Saturday, 16 March 2019

होली है !!!!

ऋतुओं में बसंत ऋतु का श्रेष्ठ स्थान स्थान है ।प्रकृति ,प्रेम ,विरह -मिलन और उत्सवों की इस ऋतु की हर बात हीं निराली है ।
एक ओर जहाँ माता सरस्वती के आगमन के साथ गीत- संगीत वातावरण में घुलने लगते वहीं दूसरी ओर शिव जी माता पार्वती को ब्याहने निकल पड़ते है ।पेड़ -पौधों के साथ -साथ हर एक जीव -जंतु उल्लास से भरे होते है ।
ऐसे में कहीं पीले फूलों से झुकी सरसों की डाली तो कहीं सफ़ेद हरियाली मोज़रें से ढकीं आम की शाखाएँ ।वहीं महुए के हरे फूल एक भींनी सुगंध बिखेरने की तैयारी में लग जातें है ।

रंगो से भीगीं धरती पर उगे जीव फाग के धूम में झूम रहें होते है ,तो दूर कहीं कोई चैता पर झाल बजा रहा होता है कि मेरे राम जन्म लेने वाले हैं ।

ऐसे एक नव वधू का आगमन घर में होता ।घर जलसों से भर जाता है ।उसी घर में एक और वधू होती है जिसके पिया परदेस कमाने गए होते है ।
जहाँ एक ओर शाम की बेला में ,नव विवाहिता की हल्दी कुटाई की रस्म के साथ सारा घर गूँज रहा है -
“गोरियाँ करीके सिंगार अँगना में पीसेली हरदीया ....”

वहीं थोड़ी दूर बैठी दूसरी वधू जिसका पति होली में घर नही आ पाया है ,उसके मन में चैता विरह घोल रही है ,,
“चैत मासे साइयाँ नाहीं अईले हो रामा जिया घबड़ाला ....”

दुःखी परेशान  वो भगवान शिव से अपने पति की सलामती के साथ उसके आने की प्रार्थना करती है ।भगवान शिव के साथ रेल देव की भी कृपा उसपर होती है और ठीक होली वाले दिन उसका पति घर पहुँचता है ।उसके आगमन से होली का रंग और चटक हो जाता है और फिर होरी शुरू होती है ,

खेले मसान में होली दिगम्बर खेले मसान में होरी
भूत पिसाच बटोरी ,दिगम्बर खेले मसान में होरी .....

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