आज आप सबको मैं भीमाशंकर मंदिर लेकर चलती हूँ ।पुणे से करीब सौ -एक सौ दस किलोमीटर दूर सह्याद्रि पर्वत पर बना ये मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है ।
जाने का रास्ता ठीक -बेठीक का मिश्रण है ।यहाँ आप बस या प्राइवेट गाड़ी से जा सकतें है ।
लाल रंग की पहाड़ी पर स्थित ये मंदिर जंगल ,भीमा नदी ,बंदरों और कहीं -कहीं पर काजू के पेड़ों का समूह है ।मंदिर तक जाने के लिए कुछ सौ -डेढ़ सौ सीढ़ियाँ है पर सीढ़ियाँ ऐसी चौड़ी बनाई गई हैं की आपको बहुत कम थकान होती है उतरने- चढ़ने में ।
यहाँ ज़्यादा बाज़ार का प्रसार नही ।मंदिर के लिए प्रसाद ,फूल और कुछ मालाएँ -खिलौने तक सीमित ये मंदिर परिसर ख़ूब साफ़ -सुथरा है ।साथ ही यहाँ पंडा वाला सिस्टम नही देखने को मिला जैसा अपने बाबाधाम में है ।जाइए जल चढ़ाई आगे बढ़िए ।
चलिए मंदिर से जुड़ी कहानी बताती हूँ -हुआ यूँ कुंभकर्ण की मृत्यु राम के हाथो हुई ये तो आप सबको मालूम हीं है ।उसकी मृत्यु के तुरंत बाद उसे पुत्र हुआ जिसका नाम भीम था ।शोक में डूबी उसकी पत्नी अपने पति के निशानी को पालने लगी ।जैसे ही भीम बड़ा हुआ उसकी माँ ने उसके पिता के हत्यारे राम का नाम बताया ।साथ ही राम की ताक़त का भी परिचय दिया ।ऐसे में भीम ने कठोर तपस्या करके कई अस्त्र हासिल किए और फिर मनुष्य -देव सबको हानि पहुँचाने लगा ।सभी देव दौड़ कर भगवान शिव के पास गए ।शिव में सबकी प्रार्थना सुनी और भीम का वध किया ।
सभी लोगों ने शिव जी से आग्रह किया की जहाँ युद्द हुआ वे वहीं निवास कर जाएँ और ऐसे यहाँ भीमाशंकर विराजमान हो गए।
इस शिवलिंग की मोटाई ज़्यादा है इसलिए इसे लोग” मोटेश्वर महादेव “ भी कहते है ।
अच्छा रुकिए आप इसे मोटेश्वर महादेव “उत्तराखण्ड “वाला से कन्फ़्यूज़ ना हो ।कहते है ये मंदिर भीमाशंकर का हीं उपज्योतिर्लिंग है ।पर इसकी कथा बिल्कुल अलग है ।पर नाम का संयोग ऐसा की कहते है यहाँ “पांडव भीम “ ने गुरु द्रोणचर्या को गुरु दक्षिण स्वरूप ये मंदिर बनवा कर की थी ।हुआ यूँ कि कौरव -पांडव को शिक्षा देते समय गुरु को ये शिवलिंग दिखा ।फिर इसपर मंदिर कार्य भीम ने कराया ।
तो इस तरह दोंनो भीम के साथ भीमाशंकर की कथा समाप्त हुई ।मंदिर के दर्शन करे और मुझे आशीर्वाद दे :)
जाने का रास्ता ठीक -बेठीक का मिश्रण है ।यहाँ आप बस या प्राइवेट गाड़ी से जा सकतें है ।
लाल रंग की पहाड़ी पर स्थित ये मंदिर जंगल ,भीमा नदी ,बंदरों और कहीं -कहीं पर काजू के पेड़ों का समूह है ।मंदिर तक जाने के लिए कुछ सौ -डेढ़ सौ सीढ़ियाँ है पर सीढ़ियाँ ऐसी चौड़ी बनाई गई हैं की आपको बहुत कम थकान होती है उतरने- चढ़ने में ।
यहाँ ज़्यादा बाज़ार का प्रसार नही ।मंदिर के लिए प्रसाद ,फूल और कुछ मालाएँ -खिलौने तक सीमित ये मंदिर परिसर ख़ूब साफ़ -सुथरा है ।साथ ही यहाँ पंडा वाला सिस्टम नही देखने को मिला जैसा अपने बाबाधाम में है ।जाइए जल चढ़ाई आगे बढ़िए ।
चलिए मंदिर से जुड़ी कहानी बताती हूँ -हुआ यूँ कुंभकर्ण की मृत्यु राम के हाथो हुई ये तो आप सबको मालूम हीं है ।उसकी मृत्यु के तुरंत बाद उसे पुत्र हुआ जिसका नाम भीम था ।शोक में डूबी उसकी पत्नी अपने पति के निशानी को पालने लगी ।जैसे ही भीम बड़ा हुआ उसकी माँ ने उसके पिता के हत्यारे राम का नाम बताया ।साथ ही राम की ताक़त का भी परिचय दिया ।ऐसे में भीम ने कठोर तपस्या करके कई अस्त्र हासिल किए और फिर मनुष्य -देव सबको हानि पहुँचाने लगा ।सभी देव दौड़ कर भगवान शिव के पास गए ।शिव में सबकी प्रार्थना सुनी और भीम का वध किया ।
सभी लोगों ने शिव जी से आग्रह किया की जहाँ युद्द हुआ वे वहीं निवास कर जाएँ और ऐसे यहाँ भीमाशंकर विराजमान हो गए।
इस शिवलिंग की मोटाई ज़्यादा है इसलिए इसे लोग” मोटेश्वर महादेव “ भी कहते है ।
अच्छा रुकिए आप इसे मोटेश्वर महादेव “उत्तराखण्ड “वाला से कन्फ़्यूज़ ना हो ।कहते है ये मंदिर भीमाशंकर का हीं उपज्योतिर्लिंग है ।पर इसकी कथा बिल्कुल अलग है ।पर नाम का संयोग ऐसा की कहते है यहाँ “पांडव भीम “ ने गुरु द्रोणचर्या को गुरु दक्षिण स्वरूप ये मंदिर बनवा कर की थी ।हुआ यूँ कि कौरव -पांडव को शिक्षा देते समय गुरु को ये शिवलिंग दिखा ।फिर इसपर मंदिर कार्य भीम ने कराया ।
तो इस तरह दोंनो भीम के साथ भीमाशंकर की कथा समाप्त हुई ।मंदिर के दर्शन करे और मुझे आशीर्वाद दे :)
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