ ।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्‌ ॥
भावार्थ : मैं दमन करने वालों का दंड अर्थात्‌ दमन करने की शक्ति हूँ, जीतने की इच्छावालों की नीति हूँ, गुप्त रखने योग्य भावों का रक्षक मौन हूँ और ज्ञानवानों का तत्त्वज्ञान मैं ही हूँ।

यानी की मैंने तुमसे बदला लेने के लिए तुम्हारी बेटी चुरा ली थी ।तुमने मेरे छोटे से बेटे को शेर के आगे फेंक दिया था दुष्ट ।हाना तुम्हारी बेटी है ।भगवान के लिए इसे मत मारो।मैंने इसे अपनी बेटी की तरह पाला है ।अपनी खोई बेटी को पाकर ब्रूटुस ,हाना को छोड़ देता है पर हाना उसे अपना पिता नही मानती और वापस चली जाती है ।

इधर जिस खंडहर में राजकुमार और हाना मिला करते थे ,उसी जगह पर हाना की याद में अंधा राजकुमार आँसू बहा रहा था ।हाना भी दुखी हो यहाँ पहुँचती है और राजकुमार को इस हालत में देखती है और कहती है-ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते ।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम्‌ ॥
भावार्थ : वह परब्रह्म ज्योतियों का भी ज्योति माया से अत्यन्त परे कहा जाता है। वह परमात्मा बोधस्वरूप, जानने के योग्य एवं तत्वज्ञान से प्राप्त करने योग्य है और सबके हृदय में विशेष रूप से स्थित है ।
वो है “प्रेम “।चलो हम उस उजाले दुनिया की ओर चले ।प्रेम की ओर चलें ।


No comments:

Post a Comment