एक वीडीयो कल वाइरल हुआ जिसमें एक पिता अपनी बेटी को बुरी तरह पीट रहा है ,गालियाँ दे रहा ।पीटने का कारण बच्ची के जन्मदिन मानने की इक्षा और उसकी माँ का उसके पिता को छोड़ जाना है ।
ऐसी कई बच्चियाँ और महिलाएँ है जो रोज इससे अधिक पीड़ा चुप-चाप सहती हैं ।पति -परिवार द्वारा छोड़े जाने का भय कभी उन्मे हिम्मत हीं नही भर पाता कि वो इस पीड़ा से निकलने की सोचे ।
मैंने जहाँ तक देखा है ये जितनी भी प्रताड़ना है वो एक माध्यम वर्गीय परिवार में ज़्यादा है ।इनको हीं समाज की ,लोक लाज की ज़्यादा चिंता होती है ।बेटी को सहनशील होने की घुट्टी उसके परिवार से मिलती आ रही होती है ।कभी अपनी माँ तो कभी भाभी को पिटते देख उनका मन पत्थर का बन रहा होता है ।बाक़ी शरीकपीड़ा तो छुपाई जा नही सकती ।
मैंने ऐसा भी देखा है कि पति से मार गाली खाकर भी कई महिलाएँ ख़ुश हैं ।एक बार किसी को टोका तो उलटे मुझे जबाब मिला “मारे ला त मारे ला करेजी त खियावेला “
हाय रे जीवन ,शरीर के दर्द को जानवर के कलेजे भकोस कर शांत किया जा रहा है ।मुझे ग़ुस्सा तो बहुत आया था पर जब आप हीं शरीर बना -बना कर मार खाने के आदि हो चुकीं है तो कौन आपका साथ देगा ।
जब इतना हीं करेजी खाईं है तो दम दिखाइए अपने हाथो में भी ।
बाक़ी कहने या लिखने को तो कोई भी कुछ कह सकता है लिख सकता है पर शायद इसके लिए बहुत हिम्मत चाहिए होगी ।ये कोई सोसल मीडिया नही जो फ़्रेंड बनाया अनफ़्रेंड कर दिया ।इससे मुझे याद आया कि कुछ महीनों पहले मुझे एक लड़के ने फ़्रेंड रिकवेस्ट भेजा ।प्रोफ़ाइल अच्छी थी और उससे भी अच्छा उसका नाम ।मैंने सोचा अच्छा लड़का है एक्सेप्ट कर लेती हूँ रिकवेस्ट ।
एक्सेप्ट करते हीं मैसज आया “हाय हॉटी ।तुम एक माँ बिल्कुल नही लगती ।”
मुझे बड़ा ग़ुस्सा आया ।ख़ास कर माँ नही लगने वाली बात पर ।बिना उससे कोई सवाल जबाब के उसे ब्लॉक कर दिया ।जो एक माँ को नही देख सकता वो उसकी भावनायें क्या ख़ाक समझेगा ।
फिर सोचिए उस माँ के बारे में जिसने अपनी बच्ची को पीटते हुए देखा होगा कई बार -बार -बार ।संयोग देखिए पिता का नाम है “मुक्तिबोध “
अब क्या हीं कहूँ ,अंत “गजानन मुक्तिबोध “ की कविता से जो उस बच्ची और उसकी माँ के लिए है -
सभी उरों के अंधकार में एक तड़ित वेदना उठेगी,
तभी सृजन की बीज-वृद्धि हित जड़ावरण की महि फटेगीशत-शत बाणों से घायल हो बढ़ा चलेगा जीवन-अंकुर
दंशन की चेतन किरणों के द्वारा काली अमा हटेगी ।
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