“सर्च आउफ़ फ़ेलीनी “
एक ऐसी मासूम लड़की की कहानी जो दुनियावी सचाई से दूर है ।कार्टून ,फ़िल्मों और अपनी माँ की रची एक सुंदर दुनिया को हीं वो असली दुनिया समझ रही होती है ।
फ़िल्म की कहानी सुनाने से पहले कुछ बातें -
मैं “फ़ेडरिको फ़ेलीनी “की कोई बहुत बड़ी फ़ैन नही ।बड़ी उलझी -सुलझी इनकी फ़िल्मे होती है ।दूसरा इनकी फ़िल्मों के सब टाइटल भी जल्दी नही मिलते ।
ये फ़िल्म नेटफलिक्स पर थी तो मैंने सोचा क्यों ना देखी जाए ।फ़िल्म कोई बहुत ज़बरदस्त नही पर पूरी देखने का कारण कहीं -कहीं लूसी से ख़ुद को जोड़ना और “लूसी “(कसनिया सोलो ) की आँखें ।उफ़्फ़ ! भगवान ने सारी ख़ूबसूरती उन गोलियों जैसी आँखो में भर दिया है ।उसपर उसका मुस्कुराना ओह !कोई इतना मासूम कैसे दिख सकता है ?
सबसे महत्वपूर्ण ,लूसी कई बार मुझे अपने बचपन की तरफ़ ले गईं।उसकी आँखो से मन कर रहा था कंचे खेलूँ या फिर अगर आँखो में डूबना इसे कहते है तो डूब जाऊँ इनमे ।
कहानी शुरू होती है लूसी के बचपने और उसकी माँ की बीमारी के साथ ।माँ के हिस्से में काफ़ी कम दिन बचे है पर वो मासूम लूसी को बताना नही चाहती ।इधर अनजाने में लूसी माँ की बात सुन लेती है और ज़िम्मेदार बनने के तरफ़ क़दम बढ़ाती है ।फ़िल्मों की शौक़ीन लूसी एक जॉब को जाती है जहाँ ,उसे मालूम होता है कि वो जॉब किसी पॉर्न फ़िल्म के लिए है ।वहाँ से वो भागती है और क़िस्मत से फ़ेलीनी के फ़िल्म फ़ेस्टिवल में पहुँच जाती है ।
फ़ेलीनी की फ़िल्मे देख उसके सोचने का नज़रिया बदल रहा है ।वो फ़ेलीनी से मिलने रोम जाना चाहती है पर माँ को साथ लेकर ।उसकी माँ उसे कहती है की वो अब 20साल की हो गई उसे अकेले जाना चाहिए ।ऐसे में लूसी अकेले जाने से डरती है और मना कर देती है ।उसकी माँ डाँटतीं है ,फिर बेटी को समझती है वो नही जा सकती उसके साथ पर वो जाए -
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणी॥
कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों में कभी नहीं। इसलिए फल प्राप्त के लिए कर्म न करो और न ही काम करने में तुम्हारी आसक्ति हो।
माँ के इस व्यवहार से लूसी बेचारी बिना बताए ,एक नोट छोड़ अकेली निकल पड़ती है रोम की यात्रा पर ।
पहली बार अकेली यात्रा के दौरान वो डरी होती है ।इस यात्रा में उसके साथ फ़ेलीनी के फ़िल्मों के पात्र काल्पनिक रूप में उसके साथ होते हैं।उसका समान ऐयरपोर्ट पर गुम चुका है ।पास में एक स्केच डायरी और कुछ छुट्टे पैसे रह गए है ।ऐसे में उसकी मुलाक़ात एक चित्रकार लड़के से होती है जो उसकी मदद करता है ।वो भी फ़ेलीनी का फ़ैन होता है ।दोनो को एक दूसरे से प्यार हो जाता है ।
ऐसे में उसे फिर उसे काल्पनिक महिला मिलती है जो कहती है “पुरुषों पर कभी विश्वास मत करना ,वो सिर्फ़ तुम्हारा इस्तमाल करेंगे “
लूसी एक बार फिर डर जाती है और अपने प्रेमी को छोड़ वो आगे की यात्रा पर निकल जाती है ।यहाँ वो फिर भटक जाती है और ग़लत ट्रेन में चढ़ कर “वेनिस “ पहुँच जाती है ।
लूसी एक बार फिर डर जाती है और अपने प्रेमी को छोड़ वो आगे की यात्रा पर निकल जाती है ।यहाँ वो फिर भटक जाती है और ग़लत ट्रेन में चढ़ कर “वेनिस “ पहुँच जाती है ।
फ़ेलीनी का मैनेजर फ़ोन पर लूसी से ग़ुस्सा हो जाता है कि वो बार -बार समय लेकर नही मिल पा रही है ।अब फ़ेलीनी उससे नही मिल सकते ।साथ ही उसने लूसी को एक संदेश दिया जो फ़ेलीनी ने उसके लिया छोड़ा था -
“कभी -कभी आप दूर बहुत दूर भटक रहे होते है उस प्रिय चीज़ के लिए जो आपके बिल्कुल पास होता है “
लूसी दुनिया के हर सवाल का जबाब” गीता “ में है ।इसे पढ़ो और समझो की तुम्हारा फ़ेलीनी कौन है ?
लूसी दुनिया के हर सवाल का जबाब” गीता “ में है ।इसे पढ़ो और समझो की तुम्हारा फ़ेलीनी कौन है ?
फ़िल्म के आख़िरी सीन में लूसी फ़ेलीनी के पते पर पहुँचती है और वो पता होता है उसके प्रेमी का ।
और मैं इस कहानी का अंत फ़ेडरीको फ़ेलीनी के साथ करना चाहती हूँ ऐसे -
“अनुभव वो है जो आपको तब मिलता है जब आप कुछ और खोज रहे होते है “
और मैं इस कहानी का अंत फ़ेडरीको फ़ेलीनी के साथ करना चाहती हूँ ऐसे -
“अनुभव वो है जो आपको तब मिलता है जब आप कुछ और खोज रहे होते है “
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